बुधवार, 21 दिसंबर 2011

ठण्ड में ग्लोबल वार्मिग: हिमालय पर पड़ा बर्फ का टोटा

20 दिसंबर 2011 को नैनीताल से लिया गया हिमालय का चित्र 
बढ़ती ठंड के बीच नगाधिराज बता रहा मौसम की हकीकत 
मीथेन की मात्रा अधिक होने से बर्फबारी प्रभावित
नवीन जोशी, नैनीताल। साल के अंतिम दिन हैं। समस्त उत्तर भारत कड़ाके की शीत लहर की चपेट में है, लेकिन देश की लाइफलाइन हिमालय में बर्फ का टोटा है। इन सर्दियों में हिमालय की चोटियों पर अभी तक भारी बर्फबारी नहीं हुई है। इन दिनों धवल बर्फ से लकदक रहने वाला हिमालय इस बार स्याह नजर आ रहा है। हिमालय की ऊंची चोटियों पर ही बर्फ नजर आ रही है, जबकि निचले हिस्से की रौनक बेहद फीकी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह ग्लोबल वार्मिग का नतीजा है। हवा में मीथेन गैस की मात्रा अधिक होने से पहाड़ों में बर्फबारी नहीं हो रही है। देश-प्रदेश सहित समूचे दक्षिणी गोलार्ध से आ रही कंपकंपाती ठंड की खबरों के बीच यह खबर हैरान करने वाली है। भारत ही नहीं एशिया के मौसम की असली तस्वीर बयां करने वाला नगाधिराज हिमालय मानो छटपटा रहा है। नैनीताल के निकट हिमालय दर्शन से हिमालय का नजारा ले रहे सैलानियों के साथ ही पुराने गाइड भी हिमालय को देखकर आहत हैं। 
इसी वर्ष 24 फरवरी को नैनीताल से ही लिया गया हिमालय का चित्र 
एरीज के मौसम वैज्ञानिक पीतांबर पंत के अनुसार ग्लोबल वार्मिग पहाड़ों और मैदानों के मौसम को सर्दियों व गर्मियों में दो तरह से प्रभावित कर रहा है। ग्लोबल वार्मिग व प्रदूषण के कारण धरती के वायुमंडल में मौजूद पोल्यूटेंट्स यानी प्रदूषण के कारक धूल, धुआं, ग्रीन हाउस गैसों के सूक्ष्म प्रदूषित कण (एरोसोल) तथा नाइट्रोजन डाईऑक्साइड, कार्बन डाईऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड, जल वाष्प तथा ब्लेक कार्बन के कण धरती के ऊपर ढक्कन जैसा (कैपिंग इफेक्ट) प्रभाव उत्पन्न कर देते हैं। गर्मियों के दिनों में दिन के अधिक घंटे धूप पड़ने के कारण वायुमंडल में मौजूद गर्मी धरती से परावर्तित होकर इस ढक्कन से बाहर नहीं जा पाती, जिस कारण धरती की गर्मी बढ़ जाती है जबकि इसके उलट सर्दियों में यही ढक्कन सूर्य की रोशनी को धरती पर नहीं आने देता। परिणामस्वरूप मैदानों में कोहरा छा जाता है और पहाड़ आम तौर पर धूप से गुलजार रहते हैं। इसका ही परिणाम है कि पहाड़ों पर लगातार सर्दियों के दिनों में बर्फबारी में कमी देखने को मिल रही है। दूसरी ओर एरीज द्वारा ही किए गए एक अध्ययन में पहाड़ों पर मीथेन की मात्रा 2.5 पीपीएम (पार्ट पर मालीक्यूल) तक पाई गई है जबकि वायुमंडल में मीथेन की मात्रा का वि औसत 1.8 से 1.9 पीपीएम है। मौसम वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मीथेन की यह बढ़ी हुई मात्रा पहाड़ों पर गर्मी बढ़ाने का बड़ा कारण हो सकती है। इधर नैनीताल से हिमालय दर्शन से नेपाल की नेम्फा से लेकर प्रदेश के गढ़वाल के केदारनाथ तक की करीब 365 किमी. लंबी हिमालय की पर्वत श्रृंखला का अटूट नजारा बेहद खूबसूरती से नजर आता है लेकिन हिमालय दर्शन से सैलानियों को दूरबीन की मदद से दशकों से हिमालय नजदीक से दिखा रहे लोग हतप्रभ हैं कि बीते वर्षो में हिमालय की छटा लगातार फीकी पड़ रही है। केवल चोटियों पर ही बर्फ नजर आती है और शेष हिस्सा काला पड़ा नजर आता है।
आंकड़े न होने से परेशानी
नैनीताल। यूं तो हिमालय स्थित ग्लेशियरों के पिघलने के दावे भी पूर्व से ही किये जा रहे हैं परंतु सच्चाई है कि यह बातें आंकड़ों के बिना हो रही हैं। प्रदेश के मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक डा. आनंद शर्मा भी यह स्वीकारते हैं। उनके अनुसार वैज्ञानिक इस दिशा में गहन शोध और कम से कम आंकड़े एकत्र कर डाटा बेस तैयार करने की मौसम वैज्ञानिक आवश्यकता जताते रहे हैं। इधर कुमाऊं विवि द्वारा देश-प्रदेश का पहला सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज वचरुअल मोड में इसी वर्ष स्थापना कर चुका है जिससे आगे डाटा बेस तैयार करने की उम्मीद की जा रही है।
इस समाचार को मूलतः राष्ट्रीय सहारा के 21 दिसंबर 2011 के अंक में प्रथम पेज पर अथवा इस लिंक को क्लिक मूलतःदेख सकते हैं। 

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

दुनिया की नजरें फिर महा प्रयोग पर


"Big Bang Theory" के इस महा प्रयोग में शामिल वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्हें हैग्ग्स पार्टिकल्स दिखे हैं, पर इस खबर की अभी भी पुष्टि होनी बाकी है...हैग्ग्स पार्टिकल्स को श्रृष्टि में जीवन के जनक या ईश्वर के कण तक कहा जा रहा है...वैसे इनका नाम हैग्ग्स-बोसोन कण है, जिसमें बोसोन भारतीय वैज्ञानिक एससी बोस के नाम पर है....यदि यह कण न दिखे तो विज्ञान की कई अवधारणाओं की सत्यता खतरे में पड़ जायेगी..... 

रविवार, 11 दिसंबर 2011

नैनीताल जनपद के विधानसभा क्षेत्रों की भौगौलिक स्थिति


Nainital district constituency map for 2012 Uttarakhand election

आगामी विधान सभा चुनाव अब बेहद निकट आ चुके हैं, लेकिन अभी भी खासकर सीमावर्ती क्षेत्रों के मतदाताओं में असमंजस बरकरार है कि वह किस विधान सभा क्षेत्र के लिये अपने मताधिकार का प्रयोग कर लोकतंत्र की मजबूती में योगदान देंगे। चुनाव आयोग की वेबसाइट में भी वर्ष 2006 में हुऐ परिसीमन के बाद के विस क्षेत्रों की भौगोलिक जानकारी उपलब्धनहीं है। 
जिला प्रशासन से मिली जानकारी के अनुसार केवल 61-रामनगर विधान सभा क्षेत्र है, जो ग़ढवाल लोक सभा क्षेत्र का हिस्सा है, और इसमें केवल और पूरी रामनगर तहसील शामिल है। जबकि 56-लालकुआं विधान सभा में लालकुआं तहसील के साथ हल्द्वानी तहसील के काठगोदाम कानूनगो सर्किल व लालकुआं के अर्जुनपुर पटवारी सर्किल शामिल हैं। 57-भीमताल विधान सभा में धारी तहसील तथा नैनीताल तहसील का रामगढ़ कानूनगो सर्किल, भीमताल के चांफी, पांडेगांव, पूर्व छःखाता, रौंसिल व पिनरौ पटवारी सर्किल व भीमताल नगर पालिका, 58- नैनीताल विधान सभा में बेतालघाट व कोश्यां कुटौली तहसील, नैनीताल व भवाली नगर पालिका तथा नैनीताल कैंट क्षेत्र के साथ भीमताल तहसील के भवाली, पश्चिम छः खाता, खुर्पाताल, मंगोली, बगढ़, स्यात, तल्लाकोट, सौढ व अमगढ़ी पटवारी सर्किल तथा वन क्षेत्र शामिल हैं। इसी तरह 59-हल्द्वानी विधान सभा सीट में हल्द्वानी तहसील का तत्कालीन हल्द्वानी-काठगोदाम पालिका एवं बाहरी विकसित क्षेत्र (वर्तमान हल्द्वानी नगर निगम) के वार्ड एक से 25, दमुवाढूँगा बंदोबस्ती, वार्ड 27, कोर्ता-चांदमारी मोहल्ला वार्ड 28, मल्ली बमोरी वार्ड 29, बमोरी तल्ली, शक्ति विहार, भट्ट कालोनी वार्ड 3 और बमोरी तल्ली खान का वार्ड 3 शामिल हैं। जबकि ६०-कालाढूँगी में कालाढूँगी तहसील के साथ नैनीताल तहसील की चोपड़ा पटवारी सर्किल, हल्द्वानी की हल्द्वानी खास, लामाचौड़, फतेहपुर, भगवानपुर, कमलुवागांजा, लोहरियासाल, देवलचौड़  व कुसुमखेड़ा पटवारी सर्किलें, लालकुआ की चांदनी चौक व आनंदपुर पटवारी सर्किलें तथा हल्द्वानी नगर निगम के मुखानी (रूपनगर, बसंत विहार कालोनी व जज फार्म) वार्ड 3, मानपुर उत्तर वार्ड 3, हरीपुर सखा, सुशीला तिवारी अस्पताल, वार्ड 34, तल्ली हल्द्वानी वार्ड 35, गौजाजाली उत्तर वार्ड 36, कुसुम खेड़ा वार्ड 37 व बिठौरिया नंबर 1 वार्ड 38 शामिल हैं। 

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

रिपोर्ट कार्ड नैनीताल विधानसभा क्षेत्र खड़क सिंह बोहरा: वायदों पर अमल क्यों नहीं हुआ बोहरा साहब!


नवीन जोशी, नैनीताल। खड़क सिंह बोहरा 55- नैनीताल विधानसभा सीट से भाजपा विधायक है। नये परिसीमन के बाद इस सीट का नाम 58- नैनीताल हो गया है। साथ ही सीट का भौगोलिक स्वरूप बदल गया है। नई 58- नैनीताल विधानसभा सीट में 145 बूथ शामिल है। इनमें बेतालघाट तहसील के 24 बूथ, कोश्यां कुटौली के 34 तथा नैनीताल के 87 बूथ शामिल है। पिछली 55-नैनीताल विस सीट में नैनीताल तहसील के 94 तथा कालाढूंगी के 17 कुल 111 बूथ थे। नैनीताल सीट सामान्य की जगह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इस कारण श्री बोहरा के लिए इस सीट से चुनाव लड़ने के दरवाजे बंद हो गए है। नये परिसीमन की स्थिति साफ होने पर उन्होंने नैनीताल विधानसभा सीट का हिस्सा रहे कालाढूंगी से संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी है। इस कारण वह नैनीताल क्षेत्र की उपेक्षा करते रहे। ऐसा न केवल उन पर विपक्ष का आरोप है वरन वह स्वयं भी इसे स्वीकार करने से गुरेज नहीं करते। 
गत दिनों एक पोस्टर में वह स्वयं को चुनाव पूर्व ही नैनीताल के बजाय पहली बार अस्तित्व में आ रही कालाढूंगी सीट से विधायक दर्शा चुके है। बोहरा मूलत: कांग्रेसी है। वर्ष 2007 के चुनाव में उन्हें पहली बार भाजपा से टिकट मिला और वह विधानसभा पहुंचने में सफल रहे। तब उन्होंने जनता से खासकर माल रोड पर ग्रांड होटल के पास सेनैनी झील में सीवर की गंदगी न जाने देने, बलिया नाले को नगर का आधार बताकर उसका ट्रीटमेंट करने के वायदे किये थे लेकिन वह पांच साल में इन कामों की शुरुआत भी नहीं करा पाए। वायदों पर क्यों अमल नहीं हुआ? इस सवाल पर बोहरा बेबाक टिप्पणी करते है-उनका कहना है कि नैनीताल के सुरक्षित सीट घोषित हो जाने से उनको दुख हुआ। अपनी ओर से कोशिश की। नैनी झील में सीवर को जाने से रोकने के लिए कुछ कर नहीं सके पर कालाढूंगी व भवाली के साथ नगर के कृष्णापुर-हरिनगर क्षेत्र को सीवर लाइन से जोड़ने की पहल की। बलियानाले में आईआईटी रुड़की की टीम से सव्रेक्षण शुरू करा रहे है। बोहरा दावा करते है-उन्होंने हर गांव तक सड़क व भवाली में विधि विवि स्वीकृत कराया है। वह मानते है कि वन भूमि हस्तांतरण में अड़चन से कई सड़कों का निर्माण शुरू नहीं हो सका है। भीमताल में कुमाऊं विवि के तीसरे परिसर की सीएम से घोषणा कराई है। भाबर (कालाढूंगी) क्षेत्र में पेयजल व सिंचाई की समस्या का समाधान कराया है। उनका दावा है कि विधायक निधि की 100 फीसद धनराशि उन्होंने खर्च कर डाली है। विधायक बनने से पूर्व श्री बोहरा परिचितों से कड़क आवाज के साथ गर्मजोशी से मिला करते थे लेकिन विधायक बनने के बाद वह काफी समय अस्वस्थ रहे और जनता तो दूर परिचितों और पार्टी कार्यकर्ताओं से भी दूर रहे। स्वास्थ्य लाभ के उपरांत भी वह इस दूरी को पाट नहीं पाये। प्रदेश के सभी 70 विधायकों में बोहरा उन विधायकों में है जिन्होंने अपने कार्यकाल के पांचों वष्रो में अपनी विधायक निधि का शत- प्रतिशत हिस्सा खर्च किया है। यह भी सच है कि नैनीताल क्षेत्र में शिलापट उनकी निधि से विकास कार्य होने की गवाही नहीं देते। विरोधियों का आरोप है कि उनका ध्यान अपनी नई सीट कालाढूंगी की ओर अधिक रहा। विधायक बोहरा गत दिनों कालाढूंगी कांड के दोषियों की बात सीएम खंडूड़ी द्वारा न सुने जाने को लेकर तीखे तेवर भी दिखा चुके है। पार्टी के भीतर उनके विरोधियों के अनुसार बोहरा मूलत: कांग्रेसी है और उनके कांग्रेसी तेवर गाहे-बगाहे सामने आ जाते है। उन पर अपने नजदीकियों को विकास कार्यो के ठेके देने का आरोप भी लगते रहे है। प्रदेश की राजनीतिक उठापटक के बावजूद वह किसी गुट विशेष से नहीं जुड़े। एक पूर्व सीएम से उनकी नजदीकी बताई जाती है। इसके बाद भी उनको तटस्थ नेता कहा जाता है वह सभी से दोस्ताना ताल्लुकात रखते है। बोहरा की प्रस्तावित विधानसभा सीट कालाढूंगी में परिसीमन के बाद उनका अधिक समय इसी क्षेत्र में रहा है। पिछले चुनावों में उन्हें इस क्षेत्र से अच्छा जन समर्थन मिला था। वह स्वयं को इस क्षेत्र का निवासी होने का दावा भी करते है। बावजूद कालाढूंगी सीट का बड़ा हिस्सा हल्द्वानी के ग्रामीण क्षेत्रों से होने के कारण बोहरा के लिए यह सीट आसान नहीं कही जा सकती है।

चार दर्जन सवाल उठ पाये पांच साल में
नैनीताल के विधायक खड़क सिंह बोहरा पिछले पांच साल के दौरान विधानसभा में मौजूद तो रहे लेकिन उनके द्वारा क्षेत्र के विभिन्न मुद्दों से संबंधित कुल चार दर्जन सवाल ही उठाये जा सके। इस तरह विधानसभा में उनका प्रदर्शन औसत रहा। हालांकि सदन में उनसे अपेक्षा की जाती थी कि धारदार तरीके से क्षेत्र के मुद्दों को उठायेंगे लेकिन सत्तारूढ़ दल से जुड़े होने के कारण वे अपने मुद्दों को धार नहीं दे पाये।
बोहरा नहीं करा पाये धन का सदुपयोग : जंतवाल
नैनीताल सीट पर पिछले चुनाव में बोहरा के निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे उक्रांद के डा. नारायण सिंह जंतवाल का कहना है कि अफसरशाही पर उचित निगरानी न होने के कारण विधायक बोहरा विकास तथा दैवीय आपदा के कार्यो में मिले धन का सदुपयोग नहीं करा पाये। परिणामस्वरूप विस सीट में पूर्व के बड़े स्वीकृत कार्य भी नहीं हो पाये। पिछली सरकार के दौर में स्वीकृत नगर के रूसी गांव से बने और तल्लीताल में भवाली- हल्द्वानी रोड के बाईपास चालू नहीं हो पाये। नगर के सबसे पुराने सीआरएसटी स्कूल को पूर्व सरकार के दौर में मिले 90 लाख रुपये वापस चले गये। नगर में कोई नया बड़ा कार्य स्वीकृत नहीं हुआ।
विधायक बनने के बाद दुआ-सलाम भी नहीं
नगर के तल्लीताल चिड़ियाघर रोड निवासी रमेश तिवाड़ी के अनुसार विधायक बनने के बाद विधायक ने दुआ-सलाम भी कम कर दी, वहीं नगर के एक बुजुर्ग नागरिक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, विधायक ने उनके द्वारा बताया गया एक जनहित का कार्य तो बिना कोई प्रश्न किये तत्काल किया, लेकिन कुल मिलाकर उनका कार्यकाल निराशाजनक रहा। इतिहास में उनके कार्यकाल को किस कार्य के लिए याद किया जाएगा, ऐसा कोई कार्य याद नहीं आता।

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

पोलियोग्रस्त बालक बना ’स्पाइडरमैन‘

कमजोरी को ही ताकत बनाना चाहता है मनीश 
नवीन जोशी, नैनीताल। मशहूर कवि दुश्यंत कुमार ने कहा, ‘कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो’ तथा किसी अनाम कवि ने कहा है ‘परिंदों की उड़ान हौसलों में होती है परों में नहीं’। न जाने कितने लोगों ने इन जोशीले सूत्रों को सुना होगा लेकिन सुनने के साथ ही गुनने की बात की जाए तो निश्चित ही ऐसे नाम खोजने पड़ेंगे लेकिन अल्मोड़ा नगर के मनीश ने न केवल इन सूत्रों को सुना व गुना है वरन अपने जीवन में अपनाया भी है। जन्म के एक वर्ष बाद ही लाइलाज कहे जाने वाले पोलियो से ग्रस्त इस बालक का हौंसला देखिये, आज वह अपने पैरों पर ठीक से खड़ा नहीं हो पाता लेकिन 40 फिट ऊंची खड़ी दीवार पर चढ़कर अपने साथियों के बीच ‘स्पाइडरमैन’ के नाम से जाना जाता है। 
जीआईसी अल्मोड़ा में 12वीं के छात्र 19 वर्षीय मनीश को बारापत्थर में 40 फीट ऊंची दीवार पर जिस कुशलता के साथ चढ़ते देखा, तो उसके हौसले को देख वहां मौजूद नगर पालिकाध्यक्ष मुकेश जोशी, विशेष कार्य अधिकारी-साहसिक पर्यटन जेसी बेरी व नैनीताल पर्वतारोहण क्लब के सचिव राजेश साह सहित प्रशिक्षक भी तालियां बजाए बिना न रह सके। किसी को विश्वास नहीं हुआ कि वह एक वर्ष की उम्र से ही पोलियो ग्रस्त हो चुका था और एक समय था जब वह सीधा बैठ भी नहीं पाता था। मनीश ने रहस्योद्घाटन किया कि वह वर्ष 2008 से साहसिक खेलों और खासकर पर्वतारोहण से जुड़ा है और अपने प्रशिक्षकों को कभी नहीं बताता कि उसे पोलियो है। इसलिये कि कहीं उसे प्रशिक्षण देने से या कैंप में आने से ही न रोक दें। पैर कमजोर हैं तो पैरों की अधिक शक्ति की जरूरत वाले क्षेत्र में ही क्यों कदम बढ़ाए, वह जवाब देता है, एक मिसाल कायम करना चाहता हूं। ऊंची पहाड़ियों, दीवारों पर इसलिये और इस तरह चढ़ता हूं कि दर्द चेहरे पर न उभरने पाये। ऐसा इसलिये कर रहा हूं कि जब पर्वतारोहण में एक मुकाम हासिल कर लूं तो अपने जैसे अन्य विकलांगों को प्रेरणा दे सकूं कि हौसले मजबूत हों तो कैसी भी विकलांगता कोई मायने नहीं रखती। मनीश की घरेलू परेशानियों की कहानी भी ऐसी है कि छोटे-मोटे कायरे के लिए हिम्मत से कदम न उठें। आबकारी विभाग में कार्यरत पिता देवी दत्त जोशी का 10 वर्ष पूर्व निधन हो गया। मां चंपा जोशी किसी तरह पति की जगह सेवा में लगकर चार बच्चों का भरण-पोषण कर रही हैं, जिनमें मनीश तीसरे नंबर का है। मनीश कहता है, साहसिक खेलों में उसकी गहरी रुचि है और वह तय कर चुका है कि इसी क्षेत्र में भविष्य बनाना है। वह अच्छा गायक होने के साथ ही डांस का भी शौक रखता है।

रविवार, 20 नवंबर 2011

नैनीताल जू से "उच्च स्थलीय" नाम छिनने का खतरा !

हिम तेंदुआ"रानी" के बाद  देश के एकमात्र साइबेरियन टाइगर "कुणाल " की मौत के बाद यहाँ नहीं रहा कोई "उच्च स्थलीय" क्षेत्रों का आकर्षण 
नैनीताल जू से "उच्च स्थलीय" नाम छिनने का खतरा !

ऑल इंडिया पुलिस ने जीता फेडरेशन कप


हरियाणा दूसरे व उत्तराखंड तीसरे स्थान पर रहा, चौथी एनसी शर्मा स्मृति फेडरेशन कप महिला बॉक्सिंग प्रतियोगिता समाप्त
नैनीताल (एसएनबी)। चौथी एनसी शर्मा स्मृति फेडरेशन कप महिला बाक्सिंग प्रतियोगिता की ट्राफी ऑल इंडिया पुलिस ने हासिल कर ली। उत्तराखंड के लिये संतोष की बात यह रही कि उसने भी प्रतियोगिता की चैंपियन ऑल इंडिया पुलिस व रनरअप रही हरियाणा के बराबर ही 17 अंक अर्जित किये और प्रतियोगिता में पहली बार तीसरे स्थान पर पहुंची। प्रतियोगिता के फाइनल मुकाबले में आज सुमन ही लाइट वेटर वेट वर्ग में स्वर्णिम मुक्का जड़ पाई। फाइनल में पहुंची अन्य खिलाड़ियों विनीता महर, मोनिका सौन, प्रियंका चौधरी व पूनम विश्नोई को रजत से ही संतोष करना पड़ा। काबीना मंत्री प्रकाश पंत ने पुरस्कार वितरित किये व राज्य सरकार द्वारा खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए किये जा रहे उपायों की जानकारी दी। इससे पूर्व रविवार को हुए फाइनल मुकाबलों में एपी की सोनिया ने उत्तराखंड की विनीता मेहर को, उत्तराखंड की सुमन ने एआईपी की बसंती चानू को 26-6 से, हरियाणा की सुनीता रानी ने उत्तराखंड की प्रियंका को 8- 6, आंध्र की एन उषा ने एआईपी की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी प्रीति बेनीवाल को 13-13 के स्कोर पर सूक्ष्म अंकों के आधार पर, एआईपी की सुमन ने उत्तराखंड की मोनिका सौन को 7-6, हरियाणा की स्वीटी बूरा ने दिल्ली की सीमा को 11-6, दिल्ली की जागृति ने आसाम की अलारी बोरो को 18-10, एमपी की माया पौडिल ने हरियाणा की निर्मला को 24-15 तथा एआईपी की कविता चहल ने उत्तराखंड की पूनम विश्नोई को आरएससी के जरिये 26-0 से हराया। मणीपुर की ममता को आयोजक सचिव चारु शर्मा की ओर से सर्वश्रेष्ठ विजेता का 10 हजार व दिल्ली की गीता सोलंकी को 7.5 हजार का सर्वश्रेष्ठ लूजर का पुरस्कार मिला। दिल्ली की रेफरी रेखा स्वामी व राजस्थान की जज रजनी सोमलाल को सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के पुरस्कार मिले। एआईपी दो स्वर्ण व चार रजत के साथ प्रथम तथा हरियाणा दो स्वर्ण व तीन रजत के साथ दूसरे व उत्तराखंड एक स्वर्ण, चार रजत व दो कांस्य पदक जीतकर तीसरे स्थान पर रहा। आयोजक महासचिव मुखर्जी निर्वाण सहित कई लोगों को सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिये पुरस्कृत किया गया।

उत्तराखंड की प्रियंका, पूनम व सुमन का राष्ट्रीय शिविर के लिए चयन
नैनीताल (एसएनबी)। फेडरेशन कप में भले उत्तराखंड की एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी प्रियंका चौधरी तथा पूर्व से राष्ट्रीय शिविर में शामिल पूनम विश्नोई स्वर्ण से चूक गई हों, लेकिन उनका शिविर में स्थान बरकरार है। साथ ही प्रतियोगिता में उत्तराखंड के लिए एकमात्र स्वर्ण पदक हासिल करने वाली सुमन का भी राष्ट्रीय शिविर में चयन हो गया है। राष्ट्रीय शिविर के लिए प्रतियोगिता में मौजूद एक ऑब्जर्वर ने नाम न छापने की शर्त पर यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि औपचारिक घोषणा राष्ट्रीय एसोसिएशन ही करती है।
     

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

अल्मोड़ा में आयोजित होगी राज्य की छठी विज्ञान कांग्रेस

तीन वैज्ञानिकों का सम्मान तथा 436 प्रतिभागी पेश करेंगे शोध पत्र व पोस्टर
नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश की छठी उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं तकनीकी कांग्रेस 2011 का आयोजन 14 से 16 नवंबर तक एसएसजे कैंपस अल्मोड़ा में किया जा रहा है। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य राज्य के वैज्ञानिकों को एक मंच प्रदान करना है। इसमें शोधार्थियों को अपने शोध को वैज्ञानिक समुदाय व विशेषज्ञों के समक्ष रखने का अवसर मिलेगा। वर्ष 2007 के बाद यह दूसरा मौका होगा जब कुमाऊं विवि इस आयोजन का दायित्व निभाएगा। इस दौरान नौ तकनीकी सत्रों में 16 विषयों पर 50 विषय विशेषज्ञ तथा 436 प्रतिभागी मौखिक एवं पोस्टरों के माध्यम से शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे। इन्हीं में से चार श्रेणियों में प्रतिभागियों को वैज्ञानिक पुरस्कार दिए जाएंगे। साथ ही प्रदेश तथा खासकर अल्मोड़ा से संबंधित तीन वैज्ञानिकों डा. आरसी बुधानी, डा.एमसी जोशी व डा. जीएस रौतेला को सम्मानित किया जाएगा। 
शुक्रवार को कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. वीपीएस अरोड़ा, कुलसचिव डा. कमल के. पांडे तथा आयोजक सचिव प्रो. एचएस धामी ने पत्रकार वार्ता में ‘मीटिगेशन आफ नेशनल क्लाइमिटीज विद स्पेशल रिफ्रें स टू उत्तराखंड’ विषयक विज्ञान कांग्रेस के तहत आयोजित कार्यक्रमों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यूकोस्ट के तत्वावधान तथा डीएसटी, गोविंद बल्लभ पंत पर्यावरण एवं विकास संस्थान कोसी कटारमल, उत्तराखंड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षण संस्थान, विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान केंद्र अल्मोड़ा व राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान-नासी के सहयोग से भारतीय विज्ञान कांग्रेस की तर्ज पर आयोजित हो रहे इस आयोजन का शुभारंभ 14 को मुख्यमंत्री करेंगे। इस मौके पर बनारस हिंदू विवि के कुलपति प्रो.लाल जी सिंह नासी व्याख्यान देंगे। 15 को अल्मोड़ा के एसएसजे परिसर सहित 13 स्थानों पर तकनीकी सत्र होंगे। 16 नवम्बर को समापन पर विधानसभा अध्यक्ष हरबंस कपूर उपस्थित रहेंगे। मौखिक श्रेणी में 285 व पोस्टर श्रेणी में 151 पेपर प्रस्तुत किए जाएंगे। इस मौके पर वानिकी, गणित, विज्ञान एवं समाज तथा उत्तराखंड में गणित का विकास जैसे विषयों पर बुद्धिशीलता सत्र आयोजित किए जाएंगे। आयोजन में डा. एलएमएस पालनी, पद्मश्री डा. ललित पांडे, डा.जेसी भट्ट, डा. राम सागर, डा. अनंत पंत, न्यूयार्क विवि के प्रो. आरएस कुलकर्णी व प्रो. सीएस अरविंदा आदि वैज्ञानिक प्रतिभाग करेंगे। 
उधर देहरादून में यूकास्ट के महानिदेशक डा. राजेन्द्र डोभाल ने भी आयोजन की जाकारी दी। 

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

अब बाजार में मिलेगी लैब में बनी ’देसी वियाग्रा‘

यारसा गंबू

सेना के जैव ऊर्जा सं स्थान की उपलब्धि, दिल्ली की कंपनी को विपणन की जिम्मेदारी, उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उगने वाली वनस्पति अब प्रयोगशाला में उगेगी
नवीन जोशी, नैनीताल। देसी वियाग्रा कही जाने वाली शक्तिवर्धक औषधि ‘कीड़ा जड़ी’ यानी यारसा गंबू को तलाशने के लिए उच्च हिमालयी क्षेत्रों की खाक नहीं छाननी पड़ेगी। हल्द्वानी स्थित डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ बायो एनर्जी रिसर्च (डीआईबीईआर) यानी जैव ऊर्जा संस्थान ने इस औषधि को प्रयोगशाला में तैयार करने का कारनामा कर डाला है। एक-दो माह में दिल्ली की एक कंपनी इसे खुले बाजार में उपलब्ध कराने जा रही है। इससे जहां आमजन और खासकर खिलाड़ी इस औषधि को आसानी से प्राप्त कर पाएंगे वहीं आगे राज्य की आर्थिकी में बड़ा योगदान दे सकने वाले इस खजाने के बाबत शंकाएं भी शुरू हो सकती हैं। 
गौरतलब है कि यारसा गंबू (वानस्पतिक नाम- कार्डिसेप्स साइनेसिस) एक विशेष प्रकार का आधा जंतु एवं आधी वनस्पति है। यह हैपिलस फैब्रिकस नाम के खास कीड़े की इल्लियों (कैटरपिलर्स) को मारकर उस पर पनपता है। बताया जाता है कि प्रदेश के पिथौरागढ़, बागेर, चमोली और उत्तरकाशी जनपदों में स्थित बर्फ से आधे वर्ष ढकी रहने वाली उच्च हिमालयी चोटियों पर यह आधे वर्ष जमीन के नीचे कीड़े के रूप में तथा बर्फ पिघलने पर बुग्यालों में फंगस जैसी वनस्पति के रूप में बमुश्किल ढूंढा जाता है। राज्य में प्रतिबंधित न होने के बावजूद बेहद महंगा (देश में कीमत आठ से 10 लाख रुपये प्रति किग्रातथा चीन, ताइवान व कोरिया आदि के बाजारों में 16 से 20 लाख  रुपये प्रति किग्रा) होने के कारण इसके दोहन में अनेक लोग प्रतिवर्ष आपसी तथा व्यापारिक संघर्ष तथा मौसम की विपरीत परिस्थितियों के कारण जान से हाथ धो बैठते हैं। कई लोग वन अधिनियम के तहत कानूनी कार्रवाई की जद में आ जाते हैं। राज्य में वर्तमान में 150 कुंतल यारसा गंबू का व्यापार बताया जाता है। इस लिहाज से इस पर राज्य की करीब छह से आठ सौ करोड़ रुपये तक की आर्थिकी निर्भर है। चीन में हुए बीते ओलंपिक खेलों के दौरान कई खिलाड़ियों के इस औषधि को शक्तिवर्धक स्टेरायड के रूप में प्रयोग करना प्रकाश में आया। इसकी खासियत यह है कि यह किसी प्रकार के डोप टेस्ट में भी पकड़ में नहीं आता और प्रतिबंधित भी नहीं है। चीन से लगे देशों में यौन उत्तेजक व शक्तिवर्धक दवाओं के रूप में इसका प्रयोग पूर्व से ही होता रहा है। डीआईबीईआर के निदेशक डा. जकवान अहमद ने बताया कि उनके संस्थान ने प्रयोगशाला में ‘लैब कल्चर’ तकनीक से यारसा गंबू के उत्पादन का तरीका खोज निकाला है तथा इस तकनीक को संस्थान के नाम पेटेंट भी कर डाला है। उन्होंने बताया कि यारसा गंबू में शक्तिवर्धक व यौन उत्तेजना बढ़ाने में काडिसेपिन तत्व सर्वप्रमुख भूमिका निभाता है। प्राकृतिक यारसा गंबू में जहां काडिसेपिन तत्व 2.42 पीपीएम (पार्ट पर मालिक्यूल) होता है वहीं प्रयोगशाला में बने यारसा गंबू में यह तत्व 2.02 पीपीएम है। यानी दोनों की गुणवत्ता में अधिक अंतर नहीं है। उन्होंने यह तकनीक दिल्ली की एक कंपनी को हस्तांतरित कर दी है। उम्मीद है कि कंपनी एक से तीन माह के भीतर ‘फूड सप्लीमेंट’ अथवा औषधि के रूप में इसे बाजार में ले आएगी। 


पहाड़ की बूटियों से बनी सफेद दाग की दवा : 
डीआईबीईआर ने यारसा गंबू के साथ सफेद दाग यानी ल्यूकोडर्मा के इलाज की औषधि भी प्रयोगशाला में तैयार कर ली है। निदेशक जकवान अहमद ने बताया कि हिमालयी क्षेत्रों की एमीमोमस सहित पांच औषधियों के प्रयोग से यह औषधि तैयार कर ली है। इसके अलावा मिर्च से अश्रु गैस बनाने मैं भी सफलता अर्जित कर ली गयी है
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गुरुवार, 3 नवंबर 2011

'जंक फूड' खाकर 'मुटा' रही हैं नैनी झील की परियां


एक स्थान पर ही आसान भोजन मिल जाने से नहीं दे रहीं झील की  पारिस्थितिकी में योगदान
विशेषज्ञ मछलियों की जिंदगी और भावी पीढिय़ों पर भी जता रहे खतरा
नवीन जोशी, नैनीताल। जी हां, भले देश की आधी आबादी की आज भी रोटी के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा हो, पर देश—दुनिया की मशहूर नैनी झील की परियां कही जाने वाली मछलियां ब्रेड-बिस्कुट जैसा 'जंक फूड'  डकार रही हैं। आसानी से मिल रहे इस लजीज भोजन का स्वाद मछलियों की जीभ पर ऐसा चढ़ा है कि वह अपने परंपरागत जू प्लेंकन, काई, शैवाल, छोटी मछलियों व अपने अंडों जैसे परंपरागत भोजन की तलाश में झील में घूमने के रूप में तनिक भी वर्जिश करने की जहमत उठाना नहीं चाहतीं। ऐसे में वह इतनी मोटी व भारी भरकम हो गई हैं की कल तक अपनी सबसे बड़ी दुश्मन मानी जाने वाली बतखों को भी आंखें दिखाने लगी हैं। लेकिन विशेषज्ञ इस स्थिति को बेहद अस्थाई बताते हुऐ खुद इन मछलियों के जीवन तथा झील के पारिस्थितिकी लके लिये बड़ा खतरा मान रहे हैं। 
नैनी झील देश—दुनिया का एक ख्याति प्राप्त सरोवर है, और किसी भी अन्य जलराशि की तरह इसका भी अपना एक पारिस्थितिकी तंत्र है, किन्तु सरोवरनगरी की इस प्राणदायिनी झील में स्थानीय लोगों व सैलानियों के यहां पलने वाली मछलियों के प्रति दर्शाऐ जाने वाले प्रेम के अतिरेक के कारण झील के पारिस्थितिकी तंत्र के साथ ही इनकी अपनी जिंदगी पर खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। लोग अपने मनोरंजन तथा धार्मिक मान्यताऑ के  चलते स्वयं के लाभ के लिये इन्हें दिन भर खासकर तल्लीताल गांधी मूर्ति के पास से ब्रेड और बिस्कुट खिलाते रहते हैं। तल्लीताल में बकायदा झील किनारे ब्रेड-बंद व परमल आदि की दुश्मन खुल गई है, जहां से रोज हजारों रुपये की सामग्री मछलियों को खिलाई जा रही है, जबकि बगल में ही प्रशासन ने खानापूर्ति करते हुऐ मछलियों को भोजन खिलाना प्रतिबंधित बताता हुआ बोर्ड लगा रखा है। यह लजीज भोजन चूँकि इन्हें बेहद आसानी से मिल जाता है, इसलिये हजारों की संख्या में पूरे झील की मछलियां इस स्थान पर एकत्र हो जाती हैं। इससे जहां वह झील में मौजूद भोजन न खाकर झील के पारिस्थितिकी तंत्र में अपना योगदान नहीं दे रहे हैं, वहीं उनकी भोजन की तलाश में वर्जिश भी नहीं हो रही, इससे वह मोटी होती जा रही हैं। भारत रत्न पं. गोविंद वल्लभ पंत उच्च स्थलीय प्राणि उद्यान के वरिष्ठ जंतु चिकित्सक डा. एलके सनवाल इस स्थिति को बेहद खतरनाक मानते हैं। उनके अनुसार मनुष्य की तरह ही जीव—जंतुऑ में भी  अपने परंपरागत भोजन के बजाय 'जंक फूड' खाने से शरीर को एकमात्र तत्व प्रोटीन मिलता है, जिससे वह मोटे हो जाते हैं। परिणामस्वरूप उन्हें अनेक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है तथा जल्दी मृत्यु हो जाती है। डा. सनवाल को आशंका है कि आगे दो—तीन पीढिय़ों के बाद उनमें मनुष्य की भांति ही 'स्पर्म' बनने कम हो जाएँगे, जिससे वह नयी संतानोत्पत्ति भी नहीं कर पाएँगी, अंडों से बच्चे उत्पन्न नहीं होंगे, अथवा उनके बच्चों में कोई परेशानी आ जाऐगी। वह झील की सफाई का अपना परंपरागत कार्य पूरी तरह बंद कर देंगे। ब्रेड-बंद खिलाने से उनका प्राकृतिक 'हैबीटेट' ही प्रभावित हो गया है। इससे उनके अवैध शिकार को भी प्रोत्साहन मिल रहा है, कई लोग एक स्थान पर इस तरह मिलने वाली इन मछलियों को आसानी से अपना शिकार बना लेते हैं। बरसात के दिनों में हजारों मछलियां यहीं से झील के गेट खुलने के कारण बलियानाले में बहकर जान गंवा बैठती हैं। वह इस समस्या से निदान के लिये झील के तल्लीताल शिरे पर ऊंची लोहे की जाली लगाने की आवश्यकता जताते हैं, ताकि लोग इस तरह उन्हें ब्रेड-बंद न खिला पाएँ। 
हालांकि एक अन्य वर्ग भी है जो नगर में पर्यटन के दृष्टिकोण से मछलियों को सीमित मात्रा में बाहरी भोजन खिलाने का पक्षधर है। कुमाऊं विवि के वनस्पति विज्ञान विभाग के डा. ललित तिवारी कहते हैं कि इससे एक आनंद की अनुभूति होती है। सैलानियों के लिये यह एक आकर्षण है, साथ ही धार्मिक मान्यताऑ के अनुसार मछलियों को भोजन खिलाने से चित्त शांत होता है। बहरहाल, वह भी सीमित मात्रा की ही हिमायत करते हैं। झील विश्वास प्राधिकरण के अधिकारी भी इस स्थिति को गंभीर मान रहे हैं। उनका मानना है कि मछलियों को लगाई जा रही जंक फूड की लत गत वर्षों से दुबारा कृत्रिम आक्सीजन के जरिये जिलाई जा रही नैनी झील के लिये बेहद खतरनाक हो सकता है।

बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

’लू' ज चैप‘ ने कहा ’हैप्पी बर्थ डे बिग बी‘


कभी नैनीताल के शेरवुड में पढ़ाई के दौरान फिल्म देखने से रोका, और भागे अमिताभ की मदद की थी दुर्गा दत्त ने 
अपने ब्लॉग में इस घटना का उल्लेख किया अमिताभ बच्चन ने
नवीन जोशी नैनीताल। 70 के दशक में फिल्में देखने के शौकीन बालक अमिताभ को शेरवुड कालेज के एक कर्मचारी ने रंगे हाथों पकड़ लिया था, तब अमिताभ उस शख्स को देखकर साथियों से फुसफुसाये थे, ‘लू’ज चैप’ यानी विद्यालय के प्रधानाचार्य रैवरन लेनिन का चपरासी। आज अमिताभ को उनके 70वें जन्मदिन पर उसी ‘लू’ज चैप’ ने नैनीताल से जन्म दिन की बधाई भिजवाई है, ‘हैप्पी बर्थ डे बिग बी’। यह बधाई यदि अमिताभ तक पहुंचे तो शायद यह अमिताभ के लिए अपने जीवन के सभी जन्म दिवसों की अविस्मरणीय बधाई साबित हो। 
sadee के महानायक अमिताभ के लिए वह दिन हमेशा अविस्मरणीय रहा, जब एक शक्श ने उन्हें न केवल फिल्म देखने से रोका था, वरण अनुशाशन का पाठ भी पढ़ाया था । तभी तो विगत वर्ष 2008 में जब अमिताभ अपना स्कूल शेरवुड छोड़ने के 50 वर्ष पूर्ण होने के मौके पर  नैनीताल आये तो जीवन के नौवें दशक में पहुंचे बूढ़े ‘लू’ज चैप’ को न केवल आसानी से पहचान लिया वरण गले भी लगा लिया। पढ़ाई के दिनों से ही फिल्मों के दीवाने अमिताभ वर्ष 1956 से 1958 तक शेरवुड के रोबिनहुड होस्टल में रहे.
उस दिन रात नौ से 12 का शो देखने के लिए साथियों के साथ बाजार की ओर भागे चले जा रहे थे। तभी डिग्री कालेज के निकट एक शख्स को देखकर वह साथियों से फुसफुसाये, ‘लू’ज चैप’ और मुंह को दुशाले से ढक लिया। सहसा दुर्गा दत्त पांडे नाम का वह शख्स उन पर झपटा और चीखा, ‘गो अप’। अमिताभ मिन्नतें करने लगे, आज जाने दो। उसने कहा, अभी साहब को बताता हूं। अमिताभ डर गये, वह जानते थे, प्रिंसिपल रैवरन लेवलिन जिन्हें बच्चे शैतानी में ‘लू’ कहा करते थे, खुद कालेज के गेट पर पहरेदारी करते हैं। वह जरूर पूछेंगे और पकड़े जाएंगे। दुर्गा दत्त ने तसल्ली दी, साहब से नहीं कहूंगा, जब जाना हो पूछ के जाया करो। अमिताभ साथियों सहित वापस लौट आये। स्कूल गेट पर पहुंचे तो सचमुच प्रिंसिपल लेवलिन गेट पर मौजूद थे। दुर्गा ने उन्हें अम्तुल्स की ओर से भीतर प्रवेश करा दिया। यह बात अमिताभ को करीब तीन दशक बाद विगत वर्ष कालेज लौटने तक भी याद रही। उन्होंने अपने ब्लॉग पर भी एक बार लिखा था, शेरवुड में मिली अनुशासन की सीख ने ही उन्हें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। आज उसी ‘लू’ज चैप’ यानी दुर्गा दत्त को जब अमिताभ के 70वें जन्म दिन की जानकारी दी गयी तो 92 वर्षीय दुर्गा ने सीना यूं फुला लिया, मानो उनके बेटे ने कोई बड़ा मुकाम हासिल कर लिया हो। गर्व से बोले, बिग बी तक मेरी शुभकामनाएं पहुंचा दें। अतीत में खोते हुए उन्होंने बताया, आजादी से पूर्व 1941 से अपने घर ग्राम अड़चाली गरुड़ाबांज (अल्मोड़ा) से आकर शेरवुड में नौ रुपये माहवार पर कार्य करना शुरू किया था। इस दौरान प्रिंसिपल रैवरन बिंस से लेकर न जाने कितने बड़े लोगों से साबका हुआ, लेकिन हरवंशराय बच्चन के उस बच्चे में न जाने क्या था जो कॉलेज के रॉबिनहुड छात्रावास में रहकर नौवीं कक्षा में यहां आया और सीनियर कैंब्रिज यानी 11वीं कक्षा पढ़कर वापस लौट गया, लेकिन एक बेटे की तरह जीवन का हिस्सा और सबसे बड़ी पूंजी बन गया। 

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

खंडूड़ी के सिर सजी नरेंद्र मोदी की ‘ठुकराई’ टोपी


अपनी ससुराल नैनीताल से दिया सर्वधर्म समभाव का संदेश, गए मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा
नैनीताल (एसएनबी)। मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी बृहस्पतिवार को अपनी ससुराल नैनीताल में थे। यहां उन्होंने पाषाण देवी के साथ ही यहां चल रहे दुर्गा महोत्सव और नयना देवी मंदिर में भी शीश नवाया। गुरुद्वारा गुरुसिंह सभा में भी अरदास की और जामा मस्जिद में भी सजदा किया। उन्होंने मस्जिद में प्रवेश करते ही मुस्लिमों की टोपी पहनी, जिसे न पहनने के कारण गत दिनों उनकी ही पार्टी के नरेंद्र मोदी विवादों में आ गये थे। नैनीताल में मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी अरुणा खंडूड़ी का बचपन बीता। उनके पिता यहां मल्लीताल कोतवाली में कोतवाल रहे तथा भाई वन विभाग में वन संरक्षक पद पर रहे। खंडूड़ी दंपति की यहां की पाषाण देवी पर अगाध आस्था है। दोनों गाहे-बगाहे तथा खासकर नवरात्रों में यहां आते रहते हैं। मुख्यमंत्री तो वहां से करीब 35 मिनट बाद लौट आये, लेकिन उनकी पत्नी करीब तीन घंटे मंदिर में रहीं और दुर्गा सप्तशती व दुर्गा कवच का पाठ किया। इसके पश्चात पहले मुख्यमंत्री तथा बाद में उनकी पत्नी ने अलग-अलग नयना देवी मंदिर में दर्शन किये। अधिकारियों की बैठक व कार्यकर्ताओं से मुलाकात के बावजूद मुख्यमंत्री ने अपने दौरे को व्यक्तिगत दौरा बताया। गुरुद्वारा में उन्हें गुरुद्वारा गुरुसिंह सभा पदाधिकारियों ने कृपाण व सरोपा भेंट किया, जबकि मस्जिद में प्रवेश करते ही शहर इमाम व सेक्रेट्री आदि ने उन्हें मुस्लिम धर्म की परंपरागत टोपी पहनाई, जिसे उन्हें सामान्य तरीके से पहना, साथ ही अपनी ओर से मस्जिद एवं मुस्लिम धर्मावलंबियों के लिए हरसंभव मदद की पेशकश भी की। इसी बीच उन्हें बौद्ध समुदाय के लोगों ने सफेद खाता नामक वस्त्र पहनाकर सम्मानित किया, साथ ही दुर्गा महोत्सव आयोजन समिति के लोगों ने गुलाल लगाकर मुख्यमंत्री का अभिषेक किया।

खुशखबरी: पहाड़ चढ़ेगी रेल

पूर्वोत्तर रेलवे के महाप्रबंधक केबीएल मित्तल ने बताया कि रेल बजट में घोषित टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन का अक्टूबर 2010 में सर्वे किया गया था। करीब 254 किमी के इस रूट को तैयार करने का 2800 करोड़ रुपए और रामनगर-चौखुटिया के बीच 86 किमी की रेल लाइन का 1378 करोड़ यानी दोनों योजनाओं पर कुल करीब 42 सौ करोड़ का प्रस्ताव अगस्त 2011 में रेलवे बोर्ड को भेजा जा चुका है। दोनों योजनाओं की टेक्निकल फिजिबिलिटी एवं ट्रेफिक सर्वे रिपोर्ट पर रेलवे बोर्ड व मंत्रालय को निर्णय लेना है। यदि योजनाओं को मंजूरी और बजट आवंटन हो जाता है तो रेलवे इस पर काम शुरू करेगा। कहा कि यात्री आय के लिहाज से यह दोनों योजनाएं मुनाफा देने वाली नहीं हैं, लेकिन उत्तराखंड के सामरिक दृष्टिकोण के साथ रेलवे की सामाजिक प्रतिबद्धता के लिहाज से रेल लाइन पहाड़ तक पहुंचाना भी जरूरी है। बताया कि इसके अलावा काठगोदाम-नैनीताल रेल लाइन का भी बोर्ड ने दोबारा सर्वे का आदेश दिया है। जल्द ही इस रूट का सर्वे कराया जाएगा। बरेली-लालकुआं के बाद लालकुआं-कासगंज रूट का आमान परिवर्तन मार्च 2013 के बाद शुरू किया जाएगा।

बुधवार, 28 सितंबर 2011

रयाल-नयाल के भरोसे जनरल की ’ससुराल‘



एक दर्जन पदों का कार्यभार संभाले हुए हैं दो अधिकारी
जिले में कई पद रिक्त, कुछ पदों पर अधिकारियों में होड़
कोई यहां आना नहीं चाहता, आता है तो जाना नहीं चाहता
नवीन जोशी, नैनीताल। सालभर बारिश, नैनी झील और तरुणाई से सरोवरनगरी में भले हर ओर हरीतिमा नजर आती हो मगर प्रशासनिक हलकों में इसे ‘शुष्क’ ही कहा जाएगा। जनरल खंडूड़ी के शासन में भी उनकी ‘ससुराल’ में दर्जनभर मुख्य विभाग केवल दो अधिकारियों ललित मोहन रयाल और अवनेंद्र सिंह नयाल के हाथों में हैं। राज्य में विगत दिनों बदले निजाम में हुए प्रशासनिक फेरबदल के बाद जिले में न हाकिम है और न मुख्य विकास अधिकारी। सीएम जनरल के ससुराल की अनूठी कहानी यह है कि कोई अधिकारी यहां आना नहीं चाहता, और जो एक बार यहाँ आ जाता है तो वापस जाना नहीं चाहता। 
नैनीताल मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी की ससुराल है। उनकी धर्मपत्नी अरुणा खंडूड़ी का बचपन यहीं बीता है। उनकी नगर की पाषाण देवी पर अगाध आस्था है। श्राद्ध पक्ष में जनरल ने तबादलों की पहली खेप का खुलासा किया तो सर्वाधिक फेरबदल इसी जनपद में हुए। उम्मीद थी कि नए अधिकारी शारदीय नवरात्र पक्ष में पद ग्रहण करेंगे। नवरात्र प्रारंभ हो गए हैं लेकिन अधिकारियों के पहुंचने का सिलसिला शुरू नहीं हो पा रहा है। यहां से एक-एक कर अधिकारी चले तो गए पर नए आए नहीं। दर्जनभर विभाग केवल दो अधिकारियों के कंधों पर हैं। वर्तमान में जनपद के अपर जिलाधिकारी ललित मोहन रयाल के पास निर्वाचन जैसी पदेन जिम्मेदारियों के अतिरिक्त अपर आयुक्त कुमाऊं मंडल, सचिव झील विकास प्राधिकरण के साथ जिलाधिकारी एवं मुख्य विकास आयुक्त का भी अतिरिक्त कार्यभार है। इसी तरह मुख्यालय में अपर निदेशक उत्तराखंड प्रशासन अकादमी के पद पर तैनात अवनेंद्र सिंह नयाल के पास पूर्व से ही श्रम आयुक्त, अपर राजस्व आयुक्त की जिम्मेदारियां थीं। उन्होंने अब कुमाऊं मंडल विकास निगम के प्रबंध निदेशक पद की जिम्मेदारी भी संभाल ली है। इसके पीछे कारण बताया जा रहा है कि नैनीताल में अधिकांश अधिकारी आने से बचते हैं। इसके उलट कुछ विभागों में आने का अधिकारियों में बड़ा चाव है। यानी कुछ पदों का आकर्षण अन्य के मुकाबले हल्का पड़ जाता है। वहां एक अनार-सौ बीमार की स्थिति है। इसी तर्ज पर नैनीताल सीडीओ पद की ही बात करें तो जनपद में रहे पूर्व एडीएम धीराज सिंह गब्र्याल, उत्तराखंड प्रशासन अकादमी में अपर निदेशक रहे राजीव साह, हल्द्वानी में सिटी मजिस्ट्रेट रहे रणवीर सिंह चौहान, अपर आयुक्त और झील विकास प्राधिकरण के सचिव रहे एचसी सेमवाल आदि इस पद के प्रबल दावेदार बताए जा रहे हैं। जिलाधिकारी बन कर आ रहीं निधिमणि त्रिपाठी भी पूर्व में यहां सीडीओ रह चुकी हैं। इधर उनके नवरात्र शुरू होने के बाद भी कार्यभार ग्रहण न करने पर भी कयासों का दौर शुरू हो गया है।
इस आलेख को मूलतः यहाँ क्लिक कर राष्ट्रीय सहारा के प्रथम पेज पर भी देख सकते हैं.

रविवार, 4 सितंबर 2011

तंग कमरे में डाक्टर, शौचालय में दवाएं


यह है मंडल मुख्यालय के आयुष विंग का हाल मुख्यालय स्थित एक कक्ष में स्थापित आयुष विंग का नजारा।
नवीन जोशी नैनीताल। भवाली में जहां प्रदेश सरकार विपक्ष के तीव्र आक्रोश को झेलकर भी इमामी से प्रदेश का पहला आयुष ग्राम स्थापित करवाने को प्रतिबद्ध नजर आ रही है, वहीं मुख्यालय के बीडी पांडे जिला अस्पताल में महज 10 गुणा 15 वर्ग फीट के एक कमरे में आयुष विंग चलाया जा रहा है। महज चार कुर्सियों की जगह वाले आयुष विंग की कहानी भी अपने आप में अनूठी है। 
प्रदेश भर में चिकित्सकों की कमी के ‘दुखड़े’ के बीच यहां उपलब्ध चारों कुर्सियों में बैठने के लिए चार आयुर्वेदिक चिकित्सक तैनात हैं। जब चारों चिकित्सक उपलब्ध रहते हैं तो मरीजों को बैठने तो दूर, खड़े होने तक को जगह नहीं मिलती। जगह की कमी के कारण बहुमूल्य एवं साफ सुथरी जगह पर रखी जाने वाली दवाइयां शौचालय में रखी गई हैं। यहां तैनात चिकित्सक प्रसाधन के लिए भी इधर-उधर भटकने को मजबूर हैं। इस कक्ष में बमुश्किल एक ही टेबल के गिर्द चार कुर्सियां लगी हुई हैं, जिन पर वरिष्ठ चिकित्साधिकारी डा. अजय पाल सिंह चौधरी, चिकित्साधिकारी डा. शोभा पांडे, डा. प्रीति टोलिया एवं डा. ज्योत्सना कुनियाल (इन दिनों महानिदेशक के आदेशों पर हल्दूचौड़ में संबद्ध) तैनात हैं। यहां दवाइयां बांटने के लिए एक भी फार्मासिस्ट उपलब्ध नहीं है, जिस कारण दवाइयां बांटने का कार्य वार्ड ब्वाय के भरोसे है। कक्ष में दवाइयों की अलमारी रखने के लिए स्थान नहीं है, इसलिए आलमारी शौचालय में रखी गई है। मरीजों की बात करें तो इन चार चिकित्सकों की फौज की सेवाएं लेने यहां हर रोज औसतन 50 रोगी ही आते हैं, यानी हर चिकित्सक को दिन भर में औसतन एक दर्जन मरीज ही देखने होते हैं। बात यहीं खत्म नहीं होती। मुख्यालय में तीन अन्य आयरुवेदिक चिकित्सालय भी हैं। यहां भी चिकित्सक उपलब्ध हैं परंतु फार्मासिस्ट व सहायक स्टाफ नहीं। कहानी साफ है, चिकित्सकों ने सुविधा संपन्न मुख्यालय में तैनाती कराकर यहां भीड़ लगा दी है, लेकिन मरीजों को उनकी सेवाओं का लाभ नहीं मिल रहा। पूछने पर वरिष्ठ चिकित्साधिकारी डा. चौहान ने बताया कि मुख्यालय में आयुष विंग का अलग चिकित्सालय बनाने के लिए तीन वर्ष से 10 लाख रुपये कार्यदायी संस्था उत्तराखंड पेयजल निगम का अवमुक्त भी हो चुके हैं, लेकिन जगह उपलब्ध नहीं कराई गई है। इधर सीएमओ के स्तर से रैमजे अस्पताल के पास की भूमि उपलब्ध कराई गई है, जिस पर निर्माण के लिए नक्शा झील विकास प्राधिकरण को स्वीकृति के लिए भेजा गया है।

शनिवार, 3 सितंबर 2011

लगातार समृद्ध हो रहा नंदा महोत्सव

अपनी पहचान कायम रखने में सफल रहा  108 सालों से हो रहा महोत्सव
नवीन जोशी, नैनीताल। सामान्यतया अतीत को समृद्ध परंपरा के लिए याद करने, वर्तमान को बुरा एवं भविष्य के प्रति चिंतित होने का चलन है लेकिन इस चलन को झुठलाता हुआ सरोवरनगरी का ऐतिहासिक नंदा महोत्सव साल दर साल नई परंपराओं को आत्मसात करता हुआ लगातार समृद्ध होता जा रहा है। पिछली शताब्दी और इधर तेजी से आ रहे सांस्कृतिक शून्यता की ओर जाते दौर में भी यह महोत्सव न केवल अपनी पहचान कायम रखने में सफल रहा है, वरन इसने सर्वधर्म समभाव की मिशाल भी पेश की है। पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी यह देता है और उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं व गढ़वाल अंचलों को भी एकाकार करता है। इधर गत वर्ष अपनी वेबसाइट के जरिये ई-दुनिया में जाने के बाद इस वर्ष मां नंदा महोत्सव सोशल साइटों पर चर्चित हुआ है। सरोवरनगरी में नंदा महोत्सव की शुरुआत नगर के संस्थापकों में शुमार मोती राम शाह ने 1903 में अल्मोड़ा से यहां आकर की थी। शुरुआत में मंदिर समिति द्वारा ही यह आयोजन होता था, 1926 से आयोजन का जिम्मा नगर की सबसे पुरानी धार्मिक सामाजिक संस्था श्रीराम सेवक सभा को दे दिया गया, जो तभी से लगातार दो वि युद्धों के दौरान भी बिना रुके सफलता से और नए आयाम स्थापित करते हुए यह आयोजन कर रही है। कहा जाता है कि 1955-56 तक मूर्तियों का निर्माण चांदी से होता था, बाद में स्थानीय कलाकारों ने मूर्तियों को सजीव रूप देते हुए उसमें लगातार सुधार किया। परिणामस्वरूप नैनीताल की नंदा- सुनंदा की मूर्तियां, महाराष्ट्र के गणपति बप्पा जैसी ही जीवंत व सुंदर बनती हैं। खास बात यह भी कि मूर्तियों के निर्माण में पूरी तरह कदली वृक्ष के तने, पाती, कपड़ा, रुई व प्राकृतिक रंगों का ही प्रयोग किया जाता है। बीते तीन वर्षों से थर्मोकोल का सीमित प्रयोग भी बंद कर दिया गया है, जिसके बाद महोत्सव पूरी तरह ‘ईको फ्रेंडली’ हो गया है। साथ ही कदली वृक्षों के बदले 21 फलदार वृक्ष रोपने की परंपरा वर्ष 1998 से पर्यावरण मित्र वाईएस रावत के सुझाव पर शुरू की गई। वर्ष 2007 से तल्लीताल दर्शन घर पार्क से मां नंदा के साथ नैनी सरोवर की आरती की एक नई परंपरा भी जुड़ी है, जो प्रकृति से मेले के जुड़ाव का एक और आयाम है। मेला आयोजक संस्था ने मेले में परंपरागत होने वाली बलि प्रथा को अपनी ओर से सीमित करने की अनुकरणीय पहल भी की है। वर्ष 2005 से मेले में फोल्डर स्वरूप से स्मारिका छपने लगी, जिसका आकार इस वर्ष 220 पृष्ठों तक फैल चुका है। यहीं से प्रेरणा लेकर कुमाऊं के विभिन्न अंचलों में फैले मां नंदा के इस महापर्व ने देश के साथ विदेश में भी अपनी पहचान स्थापित कर ली है। शायद इसीलिए यहां का महोत्सव जहां प्रदेश के अन्य नगरों के लिए प्रेरणादायी साबित हुआ। बीते वर्ष से मेले की अपनी वेबसाइट के जरिऐ देश दुनिया तक सीधी पहुंच भी बन गई है। इधर फेशबुक, गूगल प्लस व ट्विटर सरीखी सोशल साइटों के जरिये भी मेला स्थानीय लोक कला के विविध आयामों, लोक गीतों, नृत्यों, संगीत की समृद्ध परंपरा का संवाहक बनने के साथ संरक्षण व विकास में भी योगदान दे रहा है।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ हुई शुरूआत
नैनीताल (एसएनबी)। शक्तिस्वरूपा मां नंदा का 108वां महोत्सव सरोवरनगरी नैनीताल में पूरे धार्मिक उत्साह व परंपरागत तरीके से पूजा अर्चना एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ शुरू हो गया। मुख्य अतिथि डीएम शैलेश बगौली ने मां नंदा को शीश नवाते हुए उन्हें प्रदेश के दोनों अंचलों कुमाऊं व गढ़वाल को एक सूत्र में पिरोने वाली माता बताया। मल्लीताल रामलीला मैदान में आयोजित महोत्सव के शुभारंभ कार्यक्रम में डीएम श्री बगौली ने क्षेत्रीय विधायक खड़क सिंह बोहरा, पूर्व विधायक डा. नारायण सिंह जंतवाल, एसएसपी अनंत राम चौहान, केएमवीएन के एमडी चंद्रेश कुमार, आयोजक संस्था श्रीराम सेवक सभा के अध्यक्ष सुधीर जोशी व पालिकाध्यक्ष एवं सभा महासचिव मुकेश जोशी के साथ दीप प्रज्वलित कर 108वें नंदा महोत्सव का दीप प्रज्वलित कर शुभारंभ तथा महोत्सव की रिकार्ड 220 पृष्ठों की वार्षिक स्मारिका का विमोचन किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि मेला बीते कुछ वर्षो से लगातार समृद्ध होता जा रहा है तथा प्रदेश के बड़े महोत्सवों में शुमार हो गया है। उन्होंने महोत्सव के लिए जिला प्रशासन की ओर से हरसंभव सहयोग का आासन भी दिया। विधायक बोहरा ने मां नंदा को राज्य की कुलदेवी के साथ स्थानीय भूदेवी बताते हुए उनसे मां-बेटी का रिश्ता बताया। एसएसपी एआर चौहान ने मां से समृद्धि व शांति बनाये रखने की कामना की। पशु कल्याण बोर्ड की उपाध्यक्ष शांति मेहरा ने महोत्सव का स्वरूप लगातार बेहतर होने तथा पूर्व विधायक डा. जंतवाल ने बदलती तकनीकी के दौर में भी सांस्कृतिक थाती को आगे बढ़ाने की बात कही। इस दौरान परंपरागत तरीके से मूर्ति निर्माण हेतु प्रयुक्त होने वाले कदली वृक्षों के बदले रोपे जाने वाले 21 पौधों की पूजा अर्चना की गई तथा कदली वृक्ष लाने वाले दल को परंपरागत लाल एवं सफेद ध्वज (निशानों) पवित्र कदली वृक्ष लाने वाले दल को प्रदान किये। इस अवसर पर  सरस्वती शिशु मंदिर के बच्चों एवं भारत सरकार के गीत एवं नाटक प्रभाग के कलाकारों के कुमाऊं के परंपरागत रंग्वाली पिछौड़े पहनकर भजन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। छोलिया नर्तकों तथा गिरीश बोरा रीठागाड़ी ने लोक संस्कृति की झलक प्रस्तुत की। इस मौके पर पूर्व पालिकाध्यक्ष सरिता आर्या, संजय कुमार संजू, हेम आर्या, दया बिष्ट, दिनेश साह, किशन लाल साह कोनी, सभासद दीपक कुमार व मंजू रौतेला, सभा के जगदीश बवाड़ी, डा. अजय बिष्ट, कमलेश ढोंढियाल, अनूप शाही सहित बड़ी संख्या नगरवासी श्रद्धालु इन गौरवमयी पलों के गवाह बने। संचालन गंगा प्रसाद साह ने किया।


नंदा-सुनंदा के जयकारे के साथ शुरू हुआ जागर
बागेश्वर (एसएनबी)। कपकोट के पोथिंग गांव के भगवती मन्दिर में हर साल की तरह इस बार भी भव्य मेला लगा। हजारों श्रद्धालुओं ने मन्दिर में विधि विधान से पूजा अर्चना की और मनौतियां मांगी। परम्परानुसार कई श्रद्धालुओं ने मनौतियों के लिए बकरियों की बलि चढ़ाई और सुख शांति के लिए भगवती माता से प्रार्थना की। ग्रामसभा कपकोट में भी नंदा देवी महोत्सव वैदिक मंत्रोच्चारण के मध्य शुरू हो गया है। कपकोट के विभिन्न हिस्सों के अलावा जिले के अन्य क्षेत्रों से भी हजारों श्रद्धालुओं ने भागीदारी की। इस मौके पर आयोजित भंडारे में शिरकत कर प्रसाद भी ग्रहण किया। विधायक कपकोट शेर सिंह गड़िया, जिपं अध्यक्ष राम सिंह कोरंगा, उपाध्यक्ष विक्रम सिंह शाही के अलावा अन्य संगठनों के नेता, कार्यकर्ताओं ने भी भगवती मन्दिर जाकर पूजा अर्चना कर मनौतियां मांगीं। ग्रामसभा कपकोट में भी नंदा देवी महोत्सव वैदिक मंत्रोच्चारण के मध्य शुरू हो गया है। इसके अलावा कपकोट के ही बदियाकोट भगवती मन्दिर में शनिवार रात्रि जागरण व रविवार को मेला तथा भंडारे का आयोजन होगा। दोफाड़ के नंदादेवी मन्दिर में और पुड़कूनी के भगवती मन्दिर में रविवार से नंदादेवी मेला शुरू होगा। इसके अलावा रविवार को कोटभ्रामरी मन्दिर डंगोली में मेला लगेगा। सनेती के देवी मन्दिर में नौ व 10 सितम्बर को मेला लगेगा। कपकोट के केदारेर बगड़ में 28 सितम्बर से होने वाले दुर्गा पूजा महोत्सव की तैयारियां भी जोरशोर से शुरू हो गई हैं। महोत्सव के लिए देवीकुंड हिमालय से जल लाने के लिए गये 11 लोगों को विधायक कपकोट शेर सिंह गड़िया ने वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच यात्रा के लिए रवाना किया।
महावीर मंगल समूह बिलौना के तत्वावधान में बिलौना में चल रहे गणपति महोत्सव में दूसरे दिन भी श्रद्धालुओं की भीड़भाड़ रही। श्रद्धालुओं ने विधि विधान से पूजा अर्चना कर मनौतियां मांगी। 
अल्मोड़ा/रानीखेत (एसएनबी)। नंदा-सुनंदा के आह्वान जागर व गणेश पूजन के साथ अल्मोड़ा में नंदा देवी महोत्सव शुरू हो गया है। रानीखेत में कदली पेड़ को लाने के साथ मेले का शुभारंभ किया गया। अल्मोड़ा डय़ोरीपोखर में नंदा देवी गणोश पूजन में राज परिवार के युवराज नरेन्द्र चन्द्र सिंह ने भाग लिया। शनिवार को चौधरीखोला में कदली वृक्षों को निमंतण्रदिया जाएगा। महोत्सव के शुरू होते ही विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन भी शुरू हो गया है। नंदा देवी परिसर में हुई ऐपण प्रतियोगिता में दो दर्जन से अधिक युवतियों ने भाग लिया। प्रतियोगिता प्रभा पांडे, मंजू पंत व मनोरमा बिष्ट के देखरेख में हुई। इधर रैमजे इंटर कालेज में उद्योग विभाग के तत्वावधान में हथकरघा प्रदर्शनी लगायी गई है। इसमें लगाए गए स्टालों में विभिन्न उद्यमियों द्वारा अपने उत्पादों की बिक्री प्रदर्शनी लगायी है। 
रानीखेत में कदली वृक्षों के आमंत्रण के साथ मेला शुरू हो गया है। शुक्रवार सुबह राय स्टेट से कदली वृक्ष को भव्य शोभायात्रा के साथ नगर भ्रमण कराकर मन्दिर में लाया गया। यहां शनिवार से मूर्ति निर्माण की प्रक्रिया शुरू होगी। इस अवसर पर कमेटी अध्यक्ष हरीश साह, विधायक करन महरा, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य सलाहकार परिषद अध्यक्ष अजय भट्ट, नरेन्द्र रौतेला समेत दर्जनों लोग मौजूद थे। राजा की भूमिका इस बार सामाजिक कार्यकर्ता मोहन नेगी निभा रहे हैं।

बागेश्वर में नंदा देवी महोत्सव कल 
बागेश्वर। श्री रामलीला कमेटी के तत्वावधान में रविवार से होने वाले नंदादेवी महोत्सव की तैयारियां जोरशोर से चल रही हैं। कमेटी के अध्यक्ष नंदन साह के नेतृत्व में दर्जनों पदाधिकारी, सदस्य और नगरीय युवा कदली वृक्ष लाने मंडलसेरा गांव रवाना हुए और पूर्व प्रधान किशन सिंह मलड़ा के खेत से वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच कदली वृक्ष निकाला गया। इसके बाद देवी की जय-जयकार के बीच कदली वृक्ष लेकर भक्तगणों ने नगर की सभी मुख्य सड़कों का परिक्रमण किया और महोत्सव स्थल रामलीला भवन नुमाईशखेत मैदान में वृक्ष रखा। इसके साथ ही देवी प्रतिमा बनाने का काम भी शुरू हो गया है। कदली वृक्ष लाने वालों में सूरज जोशी, नीरज उपाध्याय, नीरज पांडे, शंकर साह, पंकज पांडे, ललित तिवारी, किशन मलड़ा, रचित साह आदि दर्जनों युवा शामिल थे। महोत्सव की व्यापक तैयारियां चल रही हैं।
नैनीताल के विश्व प्रसिद्द नंदा महोत्सव की कुछ तस्वीरें यहाँ क्लिक करके देखी जा सकती हैं.
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रविवार, 28 अगस्त 2011

पहली फिल्म नैनीताल में फिल्मायेंगे सिंघम, मर्डर-2 वाले सुधांशु


नवीन जोशी नैनीताल। सरोवरनगरी की गलियों में पल-बढ़कर हॉलीवुड की ‘स्वप्निल’ दुनिया लांघ चुके सिने कलाकार सुधांशु पांडे 12 वर्षो बाद अपनी जन्मभूमि लौटे तो एक वादा कर दिया। इसी वर्ष बॉलीवुड में बतौर प्रोडय़ूसर नयी पारी खेलेंगे और उनकी पहली फिल्म की शूटिंग नैनीताल में भी होगी। 
"मॉडल टर्न्ड एक्टर" सुधांशु का चेहरा हिंदी सिने दर्शकों के लिए खासा जाना-पहचाना है। दूरदर्शन पर ‘बेटा’ सीरियल से अभिनय की दुनिया में आये सुधांशु पहली बार खिलाड़ी-420 फिल्म में अक्षय कुमार के अपोजिट पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका में नजर आये थे। इसके बाद उनके फिल्मी कैरियर को गत वर्ष आयी अक्षय की ही ‘सिंह इज किंग’ में निभाये एक सिख युवक के किरदार से नयी पहचान मिली, जिसका परिणाम है कि इस वर्ष उनकी दो फिल्में ‘मर्डर-टू’ व सिंघम रिलीज हो चुकी हैं, जबकि  हेमा मालिनी की 'टेल मी ओ खुदा' व 'राजधानी एक्सप्रेस' शीघ्र रिलीज होने जा रही हैं। बीच में सुधांशु दुनिया के सर्वश्रेष्ठ एक्शन हीरो में शुमार जैकी चेन के साथ हॉलीवुड की फिल्म ‘द मिथ’ में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं। इस फिल्म में वह तथा मल्लिका सहरावत ही भारतीय कलाकार थे। फिल्म के निर्देशक स्टैनली टौंग सुधांशु को तभी से अपनी  तथा अन्य हॉलीवुड फिल्मों में लेने तथा हॉलीवुड में ही स्थापित होने की सलाह दे रहे हैं, जिस पर सुधांशु भी अब तैयार नजर आ रहे हैं। हालांकि इस बीच उनकी इस वर्ष के अंत तक अपना प्रोडक्शन हाउस खोलकर हिंदी फिल्म बनाने की योजना भी है। फिलहाल वह तमिल फिल्म ‘बिल्ला' का 'प्रीक्वल' यानी पहले की कहानी पर बन रही फिल्म की शूटिंग में व्यस्त हैं। इसी तमिल फिल्म में निभाये जा रहे ‘डॉन’ के 'गेटअप' में नैनीताल पहुंचे सुधांशु ने शनिवार को ‘राष्ट्रीय सहारा’ द्वारा पूछे गये एक सवाल के जवाब में वादा किया कि उनके प्रोडक्शन हाउस की पहली फिल्म नैनीताल में ‘शूट’ की जाएगी। मूलत: उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के डुंगरी गांव निवासी सुधांशु ने बताया कि उनके पिता रेलवे में कार्यरत थे। उनकी पोस्टिंग नैनीताल स्थित रेलवे के होली डे होम में थी। यहीं बिशप शॉ स्कूल से सुधांशु ने प्रारंभिक शिक्षा ली। यहां फ्लैट मैदान में धर्मेन्द्र की 'हुकूमत' सहित अन्य फिल्मों की शूटिंग देखते हुए उनके मन में भी कला की अलख जगी। यहीं रहते उन्हें भीलवाड़ा शूटिंग्स की मॉडलिंग का ऑफर मिल गया था। बाद में मुंबई जाकर बिना किसी प्रशिक्षण के पहले मॉडल और फिर टीवी व सिने कलाकार बन गये। एक दौर में मुंबई में उनका अपना बैंड भी था। सुधांशु कहते हैं, यह पहाड़ की कला से भरी तासीर ही है, जिसके कारण यह हो पाया। पहाड़ उनके दिल में बसता है। आज नैनीताल आये हैं तो यह उनके लिए घर वापसी जैसा है। आगे लगातार आने की कोशिश करेंगे।

बुधवार, 24 अगस्त 2011

एरीज से हवा की ’फितरत‘ पर नजर

एरीज में वायुमंडल में 30-32 किमी तक के प्रदूषण का मापन शुरू हीलियम गैस से भरे गुब्बारों में लगाए गए उपकरणों से एकत्रित किए जाते हैं आंकड़े
नवीन जोशी नैनीताल। नैनीताल के आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान ‘एरीज’ से हवा में आने वाले प्रदूषण पर नजर रखी जा रही है। आने वाले दिनों में राज्य के लिए यंह ‘कार्बन क्रेडिट’ मांगने का आधार साबित हो सकता है। एरीज में इसरो, अमेरिका के ऊर्जा विभाग व आईआईएससी बेंगलुरु के सहयोग से परियोजना चल रही है। इसके तहत हर सप्ताह वायुमंडल में हीलियम गैस से भरे गुब्बारों को वायुमंडल में छोड़ा जाता है। ये गुब्बारे धरती की सतह से 30 से 32 किमी. की ऊंचाई तक जाते हैं। अपने साथ लेकर गए दो उपकरणों ‘ओजोन सौंडे’ व ‘वेदर सौंडे’ की मदद से हवाओं की दिशा, दबाव, तापमान व ओजोन की मात्रा जैसे आंकड़े एकत्र करते हैं। इतनी ऊंचाई तय करने में गुब्बारों को करीब एक से डेढ़ घंटे लगते हैं, इस दौरान यह लगातार आंकड़े देते रहते हैं। इस परियोजना के वैज्ञानिक डा. मनीष नजा का कहना है कि नैनीताल के वायुमंडल में चूंकि अपना प्रदूषण नहीं है। यहां के वायुमंडल से प्राप्त प्रदूषण व ओजोन गैस के आंकड़े पूरी तरह से बाहर से आने वाली हवाओं के माध्यम से लाए होते हैं। इसलिए वायुमंडल में आने वाली हवाओं की दिशा का अध्ययन किया जा रहा है। आने वाले तीन माह में इस बाबत ठोस तरीके से कहा जा सकेगा कि देश-दुनिया के किस क्षेत्र के प्रदूषण का यहां के वायुमंडल पर प्रभाव पड़ रहा है। अब तक के अध्ययनों से यह देखा गया है कि पहाड़ पर अप्रैल-मई में लगने वाली जंगलों की आग के कारण पांच किमी से ऊपर के वायुमंडल में ओजोन की अत्यधिक मात्रा रिकार्ड की गई है। शेष समय मात्रा सामान्य है। 
मैदानी क्षेत्रों पर भी नजर : 
एरीज में एक अन्य परियोजना ‘गंगा वैली ऐरोसोल एक्सपेरीमेंट’ के तहत हर दिन चार छोटे गुब्बारे भी हवा में छोड़े जा रहे हैं। इनके माध्यम से गंगा के मैदानी क्षेत्रों में औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप हो रही ग्लोबल वार्मिग व ग्लोबल कूलिंग तथा सौर विकिरण पर पड़ रहे प्रभाव का आकलन किया जा रहा है। मौसम वैज्ञानिक डा. मनीष नजा के अनुसार भविष्य में पंतनगर और लखनऊ से भी इस प्रकार के आंकड़े लिए जाएंगे। उपग्रह से प्राप्त चित्रों में इन क्षेत्रों में काफी मात्रा में औद्योगिक प्रदूषण देखा गया है, जिसका अब विस्तृत अध्ययन किया जा रहा है। 
उपकरण लौटाने पर इनाम : 
बैलून के जरिए वायुमंडल में छोड़े जाने वाले उपकरण करीब चार घंटे में धरती पर कहीं भी आ गिरते हैं। हालांकि जीपीएस सिस्टम से जुड़े इन उपकरणों के गिरने के बावजूद पूरी जानकारी एरीज में होती है। इसके बावजूद यहां के अधिकारियों ने इनकी सूचना देने व लौटाने पर पांच सौ व एक हजार रुपये के इनाम घोषित किए हैं। इन उपकरणों पर इनाम की जानकारी और लौटाने का पता भी लिखा होता है। इसलिए यदि आपको कहीं ऐसे पता व सूचना लिखे वैज्ञानिक उपकरण मिल जाएं तो इन्हें एरीज को लौटाकर इनाम ले सकते हैं।

बुधवार, 10 अगस्त 2011

एपीजे बोले, ज्ञान लो, महान बनो

नैनीताल (एसएनबी)। भारत रत्न से सम्मानित पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा है कि छात्र महान वैज्ञानिकों ग्राहम बेल, सीवी रमन, रामानुजम, राइट ब्रदर्स, थामस अल्वा एडिसन, हार्डी और प्रो. चंद्रशेखर की तरह असंभव कल्पनाएं करें। इसके बाद वे इन कल्पनाओं को पूरा करने की हिम्मत दिखाकर अद्वितीय बनें। इससे वे मानवीय क्षमता की सीमाओं को तोड़ सकते हैं।
कुमाऊं विवि के 11वें दीक्षांत समारोह में ‘मिसाइलमैन’ के नाम से मशहूर पूर्व राष्ट्रपति डा. कलाम ने विद्यार्थियों से अद्वितीय बनने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि उन्हें जीवन में ऊंचे लक्ष्य रखने होंगे। लगातार ज्ञानार्जन करना होगा। कठिन परिश्रम के साथ महान उपलब्धि का पाने के लिए दृढ़ रहना होगा। ऐसा करने पर वे स्वत: अद्वितीय बन जाएंगे। दीक्षोपदेश देते हुए कुलाधिपति मार्ग्ेट आल्वा ने 1973 में स्थापित कुमाऊं विवि के गौरवमयी इतिहास का विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह देश और दुनिया के विद्यार्थियों के लिए गुणवत्तायुक्त शिक्षा का केंद्र बनता जा रहा है। उन्होंने कुमाऊं विवि को राज्य ही नहीं पड़ोसी देश नेपाल व भूटान के विद्यार्थियों का प्रमुख शिक्षा पड़ाव बताया। मुख्यमत्री डा. निशंक ने युवाओं देश और प्रदेश के गौरवशाली अतीत से प्रेरणा लेकर इसे आगे बढ़ाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार राज्य को 2020 तक आदर्श राज्य बनाने के लिए संकल्पबद्ध है। इससे पूर्व डा. कलाम ने राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री के साथ विवि के 36,711 विद्यार्थियों को उपाधियां तथा स्नातकोत्तर के 26 छात्र-छात्रों के अलावा स्नातकोत्तर स्तर पर सर्वोच्च अंक प्रदान करने वाले विद्यार्थियों को कुलपति स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक के अलावा चार छात्राओं को गौरा देवी स्वर्ण पदक व दो अन्य पदक प्रदान किए। आयोजन की शुरूआत कुलसचिव डा. कमल के पांडे के नेतृत्व में विद्या परिषद एवं कार्य परिषद सदस्यों की शोभायात्रा के साथ हुई। डा. कलाम को एनसीसी कैडेटों ने सलामी दी। डा. कलाम ने उपाधिधारकों व पदक विजेताओं से बातचीत भी की। समारोह का शुभारंभ व समापन राष्ट्रगान तथा विवि के कुलगीत से हुआ। संचालन प्रो. नीरजा टंडन तथा डा. दिव्या उपाध्याय जोशी ने किया। कुलपति प्रो.वीपीएस अरोड़ा ने स्वागत एवं कुलसचिव डा. कमल के पांडे ने आभार ज्ञापित किया। इस अवसर पर पूर्व कुलपति प्रो. आरसी पंत, पंतनगर विवि के कुलपति डा. बीके बिष्ट, उत्तराखंड मुक्त विवि के कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक, लोक सेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष ले.जनरल एमसी भंडारी, महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर आदि उपस्थित थे।

"आधी दुनियां" ने हासिल किये तीन चौथाई पदक 
नवीन जोशी नैनीताल। छात्राओं ने 11वें दीक्षांत समारोह में दिखाया कि जमाना उन्हें हाशिये पर धकेलने की कोशिश न करे। कुमाऊं विवि देश को शिक्षित, ज्ञानवान नारियां देने का फर्ज निभा रहा है। विवि द्वारा पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न डा. एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों जिन 44 विद्यार्थियों को कुलपति, गौरादेवी एवं अन्य पदक प्रदान किए। उनमें तीन चौथाई यानी 33 पदक छात्राओं को मिले। इनमें कई छात्राऐं ऐसी हैं जिनको कई पदक मिले। दीक्षांत समारोह में स्नातकोत्तर स्तर पर सर्वोच्च अंक प्राप्त करने पर कर्म दुचेन भूटिया, राजेंद्र मेहता, भावना कोठारी, पीतांबर पंत, मोनिका बिष्ट, गुरजीत कौर, हुमा अंबारी, वंदना शर्मा, नवीन चंद्र, नाजिया, तृप्ता जोशी, कविता, वष्रा रानी, स्वाति साह, दीपक चंद्र, वंदना अधिकारी, नीरा सिंह, डीवी व्हुडरी, सीमा नेगी, प्रतिभा रावल, हषर्ल गुणवंत, दीपक बहादुर चंद्र, रवींद्र सिंह, रचना बाजपेयी, परिधि अग्रवाल व मुकेश राय तथा स्नातक स्तर पर उदिता रानी, क्राइस्टबेल सोरेसम, शिखा शर्मा व आफिया मतीन को स्वर्ण पदक प्राप्त से अलंकृत किया गया। संकायों में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाली छात्राओं उदिता, क्राइस्टबेल, शिखा व आफिया को गौरा देवी स्वर्ण पदक हासिल हुआ। इसके अतिरिक्त एमए संस्कृत में सर्वश्रेष्ठ अंक प्राप्त करने वाली भावना कोठारी व एमएससी रसायन में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने वाली वंदना अधिकारी को डा. डीसी भाकुनी स्मारक स्वर्ण पदक प्रदान किए गए।

बायो डीजल पर शोध करें वैज्ञानिक : कलाम

बायो डीजल से लगेगा प्रदूषण पर अंकुश पूर्व राष्टपति ने कहा भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए हरेक भारतवासी को आना होगा आगे
हल्द्वानी (एसएनबी)। पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने डीजल और पेट्रोल से उत्पन्न प्रदूषण को कम करने के लिए बैज्ञानिकों से बायोडीजल पर शोध और उत्पादन का आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि पंतनगर से नैनीताल आते समय उन्हें दूसरे शहरों की तरह यहां फैल रहे प्रदूषण की जानकारी मिली है। उन्होंने कहा कि बायोडीजल से कार्बन डाई आक्साइड के उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। 
अपने संबोधन में डा. कलाम ने भ्रष्टाचार पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए हरेक भारतवासी को आगे आना होगा। डा. कलाम बुधवार को पंतनगर एयरपोर्ट जाते समय गौरा पड़ाव स्थित रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान संस्थान (डिबेट) में वैज्ञानिकों और छात्रों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्रों में वाहनों की बढ़ती संख्या से वातावरण में कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा अधिक हो रही है। इसको रोकने के लिए बायो-डीजल के उत्पादन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने वैज्ञानिकों से बायो रिसर्च पर ध्यान केन्द्रित करने को कहा। डा. कलाम ने डिबेट के वैज्ञानिकों की सराहना करते हुए कहा कि भविष्य में यह संस्थान पूरी दुनिया को नई दिशा दे सकता है। उन्होंने बायो-डीजल उत्पादन में वृद्धि पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि कार्बन डाई आक्साइड के अत्यधिक उत्सर्जन से मानव स्वास्थ्य, पर्यावरण और जैव विविधता की संरचना बिगड़ सकती है। उन्होंने संबोधन में उन्होंने भ्रष्टाचार पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए हरेक भारतवासी को आगे आना होगा। इस मौके पर डा. कलाम ने बच्चों के सवालों का जवाब देने के साथ ही ज्ञानवृद्धि, कठिन परिश्रम, समस्या और परेशानियों का डटकर मुकाबला करने का मंत्र दिया। उन्होंने भरोसा दिया कि जो छात्र इन चार बातों पर ध्यान केंद्रित करेगा वे सफल होंगे। करीब बीस मिनट के कार्यक्रम में डा. कलाम ने आधे दर्जन से अधिक बच्चों के सवालों के जवाब दिए। सभी बच्चे बिड़ला स्कूल के थे। इस दौरान डा. कलाम ने संस्थान की तमाम प्रयोगशालाओं और विभिन्न कार्यक्रमों की जानकारी ली।संस्थान ने डा. कलाम को स्मृति चिह्न भी भेंट किया। डा. कलाम ने छात्रों ने आटोग्राफ भी दिये।

मूलतः यहाँ क्लिक करके देखें. 

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

बच्चों का दिल जीत गए एपीजे

नवींन जोशी, नैनीताल। पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने स्कूली बच्चों का दिल जीत लिया। वह यहां निर्धारित समय से एक घंटा बाद पहुंचे, लेकिन बच्चों के बीच ऐसे रम गए कि समय कब बीता पता नहीं चला, वह निर्धारित समय से आधा घंटा अधिक समय तक बच्चों के बीच रहे। यहां उन्होंने बच्चों के न केवल सवालों के जवाब दिए, वरन एक शिक्षक या बुजुर्ग से अधिक उन्हें जीवन की दीक्षा भी दी। पूर्व राष्ट्रपति डा. कलाम से यहां बच्चे निर्भीकता से मिले, और उनसे एक वैज्ञानिक होते हुऐ भी राजनीति में जाने (राष्ट्रपति बनने) के कारण भी पूछने लगे। बच्चों ने उनसे यह तक पूछ लिया कि वर्तमान हालातों में यदि भाजपा की सरकार होती तो क्या भ्रष्टाचार पर लगाम लग सकती ? एक बच्ची ने उनसे पूछा वह खगोलविद बनना चाहती है, कैसे बने ? एक बालक ने पूछा देश में आरक्षण की व्यवस्था को वह कितना जायज मानते हैं ? क्या स्कूलों को अच्छे राजनीतिज्ञ बनाने के लिये पाठय़क्रम बनाने चाहिऐ ? काका कलाम ने बड़ी सहजता से इन सवालों के जवाब दिये। उन्होंने बच्चों से कहा, हमेशा ‘मुझे कुछ लेना है’ के बजाय ‘मुझे देश को कुछ देना है’ का भाव रखें। भ्रष्टाचार की खिलाफत अपने घर से अपने पिता को प्रेरित करके करें तो यह समस्या स्वत: समाप्त हो जाऐगी। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा को सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताते हुऐ कहा कि प्राथमिक शिक्षा का रचनात्मक होना जरूरी है। इसके लिये कक्षाओं, शिक्षकों व पाठय़ सामग्री को भी रचनात्मक बनाना होगा। इससे पूर्व कलाम विद्यालय पहुंचे तो सबसे पहले बच्चों से ही हाथ मिलाऐ और फूल ग्रहण किये। बच्चों के सिर पर हाथ रखकर भी उन्होंने आशीर्वाद दिये। ऐसा लगा नहीं कि देश के सर्वोच्च पद पर बैठा और मिसाइल मैन कहा जाने वाला एक युगदृष्टा बच्चों के सामने हो। तभी तो विद्यालय के भीतर न आ पाऐ स्थानीय बच्चे घरों और सड़क के पार से भी उनके स्वागत में नारेबाजी कर रहे थे।
सपना देखो और उसे साकार करो : कलाम
पूर्व राष्ट्रपति ने बच्चों को दी नसीहत, छात्रों को खूब रिझाया
नैनीताल (एसएनबी)। ‘ खूब सपने देखो, सपनों को सोच व परिणाम में बदलो, सपनों को साकार करने की दिशा में काम करो’। यह सीख पूर्व राष्ट्रपति और बच्चों के काका डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने नैनीताल में स्कूली बच्चों को दी। डा. कलाम ने मंगलवार को सेंट मेरी कान्वेंट स्कूल में बच्चों के साथ लगभग डेढ़ घंटा बिताया। इस दौरान उन्होंने बच्चों के साथ अपने जीवन के अनुभव बांटे व जीवन में सफलता के कई गुरु मंत्र दिए। उन्होंने बच्चों के कई सवालों के जवाब भी दिए। 
डा. कलाम कुमाऊं विवि के 11वें दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि भाग लेने के लिए नैनीताल आए हैं। दीक्षांत समारोह की पूर्व संध्या पर वह स्कूली बच्चों से मिले। सेंट मेरी कांवेंट स्कूल सभागार में अपने वक्तव्य की शुरुआत उन्होंने बच्चों में यह विश्वास भरते हुऐ की कि उनमें महानता है। उन्होंने बच्चों को बताया कि कैसे बड़े लक्ष्यों, कड़ी मेहनत से अच्छी पुस्तकों का लगातार अध्ययन करने, ज्ञान को समाहित कर उसका प्रयोग देश-समाज की समस्याओं को दूर करके महानता हासिल की जा सकती है। अपनी पुस्तक ‘विंग्स ऑफ फायर’ का उल्लेख करते हुए उन्होंने बच्चों में यह विश्वास जगाया कि वह क्षमता, अच्छाई, विश्वास और सपनों सरीखे विचारों के पंखों के साथ पैदा हुऐ हैं, न कि रोने के लिये, क्योंकि उनमें पंख हैं। उन्होंने कहा कि ज्ञान व्यक्ति को रचनात्मक बनाता है, लेकिन इसके लिये विचारों में रचनात्मकता और चरित्र की सुंदरता, घर का अच्छा माहौल होने चाहिए। देश के ‘विजन-2020’ पर उन्होंने कहा कि जहां 70 फीसद ग्रामीणों का उत्थान हो, उन्हें ऊर्जा व साफ पानी मिले तथा सामाजिक व आर्थिक कारणों से किसी को शिक्षा लेने से न रोका जाऐ, भ्रष्टाचार, गरीबी और खासकर महिलाओं व बच्चों के साथ होने वाले अपराध न हों, वह ऐसे भारत की कल्पना करते हैं। उन्होंने खासकर बालिकाओं से निडर, ज्ञानवान, संस्कृतिनिष्ठ व सशक्त बनने का आह्वान किया और विश्वास दिलाया कि महिलाऐं सशक्त होंगी तो देश स्वत: विकसित राष्ट्र बन जाऐगा।
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रविवार, 31 जुलाई 2011

भौर्याल ने किया भवन व छात्रावास का शिलान्यास



नर्सिग होम स्कूल का होगा कायाकल्प
नैनीताल (एसएनबी)। मुख्यालय में पुनर्जीवित किये जा रहे 1967 में बने मेडिकल कालेज के बीडी पांडे राजकीय नर्सिग स्कूल के रूप में नये स्वरूप को सुविधा संपन्न किये जाने की कवायद शुरू हो गई है। स्कूल में करीब 10 करोड़ रुपये नये भवन व छात्रावास के निर्माण, उपकरणों व कर्मचारियों के वेतन के लिए अवमुक्त किये गये हैं। इसी धनराशि से प्रस्तावित निर्माणों का प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री बलवंत सिंह भौर्याल ने रविवार को शिलान्यास किया। इस मौके पर उन्होंने दावा किया कि कायरे की डीपीआर तैयार की जा रही है, जबकि भवन व छात्रावास निर्माण के लिए Rs5.35 करोड़, फर्नीचर व उपकरणों के लिये Rs2.6 करोड़ व वेतन के लिये Rs2.05 करोड़ अवमुक्त हो गये हैं। हालांकि चिकित्सा विभाग के अधिकारी केवल 26 लाख रुपये ही टोकन मनी के रूप में मिलने की बात कर रहे थे। इससे पूर्व उन्होंने पशु कल्याण बोर्ड उपाध्यक्ष शांति मेहरा, विधायक खड़क सिंह बोहरा के साथ पूजा-अर्चना के साथ निर्माण कायरे का शिलान्यास किया। इस मौके पर सिस्टर ललिता बिष्ट ने नसरे के लिये अलग निदेशालय की मांग के साथ ही नसरे की विभिन्न समस्याएं मंत्री के समक्ष रखीं। भाजपा नेता दिनेश आर्य, हेम चंद्र आर्य, विधायक सहित अन्य नेताओं ने विचार रखते हुए प्रदेश सरकार द्वारा चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में किये जा रहे कायरे का बखान किया। इस मौके पर निदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य डा. जेसी दुर्गापाल, सीएमओ डा. डीएस गब्र्याल, सीएमएस डा. एनएस भाट व डा. पंकज माथुर, मीनाक्षी नयाल आदि मौजूद थे।
लापरवाह है अवस्थापना विकास निगम : भौर्याल
नैनीताल। प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा व सहकारिता मंत्री बलवंत सिंह भौंर्याल ने राज्य के अवस्थापना विकास निगम को नकारा करार दिया। उन्होंने कहा कि निगम को अल्मोड़ा मेडिकल कालेज का कार्य दिया गया पर वह डेढ़ वर्ष में इसकी डीपीआर तक नहीं बना पाया। इसी कारण नैनीताल में नर्सिंग स्कूल के छात्रावास व भवनों का निर्माण कार्य यूपी राज्य निर्माण निगम को दे दिये हैं। उन्होंने यूपी निगम के माध्यम से यहां निर्माण कार्य एक वर्ष के भीतर पूरे करा लेने का दावा भी किया। निर्माण एजेंसी यूपी राज्य निर्माण निगम से एक वर्ष में कार्य पूरा कराने का समयबद्ध बांड भरा गया है, कार्य पूरा न हुआ तो निगम से पेनाल्टी वसूल की जाएगी।

शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

‘ठेके’ पर डाक्टर, ‘ठेंगे’ पर मरीज


147 अस्पतालों में 127 चिकित्सक, पहाड़ से तबादले को अधिकारियों पर दबाव
नवीन जोशी नैनीताल। कुमाऊं मंडल के मुख्यालय व वीआईपी जनपद नैनीताल में चिकित्सा विभाग की कहानी राज्य की समूची व्यवस्था की तस्वीर बयां करने के लिए काफी है। पहली नजर में आप इसे अजूबा मान सकते हैं कि जिले में 147 छोटे-बड़े चिकित्सालयों के सापेक्ष केवल 127 चिकित्सक ही उपलब्ध हैं और स्वीकृत 229 पदों के सापेक्ष 102 पद रिक्त हैं, बावजूद अधिकारी जिले में एक भी चिकित्सालय के चिकित्सक विहीन न होने का दावा कर रहे हैं। यह दावा कमोबेश सही भी है लेकिन यह कैसे संभव है, इसके लिए जो प्रबंध किये गये हैं, वह गंभीर सवाल खड़े करने वाले हैं। पहले जिले में मौजूद चिकित्सालयों व चिकित्सकों के पदों व उपलब्धता की बात कर ली जाए- यहां छह बड़े चिकित्सालय, छह टीवी से संबंधित सेनिटोरियम, क्लीनिक आदि, चार सीएचसी, छह पीएससी, 13 एडीशनल पीएससी, एक-एक पुलिस व हाईकोर्ट हास्पिटल, 31 राजकीय एलोपैथिक चिकित्सालय, दो ग्रामीण महिला हास्पिटल, 67 ग्रामीण उप केंद्र तथा सात अटल आदर्श गांवों में खोले गये अस्थाई मिलाकर कुल 147 चिकित्सालय मौजूद हैं। इन चिकित्सालयों में एलोपैथिक डाक्टरों के 106 स्वीकृत पदों के सापेक्ष केवल 52 चिकित्सक उपलब्ध हैं, जबकि इससे अधिक 54 पद रिक्त हैं। इसी तरह 25 में से 21 महिला चिकित्सक, 64 में से 31 विशेषज्ञ चिकित्सक व 34 में से 23 चिकित्सा अधिकारी ही मौजूद हैं। यानी एक लाइन में कहें तो जिले के 147 अस्पतालों में 229 स्वीकृत पदों के सापेक्ष केवल 127 चिकित्सक ही उपलब्ध हैं। जाहिर है 102 पद रिक्त हैं। बावजूद जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा.डीएस गब्र्याल के अनुसार जिले में एक भी अस्पताल चिकित्सक विहीन नहीं है। उनका दावा इस आधार पर सही भी ठहराया जा सकता है कि जिले के चिकित्सक विहीन चिकित्सालयों को सेवानिवृत्ति के बाद संविदा पर महज एक वर्ष के लिए रखे गये करीब 38 बूढ़े चिकित्सकों से भरा गया है, जबकि शेष बची जगहों पर होम्योपैथिक व चिकित्सा की अन्य विधाओं के चिकित्सकों से भरा गया है। चिकित्सा नियमावली का पालन किया जाए तो होम्योपैथिक चिकित्सक एलोपैथिक दवाइयां नहीं दे सकते हैं। इसी तरह आयुव्रेदिक चिकित्सक भी अपनी ही पैथी की दवाइयां दे सकते हैं लेकिन स्वास्थ्य महानिदेशालय ने फिलहाल चिकित्सकों को ड्रग कंट्रोल एक्ट के दायरे से बाहर रखा हुआ है। इस परिधि में केवल फार्मासिस्ट ही लाये गये हैं। कहा जा सकता है कि झगड़े की जड़ फार्मासिस्ट को माना गया है, वरना इस तरह का फरमान जारी करने से पहले दस बार सोचा जाता। निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि जिले में कामचलाऊ व्यवस्था के तहत चिकित्सालयों को चिकित्सक विहीन न रखने की आंकड़ेबाजी तो अच्छी की गई है, पर इसका लाभ जनता को मिल रहा है या नहीं, इसकी किसी को चिंता नहीं है। बहरहाल स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कुछ हद तक आस्त हैं कि राज्य के मेडिकल कालेजों से सस्ती फीस पर डाक्टरी करने वाले चिकित्सकों की खेप आने के बाद समस्या का काफी हद तक समाधान निकल आएगा।