शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

नैनीताल में 52 निर्माण कार्य रोकने का आदेश


पहली से नगर में शुरू होगा अतिक्रमण हटाने व झील से मलबा निकालने का अभियान
नैनीताल (एसएनबी)। जिला अधिकारी ने सरोवरनगरी में हो रहे 52 निर्माणों को तत्काल रोकने तथा इनकी जांच कराने के निर्देश दिए हैं। नगर में आगामी एक मई से अतिक्रमणों को हटाने तथा नैनी झील से मलबा निकालने का अभियान शुरू होगा। बरसात से पूर्व नालों से मलवा हटा लिया जाएगा। नगर के ग्रीन बेल्ट क्षेत्र में भूमि व भवनों की रजिस्ट्री रोकने के लिए कानूनी राय ली जाएगी। नैनी झील व नगर के बाबत विभिन्न विभागों के समन्वयक की भूमिका झील विकास प्राधिकरण निभाएगा। नगर के गणमान्य लोगों की एक निगरानी समिति बनाई जाएगी, जो हर माह बैठकें कर अवैध निर्माणों पर नजर रखेगी। 
शुक्रवार को आयुक्त सभागार में आयोजित बैठक के बाद डीएम शैलेश बगौली ने यह निर्णय सुनाए। यह बैठक करीब 300 लोगों के हस्ताक्षरों युक्त एक शिकायत पर बुलाई गई थी, जिसमें अवैध निर्माणों का आरोप लगाया था, लेकिन शिकायत करने वालों से इतर बड़ी संख्या में नगरवासी बैठक में शामिल हुए। इस हंगामी बैठक में नगरवासियों ने एक-दूसरे की बातों में टोका- टोकी करते हुए अपनी बातें रखीं। कई लोग इस बहाने अपने निजी व राजनीतिक हित साधते भी नजर आये। अधिकांश लोगों ने स्वीकार किया कि नगर के उत्थान में सभी की भागेदारी होनी जरूरी है। ग्वल सेना के संयोजक पूरन मेहरा ने घोड़ा स्टैंड व कूड़ा खड्ड पर गंदगी की समस्या उठाई। मनोज जोशी ने पर्यावरणविदों पर स्वयं नियमों का उल्लंघन कर दूसरों के मामलों में टांग अड़ाने का आरोप लगाया। पान सिंह रौतेला ने झील विकास प्राधिकरण पर आरोप लगाया कि झील के संरक्षण के बजाय निर्माण उसकी प्राथमिकता में है। उन्होंने शेर का डांडा की ग्रीन बेल्ट व सर्वाधिक असुरक्षित क्षेत्र में सर्वाधिक निर्माण जारी होने की बात कही। प्रवीण शर्मा ने खुलासा किया कि 1984 से प्राधिकरण ने 1320 अवैध निर्माण चिह्नित किये हैं। खास बात यह थी कि इस सूची में शामिल कई लोग भी बैठक में अवैध निर्माणों की दुहाई दे रहे थे। डीएन भट्ट, कुंदन नेगी आदि ने फड़वालों पर गंदगी फैलाने का आरोप लगाते हुए उन्हें हटाने की मांग की। प्रो. अजय रावत ने नगर में अवैध निर्माणों पर रोक लगाने की पुरजोर मांग की। किशन लाल साह 'कोनी' ने कहा कि केवल माल रोड पर सफाई करने से काम नहीं चलेगा। उन्होंने प्राधिकरण से अवैध निर्माणों पर लगाई सील हटने का प्रश्न भी उठाया। इस मौके पर एडीएम ललित मोहन रयाल, प्राधिकरण सचिव एचसी सेमवाल, सीओ अरुणा भारती, पूर्व पालिकाध्यक्ष सरिता आर्य, मारुति साह, गिरिजा शरण सिंह खाती, राजा साह, भूपाल भाकुनी व महेश भट्ट सहित तमाम गणमान्य नागरिक मौजूद थे।

गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

वादियों की खूबसूरती पर फिदा रहे महामहिम



जागरण संवाददाता, हल्द्वानी: राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के बहुचर्चित गोवा प्रवास के बाद अचानक आम लोगों की दिलचस्पी महामहिमों के पर्यटन स्थलों पर होने वाले सरकारी /गैरसरकारी दौरे पर केंद्रित हुई है। ऐसे में यह बताना समीचीन होगा कि राज्य की वादियों पर भी अधिकांश महामहिम फिदा हो चुके हैं। कुमाऊं व गढ़वाल की खूबसूरत वादियों को नजदीक से निहारने का मोह आम लोगों की तरह ही राष्ट्रपतियों में भी दिख चुका है। आजादी के बाद से लेकर अब तक देश के 12 राष्ट्रपतियों में से दस ने यहां की सैर की है। भले ही बहाना सरकारी दौरे का रहा हो लेकिन यहां की हरी-भरी पर्वतीय श्रृंखलाओं को अपलक निहारने और मदमस्त कर देने वाली शीतल हवा लेने में महामहिम आम पर्यटक की तरह ही अभीभूत-रोमांचित होते रहे हैं। यह खुलासा खुद राष्ट्रपति सचिवालय ने किया है। हल्द्वानी निवासी डॉ. प्रमोद अग्रवाल गोल्डी द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम में मांगी गई सूचना में राष्ट्रपति सचिवालय के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी जेजी सुब्रमणियन ने अवगत कराया है कि देश के द्वितीय राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ.राधाकृष्णन, चतुर्थ राष्ट्रपति वीवी गिरि, पंचम राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद, छठें राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी, सप्तम राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, नौवें राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा, दसवें राष्ट्रपति केआर नारायण, 11वें राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम एवं वर्तमान राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने देहरादून की अधिकारिक यात्रा की है। इसके अलावा प्रभारी राष्ट्रपति/ उपराष्ट्रपति एम.हिदायतुल्लाह ने भी देहरादून की यात्रा की। जबकि वीवी गिरि, नीलम संजीव रेड्डी व ज्ञानी जैल सिंह ने नैनीताल की भी अधिकारिक यात्रा की।

नैनीताल उच्च न्यायालय में हिंदी के प्रयोग का प्रस्ताव

नैनीताल (एसएनबी)। राज्य गठन के दस साल बाद उत्तराखंड हाईकोर्ट में राष्ट्रभाषा हिंदी में कार्यवाही की अनुमति के लिए राज्य विधिज्ञ परिषद ने पहली बार प्रस्ताव पारित किया है। परिषद ने यह प्रस्ताव शासन के साथ ही मुख्यमंत्री को भेजा है। अब राज्य के "साहित्यकार" मुख्यमंत्री और उनकी सरकार पर निर्भर करेगा कि वह इस प्रस्ताव पर नोटिफिकेशन जारी करने में कितना समय लगाते हैं। 
बुधवार को उत्तराखंड राज्य विधिज्ञ परिषद के अध्यक्ष डा. महेंद्र पाल ने पत्रकारों को बताया कि परिषद की गत सात अप्रैल को हरिद्वार में आयोजित कार्यकारिणी समिति की बैठक में इस बावत प्रस्ताव पारित हुआ। लिहाजा उत्तराखंड सरकार विज्ञप्ति जारी करे कि उच्च न्यायालय इलाहाबाद की भांति उच्च न्यायालय नैनीताल में विधिक कार्यवाहियां अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी हो सके।  डा. पाल ने कहा कि उच्च न्यायालय में हिंदी भाषा का प्रयोग होने से अधिवक्ताओं के साथ ही वादकारियों को भी लाभ होगा। अन्य हिंदी भाषी राज्यों बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान व उत्तर प्रदेश के उच्च न्यायालयों में ऐसी व्यवस्था है। पूर्ववर्ती यूपी में यह व्यवस्था थी, इसलिए उत्तराखंड में स्वत: ही यह व्यवस्था लागू होनी चाहिए थी। साथ ही मुंसिफ न्यायालयों में अनुभवी अधिवक्ताओं को विशेष न्यायाधीश तथा परिवार न्यायालयों में अधिवक्ताओं की न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए विज्ञप्ति जारी की जाए। इस मौके पर परिषद के सचिव विजय सिंह, हिमांशु सिन्हा व एनएस कन्याल आदि सदस्य भी मौजूद रहे।

सोमवार, 25 अप्रैल 2011

भूमिया, ऐड़ी, गोलज्यू, कोटगाड़ी ने भी किया पलायन


विडम्बना तराई और भाबर में स्थापित हो गए पहाड़ के देवी-देवता
गणेश पाठक/एसएनबी, हल्द्वानी। अरबों खरबों खर्च करने के बाद भी पहाड़ से पलायन की रफ्तार थम नहीं पा रही है। इस पलायन में केवल मनुष्य की शामिल नहीं है, बल्कि देवी-देवता भी पहाड़ छोड़कर तराई में बस गये हैं। पहाड़ों के तमाम छोटे-बड़े मंदिर और मकान खंडहरों में तब्दील हो गये हैं, जबकि तराई और भाबर में भूमिया, ऐड़ी, गोलज्यू, कोटगाड़ी समेत कई देवताओं के मंदिर बन गये हैं। पलायन करके तराई में आए लोग पहले देवी देवताओं की पूजा अर्चना करने के लिए साल भर में एक बार घर जाते थे, लेकिन अब इस पर भी विराम लग गया है। राज्य गठन के बाद पलायन की रफ्तार तेज हुई है। पिथौरागढ़ से लेकर चंपावत तक नेपाल-तिब्बत (चीन) से जुड़ी सरहद मानव विहीन होने की स्थिति में पहुंच गई है और यह इलाका एक बार फिर इतिहास दोहराने की स्थिति में आ गया है। कई सौ साल पहले मुगल और दूसरे राजाओं के उत्पीड़न से नेपाल समेत भारत के विभिन्न हिस्सों से लोगों ने कुमाऊं और गढ़वाल की शांत वादियों में बसेरा बनाया था। धीरे-धीरे कुमाऊं और गढ़वाल में हिमालय की तलहटी तक के इलाके आवाद हो गये थे, लेकिन आजादी के बाद सरकारें इन गांवों तक बुनियादी सुविधाएं देने में नाकाम रहीं और पलायन ने गति पकड़ी। इससे पहाड़ खाली हो गये। सरकारी रिकाडरे में खाली हो चुके गांवों की संख्या महज 1065 है, जबकि वास्तविकता यह है कि अकेले कुमाऊं में पांच हजार से अधिक गांव वीरान हो गये हैं। खासतौर पर नेपाल और तिब्बत सीमा से लगे गांवों से अधिक पलायन हुआ है। लगातार पलायन से पहाड़ों की हजारों एकड़ भूमि बंजर हो गई है। पलायन की इस रफ्तार से देवी-देवताओं पर भी असर पड़ा है। शुरूआत में लोग साल दो साल या कुछ समय बाद घर जाते और देवी देवताओं की पूजा करते थे। इससे नई पीढ़ी का पहाड़ के प्रति भावनात्मक लगाव बना रहता था, लेकिन अब यह लगाव भी टूटने लगा है। इसकी वजह से हजारों की संख्या में देवी देवताओं का पहाड़ से पलायन हो गया है। अकेले तराई और भावर में तीन से चार हजार तक विभिन्न नामों के देवी देवताओं के मंदिर बन गये हैं। किसी दौर में पहाड़ों में ये मंदिर तीन-चार पत्थरों से बने होते थे, लेकिन अब तराई और भावर में इनका आकार बदल गया है। यहां स्थापित किये गए देवी देवताओं में भूमिया, छुरमल, ऐड़ी, अजिटियां, नारायण, गोलज्यू के साथ ही न्याय की देवी के रूप में विख्यात कोटगाड़ी देवी के नाम शामिल हैं। इन देवी-देवताओं के पलायन का कारण लोगों को साल दो साल में अपने मूल गांव जाने में होने वाली कंिठनाई है। दरअसल राज्य गठन के बाद पलायन को रोकने के लिए खास नीति न बनने से पिछले दस साल में पलायन का स्तर काफी बढ़ गया है। हल्द्वानी में कपकोट के मल्ला दानपुर क्षेत्र से लेकर पिथौरागढ़ के कुटी, गुंजी जैसे सरहदी गांवों के लोगों ने अपने गांव छोड़ दिये हैं। पहाड़ छोड़कर तराई एवं भावर या दूसरे इलाकों में बसने वाले लोगों में फौजी, शिक्षक, व्यापारी, वकील, बैंककर्मी, आईएएस समेत विभिन्न कैडरों के लोग शामिल हैं। पलायन के कारण खाली हुए गांवों में हजारों एकड़ कृषि भूमि बंजर पड़ गई है। इसी तरह से विकास के नाम पर खर्च हुए अरबों रुपये का यहां कोई नामोनिशान नहीं है। नहरें बंद हैं। पेयजल लाइनों के पाइप उखड़ चुके हैं और सड़कों की स्थिति भी बदहाल है। किसी गांव में दो-चार परिवार हैं तो किसी में कोई नहीं रहता। किसी दौर में इन गांवों में हजारों लोग रहा करते थे। स्कूल और कालेजों की स्थिति भी दयनीय बन गई है। कई प्राथमिक स्कूलों में एक बच्चा भी नहीं है तो किसी इंटर कालेज में दस छात्र भी नहीं पढ़ रहे हैं।

शनिवार, 23 अप्रैल 2011

सरोवरनगरी में अवैध तरीके से हो रहा नौकायन


नैनीताल (एसएनबी)। नैनी सरोवर में नौकायन के लिये सूर्योदय से सूर्यास्त का ही नियम है, किंतु तस्वीर गवाह है कि झील में देर रात्रि तक नौकायन कराया जा रहा है। ऐसी स्थिति में कभी भी किसी हादसे से इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसी स्थिति झील के बाबत किसी एक संस्था की सीधी जिम्मेदारी तय न होने के कारण भी है। लिहाजा, झील विकास प्राधिकरण, नगर पालिका, पुलिस व अन्य विभाग एक-दूसरे पर दायित्व टालते हुऐ भी जिम्मेदारी से बच निकलते हैं। उल्लेखनीय है कि बीते दो दिनों से नगर में सैलानियों की अत्यधिक भीड़-भाड़ है। नगर में आकर हर सैलानी एक बार नौकायन करना चाहता है, लिहाजा नैनी झील में नौकायन का अपना अलग चाव है। इधर झील में सूर्योदय से सूर्यास्त तक ही नौकायन करना स्वीकृत है। लेकिन तस्वीरें गवाह हैं कि झील में देर रात्रि करीब आठ बजे तक भी बिना किसी डर या अतिरिक्त सुरक्षा प्रबंधों के नौकायन किया जा रहा है। इस बावत पूछे जाने पर नगर पालिका एवं पुलिस के अधिकारियों ने पूरी तरह अनभिज्ञता जाहिर की। अलबत्ता नगर पालिका अध्यक्ष मुकेश जोशी ने आगे से पुलिस के अलावा पालिका कर्मियों को भी इस कार्य में लगाने तथा जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक मोहन सिंह बनंग्याल ने थाना व कोतवाली पुलिस को सचेत करने की बात कही।


खेल मैदान में गाड़ियां, अब कहां जाएं खेलने?
नैनीताल (एसएनबी)। सरोवर नगरी में सीजन से पहले ही वाहनों का रैला उमड़ पड़ा है। हालात यह हो गऐ हैं कि नगर का एक मात्र खेल का मैदान 'फ्लैट्स' सैलानियों के वाहनों से पट गया है। साथ ही माल रोड वाहनों पर वाहन रेंगने को मजबूर हैं, जबकि राजभवन रोड, चिड़ियाघर रोड व बिड़ला रोड जैसी संकरी सड़कों पर वाहन आगे-पीछे खिसक रहे हैं। उल्लेखनीय है कि फ्लैट मैदान में वाहन खड़े करने के बाबत बीते सप्ताह ही आईजी पुलिस द्वारा ली गई बैठक में तय हुआ था कि नगर की सूखाताल सहित अन्य सभी पार्किग भरने के बाद ही एसडीएम व सीओ स्तर के अधिकारी यहां वाहन खड़े करना आदेशित करेंगे, जबकि शनिवार को सूखाताल की पार्किग तो नहीं भरी अलबत्ता पार्किग के बाहर और फ्लैट मैदान में वाहन की कतारें लग गई हैं। यह स्थिति तब भी सुखद कही जा सकती है, क्योंकि यदि यह वाहन सड़कों पर आ जाऐं तो सड़कों पर पैदल चलना भी दूभर हो जाए।

गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

शासनादेश ताक पर रख कर बूढ़े-बीमार डॉक्टरों की भरती

गावों में रखने थे, शहरों में भर दिए, अकेले देहरादून मैं ही ११३ में से ३० डॉक्टर तैनात, कई खुद बीमार हैं डॉक्टर 

सोमवार, 18 अप्रैल 2011

सैलानियों के लिए बनेगा कंट्रोल रूम


पर्यटन सीजन में यातायात, पार्किग और बिजली-पानी की समस्याओं पर विचार
नैनीताल (एसएनबी)। आगामी पर्यटन सीजन में सरोवरनगरी में आने वाले सैलानियों के लिए खुशखबरी है। सैलानियों को अब अपनी समस्याओं के लिए अलग-अलग गुहार लगाने की जहमत नहीं उठानी पड़ेगी। पुलिस उनके लिए कंट्रोल रूम स्थापित करेगी। कंट्रोल रूम से सैलानियों को विभिन्न विभागों से संबंधित मदद उपलब्ध कराई जाएगी। प्रशिक्षित पुलिसकर्मी सैलानियों से शालीनता से व्यवहार करेंगे, ताकि सैलानी नगर की बेहतर छवि लेकर वापस जाएं। 
सोमवार को नैनीताल क्लब में कुमाऊं परिक्षेत्र के आईजी राम सिंह मीणा की अध्यक्षता में आयोजित पर्यटन संबंधी बैठक में तय किया गया कि पुलिस पर्यटकों के लिए कंट्रोल रूम स्थापित करेगी, जहां विभिन्न विभागों के अधिकारियों के फोन नंबर सहित अन्य जानकारियां उपलब्ध होंगी। सीओ एवं एसडीएम की टीम फ्लैट स्थित कार पार्किंग, मेट्रोपोल और सूखाताल पार्किग के भर जाने के उपरांत ही खेल मैदान को पार्किग के लिए खोलेगी। यह भी तय हुआ कि सीजन से पहले लोनिवि नैनी झील में गिरने वाले सभी नालों की सफाई करेगा तथा मलबा सोमवार शाम तक वन विभाग द्वारा तय न किये जाने की स्थिति में मंगोली के पास फेंका जाएगा। वर्ष भर शाम छह से आठ बजे तक बंद रहने वाली अपर माल रोड सीजन के दौरान यानी 15 मई से 15 जुलाई तक शाम साढ़े छह से साढ़े नौ बजे तक बंद रहेगी। इस दौरान बच्चे माल रोड पर स्केटिंग भी नहीं कर सकेंगे।स्कूल- कालेजों को अपने यहां छुट्टी जैसे मौकों पर संभावित भीड़-भाड़ की सूचना 48 घंटे पहले देनी होगी। बाहर से आने वाले वाहनों को सूखाताल, हनुमानगढ़ी व कैलाखान में रोककर वहां से शटल टैक्सियां चलाने पर भी चर्चा हुई। श्री मीणा ने पुलिस की ओर से सीजन से पहले हर व्यवस्था चाक- चौबंद करने के साथ ही सभी खराब पड़े सीसी कैमरों को ठीक करा लेने को कहा। डीएम शैलेश बगौली ने जिला प्रशासन द्वारा जेएनएनयूआरएम के तहत नई पार्किग विकसित करने सहित अन्य कायरे की जानकारी दी। डीएसए के महासचिव गंगा प्रसाद साह ने सीजन के लिए दीर्घकालीन नीतियां बनाने के लिए पालिका की अगुवाई में स्थाई सर्वाधिकार प्राप्त उच्च स्तरीय समिति बनाने का विचार रखा। होटलियर प्रवीण शर्मा ने नगर में अवैधानिक तौर पर चल रहे होटलों को भारत सरकार के ब्रेड एंड ब्रेकफास्ट लाइसेंस दिये जाने का विचार रखा।
(फोटो को डबल क्लिक कर बढ़ा देखा जा सकता है।)

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

नैनीताल में भारी बारिश,ओले गिरे


नैनीताल (एसएनबी)। सरोवरनगरी में बीते तीन दिनों से मौसम की आंख-मिचौली के क्रम में बृहस्पतिवार को मूसलाधार बारिश हुई, इससे नगर में अपराह्न में जनजीवन बुरी तरह अस्त व्यस्त हो गया। बरसात के दिनों के बाद से पहली बार नाले उफना आये। माल रोड पर सीवर लाइन भी उफनने लगी, जिससे टनों सीवर की गंदगी और नालों के माध्यम से मलवा झील में पहुंच गया। बारिश के साथ ओलावृष्टि भी हुई। बेमौसम आई बारिश व ओलावृष्टि से नगर में पारा भी लुड़क गया। नगर में बृहस्पतिवार को हालांकि सुबह की शुरूआत अच्छी धूप से हुई, लेकिन दिन चढ़ने के साथ बादलों ने आसमान में डेरा डाल दिया। अपराह्न ढाई बजे के करीब से पहले हल्की बूंदा शुरू हुई और फिर बारिश तेज होती चली गई। देर शाम तक मूसलाधार बारिश हुई, इससे कई घंटों नगर की बिजली भी गुल रही 

शनिवार, 9 अप्रैल 2011

नैनीताल में सैलानी हो गए सीएम डा. निशंक



देर रात्रि माल रोड पर टहलने निकले निशंक, नैनी झील के घटते जल स्तर पर जताई चिंता, स्थानीय लोगों से पूछीं समस्याएं
नैनीताल (एसएनबी)। मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने शुक्रवार को नैनीताल में रात्रि विश्राम का उपयोग सैलानी के रूप में किया। देर रात वह कुछ पार्टी नेताओं और प्रशासनिक अफसरों के साथ माल रोड की सैर पर निकल पड़े। इस दौरान उन्होंने नगरवासियों, दुकानदारों, होटल-रेस्टोरेंट स्वामियों के साथ सैलानियों से बात कर नगर में पर्यटन की वर्तमान स्थिति और संभावनाओं पर 'फीड बैक' ली। अंधेरा होने के बावजूद सीएम की नजरों में नैनी झील का घटता जलस्तर आ गया, उन्होंने डीएम से इस हेतु कार्ययोजना बनाने को कहा। डा. निशंक तल्लीताल नाव घाट पर झील के करीब आए और घटते जलस्तर पर चिंता जताई। डीएम शैलेश बगौली ने बताया कि गत वर्ष से झील का जलस्तर करीब दो फीट गिरा है। जलस्तर गिरने की यह दर दर गत दो-तीन वर्षो जैसी ही है। नैनी झील में प्रमुख जल संग्रहण क्षेत्र सूखाताल को दीर्घकालीन लाभ के लिए वषर्भर भरी रहने वाली झील में तब्दील करने के प्रयास चल रहे हैं, वहीं झील को जलस्तर और गिरने पर झील से हो रही वाल्व आदि से किसी भी प्रकार की लीकेज को रोकने के कार्य किए जाएंगे। सीएम का कहना था कि नैनी झील के संरक्षण के लिए सरकार पूरी मदद करेगी, डीएम कार्ययोजना बनाएं। इस दौरान अधिकांश सैलानियों ने नगर को अन्य पर्यटन स्थलों के मुकाबले अधिक साफ- स्वच्छ बताया, जिस पर सीएम ने संतोष जताया। सीएम के दौरे को लेकर लोगों में काफी उत्साह था। लोगों को उम्मीद थी कि डा. निशंक सरोवरनगरी की समस्याओं के समाधान के लिए घोषणाएं अवश्य करेंगे। विकास यात्रा और आसन्न चुनावों के मद्देनजर लोगों की आशाएं ठीक ही थीं। लेकिन मुख्यमंत्री ने ऐसी कोई घोषणा नहीं की, और सैर-सपाटा ही किया।  सीएम के नगर भ्रमण में भाजपा जिलाध्यक्ष भुवन हरबोला, रईस अहमद, कुंदन बिष्ट, संतोष साह सहित कई भाजपा नेता एवं मल्लीताल कोतवाल भूपेंद्र सिंह धौनी आदि लोग शामिल थे।

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

52 करोड़ से स्थापित होगा भीमताल कैम्पस


कुमाऊं विवि ने शासन को भेजा प्रस्ताव पांच किमी दायरे में स्थापित होगा नया परिसर कई रोजगारपरक संकायों के अलावा स्टेडियम और आडिटोरियम बनाने का प्रस्ताव शामिल

नवीन जोशी, नैनीताल। गत वर्ष की गई मुख्यमंत्री की घोषणा पर कुमाऊं विवि का भीमताल में तीसरा परिसर 52.1 करोड़ रुपये से स्थापित होगा। प्रमुख सचिव उच्च शिक्षा के पत्र के प्रत्युत्तर में कुमाऊं विवि ने शुक्रवार को शासन को इस हेतु अपना प्रस्ताव भेज दिया है। नया परिसर भीमताल के औद्योगिक क्षेत्र, सौनगांव व आड़ूगांव में पांच किमी के दायरे में स्थापित होगा। कुमाऊं विवि की मंशा भीमताल के प्रस्तावित परिसर को रोजगारपरक पाठय़क्रमों का हब बनाने की। यहां ला फैकल्टी, जियो इंफाम्रेटिक्स, पर्यटन व पत्रकारिता जैसे नए पाठय़क्रम शुरू किए जाएंगे, जबकि एमबीए व बायोटैक्नालॉजी जैसे विभाग पहले ही यहां चल रहे हैं। यहां स्टेडियम, ऑडिटोरियम और जिम्नेजियम बनाने के प्रस्ताव भी किए गए हैं। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री डा.रमेश पोखरियाल निशंक ने गत वर्ष आठ जनवरी 2010 को भीमताल में कुमाऊं विवि के बायोटैक्नोलाजी विभाग के शुभारंभ पर भीमताल में नया परिसर स्थापित करने की घोषणा की थी। इसकी फाइल अब चल पड़ी है, और चुनावी वर्ष होने के कारण परिसर के अतिशीघ्र स्थापित होने की उम्मीद लगाई जा रही है। इसका अंदाजा इससे भी लगता है कि प्रमुख सचिव ने कुविवि को तीन दिन के भीतर नए परिसर का औचित्यपूर्ण प्रस्ताव अपनी संस्तुति के साथ भेजने को कहा था, जिस पर विवि के कुलपति प्रो.वीपीएस अरोड़ा ने अपनी प्रबल संस्तुति सहित प्रस्ताव शुक्रवार को शासन को भेज दिया है। प्रस्ताव में भीमताल औद्योगिक क्षेत्र में बंद पड़ी फैक्ट्रियों की अधिकाधिक भूमि अधिग्रहण करने को कहा है। इस हेतु 20 करोड़ रुपये मांगे गये हैं। इसके अतिरिक्त 27.1 करोड़ रुपये नए परिसर हेतु भूमि, भवन, आडिटोरियम, प्रशासनिक भवन, जिम्नेजियम, फर्नीचर, साज-सज्जा, पुस्तक व जर्नल क्रय, मिनी स्वास्थ्य केंद्र निर्माण आदि के लिए तथा 29 नियमित एवं 10 संविदा पर चतुर्थ श्रेणी कर्मियों के वेतन पर पांच वर्ष के खच्रे हेतु चार करोड़ रुपए व आकस्मिक व्यय हेतु एक करोड़ रुपये की आवश्यकता जताई गई है। कुलपति प्रो. अरोड़ा ने बताया कि हल्द्वानी महाविद्यालय व नैनीताल परिसर में क्षमता पूरी तरह भर जाने व आगे प्रसार की संभावनाओं को देखते हुऐ नए परिसर की मांग की गई थी, जो अब पूरी होने को है। उन्होंने कहा कि नये परिसर को रोजगारपरक पाठय़क्रमों का केंद्र बनाने की योजना है। भीमताल परिसर सुविधायुक्त होगा।
औद्योगिक क्षेत्र मिलने पर संशय
नैनीताल। कुमाऊं विवि ने हालांकि विवि में नए परिसर के लिए भीमताल के औद्योगिक क्षेत्र में बंद पड़ी इकाइयों को अधिग्रहित कर दिए जाने की मांग की है, लेकिन ऐसा जल्द संभव प्रतीत नहीं होता। कारण यह कि औद्योगिक क्षेत्र अभी भी पूर्ववर्ती उत्तर प्रदेश के यूपीएसआईडीसी से राज्य की सुपुर्दगी में ही नहीं आया है। दूसरे बाद में औद्योगिक भूमि का 'लैंड यूज' बदलने में भी समस्याएं आ सकती हैं।

बुधवार, 6 अप्रैल 2011

कड़ी परीक्षा लेगा कैलाश मानसरोवर का सफर



यात्रा मार्ग की लम्बाई 36 किलोमीटर बढ़ी एक अतिरिक्त यात्रा पड़ाव और यात्रावधि में दो दिन का इजाफा, कुमंविनि भी बढ़ा चुका है किराया
नवीन जोशी, नैनीताल।लगता है कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं की भोले बाबा इस बार कड़ी परीक्षा ले रहे हैं। यात्रा में पैदल दूरी के 36 किमी बढ़ जाने और एक अतिरिक्त यात्रा पड़ाव और यात्रा अवधि दो दिन बढ़ने के बाद गत दिनों यात्रा के भारतीय क्षेत्र में आयोजक संस्था कुमाऊं मंडल विकास निगत द्वारा प्रति व्यक्ति यात्रा किराया 24,500 से बढ़ाकर 27 हजार रुपये कर दिया गया है। अब चीन सरकार ने किराया बढ़ाकर यात्रियों के लिए और संकट पैदा कर दिया है। 
उल्लेखनीय है कि मांगती से गाला के बीच के मार्ग पर निर्माण के कारण केएमवीएन को इस बार यात्रा मार्ग बदलना पड़ा है। इस कारण यात्रा अपने प्राचीन मार्ग पर लौटी है, लेकिन साथ ही नया यात्रा पड़ाव सिरखा बनने से पैदल यात्रा 36 किमी लंबी हो गई है। यात्रा की अवधि भी दो दिन बढ़ गई है। चीन व भारत के यात्रा किराया बढ़ाने से व्यय भार बढ़ गया है। बीते वर्ष में डालर की भारतीय मुद्रा के मुकाबले कीमत बढ़ने का असर भी यात्रा के खच्रे पर पड़ना तय है। बीते एक वर्ष में डालर की कीमत सात से आठ रुपये तक बढ़ी है, इस प्रकार किराये में निगम द्वारा की गई ढाई हजार रुपये की वृद्धि तथा चीन सरकार द्वारा की गई 50 डालर की वृद्धि से भारतीय यात्रियों की जेब पर करीब 10 हजार रुपये का अतिरिक्त भार पड़ने जा रहा है। 

चीन ने बढ़ाया कैलाश मानसरोवर यात्रा का किराया
नैनीताल (एसएनबी)। कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रियों को इस बार अधिक रकम चुकानी होगी। कुमाऊं मंडल विकास निगम के बाद चीन सरकार ने भी यात्रा का किराया प्रति यात्री 50 डालर बढ़ा दिया है। इस प्रकार यात्रियों को चीन सरकार को 700 डालर की बजाय 750 डालर चुकाने होंगे। चीन सरकार की मंशा किराया 850 डालर करने की थी। गत दिवस भारत एवं चीन के प्रतिनिधिमंडल की दिल्ली में हुई वार्ता एवं भारत द्वारा यात्रा के दौरान चीन में भारतीयों को खान- पान और शौचालय संबंधी समस्याओं की पैरवी करने के बाद चीन को 750 डालर प्रति यात्री किराया रखने पर सहमत होना पड़ा। केएमवीएन के मंडलीय प्रबंधक-पर्यटन डीके शर्मा ने बताया कि चीन के उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों ने यात्रा के दौरान भारतीय यात्रियों को बेहतर सुविधाएं देने का भी वादा किया है।

यात्रा के लिए चुने गए 960 लोग
नैनीताल। महंगाई, किराया, पैदल यात्रा की दूरी और यात्रा अवधि बढ़ने के बावजूद भोले के धाम के लिए श्रद्धालुओं का उत्साह बढ़ता ही जा रहा है। इस वर्ष यात्रा के लिए करीब 2300 लोगों ने आवेदन किया था। छंटनी में इनमें से 1778 आवेदन सही पाए गए। बुधवार को नई दिल्ली में विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने इनमें से 960 आवेदनों को 'रेंडम' तरीके से चुनकर उन भाग्यशालियों की सूची में शामिल कर लिया है, जिन्हें इस वर्ष यात्रा पर जाने का मौका मिलेगा। केएमवीएन के मंडलीय प्रबंधक-पर्यटन डीके शर्मा ने बुधवार को 'राष्ट्रीय सहारा' को बताया कि आज ही दिल्ली में साउथ ब्लॉक स्थित विदेश विभाग के कार्यालय में विदेश मंत्री श्री कृष्णा ने कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले 960 भाग्यशाली श्रद्धालुओं का चयन किया। यात्री एक जून से प्रारंभ हो रही यात्रा के 16 दलों में शामिल होंगे। इनके अतिरिक्त प्रति दल 45 श्रद्धालुओं को प्रतीक्षा सूची में रखा गया है। साथ ही तय हो गया है कि यात्रा के प्रत्येक दल में 60 यात्री शामिल होंगे। पहला दल एक जून को अल्मोड़ा पहुंच जाएगा। अगले दिन यह दल धारचूला होते हुए पांगू में रात्रि विश्राम करेगा। आगे 13 किमी की पैदल यात्रा कर अगले दिन नारायण आश्रम होते हुए सिरखा, सिरखा से 14 किमी पैदल चलकर गाला, गाला से 21 किमी चल कर बूंदी, बूंदी से नौ किमी चलकर कालापानी, पुन: अगले दिन नौ किमी चलकर नाभीढांग, फिर नौ किमी चलकर लिपुपास तथा अगले दिन तीन किमी चलकर चीन सीमा में प्रवेश करेगा। निगम के प्रबंध निदेशक चंद्रेश कुमार एवं अध्यक्ष सुरेंद्र जीना ने निगम को यात्रा के लिए पूरी तरह तैयार व यात्रियों को बेहतरीन सुविधाएं देने के लिए संकल्पबद्ध बताया है। बताया कि नए शिविर सिरखा में युद्धस्तर से तैयारियां की जा रही हैं।

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

जलजलों से सुरक्षित नहीं पहाड़


वैज्ञानिकों ने कहा कि फिलहाल भूकंप से डरने की जरूरत नहीं मगर रहें सावधान
नवीन जोशी नैनीताल। भारत-नेपाल सीमा पर काली नदी के पार आए भूकंप के झटके से कई आशंकाओं को बल मिला है। हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रदेशवासियों को भूकंप के ताजा झटकों के मद्देनजर फिलहाल डरने की  जरूरत नहीं है, मगर उत्तराखंड में इस भूगर्भीय खतरे से इनकार नहीं किया जा सकता। प्रदेश से गुजरने वाले दो प्रमुख भ्रंशों 'मेन सेंट्रल थ्रस्ट' व 'नार्थ अल्मोड़ा थ्रस्ट' की भूगर्भीय हलचल खतरे की ओर इशारा कर रही है। 
हिमालय उत्तरी सिरे पर एशियाई और तिब्बती भूगर्भीय के प्लेटों के बीच टकराव हो रहा है। एशियाई प्लेट प्रतिवर्ष 30 से 40 मिमी की दर से तिब्बती प्लेट में समा रही है। इससे भारी ऊर्जा एकत्र हो रही है। उत्तराखंड में तीन बड़े भूगर्भीय भ्रंश थ्रस्ट मेन सेंट्रल थ्रस्ट यानी एमसीटी, नार्थ अल्मोड़ा थ्रस्ट यानी एनएटी और मेन बाउंड्री थ्रस्ट यानी एमबीटी मौजूद हैं। इनमें पृथ्वी के भीतर उत्पन्न ऊर्जा के कारण हलचल होती है। एमसीटी अरुणांचल और नेपाल से होता हुआ प्रदेश के धारचूला और मुनस्यारी से कपकोट और गढ़वाल में चमोली-उत्तरकाशी तक जाता है। एनएटी पिथौरागढ़ के rameshwar घाट से सेराघाट होता हुआ अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट से निकलता है जबकि एमबीटी चंपावत के चल्थी से नैनीताल, रामनगर होता हुआ हरिद्वार, देहरादून के उत्तर से होता हुआ पंजाब की ओर निकल जाता है। काफी समय से एमसीटी व एनएटी में हलचल जारी है, जबकि एमबीटी कुछ हद तक शांत है। इसी आधार पर उत्तराखंड के हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और नैनीताल जिलों को भूकंप के दृष्टिकोण से संवेदनशील जोन चार में तथा शेष जिलों को अति संवेदनशील जोन पांच में रखा गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि छोटे बड़े भूकंपों से पुन: जल्द बड़े भूकंपों के आने की संभावना कम तो होती है, पर खत्म नहीं होती।


भूकंपमापी केंद्र अगले महीने तक
नैनीताल। मालूम हो कि कुमाऊं मंडल के विभिन्न केंद्रों से जुड़ा मुख्यालय स्थित भूकंप मापी केंद्र करीब डेढ़ वर्ष पूर्व बिजली गिरने से खराब हो गया था। इसके स्थान पर अब भारत सरकार का पृथ्वी विज्ञान विभाग एक करोड़ रुपये लागत का नया भूकंप मापी केंद्र लगने जा रहा है। प्रस्तावित केंद्र के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर प्रो. चारु चंद्र पंत ने बताया कि इसके उपकरण दिल्ली पहुंच चुके हैं। अगले माह तक इसके नगर में स्थापित होने की उम्मीद है।

रविवार, 3 अप्रैल 2011

अधिक बारिश के बावजूद घट रहा झील का जलस्तर


विभाग के अनुसार बीते वर्षों जैसा ही है जलस्तर घटने का 'ट्रेंड'
नवीन जोशी, नैनीताल। सरोवरनगरी का हृदय कही जाने वाली नैनी झील में जल का स्तर गत वर्षों के मुकाबले इस वर्ष अधिक बारिश होने के बावजूद लगातार घटता जा रहा है, फलस्वरूप अप्रैल माह के शुरू में ही झील के किनारे कई स्थानों पर डेल्टा बनने की शुरूआत होने लगी है। 
आंकड़ों से ही सीधे बात शुरू करें तो आज की तिथि यानी दो अप्रैल तक नगर में जनवरी माह से 140.71 मिमी वष्रा हुई, और झील का जलस्तर 3.15 फीट है जबकि दो अप्रैल 10 तक बारिश 53.34 मिमी ही होने के बावजूद जलस्तर 4.75 फीट था। इसी तरह वर्ष 09 में बारिश 46.23 मिमी होने के बावजूद जलस्तर 5.44 फिट और 08 में मात्र 31.75 मिमी बारिश के बावजूद झील 6.4 फिट तक भरी थी लेकिन इससे इतर बीते तीन वर्षों में इस अवधि के एक सप्ताह के आंकड़ों के आधार पर ही लोनिवि के अभियंता डीसी बिष्ट का कहना है कि बीते वर्षों की तरह ही इस वर्ष भी प्रतिदिन 0.5 इंच की गति से झील का जलस्तर लगातार गिर रहा है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1977 में अप्रैल में झील का जलस्तर 3.3 फीट, 78 में 2.95 फीट, 80 में मात्र 1.5 फिट, 85 में 2.5 फिट जितना कम रहा है, जबकि अगले दशक के 1990 में 9.48 फिट, 91 में 9.05 फिट भी रहा है। इधर वर्ष 2003 में भी झील का जलस्तर 8.7 फिट था। झील के घटते जलस्तर को उस वर्ष हुई बर्फबारी से भी जोड़ा जाता है, लंबी अवधि में झील के जलस्तर के घटने-बढ़ने को कुछ लोग सामान्य प्रक्रिया भी मानते हैं, हालांकि इस बात पर सभी एकमत हैं कि नगर में साल दर साल पानी का बढ़ता खर्च झील के जलस्तर को घटाने में प्रमुख भूमिका निभा रहा है। खासकर इस वर्ष बरसात के बाद से बलियानाले में लगातार हो रहे पानी के रिसाव को इस वर्ष जलस्तर घटने का प्रमुख कारण माना जा रहा है।
इसे यहाँ और यहाँ  पेज 10 पर भी देख सकते हैं।