नवीन जोशी, नैनीताल। पितृत्व विवाद में फंसे प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के डीएनए जांच में त्रुटि होने और एक लाख मामलों में से एक मामले में त्रुटि की संभावना जताकर स्वयं को निदरेष साबित करने की दलील को फारेंसिक विशेषज्ञ स्वीकार नहीं कर रहे हैं। नैनीताल में आयोजित देशभर के फारेंसिक मेडिसिन व टॉक्सीकोलॉजी विज्ञान विशेषज्ञों की 12वीं अखिल भारतीय कांग्रेस में यह मुद्दा अनेक विशेषज्ञों की जुबान पर था। अधिकतर का कहना था कि इस विशुद्ध वैज्ञानिक तकनीक को तकरे के आधार पर गलत नहीं ठहराया जा सकता। वहीं एम्स दिल्ली की वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं डीएनए प्रयोगशाला की प्रभारी डा. अनुपमा रैना ने भी कहा तिवारी द्वारा इस मामले में दिया जा रहा तर्क बेतुका है।
उन्होंने बताया कि केवल एक निषेचित अंडे के टूटकर दो भ्रूण के रूप में विकसित होने वाले दो जुड़वा भाइयों या जुड़वां बहनों का डीएनए समान हो सकता है जबकि सामान्यतौर पर जुड़वां पैदा होने वाले भाई-बहन अथवा दो से अधिक बच्चों के पैदा होने की स्थिति में भी (उनके अलग-अलग निषेचित अंडों से विकसित होने की वजह से) डीएनए समान नहीं होते। शनिवार को नगर के सूखाताल स्थित टीआरएच में डा. रैना ने एक भेंट में बताया कि डीएनए से किसी भी व्यक्ति की सौ फीसद सही पहचान होती है। दो लोगों के डीएनए नमूने मिलने की संभावना बेहद न्यूनतम (100 बिलियन यानी 10 करोड़ मामलों में ही कभी गलती से एक) हो सकती है। बेटे के डीएनए से पितृ पक्ष और बेटी के डीएनए से मातृ पक्ष की पीढ़ियों और उनके मूल के साथ ही व्यक्ति की उम्र, लिंग आदि की जानकारी भी आसानी से पता लगाई जा सकती है। उन्होंने बताया कि देश के चर्चित प्रियदर्शिनी मट्टू और जेसिका लाल हत्याकांडों की गुत्थियां डीएनए जांचों से ही सुलझी हैं। केदारनाथ में विशेषज्ञ डीएनए नमूने लें तो बेहतर : केदारनाथ की त्रासदी में प्रदेश सरकार द्वारा अज्ञात व सड़े-गले शवों के डीएनए नमूने लिये जाने के बाबत पूछे जाने पर डा. अनुपुमा रैना का कहना है कि सामान्यत: पुलिसकर्मी डीएनए नमूने लेने में सक्षम नहीं होते। विशेषज्ञों को ही नमूने लेने चाहिए। केदारनाथ जैसे ठंडे स्थानों पर जमीन में दबे शवों के तीन-चार माह तक भी डीएनए नमूने लिए जा सकते हैं।
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