शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

फखत इतनी तमन्ना थी कि हिंद मेरा आजाद रहे

धर्म के कंधों पर आजादी का सेनानी विदा
नैनीताल (एसएनबी)। आजादी के दीवानों ने सर्व धर्म समभाव का जो स्वप्न संजोते हुए देश आजाद कराया था, वह स्वप्न आज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बांके लाल कंसल की अंतिम यात्रा में सच होता दिखाई दिया। सर्वधर्म के लोगों के कंधों पर तिरंगा ओढ़कर आजादी के इस दीवाने की अंतिम यात्रा शान से निकली। आखिर पाइंस स्थित श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ आर्य समाज की विधि से हुआ। इससे पूर्व जिसे भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कंसल के निधन की खबर मिली, उनके आवास की ओर चल पड़ा। फलस्वरूप आवास पर मेला सा लग गया। 
कुमाऊं आयुक्त कुणाल शर्मा भी आवास पर पहुंचे। यहां से उनकी अंतिम यात्रा तिरंगे में लिपटकर पाइंस स्थित श्मशान घाट के लिए चली, जिसमें विधायक खड़क सिंह बोहरा, नगर पालिका अध्यक्ष मुकेश जोशी, पूर्व विधायक नारायण सिंह जंतवाल सहित नगर के गणमान्य लोग मौजूद रहे। पाइंस में एडीएम ललित मोहन रयाल ने प्रशासन एवं विधायक खड़क सिंह बोहरा ने मुख्यमंत्री की ओर से उनके शव पर पुष्पचक्र चढ़ाए। पुलिस के जवानों ने मातमी धुन बजाई व सम्मान में शस्त्र झुकाए। उनका अंतिम संस्कार आर्य समाज विधि के साथ किया गया। पुत्र सुबोध एवं अशोक कंसल ने मुखाग्नि दी। 99 वर्षीय स्वर्गीय कंसल अस्वस्थ थे। 
सरला बहन व डा. हिंगोरानी को की मदद : 
स्वर्गीय कंसल मनसा-वाचा-कर्मणा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। कहते हैं कि 1941 में गांधी जी की विदेशी शिष्या सरला बहन के लिए तत्कालीन कमिश्नर एक्टन ने देखते ही गोली मारने के आदेश दिए थे। कंसल ने उन्हें अपने घर में छुपाकर बचाया था। इसी तरह गांधी जी के सहयोगी डा. हिंगोरानी भी उनके घर में रहे थे।


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