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रविवार, 1 जून 2014

नैनीताल विधानसभा में केवल 30 बूथों पर ही मामूली अंतर से आगे रही कांग्रेस

-शेष 80 फीसद यानी 116 बूथों पर भाजपा प्रत्याशी कोश्यारी को मिली भारी बढ़त
नवीन जोशी, नैनीताल। आजादी के बाद से विशुद्ध रूप से केवल एक और संयुक्त क्षेत्र होने पर दो बार ही भाजपा के खाते में गई नैनीताल विधानसभा में कांग्रेस का हालिया लोक सभा चुनावों में कमोबेश पूरी तरह से सूपड़ा साफ हो गया लगता है। मोदी की आंधी में इस बार इस विधानसभा क्षेत्र के 146 में से करीब 20 फीसद यानी 30 सीटों पर ही कांग्रेस प्रत्याशी केसी सिंह बाबा कहीं दो से लेकर अधिकतम 132 वोटों की बढ़त ले पाए, जबकि भाजपा प्रत्याशी भगत सिंह कोश्यारी ने 80 फीसद यानी 116 बूथों से अपनी बढ़ी जीत की इबारत लिखी। 
आजादी के बाद से भााजपा के लिए नैनीताल विधानसभा में कालाढुंगी का बड़ा हिस्सा जुड़ा होने के उत्तराखंड बनने से पहले के दौर में बंशीधर भगत चुनाव जीते थे। तब भी वर्तमान नैनीताल विधानसभा के क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी कमोबेश पिछड़ते ही रहते थे। उत्तराखंड बनने के बाद भाजपा के खड़क सिंह बोहरा 2007 में कोटाबाग और कालाढुंगी क्षेत्र में बढ़त लेकर बमुश्किल यहां से चुनाव जीत पाए थे। 
बीते 2012 के विधानसभा चुनावों में यहां से चुनाव के कुछ दिन पहले ही प्रत्याशी घोषित हुईं, और चुनाव क्षेत्र में ठीक से पहुंच भी न पाईं सरिता आर्या ने 25,563 वोट प्राप्त कर पांच वर्ष से दिन-रात चुनाव की तैयारी में जुटे भाजपा प्रत्याशी हेम चंद्र आर्या को 6358 मतों के बड़े अंतर से हरा दिया था। लेकिन, दो वर्ष के भीतर ही हुए लोक सभा चुनावों में कांग्रेस यहां बुरी तरह से पस्त हो गई नजर आ रही है। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी केवल 30 बूथों पर मामूली अंतर से भाजपा प्रत्याशी से आगे रह पाए हैं। उल्लेखनीय है कि नैनीताल विधानसभा में में भाजपा को 30,173 व कांग्रेस को 21,575 वोट मिले हैं और कांग्रेस 8,578 वोटों से पीछे रही है। इससे क्षेत्र के प्रभावी कांग्रेसी नेताओं के अपने बूथों पर प्रत्याशी को जिताने के दावों की कलई भी बुरी तरह से खुल गई है।

इन बूथों पर ही आगे रह पाए बाबा 

नैनीताल विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी केवल मल्ली सेठी, बेतालघाट, तौराड़, हल्सों कोरड़, रतौड़ा (दाड़िमा), तल्ली पाली, धूना (केवल दो मतों से), गरजोली, हरौली, ताड़ीखेत (13 मतों से), गौणा, ठुलीबांज, कफुड़ा, मल्लीताल सीआरएसटी कक्ष नंबर तीन व चार, राप्रावि मल्लीताल कक्ष नंबर तीन, अयारपाटा कक्ष नंबर दो (केवल नौ मतों से), मल्लीताल स्टेडियम, नारायणनगर, लोनिवि कार्यालय कक्ष नं. दो, राइंका तल्लीताल कक्ष एक (सर्वाधिक 168 मतों से), राइंका तल्लीताल कक्ष दो, गेठिया कक्ष दो, भूमियाधार (136 मतों से), छीड़ागांजा, ज्योलीकोट कक्ष एक (29 मतों से, कक्ष दो में 18 मतों से पीछे), पटुवाडांगर, गहलना (सिलमोड़िया), सौड़ व कुड़खेत में ही आगे रहे हैं। 

सरोवरनगरी में भी चली मोदी की आंधी

जिला व मंडल मुख्यालय नैनीताल हमेशा से कांग्रेस का परंपरागत गढ़ रहा है। किसी भी तरह के चुनावों के इतिहास में नैनीताल से कभी भी भाजपा प्रत्याशी कांग्रेस के मुकाबले आगे नहीं रहे हैं। एकमात्र 2004 में भाजपा प्रत्याशी विजय बंसल नैनीताल मंडल से आगे रहे थे, पर तब भी उनके आगे रहने में खुर्पाताल के ग्रामीण क्षेत्रों का योगदान रहा था। वर्तमान कांग्रेस विधायक सरिता आर्या नैनीताल की पालिकाध्यक्ष भी रही हैं, बावजूद वह अपने वोटों को मोदी की आंधी में उड़ने से नहीं रोक पाईं। भाजपा को नैनीताल नगर के 37 बूथों में इतिास में सर्वाधिक 9,154 वोट मिले हैं, जबकि कांग्रेस 7,021 वोटों के साथ 2,153 वोटों से पीछे रह गई है। नगर के नारायणनगर, हरिनगर, लोनिवि कार्यालय कक्ष नंबर 1 और मल्लीताल के कुछ मुस्लिम, दलित व कर्मचारी बहुल क्षेत्रों के केवल नौ बूथों पर ही कांग्रेस अपनी साख बचा पाई है। वहीं भाजपा ने नगर के राबाप्रावि मल्लीताल में 439 मत प्राप्त कर विधानसभा में सर्वाधिक 182 वोटों से बढ़त दर्ज की है।

मंगलवार, 6 मई 2014

बिना पार्टियों के चुनाव घोषणा पत्र के ही हो रहे लोक सभा चुनाव !


चुनाव में अब तक जुबानी खर्च ही करते रहे प्रत्याशी, 
प्रचार के आखिरी दिन तक नहीं पहुंचे भाजपा-कांग्रेस सहित किसी भी राष्ट्रीय दल के चुनाव घोषणा पत्र
नवीन जोशी, नैनीताल। चुनावों के लिए पेश किये जाने वाले घोषणा पत्र राजनीतिक दलों के लिए खास होते हैं। जनता अपनी चुनी हुई सरकार से उसके चुनाव पूर्व प्रस्तुत घोषणा पत्र के आधार पर ही जवाब-तलब करती है, मगर संभवत: यह पहली बार होगा कि कुमाऊं मंडल और जिला मुख्यालय में लोकसभा चुनाव की समय सीमा समाप्त होने के दिन तक भाजपा व कांग्रेस सहित किसी दल के घोषणा पत्र नहीं पहुंचे हैं। ऐसे में राजनीतिक दल जनता को अपने घोषणा पत्र नहीं दिखा रहे हैं और हवा-हवाई आरोप- प्रत्यारोपों के आधार पर ही वोट व समर्थन जुटा रहे हैं और संभवत: जनता भी जुबानी वादोंदा वों में ऐसे उलझी है कि वह भी राजनीतिक दलों से चुनाव घोषणा पत्र पढ़ने-संभालने को नहीं मांग रही है। गुजरे दौर में खासकर राजनीतिक दल अपने ही नहीं अन्य पार्टियों के चुनाव घोषणा पत्र अपने चुनाव कार्यालयों में रखते थे, ताकि जनता को दोनों की नीतियों और वादों का अंतर समझाया जा सके। ‘राष्ट्रीय सहारा’ ने सोमवार को लोकसभा चुनाव में प्रचार की समय सीमा समाप्त होने के दिन मुख्यालय में राजनीतिक दलों के चुनाव कार्यालयों का जायजा लिया, मगर किसी दल के चुनाव कार्यालय में पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र उपलब्ध नहीं थे। इस बारे में पूछने पर कहा गया कि इंटरनेट पर घोषणा पत्र उपलब्ध है यह जानते हुए कि देश-प्रदेश में इंटरनेट की उपलब्धता सीमित है। इसके साथ ही घोषणा पत्र किस यूआरएल पते या वेबसाइट पर उपलब्ध हैं इसकी जानकारी भी पार्टी के पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को नहीं है।
लगा प्रचार शुरू ही नहीं हुआ
नैनीताल। इस लोकसभा चुनाव में सही मायनों में पहाड़ पर और खासकर नैनीताल सीट व कुमाऊं मंडल तथा जिले के मुख्यालय में चुनाव प्रचार ठीक से शुरू ही नहीं हुआ था और यह सोमवार को प्रचार की समय सीमा समाप्त होने के साथ खत्म भी हो गया। इस दौरान स्टार प्रचारक कहने भर को यहां केवल भाजपा की ओर से शक्ति कपूर व आप की ओर से भगवंत मान और कांग्रेस के लिए सीएम हरीश रावत ही पहुंचे।

बुधवार, 23 अप्रैल 2014

पहाड़ में नहीं लोकतंत्र के ’महापर्व‘ जैसा माहौल

पहाड़ के बजाय मैदान में ही जोर लगा रहे प्रत्याशी और समर्थक अब तक किसी पार्टी के स्टार प्रचारक का कार्यक्रम भी तय नहीं
नवीन जोशी नैनीताल। कहने को प्रदेश के पर्वतीय अंचलों में भी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े यानी लोकसभा चुनावों के ‘महापर्व’ का मौका है, मगर इसे चुनाव आयोग की सख्ती का असर कहें कि पहाड़वासियों की मैदानों की ओर लगातार पलायन की वजह से लगातार क्षीण होती राजनीतिक शक्ति का प्रभाव, राजनीतिक दल और उनके प्रत्याशी पर्वतीय क्षेत्रों को चुनावों में भी भाव नहीं दे रहे हैं। कुमाऊं मंडल का जिला एवं मंडल मुख्यालय पर्वतीय क्षेत्रों की कहानी बयां करने के लिए काफी है, जहां पूरे शहर में कहने भर को केवल एक होर्डिग और गिनने भर को कुछ दीवारों पर केवल दो पार्टियों भाजपा व कांग्रेस के चुनाव कार्यालय खुले हैं और उनके ही पोस्टर चिपके हुए हैं। वहीं राज्य और देश के सत्तारूढ़ दल की उपेक्षा का यह आलम है कि उनका मुख्यालय में न ही अब तक चुनाव कार्यालय खुला है और न ही पूरे शहर में कहीं एक भी होर्डिग, बैनर या पोस्टर ही लगे हैं। ऐसे में बैनर-पोस्टर लिखने छापने और चिपकाने वाले चुनावी रोजगार से वंचित हो गए हैं, तो वे लागे महापर्व का अहसास कैसे करें। गौरतलब है कि नए परिसीमन में नैनीताल-ऊधमसिंह नगर संसदीय सीट पर पर्वतीय मतों का प्रतिशत करीब 35 और मैदानी मतों का प्रतिशत 65 है। ऐसे में उम्मीदवार मैदानी क्षेत्रों में ही जोर लगाकर अपनी जीत सुनिश्चित करने की जुगत में हैं। राजनीतिक दलों के स्टार प्रचारकों के भी अभी पर्वतीय क्षेत्रों के लिए कोई कार्यक्रम तय नहीं बताए जा रहे हैं। ऐसे में खासकर नैनीताल में लोकसभा चुनावों से अधिक आसन्न ग्रीष्मकालीन पर्यटन सीजन पर अधिक र्चचाएं हो रही हैं।

इंटरनेट पर लगा चुनावी मेला

नैनीताल। बदलते दौर में जहां लोकतंत्र का महापर्व पूरी तरह धरातल से नदारद है, वहीं इंटरनेट की दुनिया में पूरा मेला लगा हुआ है। शहर में चुनावों पर कोई राजनीतिक विमर्श न होने की वजह से नगर के आमजन टीवी, अखबार या इंटरनेट पर सोशल नेटवर्किग साइटों पर बन रही प्रत्याशियों की बन-बिगड़ रही हवा पर ही आश्रित होकर अपनी राय बना या बदल रहे हैं। इंटरनेट पर जोरों से पार्टियों के पक्ष या विरोध में खूब जोशो-खरोश से र्चचाएं हो रही हैं। यहां राजनीतिक दलों के चुनाव चिह्नों, प्रत्याशियों व राष्ट्रीय नेताओं के बारे में पूरा मेले जैसा माहौल है। ऐसे में लोग यह भी कहते सुने जा रहे हैं कि हर डंडा कमजोर तबकों पर ही पड़ता है। निचले तबके के चुनाव प्रचार में अपना रोजगार जुटाने वाले लोग जरूर बेरोजगार कर दिये गए हैं, लेकिन इंटरनेट से जुड़ी कंपनियों की चुनावी महापर्व पर खूब ‘पौ-बारह’ हो रही है।

बुधवार, 20 नवंबर 2013

मंत्रियों ने अपनी सीटें सामान्य करा लीं, बाकी पर आरक्षण

पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण का खाका तैयार 
नैनीताल (एसएनबी)। जनपद में आसन्न पंचायत चुनावों के लिए ब्लाक प्रमुख, जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य एवं ग्राम पंचायत की सीटों के लिए आरक्षण की घोषणा हो गई है। बुधवार को डीएम के स्तर से आरक्षण की स्थिति साफ हो गई है। इसके तहत जनपद की सर्वाधिक महत्वपूर्ण हल्द्वानी, बेतालघाट और रामनगर के ब्लॉक प्रमुखों की सीटें अनारक्षित रखी गई हैं। उल्लेखनीय है कि यह तीनों क्षेत्र राज्य सरकार के तीन सर्वाधिक प्रभावी काबीना मंत्रियों के परंपरागत क्षेत्र हैं। हल्द्वानी काबीना मंत्री डा. इंदिरा हृदयेश, बेतालघाट अब परोक्ष तौर पर यशपाल आर्या एवं रामनगर अमृता रावत के गृह क्षेत्र हैं। वहीं कोटाबाग में अनुसूचित जाति की महिला, ओखलकांडा में अनुसूचित जाति के पुरुष या महिला तथा धारी, रामगढ़ व भीमताल महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं। 
साफ है कि इन सभी ब्लाकों में मौजूदा स्थिति के हिसाब से आरक्षण के बदलाव से राजनीतिक रूप से उलटफेर कर दिया गया है, हालांकि अभी इन पर आपत्तियां भी दी जा सकती हैं। इसी तरह जिला पंचायत क्षेत्रों के आरक्षण की बात करें तो जिले की 26 सीटों में से तीन सीटें अनुसूचित जाति की महिलाओं, तीन अनुसूचित जाति, एक पिछड़ी जाति, नौ महिलाओं के लिए आरक्षित तथा 10 अनारक्षित छोड़ी गई हैं। चोरगलिया आमखेड़ा, ककोड़ व पत्तापानी अनु. जाति की महिलाओं, आंवलाकोट, ओखलकांडा मल्ला व पूरनपुर अनु. जाति, सिमलखां पिछड़ी जाति, सूपी, जंगलियागांव, दाड़िमा, दीनी तल्ली, सरना, चंद्रनगर, बमेठा बंगर खीमा, बिठौरिया नं. 1 व अमृतपुर महिलाओं के लिए आरक्षित की गई हैं। वहीं पनियाली, ज्योलीकोट, बड़ोन, कमोला, ढोलीगांव, हरतपा, घंघरेटी, छोई, गहना व मेहरागांव अनारक्षित रखी गई हैं। इसी प्रकार क्षेत्र पंचायत एवं ग्राम पंचायत की सीटों के लिए भी आरक्षणों की भारी भरकम सूची जारी कर दी गई है, और इसे जिला व ब्लॉक मुख्यालयों पर रखवा दिया गया है।

रविवार, 28 अप्रैल 2013

नगर की सत्ता से खुलता है राजधानी का रास्ता


सरिता आर्या समेत आधा दर्जन पालिकाध्यक्षों को हासिल हो चुकी है विधायकी
नवीन जोशी नैनीताल। प्रदेश में निकाय चुनाव का जो शोर और प्रत्याशियों द्वारा एड़ी- चोटी का जोर दिख रहा है, वह केवल नगरकी सत्ता के लिए ही नहीं, वरन प्रदेश की राजधानी की सत्ता की ओर भी है। क्योंकि इतिहास गवाह है कि नवसृजित राज्य में अनेकों राजनेताओं के लिए नगरों की सत्ता का रास्ता राजधानी देहरादून की मंजिल तक पहुंचा है। नैनीताल की वर्तमान विधायक सरिता आर्या समेत प्रदेश की वर्तमान विधानसभा में आधा दर्जन विधायक पालिकाओं से ही सत्ता का ककहरा सीख कर आगे बढ़े हैं। उत्तराखंड प्रदेश में पालिकाध्यक्ष की कुर्सी से राज्य की विधानसभा में जाने की शुरूआत करने का श्रेय पूर्व उक्रांद विधायक यशपाल बेनाम को जाता है, वह पौड़ी नपा के अध्यक्ष थे, और वहां के कार्यकाल की बदौलत ही आगे विधायक बनने में सफल रहे। वहीं नैनीताल की वर्तमान विधायक सरिता आर्य को ऐसी पहली महिला पालिकाध्यक्ष होने का गौरव हासिल है जो आगे चलकर विधायक बनने में सफल रहीं। उनकी विधायक के रूप में जीत का पूरा श्रेय उनके पालिकाध्यक्ष के कार्यकाल को है जाता है। वर्तमान विधानसभा में पहुंचे अन्य अध्यक्षों की कड़ी में रुड़की के विधायक प्रदीप बतरा के नाम एक साथ पालिकाध्यक्ष व विधायक रहने का रिकॉर्ड दर्ज है। वहीं गंगोत्री के पूर्व पालिकाध्यक्ष विजय पाल सिंह विधायक के बाद संसदीय सचिव बनाए गए हैं, जबकि टिहरी के पालिकाध्यक्ष रहे दिनेश धनै विधायकी के बाद गढ़वाल मंडल विकास निगम के अध्यक्ष का पदभार देख रहे हैं। रुद्रपुर के पालिकाध्यक्ष रहे राजकुमार ठुकराल रुद्रपुर के ही विधायक के रूप में वहां मौजूद हैं। वर्तमान विधानसभा में देहरादून नगर निगम के दो पार्षद-राजकुमार और उमेश शर्मा 'काऊ' भी विधायक के रूप में पहुंचे हैं। 
वहां फेल, यहां पास 
नैनीताल। राजनीति में सब कुछ संभव है। वर्तमान विधानसभा में ऋ षिकेष विधायक प्रेम चंद्र अग्रवाल और प्रतापनगर विधायक विक्रम सिंह नेगी ऐसे उदाहरण हैं, जो क्रमश: डोईवाला नगर पंचायत और प्रतापनगर पालिका से चुनाव लड़े थे, लेकिन हार गए, जबकि विस चुनाव में जीत कर देहरादून पहुंचने में सफल रहे हैं। 

रविवार, 21 अप्रैल 2013

प्रत्याशियों के साथ चुनाव चिह्नों के बीच भी चल रही जंग


"हाथ" को सबका साथ तो "फूल" को झील में खिलने की उम्मीद
नैनीताल (एसएनबी)। यूं हाथ तो सभी के पास होता है, और बिना हाथ के कोई काम नहीं चल सकता, लेकिन यहां "हाथ" सबका साथ मांग रहा है। वहीं ˜कमल का फूल" सामान्यतया कीचड़ या दलदली जगह पर खिलता है, लेकिन यहां उसे नैनी झील में खिलने की उम्मीद है। जी हां, यहां बात आम हाथ या कमल के फूल की नहीं वरन निकाय चुनाव के दौरान हर चुनाव की तरह एक बार खासकर राजनीतिक दलों की जुबान पर चढ़ने वाले चुनाव चिह्नों की ही कर रहे हैं, लेकिन एक अलग नजरिए के साथ। सरोवरनगरी की अति महत्वपूर्ण एवं अपनी स्थापना के साथ ही तत्कालीन नॉर्थ वेस्ट प्रोविंस और अब देश की दूसरी सबसे प्राचीन नगरपालिका कहे जाने वाले नगर में जब अधिकांश राजनीतिक दलों के साथ ही निर्दलीय भी निर्दलीय प्रत्याशी कम जाने- पहचाने हैं। साथ ही खासकर निर्दलीय प्रत्याशियों के समक्ष अपने साथ ही अपने चुनाव चिह्न को चुनाव की तिथि तक मतदाताओं को याद दिलाने की दोहरी समस्या है। ऐसे में उनके समर्थक अपने प्रत्याशियों के बजाए उनके चुनाव चिह्नों से ही जनता को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। मसलन कांग्रेस समर्थक "हाथ" के बिना तो वोट भी न डाले जाने की समस्या बताकर सब कुछ भूलकर "हाथ" पर ही मुहर लगाने की गुहार लगा रहे हैं, तो  भाजपा के प्रचारक नैनी झील में विकास का ˜कमल" खिलवाने के लिए मदद मांग रहे हैं। इसी तरह बाल्टी चुनाव चिह्न वाले निर्दलीय प्रत्याशी याद दिला रहे हैं कि पिछली बार वोटरों ने ˜बाल्टी" भर कर मुकेश जोशी को पालिकाध्यक्ष बनवाया था। लिहाजा इस बार बाल्टी वोटों से भर दें। गुड़िया चुनाव चिह्न के प्रत्याशी समर्थकों को दिल्ली की घटना के बाद बिना किए ही प्रचार मिलने का भरोसा बन रहा है। अन्य निर्दलीय प्रत्याशी अपने स्वयं को जमीन से जुड़ा बताते हुए मिट्टी की बनी ˜ईट" से पालिका में विकास की नींव रखने की बात कर रहे हैं, तो अन्य पालिका में ˜मोमबत्ती" जलाकर रोशनी करने की उम्मीद कर रहे हैं। कप-प्लेट, केतली, बंगला व वायुयान जैसे चुनाव चिह्नों वाले प्रत्याशियों के पास अपने-अपने समझाने के तरीके हैं। निर्दलीय चुनाव लड़ने के बावजूद चुनाव चिह्नों से प्रत्याशियों के संबंध जुड़ जाने के प्रसंग हैं। एक प्रत्याशी पिछले निकाय चुनाव में बंगला चुनाव चिह्न के साथ चुनाव जीते थे, इस बार उनके साथ ही उनकी पत्नी भी दूसरे वार्ड से सभासद प्रत्याशी के लिए चुनाव मैदान में है, और दोनों के चुनाव चिह्न बंगला ही हैं। इसी तरह अन्य भी अनेक प्रत्याशी हैं, जिन्होंने पिछली बार चुनाव जीतने पर पुराने चिन्ह ही हासिल किए हैं, जबकि हारने वालों ने चुनाव चिह्न भी बदल डाले हैं। वहीं विरोधी प्रत्याशियों के चुनाव चिह्नों को लेकर दुष्प्रचार की कमी नहीं है। कोई दूसरे की मोमबत्ती बुझाने अथवा प्रत्याशी के सिर पर ही नारियल या ईट फोड़ने पर उतारू है तो अन्य को विरोधी की बाल्टी में छेद भी खूब नजर आ रहे हैं। बहरहाल, इस तरह सामान्यतया अब तक नीरस चल रहा चुनाव प्रचार थोड़ा-बहुत रोचक जरूर हो गया है। 

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

पालिका से सीढ़ी चढ़ विधायक-सांसद बने बिष्ट, चंद, सरिता...

राजनीति की पाठशाला साबित होती रही है नैनीताल नगर पालिका
नवीन जोशी, नैनीताल। 1841 में अपनी बसासत के चार वर्ष के भीतर ही 1845 में देश की दूसरी नगर पालिका का दर्जा हासिल करने वाली नैनीताल नगर पालिका कई राजनेताओं के लिए राजनीति की पाठशाला के साथ ही राजनीतिक कॅरियर की सीढ़ी भी साबित हुई है। यहां सभासद रहे श्रीचंद ने यूपी में दो मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में वन एवं राजस्व विभाग के काबीना मंत्री रहने का गौरव हासिल किया। जबकि वर्तमान विधायक सरिता आर्या सहित नगर के प्रथम पालिकाध्यक्ष रायबहादुर जसौत सिं बिष्ट, तीसरे अध्यक्ष बाल कृष्ण सनवाल व चौथे अध्यक्ष किशन सिंह तड़ागी भी आगे चलकर विधायक बने। 
नैनीताल नगर पालिका से राजनीतिक अनुभव का ककहरा सीखकर पालिका के भीतर ही पदोन्नति प्राप्त करने वालों की बात की जाए तो पहला नाम नगर के वर्तमान पालिकाध्यक्ष मुकेश जोशी का आता है, जो पूर्व में सरिता आर्या की अध्यक्षता वाली बोर्ड में सभासद रहे, और आगे पालिकाध्यक्ष बने। अब वर्तमान चुनावों में करीब एक दर्जन पूर्व सभासद व अध्यक्ष पालिका के भीतर ऐसी ही ऊंची उड़ान भरने की कोशिश में हैं, जो उनके पालिका चलाने के अनुभव का मापदंड भी साबित हो रही है। इस कड़ी में पहला नाम भाजपा प्रत्याशी संजय कुमार ‘संजू’ का आता है, जो वर्ष 1977 से 2002 तक नैनीताल पालिका के अध्यक्ष रहे, और दुबारा अध्यक्ष पद प्राप्त करने की कोशिश में चुनाव मैदान में हैं। गौरतलब है कि पूर्व में नगर के प्रथम पालिकाध्यक्ष रायबहादुर जसौत सिंह बिष्ट के नाम ही दो बार (1941 से 1947 और 1947 से 1953 तक) पालिकाध्यक्ष रहने का रिकार्ड दर्ज है। उनके अलावा पूर्व सभासद सुभाष चंद्रा के साथ वर्तमान तीन सभासद दीपक कुमार ‘भोलू’, राकेश कुमार ‘शंभू’ और प्रेम सागर भी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव मैदान में हैं। उनके साथ ही पूर्व सभासद डीएन भट्ट तथा चार वर्तमान निर्वाचित सभासद मनोज अधिकारी, मंजू रौतेला, कृपाल बिष्ट व अमिता बेरिया तथा दो मनोनीत सभासद आनंद बिष्ट व मधु बिष्ट भी सभासद पद के लिए मैदान में हैं। यह सभी प्रत्याशी स्वयं को पालिका की सेवाओं के लिए अनुभवी बताकर प्रत्याशियों से चुनाव जिताने की अपील कर रहे हैं।

कौन                       क्या रहे                        क्या बने
जसौत सिंह बिष्ट        प्रथम पालिकाध्यक्ष           सांसद
बाल कृष्ण सनवाल    पालिकाध्यक्ष                   विधायक
किशन सिंह तड़ागी    पालिकाध्यक्ष                   विधायक
सरिता आर्या            पालिकाध्यक्ष                   विधायक
श्रीचंद                    सभासद                          यूपी के वन व न्याय मंत्री
मुकेश जोशी            सभासद                          पालिकाध्यक्ष

इस चुनाव में यह भर रहे हैं उड़ान
कौन                      क्या थे                    दावेदार
संजय कुमार संजू     पूर्व पालिकाध्यक्ष       पालिकाध्यक्ष
सुभाष चंद्रा             सभासद                   पालिकाध्यक्ष
दीपक कुमार ‘भोलू’  सभासद                  पालिकाध्यक्ष
राकेश कुमार ‘शंभू’   सभासद                  पालिकाध्यक्ष
प्रेम सागर               सभासद                  पालिकाध्यक्ष

पूर्व सभासद जो हैं सभासद पद प्रत्याशी
डीएन भट्ट, मनोज अधिकारी, मंजू रौतेला, कृपाल बिष्ट, अमिता बेरिया, आनंद बिष्ट व मधु बिष्ट 

मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

भाई के लिए दो भाई हटे चुनाव मैदान से


नवीन जोशी नैनीताल। यों सियासत और जंग में कोई किसी के लिए कुर्बानी नहीं देता, लेकिन कुमाऊं मंडल एवं जनपद मुख्यालय की नगर पालिका नैनीताल में दो भाइयों ने अपने भाइयों की जीत के लिए अपनी दावेदारी वापस लेकर मिसाल पेश की है। नाम वापसी के आखिरी दिन अध्यक्ष पद के एक एवं सभासद पद के दो निर्दलीय प्रत्याशियों चुनावी समर से वापस लौट आए। इसके बाद पालिकाध्यक्ष के प्रतिष्ठित पद पर 13 एवं 13 वार्डों के एक-एक यानी कुल 13 सभासद पदों के लिए 86 प्रत्याशी मैदान में शेष रह गए हैं। 
उल्लेखनीय है कि अध्यक्ष पद पर कांग्रेस से टिकट के प्रमुख दावेदार राजेंद्र व्यास और उनके भाई अरविंद व्यास ने नामांकन कराया था। राजेंद्र कांग्रेस पार्टी से सशक्त प्रत्याशी थे, लेकिन अपनी पार्टी की लंबी सेवाओं और अपने जनाधार को देखते हुए वह चुनाव मैदान में उतर आए। उधर, उन्हीं के छोटे भाई अरविंद व्यास निर्दलीय चुनाव मैदान में कूद पड़े थे। उन्हें उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी का समर्थन प्राप्त था। एक घर में एक साथ रहने और कमजोर आर्थिक स्थिति के साथ दोनों ही भाइयों ने नामांकन के लिए अपनी मां से तीन-तीन हजार रुपये लेकर नामांकन कराया था लेकिन नामांकन वापसी के आखिरी क्षणों में अरविंद ने राजेंद्र को पूरे जोश से चुनाव लड़ाने के लिए अपना नामांकन पत्र वापस ले लिया। इसी तरह भाजपा प्रत्याशी संजय कुमार "संजू" की अध्यक्ष पद पर जीत सुनिश्चित करने की कोशिश में स्नोव्यू से सभासद का चुनाव लड़ रहे अक्षय कुमार ने नाम वापस ले लिया। संजू के चुनाव में हमेशा ही उनका चुनाव प्रबंधन देखने वाले अक्षय कुमार का कहना है कि वह अपने वार्ड में चुनाव लड़ने और जीतने के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थे, उनकी तैयारी लंबे समय से चल रही थी। लेकिन आखिरी क्षणों में संजू को भाजपा से टिकट मिलने पर उन्होंने बड़े भाई को चुनाव जिताने के लिए स्वयं चुनाव न लड़ने का फैसला लिया, ताकि ऊर्जा दो की जगह एक जगह ही लगाई जा सके। इधर वार्ड 12 कृष्णापुर से पंकज आर्य ने भी पर्चा वापस ले लिया। 

रविवार, 14 अप्रैल 2013

कम ही दिखा "आधी दुनिया˜ का जोर


नवीन जोशी, नैनीताल। जनपद में जहां विधानसभा चुनावों के बाद दो मंत्रियों व एक विधायक के साथ ही डीएम, कमिश्नर (अभी हाल में स्थानांतरण से पूर्व), जिला पंचायत अध्यक्ष एवं दो ब्लाक प्रमुखों के साथ ˜आधी दुनिया" कही जाने वाली महिलाओं का पूरा ˜दम" नजर आता रहा है, वहीं जनपद की सबसे महत्वपूर्ण नैनीताल नगर पालिका में महिलाओं का यही दम फूलता सा नजर आ रहा है। यहां महिलाओं हेतु आरक्षित वार्डों  में अपेक्षा से कम ही प्रत्याशी मैदान में हैं, वहीं अध्यक्ष सहित गैर आरक्षित आठ वार्डों में पांच महिलाएं ही प्रत्याशी हैं। वर्ष 2003 के बाद तीन से अधिक बच्चे उत्पन्न होने पर अयोग्यता के नए नियम का 80 फीसद खमियाजा (5 में से 4 पर्चे महिलाओं के ही हुए ख़ारिज) भी महिलाओं को भुगतना पड़ा है। 
नैनीताल में अध्यक्ष पद के लिए 14 और 13 वार्डों के सभासदों के पदों के लिए 88 प्रत्याशी मैदान में हैं  इनमें महिला दावेदारों की संख्या कुल मिलकर केवल 29 ही है। अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित अध्यक्ष पद के लिए 14 प्रत्याशियों ने अपनी दावेदारी पेश की है, इनमें केवल एक शालिनी आर्या बिष्ट महिला वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। वहीं महिलाओं हेतु गैर आरक्षित स्नोभ्यू वार्ड से सर्वाधिक दो- वर्तमान सभासद अमिता बेरिया व रेखा वैद्य, वार्ड सात शेर का डांडा से जीवंती देवी, वार्ड 10 सूखाताल से लीला अधिकारी सहित कुल पांच महिलाएं ही चुनाव लड़ने की हिम्मत जुटा पाई हैं। वहीं जहां नगर के अनारक्षित आवागढ़ वार्ड में 14 एवं सूखाताल वार्ड में 11 प्रत्याशी मैदान में उतरे हैं, लेकिन महिलाओं हेतु आरक्षित वाडरे में प्रत्याशियों का टोटा साफ नजर आता है। वार्ड तीन व वार्ड 11 में छह-छह (वार्ड 3 हरिनगर से कंचन, शीतल आर्या, रेनू आर्या, बबीता पंवार, मनीशा व आरती व वार्ड 11 मल्लीताल बाजार से पुष्पा साह, भारती साह, ललिता दोषाद, मंजू जोशी, गुंजन-मंजू रौतेला व कंचन वर्मा ), वार्ड नौ (नैनीताल क्लब से विद्या जोशी, दया सुयाल, सपना बिष्ट, नीमा अधिकारी व मधु बिष्ट) में पांच प्रत्याशियों को थोड़ा ठीक भी मानें तो अपर माल वार्ड में केवल चार (नीतू बोहरा, आशा आर्या, रमा गैड़ा व रीना मेहरा) और तल्लीताल बाजार जैसे वार्ड में केवल तीन महिला प्रत्याशी (प्रेमा मेहरा, प्रेमा अधिकारी व किरन साह) मतदाताओं को अधिक विकल्प उपलब्ध नहीं करा रही हैं। हालांकि जो महिलाएं राजनीति में आ भी रही हैं, वे भी अपनी कठपुतलियों सी डोर पतियों या अन्य पुरुष संबंधियों के हाथों में ही रखे रहने से गुरेज नहीं करतीं। नैनीताल में ऐसा कुछ कम नजर आता है जो सुखद व उम्मीद जगाने वाला हो सकता है।

शनिवार, 13 अप्रैल 2013

नैनीताल पालिका चुनाव में "तजुर्बे" की भी होगी परीक्षा



अध्यक्ष पद पर एक पूर्व अध्यक्ष व चार सभासद और सभासद पद पर सात पूर्व सभासद मैदान में
नवीन जोशी नैनीताल। निस्संदेह लोकतंत्र में हर किसी को चुनावी समर में उतर कर जनसेवा के लिए स्वयं को जनता की कसौटी पर कसने का अधिकार है, और आज के दौर को युवाओं का दौर कहा जाता है, और युवाओं को ही चुनावों के माध्यम से आगे लाने की वकालत की जाती है लेकिन तजुब्रे को दरकिनार करना कभी भी आसान नहीं होता। देश की दूसरे नंबर की सबसे प्राचीन 1845 में स्थापित नैनीताल नगर पालिका में भी इस बार "अनुभव" की कसौटी पर कसा जाएगा। यहां अध्यक्ष पद के लिए एक पूर्व अध्यक्ष सहित चार पूर्व सभासद एवं सभासदों के 13 पदोंके लिए सात पूर्व एवं वर्तमान सभासद मैदान में हैं। नैनीताल नगर पालिका के चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए नामांकन कराने वाले 14 प्रत्याशियों में पांच प्रत्याशी पूर्व या वर्तमान में पालिका में बतौर जनप्रतिनिधि जुड़े रहकर अनुभव रखते हैं। इनमें भाजपा प्रत्याशी संजय कुमार 'संजू' पूर्व में वर्ष 2003 से 2008 तक पालिका अध्यक्ष रह चुके हैं। वहीं भाजपा के बागी प्रत्याशी प्रेम सागर, कांग्रेस के बागी प्रत्याशी दीपक कुमार ˜भोलू" के साथ ही बसपा प्रत्याशी राकेश कुमार ˜शंभू" 2008 में चुनाव जीतकर वर्तमान में सभासद के रूप में कार्यरत हैं। वहीं कांग्रेस के अन्य बागी निर्दलीय प्रत्याशी सुभाष चंद्रा भी पूर्व में पालिका सभासद रह चुके हैं। 
पालिका सभासदों के पदों की बात की जाए तो स्नोभ्यू से अमिता बेरिया, आवागढ़ से मनोनीत आनंद बिष्ट, नैनीताल क्लब से मनोनीत सभासद मधु बिष्ट, सूखाताल वार्ड से मनोज अधिकारी, मल्लीताल से मंजू उर्फ गुंजन बिष्ट, कृष्णापुर से डीएन भट्ट व शेर का डांडा से कृपाल बिष्ट पूर्व में सभासद पद का दायित्व देख चुके हैं। इनमें डीएन भट्ट पूर्व में पालिका के वरिष्ठ उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं।

गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

ऐसा भी हुआ: एक साथ दो शहरों में सभासद रहे थे श्रीचंद




नवीन जोशी नैनीताल। यह अपनी तरह का अनूठा मामला हो सकता है। नगर निवासी एवं उत्तर प्रदेश में दो मुख्यमंत्रियों के शासनकाल में वन एवं कानून विभाग के कैबिनेट मंत्री रहे श्रीचंद के नाम यह रिकार्ड दर्ज है कि वह एक अवधि में ही दो शहरों की नगर पालिका में सभासद रहे। वह भी सात वर्ष की अवधि के लिए। श्री चंद अपनी इस विशिष्ट सेवा के बारे में बताते हुए आजादी के बाद के दौर को याद करते हुए बताते हैं कि उन दिनों नगर से अधिकतर लोग नवम्बर में मैदानों में प्रवास पर चले जाते थे। लिहाजा वहां भी नगर पालिका की मतदाता सूचियों में नाम चढ़ जाया करता था और यह कुछ गलत भी नहीं माना जाता था। उन्होंने बताया कि वर्ष 1959 में नैनीताल नगर पालिका के तल्लीताल वार्ड से वह सभासद का चुनाव जीते थे। उधर हल्द्वानी में भी उनका घर था और नैनीताल के साथ ही हल्द्वानी में भी अच्छा संपर्क था। उनके नैनीताल में सभासद बनने के करीब एक वर्ष बाद हल्द्वानी में अनुसूचित जाति के एक सभासद की मृत्यु हो गई। इस पर साथियों ने उन्हें सभासद की रिक्त हुई सीट पर चुनाव लड़ने के लिए न चाहते हुए भी मना लिया। श्रीचंद वहां से चुनाव लड़े और सभासद चुन लिए गए। उस दौर में नैनीताल में राय बहादुर जसौत सिंह बिष्ट और हल्द्वानी में हीरा बल्लभ बेलवाल पालिकाध्यक्ष थे। श्रीचंद बताते हैं कि वह 1960 से 1966 तक वह दोनों जगह एक साथ सभासद रहे और इस दौरान हल्द्वानी में पालिका की शिक्षा उप समिति के अध्यक्ष भी रहे। बाद में नगर पालिका चुनावों से प्राप्त राजनीतिक अनुभव के बल पर ही आगे वह वर्ष 1977 में यूपी में लोक दल के राम नरेश यादव मंत्रिमंडल में वन एवं लोकदल के ही बनारसी दास मंत्रिमंडल में वन एवं कानून मंत्री भी रहे।


अधिकारी दंपति भी आजमा रहे भाग्य
नैनीताल। नगर पालिका नैनीताल के चुनावों में वर्तमान सभासद मनोज अधिकारी और उनकी पत्नी नीमा अधिकारी दोनों चुनाव लड़ने जा रहे हैं। मनोज ने नगर के सूखाताल और नीमा ने नैनीताल क्लब वार्ड से नामांकन करा दिया है। मनोज वर्तमान में नैनीताल क्लब वार्ड से सभासद हैं। इस बार उनकी सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होने पर उन्होंने अपनी सीट तो पत्नी का समर्पित कर दी है, लेकिन सूखाताल वार्ड में भी अच्छा प्रभाव होने से वह स्वयं वहां भाग्य आजमा रहे हैं। दोनों जीते तो इतिहास रचेंगे।

मंगलवार, 24 जनवरी 2012

प्रत्याशी ही नहीं समर्थकों की छवि पर भी मतदाताओं की नजर


शैक्षिक स्तर व जागरूकता बढ़ने का भी है असर, आंख-मूंदकर नहीं कर रहे किसी का समर्थन या विरोध
नवीन जोशी, नैनीताल। उत्तराखंड के मतदाताओं में अब वोट को लेकर जागरूकता आ गई है। मतदाता न सिर्फ उम्मीदवार की छवि को आधार बना रहे हैं, बल्कि उनके प्रमुख समर्थकों पर भी नजरें गड़ाएं हैं। छवि बनाने में भी एक पक्षीय निर्णय नहीं लिया जा रहा, वरन तर्क की कसौटी पर भी छवियों को कसने की कोशिश की जा रही है। प्रदेश के मतदाताओं में बढ़े साक्षरता के स्तर को इसका प्रमुख कारण माना जा रहा है।
 इस चुनाव में राज्य की जनता प्रचार के लिए पहुंच रहे उम्मीदवारों से कई सवाल कर रही है। लोग नेताओं से स्थानीय समस्याओं का समाधान पूछ रहे हैं और नेताओं द्वारा किए जा रहे वादों की हकीकत पूछ रहे हैं। यह पहली बार हुआ है कि लोग महज नेताजी का भाषण ही नहीं सुन रहे, उनसे सवाल कर विकास कार्यों का हिसाब भी मांग रहे हैं। जनता अपने विधायक से चाहती है कि वह अपने क्षेत्र से भली-भांति वाकिफ हो, वह विपक्ष में होने जैसे विषम राजनीतिक हालातों में भी स्वयं को स्थापित कर मजबूती से जनता की समस्याओं को विधायिका में रखने में समर्थ हो। विस क्षेत्र और प्रदेश की जनता कमोबेश ऐसी ही कसौटी पर अपने विधायक प्रत्याशियों को कस रही है। ऐसे में यदि किसी प्रत्याशी के समर्थक उनसे अपने पक्ष में मतदान करने को कहते हैं तो कई बार वह प्रत्याशी को लेकर ऐसे सवालात भी कर रहे हैं। यह मतदाताओं के जागरूक होने का संकेत माना जा सकता है। जातीय-क्षेत्रीय आधार पर बात करने वाले समर्थकों को कई बार मतदाता सीधे ‘ना’ कहने से भी गुरेज नहीं कर रहे। प्रत्याशियों के साथ ही उनके समर्थकों की छवि भी देखी जा रही है। ‘अभी से प्रत्याशी ऐसे समर्थकों से घिरा है तो आगे जीतने पर क्या करेगा’ ऐसी चिरौरियां भी पीठ पीछे की जा रही हैं और कई बार इसके उलट अच्छी छवि के समर्थकों पर विश्वास भी जताया जा रहा है कि ऐसे लोग साथ हैं तो आगे भी प्रत्याशी ठीक कार्य ही करेगा। 

महिलाएं निभा रहीं प्रचार में प्रमुख भूमिका
नैनीताल। हालिया दौर में महिलाओं के घर की चौखट से कार्य के लिए बाहर निकलने का असर चुनाव प्रचार पर भी दिख रहा है। पुरुष मतदाता अपने समर्थक प्रत्याशी के खुले समर्थन में आकर अन्य से नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते और चुनाव प्रचार से दूर ही रहते हैं। वहीं निम्न- मध्यम के साथ ही उच्च-मध्यम वर्ग की महिलाएं आजादी का लुत्फ चुनाव प्रचार में अपनी बढ़-चढ़कर भागेदारी निभाकर ले रही हैं। घर-घर चल रहे प्रचार- कैंपेनिंग में महिलाओं का उपयोग प्रत्याशियों को भी सहज एवं प्रभावी लग रहा है। मतदाता भी उनकी बात अधिक सहजता से सुन रहे हैं।

सोमवार, 23 जनवरी 2012

भाजपा का अगला कार्यकाल पहाड़ को होगा समर्पित : बचदा


पीपीपी मोड में 50 हजार करोड़ रुपये के निवेश से पहाड़ में उद्योग व किसानों को सस्ते लोन देने का वादा
जल, जंगल, जमीन के मुद्दे पर पार्टी को बेहद सचेत बताया
नैनीताल (एसएनबी)। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं चुनाव घोषणा पत्र समिति के संयोजक बची सिंह रावत ‘बचदा’ ने कहा कि वर्तमान कार्यकाल में भाजपा ने मैदानी क्षेत्रों में विकास की गंगा बहाई है जबकि अगला कार्यकाल पर्वतीय क्षेत्रों के विकास के नाम रहेगा। पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र का हवाला देते हुए उन्होंने पीपीपी मोड में पहाड़ पर 50 हजार करोड़ रुपये का निवेश करवाने, औद्योगिक विकास करने, लघु एवं सीमांत किसानों को महज दो फीसद ब्याज पर कृषि ऋ ण देने तथा चार लाख हेक्टेयर बेनाप रक्षित वन भूमि का प्रबंधन कर विकास कायरे को गति देने एवं भूमिहीनों को भूमि देने तथा फलों के बीमा की योजना लाने जैसे कई वायदे किये हैं। सोमवार को नगर के पत्रकारों से वार्ता में बचदा ने कहा कि भाजपा उत्तराखंड की अवधारणा से जुड़े मुद्दों के प्रति खासी सचेत है। खेती, किसान और भूमि भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र में प्रमुख मुद्दे हैं। वर्ग चार जैसी भूमि पर दशकों से काबिज लोगों को स्वामित्व परिवर्तन के अधिकार दिये जाएंगे। सरकार ने 1893 के अंग्रेजों के जमाने के कानून को समाप्त कर करीब चार लाख हेक्टेयर बेनाप रक्षित भूमि को मुक्त कराया है, अब अगले कार्यकाल में इसका प्रबंधन करेंगे। इस मौके पर पार्टी जिलाध्यक्ष भुवन हरबोला, विस संयोजक बालम मेहरा, जिला मंत्री विवेक साह, मनोज साह, मनोज जोशी, हिमांशु जोशी आदि भी मौजूद थे। 

निशंक का बचाव किया 
नैनीताल। भाजपा के वरिष्ठ नेता बची सिंह रावत ने टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल द्वारा पूर्व सीएम डा. निशंक पर की गई टिप्पणी पर पार्टी के पूरी मजबूती से उनके साथ होने की बात कही। उन्होंने कहा कि निशंक उतने ही पाक-साफ हैं, जितना कोई और। उन्होंने कहा कि कायरे में अनियमितता हो सकती है पर भ्रष्टाचार का सवाल ही नहीं है। उन पर आरोप लगाने वालों को पहले शिकायत दर्ज करनी चाहिए।
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नैनीताल में कांग्रेस पर 21 वर्ष का बनवास तोड़ने की चुनौती

मंडल मुख्यालय की महत्वपूर्ण सीट पर भाजपा-कांग्रेस में सीधी टक्कर के आसार  
नवीन जोशी, नैनीताल। कुमाऊं की नैनीताल सुरक्षित सीट पर भाजपा के हेम आर्य और कांग्रेस की सरिता आर्य के बीच सीधी टक्कर के आसार हैं जबकि बसपा त्रिकोण बनाने की कोशिश में है। वि प्रसिद्ध पर्यटन नगरी की इस सीट पर कांग्रेस को 21 वर्ष के वनवास को तोड़ने की तथा भाजपा के समक्ष अपनी मौजूदा सीट को प्रत्याशी बदलने के बाद भी बरकरार रखने की चुनौती है। मंडल मुख्यालय होने के नाते नैनीताल सीट पर देश-प्रदेश की नजर रहती है, इस लिहाज से यह सीट प्रदेश की महत्वपूर्ण सीटों में शुमार है। देश-दुनिया के सैलानी यहां तनाव-समस्याओं का बोझ उतारने के लिए आते हैं, तो खासकर सीजन में नगरवासियों को सैलानियों की अधिक संख्या का दंश झेलना पड़ता है। सैलानियों के वाहनों के बीच नगरवासियों के पैदल निकलने तक को जगह नहीं मिलती और उनके हिस्से की पेयजल आपूर्ति भी सैलानियों के लिए होटलों को कर दी जाती है। पर्यटन से अधिक लाभ कमाने वाले होटलों पर किसी का नियंत्रण नहीं है, उनकी दरें तक तय नहीं जबकि नाव, रिक्शे, घोड़े व टैक्सी वालों की दरें तय कर शिंकजा कसा हुआ है। निकटवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में ‘दीपक तले अंधेरा’ जैसी स्थिति है, उनकी बिजली, गैस जैसी सुविधाएं शहर हड़प जाता है तो बिना शुद्ध पानी के लिए सूखे प्राकृतिक जल स्रेतों पर ही निर्भरता रहती है। इधर हालिया परिसीमन में नैनीताल सीट अनुसूचित कोटे में चली गई है, साथ ही परिसीमन से यहां का भूगोल बदल गया है। एक हिस्सा कटकर कालाढूंगी में चला गया है जबकि खत्म हुई मुक्तेर का बेतालघाट-कोश्यां कुटौली का हिस्सा इस सीट में जुड़ गया है। कालाढूंगी से भाजपा ने पिछले विस चुनावों में भाजपा के खड़क सिंह बोहरा की तथा बेतालघाट ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य को विस पहुंचाने में प्रमुख भूमिका निभाई थी। इधर नगर क्षेत्र में उक्रांद के पूर्व विधायक डा. नारायण सिंह जंतवाल बीते दो चुनावों में बढ़त हासिल करते रहे। अब जबकि जंतवाल मैदान में नहीं हैं, ऐसे में उक्रांद के वोटरों के समक्ष भाजपा व कांग्रेस में से एक को चुनने का असमंजस है। नैनीताल सीट में 50,297 पुरुष व 44,063 महिला मतदाता हैं जिनमें क्षेत्रीय आधार पर नैनीताल नगर क्षेत्र में करीब 29,052, भवाली में करीब साढ़े 15 हजार, बेतालघाट क्षेत्र में 14 हजार, गरमपानी क्षेत्र में 21 हजार, खुर्पाताल में तीन हजार तथा कोटाबाग के पर्वतीय क्षेत्रों में करीब आठ हजार मतदाता निवास करते हैं, इनमें सर्वाधिक 37 हजार के करीब क्षत्रिय, 28 हजार ब्राह्मण, 18 हजार अनुसूचित जाति, 11 हजार मुस्लिम तथा करीब एक हजार सिख व अन्य अल्पसंख्यक वर्ग के मतदाता हैं। 1986 में चुनाव जीते किशन सिंह तड़ागी इस सीट से आखिरी कांग्रेसी विधायक रहे। 91 की रामलहर से लगातार तीन चुनाव भाजपा के बंशीधर भगत यहां से चुनाव जीते। 2002 में उक्रांद प्रत्याशी डा. नारायण सिंह जंतवाल ने भाजपा से यह सीट झटक ली। गत 2007 के विस चुनावों में भाजपा के खड़क सिंह बोहरा ने पुन: यह सीट हासिल कर भाजपा का एक बार पुन: नैनीताल से परचम फहराया। एंटी इनकम्बेंसी की बात करें तो नैनीताल विस के पुराने हिस्से में क्षेत्रीय भाजपा विधायक बोहरा को लेकर तथा मुक्तेर के हिस्से में वहां के सिटिंग विधायक कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल आर्य के खिलाफ मतदाताओं में एक हद तक नाराजगी दिखती है। पर्यटन नगरी होने के कारण नगर क्षेत्र में जहां आम लोग खासकर सीजन के दिनों में पर्यटकों के भारी संख्या में आने के कारण परेशानी महसूस करते हैं, व नगर की सड़कों- चौराहों के चौड़ीकरण, पार्किग स्थलों के विकास, नगर में साफ-सफाई, जिला अस्पताल में बेहतर सुविधाएं व डॉक्टरों की तैनाती जैसी प्रमुख आवश्यकता मानते हैं, और पर्यटन व्यवसायी नगर को बेहतर ‘कनेक्टिविटी’, मनोरंजन के लिए सिनेमा हॉल न होने जैसी समस्याएं गिनाते हैं। वहीं ग्रामीण क्षेत्र के लोग चाहते हैं कि उन्हें भी ग्रामीण पर्यटन के जरिये पर्यटन नगरी के करीब होने का लाभ मिले। मुख्यालय आने- जाने को यातायात की सस्ती सुविधाएं सुलभ कराई जाएं। गांव व शहर के बीच की चौड़ी खाई को पाटने की भी ग्रामीण आवश्यकता जताते हैं। बहरहाल, नगर में चुनाव प्रत्याशी की छवि को लेकर तथा ग्रामीण क्षेत्रों में किये गये कायरे और भविष्य में उससे कार्य कराये जा सकने की संभावनाओं पर निर्भर हो चला है। बसपा के संजय कुमार भी मुकाबले को तीसरा कोण देने की कोशिश में हैं, जबकि उक्रांद-पी से विनोद कुमार, सपा से देवानंद व निर्दलीय पद्मा देवी भी मैदान में हैं।
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शनिवार, 21 जनवरी 2012

प्रत्याशी आजमा रहे ‘माउथ पब्लिसिटी’ का फंडा

मोहल्लों-पड़ावों  के दुकानदारों को मिल रहीं प्रत्याशी की बढ़त बताने को गड्डियां                     


नवीन जोशी,  नैनीताल। राम सिंह जी की कालाढूंगी रोड पर एक दुकान है। एक प्रत्याशी उन्हें गड्डी पकड़ा गया है। बोल कर गया है कि वह चाहे उसे वोट दे या न दे, लेकिन उसे दुकान पर आने वाले ग्राहकों के पूछने या चर्चा करने पर कहना है कि वह (गड्डी देने वाला प्रत्याशी) जीत रहा है। राम सिंह जितना पूरे दिन में नहीं कमा पाते, केवल बातें करने के कमा रहे हैं। क्षेत्र में ‘माउथ पब्लिसिटी’ का यह नया फंडा खूब चल रहा है। चुनाव में प्रत्याशी अपनी जीत के लिए हर तरह का हथकंडा अपनाते हैं। प्रबंध गुरु कहते हैं कि किसी भी वस्तु या सेवा की मांग बढ़ाने में ‘माउथ पब्लिसिटी’ सबसे कारगर हथियार साबित होती है। आप नई गाड़ी खरीदने जा रहे हैं, लेकिन आपको गाड़ी के बारे में कोई जानकारी नहीं है, तो किसी न किसी से जरूर पूछेंगे कि कौन सी गाड़ी बेहतर होगी। पहले दो-तीन लोगों ने आपको जो गाड़ी बेहतर बता दी, वह आपके मन मस्तिष्क में बैठ जाएगी और उसे आप खरीद लाएंगे। ऐसे ही यह भी हो सकता है कि किसी गाड़ी के बारे में बुरी ‘फीड बैक’ आये और आप चाहते हुए भी उसे न लें। हमारा देश भावना प्रधान लोगों का देश है, और खासकर राजनीति में भावनाओं के आधार पर ही प्रत्याशियों व पार्टियों की अच्छी-बुरी छवि बना करती है। दो दशक पूर्व गणोश जी के दूध पीने और अभी हाल में लखनऊ में सोते ही बुत में तब्दील होने जैसी अफवाहें माउथ पब्लिसिटी के कारण ही इतनी अधिक चर्चा में रहीं। इसी फंडे पर क्षेत्र की एक पार्टी भी अमल कर रही है। उसके प्रत्याशी पूर्व में भी इस फंडे को आजमा चुके हैं। अब उनकी पार्टी इस चुनाव में भी इस फंडे को आजमा रही है, और बताया जा रहा है कि इस फंडे पर बीते कुछ दिनों में उनकी पार्टी ने ठीक-ठाक बढ़त भी बना ली है। आगे देखने वाली बात यह होगी कि माउथ पब्लिसिटी का यह फंडा यहां के चुनाव परिणामों को किस तरह प्रभावित करता है।
जिसकी पी दारू उसकी बताई हवा
नैनीताल। बाहर से देखने में इस बार के विस चुनाव भले चुनाव आचार संहिता के भय से जितने साफ- सुथरे चल रहे हों, परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा नहीं है। वहां कच्ची-पक्की दारू खूब बंट रही है, साथ ही बाहर से मुग्रे ले जाने में आयोग की नजर पड़ने के भय से ग्रामीण क्षेत्रों में ही पलने वाले बकरों का मतदाताओं को भोग लगाया जा रहा है। "क्या है रुझान" पूछने पर मतदाता पहले सामने वाले को भांपता है, और फिर उसी के पक्ष में ‘हवा’ होने की बात कहने लगता है।


मजदूर संभाल रहे चुनाव प्रचार की बागडोर
नाम वापसी से अब तक कुमाऊं में 50 करोड़ का कारोबार प्रभावित
गौरव पाण्डेय, हल्द्वानी। चुनावी सरगर्मी के बीच बाजार से मजदूर गायब हो गये हैं। इसके चलते कई कारोबारी गतिविधियां ठप हो गई हैं। नाम वापसी से अब तक कुमाऊं में इससे 50 करोड़ से अधिक का कारोबार प्रभावित होने का अनुमान है। यह स्थिति मतदान के कुछ दिन बाद तक बनी रह सकती है। दरअसल मजदूर प्रत्याशियों के चुनावी अभियान की बागडोर संभाले हुए हैं। एक अनुमान के मुताबिक कुमाऊं में करीब चार लाख मजदूर हैं। इनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, दिल्ली आदि के साथ ही नेपाली मजदूर भी शामिल हैं, जबकि कई स्थानीय मजदूर हैं। ये मजदूर निर्माण, परिवहन, कैटरिंग, खनन, साज-सज्जा, उद्योग समेत तमाम कारोबारों से जुड़े हैं, लेकिन इन दिनों इनका टोटा है। यह सिलसिला जनवरी से शुरू हुआ था। बाजार से मजदूर लगभग पूरी तरह गायब हो गए हैं। इससे कारोबारियों के साथ ही आम लोगों के लिए भी मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। मजदूर उपलब्ध न होने से तमाम व्यवसाय ठप से हो गए हैं। इससे कारोबार में लगातार गिरावट आ रही है। जानकारों का मानना है कि कुमाऊं में अब तक इससे 50 करोड़ से अधिक का कारोबार प्रभावित हुआ है। सर्वाधिक असर निर्माण क्षेत्र पर पड़ा है। छोटे कारोबारी ज्यादा हलकान हैं। दूसरी ओर मजदूर इन दिनों लोकतंत्र के पर्व में मौज काट रहे हैं। ये विभिन्न राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और निर्दलीय प्रत्याशियों के चुनाव में मशगूल हैं और प्रत्याशियों की गैदरिंग का एक बड़ा आधार बने हुए हैं। इन्हें प्रत्याशियों के जनसंपर्क, चुनावी सभा, दावतों में देखा जा सकता है। कई प्रत्याशियों ने मजदूरों को ठेकेदारों के मार्फत मतदान तक बुक कर लिया है। इससे माह भर कारोबारी गतिविधियों के ठप रहने के आसार बने हुए हैं।

शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

'भीम की नगरी‘ में चुनावी ’महाभारत‘


भाजपा ने लिया अपने कैबिनेट मंत्री का टिकट कटाने का जोखिम तो कांग्रेस ने भी ली है मजबूत क्षत्रपों की नाराजगी 
मूलभूत समस्याओं से ग्रस्त है क्षेत्र, नुमाइंदे बाहर रहकर करते हैं  क्षेत्र की नेतागिरी, प्रत्यासियों मैं भी अधिकाँश के बाहर ही हैं ठौर-ठिकाने 
नवीन जोशी, नैनीताल। द्वापर युग के महाबली भीम की नगरी भीमताल में विस चुनाव की महाभारत शुरू हो गयी है। अपार पर्यटन संभावनाओं के इस क्षेत्र में जनता आदिम युग सरीखी समस्याएं झेलने को विवश है। विस चुनाव में 12 प्रत्याशी मैदान में हैं, पर उनमें से क्षेत्र में स्थाई तौर पर रहने वाला प्रत्याशी ढूंढना आसान नहीं है। यह संयोग ही है कि इस बार विस चुनाव में महाभारत की भांति ही नामांकन पत्रों की जांच के दिन यानी 13 जनवरी के बाद से चुनाव तक महाभारत की भांति 18 दिन का ही समय मिला है। बावजूद अभी चुनाव परिणामों पर कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा। भाजपा ने कुमाऊं की इस सीट पर मौजूदा विधायक काबीना मंत्री गोविंद सिंह बिष्ट का टिकट काट कर नये चेहरे रामगढ़ के ब्लाक प्रमुख दान सिंह भंडारी को टिकट देने का जोखिम उठाया, जबकि कांग्रेस ने भी कुछ ऐसी ही राह पर चलते हुए पार्टी के दमदार प्रत्याशियों शेर सिंह नौलिया व पुष्कर मेहरा को ठुकराकर ओखलकांडा की ब्लाक प्रमुख के पति राम सिंह कैड़ा पर दांव आजमाया। भीमताल सीट पर 47,007 पुरुष एवं 39,894 महिलाओं सहित कुल 86,901 मतदाता चुनाव के दौरान भावी विधायक चुनने के लिए भाग्य विधाता की भूमिका में हैं। जातिगत आधार पर बात करें तो क्षेत्र में सर्वाधिक 45 हजार क्षत्रिय व 30 हजार ब्राrाण हैं जिनका वोट इस सीट पर निर्णायक हो सकता है। 12 हजार अनुसूचित तथा अन्य वगरे के मतदाता भी प्रभावी भूमिका में हैं। मुद्दों-समस्याओं की बात करें तो ओखलकांडा जनपद का दूरस्थ और समस्याओं से घिरा क्षेत्र है। गर्मियों के दौरान प्रशासन यहां घोड़े-खच्चरों से पेयजल उपलब्ध कराने का प्रयास करता है। मोबाइल के सिग्नल मिलना भी यहां कठिन होता है। ग्रामीण जीपों में किसी तरह लद कर आवागमन करने को मजबूर हैं। पूरे ब्लाक में स्कूलों में शिक्षक व अस्पतालों में चिकित्सक नहीं मिलते। ऐसे में हरीशताल-लोहाखाम ताल जैसे अनछुए पर्यटन स्थलों की अपार संभावनाओं वाले इस क्षेत्र के लोग किसी बड़े सपने को देखने की स्थिति में भी नहीं हैं। 

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

कालाढूंगी के चक्रव्यूह में फंस गये भाजपा के "बंशीधर"



चुनाव समीक्षा : कालाढूंगी विस क्षेत्र
भगत के लिए आसान नहीं जीत की राह, घिरे हैं चतुष्कोणीय मुकाबले में

प्रदेश की सर्वाधिक मुश्किल सीटों में है कालाढूंगी, 11 में से छह प्रत्याशी हैं मुकाबले में, 
नवीन जोशीनैनीताल। कालाढूंगी विस सीट को यदि प्रदेश की सर्वाधिक फंसी हुई सीट कहें तो अतिशयोक्ति न होगी। यहां विस चुनाव का बिगुल बजने से कहीं पूर्व दावेदारों का ‘संघषर्’ शुरू हो गया था। खासकर भाजपा- कांग्रेस के दावेदार इस सीट को ‘हॉट केक’ मानकर गटक जाने के ऐसे अतिविास में देखे गये कि मानो उन्हें टिकट मिला और उनका विधायक बनना निश्चित हो। टिकट पाने को सर्वाधिक सिर-फुटव्वल इस सीट पर देखी गई। अब जबकि पार्टियों के प्रत्याशी नामांकन करा चुके हैं, तब यह संघर्ष दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है। 11 में से छह प्रत्याशी मुकाबले में हैं लेकिन आखिर में भाजपा, कांग्रेस, बसपा और निर्दलीय महेश शर्मा के बीच चतुष्कोणीय मुकाबला सिमट सकता है। ऐसे में इस सीट के प्रमुख भाजपा प्रत्याशी काबीना मंत्री बंशीधर भगत के बारे में कहा जा सकता है शेर अपनी मांद में घिर गया है। कालाढूंगी विस सीट के लिए पहली बार चुनाव हो रहा है। हल्द्वानी तथा पर्यटन नगरी नैनीताल-रामनगर के बीच होने के बावजूद विकास यहां कोसों दूर रहा है। उत्तराखंड बनने के बाद भी हालात में सुधार नहीं हुआ। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने कालाढूंगी को प्रदेश का पहला हाईटेक पालिटेक्निक बनाने तथा वर्तमान सरकार ने रोडवेज बस अड्डा, मिनी स्टेडियम व गैस गोदाम बनाने जैसे ख्वाब दिखाए थे लेकिन पूरे नहीं किए। राज्य बनने और उससे पूर्व से यह सीट नैनीताल सीट का हिस्सा रही है। बीते 21 वर्षो से नैनीताल में शामिल इस सीट पर कांग्रेस नहीं जीत पाई है। 1986 में चुनाव जीते किशन सिंह तड़ागी इस सीट से आखिरी कांग्रेसी विधायक रहे। 91 की रामलहर से लगातार तीन चुनाव भाजपा के वर्तमान काबीना मंत्री बंशीधर भगत यहां से जीते। 2002 में डा. नारायण सिंह जंतवाल उक्रांद के टिकट पर भाजपा से यह सीट झटकने में सफल रहे लेकिन गत 2007 के विस चुनाव में भाजपा के खड़क सिंह बोहरा ने पुन: यह सीट हासिल कर भाजपा का एक बार पुन: नैनीताल से परचम फहराया। अब भगत क्षेत्र से चौथी और जंतवाल दूसरी जीत की कोशिश में फिर मैदान में हैं। इस क्षेत्र की खासियत रही है कि यहां की जनता जीतने वाले प्रत्याशी को वोट देती आई है। यानी जो भी विधायक जीतता है, इस क्षेत्र में उसे बढ़त मिली होती हैं। इसी कारण नैनीताल के वर्तमान विधायक खड़क सिंह बोहरा और पूर्व विधायक डा. नारायण सिंह जंतवाल ने यहां से दावेदारी की थी। नई सीट होने, नैनीताल सीट के सुरक्षित घोषित हो जाने तथा हल्द्वानी सीट के शहर क्षेत्र में ही सीमित हो जाने के कारण भाजपा- कांग्रेस सहित उक्रांद में यहां एक से अधिक दावेदार टिकट हासिल करने को ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे थे। भाजपा से काबीना मंत्री बंशीधर भगत और कांग्रेस से राहुल गांधी के करीबी बताये जा रहे प्रकाश जोशी के मैदान में आने से यह सीट प्रदेश की वीआईपी सीटों में शुमार हो गई है। भगत क्षेत्र में अपने संपकरे, पार्टी के कैडर मतदाताओं तथा पिछले विस चुनाव के अलावा लोस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की जीत के बावजूद भाजपा प्रत्याशी को मिली बढ़त तथा स्वयं की लगातार तीन जीतों के आधार पर यहां जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन पार्टी के अन्य दावेदारों क्षेत्रीय विधायक बोहरा व भाजयुमो के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गजराज बिष्ट की नाराजगी उनकी राह में बाधा बनी हुई है। दोनों दावेदारों ने क्षेत्र से चुनाव प्रचार करने से तौबा कर रखी है, ऐसे में वह भगत को नुकसान कितना पहुंचाएंगे, यह भगत की जीत-हार पर निर्भर करेगा। कांग्रेस से ‘पैराशूट प्रत्याशी’ बताये जा रहे प्रकाश जोशी की ऊर्जा स्वयं को स्थानीय साबित करने में लगी हुई है जबकि समर्थक उन्हें राहुल गांधी का नजदीकी होने का दावा कर क्षेत्र में विकास की गंगा बहा देने का ख्वाब दिखाकर जनता को अपने पक्ष में करने के प्रति आस्त हैं। कांग्रेस के बागी निर्दलीय उम्मीदवार जिला पंचायत अध्यक्ष कमलेश शर्मा के पति महेश शर्मा भगत के ही गृह क्षेत्र सर्वाधिक 65000 की जनसंख्या वाले ‘भाखड़ा वार’ में अच्छा दखल रखते हैं। उन्होंने क्षेत्र में बीते एक-दो वर्षो से अच्छी मेहनत की है, ऐसे में वह कांग्रेस प्रत्याशी के साथ ही भगत को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसी भाखड़ा वार क्षेत्र निवासी जिपं सदस्य भूपेंद्र सिंह उर्फ भाई जी भी निर्दलीय उम्मीदवार हैं। उनकी भी खासकर युवा वर्ग में काफी पैठ बताई जा रही है। इस क्षेत्र में रक्षा मोर्चा के सुरेंद्र निगल्टिया, निर्दलीय कांग्रेस से जुड़े वीर सिंह भी मैदान में हैं। दूसरी ओर 45000 की आबादी वाले ‘भाखड़ा पार’ क्षेत्र जिसमें कालाढूंगी नगर भी शामिल है, बाहरी-भीतरी का मुद्दा अधिक दिखाई दे रहा है। यहां बसपा प्रत्याशी दीवान सिंह बिष्ट सबसे पहले पार्टी प्रत्याशी घोषित होने, अनुसूचित वर्ग के करीब 20 हजार तथा क्षत्रिय समुदाय के सर्वाधिक 51 हजार से अधिक वोट होने व स्वयं अकेले दमदार क्षत्रिय प्रत्याशी होने के आधार के साथ मजबूत दिखते हैं। क्षेत्र में साढ़े तीन हजार मुस्लिम, छह हजार पंजाबी, साढ़े चार हजार वैश्य के अलावा 15 हजार ब्राह्मण भी प्रभावी भूमिका में हैं। कांग्रेस, भाजपा, उक्रांद प्रत्याशी और निर्दलीय महेश शर्मा आदि के भी ब्राrाण होने के कारण वह किसी एक के पक्ष में मतदान करेंगे कहा नहीं जा सकता। निर्दलीय जनार्दन पंत, तृणमूल कांग्रेस के फिदाउर्हमान, सपा के उमेश शर्मा भी मैदान में हैं।
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शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

नैनीताल में रोचक रहेगा कांग्रेस का ‘तीन देवियों’ पर दांव


नवीन जोशी, नैनीताल। कांग्रेस ने विधानसभा के लिए जनपद की छह में से तीन सीटों पर महिलाओं को टिकट दिया है। नैनीताल सीट पर पूर्व पालिकाध्यक्ष सरिता आर्या, हल्द्वानी सीट पर पूर्व काबीना मंत्री डा. इंदिरा हृदयेश तथा रामनगर से पूर्व विधायक व सांसद सतपाल महाराज की पत्नी अमृता रावत को मैदान में उतारा है। अब देखना यह है कि ये ‘तीन देवियां’ कांग्रेस की नैया किस तरह पार लगाती हैं।  
हालांकि कांग्रेस ने नैनीताल जनपद की छः में से आधी यानी तीन सीटों पर जिस तरह "आधी दुनियां" का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाओं  को टिकट दिया है, उससे उसका महिलाओं पर भरोसा जताना कम ही दिखाई देता हैजिले में केवल हल्द्वानी से डा. हृदयेश को टिकट मिलना तय था, वह पार्टी तथा कार्यकर्ताओं की स्वावाविक पसंद थीं। लेकिन मुख्यालय की नैनीताल सीट पर कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल आर्य की अनिच्छा तथा अपने पुत्र संजीव आर्य को टिकट न दिला पाने के कारण सरिता पूर्व पालिकाध्यक्ष होने के नाते टिकट पाने में सफल रहीं। टिकट वितरण में अहम भूमिका निभाने वाले केंद्रीय मंत्री हरीश रावत की पसंदगी और महिला मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष सरोजनी केंतुरा द्वारा नाम प्रस्तावित किये जाने की वजह से उनको यह ईनाम मिला। अमृता रावत को रामनगर में भारी विरोध तथा पैराशूट प्रत्याशी का तमगा होने के बावजूद गढ़वाल सांसद सतपाल महाराज की पत्नी होने के नाते टिकट मिल गया है। ऐसे में यह दिलचस्प होगा कि जनपद में तीन देवियां कांग्रेस की नैया को कैसे पार लगाती हैं।
पालिका व जिला पंचायत के स्तर के हो गए विधान सभा चुनाव 
नैनीताल। नैनीताल में विधानसभा चुनाव नगर पालिका व जिला पंचायत चुनाव की याद दिला सकता है। यहां भाजपा एवं कांग्रेस प्रत्याशी के बीच जिला पंचायत चुनाव की पुरानी प्रतिद्वंद्विता देखने को मिलेगी। कांग्रेस, बसपा एवं सपा प्रत्याशी भी पालिका चुनावों के दिनों की याद दिलाएंगे। भाजपा प्रत्याशी हेम आर्या की पत्नी नीमा आर्या एवं कांग्रेस प्रत्याशी सरिता आर्या वर्ष 2008 के जिपं चुनावों में मेहरागांव सीट से आमने-सामने थे। इसमें नीमा विजयी रहीं। वहीं सरिता आर्या वर्ष 2003 में हुऐ नगर निकाय चुनाव जीतकर नैनीताल पालिका अध्यक्ष बनी, जबकि उनसे पूर्व बसपा प्रत्याशी संजय कुमार ‘संजू’ वर्ष 1998 से नैनीताल पालिका अध्यक्ष रहे। इसी दौरान सपा प्रत्याशी देवानंद सभासद रहे थे।


रविवार, 1 जनवरी 2012

क्या 'दशरथ' से मिला बनवास 21 वर्ष बाद तोड़ पायेगी कांग्रेस

1986 के बाद से एक अदद जीत को तरसता रहा है 'हांथ'
संभवतया यही कारण यशपाल को रोकता हो नैनीताल से चुनाव लड़ने से  पार्टी के बुजुर्ग कार्यकर्ता मानते हैं यशपाल ही तोड़ सकते हैं यह क्रम 
नवीन जोशी, नैनीताल। राजा दशरथ ने राम को  १२ वर्ष के बनवास पर भेजा था, लेकिन यहाँ नैनीताल में एक दशरथ ने कांग्रेस पार्टी को बनवास पर भेजा था, जिस से वह 21  वर्ष बाद भी वापस नहीं लौट पा रही है 1991 की राम लहर में रामलीला में 'दशरथ' का चरित्र निभाने वाले भाजपा के बंशीधर भगत ने कांग्रेस को जिस बनवास पर भेजा था, कांग्रेस के लिए उस से अभी भी वापस लौटना आसान नहीं लगता। शायद यही कारण हो कि अपनी परंपरागत सीट मुक्तेश्वर का काफी हिस्सा होने के बावजूद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य यहाँ से चुनाव लड़ने के अधिक इच्छुक नहीं दिख रहे, जबकि पार्टी के बुजुर्ग कार्यकर्ताओं का मानना है कि कांग्रेस की बनवास से वापसी इस बार कोई करा सकता है तो वह केवल यशपाल ही हो सकते हैं।
नैनीताल कुमाऊं मंडल की उन गिनी-चुनी सीटों में होगी, जिन्हें कांग्रेस पार्टी की परंपरागत सीट कहने से हर किसी को गुरेज होगा। अतीत से बात शुरू करें तो यूपी के दौर में लंबी-चौड़ी इस सीट पर वर्ष 1977 में राम दत्त जोशी जनता दल के टिकट पर विधायक रहे। अगले 82 के चुनावों में शिव नारायण नेगी ने यह सीट कांग्रेस की झोली में डालकर नफा-नुकसान बराबर करने की कोशिश की। 86 में साफ-स्वच्छ छवि के किशन सिंह तड़ागी ने कांग्रेस के लिये सीट बरकरार रखी, परंतु 91 की रामलर में भाजपा के ‘दशरथ’ बंशीधर गत ने कांग्रेस के शेर सिं नौलिया को पटखनी दी, और आगे अगले तीन चुनावों में वह यहाँ से जीत की हैट्रिक बनाते रहे। राज्य बनने के बाद वह इस सीट को छोड़कर हल्द्वानी चले गये, परिणामस्वरूप अपनी साफ-स्वच्छ छवि के बल पर डा. नारायण सिंह जंतवाल उक्रांद के टिकट पर भाजपा से यह सीट झटकने में सफल रहे, और कोंग्रेस का बनवास जारी रहा। गत 2007 के विस चुनावों में खड़क सिंह बोहरा ने पुनः यह सीट हांसिल कर भाजपा का एक बार पुनः नैनीताल से परचम फरा दिया। इसके साथ ही नैनीताल के लिये हांलिया वर्षों में यह माना जाने लगा है कि बुद्धिजीवियों के शहर के जाने वाले नैनीताल से चुनाव लड़ने के लिये पार्टी तथा प्रत्याशी दोनों की साफ-स्वच्छ छवि अधिक मायने रखती है। इस बात को भाजपा-कांग्रेस, उक्रांद सहित सभी पार्टियों के नेता भी स्वीकार करते हैं।  लेकिन जहाँ तक कांग्रेस के लिये 21 वर्ष के बनवास को तोड़ने का सवाल है, नगर के वरिष्ठतम कांग्रेसी किसन लाल साह ‘कोनी’, मोहन कांडपाल सहित अधिकांश कांग्रेसियों का भी मानना है कि यह मिथक तोड़ने में कांग्रेस केवल एक ही शर्त पर सफल हो सकती है, यदि यशपाल यहाँ से चुनाव लड़ें। अब पार्टी प्रदेश अध्यक्ष यशपाल पर है कि वह स्वयं फ्रंट पर आकर बल्लेबाजी कर अपनी टीम को लीड करते हैं या नहीं।