Uttarakhand Culture लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Uttarakhand Culture लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

बड़े परदे पर आयी राजुला-मालूशाही की प्रेम कहानी

देश के प्रमुख महानगरों व थियेटरों में शुरू होने वाली पहली फिल्म होगी नगर के अनिल घिल्डियाल और अभिनेता हेमंत पांडे हैं प्रमुख भूमिका में
नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश की प्रसिद्ध प्रेमकथा राजुला-मालूशाही पर आधारित फिल्म राजुला शुक्रवार से देश के महानगरों के प्रमुख पीवीआर सिनेमाघरों में शुरू होने जा रही है। प्रदेश से जुड़ी फिल्मों के मामले में इसे पहला और ऐतिहासिक अवसर बताया जा रहा है। फिल्म में प्रदेश की लोक भाषाओं- कुमाउनीं व गढ़वाली के साथ ही हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा का प्रयोग भी किया गया है। इस फिल्म में नगर के कलाकार अनिल घिल्डियाल के साथ ही सिने कलाकार हेमंत पांडे प्रमुख भूमिका में हैं। फिल्म राजुला में मुख्य खलनायक- मथुरा मामा का किरदार निभा रहे घिल्डियाल ने फिल्म की कहानी का खुलासा करते हुए बताया कि फिल्म में गढ़वाल की पृष्ठभूमि से जुड़ा एवं इंग्लैंड से पढ़ाई कर लौटा नायक दिल्ली में राजुला- मालूशाही नाटक देखते हुए प्रदेश की इस अप्रतिम प्रेमकथा पर शोध करने निकलता है। वहीं कुमाऊं की रहने वाली नायिका भी इसी प्रेम कथा पर अलग से शोध कर रही है। संयोग से दोनों मिल जाते हैं और शोध करते हुए दोनों में राजुला- मालूशाही की तरह ही प्रेम हो जाता है और वह फिल्म के कई दृश्यों में राजुला-मालूशाही के ऐतिहासिक किरदारों में प्रवेश करते हुए उस दौर की सांस्कृतिक झलक को प्रस्तुत करते जाते हैं। इस तरह दिल्ली के साथ नैनीताल से मुन्स्यारी तक फिल्माई गई यह फिल्म प्रदेश के पर्यटन, स्थापित्य एवं लोक संस्कृति की झलक पेश करती है। इसके साथ ही मनुष्य की संवेदनशीलता के जाति, धर्म, पंथ और क्षेत्र की सीमाओं से कहीं दूर होने का संदेश भी देती है। फिल्म का निर्माण हिमाद्रि प्रोडक्शन के लिए रमा उप्रेती ने निर्देशक नितिन उप्रेती, कहानीकार नितिन कुमार व मनोज चंदोला आदि के साथ मिलकर किया है। बताया गया है कि गत दिवस मुंबई में आयोजित फिल्म राजुला के प्रीमियर शो को बॉलीवुड से उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली हैं। 

रविवार, 13 अक्तूबर 2013

'दास' परंपरा के कलाकारों का नहीं कोई सुधलेवा


नैनीताल (एसएनबी)। सदियों से प्रदेश की लोक संस्कृति को समाज की उलाहना के बावजूद सहेजे हुए 'दास' परंपरा के कलाकारों की राज्य बनने के बाद भी किसी ने सुध नहीं ली। राज्य सरकार के उनकी कला को संरक्षित करने के दावे भी ढपोल शंख ही साबित हुए। बावजूद वह अब भी इस परंपरा को निभाए जा रहे हैं, और आगे की पीढ़ी को भी इसे थमाने की कोशिश है, लेकिन सशंकित भी हैं कि ऐसा कर भी पाएंगे या नहीं। 
नगर के पाषाण देवी मंदिर में इन दिनों नवरात्र के मौके पर रोज दूरस्थ बागेश्वर जनपद के रीमा क्षेत्र के जारती गांव निवासी दास परंपरा के कलाकार अनीराम व उनके भाई रमीराम अपनी दूसरी पीढ़ी के बेटों सुभाष, हरीश व ह्यात के साथ जमे हुए हैं, और रोज सुबह तड़के से लेकर अलग- अलग समयों पर अपनी विशिष्ट पोषाक के साथ गले में बड़े घुंघरुओं का छल्ला डालकर विजयसार (ढोल, दमुवा, नगाड़ा व भौंकर के समन्वय) पर नौबत (सुबह चार बजे देवताओं के स्नान की पूजा के समय का विशिष्ट संगीत) तथा निराजन (देवताओं के भोग के समय का अलग संगीत) आदि बजाते हुए अपना योगदान दे रहे हैं। रमी राम बताते हैं, विजयसार के साथ देवताओं के आह्वान का यह कार्य उन्हें विरासत में मिला है। अपने गृह क्षेत्र स्थित मूल नारायण के मंदिर में यह उनकी रोज की दिनर्चया का हिस्सा है। लोक संस्कृति में बिना दासों के द्वारा संगीत का यह योगदान दिए बिना देवताओं की दैनिक पूजा संभव ही नहीं है। बचे समय में शादी-बारात में भी जाते हैं, लेकिन बीते दशकों में बैंड बाजे के आने से शादियों में पहाड़ी ढोल-दमुवा, नगाड़े, तुतरी व बीन बाजे के कलाकार इस पैतृक कार्य से बेरोजगार हो गए हैं। केवल नाकुरी पट्टी क्षेत्र में ही उन जैसे गिने-चुने कलाकार राज्य सरकार की किसी योजना की उन्हें जानकारी भी नहीं है। उनके पास प्रदेश के लोक देवता मूल नारायण, प्रदेश की प्रसिद्ध प्रेम कथा राजुला-मालूशाही , जागर, जुन्यार आदि का पारंपरिक ज्ञान है, लेकिन उसके संरक्षण की किसी योजना से भी वह अनजान हैं। बताते हैं कि वाद्य यंत्रों की मढ़ाई में ही हजारों रुपये खर्च होते हैं। परिवार चलाना बेहद मुश्किल हो रहा है। वहीं पाषाणदेवी मंदिर में नवाह ज्ञान यज्ञ करा रहे आचार्य भगवती प्रसाद जोशी का कहना है कि पहाड़ में गुरुओं (पंडितों) और दासों की किसी भी धार्मिक आयोजन में समान व बड़ी भूमिका रहती है। पंडित तो किसी प्रकार पंडिताई को जारी रखे हुए हैं, लेकिन दासों की कला संरक्षण के अभाव में विलुप्ति की कगार पर है। वह इस कला को संरक्षित करने के उद्देश्य से हर वर्ष इन्हें बुलाते हैं। 

रविवार, 4 अगस्त 2013

कैलास मानसरोवर यात्रा रोकना गैर हिंदूवादी कदम : भाजपा

नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश भाजपा ने कैलास मानसरोवर यात्रा को निरस्त करने के लिए प्रदेश सरकार का गैर हिंदूवादी कदम और दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता सुरेश जोशी ने कहा कि यह देश के करोड़ों आस्थावान हिंदू समाज की भावनाओं से खिलवाड़ है। सरकार को तत्काल ही अपने निर्णय में बदलाव कर यात्रियों को मुफ्त हेलीकॉप्टर सुविधा दिलाकर यात्रा को शुरू करानी चाहिए। उन्होंने प्रदेश सरकार को चेताया दी कि आगे इस कदम के बाद उत्तराखंड के यात्रा मार्ग को असुरक्षित बताकर अरुणांचल व लद्दाख से कैलास मानसरोवर के लिए नए मार्ग खोले जा सकते हैं, इससे उत्तराखंड एक बड़ा आर्थिक श्रोत भी खो देगा। 
जोशी रविवार को पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल के साथ देहरादून लौटते हुए मुख्यालय स्थित राज्य अतिथि गृह में पत्रकारों से वार्ता कर रहे थे। कहा, कैलाश यात्रा मार्ग में केवल नदी के बगल से होकर जाने वाले रास्ते में नुकसान हुआ है, जबकि नैनीताल से सौसा, जिप्ती या गुंजी तक एमजी-17 हेलीकॉप्टर के अधिकतम तीन चक्कर लगाकर श्रद्धालुओं को कैलास यात्रा कराई जा सकती है। "˜राष्ट्रीय सहारा" पूर्व में ही कैलास मानसरोवर यात्रा को इसी तरह नैनीताल से सौसा या जिप्ती तक हेलीकॉप्टर सुविधा के जरिए संचालित करने का विकल्प सुझा चुका है। जोशी ने कहा कि यात्रा के स्थगित होने से हमेशा के लिए उत्तराखंड से यह सेवा छिनने का खतरा भी उत्पन्न हो सकता है। इस मौके पर सांसद प्रतिनिधि मनोज जोशी व संतोष साह मौजूद थे।

निकटवर्ती वन भूमि पर तत्काल विस्थापन हो, पर सीमांत क्षेत्र खाली भी न हो : चुफाल

नैनीताल। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल ने सीमांत क्षेत्रों में आपदा प्रभावितों का नहीं वरन पूरे आपदा प्रभावित गांवों को विस्थापन करने की आवश्यकता जताई है। साथ ही चेताया है कि विस्थापन से सीमांत क्षेत्र के गांव खाली न हो जाएं। विस्थापितों को केवल रहने के लिए मकान ही नहीं वरन आजीविका के लिए आपदा में बरबाद हुई पूरी जमीन निकटवर्ती वन भूमि में ही देने की मांग की। उन्होंने प्रदेश सरकार पर आपदा के डेढ़ माह गुजरने के बाद सड़कें तो दूर आपदा में नष्ट हुए पैदल मार्ग भी दुरुस्त न कर पाने का आरोप लगाया। पैदल रास्ते ही बन जाएं, तो बड़ी बकरियों के जरिए भी दूरस्थ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा सकता है। पत्रकारों से वार्ता करते भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल व अन्य। 

सोमवार, 16 जुलाई 2012

आखिर न्याय देव ग्वेल के दरबार से मिला न्याय


  • उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसले से पुख्ता हुआ न्याय पर विश्वास

नवीन जोशी, नैनीताल। उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है, यहां के कण-कण में देवत्व का वास बताया जाता है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा सोमवार को होनहार कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के मामले में आये फैसले से देवभूमि की ऐसी ही महिमा साकार हुई है। मामले में आये उच्च न्यायालय के फैसले को आज दोनों पक्षों के अधिवक्ता जिस प्रकार अनपेक्षित बता रहे थे, उससे यह विास भी पक्का हुआ है कि सरोवरनगरी के पास ही विराजने वाले कुमाऊं के न्याय देव ग्वेल से लगाई जाने वाली न्याय की गुहार कभी खाली नहीं जाती। गौरतलब है कि इस मामले में अपनी कवयित्री बहन के कातिल यूपी के दबंग मंत्री अमरमणि त्रिपाठी के खिलाफ लड़ने वाली बहन निधि शुक्ला ने गत वर्ष ही, जब वह अपनी न्यायिक जीत को करीब-करीब मुश्किल मान बैठी थी, उसने देवभूमि वासियों और निकटवर्ती घोड़ाखाल स्थित ग्वेल देवता के मंदिर में न्याय की गुहार लगाई थी। ग्वेल देवता को कुमाऊं का न्यायदेव कहा जाता है। ग्वेल देवता के कुमाऊं में चंपावत, द्वाराहाट, चितई व घोड़ाखाल आदि में मंदिर हैं। कहा जाता है कि ग्वेल देव से लगाई जाने वाली न्याय की गुहार कभी खाली नहीं जाती। इसलिए लोग ग्वेल देवता के मंदिर में सादे कागजों और स्टांप पेपर पर भी अर्जियां देकर न्याय की प्रार्थना करते हैं। यह भी कहा जाता है कि यदि न्याय मांगने वाला व्यक्ति खुद गलत होता है तो देवता उसे उल्टी सजा देने से भी नहीं चूकते। ऐसी अनेक दंतकथाएं प्रचलित हैं, जिनमें ग्वेल देव ने न्याय किया। कमोबेश इस मामले में भी ग्वेल देव का न्याय पक्का हुआ है। इस मामले में अपने बुलंद इरादों के बावजूद और लड़ाई को मुकाम तक पहुंचाने वाली निधि शुक्ला भी न्यायालय के ऐसे फैसले की कल्पना नहीं कर रही थी। फैसले के दो दिन पूर्व ही दबंग मंत्री अमरमणि त्रिपाठी से बेहद डरी हुई निधि शुक्ला ने राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु की गुहार तक लगा दी थी। अभियुक्त मंत्री अमरमणि ने भी मामले की पैरवी में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। कोलकाता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सहित दर्जन भर से अधिवक्ता इधर मामले की पैरवी में लगे हुए थे। आज न्यायालय से ऐसे फैसले की उम्मीद होती तो शायद न्यायालय परिसर में भी अलग ही नजारा होता। शायद इसीलिए ‘न्याय की जीत’ करार दिये जा रहे इस फैसले को अपने कानों से सुनने के लिए दिवंगत कवयित्री के परिजन भी आज न्यायालय परिसर में मौजूद नहीं थे।

यह मिला न्याय...
अमरमणि की उम्रकैद बरकरार
नैनीताल (एसएनबी)। नैनीताल उच्च न्यायालय ने सीबीआई अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड के अभियुक्त अमरमणि त्रिपाठी की आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी है। न्यायालय ने संतोष कुमार राय, रोहित चतुव्रेदी और मधुमणि त्रिपाठी की अपीलों को खारिज कर दिया है। न्यायालय ने सीबीआई की अपील को स्वीकार करते हुए पांचवें अभियुक्त प्रकाश चन्द्र पाण्डे को भी आजीवन कारावास की सजा सुना दी है। मगर अमरमणि त्रिपाठी के वकीलों ने कहा है कि वे इस फैसले के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करेंगे। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश बारिन घोष और न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी की संयुक्त खंडपीठ ने अभियुक्तों की याचिकाओं की सुनवाई के बाद दिया है। उल्लेखनीय है कि नौ मई 2003 को लखनऊ की एक कालोनी में कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या कर दी गयी थी। मामले की प्रथम सूचना रिपोर्ट मधुमिता की बहन निधि शुक्ला ने दाखिल की थी। बाद में यह मामला सीबीआई को सौंपा गया। सीबीआई ने लंबी जांच के बाद इन लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। बाद में यह मामला उत्तराखंड स्थानांतरित कर दिया गया। वर्ष 2007 में सीबीआई की देहरादून अदालत ने अमरमणि, मधुमणि, संतोष राय के खिलाफ पर्याप्त सबूत मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। प्रकाश पाण्डे को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था। इसको इन सभी लोगों ने नैनीताल उच्च न्यायालय में चुनौती दी। जबकि सीबीआई द्वारा प्रकाश पाण्डे को बरी कर देने को भी न्यायालय में चुनौती दी गयी। लम्बी सुनवाई के बाद सोमवार को न्यायालय ने तमाम सबूतों के आधार पर सीबीआई अदालत के फैसले को बरकरार रखने का फैसला सुनाया जबकि अभियुक्त प्रकाश चन्द्र पाण्डे के मामले में सीबीआई अदालत के फैसले को पलटते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा दे दी है। इसके साथ ही अमरमणि एवं अन्य के पास अब सुप्रीम कोर्ट जाने के अलावा सारे विकल्प बंद हो गये हैं।


ग्वेल देवता एवं देवभूमि के बारे में और अधिक  पढ़े : http://newideass.blogspot.in/2010/02/blog-post_26.html