जनपद के चोपड़ा गांव में रफ्तार पकडऩे लगा विकास
नवीन जोशी, नैनीताल।
"चाहो तो तुम देश की तहरीर बदल दो,
चाहो तो तुम देश की तस्वीर बदल दो।
नारी ! शक्ति हो संसार की भूलो न कभी ये,
चाहो तो तुम देश की तकदीर बदल दो ॥"
कुछ ऐसी ही परिकल्पना के साथ देश में 7३वें संविधान संसोधन के रूप में पंचायत राज अधिनियम और फिर पंचायतों में महिलाओं को 5 फीसद आरक्षण देने की व्यवस्था लागू हुई है, जिसके अब सुखद परिणाम आने शुरू होने लगे हैं। जनपद की चोपड़ा ग्राम सभा इस बात को साफ करने के लिये एक उदाहरण हो सकती है, जहां की ग्रामीण महिलाएँ अब रंग्वाली पिछौड़ा व शगुन आंखरों जैसे सांस्कृतिक प्रतिमानों को पकड़ कर भी विकास की रफ्तार से कदम मिला रही हैं। उनके चेहरों पर मुस्कुराहटों की आहट साफ नजर आ रही है।
चोपड़ा ग्राम सभा यूं नैनीताल—हल्द्वानी राष्ट्रीय राजमार्ग पर आमपड़ाव के पास पड़ती है। सड़क से न्यूनतम दो से छह किमी की खड़ी चढ़ाई पर इसके करीब 1 वर्ग किमी से भी अधिक विस्तृत व 37६ हैक्टेयर क्षेत्रफल में फैले आमपड़ाव, दांगड़, बसगांव, रोपड़ा, स्यालीखेत, भुमका, खड़काखेत, सिमलखेत, मल्ला चोपड़ा, रहन व फुनियाखान सहित एक दर्जन से भी अधिक तोक यानी दूर-दूर छिटकी हुई छोटी—छोटी बस्तियां हैं। आजादी के 6 वर्ष बाद भी यह गांव विकास से कोसों दूर था। 208 में ग्राम सभा के महिलाओं हेतु आरक्षित होने पर भगवती सुयाल को गांव की कमान मिली। निकटवर्ती घोड़ाखाल स्थित कुमाऊं के न्याय देव ग्वल के मंदिर के प्रधान पुजारी केदार दत्त जोशी की यह पुत्री ग्रामीणों को उनके हक के विकास का 'न्याय' दिलाने के इरादे से दायित्व संभाला, जिसका परिणाम है कि गांव में आज खुशहाली आने लगी है। गांव के लिये भूस्खलन का लगातार खतरा बने छीड़ा गधेरे के उपचार का तीन करोड़ का प्रस्ताव वन विभाग को भेजा गया, एक करोड़ रुपये फिलहाल स्वीकृत होकर काम शुरू हो गया। गांव में सिंचाई के लिये प्रयुक्त पंप के लिये डीजल लाने में ही दिन निकल जाता था, अब 5 लाख रुपये की लागत से इसकी जगह बिजली से चलने वाला नया पंप लगाया जा रहा है। गांव में पांच महिला पौधालयों की स्थापना की गई है, जहां महिलाएँ तेजपत्ता, आंवला, हरड़ जैसे औषधीय पौधे लगाकर अपनी आय बढ़ा रही हैं। गांव में ही एएनएस सेंटर स्थापित हो गया है, लिहाजा अब गर्भवती महिलाओं को पैदल दूसरे गांव नहीं जाना पड़ता। गांव के लिये पीएमजीएसवाई योजना से सड़क बननी प्रारंभ हो गई है। गांव के स्यालीखेत तोक की बच्चियों को ज्योलीकोट स्कूल आने के लिये मीलों पैदल चलना पड़ता था, अब बीच में 2 लाख रुपये से पुलिया बन गई है, और सफर मिनटों में कट जाता है। गांव में मनरेगा से भी सड़क, संपर्क मार्ग व चेक डेमों का निर्माण जोरों पर है। वर्षों से विवादों मैं फंसे प्राथमिक स्कूल का निर्माण शुरू होने लगा है। गांव के लोग दाल चीनी के पत्तों और लीची का कारोबार करके खुश हैं, क्योंकि अब उनकी फसल में कोई रोग होता है तो कृषि व उद्यान विभाग के अधिकारी कृषक महोत्सव में आकर रोगों का निदान करते हैं। परंपरागत रंग्वाली पिछौड़ों में सजी महिलाएँ यहां शगुन आंखर गाकर उनका स्वागत करती हैं। महिलाओं के लिये गांव में न चारे की समस्या है, न ही वह पतियों के शराब पीकर आने से परेशान हैं। एक युवक मां द्वारा खरीद कर दी गई गाड़ी के पैंसे शराब पर खर्च कर मां को ही पीट रहा था। भगवती ने पहले मां को अपने घर में शरण दी, और फिर स्वयं गाली खाकर बेटे को समझाया। तब से उसके साथ ही अन्य युवक भी शराब से दूर रहने लगे हैं। महिलाएँ अब बचे समय में टैडी बियर जैसे खिलौने बनाने व सिलाई कढ़ाई सीख रही हैं। भगवती कहती हैं, यह बदलाव तो शुरुआत है। और इसका कारण कहीं न कहीं उनका एक महिला होना भी है। क्योंकि वह गांव—घर की समस्याओं को अधिक बेहतर समझने वाली महिलाओं की तरह सोच पाती हैं। आगे महिलाओं को कंप्यूटर प्रशिक्षण दिलाने की भी उनकी योजना है।
2 टिप्पणियां:
हमारे पहाड़ की व्यथा को एक पहाड़ी महिला ही समझ सकती है| धन्यवाद|
dhanywaad is post par aane aur Tippanee karane ke liye..
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