नैनीताल में मिली सैकड़ों वर्ष पुरानी पांडुलिपि, जिसमें बताया गया है पंचतत्वों से नक्षत्रों का संबंध
नवीन जोशी नैनीताल। भारतीय धार्मिक और नक्षत्र विज्ञान के ग्रंथों में मनुष्य की जन्मतिथि व समय से निर्धारित होने वाली राशियों का मानव शरीर के मुख्य घटक पंचतत्वों-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश से संबंध बताया गया है। यहां एक ऐसी सैकड़ों वर्ष पुरानी पांडुलिपि प्रकाश में आई है, जिसमें पहली बार नक्षत्रों और पंचतत्वों के बीच के संबंध बताने के साथ ही इसके माध्यम से मनुष्य के जीवन और उसकी प्रकृति में सुधार करने के तरीके बताए गए हैं। रत्नमाला नाम के इस ग्रंथ पर यदि विस्तृत शोध हो तो भारतीय नक्षत्र विज्ञान को नए आयाम दे सकता है। कुमाऊं विवि के डीएसबी परिसर के संस्कृत विभाग में वर्षो से पड़ी "रत्नमाला" नाम की पांडुलिपि मिली है। इसका अध्ययन एवं राष्ट्रीय पांडुलिपि संरक्षण मिशन के तहत संरक्षण कर रहे डा. सोमबाबू शर्मा बताते हैं कि इस पांडुलिपि में पहली बार नक्षत्रों और पंचतत्वों का संबंध वैज्ञानिक आधार के साथ बताया गया है। संस्कृत में श्लोक एवं संस्कृतिहंदी मिश्रित व्याख्या रूप में लिखी गई इस पांडुलिपि में सभी 28 नक्षत्रों के पंचतत्वों से संबंध और उनके आधार पर मानव जीवन को बेहतर बनाने के उपाय बताए गए हैं। उदाहरणार्थ, सर्वाधिक बुरे बताए जाने वाले मूल नक्षत्र को मघा व अश्लेषा के साथ अग्नि तत्व से तथा पुनर्वसु, हस्त, अश्लेषा, मृगशिरा, रेवती, अनुराधा व ज्येष्ठा के साथ वायु तत्व से संबंधित बताया गया है। अग्नि तत्व से संबंधित जातक जल तत्व से निकटता दिखाकर स्वयं का जीवन सुधार सकते हैं, जबकि इसके उलट सामान्य मान्यता के अनुसार मूल नक्षत्र के लोग भगवान शनि की पूजा करते हुए अग्नि को अधिक भड़काते हुए तेल के दीपक जलाते हैं। वहीं जल तत्व से संबंधित जातक पानी से दूर रहकर तथा दीपक जलाकर व हवन, यज्ञ आदि कर अपना जीवन बेहतर कर सकते हैं। डा. शर्मा बताते हैं कि पांडुलिपि में नक्षत्रों को रत्नों की तरह महत्वपूर्ण बताते हुए इनकी विस्तृत व्याख्या की गई है, किसी अन्य पुस्तक में अब तक उल्लेखित न किए गए अविजित नाम के नक्षत्र का भी उल्लेख है, जिसका प्रयोग समस्या का और कोई समाधान न होने की दशा में किया जाता है, साथ ही इसमें 28 योगिनियों का भी उल्लेख है। वह कहते हैं कि विस्तृत शोध किया जाए तो यह खोज नक्षत्र विज्ञान को नई दिशा दे सकती है। उल्लेखनीय है कि मानव शरीर के बारे में कहा जाता है कि इसकी रचना सृष्टि के रचयिता ब्रrा ने पंचतत्वों की मदद से की थी। मनुष्य इन्हीं पंचतत्वों से मिलकर बनता है और आखिर इन्हीं में मिल जाता है। मनुष्य अपने जीवन में भी इन पंचतत्वों से साम्य बनाता हुआ चलता है। मनुष्य के इन पंचतत्वों से संबंधों को धार्मिक ग्रंथों के साथ नक्षत्र विज्ञान में राशियों से जोड़ा गया है। उदाहरण के लिए कर्क व मीन राशि के जातकों को जल तत्व से, वृष, सिंह आदि राशियों को पृथ्वी तत्व से जोड़ा गया है। इस प्रकार कर्क व मीन राशि के जातक जल की तरह चंचल व अस्थिर प्रकृति के होते हैं तो वृष व सिंह राशि के जातक अडिग व ठोस निर्णय लेने वाले माने जाते हैं। नक्षत्र विज्ञान में 28 नक्षत्र माने जाते हैं। जन्म पत्रिकाओं में मनुष्य की राशियों के साथ ही नक्षत्रों का भी जिक्र प्रमुखता से होता है। चूंकि इनकी संख्या अधिक है, इसलिए इनके अध्ययन से मनुष्य की प्रकृति, भविष्य आदि के बारे में अधिक सटीक भविष्यवाणियां की जा सकती हैं।
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