प्रदेश की पहली व इकलौती कामर्शियल महिला पायलट कैप्टन क्षमता बाजपेई ने कहा-पहाड़ की होने के कारण ऊंचाइयों से डर नहीं लगता, क्योंकि पहाड़ से आगे तो ‘स्काई इज द लिमिट’ (यानी असीमित आसमान की सीमाएं ही हैं)
नवीन जोशी, नैनीताल। जी हां, सही बात ही तो है, पहाड़ों से अधिक ऊंचा तो आसमान ही है। कोई पहाड़ से भी अधिक ऊंचे जाना चाहे तो कहां जाए, आसमान पर ही नां। पर कितने लोग सोचते हैं इस तरह से ?। लेकिन पहाड़ की एक बेटी क्षमता जोशी ने 1986 के दौरान ही जब वह केवल 18 वर्ष की थीं अपने पहाड़ों की ऊंचाई से भी अधिक ऊंचा उड़ने का जो ख्वाब संजोया और उसे पूरा करने में जिस तरह परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति के बावजूद अपनी पूरी ‘क्षमता’ लगा दी, नतीजे में वह प्रदेश की पहली और इकलौती कामर्शियल महिला पायलट ही नहीं, एयर इंडिया में प्रोन्नति पाकर सात वर्ष से कमांडर हैं, और न केवल स्वयं बल्कि हजारों लोगों को रोज पहाड़ों से कहीं अधिक ऊंचाइयों से पूरी दुनिया की सैर कराती हैं।
क्षमता जोशी आज क्षमता बाजपेई के रूप में आज एक मां भी हैं, और एयर इंडिया के बोइंग 777 विमान को लगातार 16 से 2 घंटों तक उड़ाते हुए दुनिया के चक्कर काटना अब उनका पेशा है। क्षमता शनिवार पहली जून को नैनीताल में थीं, तो एक भेंट में उन्होंने अपने बचपन से लेकर अपने स्वप्न को साकार करने की विकास यात्रा को खुलकर बयां किया। क्षमता मूलतः प्रदेश के पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय के पास स्थित चंडाक गांव की बेटी हैं। पिता एमसी जोशी दिल्ली प्रशासन में प्रधानाचार्य के पद पर थे, लिहाजा दिल्ली में ही उन्होंने पढ़ाई की। पहाड़ कुछ हद तक छूटने के बावजूद ऊंचाइयों को छूने की ललक में बीएससी की पढ़ाई और एनसीसी के दौरान ही उन्होंने 1988 में प्राइवेट पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया था। आगे पिता ने चार बच्चों की जिम्मेदारी के बीच उनके कमर्शियल पायलट का लाइसेंस लेने के ख्वाब के करीब तीन लाख रुपए के खर्च को वहन करने से स्वयं की लाचारगी जता दी, लेकिन इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी ने उनकी काबिलियत को पचानते हुए उन्हें राजीव गांधी स्कॉलरशिप से नवाज कर नकी राह आसान कर दी। फलस्वरूप 1990 में ही उन्होंने कामर्शियल पायलट का लाइसेंस हासिल कर लिया। वर्ष 1997 में वह एयर इंडिया से जुड़ीं और आज सात वर्षों से यहां कमांडर के पद पर तैनात हैं। क्षमता बताती हैं कि विमान उड़ाना कठिनतम कार्यों में से एक है, इसमें अपने लक्ष्य पर अत्यधिक केंद्रित रहने की जरूरत रहती है। उनके पति सुशील बाजपेई अंतराष्ट्रीय ग्लाइडिंग इंस्ट्रक्टर हैं जबकि बेटा मेहुल शौक के तौर पर फ्लाइंग करना चाहता है। नैनीताल में वह अपने जीजा भीमताल के पांडेगांव निवासी भारत पांडे और दोनों बहनों के साथ आई थीं। वह कहती हैं-पहाड़ की होने के कारण ऊंचाइयों से डर नहीं लगता है, क्योंकि पहाड़ों की ऊंचाई के आगे तो असीमित आसमान ही होता है।
भारत में महिला पायलट विश्व औसत से दोगुनी
प्रदेश में वर्ष 2011 की जनगणना में लिंगानुपात के घटने पर चिंता जताते हुए क्षमता बाजपेई बताती हैं कि महिला पायलटों का विश्व में औसत छः फीसद है, जबकि भारत में कुल पायलटों में से 12 फीसद महिला पायलट हैं, जोकि विश्व औसत का दोगुना है। उनका मानना है कि आज महिलाओं के लिए कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं रह गया है। लेकिन वह मान के चलें कि उन्हें मां व पत्नी के रूप में घर भी चलाना है और समन्वय बनाते हुए ही घर के बाहर काम करना है। कहा कि वंश चलाने का मतलब अपनी जड़ों को न भूलना भी है। महिलाएं बेशक किसी और की वंशवृद्धि करती हैं, लेकिन अपने मायके को कभी नहीं भूलतीं। पहाड़ की युवतियों के लिए उनका कहना था, वह बुद्धिमान तथा मेहनती व कर्तव्यनिष्ठ हैं। अपने लक्ष्य के प्रति दृ़ढ केंद्रित हांे, और घर से बाहर निकलकर ‘एक्सपोजर’ प्राप्त करें।