मंगलवार, 27 अगस्त 2013

आदमखोरों की होगी डीएनए सैंपलिंग

पदचिह्नों व कैमरा ट्रैपिंग के प्रयोग असफल रहने के बाद उठाया जा रहा कदम 
नैनीताल वन प्रभाग से होगी शुरुआत, मल से लिये जाएंगे डीएनए के नमूने
नवीन जोशी, नैनीताल। अब तक आदमखोर बाघों व गुलदारों की पहचान उनके पदचिह्नों व कैमरा ट्रैपिंग के जरिए की जाती रही है, लेकिन इन प्रविधियों की असफलता और अब गांवों के बाद शहरों में भी अपनी धमक बना रहे आदमखोरों की त्रुटिहीन पहचान के लिए वन विभाग अत्याधुनिक डीएनए वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग इनकी पहचान के लिए करने जा रहा है। इसकी शुरुआत नैनीताल वन प्रभाग से होने जा रही है। इस नई तकनीक के तहत वन विभाग ग्रामीणों के सहयोग से वन्य पशुओं के मल (स्कैड) को एकत्र करेगा। मल का हैदराबाद की अत्याधुनिक सीसीएमबी (सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी) प्रयोगशाला में डीएनए परीक्षण कर डाटा रख लिया जाएगा और आगे इसका प्रयोग आदमखोरों की सही पहचान में किया जाएगा। 
वन्य जीव विशेषज्ञों के अनुसार कोई भी हिंसक वन्य जीव अपने जीवन पर संकट आने जैसी स्थितियों में ही आदमखोर होते हैं। बीते दिनों में नैनीताल जनपद के चोपड़ा, जंतवालगांव क्षेत्र में चार लोगों को आदमखोर गुलदार अपना शिकार बना चुके हैं। रामनगर के जिम काब्रेट पार्क से लगे क्षेत्रों में आदमखोर बाघों से अक्सर मानव से संघर्ष होता रहा है। दिनों-दिन ऐसी समस्याएं बढ़ने पर वन विभाग ने पहले इन हिंसक वन्य जीवों के पदचिह्नों की पहचान की तकनीक निकाली, लेकिन बेहद कठिन तकनीक होने के कारण कई बार बमुश्किल प्राप्त किए पदचिह्न किसी अन्य वन्य जीव के निकल जाते हैं और उनके इधर- उधर आने-जाने की ठीक से जानकारी नहीं मिल पाती। इससे आगे निकलकर निश्चित स्थानों पर थर्मो सेंसरयुक्त कैमरे लगाकर इनकी कैमरा ट्रैपिंग का प्रबंध किया गया, किंतु यह प्रविधि भी कुछ ही स्थानों पर कैमरे लगे होने की अपनी सीमाओं के कारण अधिक कारगर नहीं हो पा रही है। नैनीताल वन प्रभाग के डीएफओ डा. पराग मधुकर धकाते का दावा है कि इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने सीसीएमबी हैदराबाद जाकर अध्ययन किया है व वहां के डीएनए सैंपलिंग विशेषज्ञों ने हिंसक जीवों के आतंक से निजात दिलाने के लिए यह नया तरीका खोज निकाला है। डा. धकाते बताते हैं कि नई विधि के तहत शीघ्र ही आदमखोरों की अधिक आवक वाले क्षेत्रों में ग्रामीणों व विभागीय कर्मियों को एक दिवसीय 'कैपेसिटी बिल्डिंग प्रोग्राम' चलाकर प्रशिक्षित किया जाएगा। ग्रामीणों को विभाग प्लास्टिक के थैले उपलब्ध कराएगा, जिसमें ग्रामीण कहीं भी जानवर का मल मिलने पर थोड़ा सा एकत्र कर लेंगे। बाद में विभाग इसे सीसीएमबी हैदराबाद भेजेगा और त्रुटिहीन तरीके से उस क्षेत्र में सक्रिय हिंसक जीव की पहचान एकत्र कर ली जाएगी। कुमाऊं विवि के डीएसबी परिसर निदेशक व जंतु विज्ञानी प्रो. बीआर कौशल ने भी डीएनए सैंपलिंग के इस तरीके के बेहद प्रभावी होने की संभावना जताते हुए कहा कि मल में जानवर की लार, सलाइवा, हड्डी या पेट की आंतों के अंश होते हैं, जिनसे उस जानवर का डीएनए सैंपल प्राप्त हो जाता है।

बाघों की मौत के वैज्ञानिक अन्वेषण के निर्देश दिए

नैनीताल । नैनीताल उच्च न्यायालय ने काब्रेट पार्क में बाघों की मौत मामलों में वन अफसरों की लापरवाही को गंभीरता से लिया है। न्यायालय ने निदेशक सीटीआर को बाघों की मृत्यु का वैज्ञानिक अन्वेषण करने के निर्देश दिये हैं। खंडपीठ ने गौरी मौलखी की जनहित याचिका की सुनवाई के बाद यह निर्देश दिया है। याचिकाकर्ता का आरोप है कि काब्रेट पार्क में बाघों की मौत का सही अन्वेषण नहीं किया जा रहा है। वन अफसर जांच में बाघ संरक्षण प्राधिकरण के निर्धारित मापदंडों का सरासर उल्लंघन कर रहे हैं।

रविवार, 11 अगस्त 2013

द्वितीय विश्व युद्ध के सेनानी देवी दत्त जोशी नहीं रहे



Amar Ujala-Almora edition- 10 Aug. 2013
कपकोट। द्वितीय विश्व युद्ध के सेनानी (The 12th Frountier Force Regiment, Sialkot में 03.05.1945 से 16.07.1946 तक कार्यरत रहे) तोली निवासी देवीदत्त जोशी (सिपाही 3429418) का करीब 100 साल की आयु में बृहस्पतिवार रात निधन हो गया। शुक्रवार को  पैत्रिक गांसू श्मशान घाट में पवित्र सरयू नदी के तट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। विश्व युद्ध के दौरान वह सियालकोट क्षेत्र में तैनात रहे। स्व. जोशी युद्ध के बाद ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह करने वाले सैनिकों में भी शामिल थे।
कपकोट ब्लाक के सुदूरवर्ती तोली गांव में स्व. दत्त राम जोशी के घर में जन्मे देवी दत्त जोशी बचपन से ही जुझारू प्रवृति के थे। वह ब्रिटिश भारतीय सरकार की सशस्त्र सेना में भर्ती हुए और द्वितीय विश्व युद्ध में उन्होंने बहादुरी के साथ मित्र देशों की सेनाओं के साथ मिलकर कर्तव्यनिष्ठा और बहादुरी का परिचय दिया। वह अधिकतर समय सियालकोट क्षेत्र में तैनात रहे। परिजनों के अनुसार 1946 के आसपास ब्रिटिश सरकार के खिलाफ वातावरण बनने लगा तो सेना में भी विद्रोह की स्थिति पैदा हो गई। 
Rashtriya Sahara-10 August 2013
भारतीय सैनिक ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ बगावत करने लगे। इसके बाद सरकार ने 120 रुपये की पेंशन के साथ कई सैनिकों सहित श्री जोशी को भी सेवानिवृत्त कर दिया। उन्हें शांतिपुरी में 120 हेक्टेयर भूमि दी गई। श्री जोशी के परिजन तराई में बस गए किंतु वह पैतृक गांव तोली में ही रहे। बृहस्पतिवार की रात उनका निधन हो गया। आज पैत्रिक गांसू श्मशान घाट में पवित्र सरयू नदी के तट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके पुत्र दामोदर जोशी, भोलादत्त जोशी, हरीश चंद्र जोशी ने चिता को मुखाग्नि दी। सबसे बड़े पुत्र केशव दत्त जोशी का पहले ही देहांत हो चुका है। श्री जोशी के पौत्र वरिष्ठ पत्रकार नवीन जोशी ने बताया कि अंतिम संस्कार में उनके सभी सात पोते शामिल हुए। श्री जोशी के निधन पर कपकोट के विधायक ललित फर्स्वाण, एडवोकेट चामू सिंह देवली, नारायण सिंह दानू, देवेंद्र मर्तोलिया, देवेंद्र गड़िया, नरेंद्र सिंह दानू आदि ने दु:ख जताया है।

स्वतंत्रता सेनानी देवी दत्त जोशी का निधन

बागेश्वर (एसएनबी)। आजाद हिंन्द फौज के सेनानी रहे देवी दत्त जोशी (100) का बृहस्पतिवार रात को तोली स्थित उनके पैतृक निवास पर निधन हो गया। निधन का समाचार सुनते ही क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई। कपकोट के पैत्रिक गांसू श्मशान घाट में पवित्र सरयू नदी के तट पर सैकड़ों नम आंखों के बीच दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी की अत्येष्टि संपन्न हुई। मुखाग्नि उनके बड़े पुत्र व साहित्यकार दामोदर जोशी (देवांशु) व छोटे पुत्रों भोला दत्त व हरीश जोशी ने संयुक्त रूप से दी। 
उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में भी भाग लिया था। उनके पुत्र दामोदर जोशी उत्तराखंड के साहित्यकार तथा पौत्र नवीन जोशी वरिष्ठ पत्रकार हैं। जोशी के निधन पर पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी, विधायक ललित फर्स्वाण, पूर्व मंत्री बलवंत सिंह भौर्याल, विधायक चंदन राम दास,जिला पंचायत अध्यक्ष विक्रम सिंह शाही, ब्लॉक प्रमुख पुष्पलता मेहता के अलावा साहित्यकार व पूर्व सैनिक संगठनों के पदाधिकारियों ने शोक व्यक्त किया है।


दादाजी के अनुभवों के आधार पर लिखा गया एक आलेख, जो की उस दौर का एक ऐतिहासिक दस्तावेज भी है, इस लिंक पर: : http://www.merapahadforum.com/uttarakhand-history-and-peoples-movement/history-of-uttarakhand-from-the-eyes-of-elders/msg70052/#msg70052 



सम्बंधित लेख: http://mankahii.blogspot.in/2013/08/blog-post.html

रविवार, 4 अगस्त 2013

कैलास मानसरोवर यात्रा रोकना गैर हिंदूवादी कदम : भाजपा

नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश भाजपा ने कैलास मानसरोवर यात्रा को निरस्त करने के लिए प्रदेश सरकार का गैर हिंदूवादी कदम और दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सुरेश जोशी ने कहा कि यह देश के करोड़ों आस्थावान हिंदू समाज की भावनाओं से खिलवाड़ है। सरकार को तत्काल ही अपने निर्णय में बदलाव कर यात्रियों को मुफ्त हेलीकॉप्टर सुविधा दिलाकर यात्रा को शुरू करानी चाहिए। उन्होंने प्रदेश सरकार को चेताया दी कि आगे इस कदम के बाद उत्तराखंड के यात्रा मार्ग को असुरक्षित बताकर अरुणांचल व लद्दाख से कैलास मानसरोवर के लिए नए मार्ग खोले जा सकते हैं, इससे उत्तराखंड एक बड़ा आर्थिक श्रोत भी खो देगा। 
जोशी रविवार को पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल के साथ देहरादून लौटते हुए मुख्यालय स्थित राज्य अतिथि गृह में पत्रकारों से वार्ता कर रहे थे। कहा, कैलाश यात्रा मार्ग में केवल नदी के बगल से होकर जाने वाले रास्ते में नुकसान हुआ है, जबकि नैनीताल से सौसा, जिप्ती या गुंजी तक एमजी-17 हेलीकॉप्टर के अधिकतम तीन चक्कर लगाकर श्रद्धालुओं को कैलास यात्रा कराई जा सकती है। "˜राष्ट्रीय सहारा" पूर्व में ही कैलास मानसरोवर यात्रा को इसी तरह नैनीताल से सौसा या जिप्ती तक हेलीकॉप्टर सुविधा के जरिए संचालित करने का विकल्प सुझा चुका है। जोशी ने कहा कि यात्रा के स्थगित होने से हमेशा के लिए उत्तराखंड से यह सेवा छिनने का खतरा भी उत्पन्न हो सकता है। इस मौके पर सांसद प्रतिनिधि मनोज जोशी व संतोष साह मौजूद थे।

निकटवर्ती वन भूमि पर तत्काल विस्थापन हो, पर सीमांत क्षेत्र खाली भी न हो : चुफाल

नैनीताल। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल ने सीमांत क्षेत्रों में आपदा प्रभावितों का नहीं वरन पूरे आपदा प्रभावित गांवों को विस्थापन करने की आवश्यकता जताई है। साथ ही चेताया है कि विस्थापन से सीमांत क्षेत्र के गांव खाली न हो जाएं। विस्थापितों को केवल रहने के लिए मकान ही नहीं वरन आजीविका के लिए आपदा में बरबाद हुई पूरी जमीन निकटवर्ती वन भूमि में ही देने की मांग की। उन्होंने प्रदेश सरकार पर आपदा के डेढ़ माह गुजरने के बाद सड़कें तो दूर आपदा में नष्ट हुए पैदल मार्ग भी दुरुस्त न कर पाने का आरोप लगाया। पैदल रास्ते ही बन जाएं, तो बड़ी बकरियों के जरिए भी दूरस्थ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा सकता है। पत्रकारों से वार्ता करते भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल व अन्य। 

गुरुवार, 11 जुलाई 2013

अब नैनीताल में फटा आफतों का बादल...

  • जिले के दूरस्थ ल्वाड़ डोबा गाँव में आयी दैवीय आपदा..
  • एक घर का नामोनिशान नहीं रहा.. गृहस्वामी, उसकी पत्नी और चार बेटियां काल-कवलित, दो बछिया और 12 बकरियां भी मरीं...
  • घर का इकलौता चश्मो-चिराग (13 साल का बेटा) कहीं और होने के कारण बचा 


नैनीताल/धानाचूली (एसएनबी)। यहां करीब सवा सौ किमी दूर चंपावत जिले की सीमा से सटे ओखलकांडा ब्लॉक के ल्वाड़ डोबा ग्रामसभा में भूस्खलन के कारण एक दोमंजिला आवासीय भवन बुधवार देर रात्रि जमींदोज हो गया। इस हादसे में एक ही परिवार की चार बच्चियां व उनके माता-पिता घर के मलबे में जिंदा दफन हो गये। घर की निचली मंजिल (गोठ) में बंधी दो बछिया और 12 बकरियां भी मलबे में दबकर मर गई। घर का इकलौता चिराग दुर्घटना के समय घर पर न होने के कारण बच गया। सड़क मार्ग बाधित होने से डीएम एएस ह्यांकी व अन्य अधिकारी 15 किमी. पैदल चलकर मौके पर पहुंचे। माना जा रहा है कि बीती रात मूसलाधार बारिश के दौरान बादल फटने के कारण यह तबाही हुई। सीएम विजय बहुगुणा ने इस घटना पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए मृत लोगों की आत्मा की शांति एवं दुख की इस घड़ी में उनके परिजनों को धैर्य प्रदान करने की ईवर से कामना की है। सीएम ने जिलाधिकारी नैनीताल को निर्देश किया है कि इस दुर्घटना में मृत लोगों के परिजनों को शासन द्वारा अनुमन्य राशि जल्द उपलब्ध करायें। साथ ही क्षतिग्रस्त भवनों का आकलन कर निर्धारित मुआवजा भी वितरित करें। 
जानकारी के मुताबिक बृहस्पतिवार सुबह करीब 6.20 बजे ल्वाड़ डोबा ग्राम सभा की प्रधान वैष्णव देवी ने जिला आपदा कंट्रोल रूम को इस हादसे की सूचना दी। जानकारी के अनुसार बुधवार रात्रि दो से ढाई बजे के बीच ल्वाड़ डोबा गांव में हयात राम आर्या (40) का पुराना दोमंजिला भवन बारिश के दौरान भरभराकर ढह गया। जानकारी लगने पर जुटे ग्रामीणों ने मलबे से उनको निकालने की कोशिश की, लेकिन किसी को भी नहीं बचाया जा सका। हादसे में हयात राम, उसकी पत्नी आनंदी देवी (35) व चार बेटियांनी लम (10), कविता (8), हिमानी (5) और डेढ़ वर्षीया निशा की मौके पर ही मौत हो गई। हयात राम का इकलौता बेटा (13) संयोगवश बच गया। बताया गया है कि वह रात्रि में अपने ताऊ के घर में सोया हुआ था। सूचना मिलते ही राजस्व विभाग, रेस्क्यू और स्वास्थ्य विभाग की टीमों को गांव की ओर रवाना किया गया। डीएम अरविंद सिंह ह्यांकी भी सुबह सवा आठ बजे गांव के लिए रवाना हुए। दुर्घटनास्थल धारी तहसील मुख्यालय से करीब 85 किमी दूर खनस्यूं- पतलोट मार्ग पर स्थित है। यह मार्ग डालकन्या से आगे कई स्थानों पर मलबा आने से अवरुद्ध है। इस कारण गांव पहुंचने के लिए प्रशासन और आपदा-बचाव व स्वास्थ्य विभाग की टीमों को करीब 15 किमी पैदल चलना पड़ा। डीएम के साथ ही तहसीलदार धारी दामोदर पांडे, एसडीएम कोश्यां-कुटौली एनएस नबियाल सहित चिकित्सकों का दल भी करीब पांच घंटे पैदल चलकर मौके पर पहुंच पाया। शवों का मौके पर ही पोस्टमार्टम कराया गया।

गुरुवार, 4 जुलाई 2013

ताक पर नदी किनारे की मनाही, झील के मुहाने पर प्रशासन खुद ही करा रहा निर्माण !


नवीन जोशी नैनीताल। प्रदेश में आई भीषण प्राकृतिक आपदा से सचेत होते हुए जहां प्रदेश सरकार नदियों के किनारे निर्माण प्रतिबंधित कर रही है। वहीं भूगर्भीय दृष्टिकोण से कमजोर सरोवरनगरी में बेहद संवेदनशील नैनीझील के मुहाने पर स्वयं प्रशासन ही विशालकाय व भारी-भरकम "न्यू ब्रिज कम बाईपास" का निर्माण किया जा रहा है। इस निर्माण का मूल उद्देश्य नगर के प्रवेश द्वार डांठ पर स्थित रोडवेज स्टेशन को यहां स्थानांतरित कर वाहनों का बोझ कम करना था, लेकिन इधर बताया जा रहा है कि रोडवेज ने न्यू ब्रिज में अत्यधिक निर्माण जगह की कमी को देखते हुए वहां बस अड्डा स्थानांतरित करने का विचार बदल दिया है और पुराने बस अड्डे को जीर्णोद्धार कर चकाचक कर दिया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि यह निर्माण किया ही क्यों जा रहा है। 

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2005-06 में सर्वप्रथम हल्द्वानी व भवाली रोड के बीच डांठ से पहले "न्यू ब्रिज" बनाने की योजना बनी थी। उद्देश्य था-डांठ से वाहनों का दबाव कम करना। योजना के पहले चरण में नैनीझील के अतिरिक्त पानी को बाहर बलियानाले में प्रवाहित करने के लिए 1.81 करोड़ रुपये की लागत से दो बैरलों, बिल्डिंग स्ट्रक्चर तथा लैंड फिल का कार्य 2007 में पूरा होना था। विवादों में रहा यह कार्य 2009 में पूरा हो पाया। 2010-11 में दूसरे चरण में 90.12 लाख रुपये से फिनिशिंग, ब्यूटिफिकेशन व स्लैब डालने के कार्य नौ माह के अंदर होने थे। पहले ठेकेदार करीब 30 लाख रुपये के कार्य कर चला गया, और फिर न्यायालयों तक पहुंचे लंबे विवाद के बाद इधर एक अप्रैल 13 से नये ठेकेदार को 58.47 लाख में छह माह में कार्य पूरा करने को मिला है। इन दिनों कार्य के तहत विशाल स्लैब डालने का कार्य चल रहा है, जिसे देखते हुए एवं केदारघाटी में आई भीषण तबाही को देखते हुए यह सवाल जोरों से उठ रहा है कि नैनीझील के मुहाने पर इतना विशालकाय निर्माण बड़ी आपदा को निमंत्रित करना तो नहीं है। कुमाऊं विवि के पूर्व प्राध्यापक एवं पर्यावरणविद् डा. अजय रावत का कहना है कि निर्माण से पूर्व ईआईए (इन्वायरमेंट इम्पेक्ट एसेसमेंट) यानी पर्यावरणीय परीक्षण और जनता से ईआईएस (इन्वायरंमेंट इम्पेक्ट स्टेटमेंट) यानी जनता के विचार भी नहीं लिए गए। उन्होंने प्रदेश में सभी जलराशियों के 30 फीट की दूरी में पहले से निर्माण प्रतिबंधित होने की बात भी कही। इस बारे में झील विकास प्राधिकरण के सचिव विनोद गिरि गोस्वामी ने कहा कि नदी किनारे नए निर्माणों पर रोक लगने जा रही है, जबकि यह राज्य एवं केंद्र सरकार से पूर्व में स्वीकृत निर्माण है। उन्होंने यहां कियोस्क (दुकानें) बनाने के कारण रोडवेज स्टेशन और वाहनों के लिए जगह की कमी की बात स्वीकारी, अलबत्ता कहा कि स्थान हो जाएगा। पूर्व में रोडवेज के अधिकारी यहां स्टेशन स्थानांतरित करने की हामी भर चुके हैं, और अभी तक मना करने की औपचारिक जानकारी नहीं है। प्रदेश में नदियों के किनारे निर्माण प्रतिबंधित करने की हुई है घोषणा नैनी झील का अतिरिक्त पानी यहीं से निकलता है बाहर यूजीसी के वैज्ञानिक डा. बीएस कोटलिया का कहना है कि इस निर्माण की शुरूआत में पूर्व में मौजूद ढांचे को तोड़ने के लिए धमाके भी किए गए थे, जिसके फलस्वरूप दरार उत्पन्न हो गई थीं, और झील से अधिक पानी का रिसाव होने लगा था। इसके निदान को बांध की तरह "नेटिंग" करने की सलाह दी गई थी, लेकिन वह कार्य भी नहीं किए गए। 

वर्ष 1898 में हुए भूस्खलन में हुई थीं 28 मौतें

नैनीताल। बलियानाला क्षेत्र नैनीताल नगर का आधार है, और बेहद कमजोर भौगोलिक व भूगर्भीय संरचना वाला है। मेन बाउंड्री के निकट स्थित इस नाले में हमेशा से भू-धंसाव होता रहता है। प्रख्यात पर्यावरणविद् डा. अजय रावत बताते हैं कि 17 अगस्त 1898 को यहां टूटा पहाड़ के पास भूकंप के साथ बेहद बड़ा भूस्खलन हुआ था। जिसकी वजह से ब्रेवरी (बीरभट्टी) में बियर की भट्टी में कार्यरत एक अंग्रेज समेत 28 लोग मारे गए थे। वर्तमान में भी यह क्षेत्र धंस रहा है। हरिनगर क्षेत्र को खाली कराने का प्रस्ताव है। ऐसे में डा. रावत झील के मुहाने पर इतने बड़े निर्माण को नगर के लिए बेहद खतरनाक मानते हैं।

बुधवार, 3 जुलाई 2013

देवभूमि को आपदा से बचाएगा नैनीताल, एसटी और डोपलर रडार लगेंगे



  • जिला प्रशासन ने डॉप्लर रडार लगाने को स्नोव्यू में तलाशी जमीन
  • एरीज भी अपने यहां लगाने को तैयार
  • एरीज में पहले ही एसटी रडार स्थापित

नवीन जोशी नैनीताल। यहां एरीज में हवाओं की निगहबानी करने वाली एसटी रडार स्थापित हो चुकी है और इसके जल्द कार्य शुरू करने की उम्मीद की जा रही है, वहीं वर्ष 2004 से लंबित डॉप्लर रडार लगाने के लिए जिला प्रशासन ने नगर के स्नोव्यू में लोनिवि की छह हजार वर्ग फीट भूमि इस हेतु चिह्नित कर ली है, जबकि एरीज के अधिकारियों ने अपने यहां इसे लगाने पर भी हामी भरी है। मौसम की सटीक जानकारी के लिए एसटी और डॉप्लर रडार की भूमिका महत्वपूर्ण है। एसटी रडार जहां वायुमंडल की करीब 20 से 25 मीटर की ऊंचाई की दिशा में हवाओं की गति पर और डॉप्लर रडार 360 डिग्री के कोण पर घूमते हुए 200 किमी की परिधि में वायुमंडल में मौजूद आर्द्रता-नमी पर नजर रखती है। इन दोनों प्रकार की रडारों के समन्वय से मौसम विभाग आने वाले मौसम की सटीक भविष्यवाणी कर पाता है।
वर्ष 2004-05 से मसूरी और नैनीताल में करीब 10 करोड़ रुपए लागत के डॉप्लर रडार लगाने की योजना बनी थी, लेकिन बाद में मामला ठंडे बस्ते में चला गया। इस बार की भीषण आपदा से सबक लेते हुए डीएम अरविंद सिंह ह्यांकी ने प्रयास किए हैं। एक ओर स्थानीय आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) से डॉप्लर रडार लगाने के बाबत वार्ता की। एरीज के स्थानीय अधिकारियों ने इसे अपने परिसर में लगाने पर उच्च प्रबंधन से आसानी से स्वीकृति मिल जाने की बात कही है। इसके साथ ही स्नोव्यू क्षेत्र में लोनिवि की छह हजार वर्ग फीट भूमि की पहचान कर शासन को जानकारी दे दी गई है, ताकि एरीज और स्नोव्यू के दोनों स्थानों का परीक्षण कर लिया जाए। डीएम ने कहा कि परीक्षण में जो भी स्थान उपयुक्त पाया जाएगा, उसका तत्काल प्रस्ताव बनाकर शासन को भेज दिया जाएगा। इधर राज्य के मौसम विभाग के निदेशक आनंद शर्मा ने मौसम की निगरानी के लिए डॉप्लर रडार को सबसे प्रभावी बताया। बताया कि 2004-05 से इसका प्रस्ताव लंबित था। राज्य सरकार स्थान उपलब्ध कराए तो केंद्रीय मौसम विभाग डॉप्लर रडार स्थापित करेगा।
एसटी रडार से 24 घंटे पहले तक हो सकेगी सटीक भविष्यवाणी
नैनीताल। एरीज में देश की सबसे बड़ी 206 मेगा हर्ट्ज क्षमता का एसटी रडार शीघ्र कार्य शुरू कर देगा। इससे पहाड़ी राज्यों में बादल फटने, तूफान आने सहित वायुयानों के बाबत करीब 24 घंटे पूर्व तक सटीक भविष्यवाणी हो सकेगी। एरीज के वायुमंडल वैज्ञानिक व एसटी रडार विोषज्ञ डा. नरेंद्र सिंह ने बताया कि यह रडार अगस्त अंत तक कार्य करना प्रारंभ कर देंगे। यह रडार वायुमंडल में चलने वाली हवाओं के 150 किमी प्रति घंटा की गति तक जाने की संभावना का दो दिन पहले ही अंदाजा लगाने की क्षमता रखती है। साथ ही यह धरती की सतह से 25 किमी ऊपर वायुमंडल की वज्रपात, बिजली की गर्जना, वायुयानों के चलने वाली हवाओं के रुख का अनुमान भी 24 घंटे पूर्व लगा सकता है।
धाकुड़ी, बदियाकोट व मदकोट में स्थापित हुए वायरलेस स्टेशन
नैनीताल। पुलिस ने कुमाऊं मंडल में आपदा के दौरान दूरस्थ क्षेत्रों से सूचनाओं के आदान-प्रदान के मद्देनजर तीन अस्थायी वायरलेस स्टेशनों की स्थापना की है। अपर राज्य रेडियो अधिकारी जीएस पांडे ने बताया कि बागेश्वर जिले के दूरस्थ पिंडारी ट्रेकिंग रूट पर धाकुड़ी एवं बदियाकोट में तथा पिथौरागढ़ जिले के मदकोट में वायरलेस स्टेशन स्थापित किये गए हैं। इन स्टेशनों पर वायरलेस ऑपरेटरों की तैनाती भी की गई है। कोई भी व्यक्ति यहां आकर आपदा से संबंधित सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकता है। कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग पर पहले ही पुलिस की ऐसी व्यवस्था गुंजी तक मौजूद है। इसके अलावा तीन सेटेलाइट फोन भी दूरस्थ क्षेत्रों में उपलब्ध कराए गए हैं।

बुधवार, 19 जून 2013

उत्तराखंड में फंसे तीर्थयात्रियों के बारे में जानकारी

While the Kedarnath shrine was intact, the surrounding part has been severely damaged and submerged, state minister for disaster management and rehabilitation Yashpal Arya said. Photo: Indian Army
'केदारनाथ' की घटना प्रकृति और देवता की मनुष्य को कड़ी चेतावनी है...मनुष्य ने अपने लाभ के लिए केदारनाथ जी को भी 'बेचना' शुरू कर दिया था..उनके आगे बाजार सजा दिया था..उन्हें 'पिकनिक स्पॉट' बना दिया था..फिर यह तो होना ही था...

उत्तराखंड में फंसे तीर्थयात्रियों के बारे में Latest जानकारी यहाँ क्लिक कर के देख सकते हैं :

  • राज्यों के हेल्प लाइन नंबरों की सूची: 

  • मध्य प्रदेश - 0755-2556422, 09926769808

    महाराष्ट्र (मंत्रालय संख्या) - 022-220279990, 022-22816625, 022-22854168

    आंध्र प्रदेश - 40234510

    उत्तराखंड राज्य इमरजेंसी आपरेशन सेंटर - 0135-2710334

    जनरल जांच संख्या - 0135-2710334, 0135-2710335, 0135-2710233

    आर्मी मेडिकल इमरजेंसी संख्या - 18001805558, 18004190282, 8009833388

    जोशीमठ, कर्णप्रयाग और गोविंदघाट - 01372-253785

    उत्तरकाशी - 01374-226126/161

    चमोली - 01372-251437

    रुद्रप्रयाग - 01732-1077

    टिहरी - 01376-233433

    आईटीबीपी हेल्पलाइन और नियंत्रण कक्ष - 011-24362892, 09968383478

    आपदा नियंत्रण कक्ष, पुलिस मुख्यालय, उत्तराखंड - 0135-2717300, 09411112985

    उत्तराखंड के आपदा नियंत्रण कक्षों के जरूरी फोन नंबरों की जिलावार सूची :

    पिथौरागढ़ - 05964-228050, 226326, 09412079945

    अल्मोड़ा - 05962-237874, 09319979850

    नैनीताल - 05942-231179, 09456714092

    ऊधम सिंह नगर - 05944-250719, 250823, 09410376808

    चमोली - 01372-251437, 251077, 09411352136

    रुद्रप्रयाग - 01364-233727, 09412914875, 08859504022

    उत्तरकाशी - 01374-226461, 09675082336, 09410350338

    देहरादून - 0135-2726066, 09412964935

    हरिद्वार - 01334-223999, 09837352202

    टिहरी - 01376-233433, 09412076111

    बागेश्वर - 05963-220197, 09411378137

    चम्पावत - 05965-230703, 09412347265

    पौड़ी गढ़वाल - 01368-221840, 08650922201

रविवार, 2 जून 2013

पहाड़ से ऊंचा तो आसमान ही हैः क्षमता


प्रदेश की पहली व इकलौती कामर्शियल महिला पायलट कैप्टन क्षमता बाजपेई ने कहा-पहाड़ की होने के कारण ऊंचाइयों से डर नहीं लगता, क्योंकि पहाड़ से आगे तो ‘स्काई इज द लिमिट’ (यानी असीमित आसमान की सीमाएं ही हैं)
नवीन जोशी, नैनीताल। जी हां, सही बात ही तो है, पहाड़ों से अधिक ऊंचा तो आसमान ही है। कोई पहाड़ से भी अधिक ऊंचे जाना चाहे तो कहां जाए, आसमान पर ही नां। पर कितने लोग सोचते हैं इस तरह से ?। लेकिन पहाड़ की एक बेटी क्षमता जोशी ने 1986 के दौरान ही जब वह केवल 18 वर्ष की थीं अपने पहाड़ों की ऊंचाई से भी अधिक ऊंचा उड़ने का जो ख्वाब संजोया और उसे पूरा करने में जिस तरह परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के बावजूद अपनी पूरी ‘क्षमता’ लगा दी, नतीजे में वह प्रदेश की पहली और इकलौती कामर्शियल महिला पायलट ही नहीं, एयर इंडिया में प्रोन्नति पाकर सात वर्ष से कमांडर हैं, और न केवल स्वयं बल्कि हजारों लोगों को रोज पहाड़ों से कहीं अधिक ऊंचाइयों से पूरी दुनिया की सैर कराती हैं।
क्षमता जोशी आज क्षमता बाजपेई के रूप में आज एक मां भी हैं, और एयर इंडिया के बोइंग 777 विमान को लगातार 16 से 2 घंटों तक उड़ाते हुए दुनिया के चक्कर काटना अब उनका पेशा है। क्षमता शनिवार पहली जून को नैनीताल में थीं, तो एक भेंट में उन्होंने अपने बचपन से लेकर अपने स्वप्न को साकार करने की विकास यात्रा को खुलकर बयां किया। क्षमता मूलतः प्रदेश के पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय के पास स्थित चंडाक गांव की बेटी हैं। पिता एमसी जोशी दिल्ली प्रशासन में प्रधानाचार्य के पद पर थे, लिहाजा दिल्ली में ही उन्होंने पढ़ाई की। पहाड़ कुछ हद तक छूटने के बावजूद ऊंचाइयों को छूने की ललक में बीएससी की पढ़ाई और एनसीसी के दौरान ही उन्होंने 1988 में प्राइवेट पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। आगे पिता ने चार बच्चों की जिम्मेदारी के बीच उनके कमर्शियल पायलट का लाइसेंस लेने के ख्वाब के करीब तीन लाख रुपए के खर्च को वहन करने से स्वयं की लाचारगी जता दी, लेकिन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी ने उनकी काबिलियत को पचानते हुए उन्हें राजीव गांधी स्कॉलरशिप से नवाज कर नकी राह आसान कर दी। फलस्वरूप 1990 में ही उन्होंने कामर्शियल पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया। वर्ष 1997 में वह एयर इंडिया से जुड़ीं और आज सात वर्षों से यहां कमांडर के पद पर तैनात हैं। क्षमता बताती हैं कि विमान उड़ाना कठिनतम कार्यों में से एक है, इसमें अपने लक्ष्य पर अत्यधिक केंद्रित रहने की जरूरत रहती है। उनके पति सुशील बाजपेई अंतराष्ट्रीय ग्लाइडिंग इंस्ट्रक्टर हैं जबकि बेटा मेहुल शौक के तौर पर फ्लाइंग करना चाहता है। नैनीताल में वह अपने जीजा भीमताल के पांडेगांव निवासी भारत पांडे और दोनों बहनों के साथ आई थीं। वह कहती हैं-पहाड़ की होने के कारण ऊंचाइयों से डर नहीं लगता है, क्योंकि पहाड़ों की ऊंचाई के आगे तो असीमित आसमान ही होता है। 

भारत में महिला पायलट विश्व औसत से दोगुनी
प्रदेश में वर्ष 2011 की जनगणना में लिंगानुपात के घटने पर चिंता जताते हुए क्षमता बाजपेई बताती हैं कि महिला पायलटों का विश्व में औसत छः फीसद है, जबकि भारत में कुल पायलटों में से 12 फीसद महिला पायलट हैं, जोकि विश्व औसत का दोगुना है। उनका मानना है कि आज महिलाओं के लिए कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रह गया है। लेकिन वह मान के चलें कि उन्हें मां व पत्नी के रूप में घर भी चलाना है और समन्वय बनाते हुए ही घर के बाहर काम करना है। कहा कि वंश चलाने का मतलब अपनी जड़ों को न भूलना भी है। महिलाएं बेशक किसी और की वंशवृद्धि करती हैं, लेकिन अपने मायके को कभी नहीं भूलतीं। पहाड़ की युवतियों के लिए उनका कहना था, वह बुद्धिमान तथा मेहनती व कर्तव्यनिष्ठ हैं। अपने लक्ष्य के प्रति दृ़ढ केंद्रित हांे, और घर से बाहर निकलकर ‘एक्सपोजर’ प्राप्त करें।

मंगलवार, 28 मई 2013

शून्य से नीचे गया नैनी झील का जलस्तर

Rashtriya Sahara, 28th May 2013
हर रोज 0.15 इंच यानी करीब 40 मिमी की दर से घट रहा है जलस्तर
नवीन जोशी, नैनीताल। सरोवरनगरी में इस वर्ष शीतकाल में और आगे भी लगातार हुई वर्षा के बाद उम्मीद की जा रही थी कि इस वर्ष नैनीझील पिछले वर्ष जैसा भयावह चेहरा नहीं दिखाएगी लेकिन नगरवासियों, पर्यावरण प्रेमियों की उम्मीदों पर सीजन की मार बेहद गहरी पड़ी है। उम्मीदों के विपरीत सीजन के औपचारिक रूप से शुरू होने के 12 दिन के अंदर ही नैनी झील का जल स्तर मापे जाने की व्यवस्था के तहत शून्य के नीचे चला गया है। इससे भी भयावह तथ्य यह है झील का जलस्तर हर रोज घटने की दर 0.15 इंच यानी करीब 40 मिमी तक पहुंच गई है, और यह दर लगातार बढ़ रही है। नैनीझील के जल स्तर और बारिश के गत तीन वर्ष के आंकड़ों की बात करें तो इस वर्ष 26 मई को झील का जल स्तर शून्य के नीचे गया है, जबकि 2011 में तीन मई को और 12 में 30 अप्रैल को ही शून्य के नीचे चला गया था। इस लिहाज से इस वर्ष देरी से झील का जल स्तर गिरा है लेकिन यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि इस वर्ष अब तक 674.64 मिमी बारिश दर्ज हुई है, जबकि 11 में इसकी करीब आधी यानी 362.96 मिमी और 12 में करीब चौथाई यानी 191.77 मिमी ही बारिश हुई थी। यानी इस वर्ष गत वर्ष के मुकाबले चार गुना अधिक बारिश होने के बावजूद 26 दिन बाद ही झील का जल स्तर शून्य के नीचे आ गिरा है। एक और तथ्य उल्लेखनीय है कि इस वर्ष नौ मई तक झील का जल स्तर गिरने की दर 0.05 इंच यानी करीब 13 मिमी प्रतिदिन थी जो इसके बाद सीधे दोगुनी होकर 0.1 इंच और इधर सीजन के औपचारिक रूप से शुरू होने के दिन यानी 16 मई से 0.13 इंच प्रति दिन हो गई है। आगे इसी तरह सीजन की भीड़भाड़ के बरकरार रहने से जल की खपत और गरमी बढ़ने से वाष्पीकरण की दर बढ़ने से झील के सूखने की दर में भी तेजी आनी लाजमी है।

झील को दो वर्षो से 'रिफ्रेश' होने का इंतजार

नैनीताल। नैनीझील का जल स्तर वर्ष 2011 में तीन मई से एक जुलाई के बीच शून्य से नीचे रहा था और बारिश होने पर 29 जुलाई को ही जल स्तर 8.7 फीट पहुंच गया था, जिस कारण झील के गेट खोलने पड़े थे, जबकि बीते वर्ष 2012 में गरमियों में 30 अप्रैल से 17 जुलाई तक जल स्तर शून्य से नीचे (अधिकतम माइनस 2.6 फीट तक) रहा था और आगे खूब बारिश होने के बावजूद झील के गेट नहीं खुल पाए थे। इस कारण झील का गंदा पानी व गंदगी दो वर्षो से बाहर नहीं निकल पाई है और झील ‘रिफ्रेश’ नहीं हो पाई है।

गुरुवार, 23 मई 2013

पार्टियां नहीं, जनता खड़ा करे प्रत्याशी : अन्ना



कहा, संविधान में पार्टियों के चुनाव लड़ने पर थी पाबंदी, इसीलिए गांधी ने कांग्रेस को भंग करने की जताई थी जरूरत
नवीन जोशी, नैनीताल। प्रसिद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे ने दावा किया है कि देश के संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि पार्टियों को चुनाव नहीं लड़ना चाहिए, वरन जनता को स्वयं अपने प्रत्याशी खड़े करने चाहिए। यही असल गणराज्य की शर्त थी, जिस पर देश की सभी पार्टियों ने देश की जनता से धोखा किया है। उन्होंने कहा कि इसीलिए गांधी जी ने देश की आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी को भंग करने की बात कही थी। अन्ना ने कहा कि कहा कि देश में ज्यादातर समस्याएं पार्टियों की राजनीति की वजह से पैदा हुई हैं। बृहस्पतिवार को जनतंत्र यात्रा के तहत नैनीताल पहुंचे अन्ना ने राज्य अतिथि गृह में मीडिया से वार्ता करते हुए कहा कि पार्टियों की राजनीति के कारण ही देश में जाति-पांति व घरानेशाही की प्रवृत्ति हावी है। यह घरानाशाही लोकशाही के लिए बड़ा खतरा है। इसी वजह से देश में सत्ता से पैसा और पैसे से सत्ता प्राप्त करने की प्रतिस्पर्धा चल रही है। पार्टियां अपनी मर्जी के टिकट देती हैं, और करोड़ों रुपये खर्च करके चुनाव प्रचार करती हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि संविधान में पार्टियों को दो हजार रुपये देने की छूट दी गई और इस आड़ में उद्योगपति फर्जी नामों से पार्टियों को करोड़ों रुपये देते हैं। उन्होंने अरविन्द केजरीवाल के पार्टी बनाने के निर्णय की भी आलोचना की।

इस बार लाइन और बड़ी कर देंगे..
नैनीताल। अन्ना हजारे ने कहा कि 10 माह बाद 2011 से भी बड़ा आंदोलन करते हुए वापस रामलीला मैदान में अनशन पर बैठेंगे, क्योंकि इस बार उनकी देश भर में चल रही जनतंत्र यात्रा के माध्यम से जुड़े करोड़ों लोग भी साथ होंगे। अपने बड़े आंदोलन की असफलता से देश में अन्य आंदोलनों की राह कठिन करने के प्रश्न पर उन्होंने टिप्पणी की कि इस बार ऐसी बड़ी रेखा खींचेंगे कि सरकार को उनकी बात माननी ही होगी, वरना जाना होगा। उन्होंने केंद्र सरकार पर लोकपाल के नाम पर देश की जनता के साथ धोखा करने का आरोप लगाया। अन्ना ने कहा कि उत्तराखंड में उन्हें उम्मीद से कहीं अधिक समर्थन मिला है। पंजाब के जलियावाला बाग से हिमाचल, पश्चिमी यूपी, राजस्थान होते हुए दूसरी बार उत्तराखंड पहुंचे हैं, अभी 10 माह और पूरा देश घूमेंगे और 'सत्ता नहीं व्यवस्था परिवर्तन' कराकर ही दम लेंगे। स्वामी विवेकानंद, अपने माता-पिता और महात्मा गांधी को उन्होंने अपना आदर्श बताया। केजरीवाल के संगठन छोड़ने पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने यह शेर कहा, मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर, लोग जुड़ते गए, कारवां बनता गया।

यह भी पढ़ें: कौन हैं अन्ना हजारे, क्या है जन लोकपाल ? 

रविवार, 28 अप्रैल 2013

नगर की सत्ता से खुलता है राजधानी का रास्ता


सरिता आर्या समेत आधा दर्जन पालिकाध्यक्षों को हासिल हो चुकी है विधायकी
नवीन जोशी नैनीताल। प्रदेश में निकाय चुनाव का जो शोर और प्रत्याशियों द्वारा एड़ी- चोटी का जोर दिख रहा है, वह केवल नगरकी सत्ता के लिए ही नहीं, वरन प्रदेश की राजधानी की सत्ता की ओर भी है। क्योंकि इतिहास गवाह है कि नवसृजित राज्य में अनेकों राजनेताओं के लिए नगरों की सत्ता का रास्ता राजधानी देहरादून की मंजिल तक पहुंचा है। नैनीताल की वर्तमान विधायक सरिता आर्या समेत प्रदेश की वर्तमान विधानसभा में आधा दर्जन विधायक पालिकाओं से ही सत्ता का ककहरा सीख कर आगे बढ़े हैं। उत्तराखंड प्रदेश में पालिकाध्यक्ष की कुर्सी से राज्य की विधानसभा में जाने की शुरूआत करने का श्रेय पूर्व उक्रांद विधायक यशपाल बेनाम को जाता है, वह पौड़ी नपा के अध्यक्ष थे, और वहां के कार्यकाल की बदौलत ही आगे विधायक बनने में सफल रहे। वहीं नैनीताल की वर्तमान विधायक सरिता आर्य को ऐसी पहली महिला पालिकाध्यक्ष होने का गौरव हासिल है जो आगे चलकर विधायक बनने में सफल रहीं। उनकी विधायक के रूप में जीत का पूरा श्रेय उनके पालिकाध्यक्ष के कार्यकाल को है जाता है। वर्तमान विधानसभा में पहुंचे अन्य अध्यक्षों की कड़ी में रुड़की के विधायक प्रदीप बतरा के नाम एक साथ पालिकाध्यक्ष व विधायक रहने का रिकॉर्ड दर्ज है। वहीं गंगोत्री के पूर्व पालिकाध्यक्ष विजय पाल सिंह विधायक के बाद संसदीय सचिव बनाए गए हैं, जबकि टिहरी के पालिकाध्यक्ष रहे दिनेश धनै विधायकी के बाद गढ़वाल मंडल विकास निगम के अध्यक्ष का पदभार देख रहे हैं। रुद्रपुर के पालिकाध्यक्ष रहे राजकुमार ठुकराल रुद्रपुर के ही विधायक के रूप में वहां मौजूद हैं। वर्तमान विधानसभा में देहरादून नगर निगम के दो पार्षद-राजकुमार और उमेश शर्मा 'काऊ' भी विधायक के रूप में पहुंचे हैं। 
वहां फेल, यहां पास 
नैनीताल। राजनीति में सब कुछ संभव है। वर्तमान विधानसभा में ऋ षिकेष विधायक प्रेम चंद्र अग्रवाल और प्रतापनगर विधायक विक्रम सिंह नेगी ऐसे उदाहरण हैं, जो क्रमश: डोईवाला नगर पंचायत और प्रतापनगर पालिका से चुनाव लड़े थे, लेकिन हार गए, जबकि विस चुनाव में जीत कर देहरादून पहुंचने में सफल रहे हैं। 

रविवार, 21 अप्रैल 2013

प्रत्याशियों के साथ चुनाव चिह्नों के बीच भी चल रही जंग


"हाथ" को सबका साथ तो "फूल" को झील में खिलने की उम्मीद
नैनीताल (एसएनबी)। यूं हाथ तो सभी के पास होता है, और बिना हाथ के कोई काम नहीं चल सकता, लेकिन यहां "हाथ" सबका साथ मांग रहा है। वहीं ˜कमल का फूल" सामान्यतया कीचड़ या दलदली जगह पर खिलता है, लेकिन यहां उसे नैनी झील में खिलने की उम्मीद है। जी हां, यहां बात आम हाथ या कमल के फूल की नहीं वरन निकाय चुनाव के दौरान हर चुनाव की तरह एक बार खासकर राजनीतिक दलों की जुबान पर चढ़ने वाले चुनाव चिह्नों की ही कर रहे हैं, लेकिन एक अलग नजरिए के साथ। सरोवरनगरी की अति महत्वपूर्ण एवं अपनी स्थापना के साथ ही तत्कालीन नॉर्थ वेस्ट प्रोविंस और अब देश की दूसरी सबसे प्राचीन नगरपालिका कहे जाने वाले नगर में जब अधिकांश राजनीतिक दलों के साथ ही निर्दलीय भी निर्दलीय प्रत्याशी कम जाने- पहचाने हैं। साथ ही खासकर निर्दलीय प्रत्याशियों के समक्ष अपने साथ ही अपने चुनाव चिह्न को चुनाव की तिथि तक मतदाताओं को याद दिलाने की दोहरी समस्या है। ऐसे में उनके समर्थक अपने प्रत्याशियों के बजाए उनके चुनाव चिह्नों से ही जनता को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। मसलन कांग्रेस समर्थक "हाथ" के बिना तो वोट भी न डाले जाने की समस्या बताकर सब कुछ भूलकर "हाथ" पर ही मुहर लगाने की गुहार लगा रहे हैं, तो  भाजपा के प्रचारक नैनी झील में विकास का ˜कमल" खिलवाने के लिए मदद मांग रहे हैं। इसी तरह बाल्टी चुनाव चिह्न वाले निर्दलीय प्रत्याशी याद दिला रहे हैं कि पिछली बार वोटरों ने ˜बाल्टी" भर कर मुकेश जोशी को पालिकाध्यक्ष बनवाया था। लिहाजा इस बार बाल्टी वोटों से भर दें। गुड़िया चुनाव चिह्न के प्रत्याशी समर्थकों को दिल्ली की घटना के बाद बिना किए ही प्रचार मिलने का भरोसा बन रहा है। अन्य निर्दलीय प्रत्याशी अपने स्वयं को जमीन से जुड़ा बताते हुए मिट्टी की बनी ˜ईट" से पालिका में विकास की नींव रखने की बात कर रहे हैं, तो अन्य पालिका में ˜मोमबत्ती" जलाकर रोशनी करने की उम्मीद कर रहे हैं। कप-प्लेट, केतली, बंगला व वायुयान जैसे चुनाव चिह्नों वाले प्रत्याशियों के पास अपने-अपने समझाने के तरीके हैं। निर्दलीय चुनाव लड़ने के बावजूद चुनाव चिह्नों से प्रत्याशियों के संबंध जुड़ जाने के प्रसंग हैं। एक प्रत्याशी पिछले निकाय चुनाव में बंगला चुनाव चिह्न के साथ चुनाव जीते थे, इस बार उनके साथ ही उनकी पत्नी भी दूसरे वार्ड से सभासद प्रत्याशी के लिए चुनाव मैदान में है, और दोनों के चुनाव चिह्न बंगला ही हैं। इसी तरह अन्य भी अनेक प्रत्याशी हैं, जिन्होंने पिछली बार चुनाव जीतने पर पुराने चिन्ह ही हासिल किए हैं, जबकि हारने वालों ने चुनाव चिह्न भी बदल डाले हैं। वहीं विरोधी प्रत्याशियों के चुनाव चिह्नों को लेकर दुष्प्रचार की कमी नहीं है। कोई दूसरे की मोमबत्ती बुझाने अथवा प्रत्याशी के सिर पर ही नारियल या ईट फोड़ने पर उतारू है तो अन्य को विरोधी की बाल्टी में छेद भी खूब नजर आ रहे हैं। बहरहाल, इस तरह सामान्यतया अब तक नीरस चल रहा चुनाव प्रचार थोड़ा-बहुत रोचक जरूर हो गया है। 

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

पालिका से सीढ़ी चढ़ विधायक-सांसद बने बिष्ट, चंद, सरिता...

राजनीति की पाठशाला साबित होती रही है नैनीताल नगर पालिका
नवीन जोशी, नैनीताल। 1841 में अपनी बसासत के चार वर्ष के भीतर ही 1845 में देश की दूसरी नगर पालिका का दर्जा हासिल करने वाली नैनीताल नगर पालिका कई राजनेताओं के लिए राजनीति की पाठशाला के साथ ही राजनीतिक कॅरियर की सीढ़ी भी साबित हुई है। यहां सभासद रहे श्रीचंद ने यूपी में दो मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में वन एवं राजस्व विभाग के काबीना मंत्री रहने का गौरव हासिल किया। जबकि वर्तमान विधायक सरिता आर्या सहित नगर के प्रथम पालिकाध्यक्ष रायबहादुर जसौत सिं बिष्ट, तीसरे अध्यक्ष बाल कृष्ण सनवाल व चौथे अध्यक्ष किशन सिंह तड़ागी भी आगे चलकर विधायक बने। 
नैनीताल नगर पालिका से राजनीतिक अनुभव का ककहरा सीखकर पालिका के भीतर ही पदोन्नति प्राप्त करने वालों की बात की जाए तो पहला नाम नगर के वर्तमान पालिकाध्यक्ष मुकेश जोशी का आता है, जो पूर्व में सरिता आर्या की अध्यक्षता वाली बोर्ड में सभासद रहे, और आगे पालिकाध्यक्ष बने। अब वर्तमान चुनावों में करीब एक दर्जन पूर्व सभासद व अध्यक्ष पालिका के भीतर ऐसी ही ऊंची उड़ान भरने की कोशिश में हैं, जो उनके पालिका चलाने के अनुभव का मापदंड भी साबित हो रही है। इस कड़ी में पहला नाम भाजपा प्रत्याशी संजय कुमार ‘संजू’ का आता है, जो वर्ष 1977 से 2002 तक नैनीताल पालिका के अध्यक्ष रहे, और दुबारा अध्यक्ष पद प्राप्त करने की कोशिश में चुनाव मैदान में हैं। गौरतलब है कि पूर्व में नगर के प्रथम पालिकाध्यक्ष रायबहादुर जसौत सिंह बिष्ट के नाम ही दो बार (1941 से 1947 और 1947 से 1953 तक) पालिकाध्यक्ष रहने का रिकार्ड दर्ज है। उनके अलावा पूर्व सभासद सुभाष चंद्रा के साथ वर्तमान तीन सभासद दीपक कुमार ‘भोलू’, राकेश कुमार ‘शंभू’ और प्रेम सागर भी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव मैदान में हैं। उनके साथ ही पूर्व सभासद डीएन भट्ट तथा चार वर्तमान निर्वाचित सभासद मनोज अधिकारी, मंजू रौतेला, कृपाल बिष्ट व अमिता बेरिया तथा दो मनोनीत सभासद आनंद बिष्ट व मधु बिष्ट भी सभासद पद के लिए मैदान में हैं। यह सभी प्रत्याशी स्वयं को पालिका की सेवाओं के लिए अनुभवी बताकर प्रत्याशियों से चुनाव जिताने की अपील कर रहे हैं।

कौन                       क्या रहे                        क्या बने
जसौत सिंह बिष्ट        प्रथम पालिकाध्यक्ष           सांसद
बाल कृष्ण सनवाल    पालिकाध्यक्ष                   विधायक
किशन सिंह तड़ागी    पालिकाध्यक्ष                   विधायक
सरिता आर्या            पालिकाध्यक्ष                   विधायक
श्रीचंद                    सभासद                          यूपी के वन व न्याय मंत्री
मुकेश जोशी            सभासद                          पालिकाध्यक्ष

इस चुनाव में यह भर रहे हैं उड़ान
कौन                      क्या थे                    दावेदार
संजय कुमार संजू     पूर्व पालिकाध्यक्ष       पालिकाध्यक्ष
सुभाष चंद्रा             सभासद                   पालिकाध्यक्ष
दीपक कुमार ‘भोलू’  सभासद                  पालिकाध्यक्ष
राकेश कुमार ‘शंभू’   सभासद                  पालिकाध्यक्ष
प्रेम सागर               सभासद                  पालिकाध्यक्ष

पूर्व सभासद जो हैं सभासद पद प्रत्याशी
डीएन भट्ट, मनोज अधिकारी, मंजू रौतेला, कृपाल बिष्ट, अमिता बेरिया, आनंद बिष्ट व मधु बिष्ट 

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

शोमैन को अखरा "थमा" सा पहाड़


  • राज्य का ध्यान "डेवलपमेंट" से अधिक "डील्स" पर 
  • सात वर्षो से "पॉज" की स्थिति में खड़ा है उत्तराखंड 
  • कहा- शौक को प्रोफेशन बनाएं युवा

नवीन जोशी नैनीताल। हिंदी फिल्म उद्योग के "शोमैन" सुभाष घई उत्तराखंड की सुंदरता में कसीदे पढ़ते हैं, लेकिन वह प्रदेश की व्यवस्थाओं से बेहद नाखुश हैं। सात वर्षो के बाद प्रदेश में लौटे घई कहते हैं कि उत्तराखंड इस अवधि में "पॉज" की स्थिति में (यानी जहां का तहां) खड़ा है ! वह कहते हैं कि फिल्में किसी भी राज्य की खूबसूरती को दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करने और उसकी आर्थिकी, रोजगार व पर्यटन को बढ़ाने का बड़ा माध्यम हैं। इसलिए अनेक राज्य व अनेक देश फिल्मकारों को रियायतों की पेशकश करते हैं, लेकिन लगता है कि उत्तराखंड का ध्यान "डेवलपमेंट" से अधिक "डील्स" पर है। यहां शूटिंग महंगी पड़ती है। उत्तराखंड की सुंदरता, शांति उन्हें यहां खींच लाती है। 
श्री घई निजी हेलीकॉप्टर से अपनी फिल्म "कांची" के लिए लोकेशन तय करने यहां पहुंचे। इस दौरान नगर के एक होटल में वह मीडियाकर्मियों से वार्ता कर रहे थे। उन्होंने मीडियाकर्मियों से ही प्रश्न किया, "मैं सात वर्ष पूर्व (2005 में फिल्म किसना की शूटिंग के लिए) उत्तराखंड आया था, तब से उत्तराखंड को "प्रमोट करने" के लिए क्या किया गया है?", फिर स्वयं ही उन्होंने उत्तर भी दे डाला। कहा, कुछ नहीं किया, लगता है राज्य सात वर्षो से "पॉज" पर खड़ा है। उन्होंने कहा कि फिल्में "प्रमोशन" का बड़ा माध्यम होती हैं। स्विट्जरलैंड, फिजी, मैक्सिको सहित अनेक देश व मेघालय, नागालैंड सरीखे राज्य फिल्मकारों को अपने यहां शूटिंग करने पर 40 फीसद तक अनुदान के प्रस्ताव देने आते हैं। उत्तराखंड से ऐसी पेशकश नहीं होती। प्रदेश को फिल्मों की शूटिंग को बढ़ावा देने के लिए होटल, यातायात, संचार सुविधाएं बढ़ानी चाहिए। फिल्मों के लिए "विशेष सेल" की स्थापना की जा सकती है। उन्होंने कहा कि कांची फिल्म में वह स्थानीय प्रतिभाओं को मौका देंगे। युवाओं को उन्होंने संदेश दिया, अपने पैशन को प्रोफेशन बनाएं, तभी अपेक्षित प्रगति कर पाएंगे।

मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

भाई के लिए दो भाई हटे चुनाव मैदान से


नवीन जोशी नैनीताल। यों सियासत और जंग में कोई किसी के लिए कुर्बानी नहीं देता, लेकिन कुमाऊं मंडल एवं जनपद मुख्यालय की नगर पालिका नैनीताल में दो भाइयों ने अपने भाइयों की जीत के लिए अपनी दावेदारी वापस लेकर मिसाल पेश की है। नाम वापसी के आखिरी दिन अध्यक्ष पद के एक एवं सभासद पद के दो निर्दलीय प्रत्याशियों चुनावी समर से वापस लौट आए। इसके बाद पालिकाध्यक्ष के प्रतिष्ठित पद पर 13 एवं 13 वार्डों के एक-एक यानी कुल 13 सभासद पदों के लिए 86 प्रत्याशी मैदान में शेष रह गए हैं। 
उल्लेखनीय है कि अध्यक्ष पद पर कांग्रेस से टिकट के प्रमुख दावेदार राजेंद्र व्यास और उनके भाई अरविंद व्यास ने नामांकन कराया था। राजेंद्र कांग्रेस पार्टी से सशक्त प्रत्याशी थे, लेकिन अपनी पार्टी की लंबी सेवाओं और अपने जनाधार को देखते हुए वह चुनाव मैदान में उतर आए। उधर, उन्हीं के छोटे भाई अरविंद व्यास निर्दलीय चुनाव मैदान में कूद पड़े थे। उन्हें उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी का समर्थन प्राप्त था। एक घर में एक साथ रहने और कमजोर आर्थिक स्थिति के साथ दोनों ही भाइयों ने नामांकन के लिए अपनी मां से तीन-तीन हजार रुपये लेकर नामांकन कराया था लेकिन नामांकन वापसी के आखिरी क्षणों में अरविंद ने राजेंद्र को पूरे जोश से चुनाव लड़ाने के लिए अपना नामांकन पत्र वापस ले लिया। इसी तरह भाजपा प्रत्याशी संजय कुमार "संजू" की अध्यक्ष पद पर जीत सुनिश्चित करने की कोशिश में स्नोव्यू से सभासद का चुनाव लड़ रहे अक्षय कुमार ने नाम वापस ले लिया। संजू के चुनाव में हमेशा ही उनका चुनाव प्रबंधन देखने वाले अक्षय कुमार का कहना है कि वह अपने वार्ड में चुनाव लड़ने और जीतने के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थे, उनकी तैयारी लंबे समय से चल रही थी। लेकिन आखिरी क्षणों में संजू को भाजपा से टिकट मिलने पर उन्होंने बड़े भाई को चुनाव जिताने के लिए स्वयं चुनाव न लड़ने का फैसला लिया, ताकि ऊर्जा दो की जगह एक जगह ही लगाई जा सके। इधर वार्ड 12 कृष्णापुर से पंकज आर्य ने भी पर्चा वापस ले लिया। 

रविवार, 14 अप्रैल 2013

कम ही दिखा "आधी दुनिया˜ का जोर


नवीन जोशी, नैनीताल। जनपद में जहां विधानसभा चुनावों के बाद दो मंत्रियों व एक विधायक के साथ ही डीएम, कमिश्नर (अभी हाल में स्थानांतरण से पूर्व), जिला पंचायत अध्यक्ष एवं दो ब्लाक प्रमुखों के साथ ˜आधी दुनिया" कही जाने वाली महिलाओं का पूरा ˜दम" नजर आता रहा है, वहीं जनपद की सबसे महत्वपूर्ण नैनीताल नगर पालिका में महिलाओं का यही दम फूलता सा नजर आ रहा है। यहां महिलाओं हेतु आरक्षित वार्डों  में अपेक्षा से कम ही प्रत्याशी मैदान में हैं, वहीं अध्यक्ष सहित गैर आरक्षित आठ वार्डों में पांच महिलाएं ही प्रत्याशी हैं। वर्ष 2003 के बाद तीन से अधिक बच्चे उत्पन्न होने पर अयोग्यता के नए नियम का 80 फीसद खमियाजा (5 में से 4 पर्चे महिलाओं के ही हुए ख़ारिज) भी महिलाओं को भुगतना पड़ा है। 
नैनीताल में अध्यक्ष पद के लिए 14 और 13 वार्डों के सभासदों के पदों के लिए 88 प्रत्याशी मैदान में हैं  इनमें महिला दावेदारों की संख्या कुल मिलकर केवल 29 ही है। अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित अध्यक्ष पद के लिए 14 प्रत्याशियों ने अपनी दावेदारी पेश की है, इनमें केवल एक शालिनी आर्या बिष्ट महिला वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। वहीं महिलाओं हेतु गैर आरक्षित स्नोभ्यू वार्ड से सर्वाधिक दो- वर्तमान सभासद अमिता बेरिया व रेखा वैद्य, वार्ड सात शेर का डांडा से जीवंती देवी, वार्ड 10 सूखाताल से लीला अधिकारी सहित कुल पांच महिलाएं ही चुनाव लड़ने की हिम्मत जुटा पाई हैं। वहीं जहां नगर के अनारक्षित आवागढ़ वार्ड में 14 एवं सूखाताल वार्ड में 11 प्रत्याशी मैदान में उतरे हैं, लेकिन महिलाओं हेतु आरक्षित वाडरे में प्रत्याशियों का टोटा साफ नजर आता है। वार्ड तीन व वार्ड 11 में छह-छह (वार्ड 3 हरिनगर से कंचन, शीतल आर्या, रेनू आर्या, बबीता पंवार, मनीशा व आरती व वार्ड 11 मल्लीताल बाजार से पुष्पा साह, भारती साह, ललिता दोषाद, मंजू जोशी, गुंजन-मंजू रौतेला व कंचन वर्मा ), वार्ड नौ (नैनीताल क्लब से विद्या जोशी, दया सुयाल, सपना बिष्ट, नीमा अधिकारी व मधु बिष्ट) में पांच प्रत्याशियों को थोड़ा ठीक भी मानें तो अपर माल वार्ड में केवल चार (नीतू बोहरा, आशा आर्या, रमा गैड़ा व रीना मेहरा) और तल्लीताल बाजार जैसे वार्ड में केवल तीन महिला प्रत्याशी (प्रेमा मेहरा, प्रेमा अधिकारी व किरन साह) मतदाताओं को अधिक विकल्प उपलब्ध नहीं करा रही हैं। हालांकि जो महिलाएं राजनीति में आ भी रही हैं, वे भी अपनी कठपुतलियों सी डोर पतियों या अन्य पुरुष संबंधियों के हाथों में ही रखे रहने से गुरेज नहीं करतीं। नैनीताल में ऐसा कुछ कम नजर आता है जो सुखद व उम्मीद जगाने वाला हो सकता है।

शनिवार, 13 अप्रैल 2013

नैनीताल पालिका चुनाव में "तजुर्बे" की भी होगी परीक्षा



अध्यक्ष पद पर एक पूर्व अध्यक्ष व चार सभासद और सभासद पद पर सात पूर्व सभासद मैदान में
नवीन जोशी नैनीताल। निस्संदेह लोकतंत्र में हर किसी को चुनावी समर में उतर कर जनसेवा के लिए स्वयं को जनता की कसौटी पर कसने का अधिकार है, और आज के दौर को युवाओं का दौर कहा जाता है, और युवाओं को ही चुनावों के माध्यम से आगे लाने की वकालत की जाती है लेकिन तजुब्रे को दरकिनार करना कभी भी आसान नहीं होता। देश की दूसरे नंबर की सबसे प्राचीन 1845 में स्थापित नैनीताल नगर पालिका में भी इस बार "अनुभव" की कसौटी पर कसा जाएगा। यहां अध्यक्ष पद के लिए एक पूर्व अध्यक्ष सहित चार पूर्व सभासद एवं सभासदों के 13 पदोंके लिए सात पूर्व एवं वर्तमान सभासद मैदान में हैं। नैनीताल नगर पालिका के चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए नामांकन कराने वाले 14 प्रत्याशियों में पांच प्रत्याशी पूर्व या वर्तमान में पालिका में बतौर जनप्रतिनिधि जुड़े रहकर अनुभव रखते हैं। इनमें भाजपा प्रत्याशी संजय कुमार 'संजू' पूर्व में वर्ष 2003 से 2008 तक पालिका अध्यक्ष रह चुके हैं। वहीं भाजपा के बागी प्रत्याशी प्रेम सागर, कांग्रेस के बागी प्रत्याशी दीपक कुमार ˜भोलू" के साथ ही बसपा प्रत्याशी राकेश कुमार ˜शंभू" 2008 में चुनाव जीतकर वर्तमान में सभासद के रूप में कार्यरत हैं। वहीं कांग्रेस के अन्य बागी निर्दलीय प्रत्याशी सुभाष चंद्रा भी पूर्व में पालिका सभासद रह चुके हैं। 
पालिका सभासदों के पदों की बात की जाए तो स्नोभ्यू से अमिता बेरिया, आवागढ़ से मनोनीत आनंद बिष्ट, नैनीताल क्लब से मनोनीत सभासद मधु बिष्ट, सूखाताल वार्ड से मनोज अधिकारी, मल्लीताल से मंजू उर्फ गुंजन बिष्ट, कृष्णापुर से डीएन भट्ट व शेर का डांडा से कृपाल बिष्ट पूर्व में सभासद पद का दायित्व देख चुके हैं। इनमें डीएन भट्ट पूर्व में पालिका के वरिष्ठ उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं।

चुनावी जलजले से हर पार्टी में उभरी दरार


सत्तारुढ़ कांग्रेस में सर्वाधिक बागी भाजपा व बसपा के बागी भी मैदान में
नवीन जोशी, नैनीताल। अपनी 1845 में हुई स्थापना से देश की दूसरे नम्बर की नगर पालिका नैनीताल में आसन्न निकाय चुनाव ने जलजले के रूप में सभी पार्टियों के घरों में भारी दरार नुमाया कर दी है। हर पार्टी में अनेक बागी उम्मीदवार यदि नाम वापसी तक मनाए न जा सके तो आने वाले दिनों में अध्यक्ष पद के साथ ही वाडरे के सभासद पदों हेतु अधिकृत प्रत्याशियों के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकते हैं। कहते हैं कि अक्सर जंग दुश्मनों से अधिक कठिन दोस्तों से होती है। यह जंग खास तौर पर गांवों के ग्राम प्रधानों के चुनाव तो कई बार गांवों में आपसी वैमनस्य को बढ़ाने वाले भी साबित होते हैं। नगरों की छोटी इकाइयों में प्रत्याशियों को अपनों से ही उलझना पड़ता है। नगर पालिका नैनीताल के अध्यक्ष एवं 13 वाडरे में सभासद पदों पर आखिरी दिन तक हुए नामांकनों की स्थिति प्रत्याशियों को दूसरे दलों के साथ ही अपनों से लड़वाती नजर आ रही है। खासकर विपक्षी भाजपा के प्रत्याशियों के लिए इस मामले में अधिक कठिन स्थिति है, क्योंकि इसी पार्टी ने सभी वाडरे में सभासद प्रत्याशियों को अपने सिंबल दिए हैं। वहीं अध्यक्ष पद पर सत्तारूढ़ दल में सत्ता रूपी ‘मधुमक्खी के छत्ते’ से टपकने वाले 'शहद' को लेकर अधिक मारामारी नजर आ रही है। यहां पहले ही पार्टी पर्यवेक्षक के सामने दावेदारी जताने वाले तीनों दावेदार-सुभाष चंद्रा, दीपक कुमार 'भोलू' व राजेंद्र व्यास तो मैदान में कूद ही पड़े हैं। सुभाष के साथ कांग्रेस के 2008 में प्रत्याशी रहे दिनेश चंद्र साह के जाने से भी पार्टी को बुरे संकेत मिले हैं। वहीं अपने दादा खुशी राम के जमाने से कांग्रेसी रहे पूर्व पालिकाध्यक्ष संजय कुमार 'संजू' इस बार कमल का फूल थाम कर भाजपा से प्रत्याशी हैं। वह पिछली बार बसपा से विधान सभा का चुनाव लड़ चुके हैं, एक दिन पूर्व ही वह बकौल उनके 150 बसपा कार्यकर्ताओं के साथ भाजपा में शामिल हुए हैं, लिहाजा वह बसपा के वोट बैंक में भी निश्चित ही सेंध लगाने की उम्मीद कर रहे हैं। कांग्रेस को उनके साथ ही पार्टी से जुड़े दावेदार राजेंद्र व्यास के भाई अरविंद व्यास व शालिनी आर्या के भी नुकसान पहुंचाने की संभावना जताई जा रही है। भाजपा ने दूसरी पार्टी से जुड़े प्रत्याशी को उतारा है तो उनकी घर की टूट भी उजागर हो गई है। वर्तमान सभासद एवं पार्टी से पुश्तैनी रिश्ता रखने वाले प्रेम सागर बागी हो गए हैं, उनका कहना है पार्टी 'दगाबाज' हो गई है तो वह क्यों नहीं हो सकती है। वहीं किसी दौर में पार्टी के सदस्य रहे जगमोहन भी निर्दलीय के रूप में मैदान में कूद पड़े हैं। भाजपा को अनेक वाडरे में भी निर्दलीय कूदे बागियों से तगड़ी दावेदारी मिलने से इंकार नहीं किया जा सकता। उसके कुंदन सिंह नेगी सूखाताल से, आशा आर्या अपर माल से, पूर्व नगर उपाध्यक्ष कुंदन बिष्ट की पत्नी सपना बिष्ट नैनीताल क्लब वार्ड से बागी होकर निर्दलीय चुनाव में कूद पड़े हैं। बसपा से राकेश कुमार 'शंभू' प्रत्याशी हैं तो 2008 में बसपा से प्रत्याशी रहे उन्हीं के हमनाम अधिवक्ता राकेश कुमार ने भी अध्यक्ष पद के लिए दुबारा ताल ठोंक दी है। ऐसे में निकाय चुनावों में बागी सत्ता के ऊंट को किस करवट बैठाते हैं, देखना दिलचस्प होगा।

अध्यक्ष पद के लिए दो भाई आमने-सामने

नैनीताल। सत्ता का 'शहद' जो न करा दे वह कम है। कांग्रेस के बागी राजेंद्र व्यास के साथ ही उनके अनुज अरविंद व्यास ने भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ताल ठोंक दी है। दोनों भाई एक ही घर में रहते हैं। बताया कि दोनों ने ही अपनी माता से जमानत राशि तीन-तीन हजार रुपए लाकर नामांकन कराया।

गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

ऐसा भी हुआ: एक साथ दो शहरों में सभासद रहे थे श्रीचंद




नवीन जोशी नैनीताल। यह अपनी तरह का अनूठा मामला हो सकता है। नगर निवासी एवं उत्तर प्रदेश में दो मुख्यमंत्रियों के शासनकाल में वन एवं कानून विभाग के कैबिनेट मंत्री रहे श्रीचंद के नाम यह रिकार्ड दर्ज है कि वह एक अवधि में ही दो शहरों की नगर पालिका में सभासद रहे। वह भी सात वर्ष की अवधि के लिए। श्री चंद अपनी इस विशिष्ट सेवा के बारे में बताते हुए आजादी के बाद के दौर को याद करते हुए बताते हैं कि उन दिनों नगर से अधिकतर लोग नवम्बर में मैदानों में प्रवास पर चले जाते थे। लिहाजा वहां भी नगर पालिका की मतदाता सूचियों में नाम चढ़ जाया करता था और यह कुछ गलत भी नहीं माना जाता था। उन्होंने बताया कि वर्ष 1959 में नैनीताल नगर पालिका के तल्लीताल वार्ड से वह सभासद का चुनाव जीते थे। उधर हल्द्वानी में भी उनका घर था और नैनीताल के साथ ही हल्द्वानी में भी अच्छा संपर्क था। उनके नैनीताल में सभासद बनने के करीब एक वर्ष बाद हल्द्वानी में अनुसूचित जाति के एक सभासद की मृत्यु हो गई। इस पर साथियों ने उन्हें सभासद की रिक्त हुई सीट पर चुनाव लड़ने के लिए न चाहते हुए भी मना लिया। श्रीचंद वहां से चुनाव लड़े और सभासद चुन लिए गए। उस दौर में नैनीताल में राय बहादुर जसौत सिंह बिष्ट और हल्द्वानी में हीरा बल्लभ बेलवाल पालिकाध्यक्ष थे। श्रीचंद बताते हैं कि वह 1960 से 1966 तक वह दोनों जगह एक साथ सभासद रहे और इस दौरान हल्द्वानी में पालिका की शिक्षा उप समिति के अध्यक्ष भी रहे। बाद में नगर पालिका चुनावों से प्राप्त राजनीतिक अनुभव के बल पर ही आगे वह वर्ष 1977 में यूपी में लोक दल के राम नरेश यादव मंत्रिमंडल में वन एवं लोकदल के ही बनारसी दास मंत्रिमंडल में वन एवं कानून मंत्री भी रहे।


अधिकारी दंपति भी आजमा रहे भाग्य
नैनीताल। नगर पालिका नैनीताल के चुनावों में वर्तमान सभासद मनोज अधिकारी और उनकी पत्नी नीमा अधिकारी दोनों चुनाव लड़ने जा रहे हैं। मनोज ने नगर के सूखाताल और नीमा ने नैनीताल क्लब वार्ड से नामांकन करा दिया है। मनोज वर्तमान में नैनीताल क्लब वार्ड से सभासद हैं। इस बार उनकी सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होने पर उन्होंने अपनी सीट तो पत्नी का समर्पित कर दी है, लेकिन सूखाताल वार्ड में भी अच्छा प्रभाव होने से वह स्वयं वहां भाग्य आजमा रहे हैं। दोनों जीते तो इतिहास रचेंगे।

मंगलवार, 2 अप्रैल 2013

नैनीताल राजभवन में आग, फिर मंगल को सामने आया अमंगल

जीर्णोद्धार कार्यों के दौरान छत की ओर से फैली आग पीएसी व पुलिसकर्मियों की सक्रियता से टला हादसा जाम लगने से फायर ब्रिगेड को पहुंचने में हुआ विलम्ब
नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश ही नहीं देश की शान, 1899 में अंग्रेजों द्वारा निर्मित ऐतिहासिक नैनीताल राजभवन में मंगलवार 2 अप्रैल 2013 को अमंगल होते-होते टल गया। राजभवन में आग लगने से हड़कंप मच गया। करीब 10.6 करोड़ रुपये की लागत से चल रहे राजभवन के जीर्णोद्धार कार्यों के दौरान आग लगी। पीएसी एवं पुलिसकर्मियों की मुस्तैदी से राजभवन में लगे ऑटोमैटिक सुरक्षा उपकरणों से आग अधिक फैलने से रुक गई। आग से छत में लगाए जा रहे तख्ते व अन्य निर्माण सामग्री चपेट में आई है। करीब एक घंटे की मशक्कत के बाद आग पर काबू पा लिया गया। इससे पूर्व 5 जनवरी 1970 को भी राजभवन में अग्निकांड हुआ था। 
मंगलवार अपराह्न करीब सवा दो बजे नैनीताल राजभवन में तैनात पीएसी कर्मी जावेद खान ने राजभवन की छत की ओर हल्का धुआं उड़ता हुआ देखा तो उसने तत्काल शोर मचाकर अन्य साथियों और उच्चाधिकारियों को सूचित किया। 2.38 बजे तक यह सूचना जिले के पुलिस कप्तान और पुलिस सीओ हरीश कुमार सिंह तक पहुंच गई, उसके तत्काल बाद नगर की फायर ब्रिगेड को सूचना देने के साथ ही हल्द्वानी और रामनगर से भी फायर ब्रिगेड को मुख्यालय पहुंचने के आदेश दे दिये गए। आग राजभवन के प्रेसीडेनसिअल ब्लाक के शूइट नं. चार की छत से शुरू हुई थी, और तब तक राजभवन के छत की बीचों-बीच स्थित बुर्ज पर नजर आने लगी थी और दांई ओर चल रहे जीर्णोद्धार कार्यों की ओर तेजी से फैलने लगी थी। इससे छत एवं सीलिंग के बीच धुआं भर गया था। फायर ब्रिगेड के वाहनों को राजभवन मार्ग पर इसी बीच स्कूलों की छुट्टी होने के कारण लगे जाम में फंसते हुए काफी समय लगा, बहरहाल उनके पहुंचते ही पीएसी एवं पुलिस के जवानों ने अग्निशमन कर्मियों के साथ सतर्कता का परिचय देते हुए खिड़कियों को तोड़कर आग बुझाने की कोशिश में जुट गये। एसएसपी डा. सदानंद दाते स्वयं बुर्ज पर चढ़कर आग बुझाने के लिए पुलिसकर्मियों को निर्देशित कर रहे थे। अंतत: करीब साढ़े तीन बजे आग पर पूरी तरह काबू पा लिया गया। बताया जा रहा है कि आग से जीर्णोद्धार के क्रम में राजभवन की छत पर लगाए जा रहे तख्ते एवं उसके नीचे बिछाए जा रहे इमल्सन (एपीपी सीट) आदि का नुकसान हुआ है। राजभवन का जीर्णोद्धार इंडिया गुनाइटिंग  कारपोरेसन नामक कंपनी द्वारा किया जा रहा है। इस कंपनी के कामगार गैस हीटर से अग्नि व जलरोधी एपीपी सीट चिपकाने का काम कर रहे थे। संभवत: हीटर की चिंगारी से ही आग लगी। आग लगने के समय कंपनी के कामगार दोपहर का भोजन कर रहे थे। बहरहाल आग को राजभवन के बांयें हिस्से में फैलने से पहले ही रोक लिया गया, उस ओर राजभवन के महत्वपूर्ण फर्नीचर एवं अन्य महत्वपूर्ण सामान रखे गए थे। डीएम निधिमणि त्रिपाठी, एसडीएम रवि झा, कोतवाल बीबीडी जुयाल, थाना प्रभारी उत्तम सिंह, फायर ब्रिगेड के बीसी जोशी, लक्ष्मण सिंह, राजेंद्र नाथ, मुकेश कुमार, प्रेमप्रकाश राणा, एसएसआई कैलाश जोशी, लोनिवि के अभियंता एबी कांडपाल, आरएन तिवारी व राजीव गुरुरानी आदि ने भी आग बुझाने में जुटे रहे।

रविवार, 31 मार्च 2013

डीएम, मंत्री भी नहीं करा पा रहे जांच !


  • अल्मोड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग के 864 लाख रुपयों से हुए सुधार कार्यों के ध्वस्त हो जाने का मामला 
  • डीएम के अपने स्तर से जांच में गुणवत्ता पर उठाये थे सवाल 
  • जिले के प्रभारी मंत्री प्रीतम सिंह भी शासन से कर चुके हैं उच्चस्तरीय जांच की मांग


नैनीताल। जनपद से अल्मोड़ा समेत पहाड़ को जोड़ने वाले महत्वपूर्ण राष्ट्रीय राजमार्ग-87 (विस्तार) में विगत दिनों करीब 864 लाख रुपये से हुए सुधार-मरम्मत कार्य कुछ ही दिनों में ध्वस्त हो गए, लेकिन इसे निर्माण से संबंधित लोगों की ऊंची पहुंच का असर कहें या कि छोटे से प्रदेश में शासन-प्रशासन व सरकार के बीच तालमेल की कमी, निर्माण कार्यों में डीएम स्तर से की गई जांच में बड़ी अनियमितता उजागर हो जाने के बावजूद और डीएम द्वारा दो बार और जिले के प्रभारी मंत्री द्वारा पत्र लिखे जाने के बावजूद शासन मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश नहीं दे रहा। 
सड़क को आज के दौर की ‘लाइफ लाइन’ क्यों कहां जाता है, इस बात का अहसास कोसी नदी के बराबर से गुजर रहे अल्मोड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग-विस्तार के अक्टूबर 2010 में आई अतिवृष्टि के दौरान नैनीताल जनपद स्थित बड़े हिस्से के बह जाने और महीनों इस मार्ग से पहाड़ का संपर्क भंग होने और मार्ग पर दर्जनों वाहनों के महीनों फंसे रहने के रूप में देखा जा सकता था। आगे, जनता की कमाई के ही 841.15 लाख रुपये से मार्ग के ज्योलीकोट से क्वारब तक सड़क का व्यापक स्तर पर पुनर्निर्माण, सुधार-मरम्मत आदि के कार्य हुए। यह कार्य मार्च 2012 में पूर्ण हो पाए। इसी दौरान मार्ग के किमी-41 में जौरासी के समीप "क्रॉनिक जोन" विकसित हो जाने से व्यापक भूस्खलन हुआ, जिसे दुरुस्त करने में और चार महीनों के अंदर निर्माण कार्य दरकने लगे और दिखने लगा कि जनता की गाढ़ी कमाई निर्माण कार्यों में नहीं निर्माणकर्ताओं की जेब में समा गई है। शिकायतें आने के बाद डीएम नैनीताल निधिमणि त्रिपाठी ने एसडीएम कोश्यां-कुटौली से मामले की जांच करवाई। एसडीएम की सात जुलाई 12 को आई रिपोर्ट में कहा गया कि एनएच पर नावली के पास निर्मित दीवार व सड़क धंस रही है, और सड़क कभी भी गिर सकती है। लिहाजा डीएम ने पहले जुलाई 12 में और फिर दिसम्बर 12 में प्रमुख सचिव लोनिवि को मामले की उच्च स्तरीय जांच के लिए संस्तुति करते हुए पत्र लिखे। इस बीच 26 दिसम्बर 12 को जिले के प्रभारी मंत्री प्रीतम सिंह की अध्यक्षता में आयोजित हुई जिला योजना की बैठक में यह मामला जनप्रतिनिधियों ने बेहद जोर-शोर से उठा, और मंत्री बावजूद शासन से मामले की जांच होना दूर, किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। सांसद प्रतिनिधि डा. हरीश बिष्ट, कांग्रेस के जिलाध्यक्ष सतीश नैनवाल समेत अनेक जनप्रतिनिधि भी इस मामले को गंभीर बताते हुए मामले की शासन से उच्च स्तरीय जांच व दोषियों को दंडित करने तथा सड़क को दुरुस्त करने की मांग उठा रहे हैं। वहीं प्रभारी मंत्री प्रीतम सिंह का कहना है कि वह स्वयं इस मामले को लेकर सीएम और प्रमुख सचिव लोनिवि से बात करेंगे। 

शनिवार, 23 मार्च 2013

नक्षत्रों से ढूंढिए अपना पंचतत्व, बदलिए तकदीर


नैनीताल में मिली सैकड़ों वर्ष पुरानी पांडुलिपि, जिसमें बताया गया है पंचतत्वों से नक्षत्रों का संबंध
नवीन जोशी नैनीताल। भारतीय धार्मिक और नक्षत्र विज्ञान के ग्रंथों में मनुष्य की जन्मतिथि व समय से निर्धारित होने वाली राशियों का मानव शरीर के मुख्य घटक पंचतत्वों-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश से संबंध बताया गया है। यहां एक ऐसी सैकड़ों वर्ष पुरानी पांडुलिपि प्रकाश में आई है, जिसमें पहली बार नक्षत्रों और पंचतत्वों के बीच के संबंध बताने के साथ ही इसके माध्यम से मनुष्य के जीवन और उसकी प्रकृति में सुधार करने के तरीके बताए गए हैं। रत्नमाला नाम के इस ग्रंथ पर यदि विस्तृत शोध हो तो भारतीय नक्षत्र विज्ञान को नए आयाम दे सकता है। कुमाऊं विवि के डीएसबी परिसर के संस्कृत विभाग में वर्षो से पड़ी "रत्नमाला" नाम की पांडुलिपि मिली है। इसका अध्ययन एवं राष्ट्रीय पांडुलिपि संरक्षण मिशन के तहत संरक्षण कर रहे डा. सोमबाबू शर्मा बताते हैं कि इस पांडुलिपि में पहली बार नक्षत्रों और पंचतत्वों का संबंध वैज्ञानिक आधार के साथ बताया गया है। संस्कृत में श्लोक एवं संस्कृतिहंदी मिश्रित व्याख्या रूप में लिखी गई इस पांडुलिपि में सभी 28 नक्षत्रों के पंचतत्वों से संबंध और उनके आधार पर मानव जीवन को बेहतर बनाने के उपाय बताए गए हैं। उदाहरणार्थ, सर्वाधिक बुरे बताए जाने वाले मूल नक्षत्र को मघा व अश्लेषा के साथ अग्नि तत्व से तथा पुनर्वसु, हस्त, अश्लेषा, मृगशिरा, रेवती, अनुराधा व ज्येष्ठा के साथ वायु तत्व से संबंधित बताया गया है। अग्नि तत्व से संबंधित जातक जल तत्व से निकटता दिखाकर स्वयं का जीवन सुधार सकते हैं, जबकि इसके उलट सामान्य मान्यता के अनुसार मूल नक्षत्र के लोग भगवान शनि की पूजा करते हुए अग्नि को अधिक भड़काते हुए तेल के दीपक जलाते हैं। वहीं जल तत्व से संबंधित जातक पानी से दूर रहकर तथा दीपक जलाकर व हवन, यज्ञ आदि कर अपना जीवन बेहतर कर सकते हैं। डा. शर्मा बताते हैं कि पांडुलिपि में नक्षत्रों को रत्नों की तरह महत्वपूर्ण बताते हुए इनकी विस्तृत व्याख्या की गई है, किसी अन्य पुस्तक में अब तक उल्लेखित न किए गए अविजित नाम के नक्षत्र का भी उल्लेख है, जिसका प्रयोग समस्या का और कोई समाधान न होने की दशा में किया जाता है, साथ ही इसमें 28 योगिनियों का भी उल्लेख है। वह कहते हैं कि विस्तृत शोध किया जाए तो यह खोज नक्षत्र विज्ञान को नई दिशा दे सकती है। उल्लेखनीय है कि मानव शरीर के बारे में कहा जाता है कि इसकी रचना सृष्टि के रचयिता ब्रrा ने पंचतत्वों की मदद से की थी। मनुष्य इन्हीं पंचतत्वों से मिलकर बनता है और आखिर इन्हीं में मिल जाता है। मनुष्य अपने जीवन में भी इन पंचतत्वों से साम्य बनाता हुआ चलता है। मनुष्य के इन पंचतत्वों से संबंधों को धार्मिक ग्रंथों के साथ नक्षत्र विज्ञान में राशियों से जोड़ा गया है। उदाहरण के लिए कर्क व मीन राशि के जातकों को जल तत्व से, वृष, सिंह आदि राशियों को पृथ्वी तत्व से जोड़ा गया है। इस प्रकार कर्क व मीन राशि के जातक जल की तरह चंचल व अस्थिर प्रकृति के होते हैं तो वृष व सिंह राशि के जातक अडिग व ठोस निर्णय लेने वाले माने जाते हैं। नक्षत्र विज्ञान में 28 नक्षत्र माने जाते हैं। जन्म पत्रिकाओं में मनुष्य की राशियों के साथ ही नक्षत्रों का भी जिक्र प्रमुखता से होता है। चूंकि इनकी संख्या अधिक है, इसलिए इनके अध्ययन से मनुष्य की प्रकृति, भविष्य आदि के बारे में अधिक सटीक भविष्यवाणियां की जा सकती हैं।

गुरुवार, 21 मार्च 2013

तराई बीज निगम में एक और घोटाला !



लाखों के गेहूं के बीज को ऐसे क्षेत्रों में उगाने का दावा जहां वह पैदा ही नहीं होता
डीआईजी ने दिए मामले की विस्तृत जांच के निर्देश
इस मामले में जल्द किया जा सकता है कुछ लोगों को गिरफ्तार
नवीन जोशी, नैनीताल। विवादों में चल रहे प्रदेश के तराई बीज विकास निगम (टीडीसी) में एक और बड़े घोटाले की परतें खुलने लगी हैं। इस मामले में निगम के जिम्मेदार अधिकारियों की संलिप्तता और बड़े घोटाले की आशंका जताई जा रही है। इस करीब चार वर्ष पुराने मामले में आरोपितों ने लाखों रुपये के गेहूं के बीजों को ऐसे क्षेत्रों में उगाने का दावा किया था, जहां वह पैदा ही नहीं होता। बाद में जांच तेज हुई तो निगम में मामले की फाइल ही गायब करवा दी गई। खास बात यह है कि जांच के दौरान इस गायब फाइल की फोटो कापी पुलिस अपने पास सहेज चुकी थी। यानी मामला साजिश के तहत सरकारी दस्तावेज को गायब करने और घोटाले का है। उल्लेखनीय है कि टीडीसी गेहूं के बीजों को तैयार कर विभिन्न क्षेत्रों में उगवाता है और बाद में उनसे प्राप्त उपज को बीज के रूप में खरीद लेता है। इसी प्रक्रिया में वर्ष 2008 से कुछ और ही खेल खेला गया। भूपेंद्र सिंह, हरविंदर सिंह, इंद्रजीत सिंह, हरदयाल सिंह सहित नौ आरोपितों पर आरोप है कि उन्होंने टीडीसी को पंतनगर व कानपुर सहित कुछ ऐसे इलाकों में बोए गए बीज बेचे जहां ऐसी उच्चीकृत प्रजातियों के बीज उपलब्ध नहीं होते। वहीं अधिकारियों की संलिप्तता का आलम यह रहा कि जांच में इन स्थानों पर गेहूं बोए जाने की पुष्टि कर दी। इस बीच आरोपितों के साथियों में ही आपस में फूट पड़ने से मामला खुल गया और गत 29 दिसम्बर 2012 को पंतनगर थाने में नौ आरोपितों के विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत हुआ। इस बीच पुलिस की जांच शुरू हुई तो निगम में मामले से संबंधित फाइल गायब होने की बात कही गई, लेकिन इससे पूर्व ही पुलिस गायब बताई गई फाइल की फोटो कापी कराकर अपने पास सुरक्षित रख चुकी थी। पुलिस की प्रारंभिक जांच में गेहूं के जनक बीज के पंजीकरण संबंधी दस्तावेज और बीज को खेतों में बोए जाने के अभिलेख फर्जी पाए गए हैं। साथ ही मौके पर जाकर बीज बोए जाने को प्रमाणित करने वाले अधिकारियों की संलिप्तता की भी प्रथमदृष्टया पुष्टि हो चुकी है। पूछे जाने पर नैनीताल परिक्षेत्र के डीआईजी संजय गुंज्याल ने बताया कि उन्होंने मामले की विवेचना करने और फाइल के गायब होने जैसे विषयों को भी शामिल करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने अभियोग पंजीकृत होने के दो माह बाद एवं दो विवेचक बदले जाने के बावजूद मामले की सीडी पर्यवेक्षण अधिकारी को न सौंपे जाने को लेकर ऊधमसिंहनगर पुलिस की कार्यदक्षता पर भी सवाल उठाए हैं तथा एसएसपी ऊधमसिंह नगर को मामले की गहनता से विवेचना करने को लिखा है।

सोमवार, 11 मार्च 2013

हिमालय पर ब्लैक कार्बन का खतरा !


पहाड़ों पर अधिक होता है मौसम परिवर्तन का असर : प्रो. सिंह
नवीन जोशी नैनीताल। दुनिया के "वाटर टावर" कहे जाने वाले और दुनिया की जलवायु को प्रभावित करने वाले हिमालय पर कार्बन डाई आक्साइड, मीथेन, ग्रीन हाउस गैसों तथा प्रदूषण के कारण ग्लोबल वार्मिग व जलवायु परिवर्तनों के खतरे तो हैं ही, वैज्ञानिक ब्लैक कार्बन को भी हिमालय के लिए एक खतरा बता रहे हैं। खास बात यह भी है कि इसका असर गरमियों के मुकाबले सर्दियों में, दिन के मुकाबले रात्रि में और मैदान के बजाय पहाड़ पर अधिक होता है। बीरबल साहनी पुरस्कार प्राप्त प्रसिद्ध पादप वैज्ञानिक, गढ़वाल विवि के पूर्व कुलपति, उत्तराखंड योजना आयोग के सदस्य एवं भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) के लिए हिमालय पर जलवायु परिवर्तन का अध्ययन कर रहे प्रो. एसपी सिंह ने यह खुलासा किया है। सिंह का कहना है कि दुनिया में डेढ़ बिलियन लोग ईधन में ब्लैक कार्बन’का प्रयोग करते हैं। हिमालय पर इसका सर्वाधिक असर वनस्पतियों की प्रजातियों के अपनी से अधिक ऊंचाई की ओर माइग्रेट होने के साथ ही ग्लेशियरों के पिघलने और मानव की जीवन शैली से लेकर आजीविका तक पर गंभीर प्रभाव के रूप में दिख रहा है। धरती के गर्भ से खुदाई कर निकलने वाले डीजल जैसे पेट्रोलियम पदार्थो, कोयला व लकड़ी आदि को जलाने से ब्लैक कार्बन उत्पन्न होता है। प्रो. सिंह के अनुसार यह ब्लैक कार्बन’जलने के बाद ऊपर की ओर उठता है, और ग्रीन हाउस गैसों की भांति ही धरती की गर्मी बढ़ा देता है। बढ़ी हुई गर्मी अपने प्राकृतिक गुण के कारण मैदानों की बजाय ऊंचाई वाले स्थानों यानी पहाड़ों पर अधिक प्रभाव दिखाते हैं। प्रो. सिंह खुलासा करते हैं कि इस प्रकार मौसम परिवर्तन का असर दिल्ली या देहरादून से अधिक नैनीताल में सर्दियों में रात्रि का तापमान कई बार समान होने के रूप में दिखाई दे रहा है। इसके असर से ही ग्लेशियर पिघल रहे हैं और पौधों की प्रजातियां ऊपर की ओर माइग्रेट हो रही हैं। ऐसे में सामान्य सी बात है कि पहाड़ की चोटी की प्रजातियां और ऊपर न जाने के कारण विलुप्त हो रही हैं। मानव जीवन पर भी इसका असर फसलों के उत्पादन के साथ आजीविका और जीवनशैली पर पड़ रहा है। उन्होंने खुलासा किया कि हिमाचल प्रदेश में 1995 से 2005 के बीच सेब उत्पादन में कम ऊंचाई वाले कुल्लू व शिमला क्षेत्रों का हिस्सा कम हुआ है, जबकि ऊंचाई वाले लाहौल- स्फीति का क्षेत्र बढ़ा है।