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शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

उत्तराखंड से पहले मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने न्यायमूर्ति प्रफुल्ल चंद्र पंत

नैनीताल (एसएनबी)। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बाद मेघालय हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने न्यायमूर्ति प्रफुल्ल चंद्र पंत सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनाए गए हैं। इस तरह वह यह दोनों उपलब्धियां हासिल करने वाले उत्तराखंड राज्य के पहले व्यक्ति भी बन गए हैं।
गत वर्ष 18 सितंबर को राष्ट्रपति की स्वीकृति पर न्याय विभाग के संयुक्त सचिव प्रवीण गर्ग की ओर से उन्हें मेघालय हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नियुक्ति का नोटिफिकेशन उत्तराखंड उच्च न्यायालय में मिला था। इसके बाद वह दिल्ली रवाना हो गए। न्यायमूर्ति पंत उत्तराखंड के पहले निवासी हैं जो किसी प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश बने और अब सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीष पद पर उनकी नियुक्ति हुई है। उनसे पूर्व न्यायमूर्ति बीसी कांडपाल को ही उत्तराखंड हाई कोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यरत रहने का गौरव प्राप्त हुआ था, जबकि उत्तराखंड उच्च न्यायालय के वर्तमान कार्यकारी न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीके बिष्ट भी उत्तराखंड के ही हैं।
मेघालय का मुख्य न्यायाधीष बनने पर उन्होंने अपनी उपलब्धि का श्रेय बड़े भाई चंद्रशेखर पंत को दिया था। इस मौके पर ष्राष्ट्रीय सहाराष् से बातचीत में न्यायमूर्ति पंत ने कहा कि वह ईमानदारी और निडरता से कार्य करने वाले न्यायाधीशों को ही सफल मानते हैं। पदोन्नति के बजाय मनुष्य के रूप में सफलता ही एक न्यायाधीश और उनकी सफलता है। आज भी वह 1976 में नैनीताल के एटीआई में न्यायिक सेवा शुरू करने के दौरान प्रशिक्षण में मिले उस पाठ को याद रखते हैं, जिसमें कहा गया था कि एक न्यायिक अधिकारी को ‘हिंदू विधवा स्त्री’ की तरह रहते हुए समाज से जुड़ाव नहीं रखना चाहिए। इससे न्याय प्रभावित हो सकता है।

सोमवार, 16 जुलाई 2012

आखिर न्याय देव ग्वेल के दरबार से मिला न्याय


  • उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसले से पुख्ता हुआ न्याय पर विश्वास

नवीन जोशी, नैनीताल। उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है, यहां के कण-कण में देवत्व का वास बताया जाता है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा सोमवार को होनहार कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के मामले में आये फैसले से देवभूमि की ऐसी ही महिमा साकार हुई है। मामले में आये उच्च न्यायालय के फैसले को आज दोनों पक्षों के अधिवक्ता जिस प्रकार अनपेक्षित बता रहे थे, उससे यह विास भी पक्का हुआ है कि सरोवरनगरी के पास ही विराजने वाले कुमाऊं के न्याय देव ग्वेल से लगाई जाने वाली न्याय की गुहार कभी खाली नहीं जाती। गौरतलब है कि इस मामले में अपनी कवयित्री बहन के कातिल यूपी के दबंग मंत्री अमरमणि त्रिपाठी के खिलाफ लड़ने वाली बहन निधि शुक्ला ने गत वर्ष ही, जब वह अपनी न्यायिक जीत को करीब-करीब मुश्किल मान बैठी थी, उसने देवभूमि वासियों और निकटवर्ती घोड़ाखाल स्थित ग्वेल देवता के मंदिर में न्याय की गुहार लगाई थी। ग्वेल देवता को कुमाऊं का न्यायदेव कहा जाता है। ग्वेल देवता के कुमाऊं में चंपावत, द्वाराहाट, चितई व घोड़ाखाल आदि में मंदिर हैं। कहा जाता है कि ग्वेल देव से लगाई जाने वाली न्याय की गुहार कभी खाली नहीं जाती। इसलिए लोग ग्वेल देवता के मंदिर में सादे कागजों और स्टांप पेपर पर भी अर्जियां देकर न्याय की प्रार्थना करते हैं। यह भी कहा जाता है कि यदि न्याय मांगने वाला व्यक्ति खुद गलत होता है तो देवता उसे उल्टी सजा देने से भी नहीं चूकते। ऐसी अनेक दंतकथाएं प्रचलित हैं, जिनमें ग्वेल देव ने न्याय किया। कमोबेश इस मामले में भी ग्वेल देव का न्याय पक्का हुआ है। इस मामले में अपने बुलंद इरादों के बावजूद और लड़ाई को मुकाम तक पहुंचाने वाली निधि शुक्ला भी न्यायालय के ऐसे फैसले की कल्पना नहीं कर रही थी। फैसले के दो दिन पूर्व ही दबंग मंत्री अमरमणि त्रिपाठी से बेहद डरी हुई निधि शुक्ला ने राष्ट्रपति से इच्छा मृत्यु की गुहार तक लगा दी थी। अभियुक्त मंत्री अमरमणि ने भी मामले की पैरवी में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी। कोलकाता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सहित दर्जन भर से अधिवक्ता इधर मामले की पैरवी में लगे हुए थे। आज न्यायालय से ऐसे फैसले की उम्मीद होती तो शायद न्यायालय परिसर में भी अलग ही नजारा होता। शायद इसीलिए ‘न्याय की जीत’ करार दिये जा रहे इस फैसले को अपने कानों से सुनने के लिए दिवंगत कवयित्री के परिजन भी आज न्यायालय परिसर में मौजूद नहीं थे।

यह मिला न्याय...
अमरमणि की उम्रकैद बरकरार
नैनीताल (एसएनबी)। नैनीताल उच्च न्यायालय ने सीबीआई अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड के अभियुक्त अमरमणि त्रिपाठी की आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी है। न्यायालय ने संतोष कुमार राय, रोहित चतुव्रेदी और मधुमणि त्रिपाठी की अपीलों को खारिज कर दिया है। न्यायालय ने सीबीआई की अपील को स्वीकार करते हुए पांचवें अभियुक्त प्रकाश चन्द्र पाण्डे को भी आजीवन कारावास की सजा सुना दी है। मगर अमरमणि त्रिपाठी के वकीलों ने कहा है कि वे इस फैसले के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करेंगे। यह फैसला मुख्य न्यायाधीश बारिन घोष और न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी की संयुक्त खंडपीठ ने अभियुक्तों की याचिकाओं की सुनवाई के बाद दिया है। उल्लेखनीय है कि नौ मई 2003 को लखनऊ की एक कालोनी में कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या कर दी गयी थी। मामले की प्रथम सूचना रिपोर्ट मधुमिता की बहन निधि शुक्ला ने दाखिल की थी। बाद में यह मामला सीबीआई को सौंपा गया। सीबीआई ने लंबी जांच के बाद इन लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। बाद में यह मामला उत्तराखंड स्थानांतरित कर दिया गया। वर्ष 2007 में सीबीआई की देहरादून अदालत ने अमरमणि, मधुमणि, संतोष राय के खिलाफ पर्याप्त सबूत मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। प्रकाश पाण्डे को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया था। इसको इन सभी लोगों ने नैनीताल उच्च न्यायालय में चुनौती दी। जबकि सीबीआई द्वारा प्रकाश पाण्डे को बरी कर देने को भी न्यायालय में चुनौती दी गयी। लम्बी सुनवाई के बाद सोमवार को न्यायालय ने तमाम सबूतों के आधार पर सीबीआई अदालत के फैसले को बरकरार रखने का फैसला सुनाया जबकि अभियुक्त प्रकाश चन्द्र पाण्डे के मामले में सीबीआई अदालत के फैसले को पलटते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा दे दी है। इसके साथ ही अमरमणि एवं अन्य के पास अब सुप्रीम कोर्ट जाने के अलावा सारे विकल्प बंद हो गये हैं।


ग्वेल देवता एवं देवभूमि के बारे में और अधिक  पढ़े : http://newideass.blogspot.in/2010/02/blog-post_26.html 

बुधवार, 21 मार्च 2012

अब उत्तराखंड हाईकोर्ट से हिंदी में भी ले सकेंगे फैसले की प्रति

नैनीताल/देहरादून (एसएनबी)। उत्तराखंड बार काउंसिल की उत्तराखंड उच्च न्यायालय में अंग्रेजी के साथ ही हिंदी भाषा के उपयोग के लिए शुरू की गई मुहिम आखिर रंग लायी है। यहां होने वाले निर्णय अब हिन्दी में भी प्राप्त किए जा सकेंगे। हालांकि केस दायर करने और बहस की प्रक्रिया अब भी अंग्रेजी में ही होगी। बार कौंसिल ऑफ उत्तराखंड की मांग के बाद उत्तराखंड शासन द्वारा इस संबंध में निबंधक उच्च न्यायालय नैनीताल को आवश्यक व्यवस्थाएं करने के लिए दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। 
बार कौंसिल ऑफ उत्तराखंड के चेयरमैन अधिवक्ता पृथ्वीराज चौहान ने कहा कि बार कौंसिल द्वारा 17 अप्रैल 2011 को (शेष पेज 15) कोर्ट द्वारा किये जाने वाले निर्णयों, डिक्री व आदेशों में अंग्रेजी के साथ हिंदी के समान रूप से प्रयोग को शासनादेश जारी प्रस्ताव शासन को सौंपा था। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय में हिन्दी के प्रयोग होने से वादकारी व अधिवक्ता लाभान्वित होंगे। उत्तराखंड शासन के राजभाषा अनुभाग ने गत दो मार्च को न्यायालय द्वारा किये जान वाले निर्णयों, डिक्री व आदेशों के लिए अंग्रेजी के साथ हिंदी भाषा का समान रूप से प्रयोग किये जाने के बाबत शासनादेश जारी किया। बार काउंसिल के सदस्यों ने इसे पूर्व सरकार के कार्यकाल में हुआ महत्वपूर्ण फैसला बताया है। बुधवार को बार काउंसिल सभागार नैनीताल में आयोजित पत्रकार वार्ता में बार काउंसिल के सचिव विजय सिंह ने पूर्व अध्यक्ष डा. महेंद्र पाल को आज ही प्राप्त हुए शासनादेश की प्रति की जानकारी दी। डा. पाल ने कहा कि उनका अंग्रेजी से कोई विरोध नहीं है लेकिन खुशी है कि उनकी ओर से शुरू की गई मुहिम सफल रही है। इस शासनादेश के बाद हिंदी में याचिका दायर की जा सकेंगी और अधिवक्ता हिंदी में जिरह कर सकते हैं। उन्होंने शासनादेश के अधिकाधिक प्रचार-प्रसार की आवश्यकता जताई ताकि लोग इसका लाभ उठा सकें। पत्रकार वार्ता में काउंसिल के सदस्य डीके शर्मा, नंदन कन्याल, मंगल सिंह चौहान, वरिष्ठ अधिवक्ता केएस वर्मा, हाईकोर्ट बार एसोसिऐशन के सचिव विनोद तिवारी, स्टेंडिंग काउंसिल पीसी बिष्ट व मानव शर्मा भी मौजूद रहे।