मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

"स्टीपी" पर डोला डोल्मा का मन

नैनीताल में प्रवासी पक्षियों के साथ ही देश-विदेश से आए पक्षी प्रेमियों का भी लगा जमावड़ा
नवीन जोशी नैनीताल। जी हां, इश्क हो तो एसा। कजाकिस्तान से प्रवासी पक्षी 'स्टीपी' यानी स्टीपी ईगल अपने शीतकालीन प्रवास पर "पक्षियों के तीर्थ" कहे जाने वाले नैनीताल क्या आया, मानों उसकी प्रेमिका की तरह ही मंगोलिया से पक्षी प्रेमी छायाकार डोल्मा अपने जैसे ही पक्षी प्रेमियों के करीब डेढ़ दर्जन सदस्यों के दल का साथ लेकर यहां धमक आईं। 
डोल्मा बीते तीन दिनों से भरतपुर (राजस्थान) के पक्षी विशेषज्ञ बच्चू सिंह के साथ शहर में है और यहां कूड़ा खड्ड के पास अपने दल-बल के साथ सैकड़ों की संख्या में स्टीपी ईगल की खूबसूरती को अपने कैमरे में कैद करती जा रही है। मानव प्रेमियों के साथ ही पक्षियों और उनके प्रेमियों के मिलन स्थल बने नैनीताल में ऐसे और भी नजारे इन दिनों आम बने हुए हैं। गौरतलब है कि मनुष्य जिस तरह अपने जीवन में एक बार जरूर अपने धार्मिक तीथरे की यात्रा करना अपने जीवन का उद्देश्य मानता है, कुछ इसी तरह कहा जाता है कि दुनिया भर के प्रवासी प्रकृति के पक्षी भी जीवन में एक बार नैनीताल जरूर जाना चाहते हैं। इस आधार पर भरतपुर पक्षी विहार के सुप्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ बच्चू सिंह नैनीताल को पक्षियों के तीर्थ की संज्ञा देने में संकोच नहीं करते। वह बताते हैं कि देश भर में पाई जाने वाली 1100 पक्षी प्रजातियों में से 600 तो यहां प्राकृतिक रूप से हमेशा मिलती हैं, जबकि देश में प्रवास पर आने वाली 400 में से 200 से अधिक विदेशी पक्षी प्रजातियां भी यहां आती हैं। इनमें ग्रे हैरोन, शोवलर, पिनटेल, पोर्चड, मलार्ड, गागेनी टेल, रूफस सिबिया, बारटेल ट्री क्रीपर, चेसनेट टेल मिल्ला, 20 प्रकार की बतखें, तीन प्रकार के सारस, स्टीपी ईगल, अबाबील आदि भी प्रमुख हैं। बच्चू नैनीताल की इसी खासियत के कारण हर वर्ष खासकर मंगोलिया, कोरिया जैसे दक्षिण एशियाई देशों के पक्षी प्रेमी छायाकारों के दल को नैनीताल लेकर आते हैं। इस बार वह मंगोलिया के दल को यहां के सप्ताह भर के टूर पर लेकर आये हैं। तीन दिनों से उनका करीब डेढ़ दर्जन सदस्यों का दल नगर के हल्द्वानी रोड स्थित कूड़ा खड्ड-हनुमानगढ़ी क्षेत्र में जमा हुआ है। बच्चू कहते हैं कि नैनीताल का सबसे बुरा- शहरभर का कूड़ा डालने वाला स्थान कजाकिस्तान के स्टीपी ईगल की सबसे पसंदीदा जगह है। रानीखेत और अल्मोड़ा भी स्टीपी को काफी पसंद हैं। इस दौरान यहां आये दल को अनेक प्रकार की जमीन पर फुदकने वाली चिड़िया-वाइट थ्राटेड लाफिंग थ्रस, स्ट्राइटेड लाफिंग स्ट्रीट थ्रस, चेस नेट वैली रॉक थ्रस, ब्लेक ईगल, टोनी ईगल, फेल्कुनेट, कॉमन कैसटल व पैराग्रीन फैल्कन सरीखी अनेक पक्षी प्रजातियों के चित्र लेने का लाभ भी मिला है। डोल्मा के साथ निमा, दावा, मिगमार, ल्हाग्बा, बाड्मा, सांग्जई यहां आकर बहुत खुश हैं।
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गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

न्यूनतम निविदा पर नहीं मिलेगा ठेका!


केएमवीएन ने गैस की होम डिलीवरी की ठेका व्यवस्था में किया परिवर्तन 
तय व्यावहारिक दर तीन रुपये से कम की निविदा होगी अस्वीकार 
"राष्ट्रीय सहारा" में छपी थी "एक पैसे पर आई निविदा" की खबर

नवीन जोशी नैनीताल। सामान्यतया किसी भी ठेके को प्राप्त करने के लिए सबसे कम धनराशि की निविदा देने एवं किसी वस्तु की नीलामी में सबसे बड़ी बोली बोलने की शर्त होती है, लेकिन कुमाऊं मंडल विकास निगम से घरेलू गैस की होम डिलीवरी का ठेका लेने के लिए अब पूरी तरह इस शर्त का पालन करना पर्याप्त नहीं होगा। वरन, अब निविदादाता को न्यूनतम तीन रुपये की तय व्यावहारिक दर से अधिक प्रति सिलेंडर की दर पर ही आवेदन करना होगा। इससे कम धनराशि की निविदा को अस्वीकार कर दिया जाएगा। गौरतलब है कि गैस की होम डिलीवरी का ठेका हासिल करने के लिए ठेकेदारों में होड़ मची रहती है। इसी कारण गत दिनों निविदादाताओं ने रुद्रपुर में एक पैसा प्रति सिलेंडर, किच्छा में 10 पैसे प्रति सिलेंडर एवं बाजपुर में 25 पैसे प्रति सिलेंडर जैसी न्यूनतम धनराशि की निविदाएं आई थीं, जिन्हें निगम ने व्यावहारिक दर न मानते हुए अस्वीकार कर दिया है। उल्लेखनीय है कि केएमवीएन इंडियन ऑयल की कुमाऊं मंडल में घरेलू गैस की वितरण एजेंसी है। उसे होम डिलीवरी के लिए प्रति सिलेंडर 15 रुपये मिलते हैं। इस कार्य को निगम स्वयं करने के बजाय कुमाऊं में 29 एजेंसियों पर ठेकेदारों से कराता है। यूं तो न्यूनतम दर की निविदा पर ठेका देना निगम के लिए फायदे का सौदा है, लेकिन देखने में आता है कि ठेकेदार ठेका हासिल करने के लिए तो एक पैसा प्रति सिलेंडर जैसी अव्यावहारिक दरों पर ठेका हासिल करने का प्रयास करते हैं, किंतु बाद में होम डिलीवरी करने में आनाकानी करते हैं। गैस की ब्लैक मार्केटिंग के आरोप भी उन पर लगते रहते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए पूर्व में निगम के तत्कालीन एमडी चंद्रेश यादव ने भी प्रयास किये थे, जो सफल नहीं हो पाये। इधर वर्तमान एमडी दीपक रावत ने निगम के निदेशक मंडल को साथ लेकर न्यूनतम व्यावहारिक दरें तय करने के लिए निगम के जीएम, उप श्रम आयुक्त, जिला आपूर्ति अधिकारी व जिले के वित्त अधिकारी को शामिल करते हुए एक समिति का गठन किया। समिति ने गत 19 अक्टूबर को बैठक के बाद न्यूनतम तीन रुपये प्रति सिलेंडर की दरें तय कर दी हैं, जिससे कम दर की निविदा को अस्वीकार कर दिया जाएगा। श्री रावत ने कहा कि यह कदम उपभोक्ताओं को बेहतर सुविधाएं देने तथा गैस की वितरण व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है।

19 एजेंसियों के लिए नये सिरे से निविदाएं आमंत्रित

नैनीताल। केएमवीएन ने न्यूनतम व्यावहारिक दरें तय करने के बाद अपनी 29 में से 19 गैस एजेंसियों में होम डिलीवरी के लिए नये सिरे से निविदाएं आमंत्रित कर दी हैं। निगम के जीएम प्रकाश चंद्र ने बताया कि 28 दिसम्बर तक हल्द्वानी, रुद्रपुर, बाजपुर, जसपुर, किच्छा, सल्ट, बागेश्वर, चंपावत, लोहाघाट, देवीधूरा, बेरीनाग, गरुड़, डीडीहाट, मुनस्यारी, भवाली, टनकपुर व धारचूला में होम डिलीवरी के लिए निविदा पत्र लिये जा सकते हैं। इनमें तीन रुपये प्रति सिलेंडर से अधिक दर पर निविदाएं डालनी होंगी। पूर्व में इससे कम दर की निविदाएं आने के कारण रुद्रपुर, किच्छा व बाजपुर में निविदा प्रक्रिया निरस्त कर दी गई थी।

सोमवार, 3 दिसंबर 2012

"बूढ़े" डाक्टरों के लिए बंद हो जाएंगे स्वास्थ्य महकमे के द्वार


पिछली सरकार के एक और निर्णय को बदलने की तैयारी में सरकार
नवीन जोशी नैनीताल। प्रदेश सरकार पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के एक और निर्णय को बदलने की तैयारी में है। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी ने कहा कि सरकार सेवानिवृत्त चिकित्सकों को संविदा पर आगे से नियुक्ति न देने पर विचार कर रही है। उनके मार्च में समाप्त हो रहे अनुबंध तभी बढ़ाए जाएंगे, जब वे अपने आला अधिकारी सीएमएस या सीएमओ से उपयोगिता प्रमाणपत्र पेश करेंगे कि उन्होंने संविदा की अवधि में कितने मरीज देखे और कितने ऑपरेशन या अन्य कार्य किए। प्रदेश में चिकित्सकों की कमी को देखते हुए वर्ष 2001 से ही संविदा पर चिकित्सकों को रखने की व्यवस्था की गई थी, निशंक सरकार के समय इस तरीके को चिकित्सकों की कमी को दूर करने का प्रमुख माध्यम बनाया गया। वर्ष 2011 में एक शासनादेश भी इस बाबत जारी हुआ। हर मंगलवार को स्वास्थ्य विभाग के देहरादून मुख्यालय में संविदा पर एक वर्ष या लोक सेवा आयोग से नियमित नियुक्ति होने तक के लिए तैनात करने के लिए चिकित्सकों के 'वाक इन इंटरव्यू' होने लगे, जो हालांकि अधिकतम 65 वर्ष तक की उम्र के नये या सेवानिवृत्त सभी सामान्य एमबीबीएस व विशेषज्ञ चिकित्सकों के लिए थे, लेकिन सेवानिवृत्त चिकित्सकों ने ही इसका अधिकतम लाभ उठाया। संविदा पर तैनाती दूरस्थ क्षेत्रों में होनी थी, लेकिन बूढ़े-बीमार चिकित्सक शहरी अस्पतालों में तैनात हो गये, जिनकी सेवाओं का लाभ जनता को कम ही मिल पाया। प्रदेशभर में ऐसे एक हजार से अधिक चिकित्सक हैं। हाल में एनआरएचएम के तहत इन चिकित्सकों के लिए शहरी, दुर्गम व अति दुर्गम के वर्ग बनाकर उनके मानदेय में भी खासी बढ़ोतरी कर वेतन 48 हजार से 63 हजार रुपये मासिक तक कर दिया गया। इसके बावजूद योजना नये चिकित्सकों को आकर्षित करने एवं बूढ़े डॉक्टरों को दुर्गम-अति दुर्गम क्षेत्रों के अस्पतालों में भेजने में असफल रही है। 'राष्ट्रीय सहारा' शुरू से इस व्यवस्था की खामियों को प्रमुखता से उजागर करता रहा है। उधर रविवार रात्रि स्वास्थ्य मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी ने कहा कि सरकार सेवानिवृत्त चिकित्सकों की संविदा पर तैनाती की व्यवस्था का रिव्यू करने जा रही है।


पीपीपी मोड में नहीं चलेंगी गन्ना मिलें
काबीना मंत्री बोले, प्रदेश सरकार ने 500 करोड़ के कर्ज किये माफ मेडिकल छात्रों की सीधी भर्ती के लिए नियमावली में परिवर्तन होगा
नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश के स्वास्थ्य, विज्ञान एवं गन्ना विकास मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी ने कहा कि प्रदेश सरकार गन्ना क्षेत्र में दक्षिण भारत के प्रयोगों को अपनाकर 20 फीट लंबे व मोटे गन्ने उगाने जैसे क्रांतिकारी कार्य करने की राह पर है। इसी कड़ी में बंदी की कगार पर गिनी जा रही छह सहकारी एवं चार निजी क्षेत्र की चीनी मिलों को वापस पटरी पर लाने के लिए इनकी 500 करोड़ रुपये की सरकारी देनदारियां माफ कर दी हैं। साथ ही इन मिलों को सरकार बैंकों के 25 करोड़ रुपये के ऋ णों के लिए गारंटी भी देने जा रही है। उन्होंने प्रदेश में चिकित्सकों की उपलब्धता बढ़ाने के लिए भी प्रयास करने की बात कही। इसमें मेडिकल कालेजों से निकलने वाले छात्रों को लोक सेवा आयोग से इतर सीधी भर्ती करने के लिए नियमावली में परिवर्तन किया जाना भी शामिल है। श्री नेगी ने नगर में आयोजित पत्रकार वार्ता में यह जानकारी देते हुए बताया कि प्रदेश की चीनी मिलें 230 करोड़ Rs के घाटे में चल रही हैं, इसीलिए पहले इन्हें पीपीपी मोड में दिये जाने की कोशिश थी। इसे दरकिनार कर अब सरकार ने इनका 500 करोड़ रुपये का बकाया माफ करने का निर्णय ले लिया है। मिलों पर किसानों का 136 करोड़ रुपये बकाया था, इसे किसानों को दिलवा दिया गया है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में जमीन की केवल चार इंच ऊपरी सतह को ही हर वर्ष जुताई कर फसलें बोई जाती हैं, अब सरकार दक्षिण भारत की तरह जमीन की निचली सतह तक खोदकर 20-22 फीट लंबे गन्ने उगाने की प्रविधि शुरू करने जा रही है। उन्होंने कहा कि सरकार के प्रयासों के वाक इन इंटरव्यू में डॉक्टरों के आने की संख्या बढ़ी है। इस मौके पर विधायक सरिता आर्या, पूर्व सांसद डा. महेंद्र पाल एवं रेडक्रास सोसायटी के विनोद तिवारी, डिप्टी सीएमओ डा. डीएस गब्र्याल व पीएमएस डा. अनिल साह आदि भी मौजूद थे।

मूलतः यहाँ पढ़ें:  राष्ट्रीय सहारा-4.12.12 के प्रथम पेज पर:
http://rashtriyasahara.samaylive.com/epapermain.aspx?queryed=14&eddate=12%2F04%2F2012

गुरुवार, 29 नवंबर 2012

उत्तराखंड के पूर्व सैनिकों पर पड़ सकती है पोंटी चड्ढा हत्याकांड की मार


घटना के बाद सुरक्षा गार्ड की नौकरी के लिए लाइसेंस लेने की प्रक्रिया आयी जांच के दायरे में

नवीन जोशी, नैनीताल। दिल्ली में लिकर किंग पोंटी चड्ढा और उसके भाई हरदीप चड्ढा की गोलीकांड में हुई मौत की मार उत्तराखंड के सेवानिवृत्त सैनिकों और उन युवाओं पर पद सकती है जो सुरक्षा गार्ड की नौकरी प्राप्त करने के लिए शस्त्र लाइसेंस लेते हैं. पोंटी बंधुओं के हत्याकांड में समस्त गोलियां लाइसेंसी हथियारों से ही चलने और शस्त्र लाइसेंसधारी गार्डों के द्वारा ही चलाने के बाद सरकार गार्डों को लाइसेंस देने में कड़ाई बरत सकती है। इस बाबत सर्वोच्च न्यायलय के संज्ञान लेने और केंद्र सर्कार से आये निर्देशों के बाद उत्तराखंड सरकार ने सभी जिलों को शस्त्रों की जांच के निर्देश जारी कर दिए हैं. जिसके बाद रोजगार के लिए शस्त्र लाइसेंस लेने वाले जांच के दायरे में आने तय हैं, साथ ही आगे सरकार ऐसे लाइसेंस देने की राह में परेशानियां खादी कर सकती है.
यह आम बात है कि नए प्राविधान हमेशा कमजोर तबके के लिए ही परेशानी खड़ी करते हैं. सरकार घरेलू  गैस का व्यवसाइक उपयोग न रोक पाई तो सब्सिडी वाले सिलेंडरों की संख्या कम कर दी. उसी तरह  पोंटी चड्ढा हत्याकांड के बाद शास्त्र लाइसेंस जारी करने और उनके एनी राज्यों में पंजीकरण करने की प्रक्रिया में खामियां उजागर हुई हैं तो इसकी मार भी गरीब बेरोजगारों पर पड़नी तय मानी जा रही है.
इस मामले में उत्तराखंड का बर्खास्त अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष सुखदेव नामधारी आरोपित हुआ है, इसलिए उत्तराखंड पर मामले का अधिक असर पढ़ना तय है. उत्तराखंड आजादी के आन्दोलन से ही सैनिक बहुत राज्य है. सेना से सेवानिवृत्ति के बाद यहाँ के लोग सुरक्षा गार्ड की नौकरी कर अपनी आजीविका चलते है.
गौरतलब है कि शस्त्र लाइसेंस दो कारणों-भय आकलन के साथ ही रोजगार के दृष्टिकोण से भी देने का प्रावधान है। सामान्यत: जिला प्रशासन बेरोजगारों को रोजगार देने की भावना से ऐसे लाइसेंस दिखाने में अपेक्षाकृत उदारता बरतते हैं.
लेकिन इधर, मामले में मुख्य आरोपित बताया जा रहा सुखदेव सिंह नामधारी स्वयं एक सुरक्षा गार्ड एजेंसी चलाता था। उसने ही अपनी एजेंसी के माध्यम से पोंटी को सुरक्षा गार्ड मुहैया कराई थी। लिहाजा, प्रदेश एवं केंद्र सरकार के निर्देशों पर शुरू हुई शस्त्र लाइसेंसों की जांच की सर्वाधिक मार ऐसे लोगों पर पड़ने जा रही है, जिन्होंने दूसरे कारण यानी सुरक्षा गार्ड की नौकरी प्राप्त करने के लिए शस्त्र लाइसेंस लिये हैं।

प्रदेश भर में शस्त्र लाइसेंसों पर लटकी है तलवार
नैनीताल (एसएनबी)। नैनीताल समेत प्रदेश के समस्त जिलों में पंजीकृत शस्त्र लाइसेंसों पर निरस्त होने की तलवार लटक गई है। प्रदेश शासन ने सर्वोच्च न्यायालय की पहल और केंद्र सरकार द्वारा मांगे जाने के बाद प्रदेश के सभी जिलों से सभी शस्त्र लाइसेंसों के ब्योरे तलब कर लिए हैं। ऐसे शस्त्र लाइसेंसों पर भी खास नजर रहने वाली है, जो एक ही परिवार के अनेक लोगों व एक व्यक्ति को एक से अधिक लाइसेंस जारी हुए हैं, अथवा दूसरे राज्यों से जारी होने के बाद यहां पंजीकृत हुए हैं। भय आंकलन के साथ ही रोजगार के लिए सुरक्षा गाडरे को देने वाले लाइसेंस भी जांच के घेरे में हैं। गौरतलब है कि विगत दिनों हुए लिकर किंग पोंटी चड्ढा और उसके भाई की हत्या के मामले में सरकार की शस्त्र लाइसेंस देने की प्रक्रिया सर्वाधिक विवादों में आ गई है। दायां हाथ न होने के कारण पोंटी चड्ढा जहां लाइसेंसी शस्त्र धारक था, वहीं हत्याकांड में प्रयुक्त सभी गोलियां लाइसेंस शुदा लोगों द्वारा ही चलाई गई हैं। साफ है कि देश में शस्त्र लाइसेंस देने की प्रक्रिया की खामियां इस हत्याकांड के बाद उजागर हुई हैं। देश की सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस प्रक्रिया पर संज्ञान लिया है, जिसके बाद केंद्र और फिर राज्य सरकारें चेती हैं। यहां उत्तराखंड सरकार ने भी केंद्र सरकार के निर्देशों पर प्रदेश भर में शस्त्र लाइसेंसों की व्यापक स्तर पर जांच शुरू कर दी है। बताया गया है कि शासन ने जिलों से शस्त्र लाइसेंसों के बाबत ब्योरे मांगे हैं कि उनके यहां से कितने शस्त्र लाइसेंस जारी हुए हैं, कितने निरस्त हुए हैं और कितने शस्त्र लाइसेंस ऐसे हैं, जो जारी तो दूसरे राज्यों से हुए हैं, और उन्हें प्रदेश के जिलों में पंजीकृत किया गया है। साथ ही सीमा विस्तार की प्रक्रिया भी पूछी गई है। किसी व्यक्ति को किसी राज्य से जारी शस्त्र लाइसेंसों को उस राज्य की सीमा से लगे दो राज्यों में उन राज्यों के गृह मंत्रालय के अनुमोदन पर तथा और अधिक राज्यों में केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुमोदन से सीमा विस्तार कर अनुमति दे दी जाती है। इसके साथ ही शस्त्र लाइसेंस जारी करने के बाबत केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन करने को कहा गया है। डीएम नैनीताल निधिमणि त्रिपाठी ने बताया कि जनपद में 10 हजार शस्त्र लाइसेंस हैं, इन सबकी जांच की जा रही है। शस्त्र लाइसेंस धारकों का सत्यापन कराने की योजना नहीं है। चड्ढा बंधु हत्याकांड के बाद प्रदेश में शुरू हुई समस्त शस्त्र लाइसेंसों की जांच

शनिवार, 17 नवंबर 2012

नैनी सरोवर में लगे 'सुरखाब के पर'



नैनीताल मैं सैलानियों के लिए सीजन 'ऑफ' तो प्रवासी पक्षियों के लिए हुआ 'ऑन'
नैनी झील में आए सुर्खाब पक्षी, साथ ही बार हेडेड गीज का भी हुआ आगमन
नवीन जोशी नैनीताल। जी हां, नैनी सरोवर में सुर्खाब के पर लग गए हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि नैनीझील में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला सुर्खाब पक्षी पहुंचा है, और नैनीझील के आसपास उड़ते और तैरते हुए खूब आनंदित हो रहा है। उसके आने से निश्चित ही नैनीझील और कमोबेस प्रवासी पक्षियों को निहारने वाले पक्षी प्रेमी खूब इतरा रहे हैं। नैनीताल में इन दिनों जहां मनुष्य सैलानियों का पर्यटन की भाषा में 'ऑफ सीजन' शुरू होने जा रहा है, वहीं मानो सैलानी पक्षियों का सीजन 'ऑन' होने जा रहा है। इन दिनों यहां नैनी सरोवर में चीन, तिब्बत आदि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला सुर्खाब पक्षी तथा बार हेडेड गीज आदि अनेक प्रवासी पक्षी की प्रजातियां पहुंची हैं। पक्षी विशेषज्ञ एवं अंतरराष्ट्रीय छायाकार अनूप साह के अनुसार इन दिनों उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी होने के कारण वहां की झीलें बर्फ से जम जाती हैं। ऐसे में उन सरोवरों में रहने वाले पक्षी नैनीताल जैसे अपेक्षाकृत गरम स्थानों की ओर आ जाते हैं। यह पक्षी यहां पूरे सर्दियों के मौसम में पहाड़ों और यहां भी सर्दी बढ़ने पर रामनगर के काब्रेट पार्क व नानक सागर, बौर जलाशय आदि में रहते हैं, और मार्च-अप्रैल तक यहां से वापस अपने देश लौट आते हैं। उन्होंने बताया कि नैनीझील में कई प्रकार की बतखें भी पहुंची हैं, जबकि नगर के हल्द्वानी रोड स्थित कूड़ा खड्ड में अफगानिस्तान की ओर से स्टेपी ईगल पक्षी भी बड़ी संख्या में पहुंचे हैं।


सुर्खाब के बारे में कुछ ख़ास बातें....
सुर्खाब मुर्गाबी प्रजाति से है। ये मूलत: लद्दाख, नेपाल एवं तिब्बत से आते है. ये सर्दी में भारत के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार में भी प्रवास करते हैं। इनकी ब्रीडिंग अवधि अप्रैल से जून माह तक होती है। इनका रंग सुनहरा होता है और अंदर की ओर से इसके पंख हरे व चमकदार होते हैं। ये प्राय: जोड़ा बनाकर रहते है। इन्हें ब्राह्नी डक, रेड शैलडक और चकवा-चकवी भी कहा जाता है, यह प्रायः जोड़े के साथ रहते हैं। ऐसी मान्यता है कि सुर्खाव जीवन में केवल एक बार ही जोड़ा बनाते है। अगर दोनों में से किसी एक की मृत्यु हो जाए तो दूसरा अकेला ही जीवन व्यतीत करेगा। ब्रीडिंग के समय नर सुर्खाब की गर्दन में एक काला बैंड नजर आता है। ये चट्टानों में और ऊंची मिट्टी के टीलों में अपने घौंसले बनाते है तथा पानी से काफी ऊंचाई पर बनाते है। पानी में पाए जाने वाले भोजन के अलावा खेतों में चने, गेंहू, जो की फसलों से भोजन चुनते हैं। ये अधिकांश समय पानी में तैरते हैं इन दौरान ये कीड़े-मकौडे खाकर अपना पेट भरते है ये छोटी मछलियों का भी शिकर करते हैं।  भारत में इनका प्रवास अक्टूबर माह से मार्च तक माना जाता है। 
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शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

नैनीताल जिले से बने चार मंत्री व विधान सभा अध्यक्ष, बावजूद 12 वर्षो में उम्मीदें ढेरों-उपलब्धियां कम


नवीन जोशी नैनीताल। उत्तराखंड की राज्य की स्थापना हुए 12 वर्ष हो गए। इन 12 वर्षो में राज्य के साथ ही नैनीताल जनपद उम्र के लिहाज से किशोर वय में पहुंच गया। जनपद की गौला व दाबका नदियों के साथ ही मुख्यालय की सामान्यतया स्थिर रहने वाले नैनी सरोवर से भी न जाने कितना पानी निकल गया है, और इन नदियों से खनन और ताल से न जाने कितने अरब रुपयों का आय उत्पादन हो गया है। इधर जिले में रहने वाले चार महानुभाव मंत्री व एक विधान सभा अध्यक्ष बन गए हैं, बावजूद इस बड़ी अवधि में भी जनपद के पास उम्मीदें तो ढेरों हैं, जबकि उपलब्धियां महज उंगलियों में गिनने लायक। ऐसे में राज्य आंदोलन से जुड़े लोग जहां स्वयं को ठगा बता बता रहे हैं वहीं आम जन भी संतुष्ट नहीं हैं। 
अंग्रेजों के दौर से और आजादी के बाद भी कई मायनों में राजधानी देहरादून से भी आगे माने जाने वाली सरोवरनगरी को राज्य बनने से कुछ मिला तो वह राज्य का उच्च न्यायालय है। दूसरे केंद्र सरकार की योजना से ही सही नैनी झील की सेहत में एरियेशन के जरिये कुछ हद तक सुधार हुआ है। इसके बाद यदि नैनीताल नगर ही नहीं जनपद की उपलब्धियां ढूंढी जाऐं तो उन्हें दिमाग पर जोर डालकर ही याद करना पड़ेगा। वहीं अनुपलब्धियों-उम्मीदों की बात करें तो जनपद वासियों द्वारा एक दशक से भी अधिक समय से देखे जा रहे हल्द्वानी में अंतराष्ट्रीय स्टेडियम, आईएसबीटी बनने, नैनीताल व भवाली में बाईपास जैसे कार्य आज भी ख्वाब ही हैं। राज्य बनने के बाद से मुख्यालय में विकास की एक ईट के नाम पर तल्लीताल में बहुउद्देश्यीय भवन का अधर में पड़ा निर्माण मुंह चुराता है, वहीं शहर में अनाधिकृत निर्माणों से कंक्रीट के जंगल खड़े हो गये। मुख्यालय से विकास भवन सहित दर्जनों सरकारी कार्यालय बाहर चले गये। नगर के दोनों फिल्म थियेटर बंद हो गये। 
यह हुआ 
  • उत्तराखंड उच्च न्यायालय बना 
  • काठगोदाम में सेक्रेटरियेट व रामनगर में भव्य लोनिवि गेस्ट हाउस 
  • दाबका, कालाढूंगी व काठगोदाम में पुल 
  • भवाली में उत्तराखंड न्यायिक एवं विधिक अकादमी-उजाला 
  • लालकुआ, रामनगर, कोश्यां-कुटौली व धारी तहसीलों का उच्चीकरण 
  • हल्द्वानी में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय 
  • हल्द्वानी नगर निगम का उच्चीकरण 

अनचाहे जो हो गया 
  • मुख्यालय से विकास, वन व जल निगम सहित दर्जनों विभागीय कार्यालय बाहर चले गए 
  • पुलिस के लिहाज से नैनीताल का परिक्षेत्रीय दर्जा घट गया 
  • मुख्यालय के दोनों सिनेमा थियेटर बंद हो गये 

उम्मीदें जो अभी भी हैं ख्वाब 
  • हल्द्वानी में अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम 
  • हल्द्वानी में आईएसबीटी 
  • नैनीताल व भवाली में बाईपास 
  • मुख्यालय में गरीबों के लिए भवन 
  • एनएच 87 का टू-लेन में विस्तारीकरण 
  • कुमाऊं विवि का भीमताल में परिसर 
  • भवाली में चेस्ट इंस्टिटय़ूट व आयुष ग्राम 
  • विधि विश्व विद्यालय का निर्माण 
  • बीडी पांडे जिला चिकित्सालय का जीर्णोद्धार

मंगलवार, 6 नवंबर 2012

'औरंगजेब' ने मचाई सरोवरनगरी में आफत, ताक पर रखे कायदे-कानून



ऋषि कपूर ने की सरोवरनगरी में शूटिंग
प्रशंसकों के साथ फोटो खिंचवाए, मीडिया से रहे दूर 
यशराज बैनर की फिल्म औरंगजेब की शूटिंग के लिए तीन दिनों से थे शहर में
नैनीताल (एसएनबी)। गुजरे जमाने के फिल्मस्टार ऋषि कपूर बीते तीन दिनों से सरोवरनगरी में हैं। मंगलवार को उन्होंने नैनी सरोवर के पूरे दो चक्कर लगाये, प्रशंसकों के साथ फोटो खिंचवाये, लेकिन मीडियाकर्मियों से दूरी बनाकर रहे। वह सरोवरनगरी की प्राकृतिक सुंदरता से खासे प्रभावित दिखे। मंगलवार को सुबह करीब साढ़े 10 बजे वह होटल से निकले, माल रोड होते हुए तल्लीताल पहुंचे और वहां से सीधे निकलने के बजाय गाड़ी कलेक्ट्रेट-राजभवन रोड की ओर मोड़कर वापस डीएसबी से मस्जिद तिराहे पर उतर गये और फिर नैनी सरोवर का दूसरा चक्कर भी लगाया। गौरतलब है कि ऋषि कपूर इन दिनों फिल्म औरंगजेब की शूटिंग में व्यस्त हैं। यह फिल्म अमिताभ स्टारर त्रिशूल फिल्म की रिमेक बताई जा रही है। इस फिल्म में वह खलनायक की भूमिका में हैं और प्रेम चोपड़ा वाला रोल कर रहे हैं। फिल्म में निर्माता निर्देशक बोनी कपूर के बेटे अर्जुन कपूर और मलयालम अभिनेता पृथ्वीराज नायक तथा पाकिस्तानी अभिनेत्री सलमा आगा की पुत्री साशा आगा उर्फ जारा नायिका की भूमिका में हैं। जैकी श्राफ व अमृता सिंह भी फिल्म में हैं। इधर तीन दिन से फिल्म की शूटिंग सरोवरनगरी के अयारपाटा क्षेत्र में स्थित एक कोठी में चल रही है।


'औरंगजेब' ने मचाई आफत, ताक पर रखे कायदे-कानून
नैनीताल (एसएनबी)। औरंगजेब फिल्म की शूटिंग के लिए तड़के से लोअर माल रोड पर वाहनों का आवागमन बंद कर दिया गया था। फोटो खींचने पर भी पाबंदी थी। यदि किसी ने फोटो खींच ली तो कैमरा छीनकर उसकी फोटो भी डिलीट करवा दी गई। अनेक लोगों से फिल्म यूनिट के सदस्यों की तकरार भी हुई। यही नहीं फिल्म यूनिट के लोगों ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेशों से नगर की वाहनों के लिए प्रतिबंधित ठंडी सड़क पर भी कायदे-कानूनों को ताक पर रखकर गाड़ियां दौड़ाई। मंगलवार को औरंगजेब फिल्म की शूटिंग लोअर माल रोड के तल्लीताल सिरे पर चुंगी और डांठ के पास हुई। यहां यूनिट के सदस्यों ने वाहनों पर कैमरा लगाकर लाल व नीली बत्ती लगी गाड़ियों को इस ओर से उस ओर दौड़ाते हुए सीन शूट किये।

सोमवार, 5 नवंबर 2012

गैरसैंण के लिए टू-लेन हाई-वे बनाने की तैयारी भी शुरू


गैरसैंण और पहाड़ के दिन बहुरने शुरू 
एनएच-87 ज्योलीकोट से घिंघारीखाल तक 109 किमी हिस्से की फाइल दौड़ी 
नवीन जोशी नैनीताल। प्रदेश की स्थायी राजधानी के रूप में प्रदेशवासियों की पसंद बताये जाने वाले गैरसैंण के दिन बहुरने शुरू हो गये हैं। दो दिन पूर्व ही गैरसैंण में पहली बार राज्य कैबिनेट की ऐतिहासिक बैठक हुई थी और अब एक और खुशखबरी है कि गैरसैंण के लिए टू-लेन हाईवे की फाइल दौड़ने लगी है। पहले चरण में राष्ट्रीय राजमार्ग-87 की ज्योलीकोट से अल्मोड़ा होते हुए रानीखेत के पास घिंघारीखाल तक 109 किमी लंबी सड़क की चौड़ाई दोगुनी यानी टू-लेन होने जा रही है। बाद में इसके गैरसैंण तक जुड़ने का प्रस्ताव है। 
केंद्र सरकार के भूतल परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी ताजा अधिसूचना के अनुसार एनएच-87 के ज्योलीकोट से घिंघारीखाल तक के हिस्से को देश के अन्य राष्ट्रीय राजमागरे के साथ विस्तारित करने की योजना के तहत टू-लेन किया जाना है। इसके लिए करीब तीन दर्जन गांवों की सीमा की भूमि पर सड़क विस्तार के कार्य किए जाएंगे। इन कायरे के लिए नैनीताल एवं अल्मोड़ा जनपद के जिलाधिकारियों से सक्षम प्राधिकारियों का नाम मांग लिया गया है। गौरतलब है कि देश की राजधानी से कुमाऊं जल्द ही फोर लेन से जुड़ने जा रहा है। रामपुर से काठगोदाम के शेष बचे एनएच के हिस्से को फोर लेन करने का नोटिफिकेशन होने के बाद अब सड़क के लिए आवश्यक भूमि के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है और काठगोदाम से ज्योलीकोट का एनएच-87ई यानी नैनीताल आने वाली सड़क का हिस्सा पहले ही टू- लेन है, इसलिए ज्योलीकोट से घिंघारीखाल तक के 109 किमी हिस्से को टू-लेन के रूप में परिवर्तित करने की कवायद शुरू हो गई है। नैनीताल जनपद में अधिग्रहण के लिए जरूरी भूमि के चिह्नांकन का होमवर्क शुरू हो गया है। डीएम निधिमणि त्रिपाठी ने पूछे जाने पर कहा कि एनएच-87 के चौड़ीकरण के लिए जरूरी भूमि के अधिग्रहण की तैयारी की जा रही है। उन्होंने उम्मीद जताई कि मार्ग के टू-लेन हो जाने से पूरे कुमाऊं वासियों को लाभ होगा। साथ ही पर्यटन एवं विकास को भी पंख लग जाएंगे। गौरतलब है कि पहाड़ के राष्ट्रीय राजमागरे को टू- लेन करने का प्रस्ताव तत्कालीन केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी ने तैयार कर दिया था, लेकिन देर से ही सही यह प्रस्ताव अब फाइलों में दौड़ने लगा है

इन गांवों की सीमा में होगा चौड़ीकरण
नैनीताल। केंद्रीय भूतल परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी ताजा अधिसूचना के अनुसार नैनीताल के बलुवाखान चक देवलागढ़, चक गेठिया, कुरिया गांव, भवाली के सेनिटोरियम, कहलक्वीरा, मल्ला निगलाट, तल्ला निगलाट, हरतपा, बारगल, छड़ा, लोहाली, जौरासी, जोगी नौली, जोगी माड़े, मनर्सा, गंगोरी, गगरकोट, औलिया गांव, सुयालबाड़ी, सिर्सा, चोपड़ा व क्वारब, अल्मोड़ा के चौसली, बड़सिमी, देवली, खत्याड़ी, अल्मोड़ा नगर पालिका के बाहर बाईपास क्षेत्र, पांडेखोला, सुनौला मल्ला, सिमकुड़ी, अघेली सुनार, अघेली तेवाड़ी, सुनौला तल्ला, रैलाकोट, मटेला, लायम स्टेट फार्म हवालबाग, कटारमल, शौले, ज्यौली, स्यूना, क्वेराली, कयेला, गढ़वाली, कुरचौड़ा, तुस्यारी व सिमल्टा और रानीखेत के बबूरखोला, डीडा, तल्ली रियूनी, मल्ली रियूनी, नैणी व डडगल्या गांवों की सीमा में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-87 के विस्तार के लिए अपेक्षित कार्य होने हैं।


बुधवार, 10 अक्टूबर 2012

नैनीताल ने देश को दिया ‘सदी का महानायक’

70 के हुए 70 के ज़माने के "शहंशाह"
अमिताभ के रोम-रोम में बसा है सरोवर नगरी का शेरवुड कालेज 
कहा था, यहां बिताए तीन दिन तीन सर्वाधिक प्रसन्न वर्षो सरीखे 
नवीन जोशी, नैनीताल। अभिनय के शहंशाह कहे जाने वाले और सदी के महानायक व बिग बी जैसे नामों से पुकारे जाने वाले अमिताभ बच्चन के बारे में कम लोग जानते होंगे कि उनकी अभिनय कला नैनीताल में ही अंकुरित हुई थी। यहीं के शेरवुड कालेज में प्रधानाचार्य ने भविष्य के अभिनय के शहंशाह को नाटक में अभिनय करने से रोक दिया था। बिग बी नैनीताल और शेरवुड को दिल से इस तरह प्यार करते हैं कि उन्हें यह कहने में भी संकोच नहीं होता कि वह आज जो कुछ भी हैं, शेरवुड की वजह से हैं। वर्ष 2008 में वह शेरवुड के तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव में शामिल हुए थे तो लौटकर अपने ब्लॉग में लिखा, शेरवुड में बिताये तीन दिन उनके जीवन के तीन सर्वाधिक प्रसन्न वर्षो जैसे थे। 
अमिताभ को वर्ष 1956 में जब पहली बार उनके पिता प्रख्यात कवि हरिवंश राय बच्चन ने नैनीताल के शेरवुड कालेज में नौवीं कक्षा में दाखिल कराया था, तब वह महज 14 वर्ष के किशोर थे। उनके छोटे भाई अजिताभ उनसे पहले शेरवुड में प्रवेश पा चुके थे। उन्हीं दिनों अमिताभ में अभिनय के बीज अंकुरित हो रहे थे। यहीं वह अन्य सहपाठियों की तरह हॉस्टल से छिपकर फिल्में देखने भी जाने लगे थे। यहीं उन्होेंने शेक्सपीयर के नाटक में अभिनय कर ‘ज्योफ्रे केंडल कप’ का पुरस्कार हासिल किया, जो उनके जीवन का पहला नाटक और पहला पुरस्कार कहा जाता है। इसी दौरान एक अनोखी घटना घटित हुई, जिसे अमिताभ आज भी याद रखते हैं। शेरवुड के तत्कालीन प्रधानाचार्य रेवरन आरसी लिवैलिन जिन्हें छात्र ‘लू’ भी कहा करते थे, ने अमिताभ को बीमार होने के कारण नाटक में अभिनय करने से रोक दिया था। अमिताभ इस घटना को याद करते हुए अपने ब्लॉग में लिखते हैं, वह स्कूल के चिकित्सालय में बेड पर बीमार पड़े हुऐ थे, तब उन्हें अपने बाबूजी की कविता की पंक्तियां याद आई, ‘मन का हो तो अच्छा, मन का न हो तो और भी अच्छा।’ बस इन्हीं पंक्तियों ने न केवल तब उन्हें आत्मिक ऊर्जा दी, वरन हमेशा उन्हें जीवन में आगे बढ़ने को प्रेरित किया। जून 2008 में उन्हें जब शेरवुड के तीन दिवसीय वार्षिकोत्सव में आमंत्रित किया गया तो वह पत्नी जया, पुत्र अभिषेक व पुत्रवधू ऐश्वर्या और पारिवारिक मित्र अमर सिंह के साथ यहां पहुंचे। यहां के बाद उन्हें तत्काल अपनी ‘सरकार राज’ फिल्म के प्रमोशन एवं आइफा के कार्यक्रम में बैंकाक जाना था। वह नौ जून को दिल्ली ही पहुंचे थे कि अपने ब्लॉग में नैनीताल की यादों को संजोना नहीं भूले। उन्होंने लिखा, ‘वह शेरवुड में बिताये तीन दिनों से स्वयं को अलग नहीं कर पा रहे हैं। वह तीन दिन नहीं थे, उनके जीवन के तीन सर्वाधिक प्रसन्न वर्षो जैसे थे।’

पंत ने दिया था अमिताभ नाम
नाम नैनीताल। अमिताभ बच्चन 11 अक्टूबर 1942 को जब वह पैदा हुए थे, वह भारत छोड़ो आंदोलन का दौर था। उनके पिता के कवि मित्र सुमित्रानंदन पंत उन दिनों इलाहाबाद आये हुए थे। पंत ने नर्सिग होम में ही नवजात शिशु की ओर इशारा करते हुए कहा था- ‘देखो, कितना शांत बालक है, मानो ध्यानस्थ अमिताभ।’ कहते हैं बच्चन दंपति ने उनका नाम नामकरण संस्कार से पूर्व ही अमिताभ रख दिया था।

शेरवुड में होगी प्रार्थना सभा
नैनीताल। शेरवुड कालेज में अमिताभ के 70वें जन्म दिवस पर बृहस्पतिवार को विशेष प्रार्थना सभा होगी। कालेज के प्रधानाचार्य अमनदीप संधू ने बताया कि इस दौरान अमिताभ की दीर्घायु, सेहत एवं सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना की जाएगी। उन्होंने कहा कि अमिताभ निस्संदेह शेरवुड के सबसे प्यारे और सम्माननीय छात्र हैं। वह शेरवुड का नाम आते ही सब कुछ पीछे छोड़ देते हैं।

मूलतः यहाँ भी देख सकते हैं :                                http://rashtriyasahara.samaylive.com/epapermain.aspx?queryed=14&eddate=10/11/2012

शनिवार, 6 अक्टूबर 2012

स्विफ्ट टटल धूमकेतु से सशंकित है दुनिया !


2016 व 2040 में पृथ्वी के पास से गुजरेगा स्विफ्ट टटल 
धूमकेतुओं को बताया जाता है पृथ्वी से डायनासौर के विनाश का कारण 
1994 में बृहस्पति से टकराया था लेवी सूमेकर धूमकेतु, जिससे सूर्य के वलय भी प्रभावित हो गये थे, 
एरीज में लिये गये थे घटना के चित्र
नवीन जोशी/नीरज कुमार जोशी नैनीताल। यों तो पृथ्वी के भविष्य को लेकर वैज्ञानिकों व पंडितों की ओर से अक्सर अनेक चिंताजनक भविष्यवाणियां की जाती रही हैं और अब तक ऐसी हर संभावना निर्मूल भी साबित होती रही है। लेकिन पृथ्वी के बाबत नई चिंता इस बात को लेकर उत्पन्न हो गई है कि वर्ष 2016 और वर्ष 2040 में स्विफ्ट टटल नामक एक विशालकाय धूमकेतु पृथ्वी के पास से गुजर सकता है। इसकी दूरी पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण शक्ति की जद में ना जाए, इस बात की चिंता है। यदि यह पृथ्वी से टकरा गया, तो इसके परिणामों का अंदाजा 1994 में पृथ्वी से कई गुना बड़े ग्रह बृहस्पति पर शूमेकर लेवी नाम के एक पृथ्वी से बड़े आकार के धूमकेतु की टक्कर के परिणामों से लगाया जाने लगा है, जिसमें शूमेकर पूरी तरह नष्ट हो गया था। बृहस्पति के वलयों पर भी इसका प्रभाव पड़ा था। इस आधार पर वैज्ञानिक 2016 व 2040 में पृथ्वी पर व्यापक नुकसान होने की संभावना की हद तक आशंकित हैं। 
शूमेकर धूमकेतु के बृहस्पति पर टकराने की घटना का नैनीताल के आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान यानी एरीज के वैज्ञानिकों ने भी अध्ययन किया था और वह अपनी एक मीटर व्यास की दूरबीन से इस घटना के कई चित्र लेने में सफल रहे थे। इधर देश-दुनिया के साथ एरीज के वैज्ञानिक भी 2016 में स्विफ्ट टटल एसएन 1998  नाम के धूमकेतु के पृथ्वी के पास से गुजरने की संभावित घटना को लेकर चिंतित हैं और 1994 की घटना के अध्ययनों के आधार पर ही 2016 में किसी अनिष्ट की संभावना को टालने के लिए प्रयासरत हैं। 
गौरतलब है कि वर्ष 1994 खगोलीय घटनाओं के लिए सर्वाधिक याद किया जाता रहा है। इसी वर्ष 16 से 22 जुलाई तक जो कुछ घटा, उसने दुनिया भर के वैज्ञानिकों को शोध के लिए अच्छा प्लेटफार्म तो दिया ही साथ ही भविष्य में इस तरह की घटनाओं से पृथ्वी को बचा सकने की तैयारियों के लिए भी लंबा समय दिया। इस दौरान बृहस्पति पर शूमेकर लेवी नाम के एक धूमकेतु के विभिन्न आकार के टुकड़ों के टकराने से आतिशबाजी जैसी घटना हुई,फलस्वरूप शूमेकर धूमकेतु टकराने से नष्ट हो गया था। उल्लेखनीय है कि लगभग छह करेाड़ वर्ष पहले पृथ्वी से विशालकाय डायनसोरों के अंत का कारण भी धूमकेतुओं के पृथ्वी से टकराने को माना जाता है। भारत के लिए यह सौभाग्य रहा कि नैनीताल स्थित एरीज में इस महत्वपूर्ण खगोलीय घटना के दिन अध्ययन किया गया। एरीज में एक मीटर व्यास की दूरबीन के साथ लगे सीसी टीवी कैमरों से इस दुर्लभ खगोलीय घटना का अध्ययन किया गया था। इस टीम में डा. जेबी श्रीवास्तव, डा. बीबी सनवाल, डीसी जोशी, डा. एचएस मेहरा, डा.एके पांडे व डा. बीसी भट्ट ने सौर घटना के महत्वपूर्ण फोटो द्वारा इस पर शोध किया। इस बाबत पूछे जाने पर एरीज के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा.शशिभूषण पांडे कहते हैं कि वर्ष 2016 और वर्ष 2040 में भी धूमकेतु पृथ्वी के करीब से गुजरेगा। धूमकेतु व पृथ्वी की यह नजदीकी पृथ्वी व चंद्रमा के बीच की दूरी की 30 गुना तक हो सकती है। इतनी दूर से गुजरने को भी खगोल विज्ञान के दृष्टिकोण से पास से गुजरना ही कहा जाता है।

धूमकेतु क्या होते हैं ? 
नैनीताल। धूमकेतु अंतरिक्ष में घूमने वाले ऐसे सूक्ष्म ग्रह हैं जो सौरमंडल में मंगल व बृहस्पति ग्रहों के बीच बहुतायत क्षेत्र मे फैले हैं। कभी-कभार ये पृथ्वी के आसपास भी भटकते हैं। इसी तरह का एक धूमकेतु लेवी शूमेकर भी रहा। जिसकी खोज वैज्ञानिक कैरोलिन शूमेकर व डेविड लेवी ने 1993 में की थी। यह धूमकेतु बृहस्पति से टक्कर में 22 जुलाई 1994 को नष्ट हो गया। वैज्ञानिक आंकड़ों के अनुसार इस टक्कर से लगभग साढ़े चार करोड़ मेगाटन टीएनटी मात्रा में ऊर्जा भी निकली थी। ज्ञात रहे कि इस तरह की टक्कर पृथ्वी से होती तो यहां जीवन के साथ-साथ पृथ्वी का अस्तित्व भी नहीं रहता। विश्व भर के अंतरिक्ष शोध संस्थान इस घटना से प्राप्त फोटो के आधार पर पिछले डेड़ दशक से शोध कर रहे हैं। 
खगोल वैज्ञानिकों के लिए अच्छा ‘टेस्ट मैच’
नैनीताल। एक ओर जहां धूमकेतु की पृथ्वी से टकराने की घटना ने खगोल वैज्ञानिकों के माथे पर चिंता की लकीर खीचीं है, दूसरी ओर भविष्य की इस संभावित घटना के लिए अच्छा प्लेटफार्म भी पाया है। इस बाबत एरीज के वरिष्ठ सौर वैज्ञानिक बहाबउद्दीन बताते हैं कि इस तरह की घटनाओं से निपटने की तैयारियों में खगोल विज्ञान और शक्तिशाली होता रहा है। दूसरी ओर यह माना जा रहा है इस तरह कि संभावित घटना पृथ्वी को आकाशीय पिंडों से बचाने व उन्हें दूर धकेलने व मिसाइल आदि से समुद्री क्षेत्र में गिराने की नई सौर तकनीकों से रूबरू होगा। यह भी सच है कि इस संभावित घटना से सौर वैज्ञानिक कई महत्वपूर्ण खोजों के साथ कईं आंकड़े भी जुटा पायेगें। 
पृथ्वी का बॉडीगार्ड है बृहस्पति 
नैनीताल। वेद पुराणों में बृहस्पति को गुरु का दर्जा मिला है। वहीं सौर विज्ञान में यह बॉडीगार्ड की भूमिका को निभाता रहा है। आकार में पृथ्वीं से कई गुना बड़ा होने के कारण यह पृथ्वी की सौर कक्षा की ओर आने वाले आकाशीय पिंडों को अपने गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में लेकर उन्हें पृथ्वी की ओर आने से रोकता है।