शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

पहाड़ के लिए होगी अलग पुलिसिंग

डीजीपी ने कहा, भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप होगी पुलिस व्यवस्था
पहाड़ के लिए अलग मानक बनेंगे, सामुदायिक सहभागिता, रात्रि गश्त और पिकेटिंग को बढ़ाया जायेगा
नैनीताल (एसएनबी)। उत्तराखंड पुलिस पहाड़ की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप अलग पुलिस व्यवस्था लागू करेगी। पुलिस महानिदेशक विजय राघव पंत ने बताया कि पहाड़ के लिए मैदानी क्षेत्रों से अलग पुलिस व्यवस्था के मानक भी तय किये जाएंगे। पहाड़ पर पुलिस सामुदायिक सहभागिता पर बल देगी। पहाड़ी शहरों में रात को पैदल गश्त की जायेगी। शहरों के प्रवेश द्वारों पर पिकेट लगाकर वाहनों की जांच होगी। डीजीपी ने इस व्यवस्था को लागू करने से पूर्व पुलिसकर्मियों को प्रशिक्षित करने की बात भी कही, ताकि पिकेट या रात्रि गश्त आमजन की परेशानी या वाहनों से वसूली का अड्डा न बन जाएं। उन्होंने पहाड़ पर घुड़सवार पुलिस की तैनाती तथा मोटरसाइकिलों की बजाय पैदल या साइकिलों से गश्त कराने की बात कही। शुक्रवार को मुख्यालय में डीजीपी पंत ने पत्रकारों से कहा कि पहाड़ में मैदानी क्षेत्रों के मानकों पर पुलिस व्यवस्था चल रही है। यहां भौगोलिक परिस्थितियों के साथ अपराधों की संख्या और प्रकार में अंतर है। पहाड़ में हत्या और डकैती जैसे बड़े अपराधों की बजाय छोटी-छोटी चोरियां जैसे अपराध अधिक होते हैं। इनसे समाज में भय का माहौल बनता है। ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए पहाड़ के लिए अलग पुलिसिंग के मानक बनाये जा रहे हैं। उन्होंने पुलिसकर्मियों को वाहनों की बजाय पैदल चलने पर जोर देते हुए कहा कि वे जनता से मिलें-जुलें, ताकि जनता उन्हें सहजता से शिकायतें बता सकें। उन्होंने कहा कि पुलिस के पास अपराध संबंधी अधिक कार्य नहीं होते इसलिए वह निराश्रित रोगियों को अस्पताल पहुंचाने जैसे सामुदायिक सहभागिता के कार्य कर सकती है। उन्होंने बताया कि प्रदेश के दो दर्जन से अधिक घुड़सवार पुलिस के जवान प्रशिक्षित किये जा चुके हैं। इनकी एक टुकड़ी हल्द्वानी में स्थापित होगी। इनका जरूरत पड़ने पर पहाड़ में उपयोग किया जा सकेगा। उन्होंने प्रदेश के चार जिलों में महिला पुलिस कप्तानों की तैनाती को प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों को रोकने तथा महिला सशक्तीकरण की दिशा में कदम बताया। उन्होंने सीमावर्ती पुलिस थानों और चौकियों के सुदृढ़ीकरण तथा यहां कार्यरत पुलिस कर्मियों को प्रशिक्षित करने की बात भी कही।

इतिहास बन जायेंगे कुमाऊँ-गढ़वाल


पुलिस के कुमाऊं-गढ़वाल परिक्षेत्र समाप्त हो ने के बाद अब कमिश्नरी समाप्त किये जाने के लगाए जा रहे कयास

नवीन जोशी नैनीताल। प्रदेश सरकार ने राजनीतिक लाभ-हानि के लिहाज से गढ़वाल और कुमाऊं परिक्षेत्र को समाप्त करने की अधिसूचना जारी नहीं की है मगर दोनों रेंजों को दो-दो हिस्सों में बांट दिया है। दोनों रेंजों से आईजी स्तर के अधिकारियों को वापस बुला लिया है। राज्य की नई पुलिस व्यवस्था के लिहाज से गढ़वाल के बाद कुमाऊं परिक्षेत्र भी समाप्त हो गया है। अब प्रशासनिक विकेंद्रीकरण के नाम पर इन मंडलों की कमिश्नरी के टूटने के कयास लगाये जा रहे हैं। प्रदेश के कुमाऊं व गढ़वाल अंचलों की अंग्रेजों से भी पूर्व भी ऐतिहासिक पहचान रही है। कुमाऊं में 1816 से नैनीताल से ‘कुमाऊं किस्मत’ कही जाने वाली कुमाऊं कमिश्नरी की प्रशासनिक व्यवस्था देखी जाती थी। ‘कुमाऊं किस्मत’ के पास वर्तमान कुमाऊं अंचल के साथ ही अल्मोड़ा जिले के अधीन रहे गढ़वाल की अलकनंदा नदी के इस ओर के हिस्से की जिम्मेदारी भी थी। ब्रिटिश शासनकाल में डिप्टी कमिश्नर नैनीताल इस पूरे क्षेत्र की प्रशासनिक व्यवस्था देखते थे। आजादी के बाद 1957 तक यहां प्रभारी उपायुक्त व्यवस्था संभालते रहे। 1964 से नैनीताल में ही पर्वतीय परिक्षेत्र का मुख्यालय था। इसके अधीन पूरा वर्तमान उत्तराखंड यानी प्रदेश के दोनों कुमाऊं व गढ़वाल मंडल आते थे। एक जुलाई 1976 से पर्वतीय परिक्षेत्र से टूटकर कुमाऊं परिक्षेत्र अस्तित्व में आया। यह व्यवस्था अब समाप्त कर दी गई है। इसके साथ ही नैनीताल शहर से पूरे कुमाऊं मंडल का मुख्यालय होने का ताज छिनने की आशंका है। इससे लोगों में खासी बेचैनी है। नगर पालिका अध्यक्ष मुकेश जोशी का कहना है कि इससे निसंदेह मुख्यालय का महत्व घट जायगा। अब मंडल वासियों को मंडल स्तर के कार्य करने के लिए देहरादून जाना पड़ेगा, क्योंकि वरिष्ठ अधिकारी वहीं बैठेंगे। वरिष्ठ पत्रकार व राज्य आंदोलनकारी राजीव लोचन साह का कहना है कि वह छोटे से प्रदेश में मंडल या पुलिस जोन की व्यवस्था के ही खिलाफ हैं। नये मंडल केवल नौकरशाहों को खपाने के लिए बनाये जा रहे हैं। 

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

नैनीताल का गौरव दुर्गापुर पावर हाउस होने वाला है नीलाम


ब्रेवरी से नैनीताल को रोपवे निर्माण की थी मूल योजना

नवीन जोशी नैनीताल। अंग्रेज नियंताओं द्वारा नगर के पास दुर्गापुर में स्थापित पनबिजलीघर ने नैनीताल नगर को देश के किसी भी पर्वतीय शहर में सबसे पहले बिजली से रोशन होने वाले शहरों में शामिल होने का गौरव दिलाया था। बिजलीघर की स्थापना के पीछे मूल उद्देश्य दुर्गम भौगौलिक क्षेत्र में स्थित कुदरत के नायाब तोहफे नैनीताल नामक स्थान को निकटवर्ती ब्रेवरी को रोपवे से जोड़ना था। 
यह वह दौर था जब नैनीताल को 1841 में वर्तमान स्वरूप में खोजने के बाद लंबे समय तक अंग्रेज नियंता नगर के लिए आसान यातायात का साधन उपलब्ध नहीं करा पा रहे थे। तब बैलगाड़ियां ही नैनीताल आने का प्रमुख साधन थीं। नगर की कमजोर भौगोलिक संरचना तथा बेहद ऊंचाई पर स्थित होने के कारण नैनीताल के लिए सड़क भी आसानी से नहीं बन पा रही थी। इसी कारण रेल लाइन बिछाने की योजना पहले ही खटाई में पड़ चुकी थी, ऐसे में अंग्रेज शासकों के मन में विचार आया कि ब्रेवरी-वीरभट्ठी से नगर के लिए रोपवे के जरिये आगमन का सरल तरीका ईजाद किया जाए। इसके लिए 1916-19 में वीरभट्ठी के पास ही दुर्गापुर में नैनी झील से पानी ले जाकर पनबिजलीघर स्थापित किये जाने की योजना बनी। रोपवे तो कमजोर भौगोलिक संरचना के कारण नहीं बन पाया अलबत्ता एक सितम्बर 1922 को नैनीताल बिजली के बल्बों से जगमगाने वाले देश के पहले पर्वतीय शहरों में शामिल जरूर हो गया। बिजलीघर के निर्माण में पीडब्ल्यूडी के साथ मसूरी नगर पालिका के विद्युत अभियंता मिस्टर बेल व इंग्लैंड की मैथर एंड प्लाट्स, गिलबर्ट एंड गिलकर व एकर्सन हीप कंपनियों की मुख्य भूमिका रही। इन कंपनियों की विशालकाय मशीनों, टर्बाइन व अल्टर्ननेटर आदि मशीनों को इंग्लैंड से पानी के जहाजों, रेल और बैलगाड़ियों के माध्यम से लाया गया। बिजलीघर की प्रारंभिक लागत 11,09,429 रुपये थी लेकिन वास्तविक तौर पर इस योजना पर कुल 20,72,383 रुपये लगे।
बिजलीघर नैनी झील के ओवरफ्लो होने वाले पानी से चलता था। आबादी बढ़ने के साथ 80 के दशक में पानी कम होने लगा। इधर पांच जनवरी 88 को बलियानाला क्षेत्र में भारी भूस्खलन से बिजलीघर को पानी लाने वाली पेन- स्टॉक पाइप लाइनें टूट गई। इसके बाद धीरे-धीरे बिजलीघर बंद हो गया। इधर पन विद्युत निगम व नगर पालिका के बीच बंद पड़े बिजलीघर के स्वामित्व को लेकर लंबे समय तक चला विवाद आखिर पालिका के पक्ष में गया। पालिका ने यहां पर गरीबों के लिए आवास बनाने की योजना बनाई। साथ ही बिजलीघर की मशीनों को नीलाम करने का फैसला भी कर लिया गया है। जिसके बाद नगर वासी इस ऐतिहासिक विरासत को नीलाम होने से बचाने के लिए आगे आये हैं। 

सोमवार, 16 अप्रैल 2012

स्वैप में भ्रष्टाचार, बड़ा घोटाला संभव : विस अध्यक्ष


नैनीताल (एसएनबी)। विस अध्यक्ष जल संस्थान एवं जल निगम की समीक्षा करने के दौरान बिफर उठे और कहा कि जन भागेदारी से चलने वाली स्वैप योजना में अधिकारियों द्वारा भ्रष्टाचार किया जा रहा है और यदि जांच कराई जाए तो बड़ा घोटाला उजागर हो सकता है। योजना में ग्रामीणों की कोई भागेदारी नहीं होती। ग्राम सभा की खुली बैठकों के बजाय विभागीय अधिकारी और ग्राम प्रधान गुपचुप योजनाएं बना लेते हैं। कई बार प्रधान धनराशि भी अपनी जेब से दे देता है। उन्होंने कहा कि अधिकारी योजना के ग्राम सभा को हस्तांतरित होने का हवाला देकर बच जाते हैं, जबकि तकनीकी परामर्श और पैसे का लेन-देन उन्हीं के द्वारा होता है। स्वैप की अधिकांश योजनाएं शुरू से बंद पड़ी हैं। स्वैप योजना के साथ शौचालय बनने थे व जल स्रेतों को पुनर्जीवित करने का कार्य भी होना था, पर नहीं किया गया है। उन्होंने अल्मोड़ा जिले व अपने विस क्षेत्र में अनेक योजनाओं पर मरम्मत में भी करोड़ों रुपये खर्च के बावजूद अभी तक पानी नहीं पहुंचने, डालमी, स्योंनरी जैसी योजनाओं के एक वर्ष से बंद होने तथा सरयू-दन्या-बेलख योजना को राजनीतिक दुराग्रह से पांच वर्ष से लटकाने के आरोप अधिकारियों पर लगाया।

उत्तराखंड को अपनी कार्य संस्कृति विकसित करने की जरूरत : कुंजवाल

विस अध्यक्ष ने कहा राज्य की अवधारणा के अनुरूप ठोस कार्ययोजना बनाकर करना होगा विकास

नैनीताल (एसएनबी)। विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने कहा कि प्रदेश में यूपी के र्ढे पर ही कार्य हो रहे हैं। प्रदेश की अपनी कोई कार्य संस्कृति विकसित नहीं हुई, जिस कारण आदर्श राज्य बनाने की कल्पना भी साकार नहीं हुई है। ऐसे में पुन: यूपी जैसे ही हालात उत्पन्न होने का खतरा है। ऐसे में प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों व वातावरण के अनुकूल ठोस कार्ययोजना बनाने की जरूरत है। सोमवार को पत्रकार वार्ता में श्री कुंजवाल ने कहा कि राज्य में योजनाबद्ध नहीं वरन राजनीतिक दबाव के तहत विकास कार्य हुए हैं। विस अध्यक्ष होने के नाते वह सभी दलों के विधायकों, राजनीतिक दलों से अपील करेंगे कि सभी इस दिशा में सोचें। विस का सत्र लंबा चले और सबको नियमानुसार अपने क्षेत्रों की समस्याएं रखने का मौका मिले, ताकि विस सरकार को आवश्यक निर्देश दे सकें, ऐसी कोशिश करेंगे। पहाड़ पर प्राकृतिक जल स्रेतों को रिचार्ज करने का कार्य नहीं हुआ, जिस कारण कमाबेश सभी जल स्रेत बंद हो गए हैं और आगे गुरुत्व आधारित पेयजल योजनाओं से काम चलने वाला नहीं है। उन्होंने प्रदेश में कृषि व उद्यान आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देने की आवश्यकता जताई। इस मौके पर स्थानीय विधायक सरिता आर्या, कांग्रेस नगर अध्यक्ष मारुति नंदन साह, डा. महेंद्र पाल, डा. हरीश बिष्ट, डीएन भट्ट, धीरज बिष्ट, पान सिंह रौतेला, दिनेश कुंजवाल, अजमल हुसैन व मुन्नी तिवाड़ी आदि मौजूद थे। 


‘रावत को नकारा गया बार-बार’
नैनीताल। विस अध्यक्ष होने के नाते स्वयं को पार्टी हित से ऊपर बताने के बीच कांग्रेस नेता गोविंद सिंह कुंजवाल पार्टी नेता हरीश रावत की ओर इशारा करते हुए स्वयं को यह कहने से नहीं रोक पाए कि कांग्रेस पार्टी ने ‘काम करने वाले व्यक्ति’ को मौका नहीं दिया, और बार-बार नकारा।


कागजी घोड़े न दौड़ाएं अधिकारी और अभियंता

कहा, फील्ड में जाएं, वरना खुद साथ लेकर जाऊंगा मंडलीय समीक्षा में कड़े तेवर दिखाए विस अध्यक्ष ने

नैनीताल (एसएनबी)। अपनी पहली मंडल स्तरीय समीक्षा बैठक में विस अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने कड़े तेवर दिखाए। बैठक में कमोबेश अल्मोड़ा जनपद और अपने विस क्षेत्र तक सीमित रहे कुंजवाल ने चेतावनी दी कि अधिकारी बैठकों में पूरी जानकारियों के साथ आएं और अभियंता कार्यालयों में बैठने के बजाय धरातल पर जाकर योजनाओं का स्वयं निरीक्षण करें। बैठकों में कागजी आंकड़े पेश करने के बजाय जनता को संतुष्ट करने की मनोवृत्ति बनाएं। उन्होंने जल संस्थान के महाप्रबंधक को अपने विस क्षेत्र के धौलादेवी व लमगड़ा ब्लाकों में करोड़ों रुपये खर्च के बावजूद पेयजल उपलब्ध न होने के कारणों की जांच कराने के निर्देश दिये और कहा कि फिलहाल वह अपने क्षेत्र की ही बात कर रहे हैं, आगे सभी जगहों के आंकड़ों के साथ समीक्षा करेंगे और अधिकारियों को साथ ले जाकर योजनाओं की हकीकत दिखाएंगे। उन्होंने अधिकारियों को राजनीति से दूर रहने की सलाह भी दी। सोमवार को नैनीताल क्लब में आयोजित बैठक में विस अध्यक्ष ने स्वास्थ्य विभाग से शुरू करते हुए जल संस्थान, जल निगम, शिक्षा, लोनिवि आदि विभागों के मंडलीय अधिकारियों की क्लास ली। अस्पतालों में वर्षो से नई मशीनों के बंद पड़े होने, अस्पतालों के बंद पड़े होने, मरीजों को अस्पताल से दवा न मिलने, रमसा के तहत दो वर्ष से स्वीकृत स्कूल न खुलने, सड़कों के बनते ही डामरीकरण उखड़ने, 1993 से स्वीकृत पुल के दुरुस्त न होने आदि मामलों में अधिकारियों को फटकार लगाई। उन्होंने मंडलायुक्त व डीएम को निर्देशित किया कि जिला पंचायत व क्षेत्र पंचायतों की बैठकों में सक्षम अधिकारी अवश्य भाग लें। आयुक्त कुणाल शर्मा ने विस अध्यक्ष को आस्त किया कि उनके द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन सुनिश्चित किया जाएगा। बैठक में विधायक सरिता आर्या, डीएम निधिमणि त्रिपाठी, सीडीओ धीराज गब्र्याल, लोनिवि के मुख्य अभियंता केसी उप्रेती, जल संस्थान के जीएम एचएस पंत, पेयजल निगम के मुख्य अभियंता रवींद्र कुमार, एसई एके श्रीवास्तव, एडी-शिक्षा कुसुम पंत, एडी- पशुपालन डा. भरत चंद, प्रभारी एडी स्वास्थ्य डा. तारा आर्या, आरटीओ एसके सिंह, मंडल स्तरीय अधिकारी, नगर अध्यक्ष मारुति नंदन साह, धारी के ब्लाक प्रमुख कृपाल मेहरा, खजान पांडे, दिनेश कुंजवाल आदि मौजूद थे।


बार एसोसिएशन ने किया कुंजवाल का स्वागत

नैनीताल। विस अध्यक्ष के रूप में पहली बार मुख्यालय पहुंचे गोविंद सिंह कुंजवाल का उत्तराखंड हाईकोर्ट में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से स्वागत किया गया। इस मौके पर स्थानीय विधायक सरिता आर्या भी उनके साथ थीं। स्वागत करने वालों में बार एसासिएशन के अध्यक्ष डीएस पाटनी, सचिव विनोद तिवारी के साथ ही कांग्रेस के डा. भूपाल भाकुनी, बीसी कांडपाल आदि मौजूद रहे।

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

उत्तराखंड की नौकरशाही में हुए भारी फेरबदलों की पूरी सूची




::संशोधन::आशीष जोशी बने रहेंगे चंपावत के डीएम
प्रदेश शासन ने शुक्रवार को किए गए आईएएस अफसरों के तबादलों में कुछ फेरबदल किया है। शनिवार को अपर सचिव कार्मिक अरविन्द सिंह ह्यांकी ने बताया कि विगत दिन हुए प्रशासनिक अधिकारियों के स्थानांतरण में आंशिक संशोधन किया गया है। इसके तहत जिलाधिकारी चम्पावत आशीष जोशी यथावत रहेंगे। जिलाधिकारी उत्तरकाशी अक्षत गुप्ता को जिलाधिकारी अल्मोड़ा तथा मुख्य विकास अधिकारी वी. शणमुगम चमोली को जिला अधिकारी बागेश्वर स्थानांतरित किया गया है।

पूरा होगा "ईको फ्रेंडली" घर में रहने का सपना


बिना ईट, सीमेंट व लकड़ी के ही बन जाएंगी इमारतें
सीबीआरआई रुड़की बेकार चीजों से तैयार कर रहा ‘ईको फ्रेंडली’ वैकल्पिक उत्पाद
धान की भूसी और चीड़ की पत्तियों से बनेगी लकड़ी
भट्ठों की राख से बनेगा रासायनिक सीमेंट और पुराने मलबे से बनेंगी ईटें 

नवीन जोशी नैनीताल। क्या आप अपने वर्तमान घर की जगह पूरी तरह पर्यावरण मित्र (ईको फ्रेंडली) तकनीक से बने घर में रहना चाहेंगे। जी हां, अब यह संभव है। भवन निर्माण में बहुत दिनों तक प्राकृतिक संसाधनों पत्थर, ईट व लकड़ी तथा पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले सीमेंट का प्रयोग नहीं करना पड़ेगा। देश के वैज्ञानिक इस दिशा में काफी आगे बढ़ गये हैं कि कैसे भवन निर्माण के लिए वैकल्पिक और ईको फ्रेंडली उत्पाद तैयार किये जाएं। भवन निर्माण के क्षेत्र में कार्य करने वाले वैज्ञानिक संस्थान सीबीआरआई रुड़की के वैज्ञानिकों ने बेकार फेंकी जाने वाली धान की भूसी और चीड़ की पत्तियों से लकड़ी का विकल्प तैयार कर लिया है। इसी तरह पुराने भवनों के मलबे से नई पक्की ईटें बनाई जाएंगी, जबकि बड़ी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन कर पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा साबित होने वाले सीमेंट की जगह भट्ठियों की राख (फ्लाई ऐश) से रासायनिक सीमेंट तैयार कर लिया गया है। यदि आप चिंतित हैं कि भवन निर्माण के लिए ही कितने हरे-भरे पेड़ों की बलि ले ली जाती है, तो सीबीआरआई रुड़की आपकी इस चिंता को काफी पहले से दूर करने में लगा हुआ है। सीबीआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. एसके सिंह बुधवार ने एक विशेष भेंट में सीबीआरआई में भवन निर्माण के लिए तैयार किये जा रहे ईको-फ्रेंडली उत्पादों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सीबीआरआई ‘वुड विदाउट ट्री’ यानी पेड़ों के बिना लकड़ी प्राप्त करने की तकनीक पर कार्य कर रहा है। धान की भूसी से मजबूत लकड़ी तैयार कर ली गई है और इसकी तकनीकी ग्वालियर की ‘ऊं नम: शिवाय एजेंसी’ को हस्तांतरित भी कर दी गई है, जो कि धान की भूसी से बनी लकड़ी बाजार में उतारने जा रही है। कई अन्य कंपनियां भी सीबीआरआई से इस तकनीक को लेने को उद्यत हैं। इसी तरह चीड़ की पत्तियों (पिरूल) से लकड़ी बनाने की तकनीक भी तैयार हो चुकी है। इसे भी किसी कंपनी को हस्तांतरित करने की प्रक्रिया चल रही है। अपनी मात्रा के बराबर ही कार्बन डाई आक्साइड उत्सर्जित करने वाले परंपरागत सीमेंट की जगह भट्ठियों की फ्लाई ऐश में सोडियम सिलीकेट सरीखे रासायनिक पदार्थ मिलाकर ईको फ्रेंडली सीमेंट का निर्माण भी सीबीआरआई के वैज्ञानिकों ने कर लिया है। पुराने भवनों के ध्वस्तीकरण से प्राप्त होने वाले और फेंकने में परेशानी बनने वाले मलबे को प्रोसेस कर कंक्रीट, टाइल, ईट, ब्लाक तथा पेविंग ब्लाक बनाने में सफलता अर्जित कर ली गई है। डा. सिंह ने कहा कि जल्द यह उत्पाद भी खुले बाजार में उपलब्ध होंगे और पर्यावरण प्रेमियों का पर्यावरण मित्र घरों में रहने का सपना पूरा हो सकेगा।
मूलतः यहाँ देखें-प्रथम पृष्ठ पर 

शनिवार, 7 अप्रैल 2012

एक्टर नहीं बनना चाहते थे कबीर बेदी



नैनीताल में जीते ‘कैंडल कप’ ने दिखाया तीन महाद्वीपों का रास्ता  यहाँ ‘जूलियस सीजर’ नाटक में अभिनय के साथ रखा था कबीर बेदी ने अभिनय की दुनिया में कदम

नवीन जोशी नैनीताल। इंसान दुनिया में जितना भी बड़ा मुकाम पा ले, उसके लिए जीवन की पहली सफलता सबसे ज्यादा मायने रखती है। यह उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। भारतीय उपमहाद्वीप के साथ यूरोप और अमेरिका में अभिनय के जौहर दिखा चुके सिने कलाकार कबीर बेदी भी अपनी पहली सफलता को भूले नहीं हैं। उन्होंने कहा कि नैनीताल से उत्पन्न हुए थियेटर के शौक में उन्होंने तीन दशक में तीन महाद्वीपों तक अभिनय की यात्रा की। वह सरोवरनगरी के शेरवुड कालेज में अभिनय के लिए मिले पहले पुरस्कार ‘कैंडल कप’ को नहीं भूलते। यह उन्हें जीवन का पहला नाटक ‘जूलियस सीजर’ करने से मिला था। हालांकि वे यह भी कहते हैं कि वह एक्टर नहीं बनना चाहते थे। 
शेरवुड कालेज में बच्चों के साथ खुद भी बच्चे बने कबीर बेदी, अजिताभ बच्चन अपने 1962  बीच के सहपाठियों के साथ 
कबीर बेदी शेरवुड कालेज के छात्र रहे हैं। यहां के बाद वह दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कालेज में पढ़े। 1962 में वह शेरवुड से पढ़ाई कर लौटे थे। इस बीच नैनीताल व शेरवुड की यादें उन्हें यहां वापस लाती रहीं। बृहस्पतिवार को भी वह शेरवुड में थे। उनके बैच के डेढ़ दर्जन छात्र 50 साल बाद ‘रियूनियन’ में मिल रहे थे। इन सबके बीच अकेले कबीर हर ओर जिंदादिली के साथ छाये रहे। वह बच्चों के साथ फोटो खिंचवा रहे थे। उनकी पेंटिंग को निहारते हुए उन्हें सुझाव भी दे रहे थे। वह अपने दौर के बूढ़े सेवानिवृत्त चतुर्थ श्रेणी कर्मी दुर्गा दत्त से भी हाथ मिला रहे थे। उन्होंने उसे 500 रुपये भेंट भी दिये। उनका कहना था जहां से जीवन की शुरूआत होती है, वह जगह हमेशा प्यारी होती है। यहां उन्होंने जीवन के प्रारंभिक वे दिन बिताए जब बच्चे भविष्य के सांचे में ढाले जाते हैं। यहां से सीखे मूल्यों, सिद्धांतों ने उनको जीवन में आगे बढ़ने और मुश्किलों का सामना करने में मदद की। इसलिए इस स्थान और कालेज के प्रति शुक्रगुजार का भाव रहता है। शेरवुड से ही उन्होंने अभिनय की शुरूआत की। जूलियस सीजर किया तो कैंडल कप मिला। इससे आगे प्रेरणा मिली। उन्होंने कहा कि वह कलाकार बनना भी नहीं चाहते थे। नैनीताल से थियेटर का शौक लगा और थियेटर करते-करते वह तीन दशक में तीन-तीन महाद्वीपों तक अभिनय की यात्रा कर गये। जेम्स बांड सीरीज की ऑक्टोपस व बोल्ड एंड ब्यूटीफुल सरीखी हॉलीवुड फिल्में भी उनके खाते में हैं। इन दिनों वह प्रकाश झा की माओवादी समस्या की चीर-फाड़ करती फिल्म ‘चक्रव्यूह’ की शूटिंग में व्यस्त हैं। वह पहाड़ों की खूबसूरती के मुरीद हैं। उन्होंने कहा कि यहां की लोकेशन कमाल की है। ये दुनिया की बेहतरीन लोकेशन से किसी मायने में कम नहीं हैं। यहां फिल्म निर्माण की स्वीकृति आसानी से मिले तो प्रदेश के साथ देश के घरेलू पर्यटन को खासा लाभ मिल सकता है। वह फिल्मी दुनिया से भी अपील करते हैं कि दूसरे देश जाने से बेहतर अपने देश में उत्तराखंड के पहाड़ों- हिमालय की खूबसूरत लोकेशनॉ में फिल्में बना कर देश के घरेलू पर्यटन को बढाने में भी अपना योगदान दें ।
मूलतः इस लिंक पर देखें: http://rashtriyasahara.samaylive.com/epapermain.aspx?queryed=14&eddate=04%2f06%2f2012

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

शिक्षा विभाग के कर्मियों की बनेगी ई-कुंडली



एक क्लिक पर पता चल जाएगा विभाग में आने से लेकर स्थानांतरणों-पदोन्नतियों का ब्योरा 
एनआईसी मध्य प्रदेश की मदद से तेजी से चल रहा कार्य
नवीन जोशी, नैनीताल। सर्वाधिक कर्मचारियों वाले शिक्षा विभाग में अस्त- व्यस्तता के दिन लदने की उम्मीद की जा सकती है। अब विभाग के प्रत्येक अधिकारी-कर्मचारी की कुंडली इलेक्ट्रानिक फार्म में न केवल उच्चाधिकारियों वरन आम जनता द्वारा भी खोली जा सकेगी। ऐसे में न तो कोई कर्मी ताउम्र सुगम स्थानों में मौज कर सकेगा और न ही कोई दुर्गम स्थानों की परेशानियां झेलने को मजबूर रहेगा। 
एनआईसी मध्य प्रदेश की सहायता से प्रदेश के शिक्षा विभाग के कर्मियों की ई- कुंडली बनाने का कार्य सर्वोच्च प्राथमिकता से चल रहा है। अगले माह तक ई-कुंडली के सार्वजनिक होने की उम्मीद की जा सकती है। प्रदेश का सबसे बड़ा विभाग होने के कारण शिक्षा विभाग और विवादों का चोली दामन का साथ रहा है। मनमाने तबादलों को लेकर लाखों रुपये की रिश्वत और भ्रष्टाचार के आरोप यहां आम हैं। राज्य में बनी सभी तबादला नीतियां इस विभाग में आकर दम तोड़ती गई। शायद यही कारण रहा कि उत्तराखंड बनने के बाद से चाहे जिस भी दल की सरकार रही, विभागीय मंत्रियों पर चुनाव हारने का दुर्योग  जुड़ता चला गया। इधर, पिछली भाजपा सरकार ने जाते-जाते मध्य प्रदेश की तर्ज पर एनआईसी मध्य प्रदेश की सहायता से विभागीय कर्मियों की ई-कुंडली बनाने का कार्य शुरू किया, ताकि विभाग की भारी-भरकम फौज पर नजर रखी जा सके। इस पर इन दिनों तीव्र गति से कार्य चल रहा है। कुमाऊं मंडल में कुल 26,234 कर्मियों के आंकड़े ई-कुंडली में दर्ज होने हैं, जिनमें से ताजा जानकारी के अनुसार बुधवार तक 24,895 के आंकड़े दर्ज हो चुके हैं। केवल पिथौरागढ़, नैनीताल और ऊधमसिंह नगर जिलों में मिलाकर 339 कर्मचारियों के आंकड़े दर्ज होने शेष हैं। पूछे जाने पर अपर निदेशक डा. कुसुम पंत ने उम्मीद जताई कि अप्रैल माह तक ई- कुंडली इंटरनेट के माध्यम से सर्वसुलभ हो जाएगी। कोई भी व्यक्ति किसी भी विभागीय अधिकारी से लेकर शिक्षक-शिक्षिकाओं, तृतीय वर्गीय तथा चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की कुंडली इंटरनेट पर उपलब्ध होगी। 

गुरुवार, 22 मार्च 2012

भूस्खलन से पहले मिल जाएगी जानकारी

राज्य में भूस्खलन चेतावनी प्रणाली विकसित करने की तैयारी कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभाग व एटीआई की आपदा प्रबंधन विंग करेगी मिलकर कार्य 
नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश में भूस्खलनों से होने वाले नुकसानों को रोकने के लिए ‘भूस्खलन पूर्वानुमान प्रविधि’ (अर्ली वार्निग सिस्टम फार लैंड स्लाइड) विकसित करने का कार्य शुरू हो रहा है। उत्तराखंड प्रशासन अकादमी के आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ एवं कुमाऊं विवि के भू-विज्ञान विभाग इस दिशा में मिल कर कार्य करेंगे। अकादमी में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान नई दिल्ली के सहयोग से शुरू हुई कार्यशाला में इस बात पर सहमति बनी है। 
बृहस्पतिवार को उत्तराखंड प्रशासन अकादमी में भूस्खलनों पर शुरू हुई तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के शुभारंभ मौके पर बतौर मुख्य अतिथि कुमाऊं विवि के कुलपति ने इस बारे में कुविवि की भूमिका की घोषणा की। उन्होंने उम्मीद जताई कि उत्तराखंड जैसे अत्यधिक भूस्खलनों की संभावना वाले राज्य में ऐसी संगोष्ठियां लाभदायक होंगी। संगोष्ठी में जीएसआई कोलकाता के निदेशक जी. मुरलीधरन, उत्तराखंड मौसम विज्ञान के निदेशक आनंद शर्मा, राज्य आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के पूर्व निदेशक कुविवि के भूविज्ञान विभाग के प्रो. आरके पांडे, अपर जिलाधिकारी ललित मोहन रयाल व कुविवि के विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो. सीसी पंत आदि ने भी उपयोगी विचार रखे तथा प्रदेश की भूस्खलन संवेदनशीलता के मद्देनजर प्रभावी उपाय किये जाने पर बल दिया। संचालन जेसी ढौंढियाल ने किया। बताया गया कि संगोष्ठी में अगले दो दिन देश के 15 राज्यों से आये विशेषज्ञ करीब 35 शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे तथा आखिरी दिन नगर के आधार बलियानाला व अन्य क्षेत्रों की फील्ड स्टडी भी करेंगे।