रविवार, 21 अप्रैल 2013

प्रत्याशियों के साथ चुनाव चिह्नों के बीच भी चल रही जंग


"हाथ" को सबका साथ तो "फूल" को झील में खिलने की उम्मीद
नैनीताल (एसएनबी)। यूं हाथ तो सभी के पास होता है, और बिना हाथ के कोई काम नहीं चल सकता, लेकिन यहां "हाथ" सबका साथ मांग रहा है। वहीं ˜कमल का फूल" सामान्यतया कीचड़ या दलदली जगह पर खिलता है, लेकिन यहां उसे नैनी झील में खिलने की उम्मीद है। जी हां, यहां बात आम हाथ या कमल के फूल की नहीं वरन निकाय चुनाव के दौरान हर चुनाव की तरह एक बार खासकर राजनीतिक दलों की जुबान पर चढ़ने वाले चुनाव चिह्नों की ही कर रहे हैं, लेकिन एक अलग नजरिए के साथ। सरोवरनगरी की अति महत्वपूर्ण एवं अपनी स्थापना के साथ ही तत्कालीन नॉर्थ वेस्ट प्रोविंस और अब देश की दूसरी सबसे प्राचीन नगरपालिका कहे जाने वाले नगर में जब अधिकांश राजनीतिक दलों के साथ ही निर्दलीय भी निर्दलीय प्रत्याशी कम जाने- पहचाने हैं। साथ ही खासकर निर्दलीय प्रत्याशियों के समक्ष अपने साथ ही अपने चुनाव चिह्न को चुनाव की तिथि तक मतदाताओं को याद दिलाने की दोहरी समस्या है। ऐसे में उनके समर्थक अपने प्रत्याशियों के बजाए उनके चुनाव चिह्नों से ही जनता को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। मसलन कांग्रेस समर्थक "हाथ" के बिना तो वोट भी न डाले जाने की समस्या बताकर सब कुछ भूलकर "हाथ" पर ही मुहर लगाने की गुहार लगा रहे हैं, तो  भाजपा के प्रचारक नैनी झील में विकास का ˜कमल" खिलवाने के लिए मदद मांग रहे हैं। इसी तरह बाल्टी चुनाव चिह्न वाले निर्दलीय प्रत्याशी याद दिला रहे हैं कि पिछली बार वोटरों ने ˜बाल्टी" भर कर मुकेश जोशी को पालिकाध्यक्ष बनवाया था। लिहाजा इस बार बाल्टी वोटों से भर दें। गुड़िया चुनाव चिह्न के प्रत्याशी समर्थकों को दिल्ली की घटना के बाद बिना किए ही प्रचार मिलने का भरोसा बन रहा है। अन्य निर्दलीय प्रत्याशी अपने स्वयं को जमीन से जुड़ा बताते हुए मिट्टी की बनी ˜ईट" से पालिका में विकास की नींव रखने की बात कर रहे हैं, तो अन्य पालिका में ˜मोमबत्ती" जलाकर रोशनी करने की उम्मीद कर रहे हैं। कप-प्लेट, केतली, बंगला व वायुयान जैसे चुनाव चिह्नों वाले प्रत्याशियों के पास अपने-अपने समझाने के तरीके हैं। निर्दलीय चुनाव लड़ने के बावजूद चुनाव चिह्नों से प्रत्याशियों के संबंध जुड़ जाने के प्रसंग हैं। एक प्रत्याशी पिछले निकाय चुनाव में बंगला चुनाव चिह्न के साथ चुनाव जीते थे, इस बार उनके साथ ही उनकी पत्नी भी दूसरे वार्ड से सभासद प्रत्याशी के लिए चुनाव मैदान में है, और दोनों के चुनाव चिह्न बंगला ही हैं। इसी तरह अन्य भी अनेक प्रत्याशी हैं, जिन्होंने पिछली बार चुनाव जीतने पर पुराने चिन्ह ही हासिल किए हैं, जबकि हारने वालों ने चुनाव चिह्न भी बदल डाले हैं। वहीं विरोधी प्रत्याशियों के चुनाव चिह्नों को लेकर दुष्प्रचार की कमी नहीं है। कोई दूसरे की मोमबत्ती बुझाने अथवा प्रत्याशी के सिर पर ही नारियल या ईट फोड़ने पर उतारू है तो अन्य को विरोधी की बाल्टी में छेद भी खूब नजर आ रहे हैं। बहरहाल, इस तरह सामान्यतया अब तक नीरस चल रहा चुनाव प्रचार थोड़ा-बहुत रोचक जरूर हो गया है। 

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