एक स्थान पर ही आसान भोजन मिल जाने से नहीं दे रहीं झील की पारिस्थितिकी में योगदान
विशेषज्ञ मछलियों की जिंदगी और भावी पीढिय़ों पर भी जता रहे खतरा
नवीन जोशी, नैनीताल। जी हां, भले देश की आधी आबादी की आज भी रोटी के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा हो, पर देश—दुनिया की मशहूर नैनी झील की परियां कही जाने वाली मछलियां ब्रेड-बिस्कुट जैसा 'जंक फूड' डकार रही हैं। आसानी से मिल रहे इस लजीज भोजन का स्वाद मछलियों की जीभ पर ऐसा चढ़ा है कि वह अपने परंपरागत जू प्लेंकन, काई, शैवाल, छोटी मछलियों व अपने अंडों जैसे परंपरागत भोजन की तलाश में झील में घूमने के रूप में तनिक भी वर्जिश करने की जहमत उठाना नहीं चाहतीं। ऐसे में वह इतनी मोटी व भारी भरकम हो गई हैं की कल तक अपनी सबसे बड़ी दुश्मन मानी जाने वाली बतखों को भी आंखें दिखाने लगी हैं। लेकिन विशेषज्ञ इस स्थिति को बेहद अस्थाई बताते हुऐ खुद इन मछलियों के जीवन तथा झील के पारिस्थितिकी लके लिये बड़ा खतरा मान रहे हैं।
नैनी झील देश—दुनिया का एक ख्याति प्राप्त सरोवर है, और किसी भी अन्य जलराशि की तरह इसका भी अपना एक पारिस्थितिकी तंत्र है, किन्तु सरोवरनगरी की इस प्राणदायिनी झील में स्थानीय लोगों व सैलानियों के यहां पलने वाली मछलियों के प्रति दर्शाऐ जाने वाले प्रेम के अतिरेक के कारण झील के पारिस्थितिकी तंत्र के साथ ही इनकी अपनी जिंदगी पर खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। लोग अपने मनोरंजन तथा धार्मिक मान्यताऑ के चलते स्वयं के लाभ के लिये इन्हें दिन भर खासकर तल्लीताल गांधी मूर्ति के पास से ब्रेड और बिस्कुट खिलाते रहते हैं। तल्लीताल में बकायदा झील किनारे ब्रेड-बंद व परमल आदि की दुश्मन खुल गई है, जहां से रोज हजारों रुपये की सामग्री मछलियों को खिलाई जा रही है, जबकि बगल में ही प्रशासन ने खानापूर्ति करते हुऐ मछलियों को भोजन खिलाना प्रतिबंधित बताता हुआ बोर्ड लगा रखा है। यह लजीज भोजन चूँकि इन्हें बेहद आसानी से मिल जाता है, इसलिये हजारों की संख्या में पूरे झील की मछलियां इस स्थान पर एकत्र हो जाती हैं। इससे जहां वह झील में मौजूद भोजन न खाकर झील के पारिस्थितिकी तंत्र में अपना योगदान नहीं दे रहे हैं, वहीं उनकी भोजन की तलाश में वर्जिश भी नहीं हो रही, इससे वह मोटी होती जा रही हैं। भारत रत्न पं. गोविंद वल्लभ पंत उच्च स्थलीय प्राणि उद्यान के वरिष्ठ जंतु चिकित्सक डा. एलके सनवाल इस स्थिति को बेहद खतरनाक मानते हैं। उनके अनुसार मनुष्य की तरह ही जीव—जंतुऑ में भी अपने परंपरागत भोजन के बजाय 'जंक फूड' खाने से शरीर को एकमात्र तत्व प्रोटीन मिलता है, जिससे वह मोटे हो जाते हैं। परिणामस्वरूप उन्हें अनेक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है तथा जल्दी मृत्यु हो जाती है। डा. सनवाल को आशंका है कि आगे दो—तीन पीढिय़ों के बाद उनमें मनुष्य की भांति ही 'स्पर्म' बनने कम हो जाएँगे, जिससे वह नयी संतानोत्पत्ति भी नहीं कर पाएँगी, अंडों से बच्चे उत्पन्न नहीं होंगे, अथवा उनके बच्चों में कोई परेशानी आ जाऐगी। वह झील की सफाई का अपना परंपरागत कार्य पूरी तरह बंद कर देंगे। ब्रेड-बंद खिलाने से उनका प्राकृतिक 'हैबीटेट' ही प्रभावित हो गया है। इससे उनके अवैध शिकार को भी प्रोत्साहन मिल रहा है, कई लोग एक स्थान पर इस तरह मिलने वाली इन मछलियों को आसानी से अपना शिकार बना लेते हैं। बरसात के दिनों में हजारों मछलियां यहीं से झील के गेट खुलने के कारण बलियानाले में बहकर जान गंवा बैठती हैं। वह इस समस्या से निदान के लिये झील के तल्लीताल शिरे पर ऊंची लोहे की जाली लगाने की आवश्यकता जताते हैं, ताकि लोग इस तरह उन्हें ब्रेड-बंद न खिला पाएँ।
हालांकि एक अन्य वर्ग भी है जो नगर में पर्यटन के दृष्टिकोण से मछलियों को सीमित मात्रा में बाहरी भोजन खिलाने का पक्षधर है। कुमाऊं विवि के वनस्पति विज्ञान विभाग के डा. ललित तिवारी कहते हैं कि इससे एक आनंद की अनुभूति होती है। सैलानियों के लिये यह एक आकर्षण है, साथ ही धार्मिक मान्यताऑ के अनुसार मछलियों को भोजन खिलाने से चित्त शांत होता है। बहरहाल, वह भी सीमित मात्रा की ही हिमायत करते हैं। झील विश्वास प्राधिकरण के अधिकारी भी इस स्थिति को गंभीर मान रहे हैं। उनका मानना है कि मछलियों को लगाई जा रही जंक फूड की लत गत वर्षों से दुबारा कृत्रिम आक्सीजन के जरिये जिलाई जा रही नैनी झील के लिये बेहद खतरनाक हो सकता है।
नैनी झील देश—दुनिया का एक ख्याति प्राप्त सरोवर है, और किसी भी अन्य जलराशि की तरह इसका भी अपना एक पारिस्थितिकी तंत्र है, किन्तु सरोवरनगरी की इस प्राणदायिनी झील में स्थानीय लोगों व सैलानियों के यहां पलने वाली मछलियों के प्रति दर्शाऐ जाने वाले प्रेम के अतिरेक के कारण झील के पारिस्थितिकी तंत्र के साथ ही इनकी अपनी जिंदगी पर खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। लोग अपने मनोरंजन तथा धार्मिक मान्यताऑ के चलते स्वयं के लाभ के लिये इन्हें दिन भर खासकर तल्लीताल गांधी मूर्ति के पास से ब्रेड और बिस्कुट खिलाते रहते हैं। तल्लीताल में बकायदा झील किनारे ब्रेड-बंद व परमल आदि की दुश्मन खुल गई है, जहां से रोज हजारों रुपये की सामग्री मछलियों को खिलाई जा रही है, जबकि बगल में ही प्रशासन ने खानापूर्ति करते हुऐ मछलियों को भोजन खिलाना प्रतिबंधित बताता हुआ बोर्ड लगा रखा है। यह लजीज भोजन चूँकि इन्हें बेहद आसानी से मिल जाता है, इसलिये हजारों की संख्या में पूरे झील की मछलियां इस स्थान पर एकत्र हो जाती हैं। इससे जहां वह झील में मौजूद भोजन न खाकर झील के पारिस्थितिकी तंत्र में अपना योगदान नहीं दे रहे हैं, वहीं उनकी भोजन की तलाश में वर्जिश भी नहीं हो रही, इससे वह मोटी होती जा रही हैं। भारत रत्न पं. गोविंद वल्लभ पंत उच्च स्थलीय प्राणि उद्यान के वरिष्ठ जंतु चिकित्सक डा. एलके सनवाल इस स्थिति को बेहद खतरनाक मानते हैं। उनके अनुसार मनुष्य की तरह ही जीव—जंतुऑ में भी अपने परंपरागत भोजन के बजाय 'जंक फूड' खाने से शरीर को एकमात्र तत्व प्रोटीन मिलता है, जिससे वह मोटे हो जाते हैं। परिणामस्वरूप उन्हें अनेक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है तथा जल्दी मृत्यु हो जाती है। डा. सनवाल को आशंका है कि आगे दो—तीन पीढिय़ों के बाद उनमें मनुष्य की भांति ही 'स्पर्म' बनने कम हो जाएँगे, जिससे वह नयी संतानोत्पत्ति भी नहीं कर पाएँगी, अंडों से बच्चे उत्पन्न नहीं होंगे, अथवा उनके बच्चों में कोई परेशानी आ जाऐगी। वह झील की सफाई का अपना परंपरागत कार्य पूरी तरह बंद कर देंगे। ब्रेड-बंद खिलाने से उनका प्राकृतिक 'हैबीटेट' ही प्रभावित हो गया है। इससे उनके अवैध शिकार को भी प्रोत्साहन मिल रहा है, कई लोग एक स्थान पर इस तरह मिलने वाली इन मछलियों को आसानी से अपना शिकार बना लेते हैं। बरसात के दिनों में हजारों मछलियां यहीं से झील के गेट खुलने के कारण बलियानाले में बहकर जान गंवा बैठती हैं। वह इस समस्या से निदान के लिये झील के तल्लीताल शिरे पर ऊंची लोहे की जाली लगाने की आवश्यकता जताते हैं, ताकि लोग इस तरह उन्हें ब्रेड-बंद न खिला पाएँ।
हालांकि एक अन्य वर्ग भी है जो नगर में पर्यटन के दृष्टिकोण से मछलियों को सीमित मात्रा में बाहरी भोजन खिलाने का पक्षधर है। कुमाऊं विवि के वनस्पति विज्ञान विभाग के डा. ललित तिवारी कहते हैं कि इससे एक आनंद की अनुभूति होती है। सैलानियों के लिये यह एक आकर्षण है, साथ ही धार्मिक मान्यताऑ के अनुसार मछलियों को भोजन खिलाने से चित्त शांत होता है। बहरहाल, वह भी सीमित मात्रा की ही हिमायत करते हैं। झील विश्वास प्राधिकरण के अधिकारी भी इस स्थिति को गंभीर मान रहे हैं। उनका मानना है कि मछलियों को लगाई जा रही जंक फूड की लत गत वर्षों से दुबारा कृत्रिम आक्सीजन के जरिये जिलाई जा रही नैनी झील के लिये बेहद खतरनाक हो सकता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें