रविवार, 22 मई 2011

भारत व पाक के लोगों में अमन की चाहत : बिल्लौर


पाक के रेल मंत्री को अफसोस कि आज भी दोनों देशों में पहाड़ों तक नहीं पहुंची रेल
नवीन जोशी नैनीताल। पाकिस्तान के रेल मंत्री हाजी गुलाम अहमद बिल्लौर को इस बात का अफसोस है कि भारत और पाकिस्तान आज भी रेल को पहाड़ों तक नहीं पहुंचा सके। उन्होंने दोनों देशों को तिब्बत तक रेल ला चुके चीन के साथ ही जापान, जर्मनी व यूरोपीय देशों से सबक लेने की जरूरत बताई। उन्होंने उम्मीद जताई कि दोनों देशों के आवाम की अमन और करीब आने की ख्वाहिश अब पूरी होगी। दोनों देशों के सियासतदां भी लड़ते-लड़ते थक गए हैं। 
रविवार को अपने तीसरे भारत दौरे के दौरान पहली बार नैनीताल पहुंचे हाजी बिल्लौर ने पत्रकारों के साथ अनौपचारिक बातचीत में पहाड़ पर रेल चढ़ाने के सवाल को दोनों देशों की नाकामी से जोड़ा। खुद पाक के पहाड़ी सूबे खैबर तख्तून के निवासी बिल्लौर को अफसोस है कि वह भी अपने पहाड़ों में रेल नहीं बढ़ा पाए। उनका कहना था कि अंग्रेज भारत में शिमला और पाकिस्तान में लैंडी कोतल तक रेल ले गए थे। दोनों देशों में अभी भी रेल 120-130 किमी प्रति घंटे की रफ्तार पर अटकी हैं, जबकि चीन में 350 किमी प्रति घंटे की रफ्तार पकड़ चुकी है। सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खां का नाम लेते हुए बिल्लौर ने बताया कि वह उन्हीं के सूबे के हैं और पठान हैं। चीन की तरक्की पर रश्क करते हुए उन्होंने दावा किया कि चीन ने दुनिया को कर्ज देने वाले अमेरिका को तीन ट्रिलियन डॉलर का कर्ज दिया है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों को सोचना चाहिए कि लड़ाई से सिर्फ तबाही मिलती है। दोनों देशों ने इस लड़ाई से खोया ही है, पाया कुछ नहीं। अच्छा हो दोनों मिलकर भाइयों की तरह गुजारा करें और अमन से रहें। उन्होंने कहा कि यूरोपीय देशों ने अपनी मुद्रा एक कर ली, बीच के रास्ते और तिजारत खोल दी, इसलिए आज वह अमन व तरक्की की राह पर हैं। नैनीताल के बावत उन्होंने कहा कि यह पाक के झीलों के शहर सेफलमलू सहित और दूसरे पहाड़ी नगरों से कहीं अधिक खूबसूरत है। उन्होंने कहा कि वह अपने परिवार के साथ अजमेर शरीफ और बरेली शरीफ के निजी दौरे पर आए थे, बरेली से पता चला कि नैनीताल करीब है, यहां का बहुत नाम सुना था, इसलिए चले आए। सोमवार शाम वह यहां से लौट जाएंगे। 

‘गढ़वाली’ के पेशावर कांड को याद किया
नैनीताल। पाकिस्तानी बुजुर्ग नेता हाजी गुलाम अहमद बिल्लौर ने दावा किया कि हिन्दुस्तान की आजादी के लिए पाकिस्तानियों ने जलियांवाला बाग सहित सर्वाधिक कुर्बानियां दीं, उसी तरह हिंदू सैनिकों ने भी पाकिस्तानी शहर पेशावर के मशहूर किस्साखानी व बाजार-ए-कलां में अंग्रेजों के हुक्म पर अपने लोगों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया था। उल्लेखनीय है कि प्रदेश के वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को ही पेशावर कांड का नायक कहा जाता है, जिन्होंने 23 अप्रैल 1930 को रॉयल गढ़वाल रायफल्स का हवलदार रहते पेशावर में आजादी के लिए आंदोलनरत निहत्थे पठानों पर गोली चलाने से इनकार कर दिया था।
इसे यहाँ राष्ट्रीय सहारा के प्रथम पेज पर भी देख सकते हैं.

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