गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

कुमाऊं विवि की परीक्षाएं होंगी ऑनलाइन

इंडिया रिजल्ट्स डॉट कॉम और आम्रपाली इंस्टीटय़ूट विवि के लिए मुफ्त में कर रही हैं परीक्षा की व्यवस्थाएं
नैनीताल (एसएनबी)। कुमाऊं विवि की सेमेस्टर पद्धति से होने वाली एवं प्रोफेशनल कोसरे की परीक्षाएं ऑनलाइन होने जा रही हैं। इस व्यवस्था के तहत विवि के छात्र फिलहाल ऑनलाइन और ऑफ लाइन दोनों तरह से परीक्षा फार्म भर पाएंगे और घर बैठे इंटरनेट के जरिये प्रवेश पत्र, जांच पत्र एवं अंक पत्र आदि डाउनलोड कर सकेंगे। इसके अलावा विवि के लिए परीक्षाओं को ऑनलाइन करने की व्यवस्थाएं मुफ्त में होने जा रही हैं। बृहस्पतिवार को कुमाऊं विवि के कुलपति कार्यालय में कुलपति प्रो. एचएस धामी की अध्यक्षता में परीक्षा पण्राली को ऑनलाइन करने के लिए हुई बैठक में सभी व्यवस्थाओं को अंतिम रूप दिया गया। बताया गया कि फिलहाल छात्र चाहें तो सीधे ऑनलाइन और अन्यथा ऑफलाइन भी परीक्षा फॉर्म भर पाएंगे। ऐसे ऑफलाइन फॉर्मो को एक्सेल के फॉम्रेट में विवि द्वारा इंडिया रिजल्ट्स को भेजा जाएगा, जो इसे ऑनलाइन कर देगा। परीक्षाओं के ऑनलाइन फॉर्म भरने एवं अंक पत्र, जांच पत्र व अंक पत्र आदि डाउनलोड करने की व्यवस्था इंडिया रिजल्ट्स डॉट कॉम नाम की वेबसाइट और परीक्षाओं के बाद की प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए जरूरी सॉफ्टवेयर हल्द्वानी के आम्रपाली इंस्टिटय़ूट द्वारा तैयार की जा रही है। बैठक में विवि के परीक्षा नियंत्रक प्रो. रजनीश पांडे, सहायक कुलसचिव दिनेश चंद्रा, वित्त अधिकारी डीएस बोनाल, प्रो. बीडी कविदयाल, इंडिया रिजल्ट्स के सहायक प्रबंधक-तकनीकी एमके पांडे, विवि की ऑनलाइन व्यवस्थाएं देखने वाली कंपनी वंडर प्वाइंट के सीईओ निखिल मिश्रा आदि मौजूद थे।

अब केयूनैनीताल होगी कुमाऊं विवि की आधिकारिक वेबसाइट 
नैनीताल। कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. एचएस धामी ने बताया कि अब विवि की आधिकारिक वेबसाइट केयू नैनीताल डॉट एसी डॉट इन होगी। इस वेबसाइट में विवि की अकादमिक एवं प्रशासनिक जानकारियां होंगी। विवि की अब तक चल रही वेबसाइट केयूएनटीएल डॉट कॉम पर क्लिक करके भी इन वेबसाइटों पर सीधे प्रवेश हो जाएगा। विवि की परीक्षाओं के परिणाम केयूइक्जाम डॉट एसी डॉट इन वेबसाइट पर देखे जा सकेंगे लेकिन इसके लिए इंडिया रिजल्ट्स डॉट कॉम की वेबसाइट के लिंक को भी क्लिक करना पड़ेगा। जो विवि के लिए नि:शुल्क व्यवस्था कर रहा है। 
अभाविप ने किया ऑनलाइन प्रक्रिया का स्वागत 
नैनीताल। छात्रों के संगठन अभाविप ने कुमाऊं विवि द्वारा परीक्षा पण्राली को ऑनलाइन करने और इसके लिए परीक्षा फॉर्म भरने के लिए ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों विकल्प देने पर विवि प्रशासन व कुलपति की पहल का स्वागत किया है। परिषद कार्यकर्ताओं ने कहा कि वह कई बार इस बाबत विवि प्रशासन को ज्ञापन दे चुके थे। कुमाऊं विवि छात्र परिषद (महासंघ) ने भी विवि की पहल का स्वागत किया है। 
विवि के लिए अमेरिकी कैंसर संस्थान तैयार करेगा प्रोजेक्ट 
नैनीताल। अमेरिका के बफैलो शहर स्थित रोजवैल पार्क कैंसर इंस्टीटय़ूट कुमाऊं विवि के लिए कैंसर के निदान के लिए प्रयोग की जाने वाली फोटो डायनेमिक थेरेपी के प्रोजेक्ट तैयार करेगा। विवि के कुलपति प्रो. एचएस धामी ने बताया कि इस संस्थान के फोटो डायनेमिक थेरेपी सेंटर के निदेशक प्रो. रवींद्र कुमार पांडे कुमाऊं विवि के पूर्व छात्र हैं। उन्हीं की पहल पर यह हुआ है। विवि ने अपने रसायन, भौतिकी व माइक्रो बायलॉजी के तीन प्राध्यापकों-डा.पैनी जोशी उपाध्याय, डा. संतोष उपाध्याय व प्रो. संजय पंत को इस प्रोजेक्ट हेतु नियुक्त कर दिया है।

बुधवार, 4 दिसंबर 2013

'आस्कर पिस्टोरियस' की राह पर दून का लोकेश

हौसलों के आगे हार गयी विकलांगता
शारीरिक रूप से दक्ष खिलाड़ियों के बीच ही मुकाबला करना चाहता है लोकेश 
नवीन जोशी नैनीताल। ओलम्पियन ब्लेड रनर आस्कर पिस्टोरियस को अपना आदर्श मानने वाला दून का लोकेश खेलों की दुनिया में अपना एक नया मुकाम हासिल करना चाहता है। लोकेश ने अपना एक पैर बचपन में हुई एक दुर्घटना में गंवा दिया था, लेकिन अपनी इच्छाशक्ति, साहस और हौसले की बदौलत उसने शरीर सौष्ठव (बॉडी बिल्डिंग) व भारोत्तोलन (वेटलिफ्टिंग) में अपनी अलग पहचान बनाई है। लोकेश का कहना है कि वह विकलांग खिलाड़ियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं करेगा, बल्कि शारीरिक रूप से दक्ष खिलाड़ियों के बीच मुकाबला करेगा। राज्यस्तरीय भारोत्तोलन प्रतियोगिता में लोकेश कांस्य पदक हासिल कर चुका है। 
आस्कर पिस्टोरियस
18 वर्षीय लोकेश कुमार चौधरी ने नैनीताल में ‘राष्ट्रीय सहारा’ से भेंट में बताया कि वह दून के डीएवी कॉलेज में बीकॉम द्वितीय वर्ष का छात्र है। लोकेश के अनुसार 1997 में उसके पिता किशोरी लाल पौड़ी में पुलिस विभाग में एसपीओ के पद पर थे। तब वह चार वर्ष का था कि एक दिन एक ट्रक ने उसके बांए पैर को कुचल दिया। पांच भाई-बहनों में सबसे छोटे लोकेश को 2003 में नकली पैर पहना दिये। तभी लोकेश ने ठान लिया था कि वह किसी को खुद को विकलांग नहीं कहने देगा। न केवल आम और पूरी तरह से शारीरिक रूप से दक्ष युवकों के साथ खड़ा होगा, वरन स्वयं को साबित करते हुए उनके लिए भी मिसाल कायम करके रहेगा। गत दिवस नगर के शैले हॉल में आयोजित 55 किग्राभार वर्ग में लोकेश ने मिस्टर उत्तराखंड प्रतियोगिता में भी उसने प्रतिभाग किया, तो प्रदेश के बॉडी बिल्डिंग कोच व प्रतियोगिता के निर्णायक केएन शर्मा उसकी प्रतिभा व दृढ़ हौसले के कायल हुए बिना न रह पाए और अपनी जेब से उसे 1100 रुपए का नगद पुरस्कार भेंट किया। लोकेश प्रदेश का इकलौता शारीरिक रूप से अक्षम बॉडी बिल्डर तो है ही, साथ ही वह आम खिलाड़ियों के साथ ही प्रतिभाग करने का हौसला रखता है। लोकेश ने बताया कि अभी वह छह माह से ही बॉडी बिल्डिंग का प्रशिक्षण ले रहा है। पूर्व में वेट लिफ्टिंग में आम खिलाड़ियों के बीच प्रतिस्पर्धा करते हुए इस 55 किग्राके पहलवान ने बैंच प्रेस पर लेटकर 75 किग्रा, स्कॉट्स पर 90 किग्राऔर डेड लिफ्ट स्पर्धा में 120 किग्रा वजन उठाकर राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में रजत पदक प्राप्त किया है। 

बुधवार, 20 नवंबर 2013

मंत्रियों ने अपनी सीटें सामान्य करा लीं, बाकी पर आरक्षण

पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण का खाका तैयार 
नैनीताल (एसएनबी)। जनपद में आसन्न पंचायत चुनावों के लिए ब्लाक प्रमुख, जिला पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य एवं ग्राम पंचायत की सीटों के लिए आरक्षण की घोषणा हो गई है। बुधवार को डीएम के स्तर से आरक्षण की स्थिति साफ हो गई है। इसके तहत जनपद की सर्वाधिक महत्वपूर्ण हल्द्वानी, बेतालघाट और रामनगर के ब्लॉक प्रमुखों की सीटें अनारक्षित रखी गई हैं। उल्लेखनीय है कि यह तीनों क्षेत्र राज्य सरकार के तीन सर्वाधिक प्रभावी काबीना मंत्रियों के परंपरागत क्षेत्र हैं। हल्द्वानी काबीना मंत्री डा. इंदिरा हृदयेश, बेतालघाट अब परोक्ष तौर पर यशपाल आर्या एवं रामनगर अमृता रावत के गृह क्षेत्र हैं। वहीं कोटाबाग में अनुसूचित जाति की महिला, ओखलकांडा में अनुसूचित जाति के पुरुष या महिला तथा धारी, रामगढ़ व भीमताल महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं। 
साफ है कि इन सभी ब्लाकों में मौजूदा स्थिति के हिसाब से आरक्षण के बदलाव से राजनीतिक रूप से उलटफेर कर दिया गया है, हालांकि अभी इन पर आपत्तियां भी दी जा सकती हैं। इसी तरह जिला पंचायत क्षेत्रों के आरक्षण की बात करें तो जिले की 26 सीटों में से तीन सीटें अनुसूचित जाति की महिलाओं, तीन अनुसूचित जाति, एक पिछड़ी जाति, नौ महिलाओं के लिए आरक्षित तथा 10 अनारक्षित छोड़ी गई हैं। चोरगलिया आमखेड़ा, ककोड़ व पत्तापानी अनु. जाति की महिलाओं, आंवलाकोट, ओखलकांडा मल्ला व पूरनपुर अनु. जाति, सिमलखां पिछड़ी जाति, सूपी, जंगलियागांव, दाड़िमा, दीनी तल्ली, सरना, चंद्रनगर, बमेठा बंगर खीमा, बिठौरिया नं. 1 व अमृतपुर महिलाओं के लिए आरक्षित की गई हैं। वहीं पनियाली, ज्योलीकोट, बड़ोन, कमोला, ढोलीगांव, हरतपा, घंघरेटी, छोई, गहना व मेहरागांव अनारक्षित रखी गई हैं। इसी प्रकार क्षेत्र पंचायत एवं ग्राम पंचायत की सीटों के लिए भी आरक्षणों की भारी भरकम सूची जारी कर दी गई है, और इसे जिला व ब्लॉक मुख्यालयों पर रखवा दिया गया है।

सोमवार, 18 नवंबर 2013

स्थापना दिवस पर नैनीताल को कुदरत से मिला ‘विंटर लाइन’ का अनूठा तोहफा

नवीन जोशी, नैनीताल। इधर सरोवरनगरी वासी सोमवार को अपनी प्रिय नगरी का 172वां स्थापना दिवस मना रहे थे। उधर कुदरत ‘प्रकृति का स्वर्ग’ कही जाने वाली नगरी को चुपके से ऐसा तोहफा दे गई, जिसे प्रकृति प्रेमी ‘विंटर लाइन’ कहते हैं। कुदरत की इस अनूठी नेमत ‘विंटर लाइन’ के बारे में कहा जाता है कि यह दुनिया में केवल स्विटजरलैंड की बॉन वैली और मसूरी के लाल टिब्बा से ही नजर आती है। नैनीताल से भी यह वर्षो से नजर आती है लेकिन अब तक इसे नगर व प्रदेश के पर्यटन कैलेंडर और पर्यटन व्यवसायियों से मान्यता नहीं मिल पाई है। प्रकृति प्रेमियों के अनुसार ‘विंटर लाइन’ की स्थिति सर्दियों में मैदानों में कोहरा छाने और ऊपर से सूर्य की रोशनी पड़ने के परिणामस्वरूप शाम ढलते सैकड़ों किमी लंबी सुर्ख लाल व गुलाबी रंग की रेखा के रूप में नजर आती है। नैनीताल में इसका सबसे शानदार नजारा हनुमानगढ़ी क्षेत्र से लिया जा सकता है लेकिन नगर के चिड़ियाघर क्षेत्र से भी इसे देखा जा सकता है। सुबह सूर्योदय से पूर्व भी इसे हल्के स्वरूप में देखा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि हनुमानगढ़ी से सूर्यास्त के भी अनूठे नजारे देखने को मिलते हैं। प्रकृति प्रेमी बताते हैं कि इस दौरान डूबते हुए सूर्य में कभी घड़ा तो कभी सुराही जैसे अनेक आकार प्रतिबिंबित होते हैं। पूर्व में इन्हें देखने के लिये यहां बकायदा व्यू प्वाइंट स्थापित थे, जो बीते वर्षो में हटा दिये गये हैं।

नेपाली फिल्म ‘विरासत’ में भी दिखती है नैनीताल की विंटर लाइन

नैनीताल। देश-प्रदेश के पर्यटन विभाग और पर्यटन व्यवसायी भले विंटरलाइन की खूबसूरती का नगर के पर्यटन उद्योग को बढ़ाने में उपयोग न कर रहे हों लेकिन गत वर्ष नगर में इन्हीं दिनों फिल्माई गई नेपाली फिल्मों के निर्देशक गोविंद गौतम की नायक समर थापा व नायिका सोनिया खड़का अभिनीत फिल्म विरासत में नैनीताल की विंटरलाइन को फिल्माया गया है। इस फिल्म के एक गीत में नायकनाियका के बीच हनुमानगढ़ी के पास विंटर लाइन को दिखाते हुए प्रणय दृश्य फिल्माए गए हैं।

रविवार, 17 नवंबर 2013

यूं ही नहीं, तत्कालीन विश्व राजनीति की रणनीति के तहत अंग्रेजों ने बसासा था नैनीताल


रूस को भारत आने से रोकने और पहले स्वतंत्रता आंदोलन का बिगुल फूंक चुके रुहेलों से बचने के लिए अंग्रेजों ने बसाया था नैनीताल

नैनीताल के प्राकृतिक सौंदर्य ने भी खूब लुभाया था अंग्रेजों को

नवीन जोशी, नैनीताल। ऐसा माना जाता है कि 18 नवम्बर 1841 को एक अंग्रेज शराब व्यवसायी पीटर बैरन नैनीताल आया और उसने इस स्थान के थोकदार नर सिंह को नाव से झील के बीच ले जाकर डुबो देने की धमकी दी और शहर को कंपनीबहादुर के नाम करवा दिया था। यह अनायास नहीं था कि एक अंग्रेज इस स्थान पर आया और उसकी खूबसूरती पर फिदा होने के बाद इस शहर को ‘छोटी विलायत’ के रूप में बसाया। साथ ही शहर को अब तक सुरक्षित रखे नाले और अब भी मौजूद राजभवन, कलेक्ट्रेट, कमिश्नरी, सचिवालय (वर्तमान उत्तराखंड हाईकोर्ट) तथा सेंट जॉन्स, मैथोडिस्ट, सेंट निकोलस व लेक र्चच सहित अनेकों मजबूत व खूबसूरत इमारतों के तोहफे भी दिए। सर्वविदित है कि नैनीताल अनादिकाल काल से त्रिऋषि सरोवर के रूप में अस्तित्व में रहा स्थान है। अंग्रेजों के यहां आने से पूर्व यह स्थान थोकदार नर सिंह की मिल्कियत थी। तब निचले क्षेत्रों से ग्रामीण इस स्थान को बेहद पवित्र मानते थे, लिहाजा सूर्य की पौ फटने के बाद ही यहां आने और शाम को सूर्यास्त से पहले यहां से लौट जाने की धार्मिक मान्यता थी। कहते हैं 1815 से 1830 के बीच कुमाऊं के दूसरे कमिश्नर रहे जीडब्ल्यू ट्रेल यहां से होकर ही अल्मोड़ा के लिए गुजरे और उनके मन में भी इस शहर की खूबसूरत छवि बैठ गई, लेकिन उन्होंने इस स्थान की धार्मिक मान्यताओं की मर्यादा का सम्मान रखा। दिसम्बर 1839 में पीटर बैरन यहां आया और इसके सम्मोहन से बच न सका। व्यवसायी होने की वजह से उसके भीतर इस स्थान को अपना बनाने और अंग्रेजी उपनिवेश बनाने की हसरत भी जागी और 18 नवम्बर 1841 को वह पूरी तैयारी के साथ यहां आया। वह औपनिवेशिक वैश्विकवाद व साम्राज्यवाद का दौर था। नए उपनिवेशों की तलाश व वहां साम्राज्य फैलाने के लिए फ्रांस, इंग्लैंड व पुर्तगाल जैसे यूरोपीय देश समुद्री मार्ग से भारत आ चुके थे, जबकि रूस स्वयं को इस दौड़ में पीछे महसूस कर रहा था। कारण, उसकी उत्तरी समुद्री सीमा में स्थित वाल्टिक सागर व उत्तरी महासागर सर्दियों में जम जाते थे। तब स्वेज नहर भी नहीं थी। ऐसे में उसने काला सागर या भूमध्य सागर के रास्ते भारत आने के प्रयास किये, जिसका फ्रांस व तुर्की ने विरोध किया। इस कारण 1854 से 1856 तक दोनों खेमों के बीच क्रोमिया का विश्व प्रसिद्ध युद्ध हुआ। इस युद्ध में रूस पराजित हुआ, जिसके फलस्वरूप 1856 में हुई पेरिस की संधि में यूरोपीय देशों ने रूस पर काला सागर व भूमध्य सागर की ओर से सामरिक विस्तार न करने का प्रतिबंध लगा दिया। ऐसे में रूस के भारत आने के अन्य मार्ग बंद हो गऐ थे और वह केवल तिब्बत की ओर के मागरे से ही भारत आ सकता था। तिब्बत से उत्तराखंड के लिपुलेख, नीति, माणा व जौहार घाटी के पहाड़ी दरे से आने के मार्ग बहुत पहले से प्रचलित थे। ऐसे में अंग्रेज रूस को यहां आने से रोकने के लिए पर्वतीय क्षेत्र में अपनी सुरक्षित बस्ती बसाना चाहते थे। दूसरी ओर भारत में पहले स्वाधीनता संग्राम की शुरूआत हो रही थी। मैदानों में खासकर रुहेले सरदार अंग्रेजों के दुश्मन बने हुऐ थे। मेरठ गदर का गढ़ था ही। ऐसे में मैदानों के सबसे करीब और कठिन दरे के संकरे मार्ग से आगे का बेहद सुंदर स्थान नैनीताल ही नजर आया, जहां वह अपने परिवारों के साथ अपने घर की तरह सुरक्षित रह सकते थे। ऐसा हुआ भी। हल्द्वानी में अंग्रेजों व रुहेलों के बीच संघर्ष हुआ, जिसके खिलाफ तत्कालीन कमिश्नर रैमजे नैनीताल से रणनीति बनाते हुए हल्द्वानी में हुऐ संघर्ष में 100 से अधिक रुहेले सरदारों को मार गिराने में सफल रहे। रुहेले दर्रे पार कर नैनीताल नहीं पहुंच पाये और यहां अंग्रेजों के परिवार सुरक्षित रहे।

शनिवार, 9 नवंबर 2013

‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ में कत्ती टपकी, काँयी चटैक छन और काँयीं फचैक: डॉ. प्रभा


'नवेंदु'क ‘उघड़ी आखोंक स्वींण’ कवितानै्कि पुन्तुरि नै पुर गढ़व छ, जमैं भाव और विचारना्क मोत्यूंल गछींण कतुकै किस्मैकि रंग-बिरंग मा्व भरी छन। यौ कविता संग्रह में समसामयिक विषयन पर कटाक्षै नै प्रतीक और बिम्ब लै छन। कत्ती-कत्ती दर्शन लै देखीं जाँ। उनरि ‘लौ’, ‘पत्त नै’, ‘रींड़’, ‘असल दगड़ू’ कविता यैक भल उदाहरण छन। जाँ एक तरप नवेंदु ज्यूल ‘दुंङ’, ‘तिनाड़’ जा्स प्राकृतिक उपादानूँ कैं कविताक विषय बणै राखौ, वायीं दुहरि उज्याणि ‘हू आर यू’, ‘कुन्ब’, ‘किलै’, ‘तरक्की’, ‘हरै गो पिरमू’, ‘भ्यार द्यो ला्ग रौ हो’, ‘मैंस अर जनावर, ‘अगर’, ‘परदेस जै बेर’ जसि कवितान में मैंसना्क मनोविज्ञान लै उघाड राखौ। एतुकै नै, एक पढ़ी-लेखी दिमागदार मैंसा्क चा्रि, उ लै समानताक लिजी महिला सशक्तिकरण के जरूरी मा्ननीं। तबै त उँ ‘तु पलटिये जरूर’ कैबेर, च्येलि-स्यैंणिया्ँक मन बै गुण्ड, लोफरनौ्क डर निकाउनै्कि बात कूँनीं और उनुकैं अघिल बढ़नौ्क बा्ट बतैबेर उनुधौं आ्पण तराण पछ्याणन हूँ कूँनीं- ‘‘तु जे लै पैरि/ला्गली बा्ट/घर बै/घर बै इ/ला्गि जा्ल गुण्ड/त्या्र पछिल....बस त्या्र पलटण तलक/और मैकैं फर विश्वास छु/तब त्वे में देख्येलि/उनुकैं झाँसिकि रा्णि/का्इ माता।’’
यमैं क्वे शक न्हैती कि प्रकृति होओ या हमरि जिन्दगि, रिश्त-ना्त होओ या खा्ण-पिण, संतुलन सब जा्ग जरूरी हूँ। जब-जब घर भितेर या भ्यार संतुलन बिगडूँ तब-तब हमौ्र पर्यावरण खराब हूँ, घर-परवार और समाजै्कि व्यवस्था लै गजबजी जैं। ‘जड़ उपा्ड़’ में उ कूँनीं-

‘‘जब बिगड़ि जाँ/मणीं म्यस/पाँणि लै/डाव बणिं/टोणि द्यूं/डा्वन कैं/खपो्रि/लगै द्यूँ/छा्ल घाम/घाम सुकै द्यू/पात पतेल कि/हुत्तै बोट कैं।’’
यौ साचि छ कि संसार कैं देखणौ्क सबनौ्क आ्पण-आ्पण ढंङ हूँ, पर ज्यूँन रूँणा्क लिजी उमींदैकि सबुन कैं जरूरत हैं। अगर मैंस कैं ‘उमींद’ नि होओ, त उ आपणि भितेर लिई साँस कैं भ्यार निकाउँण में लै डरन। उ भलीभाँ जा्णूँ कि अन्यारा्क बाद रोज उज्याव हूँ और जुन्या्लि राता्क बाद अमूँस जरूर ऐं, तबै त उकैं आ्स ला्ग रै अमूँसा्क बाद ज्यूँनिकि-
‘रङिल पिछौड़ में/आँचवा मुणि छो्पि/रङिल करि दये्लि/फिरि आङ ला्गि/अङवाल भरि/उज्या्यि करि दये्लि-ज्यूँनि।’’
जब लै कैकै मनम पीड़ हैं, त वीक आँखन बै आँसु च्वी जानीं और जब कभैं उ जसिक-तसिक आ्पण आँसुन कैं पि लै ल्यूँ, तब लै उ मनैमन डाड़ हालनै रूं। जसिक द्यौक पाणि धारती कैं नवै-ध्वेबेर वीक धाूल-मा्ट सब साप करि द्यूँ और उ हरिपट्ट देखींण फैजै, अगास में ला्गी बादव जब बरसि जानी त उ लै हल्क हैबेर इत्थै-उत्थै उड़ि जा्नीं। उसिकै जब मना्क अगास में उदेखा्क बादव ला्ग जानीं, तब आँख बै आँसु बरसिबेर वीक मन कै कल्ल पाड़नीं। पर, नवेंदु ज्युँक बिचार एहै अलग छन, तबै त उँ ‘डाड़ मारणैल’ कविता में कूँनी-
‘कि हुं/डाड मारणैल/जि छु हुणीं/उ त ह्वलै/के कम जै कि ह्वल, और लै सकर है सकूँ/फिर डाड़ किलै/फिर आँस का्स/फिर लै/जि ऊँणई आँ्स त/समा्इबेर धारि ल्हिओ/कबखतै-कत्ती/हँसि आ्लि अत्ती/काम आ्ल।’’
‘आँखर’ उनरि एक प्रयोगात्मक कविता छ। यौ छ, कम आँखरन में ज्यादे कूँणी। नान्तिनन कै भल लागणी, नान्छना्कि नर लगूणा और ‘घुघूती, बासूतिकि......फा्म दिलूणी जसि-
‘‘भै जा भि मै/के खै ले/यौ दै खा/ए-द्वि ‘पु’ लै खा/ ‘छाँ’ पि/‘घ्यू’ लै खा/धौकै खा।’’
‘आदिम’ कै पढ़िबेर उर्दू गजल कै पढ़नि जसि मिठी-मिठि लागै-
‘‘उँच महल में आदिम, कतुक ना्न जस ला्गू/कतुक लै लम्ब हो भलै, बा्न जस लागूँ।’’
‘काँ है रै दौड़’ में उनूंल आजा्क समाजैकि भभरियोयिक जो का्थ लेख राखी उकैं पढ़बेर लागूँ मैंस कैं भगवानै्ल एतुक दिमाग दि रा्खौ, पै लै उ संसारा्क भूड़पना ओझी किलै रौ, जो सिद्द-साद्द बाट छन उनूमें किलै नि हिटन? जब सबूकै संसार गाड़ाक वार बै पारै जाण छ, तब मैसूंल यौ भजाभाज किलै लगै रा्खी? अगर मैस दुहा्रनै्कि टाङ खैचण है भल आपुकै समावण में ला्ग जाओ, त वीक मनौ्क आधू असन्तोष त उसिकै दूर है जा्ल-
‘‘सब भाजणई-पड़ि रै भजाभाज/निकइ रौ गाज/करण में छन सिंटोई-सिंगार/अगी रौ भितेर भ्यार।’’
उसिक त टो्लि-बोलि मारणीं मैंस कैकैं भल नि ला्गन, पै साहित्य में सिद्दी बात है भलि उ बात ला्गैं जो घुमै-फिरैबेर कई जैं। सिद्दी बात उतुक असर नि करनि, जतुक बो्लिकि मार करैं। सैद येकै वील साहित्यकारन कैं व्यंग्यात्मक शैली में लेखण अत्ती भल ला्गूँ। यौ मामुल में ‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ में कत्ती टपकी, काँयी चटैक छन और काँयीं फचैक। ‘ब्रह्मा ज्यूकि चिन्त’, ‘तु कूंछी’, ‘को छा हम’, ‘अच्याना्क मैंस’, ‘झन पिए शराब’, ‘न मर गुण्ड’, ‘फरक’, ‘खबरदार’, ‘पनर अगस्ता्क दिन’ जसि कविता, का्नना्क बीच में खिली फूलनै्कि जसि औरी भलि देखींनी-
‘‘आज छि छुट्टी/करौ मैंल ऐराम/सेइ रयूँ दिनमान भरि/लगा टीबी/क्वे पिक्चर नि उणै्छी/बजा रेडू/कैं फिल्मी गीत न उणाछी/सब ठौर उणाछी भाषण/द्यखण पणीं-सुणन पणीं/सुण्यौ, भारत माताकि जैक ना्र/करीब सात म्हैंण पछां/पैल फ्या्र/छब्बीस जनवरिक पछां।’’
ज्यून रूँणा्क लिजी जतुक जरूरी हूँ आङ में खून, उतुकै जरूरी छ पा्णि लै। दुणियाँक लिजी जतुक जरूरी छ दिन उतुकै रात लै, पराण्कि लिजी जतुक जरूरी हूँ ऐराम, उहै नै कम नै ज्यादे, जरूरी हूँ काम लै। मैंसै्कि ज्यूँनि में पिरेम भावैकि उई जा्ग छ, जो रेगिस्तान में पा्णिकि और ह्यू में घामै्कि। इज-बा्ब, भै-बै्णि, दगडू-सुवा सबूक परेम आ्पण-आ्पण जा्ग उतुकै जरूरी छ, जतुक साग में लूँण और खीर में चिनि। जब मैंस ज्वान हुण ला्गूँ, वीक नान्छना्क स्वींण लै बुरूँसा्क फूलूँक चा्रि खितखिताट करण फै जा्नीं। नान्छना आ्मैकि रा्ज-रा्णिक का्थै्कि रा्जै्कि च्येलि, ‘किरन परि’ बणि वीक मनम कुतका्इ लगूँण ला्गैं और उ करण ला्गूँ ‘स्वींणौ्क क्वीड़’
जापानिक ‘हाइकू’ हिन्दी में'इ नै, अब कुमाउँनी में लै खूब देखींण-सुणींण फै ग्यीं। अगर म्ये्रि जानकारि सई छ, त कुमाउँनी में हाइकू लेखणै्कि शुरूआत सबुहै पैली ज्ञान पंत ज्यूल अस्सीक दशक में करि हा्ल छी, पछा उनरि किताब ‘कणिक’ नामैल छापिणीं। हाइकू लेखणौ्क प्रयोग नवेंदु ज्यूल लै करि रा्खौ-
‘‘बंण बै बाग/शहर बै मैस्यिोलि/हरै ग्ये आज।’’
आखिर में, मैं नवेंदु कैं उनरि रचनात्मक समाजसेवा क लिजी बधाई दिनूँ। ‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ उना्र देखी स्यूँणा कैं पुर करैलि, यौ संग्रह में नवीन जोशि ज्यूल आ्पणि कवितान कैं एकबट्या रा्खौ। मकैं पुर विश्वास छ, उघड़ी आखूँक स्वींण पढ़नियाँकैं नवेंदुकि ज्यूनि, जुन्या्लि रात जसि अङाव हा्लड़ी ला्गलि।
 डॉ. प्रभा पंत,  
एसो. प्रोफेसर, हिन्दी, एम.बी.रा.स्ना.महाविद्यालय,  हल्द्वानी
(कविता संग्रह ‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ की भूमिका से उद्धृत)                                                               

गुरुवार, 31 अक्टूबर 2013

जनभाषा की कसौटी पर खरी उतरती है ‘नवेंदु’ की कविता


दोस्तो, मेरे पहले कुमाउनी कविता संग्रह ‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ पर आप सुधी पाठकों की बेहद उत्साहजनक प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। अनेक साहित्य प्रेमियों ने पुस्तक की प्रतियां चाही हैं। निजी व्यस्तताओं की वजह से सभी को समय पर प्रतियां भेजना संभव नहीं हो पा रहा है, आशा है अन्यथा नहीं लेंगे। वैसे पुस्तक नैनीताल के मल्लीताल-कंसल बुक डिपो, माल रोड के नारायन्स बुक शॉप और तल्लीताल में सांई बुक डिपो पर उपलब्ध करा दी गई हैं। यहां से भी पुस्तक प्राप्त की जा सकती है। 
: नवीन जोशी ‘नवेंदु’

दामोदर जोशी ‘देवांशु’

पुस्तक पर कुमाउनी के वरिष्ठ साहित्यकार, संपादक दामोदर जोशी ‘देवांशु’ की ओर से शुभकांक्षा के दो शब्द 

‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ नवीन जोशी ‘नवेंदु’ द्वारा आचंलिक भाषा कुमाउनी में लिखा गया काव्य संकलन है। यह कवि का प्रथम कुमाउनी कविता संग्रह है। जो उसके एक स्वप्न की परिणति है। इससे पूर्व कवि की रचनाएँ छिटफट रूप में पत्र-पत्रिकाओं सहित डॉडा कॉठा स्वर ;काव्य संग्रह, ऑखर तथा दुदबोलि आदि में प्रकाशित होकर कुमाउनी साहित्य की थाती बन चुकी हैं।
कवि ‘नवेंदु’ ने स्वयं संघर्षमय अतीत देखा है। जीवन की जटिलताओं-विषमताओं और विद्रूपताओं से वे स्वयं दो-चार होकर आगे बढ़े हैं। भाषा प्रेम बचपन से रहा। आंचलिक भाषा को अपने उद्गम में ही उपेक्षित होते हुए देखा। जब पहाड़ी बोलने वालों को लोग ‘गंवार’ तक कह देने में नहीं चूकते थे। ऐसी विपरीत परिस्थिति में भी कवि ने माता-पिता और समाज रूपी पाठशाला से कुमाउनी भाषा रूपी अमृत को अपने मन के कलश में भर लिया और उसे ही जन कल्याणार्थ व भाषा विकासार्थ लेखनी द्वारा अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया।
उघड़ी आंखोंक स्वींण’ से तात्पर्य आंखों देखा यथार्थ है। कवि वास्तविकता के धारातल पर विश्वास करता है अतः उसकी कविता में कल्पना की उड़ान नहीं है। फूहड़ हास्य, अतिशयोक्तिपूर्ण अथवा अतिरंजित वर्णनों द्वारा वह वाहवाही नहीं लूटना चाहता। श्रृंगारिक दृश्यों के चित्रण से भी उसको ज्यादा लगाव नहीं है। शब्दों का ढकोसला उसे प्रिय नहीं। अतः उसकी कविता का प्रत्येक शब्द विस्तार लेने की क्षमता रखता है। वह आदर्श का नहीं यथार्थ का पक्षपाती है, और शाश्वत मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध है। सत-असत की विवेचना किये बिना वह भावना के ज्वार में बहने वाला नहीं है। उसकी भाषा जनभाषा की कसौटी पर खरी उतरती है और जन-जन की समस्याओं को प्रतिबिम्बित करती है। स्पष्ट है उसमें जनभाषा की सहजता, स्वाभाविकता, अल्हड़पन और अनगढ़ता विद्यमान है। 
कवि मानव के द्वारा खुली आंखों से देखे गये स्वप्न को साकार होना देखना चाहता है। इसके लिए वह दृढ़ संकल्प शक्ति, कठोर परिश्रम और अध्यवसाय को ब्रह्मास्त्र के रूप में प्रयोग करने की युक्ति बताता है। कवि की कविता में आमजन की व्यथा मुखरित होती है जो कवि को जनकवि होने के अभिधान के निकट ला खड़ा करती है। उसकी कविता बायवी न होकर जाग्रत और उतिष्ठित जीवन का सन्देश देती है।
कवि का मानना है कि आज आदमी कहीं खो गया है। इतनी भीड़ में भी वह पहचाना नहीं जा रहा। यहाँ वह नहीं उसकी छाया चल रही है। हिन्दू चल रहा है, मुसलमान चल रहा है, सिक्ख और ईसाई आदि रूपों में उसकी पहचान है। कबीर और गांधाी कहीं दृश्यमान नहीं हो रहे हैं। नवेंदु का संग्रह मनुष्य को मनुष्य बनने का सन्देश देता है। वस्तुतः कविता संग्रह चरम शिखर पर पहुँच गये भ्रष्टाचार, कदाचार प्रदूषण, क्षेत्रवाद और आतंकवाद आदि के विरुद्ध शंखनाद है। कवि आशान्वित है कि यह भेदभाव और जड़ता का कोहरा जल्दी हट छंट जायेगा। सद्बुद्धि का सबेरा जल्दी प्रकट होकर मानव के मोह व स्वार्थ के संसार को अपनी किरणों की तलवार से छिन्न-भिन्न कर देगा। भारत का गौरव फनः लौट आयेगा। भाषा के साथ विलुप्त हो रही अपनी संस्कृति भी फनः फूलने-फलने लगेगी।
नवीन जोशी ‘नवेंदु’ अपनी माटी से जुड़े युवा व उत्साही साहित्यकार हैं। उनकी रचनाओं में मानवीय संवेदनाओं का असली स्वर छिपा है। समाज की पहचान छिपी है और छिपी है गरीब, बेरोजगार, भ्रमित, श्रमित वर्ग की पीड़ा की प्रतिध्वनि। साहित्य के नव हस्ताक्षरों के लिए उनका रचना संसार एक दृष्टान्त है। उनकी प्रतिभा सतत् विकसित होती रहे और उनका भविष्य उज्ज्वल हो। इसी शुभकामना के साथ !

                      -दामोदर जोशी ‘देवांशु’ सम्पादक-गद्यांजलि 
(पूर्व प्रधानाचार्य)

रविवार, 27 अक्टूबर 2013

कुमाउनी का पहला PDF फॉर्मेट में भी उपलब्ध कविता संग्रह "उघड़ी आंखोंक स्वींण"


दोस्तो, मेरे पहले कुमाउनी  कविता संग्रह "उघड़ी आंखोंक स्वींण" का विमोचन गत 24 अक्टूबर को  नैनीताल क्लब के शैले हॉल में 'नैनीताल शरदोत्सव-2013' के तहत उत्तराखंडी कवि सम्मेलन के दौरान किया गया. 
पुस्तक नैनीताल के मल्लीताल स्थित कंसल बुक डिपो एवं माल रोड स्थित नारायंस में उपलब्ध करा दी गयी है। पुस्तक के बारे में कुमाउनी के मूर्धन्य कवि, लेखक, साहित्यकार व संपादक मथुरा दत्त मठपाल जी का आलेख साभार प्रस्तुत है। 

नवेंदु की कविता: एक नोट

कुमाउनी के युवा कवि नवीन जोशी ‘नवेंदु’ और उनकी कविता से मेरा पिछले अनेक वर्षों से परिचय रहा है। उनकी कविताओं की विषय-वस्तु का स्पान बहुत विस्तृत है, जिसमें दैनिक जीवन की साधारण वस्तुओं से लेकर गहनतम मानवीय अनुभूतियां सम्मिलित हैं। वे बिना लाग-लपेट के अपनी बात कहने में समर्थ हैं।  अनेक स्थानों पर भावों की ऊंची उड़ान भरने पर भी उनकी कविता अपनी सहजता-सरलता का त्याग नहीं करती। वे सरलतम शब्दों में मन के गहनतम भावों को प्रकट करने में समर्थ हैं। उनकी यही सामर्थ्य उन्हें अपनी उम्र से कहीं अधिक तक पेंठ करने वाले एक सशक्त रचनाकार का रूप देती है। वे कोरी लफ्फाजी नहीं करते। वरन, उन्हें जो कुछ कहना होता है, उसे वे ठोक-बजाकर, और अनेक स्थलों पर ताल ठोंक कर भी सरलतम शब्दों में पाठकों के आगे प्रस्तुत कर देते हैं।


मानवों के बीच के आपसी रिश्ते ठंडे पड़ चुके हैं, और हर इन्सान जैसे इन्हीं ठण्डे रिश्तों को अपनी नियति के रूप में स्वीकार कर दुबका हुआ है। अपने बाहर वह एक सुरक्षा खोल सा ओढ़ कर दुबका हुआ है, और इसी में वह अपनी सुरक्षा समझ रहा है।म्येसी गईं मैंस/ बारमासी / अरड़ी रिश्त-नातना्क अरड़ में/ इकलै बिराउक चार/ चुला्क गल्यूटन में लै - अरड़
मानव केवल स्वप्न बुन रहा है। करने का सामर्थ्य होते हुए भी वह एक विचित्र  प्रकार की तामसिक वृत्ति से घिरा है।

आफी बांदी खुद खोलंण, दुसरों कें चांणईं/ बिन के पकाइयै, लगड़-पुरि चांणई । - सब्बै अगाश हुं जांणईं समय बहुत बलवान है। समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है। लड़ाई भी। शत्रु पक्ष बदल जाता है, लड़ाई का कारण, उसकी तकनीक, उसका उद्देश्य सब कुछ बदल जाता है-



लड़ैं- बेई तलक छी बिदेशियों दगै / आज छु पड़ोसियों दगै / भो हुं ह्वेलि घर भितेरियों दगै। कवि के पास एक उत्कृष्ट जिजीविषा है, जिसके दर्शन हमें उसकी अनेक कविताओं में होते हैं। उसका मानना है कि घोर संकट के क्षणों में भी हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए- पर एक चीज/ जो कदिनै लै/ न निमड़णि चैनि/ जो रूंण चैं/ हमेशा जिंदि/ उ छू-उमींद/ किलै की-/ जतू सांचि छू/ रात हुंण/ उतुकै सांचि छू/ रात ब्यांण लै। - उमींद                                                     ‘सिणुक’ शीर्षक कविता में कवि एक सिणुक (तिनके) के भी अति शक्तिशाली हो सकने के तथ्य को रेखांकित करता है-  जो् कान/ सच्चाइ न सुणन/ फोड़ि सकूं/ जो आं्ख/ बरोबर न देखन/ खोचि सकूं/ जो दाड़/ भलि बात न बुलान/ उं दाड़न ल्वयै सकूं।                                                           मानवीय सामर्थ्य के बौनेपन का अहसास कराने वाली कविता ‘ज्यूंनि’, जिसमें गजल की रवानी है-मुझे बहुत अच्छी लगी-कूंणा्क तैं ज्यूनि, ज्यूं हर आदिम।/ सांचि कौ कूंछा-ज्यूनि बोकण जस लागूं/ उ ठेठर जो डाड़ मारि बेर सबूं कैं हंसूं / म्या्र आंखा्क पांणि में वी आदिम जस लागूं।
समाज का एक बड़ा वर्ग सर्वहारा वर्ग का है। वह एक तिनके की तरह कमजोर-निरीह-अल्पसंतोषी, आत्मसंतोषी है-


तिनाड़न कैं कि चैं ?/ के खास धर्ति नैं/ के खास अगास नैं/ के मिलौ/ नि मिलौ/ उं रूनीं ज्यून/ किलै, कसी ?/ बांणि पड़ि ग्येईं ज्यून रूंणा्क -तिना्ड़
‘भैम’ कविता में कवि का संदेश बहुत स्पष्ट है। दशहरे में फूंका जाने वाला रावण तो मात्र एक बहम है। फूंक सकते हो तो-
मेरि मानछा/ न बणाओ/ न भड़़्याओ मरी रावण/ जब ठुल-ठुल रावण छन जिन्द दुनी में/ करि सकछा/ उनन कें धरो चौबटी में/ उनूं कैं भड़्याओ/ खाल्लि/ भैम  भड़्यै बेर कि फैद ?
मनुष्य को मुंह तो खोलना ही होगा। आपाधापी और अनिश्चितता की आज की परिस्थितियों में यह और भी अध्कि आवश्यक हो चला है। ‘कओ’ कविता में कवि आह्वाहन करता है-
कओ,/ जोर-जोरैल कओ/ जि लै कूंण छू/ पुर मनचितैल कओ/ तुमि चुप न रओ/ निडर-निझरक है बेर/ अपण-पर्या भुलि बेर/ पुर जोरैल/ हकाहाक करो। 
आशा का स्वर- 
ह्वल उज्या्व, अर ए दिन जरूड़ै ह्वल/ मिं जानूं-तैसि न सकीणी क्वे रातै न्हें -हमा्र गौं में
‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ कविता, जिस पर इस काव्य संकलन को नाम दिया गया है, आशावाद की एक श्रेष्ठ कविता है, इसकी एक अन्तिका देखैं-
छजूणईं ईजा्क थान कैं/ बाबुक पूर्व जनमा्क दान कैं/ झाड़णईं झाड़/ छांटणईं गर्द/ समावणईं पुरुखनैकि था्ति/ चढ़ूणईं फूल-पाति/ दिणईं आपणि बइ/ हरण हुं दुसरोंकि टीस-पीड़/ राता्क धुप्प अन्या्र में/ मिं लै देखणयूं-उघड़ी आंखोंक स्वींण।
जीवन क्या है ? विषम परिस्थितियों में भी जी जाना ही तो-
चिफा्व सिमार बा्ट में लै, दौड़ छु ज्यूनि - ज्यूनि
फिरि लै-/ जि ऊंणईं आं्स त/ समा्इ बेर धरि ल्हिओ/ कभतै कत्ती/ हंसि आली अत्ती/ काम आल - डाड़ मारणैल
कवि ने छन्द-मुक्त कविता, गीत, गजल, क्षणिकायें, हाइकू आदि विविध रचना -शैलियों पर सार्थक रूप से अपनी लेखनी चलाई है। अनेक स्थलों पर बिम्बों और प्रतीकों का सहारा लिया है। अनेक अलंकार कवि की रचना में स्वतः आ गए हैं। कवि के पास एक समृद्ध कुमाउनी भाषा है। निम्न शब्द प्रचलन से हटते जा रहे हैं- 
गल्यूट, घ्यामड़, उदंकार, असक, एकमही, अद्बिथर, कट्ठर, कुमर, भुड़, पांजव जैसे ठेठ ग्रामीण कुमाउनी शब्दों का व्यापक और सही स्थान पर प्रयोग हुआ है। अनेक स्थलों पर मुहावरों, लोकोक्तियों का सटीक प्रयोग हुआ है, यथा-किरमोई बर्यात, गुईं जिबा्ड़, ब्याखुलिक स्योव, चोर मार, मरी पितर भात खवै, सतझड़ि करण, आंखन जाव लागण आदि। 
नवेंदु जी को अपनी तरुणावस्था तक अपने बाल्यकाल में नैनी-चौगर्खा (जागेश्वर) क्षेत्र के ग्रामीण परिवेश में रहने का अवसर मिला है। किसी भी भाषा को सीखने के लिए यही सर्वोत्तम आयु होती है। आगे चल कर कपकोट के बाहर भी उनको कुमाउनी परिवेश मिला। उनकी समृद्ध कुमाउनी का यही रहस्य है, जोआज की युवा पीढ़ी में कम ही दिखाई दे रहा है। पिफर घर के भीतर उन्हें अपने रचनाकार पिता का सानिध्य मिलता रहा, जिससे रचनाशीलता के लिए ललक और सामर्थ्य का निरन्तर विकास होता चला गया। उनके पिता श्री दामोदर जोशी ‘देवांशु’ हिंदी और कुमाउनी के एक सशक्त रचनाकार/ कवि हैं। स्वयं के लेखन और प्रकाशन के अतिरिक्त उन्होंन कुमाउनी रचनाधर्मियों के एकांकी, निबंध, कहानी आदि संग्रहों का समय-समय पर सम्पादन/प्रकाशन और कुमाउनी भाषा को आगे बढ़ाने में भारी सहायता की है। मेरी तो यही कामना है है कि नवेंदु जी साहित्य के क्षेत्र में अपने यशस्वी पिता से कहीं आगे निकलें, क्योंकि ‘पुत्रात शिष्यात् पराजयमम्’-यानी पुत्र और शिष्य से तो पराजय की ही कामना करनी चाहिए। अलमतिविस्तरेण। 


 -मथुरा दत्त मठपाल
महाशिवरात्रि पर्व,   सम्पादक-दुदबोलि (कुमाउनी वार्षिक पत्रिका)
10 मार्च 2013 ई.    पम्पापुर, रामनगर, नैनीताल जनपद।


प्रस्तुत कविता संग्रह में प्रदेश की लोक संस्कृति, सामाजिक सरोकारों, जीवन दर्शन, राजनीतिक प्रदूषण के साथ ही प्राकृतिक बिंबों को प्रदर्शित करती एवं वर्तमान हालातों की विषमताओं व विद्रूपताओं के बावजूद सकारात्मक सोच से आगे बढ़ने का संदेश देने वाली 114 कुमाउनीं कविताएं संग्रहीत हैं। इनमें तुकांत, लयबद्ध, गीत, गजल एवं आधुनिक जापानी हाइकू शैली की कविताएं भी शामिल हैं। दैनिक जीवन के बहुत छोटे तिनाड़ (तिनके), ढुड. (पत्थर), चिनांड़ (चिन्ह), सिंड़ुक (सींक), म्यर कुड़ (मेरा घर), अरड़ (ठंडा), रींड़ (ऋण) बुड़ बोट (बूढ़ा पेड़), बा्टक कुड़ (रास्ते का घर) व गाड़िकि रोड जैसे बिंबों के साथ ही राजअनीति, पहाड़ाक हाड़, इतिहास, पछ्याण (पहचान), बखत (समय), ज्यूनि अर मौत (जिंदगी और मौत), पनर अगस्ता्क दिन तथा घुम्तून हुं (पर्यटकों से अपील), बाग ऐगो, इंटरभ्यू में, गाड़ ऐ रै, हमा्र गौं में, परदेश जै बेर व मिं रूढ़िवादी भल (मैं रूंढ़िवादी ही ठीक) जैसी कविताएं मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों विषयों पर कटाक्ष करने के साथ ही इनसे उठने वाले सवाल उठाने के साथ उनके जवाब भी देती नजर आती है। साथ ही गहरे अंधेरे के बाद अवश्यमेव उजाला होने का विश्वास भी जगाती है।

पृष्ठ संख्या: 160, कुल कवितायेँ: 114, मूल्य पुस्तक: रुपए 250, मूल्य : PDF फॉर्मेट रुपये 150। 

पुस्तक P.D.F. फोर्मेट में रूपए 150 में (S.B.I. नैनीताल के खाता संख्या 30972689284 में जमाकर) ई-मेल से भी मंगाई जा सकती है।

प्रकाशक: जगदम्बा कम्प्यूटर्स एंड ग्राफ़िक्स, हल्द्वानी (नैनीताल), उत्तराखंड। 

दोस्तो,
मेरी  चुनिन्दा कुमाउनी कवितायें मेरे ब्लॉग 'ऊंचे पहाड़ों से.… जीवन के स्वर' के लिंक को क्लिक कर के देख सकते हैं। . 

बधाइयों, शुभकामनाओं एवं आशीर्वाद के लिए सभी मित्रों / अग्रजों का धन्यवाद, आभार, सुविधा के लिए पुस्तक नैनीताल के मल्लीताल स्थित कंसल बुक डिपो एवं माल रोड स्थित नारायंस में उपलब्ध करा दी गयी है। 


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Mobile: 9412037779, 9675155117.

रिकार्ड भीड़ ने दी नैनीताल शरदोत्सव को विदाई

नैनीताल। नैनीताल शरदोत्सव 2013 को आखिरी दिन रिकार्ड भीड़ ने उत्साह के साथ नाचते-झूमते हुए अलविदा कहा। इस मौके पर इंडियन आइडिल के साथ ही देश-दुनिया में अपने प्रदर्शन से नाम कमा चुके मूलत: प्रदेश के ही कलाकारों, रुद्रपुर की कनिका जोशी व देहरादून के प्रियंका नेगी व कपिल थापा की गायकी के जादू पर धारचूला के सत्यवान सिंह नपलच्याल 'सत्या' की अगुवाई वाले डी-मानियाएक्स ग्रुप के हैरतअंगेज नृत्य ने ऐसा जादू बिखेरा की दर्शक स्थिर नहीं रह पाए, और जो जहां था वहीं झूमता नाचता नजर आया। कनिका ने सुप्रसिद्ध कुमाऊंनी लोकगीत कैले बजै मुरुली से शुरुआत की और प्रियंका व कपिल के साथ व अलग हिंदी फिल्मों के कई नए-पुराने डांस नम्बर गीतों से खूब जादू चलाया। उत्साह का आलम यह था कि मध्य रात्रि के करीब मजबूरन आयोजकों को कार्यक्रम के समापन की घोषणा करनी पड़ी। समापन के मौके पर डीएम अरविंद सिंह ह्यांकी ने कलाकारों और उनके परिजनों को स्मृति चिह्न बांटे एवं आयोजन में सहयोग देने वाले प्रशासनिक अधिकारियों, नगर पालिका प्रशासन एवं नगर की जनता का आभार जताया। 

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2013

राहुल के पीएम बनने की कल्पना मूर्खता: कोश्यारी


नैनीताल (एसएनबी)। वरिष्ठ भाजपा नेता व पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने गत दिवस दागी जनप्रतिनिधियों संबंधी अध्यादेश को बकवास कहने वाले राहुल गांधी को ही नॉनसेंस करार दिया है। वह शुक्रवार को नैनी जिला कारागार परिसर में पत्रकारों के सवालों के जवाब दे रहे थे। राहुल गांधी के भावनात्मक भाषणों पर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में कोश्यारी ने कहा कांग्रेस के उपाध्यक्ष के बयानों को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया जा सकता। वह अपनी पार्टी में जिस पद पर हैं उसके भी योग्य नहीं हैं, लिहाजा उनके लिए प्रधानमंत्री बनने की कल्पना मूर्खता है। उन्होंने कहा, "जो व्यक्ति प्रधानमंत्री द्वारा तैयार विधेयक को 'नॉनसेंस' कहता है, वह खुद 'नॉनसेंस' है।"

कोश्यारी शुक्रवार को रुद्रपुर से गिरफ्तार 27 पार्टी कार्यकर्ताओंसे मिलने पार्टी नेताओं के साथ नैनी जिला कारागार पहुंचे थे। इस दौरान कोश्यारी मीडियाकर्मियों के सवालों के जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा आसन्न पंचायत चुनावों में अपनी हार की संभावनाओं को देख कांग्रेस सरकार बौखला गई है। इसलिए प्रदेश में सद्भावना का माहौल बिगाड़ना चाहती है। सरकार ने यदि तुरंत पार्टी नेताओं पर दर्ज मुकदमे वापस न लिए और बंदी बनाए कार्यकर्ताओं को तत्काल रिहा न किया तो प्रदेश भर में जेल भरो आंदोलन चलाया जाएगा। इस मौके पर देवेंद्र ढैला, गोपाल रावत, हेम आर्या, मनोज साह, संतोश साह, नितिन कार्की, सहित बड़ी संख्या में भाजपाई साथ रहे। किसी की नजर ना लगे, यह दुआ कीजिए : एक प्रश्न के जवाब में कि उनकी नैनीताल लोस सीट से दावेदारी पर कई लोगों की नजर लगी हुई है। इस पर कोश्यारी ने चुटकी ली और दुआ कीजिए कि किसी की नजर लग ना जाए।