गायों से मानव में होने वाली व जैविक हथियार के रूप में प्रयोग किए जाने वाले विषाणु की प्रतिरोधक वैक्सीन बनाने में हासिल की सफलता
नवीन जोशी, नैनीताल। कुमाऊं विवि की छात्रा रही दिव्या गोयल को शंघाई में अंतराष्ट्रीय युवा वैज्ञानिक पुरस्कार से नवाजा गया है। यह पुरस्कार चेचक के टीके के जनक एडर्वड जेनर के नाम पर दिया जाता है। दिव्या की खोज इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि उनके बनाए टीके को जैविक हथियारों के विरुद्ध भारतीय सैनिकों में प्रतिरोधक वैक्सीन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। दिव्या ने गायों से मनुष्य में आ सकने वाली जानलेवा ब्रूसलोसिस बीमारी की रोकथाम का टीका विकसित कर और उसका चूहों में सफल परीक्षण कर यह पुरस्कार दुनियाभर के 175 प्रतिभागियों के बीच आयोजित प्रतियोगिता के जरिए "एडर्वड जेनर इंटरनेशनल यंग साइंटिस्ट अवार्ड-२०१२" हासिल किया है।
मूलत: दिल्ली निवासी दिव्या ने दिल्ली विवि से बीएससी करने के बाद कुमाऊं विवि के जैव प्रौद्योगिकी विभाग से विभागाध्यक्ष डा. बीना पांडे के निर्देशन में वर्ष 2005 से 2007 के बीच एमएससी की डिग्री हासिल की है। यहां से वह वापस दिल्ली गई और संयोग से कुमाऊं विवि के वर्तमान कुलपति डा. राकेश भटनागर के अधीन ही जवाहर लाल नेहरू विवि से शोध कर उन्हें बीती 31 दिसम्बर को पीएचडी अवार्ड हुई है। उसका यह शोध दुनिया की जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में श्रेष्ठतम "मॉलीक्यूलर इम्यूनोलॉजी" व "वैक्सीन" जैसे शोध जर्नल्स में भी प्रकाशित हो चुका है। डा. भटनागर के निर्देशन में उनकी प्रयोगशाला में शोध करते हुए दिव्या ने कमोबेश एडर्वड जेनर द्वारा चेचक का टीका विकसित करने की विधि से ही जेनेटिक इंजीनियरिंग की प्रविधियों का इस्तेमाल करते हुए ब्रूसलोसिस की बीमारी का टीका विकसित किया है। इस टीके का चूहों में सफल परीक्षण भी कर लिया गया है। विदित हो कि एडर्वड जेनर ने गायों की चेचक की बीमारी काउपॉक्स से ही मनुष्य की स्माल पॉक्स यानी छोटी माता का टीका विकसित किया था। डा. भटनागर के अनुसार ब्रूसलोसिस बीमारी के कारण गायों का गर्भपात हो जाता है, जबकि इस रोग से ग्रसित गायों का कच्चा (बिना उबला) दूध पीने से इस बीमारी के विषाणु मनुष्य में भी आ जाते हैं और जानलेवा साबित होते हैं। पंजाब जैसे राज्यों में जहां शरीर को मजबूत बनाने के लिए युवा गाय का कच्चा दूध ही पीने का शौक रखते हैं, यह बीमारी बेहद खतरनाक साबित होती है। वहीं सैनिकों एवं दूसरे देश के लोगों के विरुद्ध इस बीमारी के विषाणुओं को ˜बायोलॉजिकल वारफेयर एजेंट" यानी जैविक हथियार के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है। लिहाजा, चूहों के बाद बंदरों से होते हुए यदि मनुष्य में भी दिव्या द्वारा बनाए टीके के प्रयोग सफल रहते हैं तो देश की सीमाओं पर कार्यरत सैनिकों को इसके टीके लगाकर उन्हें इस जानलेवा रोग से प्रतिरोधी बनाया जा सकता है। बृहस्पतिवार को दिव्या मुख्यालय में आई थीं। उन्होंने यहां कुमाऊं विवि के कुलपति व अपने शोध गुरु डा. राकेश भटनागर तथा भीमताल में जैव प्रोद्योगिकी विभागाध्यक्ष डा. बीना पांडे से मुलाकात कीं एवं आशीर्वाद लिया। उन्होंने बताया कि वह इसी दिशा में अपने शोध को आगे बढ़ाने के लिए विदेश जाना और वापस लौटकर देश की सेवा करना चाहती है। उम्मीद जताई कि उसके द्वारा विकसित टीका देश के काम आ सकेगा।