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शनिवार, 13 अप्रैल 2013

नैनीताल पालिका चुनाव में "तजुर्बे" की भी होगी परीक्षा



अध्यक्ष पद पर एक पूर्व अध्यक्ष व चार सभासद और सभासद पद पर सात पूर्व सभासद मैदान में
नवीन जोशी नैनीताल। निस्संदेह लोकतंत्र में हर किसी को चुनावी समर में उतर कर जनसेवा के लिए स्वयं को जनता की कसौटी पर कसने का अधिकार है, और आज के दौर को युवाओं का दौर कहा जाता है, और युवाओं को ही चुनावों के माध्यम से आगे लाने की वकालत की जाती है लेकिन तजुब्रे को दरकिनार करना कभी भी आसान नहीं होता। देश की दूसरे नंबर की सबसे प्राचीन 1845 में स्थापित नैनीताल नगर पालिका में भी इस बार "अनुभव" की कसौटी पर कसा जाएगा। यहां अध्यक्ष पद के लिए एक पूर्व अध्यक्ष सहित चार पूर्व सभासद एवं सभासदों के 13 पदोंके लिए सात पूर्व एवं वर्तमान सभासद मैदान में हैं। नैनीताल नगर पालिका के चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए नामांकन कराने वाले 14 प्रत्याशियों में पांच प्रत्याशी पूर्व या वर्तमान में पालिका में बतौर जनप्रतिनिधि जुड़े रहकर अनुभव रखते हैं। इनमें भाजपा प्रत्याशी संजय कुमार 'संजू' पूर्व में वर्ष 2003 से 2008 तक पालिका अध्यक्ष रह चुके हैं। वहीं भाजपा के बागी प्रत्याशी प्रेम सागर, कांग्रेस के बागी प्रत्याशी दीपक कुमार ˜भोलू" के साथ ही बसपा प्रत्याशी राकेश कुमार ˜शंभू" 2008 में चुनाव जीतकर वर्तमान में सभासद के रूप में कार्यरत हैं। वहीं कांग्रेस के अन्य बागी निर्दलीय प्रत्याशी सुभाष चंद्रा भी पूर्व में पालिका सभासद रह चुके हैं। 
पालिका सभासदों के पदों की बात की जाए तो स्नोभ्यू से अमिता बेरिया, आवागढ़ से मनोनीत आनंद बिष्ट, नैनीताल क्लब से मनोनीत सभासद मधु बिष्ट, सूखाताल वार्ड से मनोज अधिकारी, मल्लीताल से मंजू उर्फ गुंजन बिष्ट, कृष्णापुर से डीएन भट्ट व शेर का डांडा से कृपाल बिष्ट पूर्व में सभासद पद का दायित्व देख चुके हैं। इनमें डीएन भट्ट पूर्व में पालिका के वरिष्ठ उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं।

चुनावी जलजले से हर पार्टी में उभरी दरार


सत्तारुढ़ कांग्रेस में सर्वाधिक बागी भाजपा व बसपा के बागी भी मैदान में
नवीन जोशी, नैनीताल। अपनी 1845 में हुई स्थापना से देश की दूसरे नम्बर की नगर पालिका नैनीताल में आसन्न निकाय चुनाव ने जलजले के रूप में सभी पार्टियों के घरों में भारी दरार नुमाया कर दी है। हर पार्टी में अनेक बागी उम्मीदवार यदि नाम वापसी तक मनाए न जा सके तो आने वाले दिनों में अध्यक्ष पद के साथ ही वाडरे के सभासद पदों हेतु अधिकृत प्रत्याशियों के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकते हैं। कहते हैं कि अक्सर जंग दुश्मनों से अधिक कठिन दोस्तों से होती है। यह जंग खास तौर पर गांवों के ग्राम प्रधानों के चुनाव तो कई बार गांवों में आपसी वैमनस्य को बढ़ाने वाले भी साबित होते हैं। नगरों की छोटी इकाइयों में प्रत्याशियों को अपनों से ही उलझना पड़ता है। नगर पालिका नैनीताल के अध्यक्ष एवं 13 वाडरे में सभासद पदों पर आखिरी दिन तक हुए नामांकनों की स्थिति प्रत्याशियों को दूसरे दलों के साथ ही अपनों से लड़वाती नजर आ रही है। खासकर विपक्षी भाजपा के प्रत्याशियों के लिए इस मामले में अधिक कठिन स्थिति है, क्योंकि इसी पार्टी ने सभी वाडरे में सभासद प्रत्याशियों को अपने सिंबल दिए हैं। वहीं अध्यक्ष पद पर सत्तारूढ़ दल में सत्ता रूपी ‘मधुमक्खी के छत्ते’ से टपकने वाले 'शहद' को लेकर अधिक मारामारी नजर आ रही है। यहां पहले ही पार्टी पर्यवेक्षक के सामने दावेदारी जताने वाले तीनों दावेदार-सुभाष चंद्रा, दीपक कुमार 'भोलू' व राजेंद्र व्यास तो मैदान में कूद ही पड़े हैं। सुभाष के साथ कांग्रेस के 2008 में प्रत्याशी रहे दिनेश चंद्र साह के जाने से भी पार्टी को बुरे संकेत मिले हैं। वहीं अपने दादा खुशी राम के जमाने से कांग्रेसी रहे पूर्व पालिकाध्यक्ष संजय कुमार 'संजू' इस बार कमल का फूल थाम कर भाजपा से प्रत्याशी हैं। वह पिछली बार बसपा से विधान सभा का चुनाव लड़ चुके हैं, एक दिन पूर्व ही वह बकौल उनके 150 बसपा कार्यकर्ताओं के साथ भाजपा में शामिल हुए हैं, लिहाजा वह बसपा के वोट बैंक में भी निश्चित ही सेंध लगाने की उम्मीद कर रहे हैं। कांग्रेस को उनके साथ ही पार्टी से जुड़े दावेदार राजेंद्र व्यास के भाई अरविंद व्यास व शालिनी आर्या के भी नुकसान पहुंचाने की संभावना जताई जा रही है। भाजपा ने दूसरी पार्टी से जुड़े प्रत्याशी को उतारा है तो उनकी घर की टूट भी उजागर हो गई है। वर्तमान सभासद एवं पार्टी से पुश्तैनी रिश्ता रखने वाले प्रेम सागर बागी हो गए हैं, उनका कहना है पार्टी 'दगाबाज' हो गई है तो वह क्यों नहीं हो सकती है। वहीं किसी दौर में पार्टी के सदस्य रहे जगमोहन भी निर्दलीय के रूप में मैदान में कूद पड़े हैं। भाजपा को अनेक वाडरे में भी निर्दलीय कूदे बागियों से तगड़ी दावेदारी मिलने से इंकार नहीं किया जा सकता। उसके कुंदन सिंह नेगी सूखाताल से, आशा आर्या अपर माल से, पूर्व नगर उपाध्यक्ष कुंदन बिष्ट की पत्नी सपना बिष्ट नैनीताल क्लब वार्ड से बागी होकर निर्दलीय चुनाव में कूद पड़े हैं। बसपा से राकेश कुमार 'शंभू' प्रत्याशी हैं तो 2008 में बसपा से प्रत्याशी रहे उन्हीं के हमनाम अधिवक्ता राकेश कुमार ने भी अध्यक्ष पद के लिए दुबारा ताल ठोंक दी है। ऐसे में निकाय चुनावों में बागी सत्ता के ऊंट को किस करवट बैठाते हैं, देखना दिलचस्प होगा।

अध्यक्ष पद के लिए दो भाई आमने-सामने

नैनीताल। सत्ता का 'शहद' जो न करा दे वह कम है। कांग्रेस के बागी राजेंद्र व्यास के साथ ही उनके अनुज अरविंद व्यास ने भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ताल ठोंक दी है। दोनों भाई एक ही घर में रहते हैं। बताया कि दोनों ने ही अपनी माता से जमानत राशि तीन-तीन हजार रुपए लाकर नामांकन कराया।

रविवार, 31 मार्च 2013

डीएम, मंत्री भी नहीं करा पा रहे जांच !


  • अल्मोड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग के 864 लाख रुपयों से हुए सुधार कार्यों के ध्वस्त हो जाने का मामला 
  • डीएम के अपने स्तर से जांच में गुणवत्ता पर उठाये थे सवाल 
  • जिले के प्रभारी मंत्री प्रीतम सिंह भी शासन से कर चुके हैं उच्चस्तरीय जांच की मांग


नैनीताल। जनपद से अल्मोड़ा समेत पहाड़ को जोड़ने वाले महत्वपूर्ण राष्ट्रीय राजमार्ग-87 (विस्तार) में विगत दिनों करीब 864 लाख रुपये से हुए सुधार-मरम्मत कार्य कुछ ही दिनों में ध्वस्त हो गए, लेकिन इसे निर्माण से संबंधित लोगों की ऊंची पहुंच का असर कहें या कि छोटे से प्रदेश में शासन-प्रशासन व सरकार के बीच तालमेल की कमी, निर्माण कार्यों में डीएम स्तर से की गई जांच में बड़ी अनियमितता उजागर हो जाने के बावजूद और डीएम द्वारा दो बार और जिले के प्रभारी मंत्री द्वारा पत्र लिखे जाने के बावजूद शासन मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश नहीं दे रहा। 
सड़क को आज के दौर की ‘लाइफ लाइन’ क्यों कहां जाता है, इस बात का अहसास कोसी नदी के बराबर से गुजर रहे अल्मोड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग-विस्तार के अक्टूबर 2010 में आई अतिवृष्टि के दौरान नैनीताल जनपद स्थित बड़े हिस्से के बह जाने और महीनों इस मार्ग से पहाड़ का संपर्क भंग होने और मार्ग पर दर्जनों वाहनों के महीनों फंसे रहने के रूप में देखा जा सकता था। आगे, जनता की कमाई के ही 841.15 लाख रुपये से मार्ग के ज्योलीकोट से क्वारब तक सड़क का व्यापक स्तर पर पुनर्निर्माण, सुधार-मरम्मत आदि के कार्य हुए। यह कार्य मार्च 2012 में पूर्ण हो पाए। इसी दौरान मार्ग के किमी-41 में जौरासी के समीप "क्रॉनिक जोन" विकसित हो जाने से व्यापक भूस्खलन हुआ, जिसे दुरुस्त करने में और चार महीनों के अंदर निर्माण कार्य दरकने लगे और दिखने लगा कि जनता की गाढ़ी कमाई निर्माण कार्यों में नहीं निर्माणकर्ताओं की जेब में समा गई है। शिकायतें आने के बाद डीएम नैनीताल निधिमणि त्रिपाठी ने एसडीएम कोश्यां-कुटौली से मामले की जांच करवाई। एसडीएम की सात जुलाई 12 को आई रिपोर्ट में कहा गया कि एनएच पर नावली के पास निर्मित दीवार व सड़क धंस रही है, और सड़क कभी भी गिर सकती है। लिहाजा डीएम ने पहले जुलाई 12 में और फिर दिसम्बर 12 में प्रमुख सचिव लोनिवि को मामले की उच्च स्तरीय जांच के लिए संस्तुति करते हुए पत्र लिखे। इस बीच 26 दिसम्बर 12 को जिले के प्रभारी मंत्री प्रीतम सिंह की अध्यक्षता में आयोजित हुई जिला योजना की बैठक में यह मामला जनप्रतिनिधियों ने बेहद जोर-शोर से उठा, और मंत्री बावजूद शासन से मामले की जांच होना दूर, किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। सांसद प्रतिनिधि डा. हरीश बिष्ट, कांग्रेस के जिलाध्यक्ष सतीश नैनवाल समेत अनेक जनप्रतिनिधि भी इस मामले को गंभीर बताते हुए मामले की शासन से उच्च स्तरीय जांच व दोषियों को दंडित करने तथा सड़क को दुरुस्त करने की मांग उठा रहे हैं। वहीं प्रभारी मंत्री प्रीतम सिंह का कहना है कि वह स्वयं इस मामले को लेकर सीएम और प्रमुख सचिव लोनिवि से बात करेंगे। 

शनिवार, 23 मार्च 2013

नक्षत्रों से ढूंढिए अपना पंचतत्व, बदलिए तकदीर


नैनीताल में मिली सैकड़ों वर्ष पुरानी पांडुलिपि, जिसमें बताया गया है पंचतत्वों से नक्षत्रों का संबंध
नवीन जोशी नैनीताल। भारतीय धार्मिक और नक्षत्र विज्ञान के ग्रंथों में मनुष्य की जन्मतिथि व समय से निर्धारित होने वाली राशियों का मानव शरीर के मुख्य घटक पंचतत्वों-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश से संबंध बताया गया है। यहां एक ऐसी सैकड़ों वर्ष पुरानी पांडुलिपि प्रकाश में आई है, जिसमें पहली बार नक्षत्रों और पंचतत्वों के बीच के संबंध बताने के साथ ही इसके माध्यम से मनुष्य के जीवन और उसकी प्रकृति में सुधार करने के तरीके बताए गए हैं। रत्नमाला नाम के इस ग्रंथ पर यदि विस्तृत शोध हो तो भारतीय नक्षत्र विज्ञान को नए आयाम दे सकता है। कुमाऊं विवि के डीएसबी परिसर के संस्कृत विभाग में वर्षो से पड़ी "रत्नमाला" नाम की पांडुलिपि मिली है। इसका अध्ययन एवं राष्ट्रीय पांडुलिपि संरक्षण मिशन के तहत संरक्षण कर रहे डा. सोमबाबू शर्मा बताते हैं कि इस पांडुलिपि में पहली बार नक्षत्रों और पंचतत्वों का संबंध वैज्ञानिक आधार के साथ बताया गया है। संस्कृत में श्लोक एवं संस्कृतिहंदी मिश्रित व्याख्या रूप में लिखी गई इस पांडुलिपि में सभी 28 नक्षत्रों के पंचतत्वों से संबंध और उनके आधार पर मानव जीवन को बेहतर बनाने के उपाय बताए गए हैं। उदाहरणार्थ, सर्वाधिक बुरे बताए जाने वाले मूल नक्षत्र को मघा व अश्लेषा के साथ अग्नि तत्व से तथा पुनर्वसु, हस्त, अश्लेषा, मृगशिरा, रेवती, अनुराधा व ज्येष्ठा के साथ वायु तत्व से संबंधित बताया गया है। अग्नि तत्व से संबंधित जातक जल तत्व से निकटता दिखाकर स्वयं का जीवन सुधार सकते हैं, जबकि इसके उलट सामान्य मान्यता के अनुसार मूल नक्षत्र के लोग भगवान शनि की पूजा करते हुए अग्नि को अधिक भड़काते हुए तेल के दीपक जलाते हैं। वहीं जल तत्व से संबंधित जातक पानी से दूर रहकर तथा दीपक जलाकर व हवन, यज्ञ आदि कर अपना जीवन बेहतर कर सकते हैं। डा. शर्मा बताते हैं कि पांडुलिपि में नक्षत्रों को रत्नों की तरह महत्वपूर्ण बताते हुए इनकी विस्तृत व्याख्या की गई है, किसी अन्य पुस्तक में अब तक उल्लेखित न किए गए अविजित नाम के नक्षत्र का भी उल्लेख है, जिसका प्रयोग समस्या का और कोई समाधान न होने की दशा में किया जाता है, साथ ही इसमें 28 योगिनियों का भी उल्लेख है। वह कहते हैं कि विस्तृत शोध किया जाए तो यह खोज नक्षत्र विज्ञान को नई दिशा दे सकती है। उल्लेखनीय है कि मानव शरीर के बारे में कहा जाता है कि इसकी रचना सृष्टि के रचयिता ब्रrा ने पंचतत्वों की मदद से की थी। मनुष्य इन्हीं पंचतत्वों से मिलकर बनता है और आखिर इन्हीं में मिल जाता है। मनुष्य अपने जीवन में भी इन पंचतत्वों से साम्य बनाता हुआ चलता है। मनुष्य के इन पंचतत्वों से संबंधों को धार्मिक ग्रंथों के साथ नक्षत्र विज्ञान में राशियों से जोड़ा गया है। उदाहरण के लिए कर्क व मीन राशि के जातकों को जल तत्व से, वृष, सिंह आदि राशियों को पृथ्वी तत्व से जोड़ा गया है। इस प्रकार कर्क व मीन राशि के जातक जल की तरह चंचल व अस्थिर प्रकृति के होते हैं तो वृष व सिंह राशि के जातक अडिग व ठोस निर्णय लेने वाले माने जाते हैं। नक्षत्र विज्ञान में 28 नक्षत्र माने जाते हैं। जन्म पत्रिकाओं में मनुष्य की राशियों के साथ ही नक्षत्रों का भी जिक्र प्रमुखता से होता है। चूंकि इनकी संख्या अधिक है, इसलिए इनके अध्ययन से मनुष्य की प्रकृति, भविष्य आदि के बारे में अधिक सटीक भविष्यवाणियां की जा सकती हैं।

गुरुवार, 21 मार्च 2013

तराई बीज निगम में एक और घोटाला !



लाखों के गेहूं के बीज को ऐसे क्षेत्रों में उगाने का दावा जहां वह पैदा ही नहीं होता
डीआईजी ने दिए मामले की विस्तृत जांच के निर्देश
इस मामले में जल्द किया जा सकता है कुछ लोगों को गिरफ्तार
नवीन जोशी, नैनीताल। विवादों में चल रहे प्रदेश के तराई बीज विकास निगम (टीडीसी) में एक और बड़े घोटाले की परतें खुलने लगी हैं। इस मामले में निगम के जिम्मेदार अधिकारियों की संलिप्तता और बड़े घोटाले की आशंका जताई जा रही है। इस करीब चार वर्ष पुराने मामले में आरोपितों ने लाखों रुपये के गेहूं के बीजों को ऐसे क्षेत्रों में उगाने का दावा किया था, जहां वह पैदा ही नहीं होता। बाद में जांच तेज हुई तो निगम में मामले की फाइल ही गायब करवा दी गई। खास बात यह है कि जांच के दौरान इस गायब फाइल की फोटो कापी पुलिस अपने पास सहेज चुकी थी। यानी मामला साजिश के तहत सरकारी दस्तावेज को गायब करने और घोटाले का है। उल्लेखनीय है कि टीडीसी गेहूं के बीजों को तैयार कर विभिन्न क्षेत्रों में उगवाता है और बाद में उनसे प्राप्त उपज को बीज के रूप में खरीद लेता है। इसी प्रक्रिया में वर्ष 2008 से कुछ और ही खेल खेला गया। भूपेंद्र सिंह, हरविंदर सिंह, इंद्रजीत सिंह, हरदयाल सिंह सहित नौ आरोपितों पर आरोप है कि उन्होंने टीडीसी को पंतनगर व कानपुर सहित कुछ ऐसे इलाकों में बोए गए बीज बेचे जहां ऐसी उच्चीकृत प्रजातियों के बीज उपलब्ध नहीं होते। वहीं अधिकारियों की संलिप्तता का आलम यह रहा कि जांच में इन स्थानों पर गेहूं बोए जाने की पुष्टि कर दी। इस बीच आरोपितों के साथियों में ही आपस में फूट पड़ने से मामला खुल गया और गत 29 दिसम्बर 2012 को पंतनगर थाने में नौ आरोपितों के विरुद्ध मुकदमा पंजीकृत हुआ। इस बीच पुलिस की जांच शुरू हुई तो निगम में मामले से संबंधित फाइल गायब होने की बात कही गई, लेकिन इससे पूर्व ही पुलिस गायब बताई गई फाइल की फोटो कापी कराकर अपने पास सुरक्षित रख चुकी थी। पुलिस की प्रारंभिक जांच में गेहूं के जनक बीज के पंजीकरण संबंधी दस्तावेज और बीज को खेतों में बोए जाने के अभिलेख फर्जी पाए गए हैं। साथ ही मौके पर जाकर बीज बोए जाने को प्रमाणित करने वाले अधिकारियों की संलिप्तता की भी प्रथमदृष्टया पुष्टि हो चुकी है। पूछे जाने पर नैनीताल परिक्षेत्र के डीआईजी संजय गुंज्याल ने बताया कि उन्होंने मामले की विवेचना करने और फाइल के गायब होने जैसे विषयों को भी शामिल करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने अभियोग पंजीकृत होने के दो माह बाद एवं दो विवेचक बदले जाने के बावजूद मामले की सीडी पर्यवेक्षण अधिकारी को न सौंपे जाने को लेकर ऊधमसिंहनगर पुलिस की कार्यदक्षता पर भी सवाल उठाए हैं तथा एसएसपी ऊधमसिंह नगर को मामले की गहनता से विवेचना करने को लिखा है।

सोमवार, 11 मार्च 2013

हिमालय पर ब्लैक कार्बन का खतरा !


पहाड़ों पर अधिक होता है मौसम परिवर्तन का असर : प्रो. सिंह
नवीन जोशी नैनीताल। दुनिया के "वाटर टावर" कहे जाने वाले और दुनिया की जलवायु को प्रभावित करने वाले हिमालय पर कार्बन डाई आक्साइड, मीथेन, ग्रीन हाउस गैसों तथा प्रदूषण के कारण ग्लोबल वार्मिग व जलवायु परिवर्तनों के खतरे तो हैं ही, वैज्ञानिक ब्लैक कार्बन को भी हिमालय के लिए एक खतरा बता रहे हैं। खास बात यह भी है कि इसका असर गरमियों के मुकाबले सर्दियों में, दिन के मुकाबले रात्रि में और मैदान के बजाय पहाड़ पर अधिक होता है। बीरबल साहनी पुरस्कार प्राप्त प्रसिद्ध पादप वैज्ञानिक, गढ़वाल विवि के पूर्व कुलपति, उत्तराखंड योजना आयोग के सदस्य एवं भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) के लिए हिमालय पर जलवायु परिवर्तन का अध्ययन कर रहे प्रो. एसपी सिंह ने यह खुलासा किया है। सिंह का कहना है कि दुनिया में डेढ़ बिलियन लोग ईधन में ब्लैक कार्बन’का प्रयोग करते हैं। हिमालय पर इसका सर्वाधिक असर वनस्पतियों की प्रजातियों के अपनी से अधिक ऊंचाई की ओर माइग्रेट होने के साथ ही ग्लेशियरों के पिघलने और मानव की जीवन शैली से लेकर आजीविका तक पर गंभीर प्रभाव के रूप में दिख रहा है। धरती के गर्भ से खुदाई कर निकलने वाले डीजल जैसे पेट्रोलियम पदार्थो, कोयला व लकड़ी आदि को जलाने से ब्लैक कार्बन उत्पन्न होता है। प्रो. सिंह के अनुसार यह ब्लैक कार्बन’जलने के बाद ऊपर की ओर उठता है, और ग्रीन हाउस गैसों की भांति ही धरती की गर्मी बढ़ा देता है। बढ़ी हुई गर्मी अपने प्राकृतिक गुण के कारण मैदानों की बजाय ऊंचाई वाले स्थानों यानी पहाड़ों पर अधिक प्रभाव दिखाते हैं। प्रो. सिंह खुलासा करते हैं कि इस प्रकार मौसम परिवर्तन का असर दिल्ली या देहरादून से अधिक नैनीताल में सर्दियों में रात्रि का तापमान कई बार समान होने के रूप में दिखाई दे रहा है। इसके असर से ही ग्लेशियर पिघल रहे हैं और पौधों की प्रजातियां ऊपर की ओर माइग्रेट हो रही हैं। ऐसे में सामान्य सी बात है कि पहाड़ की चोटी की प्रजातियां और ऊपर न जाने के कारण विलुप्त हो रही हैं। मानव जीवन पर भी इसका असर फसलों के उत्पादन के साथ आजीविका और जीवनशैली पर पड़ रहा है। उन्होंने खुलासा किया कि हिमाचल प्रदेश में 1995 से 2005 के बीच सेब उत्पादन में कम ऊंचाई वाले कुल्लू व शिमला क्षेत्रों का हिस्सा कम हुआ है, जबकि ऊंचाई वाले लाहौल- स्फीति का क्षेत्र बढ़ा है।

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

प्रदेश के अनेक खाद्यान्न गोदामों में अवैध रूप से इस्तेमाल की जा रही है बिजली !


नवीन जोशी, नैनीताल। प्रदेशभर के खाद्यान्न गोदामों में बिजली के कनेक्शन नहीं हैं। ऐसा न होने का कारण भी ऐसा है कि हर कोई आश्र्चयचकित रह जाए। बताया गया कि बिजली के कनेक्शन होने से कहीं गोदामों में "शॉर्ट सर्किट" से आग न लग जाए। आज के दौर में बिजली के बिना कर्मचारियों का रहना भी संभव नहीं है। ऐसे में अनेक गोदामों में कर्मचारी अवैध तरीके से बिजली का उपयोग कर रहे हैं। इस कारण खाद्य आपूर्ति विभाग को अन्य विभागों के साथ "डिजिटलाइज" करने की प्रक्रिया में भी बाधा आ रही है, क्योंकि विभाग को डिजिटलाइज करने में इन गोदामों को भी डिजिटलाइज करना जरूरी है और ऐसा गोदामों को बिजली के कनेक्शन दिए बिना संभव नहीं है। यह अविश्वसनीय सी स्थिति खाद्य आपूर्ति विभाग द्वारा उपयोग किए जाने वाले प्रदेश भर के 319 खाद्यान्न गोदामों की है। इन गोदामों से सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों को खाद्यान्न की आपूर्ति की जाती है, और अक्सर गल्ला दुकानदार शाम ढले यहां अनाज, चीनी, मिट्टी तेल आदि लेने पहुंचते हैं और उन्हें ढिबरियां जलाकर या टार्च आदि के माध्यम से खाद्यान्न दिया भी जाता है। ऐसा भी नहीं है कि कार्यालय समय के बाद या शाम ढले अनाज नहीं दिया जाता है, लेकिन किसी भी गोदाम में बिजली का कनेक्शन नहीं है। बिजली न होने का कारण भी ऐसा है कि आसानी से हजम नहीं होता कि बिजली के कनेक्शन से शार्ट सर्किट होने पर गोदाम में आग लगने का खतरा रहता है। दूसरी ओर गोदाम में काम करने वाले मजदूर धूम्रपान भी करते हैं और रात्रि में अनाज की बोरियां निकालने के लिए केरोसीन से ढिबरियां या लैंप भी जलाते हैं। इस बारे में अधिकारी भी दावे के साथ कहने को तैयार नहीं हैं। एक अधिकारी ने इतना जरूर कहा कि आग लगने से आफत में पड़ें, इससे बेहतर है कनेक्शन ही न हो। साथ ही उन्होंने खुलासा किया कि अधिकतर गोदामों में अवैध तरीके से बिजली का उपयोग किया जा रहा है। सरकारी सस्ता गल्ला विक्रेता संघ के महासचिव हेमंत रुबाली का कहना है कि इस कारण रात्रि में अक्सर खाद्यान्न के बोरे फट जाते हैं और इससे खाद्यान्न के नुकसान की संभावना भी रहती है। दूसरी ओर विभागीय अधिकारी शासकीय व्यवस्था का हवाला देते हुए इस मामले में कुछ भी कहने से इनकार कर रहे हैं। डीएसओ राहुल शर्मा ने कहा कि शासन से कम्प्यूटरीकरण, डिजिटलाइजेशन के कारण कनेक्शन लगवाने और आगे विद्युत बिलों के भुगतान के लिए धनराशि की व्यवस्था करने को कहा जा रहा है। इसके साथ ही प्रदेश में बागेश्वर व पिथौरागढ़ जनपद सहित कई जिलों में ऐसे अनेक गोदाम भी बताए जा रहे हैं, जिनके आसपास के क्षेत्रों में भी बिजली नहीं है, लिहाजा यहां भी विभागीय गोदामों के डिजिटलाइजेशन की राह आसान नहीं है।

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

दरकती जमीन पर खड़े हो रहे आफतों के महल


आपदा प्रभावित मंगावली क्षेत्र में लगातार हो रहे निर्माणों से भूस्खलन का खतरा बढ़ा

नवीन जोशी, नैनीताल। राज्य में चाहे आपदा प्रबंधन का जितना शोर हो रहा हो और मुआवजे के रूप में ही करोड़ों रुपये खर्च करने पड़े हों, लेकिन इतना साफ़ हो गया है कि न सरकार और न लोगों ने ही आपदा से जरा भी सबक लिया है। इसकी बानगी है दैवीय आपदा से सर्वाधिक प्रभावित हुआ मंगावली क्षेत्र। यहां एक ओर मकान दरक रहे हैं, वहीं वैध- अवैध निर्माण जारी हैं। पहले से हिली धरती के सीने में गड्ढों के रूप में घाव किए जा रहे हैं। प्रतिदिन टनों निर्माण सामग्री वहां उड़ेली जा रही है। 
मंगावली शेर का डांडा पहाडी पर स्थित नगर से अलग-थलग एवं दुर्गम क्षेत्र है। तीखी चढ़ाई वाले बिड़ला मार्ग से इस ओर वाहन मुश्किल से ही चढ़ पाते हैं। इसके बावजूद यहां इन दिनों बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य चल रहे हैं। यह कार्य वैध है अथवा अवैध, तात्कालिक रूप से जिम्मेदार झील विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को भी मालूम नहीं है, लेकिन जिस तरह व्यापक स्तर पर जमीन खोद कर पत्थरों के पहाड़ बनाए जा रहे हैं, उससे तथा अधिकारियों की जानकारी में मामला न होने से साफ हो जाता है कि निर्माण पर सरकारी नियंत्रण नहीं है। पूछने पर झील विकास प्राधिकरण के सचिव एचसी सेमवाल ने कहा कि निर्माणों की जांच कराकर कार्यवाही की जाएगी। 
शेर का डांडा में हुआ था भूस्खलन 
बीती 18-19 सितंबर २०१० को अतिवृष्टि ने नगर के शेर का डांडा पहाड़ी में जबरदस्त हलचल मचाई थी। इसी पहाड़ी के शिखर पर स्थित बिड़ला विद्या मंदिर परिसर में गिरे बड़े बोल्डर से विद्यालय की डिस्पेंसरी व कर्मचारी आवासों को नुकसान हुआ था। इसके नीचे मंगावली में पालिकाकर्मी साजिद अली के मकान सहित कई घरों में दरारें आई थीं, जो अब भी चौड़ी होती जा रही हैं। इससे नीचे सीएमओ कार्यालय के पास स्वास्थ्य विभाग के आवास पर भी बोल्डर गिरा था तथा पहाड़ी की तलहटी में कैंट क्षेत्र में भी भारी भूस्खलन हुआ था, व भवाली मार्ग अब भी इसी कारण ध्वस्त पड़ी है। ऐसे क्षेत्र में निर्माण सवालों के घेरे में हैं।