शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

उत्तराखंड की नौकरशाही में हुए भारी फेरबदलों की पूरी सूची




::संशोधन::आशीष जोशी बने रहेंगे चंपावत के डीएम
प्रदेश शासन ने शुक्रवार को किए गए आईएएस अफसरों के तबादलों में कुछ फेरबदल किया है। शनिवार को अपर सचिव कार्मिक अरविन्द सिंह ह्यांकी ने बताया कि विगत दिन हुए प्रशासनिक अधिकारियों के स्थानांतरण में आंशिक संशोधन किया गया है। इसके तहत जिलाधिकारी चम्पावत आशीष जोशी यथावत रहेंगे। जिलाधिकारी उत्तरकाशी अक्षत गुप्ता को जिलाधिकारी अल्मोड़ा तथा मुख्य विकास अधिकारी वी. शणमुगम चमोली को जिला अधिकारी बागेश्वर स्थानांतरित किया गया है।

पूरा होगा "ईको फ्रेंडली" घर में रहने का सपना


बिना ईट, सीमेंट व लकड़ी के ही बन जाएंगी इमारतें
सीबीआरआई रुड़की बेकार चीजों से तैयार कर रहा ‘ईको फ्रेंडली’ वैकल्पिक उत्पाद
धान की भूसी और चीड़ की पत्तियों से बनेगी लकड़ी
भट्ठों की राख से बनेगा रासायनिक सीमेंट और पुराने मलबे से बनेंगी ईटें 

नवीन जोशी नैनीताल। क्या आप अपने वर्तमान घर की जगह पूरी तरह पर्यावरण मित्र (ईको फ्रेंडली) तकनीक से बने घर में रहना चाहेंगे। जी हां, अब यह संभव है। भवन निर्माण में बहुत दिनों तक प्राकृतिक संसाधनों पत्थर, ईट व लकड़ी तथा पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले सीमेंट का प्रयोग नहीं करना पड़ेगा। देश के वैज्ञानिक इस दिशा में काफी आगे बढ़ गये हैं कि कैसे भवन निर्माण के लिए वैकल्पिक और ईको फ्रेंडली उत्पाद तैयार किये जाएं। भवन निर्माण के क्षेत्र में कार्य करने वाले वैज्ञानिक संस्थान सीबीआरआई रुड़की के वैज्ञानिकों ने बेकार फेंकी जाने वाली धान की भूसी और चीड़ की पत्तियों से लकड़ी का विकल्प तैयार कर लिया है। इसी तरह पुराने भवनों के मलबे से नई पक्की ईटें बनाई जाएंगी, जबकि बड़ी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन कर पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा साबित होने वाले सीमेंट की जगह भट्ठियों की राख (फ्लाई ऐश) से रासायनिक सीमेंट तैयार कर लिया गया है। यदि आप चिंतित हैं कि भवन निर्माण के लिए ही कितने हरे-भरे पेड़ों की बलि ले ली जाती है, तो सीबीआरआई रुड़की आपकी इस चिंता को काफी पहले से दूर करने में लगा हुआ है। सीबीआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. एसके सिंह बुधवार ने एक विशेष भेंट में सीबीआरआई में भवन निर्माण के लिए तैयार किये जा रहे ईको-फ्रेंडली उत्पादों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सीबीआरआई ‘वुड विदाउट ट्री’ यानी पेड़ों के बिना लकड़ी प्राप्त करने की तकनीक पर कार्य कर रहा है। धान की भूसी से मजबूत लकड़ी तैयार कर ली गई है और इसकी तकनीकी ग्वालियर की ‘ऊं नम: शिवाय एजेंसी’ को हस्तांतरित भी कर दी गई है, जो कि धान की भूसी से बनी लकड़ी बाजार में उतारने जा रही है। कई अन्य कंपनियां भी सीबीआरआई से इस तकनीक को लेने को उद्यत हैं। इसी तरह चीड़ की पत्तियों (पिरूल) से लकड़ी बनाने की तकनीक भी तैयार हो चुकी है। इसे भी किसी कंपनी को हस्तांतरित करने की प्रक्रिया चल रही है। अपनी मात्रा के बराबर ही कार्बन डाई आक्साइड उत्सर्जित करने वाले परंपरागत सीमेंट की जगह भट्ठियों की फ्लाई ऐश में सोडियम सिलीकेट सरीखे रासायनिक पदार्थ मिलाकर ईको फ्रेंडली सीमेंट का निर्माण भी सीबीआरआई के वैज्ञानिकों ने कर लिया है। पुराने भवनों के ध्वस्तीकरण से प्राप्त होने वाले और फेंकने में परेशानी बनने वाले मलबे को प्रोसेस कर कंक्रीट, टाइल, ईट, ब्लाक तथा पेविंग ब्लाक बनाने में सफलता अर्जित कर ली गई है। डा. सिंह ने कहा कि जल्द यह उत्पाद भी खुले बाजार में उपलब्ध होंगे और पर्यावरण प्रेमियों का पर्यावरण मित्र घरों में रहने का सपना पूरा हो सकेगा।
मूलतः यहाँ देखें-प्रथम पृष्ठ पर 

शनिवार, 7 अप्रैल 2012

एक्टर नहीं बनना चाहते थे कबीर बेदी



नैनीताल में जीते ‘कैंडल कप’ ने दिखाया तीन महाद्वीपों का रास्ता  यहाँ ‘जूलियस सीजर’ नाटक में अभिनय के साथ रखा था कबीर बेदी ने अभिनय की दुनिया में कदम

नवीन जोशी नैनीताल। इंसान दुनिया में जितना भी बड़ा मुकाम पा ले, उसके लिए जीवन की पहली सफलता सबसे ज्यादा मायने रखती है। यह उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। भारतीय उपमहाद्वीप के साथ यूरोप और अमेरिका में अभिनय के जौहर दिखा चुके सिने कलाकार कबीर बेदी भी अपनी पहली सफलता को भूले नहीं हैं। उन्होंने कहा कि नैनीताल से उत्पन्न हुए थियेटर के शौक में उन्होंने तीन दशक में तीन महाद्वीपों तक अभिनय की यात्रा की। वह सरोवरनगरी के शेरवुड कालेज में अभिनय के लिए मिले पहले पुरस्कार ‘कैंडल कप’ को नहीं भूलते। यह उन्हें जीवन का पहला नाटक ‘जूलियस सीजर’ करने से मिला था। हालांकि वे यह भी कहते हैं कि वह एक्टर नहीं बनना चाहते थे। 
शेरवुड कालेज में बच्चों के साथ खुद भी बच्चे बने कबीर बेदी, अजिताभ बच्चन अपने 1962  बीच के सहपाठियों के साथ 
कबीर बेदी शेरवुड कालेज के छात्र रहे हैं। यहां के बाद वह दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कालेज में पढ़े। 1962 में वह शेरवुड से पढ़ाई कर लौटे थे। इस बीच नैनीताल व शेरवुड की यादें उन्हें यहां वापस लाती रहीं। बृहस्पतिवार को भी वह शेरवुड में थे। उनके बैच के डेढ़ दर्जन छात्र 50 साल बाद ‘रियूनियन’ में मिल रहे थे। इन सबके बीच अकेले कबीर हर ओर जिंदादिली के साथ छाये रहे। वह बच्चों के साथ फोटो खिंचवा रहे थे। उनकी पेंटिंग को निहारते हुए उन्हें सुझाव भी दे रहे थे। वह अपने दौर के बूढ़े सेवानिवृत्त चतुर्थ श्रेणी कर्मी दुर्गा दत्त से भी हाथ मिला रहे थे। उन्होंने उसे 500 रुपये भेंट भी दिये। उनका कहना था जहां से जीवन की शुरूआत होती है, वह जगह हमेशा प्यारी होती है। यहां उन्होंने जीवन के प्रारंभिक वे दिन बिताए जब बच्चे भविष्य के सांचे में ढाले जाते हैं। यहां से सीखे मूल्यों, सिद्धांतों ने उनको जीवन में आगे बढ़ने और मुश्किलों का सामना करने में मदद की। इसलिए इस स्थान और कालेज के प्रति शुक्रगुजार का भाव रहता है। शेरवुड से ही उन्होंने अभिनय की शुरूआत की। जूलियस सीजर किया तो कैंडल कप मिला। इससे आगे प्रेरणा मिली। उन्होंने कहा कि वह कलाकार बनना भी नहीं चाहते थे। नैनीताल से थियेटर का शौक लगा और थियेटर करते-करते वह तीन दशक में तीन-तीन महाद्वीपों तक अभिनय की यात्रा कर गये। जेम्स बांड सीरीज की ऑक्टोपस व बोल्ड एंड ब्यूटीफुल सरीखी हॉलीवुड फिल्में भी उनके खाते में हैं। इन दिनों वह प्रकाश झा की माओवादी समस्या की चीर-फाड़ करती फिल्म ‘चक्रव्यूह’ की शूटिंग में व्यस्त हैं। वह पहाड़ों की खूबसूरती के मुरीद हैं। उन्होंने कहा कि यहां की लोकेशन कमाल की है। ये दुनिया की बेहतरीन लोकेशन से किसी मायने में कम नहीं हैं। यहां फिल्म निर्माण की स्वीकृति आसानी से मिले तो प्रदेश के साथ देश के घरेलू पर्यटन को खासा लाभ मिल सकता है। वह फिल्मी दुनिया से भी अपील करते हैं कि दूसरे देश जाने से बेहतर अपने देश में उत्तराखंड के पहाड़ों- हिमालय की खूबसूरत लोकेशनॉ में फिल्में बना कर देश के घरेलू पर्यटन को बढाने में भी अपना योगदान दें ।
मूलतः इस लिंक पर देखें: http://rashtriyasahara.samaylive.com/epapermain.aspx?queryed=14&eddate=04%2f06%2f2012

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

शिक्षा विभाग के कर्मियों की बनेगी ई-कुंडली



एक क्लिक पर पता चल जाएगा विभाग में आने से लेकर स्थानांतरणों-पदोन्नतियों का ब्योरा 
एनआईसी मध्य प्रदेश की मदद से तेजी से चल रहा कार्य
नवीन जोशी, नैनीताल। सर्वाधिक कर्मचारियों वाले शिक्षा विभाग में अस्त- व्यस्तता के दिन लदने की उम्मीद की जा सकती है। अब विभाग के प्रत्येक अधिकारी-कर्मचारी की कुंडली इलेक्ट्रानिक फार्म में न केवल उच्चाधिकारियों वरन आम जनता द्वारा भी खोली जा सकेगी। ऐसे में न तो कोई कर्मी ताउम्र सुगम स्थानों में मौज कर सकेगा और न ही कोई दुर्गम स्थानों की परेशानियां झेलने को मजबूर रहेगा। 
एनआईसी मध्य प्रदेश की सहायता से प्रदेश के शिक्षा विभाग के कर्मियों की ई- कुंडली बनाने का कार्य सर्वोच्च प्राथमिकता से चल रहा है। अगले माह तक ई-कुंडली के सार्वजनिक होने की उम्मीद की जा सकती है। प्रदेश का सबसे बड़ा विभाग होने के कारण शिक्षा विभाग और विवादों का चोली दामन का साथ रहा है। मनमाने तबादलों को लेकर लाखों रुपये की रिश्वत और भ्रष्टाचार के आरोप यहां आम हैं। राज्य में बनी सभी तबादला नीतियां इस विभाग में आकर दम तोड़ती गई। शायद यही कारण रहा कि उत्तराखंड बनने के बाद से चाहे जिस भी दल की सरकार रही, विभागीय मंत्रियों पर चुनाव हारने का दुर्योग  जुड़ता चला गया। इधर, पिछली भाजपा सरकार ने जाते-जाते मध्य प्रदेश की तर्ज पर एनआईसी मध्य प्रदेश की सहायता से विभागीय कर्मियों की ई-कुंडली बनाने का कार्य शुरू किया, ताकि विभाग की भारी-भरकम फौज पर नजर रखी जा सके। इस पर इन दिनों तीव्र गति से कार्य चल रहा है। कुमाऊं मंडल में कुल 26,234 कर्मियों के आंकड़े ई-कुंडली में दर्ज होने हैं, जिनमें से ताजा जानकारी के अनुसार बुधवार तक 24,895 के आंकड़े दर्ज हो चुके हैं। केवल पिथौरागढ़, नैनीताल और ऊधमसिंह नगर जिलों में मिलाकर 339 कर्मचारियों के आंकड़े दर्ज होने शेष हैं। पूछे जाने पर अपर निदेशक डा. कुसुम पंत ने उम्मीद जताई कि अप्रैल माह तक ई- कुंडली इंटरनेट के माध्यम से सर्वसुलभ हो जाएगी। कोई भी व्यक्ति किसी भी विभागीय अधिकारी से लेकर शिक्षक-शिक्षिकाओं, तृतीय वर्गीय तथा चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की कुंडली इंटरनेट पर उपलब्ध होगी। 

गुरुवार, 22 मार्च 2012

भूस्खलन से पहले मिल जाएगी जानकारी

राज्य में भूस्खलन चेतावनी प्रणाली विकसित करने की तैयारी कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभाग व एटीआई की आपदा प्रबंधन विंग करेगी मिलकर कार्य 
नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश में भूस्खलनों से होने वाले नुकसानों को रोकने के लिए ‘भूस्खलन पूर्वानुमान प्रविधि’ (अर्ली वार्निग सिस्टम फार लैंड स्लाइड) विकसित करने का कार्य शुरू हो रहा है। उत्तराखंड प्रशासन अकादमी के आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ एवं कुमाऊं विवि के भू-विज्ञान विभाग इस दिशा में मिल कर कार्य करेंगे। अकादमी में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान नई दिल्ली के सहयोग से शुरू हुई कार्यशाला में इस बात पर सहमति बनी है। 
बृहस्पतिवार को उत्तराखंड प्रशासन अकादमी में भूस्खलनों पर शुरू हुई तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के शुभारंभ मौके पर बतौर मुख्य अतिथि कुमाऊं विवि के कुलपति ने इस बारे में कुविवि की भूमिका की घोषणा की। उन्होंने उम्मीद जताई कि उत्तराखंड जैसे अत्यधिक भूस्खलनों की संभावना वाले राज्य में ऐसी संगोष्ठियां लाभदायक होंगी। संगोष्ठी में जीएसआई कोलकाता के निदेशक जी. मुरलीधरन, उत्तराखंड मौसम विज्ञान के निदेशक आनंद शर्मा, राज्य आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के पूर्व निदेशक कुविवि के भूविज्ञान विभाग के प्रो. आरके पांडे, अपर जिलाधिकारी ललित मोहन रयाल व कुविवि के विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो. सीसी पंत आदि ने भी उपयोगी विचार रखे तथा प्रदेश की भूस्खलन संवेदनशीलता के मद्देनजर प्रभावी उपाय किये जाने पर बल दिया। संचालन जेसी ढौंढियाल ने किया। बताया गया कि संगोष्ठी में अगले दो दिन देश के 15 राज्यों से आये विशेषज्ञ करीब 35 शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे तथा आखिरी दिन नगर के आधार बलियानाला व अन्य क्षेत्रों की फील्ड स्टडी भी करेंगे। 

बुधवार, 21 मार्च 2012

अब उत्तराखंड हाईकोर्ट से हिंदी में भी ले सकेंगे फैसले की प्रति

नैनीताल/देहरादून (एसएनबी)। उत्तराखंड बार काउंसिल की उत्तराखंड उच्च न्यायालय में अंग्रेजी के साथ ही हिंदी भाषा के उपयोग के लिए शुरू की गई मुहिम आखिर रंग लायी है। यहां होने वाले निर्णय अब हिन्दी में भी प्राप्त किए जा सकेंगे। हालांकि केस दायर करने और बहस की प्रक्रिया अब भी अंग्रेजी में ही होगी। बार कौंसिल ऑफ उत्तराखंड की मांग के बाद उत्तराखंड शासन द्वारा इस संबंध में निबंधक उच्च न्यायालय नैनीताल को आवश्यक व्यवस्थाएं करने के लिए दिशा निर्देश जारी किए गए हैं। 
बार कौंसिल ऑफ उत्तराखंड के चेयरमैन अधिवक्ता पृथ्वीराज चौहान ने कहा कि बार कौंसिल द्वारा 17 अप्रैल 2011 को (शेष पेज 15) कोर्ट द्वारा किये जाने वाले निर्णयों, डिक्री व आदेशों में अंग्रेजी के साथ हिंदी के समान रूप से प्रयोग को शासनादेश जारी प्रस्ताव शासन को सौंपा था। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय में हिन्दी के प्रयोग होने से वादकारी व अधिवक्ता लाभान्वित होंगे। उत्तराखंड शासन के राजभाषा अनुभाग ने गत दो मार्च को न्यायालय द्वारा किये जान वाले निर्णयों, डिक्री व आदेशों के लिए अंग्रेजी के साथ हिंदी भाषा का समान रूप से प्रयोग किये जाने के बाबत शासनादेश जारी किया। बार काउंसिल के सदस्यों ने इसे पूर्व सरकार के कार्यकाल में हुआ महत्वपूर्ण फैसला बताया है। बुधवार को बार काउंसिल सभागार नैनीताल में आयोजित पत्रकार वार्ता में बार काउंसिल के सचिव विजय सिंह ने पूर्व अध्यक्ष डा. महेंद्र पाल को आज ही प्राप्त हुए शासनादेश की प्रति की जानकारी दी। डा. पाल ने कहा कि उनका अंग्रेजी से कोई विरोध नहीं है लेकिन खुशी है कि उनकी ओर से शुरू की गई मुहिम सफल रही है। इस शासनादेश के बाद हिंदी में याचिका दायर की जा सकेंगी और अधिवक्ता हिंदी में जिरह कर सकते हैं। उन्होंने शासनादेश के अधिकाधिक प्रचार-प्रसार की आवश्यकता जताई ताकि लोग इसका लाभ उठा सकें। पत्रकार वार्ता में काउंसिल के सदस्य डीके शर्मा, नंदन कन्याल, मंगल सिंह चौहान, वरिष्ठ अधिवक्ता केएस वर्मा, हाईकोर्ट बार एसोसिऐशन के सचिव विनोद तिवारी, स्टेंडिंग काउंसिल पीसी बिष्ट व मानव शर्मा भी मौजूद रहे।

सोमवार, 19 मार्च 2012

अब सहनी होगी ‘अल नीनो’ की गरमी


नवीन जोशी, नैनीताल। अगले कुछ वर्षो के दौरान गरमी की अधिक मार पड़ सक ती है। मौसम वैज्ञानिक का मानना है कि अधिक गरमी की मार अगले तीन से 10 वर्षो तक हो सकती है। इस दौरान मौसम अपेक्षाकृत अधिक गरम रहेगा। बारिश सामान्य से कम होगी तथा सर्दी सामान्य से कम होगी। ऐसा बीते कुछ दशकों से प्रशांत महासागर से उठकर दुनिया भर में मौसमी बवंडर फैलाने वाली ‘अल नीनो’ नाम की गरम लहरों के कारण होने जा रहा है। 
दीर्घकालीन मौसम वैज्ञानिक कुमाऊं विवि में तैनात यूजीसी के प्रो. बीएस कोटलिया ने यह दावा किया है। कोटलिया के अनुसार दुनिया में धरती से अधिक क्षेत्रफल जल राशि यानी समुद्र का है। धरती का तापमान सबसे पहले समुद्र की सतह पर गड़बड़ाता है, समुद्री लहरें गरम व सर्द जल धाराओं को दुनिया भर में फैलाकर भू सतह के तापमान को प्रभावित करती हैं। अब दुनिया भर के वैज्ञानिक मान चुके हैं कि प्रशांत महासागर से उठने वाली गरम जल धाराएं ‘अल नीनो’ व ठंडी जल धाराएं ‘ला नीना’ दुनिया भर के मौसम को प्रभावित करने वाली सर्वाधिक प्रभावी घटक के रूप बन गई हैं। 1960-70 के दशक से इनकी सबसे पहले पहचान हुई थी। ला नीना व अल नीना का तीन से सात वर्ष तक का चक्र होता है। बीते दो तीन वर्ष ला नीना सक्रिय रहा, इस कारण इस दौरान अधिक बारिश व ठंड रही, तथा गरमी अपेक्षाकृत कम रही। प्रो. कोटलिया का दावा है कि ला नीनो का प्रभावी चक्र अब बीत चुका है, और अल नीनो की बारी आने वाली है। इसके प्रभाव में अगले कम से कम तीन वर्ष अपेक्षाकृत गरम हो सकते हैं। अपने इस दावे के पीछे उनका तर्क है कि अल नीनो के मूल स्थान प्रशांत महासागर में लहरें गर्म होने लगी हैं। कोटलिया बताते हैं कि इतिहास में 1870 से 2000 के बीच कई बार सूखे यानी अधिक गरमी कम बारिश के चक्र 10 वर्ष तक लंबे रह चुके हैं, इसलिये इस बार भी गरमी के चक्र के 10 वर्ष तक खिंचने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। बहरहाल, माना जा सकता है कि अगले कुछ वर्ष गर्म हो सकते हैं, और इस दौरान कम मानसून के लिये भी तैयार रहना होगा। 
पश्चिमी विक्षोभ से ला नीना प्रभावित 
यह भी पढ़ें 
इस वर्ष के अध्ययन के बाद प्रो. कोटलिया ने पहली बार दावा किया है कि ला नीना लहरें भारत में मानसून के कारण पश्चिमी विशोभ और ‘इंटर ट्रोपिकल कंवरजेंस जोन’ यानी आईटीसीजेड को प्रभावित कर रही हैं। कोटलिया कहते हैं कि सामान्यतया भारत में मानसून गोवा से उठकर पश्चिम बंगाल से देश की भूसतह में प्रवेश करता है, और बिहार में बाढ़ का कारण बनता है, और आगे यूपी, उत्तराखंड व दिल्ली होता हुआ लद्दाख जाकर समाप्त हो जाता है। इसके उलट विगत वर्ष इसने ला नीना के कारण रास्ता बदला और गोवा से सीधे मुंबई और अंबाला में कहर ढाकर आखिर लद्दाख में पहली बार बाढ़ (बादल फटने) के हालात उत्पन्न किये। उन्होंने बताया कि इस वर्ष ला नीना पुन: सामान्य हो गया था, आईटीसीजेड भी अधिक सक्रिय नहीं हो पाया था। इसी कारण बारिश सामान्य हुई पर आईटीसीजेड जहां-जहां से गुजरा मौसम ठंडा कर गया। 
‘सोलर मैक्सिमम’ से भी हो सकती है गरमी 
खगोल विज्ञान और खासकर सूर्य पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों ने कहा है कि सूर्य की सक्रियता के वर्तमान में चल रहे 24वें चक्र का चरमकाल वर्ष 2012-13 में हो सकता है। स्थानीय एरीज के वरिष्ठ सौर वैज्ञानिक डा. वहाबउद्दीन भी ऐसा मानते हैं। 


रविवार, 18 मार्च 2012

बंद हो गई कुमाऊं के लिए किंगफिशर की उड़ान


औपचारिक रूप से एटीआर-48 को बंद करने की घोषणा, कुमाऊं में पर्यटन प्रभावित होने की आशंका
नवीन जोशी नैनीताल। पंतनगर तक आने वाली हवाई सेवा से किंगफिशर एयरलाइंस ने औपचारिक तौर पर तौबा कर ली है। इसके अलावा यहां के लिए हवाई सुविधा देने का प्रस्ताव भी नहीं है। कुमाऊं मंडल को हवाई सेवा से जोड़ने के लिए पंतनगर हवाई अड्डे में ही सुविधा उपलब्ध है। 1969 में स्थापित इस एयरपोर्ट में 2005-06 में और फिर गत वर्ष हवाई सेवा चली। नैनीताल समेत मंडल में पर्यटन और ऊधमसिंह नगर जनपद में विकसित हुए औद्योगिक क्षेत्र को इस सेवा से लाभ मिला लेकिन बीते दिनों आर्थिक हालत बिगड़ने के बाद किंगफिशर को गत 30 नवम्बर से यहां के लिए संचालित 48 सीटों वाले एटीआर विमान की सेवा बंद करनी पड़ी। पंतनगर एयरपोर्ट अथारिटी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि किंगफिशर की इस सेवा को अच्छी संख्या में यात्री मिल रहे थे। यात्री महीनों पहले भी बुकिंग करा रहे थे। आर्थिक बदहाली के बाद किंगफिशर प्रबंधन ने पंतनगर के लिए एटीआर-48 सेवा को बंद करने की घोषणा कर दी है। एयरपोर्ट निदेशक एमपी अग्रवाल ने इसकी पुष्टि की। साथ ही बताया कि फिलहाल यहां के लिए किसी अन्य विमान सेवा का प्रस्ताव नहीं है। कुमाऊं में पर्यटन सीजन शुरू होने जा रहा है, कुमाऊं मंडल को आने वाले उच्चवर्गीय सैलानी हवाई सेवा का लाभ नहीं ले सकेंगे। इसका नुकसान यहां के पर्यटन को झेलना पड़ेगा। 


राजनीतिक नेतृत्व की रहती है भूमिका
नैनीताल। दिल्ली से पंतनगर तक हवाई सेवा चलाने में दोनों बार राज्य के राजनीतिक नेतृत्व की बड़ी भूमिका रही। पहली बार तत्कालीन सीएम एनडी तिवारी के प्रयासों से अक्टूबर 2005 में जैक्सन एयरलाइंस ने डोरनियर विमान सेवा शुरू की थी यह करीब एक वर्ष चलकर बंद हो गया। गत वर्ष सीएम डा. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के प्रयासों से किंगफिशर एयरलाइंस ने 48 सीटों वाले एटीआर विमान चलाए लेकिन हालात बिगड़ने के बाद किंगफिशर ने 30 नवम्बर से अपनी सेवा बंद कर दी है। सेवा से जुड़े लोगों का मानना है कि राजनीतिक प्रयास हुए तो कुमाऊं के लिए हवाई सेवा को किसी अन्य कंपनी के सहयोग से बहाल कराया जा सकता है।

बुधवार, 14 मार्च 2012

‘विरासत पथों’ पर लीजिये घुमक्कड़ी का लुत्फ

 जनपद में चार विरासत पैदल पथ विकसित करने की योजना 

यह होंगे चार विरासत पथ : 1. पीटर बैरन पथ 2. टैगोर पथ 3. राजभवन पथ 4. वन विहार पथ
नवीन जोशी, नैनीताल। ‘सैर कर दुनिया की गाफिल, जिंदगानी फिर कहां, जिंदगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहां।’ ‘घुमक्कड़ी’ के लिए प्रसिद्ध साहित्यकार राहुल सांकृत्यायन की यह पंक्तियां यदि आपको भी उद्वेलित करती हैं तो प्रकृति का स्वर्ग कही जाने वाली सरोवरनगरी चले आइये। यदि आप यहां पहले भी आ चुके हैं तो भी आपका यहां अगला आगमन आपको प्रकृति के और करीब ले जा सकता है। दरअसल उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद के तत्वावधान में जनपद मुख्यालय के साथ ही नजदीकी स्थलों की नैसर्गिक सुंदरता को पूरी तरह महसूस करने के लिए चार ‘विरासत पथों’ की पहचान कर ली गई है और अब इन्हें जल्द विकसित करने की तैयारी है। अमूमन लोग सरोवरनगरी के नगर क्षेत्र को घूमकर ही मान बैठते हैं कि उन्होंने यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को देख लिया, लेकिन ऐसा नहीं है। इस नगर की प्रकृति के स्वर्ग के रूप में वैिक छवि है तो इसलिए कि नगर के निकटवर्ती क्षेत्रों में भी पर्यटन के लिहाज से ‘विरासत’ छिपी हुई है। पूर्व डीएम डा. राकेश कुमार ने इन विरासतों को संरक्षित करने के साथ ही इन्हें सैलानियों को दिखाने का एक रूट मैप तैयार किया था। इधर, उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद ने भी कुछ इसी तर्ज पर चार ‘विरासत पथों’ को चिह्नित कर लिया है जिन्हें अब विकसित किया जाना है। इनमें पहला विरासत पथ नगर के अंग्रेज खोजकर्ता पीटर बैरन ट्रैक के नाम से जाना जाएगा। यह ट्रैक वही होगा, जिस रास्ते से बैरन के 18 नवम्बर 1839 में पहली बार नैनीताल आने की बात कही जाती है। यह पैदल रूट अल्मोड़ा राजमार्ग पर स्थित रातीघाट नाम के स्थान से नगर के बिड़ला चुंगी नाम के स्थान तक आता है। दूसरा विरासत पथ गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर को समर्पित होगा। इस पथ के जरिये सैलानियों को फलों की घाटी कहे जाने वाले रामगढ़ से टैगोर टॉप से महेश खान होते हुए भवाली के श्यामखेत तक लाया जाएगा। तीसरा पथ राजभवन ट्रैक कहलाएगा, यह पथ मुख्यालय में लैंड्स एंड के करीब सेमीधार से शुरू होकर गौथिक शैली में बने इंग्लैंड के बर्मिघम पैलेस की प्रतिकृति कहे जाने वाले नैनीताल राजभवन तक पहुंचेगा। जबकि चौथे पथ को वन विहार पथ का नाम दिया गया है। यह पथ नगर के निकट नैना पीक स्थित सत्यनारायण मंदिर से नैना पीक होते हुए किलबरी तक जाएगा। जिला साहसिक खेल अधिकारी लता बिष्ट ने बताया कि प्रकृति को अधिक करीब से जानने के लिए परिषद की पहल पर इन विरासत पथों को विकसित करने के प्रस्ताव तैयार कर भेज दिए गए हैं।

मुख्यालय में बनेगी एक और कृत्रिम दीवार
नैनीताल। मुख्यालय में बारापत्थर क्षेत्र की तरह एक और कृत्रिम दीवार तैयार करने की योजना है। जिला साहसिक खेल अधिकारी लता बिष्ट ने बताया कि झीविप्रा के धन से बारापत्थर में बनी दीवार निजी संस्था को सौंप दी जिसका लाभ आमजन को नहीं मिल पा रहा है। इसके उपयोग के लिए सरकारी विभागों को भी 500 रुपये रोजाना प्रति व्यक्ति देने पड़ते हैं। इसलिए पर्यटन विकास परिषद की पहल पर यहां एक और दीवार बनाने के लिए स्थान की तलाश की जा रही है। नगर पालिका से इसके लिए फ्लैट मैदान में स्थान मांगा गया है। कृत्रिम दीवारों पर चढ़ाई करना ओलंपिक स्तर की साहसिक खेल स्पर्धा है, लेकिन नगर में पहले से मौजूद दीवार से यह उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा है। देहरादून व मसूरी में भी ऐसी कृत्रिम दीवार बनाने की योजना है।

बजून ट्रैक पर सर्च करने अभियान दल रवाना
नैनीताल (एसएनबी)। जनपद में पंगूट, तुषारपानी, बजून अल्प ज्ञात ट्रैकिंग रूट को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से 10 सदस्यीय दल सर्च ट्रैक अभियान पर रवाना हो गया। इस पांच दिवसीय अभियान को पूर्व संयुक्त निदेशक पर्यटन गणोश प्रसाद ढौंडियाल ने मल्लीताल पंत पार्क के पास से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। बुधवार को दल के सदस्यों को रवाना करते हुए श्री ढौंडियाल ने मार्ग में खानपान में एहतियात बरतने, टीम भावना से चलने जैसे उपयोगी सुझाव दिये। जिला साहसिक खेल अधिकारी लता बिष्ट ने बताया कि अल्प ज्ञात पर्यटक स्थलों को विकसित करने के उद्देश्य से रवाना हुआ दल पंगूट, तुषारपानी, दौलियाखान, टीट देवी मंदिर, अधोड़ा गांव, बजून व नारायणनगर होते हुए आगामी 18 मार्च को 65 किमी की पैदल यात्रा कर मुख्यालय वापस पहुंचेगा। प्रशिक्षक नरेंद्र कुमार के नेतृत्व में गये अभियान दल में डीएसबी परिसर के पवन कुमार, पंकज, सुशील कुमार, मुकेश कुमार व राहुल भट्ट, चोरगलिया के पूरन पालीवाल, हल्द्वानी के संतोषनाथ व कमल सिंह, ताकुला के मोहित जोशी व जगदीश जोशी शामिल हैं।

रविवार, 11 मार्च 2012

सूर्य पर सौर सुनामी की आशंका बढ़ी


आर्य भट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान के वै ज्ञानिक रखे हुए हैं नजर 
नवीन जोशी, नैनीताल। देश-दुनिया के खगोल वैज्ञानिकों की वर्ष 2012 में ‘सोलर मैक्सिमम’ यानी सूर्य पर अपने 11 वर्षीय चक्र की अधिकतम सक्रियता की आशंका सिर उठाती नजर आ रही है। गर्मियां शुरू होने से पूर्व ही सूर्य पर बड़ी (लाखों वर्ग किमी. आकार की) सौर भभूकाएं उठनी शुरू हो गई हैं। इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने वर्ष 2003 जैसी ‘सौर सुनामी’, की आशंका जताई है। मालूम हो कि हमारे सौरमंडल की सबसे महत्वपूर्ण धुरी सूर्य है। जिस पर उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों के बीच चुंबकीय तूफान चलते हैं। यही चुंबकीय तूफान वास्तव में सूर्य के इतनी अधिक ऊष्मा के साथ धधकने के मुख्य कारक हैं जिससे पृथ्वी सहित सौरमंडल के अन्य ग्रह भी ऊष्मा, प्रकाश एवं जीवन प्राप्त करते हैं, लेकिन कहते हैं कि एक सीमा से अधिक हर चीज खतरनाक साबित होती है। ऐसा ही सूर्य पर चुंबकीय तूफानों के एक सीमा से अधिक बढ़ने पर भी होता है। चुंबकीय तूफान सूर्य पर पहले सन स्पॉट यानी सौर कलंक उत्पन्न करते हैं, इन्हें बड़ी सौर दूरबीनों के माध्यम से काले बिंदुओं के आकार में देखा जाता है। कई बार यह सौर कलंक धीरेधी रे विलीन हो जाते हैं, परंतु कई बार सौर कलंक आपस में मिलकर बड़े सौर तूफानों का कारण भी बनते हैं। सौर कलंक सूर्य पर असीम अग्नि की लपटें उत्पन्न करते हैं, इन्हें सोलर फ्लेयर या सौर भभूका कहते हैं। सूर्य पर यह सौर भभूका 11 वर्ष के चक्र में घटती-बढ़ती या शांत रहती हैं, जिसे सोलर साइकिल या सौर चक्र कहा जाता है। खगोल वैज्ञानिकों की गणना के अनुसार वर्तमान में 24वां सौर चक्र चल रहा है और वैज्ञानिकों की पूर्व में की गई घोषणाओं के अनुसार अपने चरम यानी ‘सोलर मैक्सिमम’ पर आ पहुंचा है। इसकी पुष्टि वैज्ञानिकों ने अब कर दी है। स्थानीय आर्य भट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार इस वर्ष जनवरी के दूसरे पखवाड़े से ही सूर्य पर सौर सक्रियता बढ़ने लगी थी। 17 व 19 जनवरी को मध्यम व बड़ी सौर भभूकाओं के बाद 24 जनवरी को सूर्य पर उठी एम-8 श्रेणी की बेहद शक्तिशाली सौर भभूका ने तो वैज्ञानिकों को बेहद डरा दिया था। इसके बाद 14 फरवरी को भी सूर्य से एक बड़ा चुंबकीय तूफान मानो पृथ्वी को अपने आगोश में लेने के लिए बढ़ा था। इधर, पुन: सूर्य पर बड़े सौर कलंक नजर आने लगे हैं जिनका व्यास छह लाख वर्ग किमी तक बड़ा बताया जा रहा है। 
चर्चाएं यहां तक हैं....
नैनीताल। वर्ष 2012 के ‘सोलर मैक्सिमम’ को मीडिया का एक वर्ग माया कलेंडर से भी जोड़कर देखने लगा है। गौरतलब है कि माया कलेंडर में वर्ष 2012 से आगे की तिथियां अंकित न होने से पृथ्वी के समाप्त होने की आशंकाओं को भी काफी बल दिया गया। हालांकि वैज्ञानिक इन आशंकाओं को पूरी तरह कपोल कल्पना बताकर खारिज कर चुके हैं, पर वर्ष 2003 में पिछले सौर चक्र के ‘सोलर मैक्सिमम’ के दौरान सौर तूफान पृथ्वी पर भू-उपग्रह आधारित संचार व्यवस्था, विद्युत ब्रिड व इलेक्ट्रानिक उपकरणों आदि को भारी नुकसान पहुंचा चुके हैं। इस कारण इन सौर तूफानों के लिए ‘सौर सुनामी’ जैसे शब्दों का प्रयोग भी किया जाने लगा है।
आसमान में दिखेगा ‘चांद सा रोशन चेहरा’
बुधवार को बृहस्पति व शुक्र होंगे पास, आयेगा चांद भी करीब गुरु, शुक्र एवं चांद की करीबी।
नैनीताल। खगोल विज्ञान एवं कुदरत की आसमानी खूबसूरती पर नजर रखने वाले लोगों के लिए आगामी सप्ताह कुछ खास रहने वाला है। इस सप्ताह से ही बेहद करीब नजर आ रहे बृहस्पति यानी गुरु एवं शुक्र ग्रह फाल्गुन पूर्णिमा के बाद से पूरे आकार में खिले-खिले नजर आ रहे हैं और चांद के साथ एक विशेष युति बनाएंगे। इस बुधवार को तो एक खास संयोग बनने जा रहा है, जब बृहस्पति व शुक्र ग्रह सूर्यास्त के बाद पूर्व दिशा में आभासीय तौर पर बेहद करीब, केवल तीन डिग्री की दूरी पर होंगे। शाम ढलने के कुछ देर बाद चांद भी उनके करीब आ जाएगा। एरीज के वैज्ञानिकों के अनुसार आगामी 15 मार्च को भी ऐसी स्थिति आएगी, पर तब इनके बीच की दूरी कुछ अधिक होगी।