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गुरुवार, 24 जुलाई 2014

हफ्ते भर में नौ फीट बढ़ा नैनी झील का जलस्तर


  • 17 जुलाई को जल स्तर था शून्य से नीचे, 
  • 23 जुलाई को पहुंचा 8.7 फीट के स्तर पर, एक इंच खोले गये गेट

नैनीताल (एसएनबी)। नैनी झील पर कुदरत बारिश के रूप में मेहरबान हो ही गई है। बीते एक सप्ताह में नैनी झील का जलस्तर करीब नौ फीट ऊपर चढ़ गया। बुधवार को यह जुलाई माह के लिए निर्धारित साढ़े आठ फीट के स्तर को भी पार कर 8.7 फीट के स्तर पर पहुंच गया और इसके बाद एक वर्ष बाद झील के गेट (डांठ) एक इंच खोल दिए गए हैं। गौरतलब है कि बीती 14 जुलाई से ही नगर में मानसून की बारिश शुरू हो पाई है। इससे पहले झील के किनारे बड़े-बड़े डेल्टा नजर आ रहे थे। नगर में 14 जुलाई को 2.54 मिमी, 15 को 3.81, 16 को 198.12, 17 को 63.5, 18 को 325.12, 19 को 396.24, 20 को 238.76, 21 को 15.24, 22 को 30.48 व आज 23 को 8.89 मिलीमीटर बारिश रिकार्ड की गई है। इस तरह इस वर्ष अब तक कुल मिलाकर 2,506.98 मिमी बारिश हो चुकी है। इसके साथ ही झील का जलस्तर बीते 24 घंटों में चार इंच बढ़कर सुबह साढ़े आठ बजे 8.7 फीट पर पहुंच गया। इसके बाद दोपहर साढ़े 11 बजे झील के गेटों को इस वर्ष में पहली बार एक इंच खोल दिया गया। उल्लेखनीय है कि झील के गेट खोलने से झील का पानी बाहर चला जाता है, और इसे आमतौर पर स्थिर पानी वाली नैनी झील का पानी ‘रिफ्रेश’ हो पाता है, और इसे झील के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है। इधर बुधवार को भी नगर में रिमझिम बारिश का सिलसिला चलता रहा। मौसम विभाग के अनुसार दिन का अधिकतम तापमान 23.2 व न्यूनतम 17.9 डिग्री सेल्सियस रिकार्ड किया गया।

बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

जिम कार्बेट के घर नैनीताल में फिर दिखाई दिया ‘रॉयल बंगाल टाइगर’

नवीन जोशी, नैनीताल। देश में बाघों की संख्या लगातार घटने से चिंतित पर्यावरण प्रेमियों और प्रकृति के स्वर्ग कही जाने वाली सरोवर नगरी प्रेमियों के लिए अच्छी खबर है। बाघों का राजा ‘रॉयल बंगाल टाइगर' अंतर्राष्ट्रीय शिकारी जिम कार्बेट के शहर नैनीताल की खूबसूरती पर एक बार फिर फिदा हो गया लगता है। बीती 10-11 फरवरी की रात्रि नगर की करीब 2591 मीटर ( 8500 फिट) ऊंची कैमल्स बैक चोटी पर इसे देखा गया। आधिकारिक तौर पर कैमरों से इसकी तस्वीर भी रिकार्ड की गई है। इसे जिम कार्बेट के दौर के लम्बे अंतराल के बाद भी नैनीताल में समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र बरक़रार रहने के लिहाज से भी बड़ी उपलब्धि माना जा सकता है। 
प्रदेश में गत 10 फरवरी से एक सप्ताह तक यानी 17 फरवरी तक के लिए बाघों की गणना के लिए अभियान चला रहा है। इस अभियान के तहत नैनीताल के निकटवर्ती वन क्षेत्रों में अनेक स्थानों पर रात्रि में भी देखने की क्षमता वाले कैमरे लगाए गए हैं। इन्हीं में से एक कैमरा नैना रेंज में समुद्री सतह से 2591 मीटर की ऊंचाई वाली चोटी कैमल्स हंप या कैमल्स बैक पर भी लगाया गया था। इस कैमरे से अभियान की पहली ही यानी 10 व 11 फरवरी की रात्रि एक बजकर 47 मिनट पर करीब सात-आठ वर्ष की उम्र के बंगाल टाइगर प्रजाति के कैमरे के चित्र लिये गए हैं। डीएफओ डा. तेजस्विनी पाटिल ने इस बात की पुष्टि करते हुए बताया कि कैमरे में देखा गया बाघ नर हो सकता है। जिस कैमरे पर यह रिकार्ड किया गया है, उसे कुमाऊं विवि के वानिकी विभाग के द्वितीय वर्ष के दो छात्रों मो. अकरम व लवप्रीत सिंह लाहौरी तथा एक स्थानीय युवक अमित वाल्मीकि द्वारा लगाया गया था। 
उल्लेखनीय है कि बाघ पारिस्थितिकी तंत्र की आहार श्रृंखला में सांपों में किंग कोबरा, पक्षियों में चील-गिद्ध आदि की तरह सबसे ऊपर होते हैं। किसी स्थान पर इनकी उपस्थिति होने का सीधा सा अर्थ होता है कि उस पारिस्थितिकी तंत्र की श्रृंखला के निचली श्रेणी तक के सभी अन्य जीव भी भरपूर मात्रा में उस स्थान पर उपलब्ध हैं। यह अपनी भोजन श्रृंखला के निचली श्रेणी के वन्य जीवों को खाते हुए पारिस्थितिकीय संतुलन बनाते हैं।

2010 में भूटान में 4100 मीटर ऊंचाई पर देखे जाने का है रिकार्ड

देश में सर्वाधिक ऊंचाई पर बाघ को देखे जाने के रिकार्ड उपलब्ध नहीं हैं, और अब पहली बार इसे नैनीताल में 2951 मीटर की ऊंचाई पर देखा गया है। बहरहाल बीबीसी के अनुसार बाघ को सर्वाधिक ऊंचाई पर देखे जाने का विश्व रिकार्ड सितम्बर 2010 में बना था, जब इसे भूटान में 4100 मीटर की ऊंचाई पर रिकार्ड किया गया था। गौरतलब है कि नैनीताल में पूर्व में कैंट के पास बाघ को देखे जाने की बात कही जाती थी, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो पाई थी।

रविवार, 19 जनवरी 2014

सरोवरनगरी में बिछी 'चांदी की चादर', सैलानियों का उमड़ा मेला

सरोवरनगरी में सैलानियों ने उठाया मौसम का लुत्फ
नैनीताल (एसएनबी)। पहाड़ों पर शनिवार को हुई बर्फवारी का असर रविवार को सरोवरनगरी में सैलानियों के मेले के रूप में देखने को मिला। नजदीकी यूपी एवं दिल्ली से आए सैलानियों से नगर में मेले जैसा माहौल दिखाई दिया। नगर में सुबह से ही अच्छी धूप खिली, जिससे मौसम खुशनुमा रहा। इसके साथ ही नगर में आम जनजीवन भी पटरी पर लौटने लगा। अधिकांश क्षेत्रों में बिजली और पानी की सेवाएं भी बहाल हो गई हैं। अलबत्ता, अपराह्न तक बादल वापस आसमान में घिर आए, और मौसम विभाग के अनुसार तापमान अधिकतम 3.4 एवं न्यूनतम 1.2 डिग्री सेल्सियस तक लुड़क गया। उल्लेखनीय है कि पहाड़ों पर शुक्रवार से बदले मौसम के तहत शनिवार को अच्छी खासी बर्फवारी हुई थी, और समूचे नगर में तीन इंच से लेकर ऊंचाई वाले क्षेत्रों में आधा फीट तक बर्फवारी हुई। 






शनिवार को शाम को ही बर्फवारी रुक गई थी,और इसके बाद आसमान धीरे-धीरे साफ होता चला गया। बर्फवारी होने की जानकारी मिलने पर नजदीकी मैदानी क्षेत्रों के सैलानी नैनीताल में उमड़ आए, और उन्हें बर्फ से खेलने के लिए ऊंचे क्षेत्रों में भी नहीं जाना पड़ा। माल रोड, पालिका गार्डन सहित अन्य पाकरे में भी सैलानी एक-दूसरे पर बर्फ के गोले दाग कर खूब आनंद लेते रहे। अलबत्ता, नगर के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सीसी मागरे पर बर्फ की वजह से फिसलन होने की वजह से अनेक लोग कार्य पर नहीं आ पाए, और जनजीवन कुछ हद तक प्रभावित रहा। दिन भर छतों से बर्फ के धूप में पिघल कर गिरने से बाजारों में बारिश जैसा माहौल रहा। बारिश- बर्फवारी को फसलों और शाक-सब्जी व फलों के लिए लाभदायक माना जा रहा है।

शनिवार, 11 जनवरी 2014

जलौनी लकड़ी लेने के लिए भी दिखाना होगा पैन कार्ड

कोयला-केरोसिन है नहीं अब लकड़ी को भी तरसे
प्रदेश में पड़ रही कड़ाके की सर्दी से लोग बेहाल
नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश में पड़ रही कड़ाके की सर्दी में प्रदेशवासियों के पास गर्मी लाने का कोई प्रबंध नहीं रह गया है। प्रदेश में राशन कार्ड पर सस्ती कुकाठ की जलौनी लकड़ी देने की व्यवस्था के तहत भी लकड़ी नहीं मिल पा रही है। अधिकारियों का कहना है कि लकड़ी उपलब्ध नहीं है। उल्लेखनीय है कि पूरे कुमाऊं मंडल में इस मौसम में कोयला उपलब्ध नहीं है। केरोसिन भी किसी दाम पर उपलब्ध नहीं है। उधर यदि कोई महंगी दरों पर बांज की जलौनी लकड़ी चाहता है तो उसे अपना पैन कार्ड दिखाना होगा। पैन कार्ड दिखाने पर उसे 2.64 फीसद का आयकर देना होगा, लेकिन यदि पैन कार्ड न हो तो 20 फीसद आयकर के रूप में अतिरिक्त चुकाना होगा। वन निगम के अनुसार बांज की जलौनी लकड़ी के मूल भाव 470 रुपये प्रति कुंतल के हैं। इस पर 2.5 फीसद मंडी शुल्क व पांच फीसद वैट के साथ ही पैन कार्ड दिखाने पर 2.64 फीसद और न दिखाने पर 20 फीसद आयकर देने का प्रावधान है। इस प्रकार पैन कार्ड दिखाने पर एक कुंतल बांज की लकड़ी 525 के भाव और पैनकार्ड न दिखाने पर 613 रुपये के भाव पर मिल रही है। वन निगम के उप लौगिंग अधिकारी आनंद कुमार ने बताया कि राशन कार्ड पर 300 रुपये प्रति कुंतल के भाव मिलने वाली कुकाठ की जलौनी लकड़ी पूरे प्रदेश में उपलब्ध नहीं है। केवल शवदाह के लिए ही उपलब्ध कराई जा रही है।

बर्फबारी ने सप्ताहांत पर किया सैलानियों का स्वागत


नगर क्षेत्र में हुई मौसम की पहली बर्फबारी, पारा 0.5 डिग्री तक गिरा
नैनीताल (एसएनबी)। शनिवार को सरोवरनगरी के निचले क्षेत्रों को भी बर्फबारी का तोहफा मिल गया। इस मौके पर नगर में मौजूद सैलानियों के लिए कुदरत की यह खूबसूरत नेमत मनमांगी मुराद की तरह रही। अनेक सैलानियों ने इसे ‘न्यू इयर व वीकेंड बोनान्जा’ कहकर पुकारा। मौसम विभाग के अनुसार शनिवार को नगर का न्यूनतम तापमान 0.5 डिग्री सेल्सियस तक गिर गया और अधिकतम तापमान 13 डिग्री रहा। सरोवरनगरी में पहले 31 दिसम्बर को ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फबारी हुई थी। शनिवार की सुबह तड़के नगर के तल्लीताल और माल रोड तक भी अच्छी बर्फबारी हुई। वहीं नगर के सूखाताल, कुमाऊं विवि, चार्टन लॉज, सात नम्बर, रैमजे, स्टोनले कंपाउंड आदि क्षेत्रों में बर्फबारी हुई। नगर में सैलानियों ने कालाढुंगी रोड पर धामपुर बैंड, लेक व्यू, हिमालय दर्शन व स्नोव्यू क्षेत्रों में जमकर बर्फबारी का आनंद लिया। स्नोव्यू क्षेत्र में बर्फबारी का आनंद लेने के लिए रोप-वे से जाने के लिए सैलानियों की कतारें लगा रहीं। वहीं शनिवार को बर्फबारी के बाद भी नगर में पूरे दिन आसमान में बादल छाये रहे और कई बार हवा के साथ हिमकणों की फुहारें गिरती रहीं लेकिन सूर्यास्त के दौरान धूप के दर्शन हुए। जिसे अगले दिन धूप खिलने का इशारा माना जाता है। मौसम विभाग ने रविवार को मौसम खुलने और अगले दो दिन बारिश और बर्फबारी की संभावना जताई है।

सोमवार, 18 नवंबर 2013

स्थापना दिवस पर नैनीताल को कुदरत से मिला ‘विंटर लाइन’ का अनूठा तोहफा

नवीन जोशी, नैनीताल। इधर सरोवरनगरी वासी सोमवार को अपनी प्रिय नगरी का 172वां स्थापना दिवस मना रहे थे। उधर कुदरत ‘प्रकृति का स्वर्ग’ कही जाने वाली नगरी को चुपके से ऐसा तोहफा दे गई, जिसे प्रकृति प्रेमी ‘विंटर लाइन’ कहते हैं। कुदरत की इस अनूठी नेमत ‘विंटर लाइन’ के बारे में कहा जाता है कि यह दुनिया में केवल स्विटजरलैंड की बॉन वैली और मसूरी के लाल टिब्बा से ही नजर आती है। नैनीताल से भी यह वर्षो से नजर आती है लेकिन अब तक इसे नगर व प्रदेश के पर्यटन कैलेंडर और पर्यटन व्यवसायियों से मान्यता नहीं मिल पाई है। प्रकृति प्रेमियों के अनुसार ‘विंटर लाइन’ की स्थिति सर्दियों में मैदानों में कोहरा छाने और ऊपर से सूर्य की रोशनी पड़ने के परिणामस्वरूप शाम ढलते सैकड़ों किमी लंबी सुर्ख लाल व गुलाबी रंग की रेखा के रूप में नजर आती है। नैनीताल में इसका सबसे शानदार नजारा हनुमानगढ़ी क्षेत्र से लिया जा सकता है लेकिन नगर के चिड़ियाघर क्षेत्र से भी इसे देखा जा सकता है। सुबह सूर्योदय से पूर्व भी इसे हल्के स्वरूप में देखा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि हनुमानगढ़ी से सूर्यास्त के भी अनूठे नजारे देखने को मिलते हैं। प्रकृति प्रेमी बताते हैं कि इस दौरान डूबते हुए सूर्य में कभी घड़ा तो कभी सुराही जैसे अनेक आकार प्रतिबिंबित होते हैं। पूर्व में इन्हें देखने के लिये यहां बकायदा व्यू प्वाइंट स्थापित थे, जो बीते वर्षो में हटा दिये गये हैं।

नेपाली फिल्म ‘विरासत’ में भी दिखती है नैनीताल की विंटर लाइन

नैनीताल। देश-प्रदेश के पर्यटन विभाग और पर्यटन व्यवसायी भले विंटरलाइन की खूबसूरती का नगर के पर्यटन उद्योग को बढ़ाने में उपयोग न कर रहे हों लेकिन गत वर्ष नगर में इन्हीं दिनों फिल्माई गई नेपाली फिल्मों के निर्देशक गोविंद गौतम की नायक समर थापा व नायिका सोनिया खड़का अभिनीत फिल्म विरासत में नैनीताल की विंटरलाइन को फिल्माया गया है। इस फिल्म के एक गीत में नायकनाियका के बीच हनुमानगढ़ी के पास विंटर लाइन को दिखाते हुए प्रणय दृश्य फिल्माए गए हैं।

गुरुवार, 4 जुलाई 2013

ताक पर नदी किनारे की मनाही, झील के मुहाने पर प्रशासन खुद ही करा रहा निर्माण !


नवीन जोशी नैनीताल। प्रदेश में आई भीषण प्राकृतिक आपदा से सचेत होते हुए जहां प्रदेश सरकार नदियों के किनारे निर्माण प्रतिबंधित कर रही है। वहीं भूगर्भीय दृष्टिकोण से कमजोर सरोवरनगरी में बेहद संवेदनशील नैनीझील के मुहाने पर स्वयं प्रशासन ही विशालकाय व भारी-भरकम "न्यू ब्रिज कम बाईपास" का निर्माण किया जा रहा है। इस निर्माण का मूल उद्देश्य नगर के प्रवेश द्वार डांठ पर स्थित रोडवेज स्टेशन को यहां स्थानांतरित कर वाहनों का बोझ कम करना था, लेकिन इधर बताया जा रहा है कि रोडवेज ने न्यू ब्रिज में अत्यधिक निर्माण जगह की कमी को देखते हुए वहां बस अड्डा स्थानांतरित करने का विचार बदल दिया है और पुराने बस अड्डे को जीर्णोद्धार कर चकाचक कर दिया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि यह निर्माण किया ही क्यों जा रहा है। 

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2005-06 में सर्वप्रथम हल्द्वानी व भवाली रोड के बीच डांठ से पहले "न्यू ब्रिज" बनाने की योजना बनी थी। उद्देश्य था-डांठ से वाहनों का दबाव कम करना। योजना के पहले चरण में नैनीझील के अतिरिक्त पानी को बाहर बलियानाले में प्रवाहित करने के लिए 1.81 करोड़ रुपये की लागत से दो बैरलों, बिल्डिंग स्ट्रक्चर तथा लैंड फिल का कार्य 2007 में पूरा होना था। विवादों में रहा यह कार्य 2009 में पूरा हो पाया। 2010-11 में दूसरे चरण में 90.12 लाख रुपये से फिनिशिंग, ब्यूटिफिकेशन व स्लैब डालने के कार्य नौ माह के अंदर होने थे। पहले ठेकेदार करीब 30 लाख रुपये के कार्य कर चला गया, और फिर न्यायालयों तक पहुंचे लंबे विवाद के बाद इधर एक अप्रैल 13 से नये ठेकेदार को 58.47 लाख में छह माह में कार्य पूरा करने को मिला है। इन दिनों कार्य के तहत विशाल स्लैब डालने का कार्य चल रहा है, जिसे देखते हुए एवं केदारघाटी में आई भीषण तबाही को देखते हुए यह सवाल जोरों से उठ रहा है कि नैनीझील के मुहाने पर इतना विशालकाय निर्माण बड़ी आपदा को निमंत्रित करना तो नहीं है। कुमाऊं विवि के पूर्व प्राध्यापक एवं पर्यावरणविद् डा. अजय रावत का कहना है कि निर्माण से पूर्व ईआईए (इन्वायरमेंट इम्पेक्ट एसेसमेंट) यानी पर्यावरणीय परीक्षण और जनता से ईआईएस (इन्वायरंमेंट इम्पेक्ट स्टेटमेंट) यानी जनता के विचार भी नहीं लिए गए। उन्होंने प्रदेश में सभी जलराशियों के 30 फीट की दूरी में पहले से निर्माण प्रतिबंधित होने की बात भी कही। इस बारे में झील विकास प्राधिकरण के सचिव विनोद गिरि गोस्वामी ने कहा कि नदी किनारे नए निर्माणों पर रोक लगने जा रही है, जबकि यह राज्य एवं केंद्र सरकार से पूर्व में स्वीकृत निर्माण है। उन्होंने यहां कियोस्क (दुकानें) बनाने के कारण रोडवेज स्टेशन और वाहनों के लिए जगह की कमी की बात स्वीकारी, अलबत्ता कहा कि स्थान हो जाएगा। पूर्व में रोडवेज के अधिकारी यहां स्टेशन स्थानांतरित करने की हामी भर चुके हैं, और अभी तक मना करने की औपचारिक जानकारी नहीं है। प्रदेश में नदियों के किनारे निर्माण प्रतिबंधित करने की हुई है घोषणा नैनी झील का अतिरिक्त पानी यहीं से निकलता है बाहर यूजीसी के वैज्ञानिक डा. बीएस कोटलिया का कहना है कि इस निर्माण की शुरूआत में पूर्व में मौजूद ढांचे को तोड़ने के लिए धमाके भी किए गए थे, जिसके फलस्वरूप दरार उत्पन्न हो गई थीं, और झील से अधिक पानी का रिसाव होने लगा था। इसके निदान को बांध की तरह "नेटिंग" करने की सलाह दी गई थी, लेकिन वह कार्य भी नहीं किए गए। 

वर्ष 1898 में हुए भूस्खलन में हुई थीं 28 मौतें

नैनीताल। बलियानाला क्षेत्र नैनीताल नगर का आधार है, और बेहद कमजोर भौगोलिक व भूगर्भीय संरचना वाला है। मेन बाउंड्री के निकट स्थित इस नाले में हमेशा से भू-धंसाव होता रहता है। प्रख्यात पर्यावरणविद् डा. अजय रावत बताते हैं कि 17 अगस्त 1898 को यहां टूटा पहाड़ के पास भूकंप के साथ बेहद बड़ा भूस्खलन हुआ था। जिसकी वजह से ब्रेवरी (बीरभट्टी) में बियर की भट्टी में कार्यरत एक अंग्रेज समेत 28 लोग मारे गए थे। वर्तमान में भी यह क्षेत्र धंस रहा है। हरिनगर क्षेत्र को खाली कराने का प्रस्ताव है। ऐसे में डा. रावत झील के मुहाने पर इतने बड़े निर्माण को नगर के लिए बेहद खतरनाक मानते हैं।

मंगलवार, 28 मई 2013

शून्य से नीचे गया नैनी झील का जलस्तर

Rashtriya Sahara, 28th May 2013
हर रोज 0.15 इंच यानी करीब 40 मिमी की दर से घट रहा है जलस्तर
नवीन जोशी, नैनीताल। सरोवरनगरी में इस वर्ष शीतकाल में और आगे भी लगातार हुई वर्षा के बाद उम्मीद की जा रही थी कि इस वर्ष नैनीझील पिछले वर्ष जैसा भयावह चेहरा नहीं दिखाएगी लेकिन नगरवासियों, पर्यावरण प्रेमियों की उम्मीदों पर सीजन की मार बेहद गहरी पड़ी है। उम्मीदों के विपरीत सीजन के औपचारिक रूप से शुरू होने के 12 दिन के अंदर ही नैनी झील का जल स्तर मापे जाने की व्यवस्था के तहत शून्य के नीचे चला गया है। इससे भी भयावह तथ्य यह है झील का जलस्तर हर रोज घटने की दर 0.15 इंच यानी करीब 40 मिमी तक पहुंच गई है, और यह दर लगातार बढ़ रही है। नैनीझील के जल स्तर और बारिश के गत तीन वर्ष के आंकड़ों की बात करें तो इस वर्ष 26 मई को झील का जल स्तर शून्य के नीचे गया है, जबकि 2011 में तीन मई को और 12 में 30 अप्रैल को ही शून्य के नीचे चला गया था। इस लिहाज से इस वर्ष देरी से झील का जल स्तर गिरा है लेकिन यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि इस वर्ष अब तक 674.64 मिमी बारिश दर्ज हुई है, जबकि 11 में इसकी करीब आधी यानी 362.96 मिमी और 12 में करीब चौथाई यानी 191.77 मिमी ही बारिश हुई थी। यानी इस वर्ष गत वर्ष के मुकाबले चार गुना अधिक बारिश होने के बावजूद 26 दिन बाद ही झील का जल स्तर शून्य के नीचे आ गिरा है। एक और तथ्य उल्लेखनीय है कि इस वर्ष नौ मई तक झील का जल स्तर गिरने की दर 0.05 इंच यानी करीब 13 मिमी प्रतिदिन थी जो इसके बाद सीधे दोगुनी होकर 0.1 इंच और इधर सीजन के औपचारिक रूप से शुरू होने के दिन यानी 16 मई से 0.13 इंच प्रति दिन हो गई है। आगे इसी तरह सीजन की भीड़भाड़ के बरकरार रहने से जल की खपत और गरमी बढ़ने से वाष्पीकरण की दर बढ़ने से झील के सूखने की दर में भी तेजी आनी लाजमी है।

झील को दो वर्षो से 'रिफ्रेश' होने का इंतजार

नैनीताल। नैनीझील का जल स्तर वर्ष 2011 में तीन मई से एक जुलाई के बीच शून्य से नीचे रहा था और बारिश होने पर 29 जुलाई को ही जल स्तर 8.7 फीट पहुंच गया था, जिस कारण झील के गेट खोलने पड़े थे, जबकि बीते वर्ष 2012 में गरमियों में 30 अप्रैल से 17 जुलाई तक जल स्तर शून्य से नीचे (अधिकतम माइनस 2.6 फीट तक) रहा था और आगे खूब बारिश होने के बावजूद झील के गेट नहीं खुल पाए थे। इस कारण झील का गंदा पानी व गंदगी दो वर्षो से बाहर नहीं निकल पाई है और झील ‘रिफ्रेश’ नहीं हो पाई है।

रविवार, 3 मार्च 2013

नैनीताल का यूं मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों-ज्यों दवा की....



  • प्रतिबंध लगाने के बावजूद नैनीताल में आई अवैध निर्माणों की बाढ़ 
  • डीएम की जांच रिपोर्ट पर आयुक्त ने दिए थे अवैध निर्माण ध्वस्त करने के निर्देश 
नैनीताल (एसएनबी)। सरोवरनगरी में निर्माणों पर प्रतिबंध अवैध निर्माणों को और बढ़ावा देने वाला साबित हुआ है। डीएम निधिमणि त्रिपाठी के निर्देशों पर एडीएम विनोद गिरि गोस्वामी द्वारा तैयार जांच रिपोर्ट में शनिवार को यह बात साफ तौर पर उजागर हुई है। जांच रिपोर्ट में अवैध निर्माणकर्ताओं द्वारा प्रयोग किए जा रहे अनेक अनूठे तरीके प्रकाश में आए। डीएम ने यह जांच रिपोर्ट कुमाऊं आयुक्त डा. हेमलता ढौंढियाल को भेज दी थी। आयुक्त ने झील विकास प्राधिकरण के सचिव को जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई करने को कहा है। वहीं झीविप्रा के सचिव का कहना है कि प्राधिकरण की कार्य सीमा में कार्रवाई की जाएगी। कई संस्तुतियां शासन स्तर की हैं, उन पर शासन से परामर्श लिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि विगत माह एडीएम श्री गोस्वामी ने नगर के अयारपाटा, लोंग व्यू, कैलाश व्यू, तल्लीताल, स्नो व्यू, ब्रेवरी कंपाउंड, तारा कंपाउंड, सात नंबर, सुख निवास, गो कार्टेज, जू रोड व माल रोड क्षेत्र का व्यापक निरीक्षण किया था। इस आधार पर उन्होंने विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में की गई संस्तुतियां डीएम, कुमाऊं आयुक्त से होते हुए झीविप्रा सचिव तक पहुंच गई हैं। आगे कार्रवाई का इंतजार है।

जांच में हुआ खुलासा


  • एक-दो कमरों के या मरम्मत के मानचित्र पास कराकर और निर्माणस्थल पर उनके बोर्डों की आड़ में हो रहे बड़े निर्माण 
  • वृक्षों से तीन मीटर की दूरी पर ही निर्माण के नियम के विरुद्ध पेड़ों को चिनकर या पेड़ों को भवनों के भीतर घेरकर भी हो रहे निर्माण 
  • नालों पर अतिक्रमण कर और नालों के ऊपर भी हो रहे निर्माण 
  • सड़कों पर बेरोकटोक रखी जा रही निर्माण सामग्री 
  • सील तोड़कर भी हो रहे निर्माण, लोग सील तोड़कर रह भी रहे मकानों में 
  • ग्रीन बेल्ट क्षेत्रों में 'प्लाट बिकाऊ हैं' के बोर्ड लगाकर हो रही जमीन की खरीद-फरोख्त 
  • कंपाउंड करने की नीति दे रही अवैध निर्माण को बढ़ावा, लोग अवैध निर्माणों को कंपाउंड कराकर करा रहे वैध


जांच रिपोर्ट में की गई संस्तुतियां


  • संवेदनशील, असुरक्षित व ग्रीन बेल्ट क्षेत्रों में निर्माणों पर पूर्ण प्रतिबंध लगे 
  • यहां हुए निर्माणों के बिजली, पानी व टेलीफोन कनेक्शन कटें 
  • निर्माण सामग्री लाने के लिए हो परमिट व्यवस्था, प्रयोग करने व रखने की जगह बताने पर ही मिलें परमिट 
  • व्यावसायिक निर्माणों पर लगे पूर्ण प्रतिबंध 
  • राजमिस्त्रियों का हो पंजीकरण, उन्हें मानकों के अनुसार कार्य करने का दिया जाए प्रशिक्षण 
  • ग्रीन बेल्ट की जमीन भूस्वामियों से सर्किल रेट पर खरीदकर वन विभाग को दे दी जाए 
  • अनुमति से अधिक के निर्माणों पर पास नक्शे हों निरस्त 
  • अवैध निर्माणों को सील करने की व्यवस्था अव्यावहारिक 
  • नगर के प्रतिबंधित क्षेत्रों की जानकारी का हो व्यापक प्रचार-प्रसार

यह भी पढ़ें: 

शनिवार, 2 मार्च 2013

मापी जाएगी टेक्टोनिक प्लेटों की गतिशीलता

साफ होगी भारतीय प्लेट के तिब्बती प्लेट में धंसने की गति : प्रो. पंत
नवीन जोशी, नैनीताल। अब तक भूवैज्ञानिक सामान्यतया यह कहते आए हैं कि भारतीय उप महाद्वीप करीब 50 से 55 मिमी प्रति वर्ष की दर से उत्तर की ओर गतिमान है। इस दर से भारतीय टेक्टोनिक प्लेट तिब्बती प्लेट में समा रही है, लेकिन अब पहली बार भारतीय प्लेट की गति को ही उत्तराखंड के हिमालयों में विभिन्न टेक्टोनिक हिस्सों के बीच आपसी गतिशीलता के रूप में मापा जाएगा। इस हेतु केंद्रीय भूविज्ञान मंत्रालय की एक महत्वाकांक्षी परियोजना स्वीकृत हो गई है, जिसके तहत राष्ट्रीय भूभौतिक शोध संस्थान (एनजीआरआई) हैदराबाद और आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक कुमाऊं विवि के भूवैज्ञानिकों और उनके द्वारा पूर्व में स्थापित भूकंपमापी उपकरणों और नई जीआईएस पण्राली से जुड़े उपकरणों की मदद से भारतीय प्लेट की वास्तविक गति का पता लगाएंगे। उल्लेखनीय है कि देश में भूकंपों और भूगर्भीय हलचलों का मुख्य कारण भारतीय प्लेट के उत्तर दिशा की ओर बढ़ते हुए तिब्बती प्लेट में धंसते जाने के कारण ही है। बताया जाता है कि करीब दो करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय प्लेट तिब्बती प्लेट से टकराई थी, और इसी कारण उस दौर के टेथिस महासागर में इन दोनों प्लेटों की भीषण टक्कर से आज के हिमालय का जन्म हुआ था। आज भी दोनों प्लेटों के बीच यह गतिशीलता बनी हुई है, और इसकी गति करीब 50 से 55 मिमी प्रति वर्ष बताई जाती है। इधर भूविज्ञान मंत्रालय की परियोजना के तहत हिमालय के हिस्सों- लघु हिमालय से लेकर उच्च हिमालय के बीच के विभिन्न भ्रंशों के बीच इस गतिशीलता को गहनता से मापा जाएगा। कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. चारु चंद्र पंत ने बताया कि एनजीआरआई हैदराबाद के डा. विनीत गहलौत और आईआईटी कानपुर के प्रो. जावेद मलिक गंगा-यमुना के मैदानों को शिवालिक पर्वत श्रृंखला से अलग करने वाले हिमालय फ्रंटल थ्रस्ट, शिवालिक व लघु हिमालय को अलग करने वाले मेन बाउंड्री थ्रस्ट (एमबीटी), इसी तरह आगे रामगढ़ थ्रस्ट, साउथ अल्मोड़ा थ्रस्ट, नार्थ अल्मोड़ा थ्रस्ट, बेरीनाग थ्रस्ट व मध्य हिमालय से उच्च हिमालय को विभक्त करने वाले मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) जैसे विभिन्न टेक्टोनिक सेगमेंट्स के बीच आपस में उत्तर दिशा की ओर गतिशीलता का गहन अध्ययन करेंगे। इस हेतु प्रदेश के पीरूमदारा, काशीपुर, कोटाबाग व नानकमत्ता व नैनीताल में जीपीएस आधारित उपकरण लगाए जाएंगे जो लंबी अवधि में इन स्थानों पर लगे उपकरणों की उनकी वर्तमान मूल स्थिति के सापेक्ष विचलन को नोट करते रहेंगे। इनके अलावा कुमाऊं विवि द्वारा कुमाऊं में भूकंप मापने के लिए मुन्स्यारी, तोली (धारचूला), नारायणनगर (डीडीहाट), धौलछीना और भराड़ीसेंण में लगाए गए उपकरणों की भी मदद ली जाएगी। 

शनिवार, 17 नवंबर 2012

नैनी सरोवर में लगे 'सुरखाब के पर'



नैनीताल मैं सैलानियों के लिए सीजन 'ऑफ' तो प्रवासी पक्षियों के लिए हुआ 'ऑन'
नैनी झील में आए सुर्खाब पक्षी, साथ ही बार हेडेड गीज का भी हुआ आगमन
नवीन जोशी नैनीताल। जी हां, नैनी सरोवर में सुर्खाब के पर लग गए हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि नैनीझील में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला सुर्खाब पक्षी पहुंचा है, और नैनीझील के आसपास उड़ते और तैरते हुए खूब आनंदित हो रहा है। उसके आने से निश्चित ही नैनीझील और कमोबेस प्रवासी पक्षियों को निहारने वाले पक्षी प्रेमी खूब इतरा रहे हैं। नैनीताल में इन दिनों जहां मनुष्य सैलानियों का पर्यटन की भाषा में 'ऑफ सीजन' शुरू होने जा रहा है, वहीं मानो सैलानी पक्षियों का सीजन 'ऑन' होने जा रहा है। इन दिनों यहां नैनी सरोवर में चीन, तिब्बत आदि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला सुर्खाब पक्षी तथा बार हेडेड गीज आदि अनेक प्रवासी पक्षी की प्रजातियां पहुंची हैं। पक्षी विशेषज्ञ एवं अंतरराष्ट्रीय छायाकार अनूप साह के अनुसार इन दिनों उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी होने के कारण वहां की झीलें बर्फ से जम जाती हैं। ऐसे में उन सरोवरों में रहने वाले पक्षी नैनीताल जैसे अपेक्षाकृत गरम स्थानों की ओर आ जाते हैं। यह पक्षी यहां पूरे सर्दियों के मौसम में पहाड़ों और यहां भी सर्दी बढ़ने पर रामनगर के काब्रेट पार्क व नानक सागर, बौर जलाशय आदि में रहते हैं, और मार्च-अप्रैल तक यहां से वापस अपने देश लौट आते हैं। उन्होंने बताया कि नैनीझील में कई प्रकार की बतखें भी पहुंची हैं, जबकि नगर के हल्द्वानी रोड स्थित कूड़ा खड्ड में अफगानिस्तान की ओर से स्टेपी ईगल पक्षी भी बड़ी संख्या में पहुंचे हैं।


सुर्खाब के बारे में कुछ ख़ास बातें....
सुर्खाब मुर्गाबी प्रजाति से है। ये मूलत: लद्दाख, नेपाल एवं तिब्बत से आते है. ये सर्दी में भारत के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार में भी प्रवास करते हैं। इनकी ब्रीडिंग अवधि अप्रैल से जून माह तक होती है। इनका रंग सुनहरा होता है और अंदर की ओर से इसके पंख हरे व चमकदार होते हैं। ये प्राय: जोड़ा बनाकर रहते है। इन्हें ब्राह्नी डक, रेड शैलडक और चकवा-चकवी भी कहा जाता है, यह प्रायः जोड़े के साथ रहते हैं। ऐसी मान्यता है कि सुर्खाव जीवन में केवल एक बार ही जोड़ा बनाते है। अगर दोनों में से किसी एक की मृत्यु हो जाए तो दूसरा अकेला ही जीवन व्यतीत करेगा। ब्रीडिंग के समय नर सुर्खाब की गर्दन में एक काला बैंड नजर आता है। ये चट्टानों में और ऊंची मिट्टी के टीलों में अपने घौंसले बनाते है तथा पानी से काफी ऊंचाई पर बनाते है। पानी में पाए जाने वाले भोजन के अलावा खेतों में चने, गेंहू, जो की फसलों से भोजन चुनते हैं। ये अधिकांश समय पानी में तैरते हैं इन दौरान ये कीड़े-मकौडे खाकर अपना पेट भरते है ये छोटी मछलियों का भी शिकर करते हैं।  भारत में इनका प्रवास अक्टूबर माह से मार्च तक माना जाता है। 
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रविवार, 29 जुलाई 2012

खतरनाक कोलीफार्म बैक्टीरिया से नैनी झील को बचाइए

  • खुले में शौच जाते सीवर से 10 से15 गुना तक बढ़ रही है कोलीफार्म बैक्टीरिया व दूषित तत्वों की मात्रा 
  • बारिश से सीवर लाइन का उफनना है बड़ा कारण 

नवीन जोशी नैनीताल। वि प्रसिद्ध नैनी झील के संरक्षण के लिए किये जा रहे अनेक प्रयासों के बीच एक क्षेत्र ऐसा है, जिस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इस कारण झील में बड़ी मात्रा में गंदगी पहुंच रही है। यह कारण है सीवर का उफनना। सीवर के उफनने से झील में मानव मल में पाये जाने वाले खतरनाक कोलीफार्म बैक्टीरिया व नाइट्रोजन की मात्रा में 10 से 15 गुना तक की वृद्धि हो जाती है, जबकि फास्फोरस की मात्रा तीन गुना तक बढ़ जाती है। इस कारण झील में पारिस्थितिकी सुधार के लिए किये जा रहे कायरे को गहरा झटका लग रहा है। मानव मल में मौजूद कोलीफार्म बैक्टीरिया तथा फास्फोरस व नाइट्रोजन जैसे तत्व किसी भी जल राशि को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। शुद्ध जल में कोलीफार्म बैक्टीरिया की मौजूदगी भर हो तो यह पीलिया जैसे अनेक जलजनित संक्रामक रोगों का कारण बनता है। जबकि नैनी झील जैसी खुली जल राशियों में अधिकतम 500 एमपीएन (मोस्ट प्रोबेबल नंबर) यानी एक लीटर पानी में अधिकतम मात्रा हो तो ऐसे पानी को छूना व इसमें तैरना बेहद खतरनाक हो सकता है। नैनी झील में कोलीफार्म बैक्टीरिया की मात्रा कई बार आठ से 10 हजार एमपीएन तक देखी गई है, जोकि झील में चल रहे एरियेशन व बायोमैन्युपुलेशन के कायरे के बाद सामान्यतया दो से तीन हजार एमपीएन तक नियंत्रित करने में सफलता पाई गई है, लेकिन बरसात के दिनों में उफनने वाली सीवर लाइनें इन प्रयासों को पलीता लगा रही हैं। नैनी झील के जल व पारिस्थितिकी पर शोधरत कुमाऊं विवि के जंतु विज्ञान विभाग के प्रो. पीके गुप्ता बताते हैं कि झील का जलस्तर कम होने पर सीवर उफनती है तो झील में कोलीफार्म बैक्टीरिया की संख्या 10 से 15 गुना तक बढ़ जाती है। बरसात के दिनों में झील में पानी कुछ हद तक बढ़ने लगा है, लेकिन बारिश के दौरान माल रोड सहित अन्य स्थानों पर सीवर लाइनें उफनीं तो कोलीफार्म की मात्रा में तीन गुना तक की वृद्धि देखी गई। इसी तरह नाइट्रोजन की मात्रा 0.3 मिलीग्राम प्रति लीटर से तीन गुना बढ़कर 0.8 से 0.9 मिलीग्राम प्रति लीटर तक एवं फास्फोरस की मात्रा 20 से 25 मिलीग्राम प्रति लीटर से 10 गुना तक बढ़कर 200 से 250 मिलीग्राम प्रति लीटर तक देखी गई है। प्रो. गुप्ता ऐसी स्थितियों में किसी भी तरह सीवर की गंदगी को झील में जाने से रोकने की आवश्यकता बताते हैं। वहीं जल निगम के अधिशासी अभियंता एके सक्सेना का कहना है कि नगर में सामान्य जरूरत से अधिक क्षमता की सीवर लाइन बनाई गई थी, लेकिन घरों व किचन तथा बरसाती नालियों के पानी को भी लोगों ने सीवर लाइन से जोड़ दिया है, इस कारण सीवर लाइन उफनती हैं, इसे रोकने के लिये नालियों को सीवर लाइन से अलग किया जाना जरूरी है।  
खुले में शौच जाते हैं 72 फीसद लोग  
नैनीताल। यह आंकड़ा वाकई चौंकाने वाला है, लेकिन भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान रुड़की की अगस्त 2002 की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है कि नगर में 72 फीसद लोग खुले में शौच करते हैं, जिनकी मल-मूत्र की गंदगी नगर के हृदय कही जाने वाली नैनी झील में जाती है। गौरतलब है कि नगर के कमजोर तबके के लोगों के साथ ही सैलानियों के साथ आने वाले वाहन चालकों, बाहरी नेपाली व बिहारी मजदूरों का खुले में शौच करना आम है। झील विकास प्राधिकरण ने नगर में सुलभ शौचालय बनाये हैं पर उनमें हर बार तीन रुपये देने होते हैं, इस कारण गरीब तबका उनका उपयोग नहीं कर रहा। बारिश में ऐसी समस्त गंदगी नैनी झील में आ जाती है।  
मछलियां निकालने से कम होगा फास्फोरस  
नैनीताल। नैनी झील में भारी मात्रा में जमा हो रहे फास्फोरस तत्व को निकालने को एकमात्र तरीका झील में पल रही मछलियों को निकालना है। प्रो. गुप्ता के अनुसार फास्फोरस मछलियों का भोजन है। यदि प्रौढ़ व अपनी उम्र पूरी कर रही बड़ी व बिगहेड सरीखी मछलियों को झील से निकाला जाए तो उनके जरिये फास्फोरस बाहर निकाली जा सकती है। उनके झील में स्वत: मरने की स्थिति में उनके द्वारा खाई गई फास्फोरस झील के पानी में ही मिल जाएगी।

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

दरकती जमीन पर खड़े हो रहे आफतों के महल


आपदा प्रभावित मंगावली क्षेत्र में लगातार हो रहे निर्माणों से भूस्खलन का खतरा बढ़ा

नवीन जोशी, नैनीताल। राज्य में चाहे आपदा प्रबंधन का जितना शोर हो रहा हो और मुआवजे के रूप में ही करोड़ों रुपये खर्च करने पड़े हों, लेकिन इतना साफ़ हो गया है कि न सरकार और न लोगों ने ही आपदा से जरा भी सबक लिया है। इसकी बानगी है दैवीय आपदा से सर्वाधिक प्रभावित हुआ मंगावली क्षेत्र। यहां एक ओर मकान दरक रहे हैं, वहीं वैध- अवैध निर्माण जारी हैं। पहले से हिली धरती के सीने में गड्ढों के रूप में घाव किए जा रहे हैं। प्रतिदिन टनों निर्माण सामग्री वहां उड़ेली जा रही है। 
मंगावली शेर का डांडा पहाडी पर स्थित नगर से अलग-थलग एवं दुर्गम क्षेत्र है। तीखी चढ़ाई वाले बिड़ला मार्ग से इस ओर वाहन मुश्किल से ही चढ़ पाते हैं। इसके बावजूद यहां इन दिनों बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य चल रहे हैं। यह कार्य वैध है अथवा अवैध, तात्कालिक रूप से जिम्मेदार झील विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को भी मालूम नहीं है, लेकिन जिस तरह व्यापक स्तर पर जमीन खोद कर पत्थरों के पहाड़ बनाए जा रहे हैं, उससे तथा अधिकारियों की जानकारी में मामला न होने से साफ हो जाता है कि निर्माण पर सरकारी नियंत्रण नहीं है। पूछने पर झील विकास प्राधिकरण के सचिव एचसी सेमवाल ने कहा कि निर्माणों की जांच कराकर कार्यवाही की जाएगी। 
शेर का डांडा में हुआ था भूस्खलन 
बीती 18-19 सितंबर २०१० को अतिवृष्टि ने नगर के शेर का डांडा पहाड़ी में जबरदस्त हलचल मचाई थी। इसी पहाड़ी के शिखर पर स्थित बिड़ला विद्या मंदिर परिसर में गिरे बड़े बोल्डर से विद्यालय की डिस्पेंसरी व कर्मचारी आवासों को नुकसान हुआ था। इसके नीचे मंगावली में पालिकाकर्मी साजिद अली के मकान सहित कई घरों में दरारें आई थीं, जो अब भी चौड़ी होती जा रही हैं। इससे नीचे सीएमओ कार्यालय के पास स्वास्थ्य विभाग के आवास पर भी बोल्डर गिरा था तथा पहाड़ी की तलहटी में कैंट क्षेत्र में भी भारी भूस्खलन हुआ था, व भवाली मार्ग अब भी इसी कारण ध्वस्त पड़ी है। ऐसे क्षेत्र में निर्माण सवालों के घेरे में हैं।