बुधवार, 25 जून 2014

हालात के लिए पीएम या सीएम नहीं जनता जिम्मेदार : कुंजवाल



कहा, आजादी के बाद न देश के हालात बदले और न ही राज्य बनने के बाद उत्तराखंड के
नैनीताल (एसएनबी)। अपने बेलाग बोलों के लिए प्रसिद्ध प्रदेश के विधान सभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने दो टूक कहा कि आजादी के बाद न देश में हालात बदले और ना ही अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड में। आजादी के बाद भी देश में अंग्रेजी दौर की और उत्तराखंड में यूपी के दौर की पुरानी व्यवस्था ही कमोबेश लागू रही। उन्होंने मौजूदा बुरे हालातों के लिए राजनीतिज्ञों की जगह जनता को ही अधिक जिम्मेदार बताया। कहा, ‘कोई भी पीएम या सीएम नहीं वरन मतदाता दोषी हैं।’
कुंजवाल बुधवार को कुमाऊं विवि के यूजीसी अकादमिक स्टाफ कालेज में ‘इकानामिक्स, पालिटिक्स एंड सिविल सोसायटी’ विषयक कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जनता अच्छे प्रत्याशियों को वोट नहीं देती और चुनाव में धन व बाहुबल प्रदर्शित करने वाले प्रत्याशियों को पल्रोभन में आकर वोट देती है। ऐसे में सभी प्रत्याशियों को चुनाव में काफी पैसा खर्च करना पड़ता है। उन्होंने कहा, जो प्रत्याशी दो करोड़ रपए खर्च कर विधायक बनेगा, उससे ईमानदारी से कार्य करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। बोले, देश में अच्छे से अच्छा नियम-कानून बनता है तो उसे भी तोड़ने के रास्ते निकाल लिए जाते हैं। आरटीआई और मनरेगा को बहुत अच्छे प्राविधान बताने के साथ ही उन्होंने स्वीकारा कि आज सर्वाधिक भ्रष्टाचार इन्हीं के द्वारा हो रहा है। उन्होंने सरकारी कर्मचारियों की भी कार्य को पूरा समय न देने, मोटी तनख्वाह पर हाथ न लगाकर ऊपरी कमाई से ही परिवार चलाने की परिपाटी बनने जैसे मुद्दों को भी छुआ।

गुरुवार, 19 जून 2014

उत्तराखंड में बनेगा ‘हिमालयी क्षेत्रों पर अध्ययन का अंतरराष्ट्रीय संस्थान’

-हिमालयी प्रौद्योगिकी केंद्रीय विश्वविद्यालय जैसा भी हो सकता है स्वरूप
-दिल्ली में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा ली गई बैठक में बनी सहमति
नवीन जोशी, नैनीताल। उत्तराखंड में ‘हिमालयी क्षेत्रों पर अध्ययन का अंतर्राष्ट्रीय संस्थान’ (इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन स्टडीज) की स्थापना की जाएगी। इसका स्वरूप हिमालयी प्रौद्योगिकी केंद्रीय विश्वविद्यालय जैसा भी हो सकता है। राज्य में दिल्ली में बीती मंगलवार यानी 17 जून 2014 को केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी की अध्यक्षता में हुई उच्च स्तरीय बैठक में इस पर सहमति दे दी गई है, तथा प्रदेश के उच्च शिक्षा सचिव डा. उमाकांत पवार को इस बाबत विस्तृत प्रस्ताव तैयार करने को कह दिया गया है। अब उत्तराखंड सरकार को तय करना है कि यह संस्थान अथवा केंद्रीय विश्वविद्यालय राज्य में कहां स्थापित होगा। अलबत्ता, उम्मीद की जा रही है कि यह राज्य के कुमाऊं मंडल में स्थापित किया जा सकता है।
केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी की अध्यक्षता में  हुई बैठक में उपस्थित रहे कुमाऊं 
विवि के कुलपति प्रो. होशियार सिंह धामी ने दिल्ली से दूरभाष पर बताया कि उत्तराखंड में ‘इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन स्टडीज’ पर सहमति बनना राज्य के लिए खुशखबरी है। इस अंतर्राष्ट्रीय स्तर के संस्थान में न केवल हिमालयी क्षेत्रों की नाजुक प्रकृति, आपदा आने की लगातार संभावनाओं, सतत विकास की ठोस प्रविधि विकसित करने, जैव विविधता एवं प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण एवं विकास के बीच जरूरी साम्य तय करने के मानकों के साथ ही हिमालयी क्षेत्र की संस्कृति, विरासत एवं यहां की विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी कुमाउनी व गढ़वाली के साथ ही जौनसारी, भोटिया, थारू, बोक्सा व रांग्पो सहित प्रदेश की सभी लोक भाषाओं के संरक्षण के कार्य भी किए जाएंगे। 

पंत के नाम से ही हो सकता है प्रस्तावित टैगोर पीठ 

नैनीताल। उल्लेखनीय है कि कुमाऊं विवि ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की 12वीं योजना के तहत अल्मोड़ा में प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत पर अध्ययन एवं शोध के लिए रवींद्र नाथ टैगोर के नाम पर पीठ स्थापित किए जाने का प्रस्ताव तैयार किया था। कुलपति प्रो. एचएस धामी ने बताया कि पहले नोबल पुरस्कार विजता सात्यिकारों के नाम पर ही पीठ स्थापित किए जाने का प्राविधान था। अब केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने क्षेत्र के प्रेरणादायी सात्यिकारों के नाम पर भी ऐसे पीठ स्थापित किए जाने की हामी भर दी है, जिसके बाद पीठ का नाम पंत के नाम पर ही हो सकता है। प्रो. धामी ने बताया कि इसके अलावा उत्तराखंड सहित सभी राज्यों में गुजरात की तर्ज पर ‘नो युवर कॉलेज’ कार्यक्रम भी शुरू किया जा सकता है, इसके तहत छात्र-छात्राओं को उनके परिसरों की जानकारी दी जाएगी।

रविवार, 1 जून 2014

नैनीताल विधानसभा में केवल 30 बूथों पर ही मामूली अंतर से आगे रही कांग्रेस

-शेष 80 फीसद यानी 116 बूथों पर भाजपा प्रत्याशी कोश्यारी को मिली भारी बढ़त
नवीन जोशी, नैनीताल। आजादी के बाद से विशुद्ध रूप से केवल एक और संयुक्त क्षेत्र होने पर दो बार ही भाजपा के खाते में गई नैनीताल विधानसभा में कांग्रेस का हालिया लोक सभा चुनावों में कमोबेश पूरी तरह से सूपड़ा साफ हो गया लगता है। मोदी की आंधी में इस बार इस विधानसभा क्षेत्र के 146 में से करीब 20 फीसद यानी 30 सीटों पर ही कांग्रेस प्रत्याशी केसी सिंह बाबा कहीं दो से लेकर अधिकतम 132 वोटों की बढ़त ले पाए, जबकि भाजपा प्रत्याशी भगत सिंह कोश्यारी ने 80 फीसद यानी 116 बूथों से अपनी बढ़ी जीत की इबारत लिखी। 
आजादी के बाद से भााजपा के लिए नैनीताल विधानसभा में कालाढुंगी का बड़ा हिस्सा जुड़ा होने के उत्तराखंड बनने से पहले के दौर में बंशीधर भगत चुनाव जीते थे। तब भी वर्तमान नैनीताल विधानसभा के क्षेत्र में भाजपा प्रत्याशी कमोबेश पिछड़ते ही रहते थे। उत्तराखंड बनने के बाद भाजपा के खड़क सिंह बोहरा 2007 में कोटाबाग और कालाढुंगी क्षेत्र में बढ़त लेकर बमुश्किल यहां से चुनाव जीत पाए थे। 
बीते 2012 के विधानसभा चुनावों में यहां से चुनाव के कुछ दिन पहले ही प्रत्याशी घोषित हुईं, और चुनाव क्षेत्र में ठीक से पहुंच भी न पाईं सरिता आर्या ने 25,563 वोट प्राप्त कर पांच वर्ष से दिन-रात चुनाव की तैयारी में जुटे भाजपा प्रत्याशी हेम चंद्र आर्या को 6358 मतों के बड़े अंतर से हरा दिया था। लेकिन, दो वर्ष के भीतर ही हुए लोक सभा चुनावों में कांग्रेस यहां बुरी तरह से पस्त हो गई नजर आ रही है। यहां से कांग्रेस प्रत्याशी केवल 30 बूथों पर मामूली अंतर से भाजपा प्रत्याशी से आगे रह पाए हैं। उल्लेखनीय है कि नैनीताल विधानसभा में में भाजपा को 30,173 व कांग्रेस को 21,575 वोट मिले हैं और कांग्रेस 8,578 वोटों से पीछे रही है। इससे क्षेत्र के प्रभावी कांग्रेसी नेताओं के अपने बूथों पर प्रत्याशी को जिताने के दावों की कलई भी बुरी तरह से खुल गई है।

इन बूथों पर ही आगे रह पाए बाबा 

नैनीताल विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी केवल मल्ली सेठी, बेतालघाट, तौराड़, हल्सों कोरड़, रतौड़ा (दाड़िमा), तल्ली पाली, धूना (केवल दो मतों से), गरजोली, हरौली, ताड़ीखेत (13 मतों से), गौणा, ठुलीबांज, कफुड़ा, मल्लीताल सीआरएसटी कक्ष नंबर तीन व चार, राप्रावि मल्लीताल कक्ष नंबर तीन, अयारपाटा कक्ष नंबर दो (केवल नौ मतों से), मल्लीताल स्टेडियम, नारायणनगर, लोनिवि कार्यालय कक्ष नं. दो, राइंका तल्लीताल कक्ष एक (सर्वाधिक 168 मतों से), राइंका तल्लीताल कक्ष दो, गेठिया कक्ष दो, भूमियाधार (136 मतों से), छीड़ागांजा, ज्योलीकोट कक्ष एक (29 मतों से, कक्ष दो में 18 मतों से पीछे), पटुवाडांगर, गहलना (सिलमोड़िया), सौड़ व कुड़खेत में ही आगे रहे हैं। 

सरोवरनगरी में भी चली मोदी की आंधी

जिला व मंडल मुख्यालय नैनीताल हमेशा से कांग्रेस का परंपरागत गढ़ रहा है। किसी भी तरह के चुनावों के इतिहास में नैनीताल से कभी भी भाजपा प्रत्याशी कांग्रेस के मुकाबले आगे नहीं रहे हैं। एकमात्र 2004 में भाजपा प्रत्याशी विजय बंसल नैनीताल मंडल से आगे रहे थे, पर तब भी उनके आगे रहने में खुर्पाताल के ग्रामीण क्षेत्रों का योगदान रहा था। वर्तमान कांग्रेस विधायक सरिता आर्या नैनीताल की पालिकाध्यक्ष भी रही हैं, बावजूद वह अपने वोटों को मोदी की आंधी में उड़ने से नहीं रोक पाईं। भाजपा को नैनीताल नगर के 37 बूथों में इतिास में सर्वाधिक 9,154 वोट मिले हैं, जबकि कांग्रेस 7,021 वोटों के साथ 2,153 वोटों से पीछे रह गई है। नगर के नारायणनगर, हरिनगर, लोनिवि कार्यालय कक्ष नंबर 1 और मल्लीताल के कुछ मुस्लिम, दलित व कर्मचारी बहुल क्षेत्रों के केवल नौ बूथों पर ही कांग्रेस अपनी साख बचा पाई है। वहीं भाजपा ने नगर के राबाप्रावि मल्लीताल में 439 मत प्राप्त कर विधानसभा में सर्वाधिक 182 वोटों से बढ़त दर्ज की है।

रविवार, 25 मई 2014

2009 में ही नैनीताल में दिखाई दे गई थी मोदी में ‘पीएम इन फ्यूचर’ की छवि

छह मई 2009 को नैनीताल के फ्लैट्स मैदान में विशाल जनसभा को संबोधित करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।
-अपनी फायरब्रांड हिंदूवादी नेता की छवि के विपरीत की थी गुजरात के विकास की बात
-यूपीए को ‘अनलिमिटेड प्राइममिनिस्टर्स एलाइंस’ और सोनिया, राहुल व प्रियंका गांधी के लिए किया था ‘एसआरपी’ शब्द का प्रयोग
नवीन जोशी, नैनीताल। देश के मनोनीत प्रधानमंत्री एवं आज देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ले रहे नरेंद्र भाई दामोदर दास मोदी वर्ष 2009 में छह मई को लोक सभा चुनाव के प्रचार के लिए भाजपा प्रत्याशी बची सिंह रावत के प्रचार के लिए नैनीताल आए थे। नैनीताल में उस दौर की जनसभाओं के लिहाज से पहली बार भारी भीड़ उमड़ी थी, और लोग भाजपा के तत्कालीन ‘पीएम इन वेटिंग’ लाल कृष्ण आडवाणी की जगह मोदी के मुखौटे चेहरों पर लगा कर रैली में आए थे। साफ था कि मोदी तभी से आज के दिन की तैयारी कर रहे थे। उनके भाषणों में गुजरात का विकास पूरी तरह से छाया हुआ था। अपनी रौ में मोदी ने यहां जो कहा, उसमें विकास का मतलब ‘गुजरात’ हो गया और यूपीए सरकार के साथ ही एनडीए काल की ‘दिल्ली’ भी मानो कहीं गुम हो गई थी। उन्होंने यहां आडवाणी का नाम भी केवल एक बार उनके (आडवाणी के द्वारा) तत्कालीन प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह को कमजोर कहने के एक संदर्भ के अलावा कहीं नहीं लिया था। 
नैनीताल में मोदी को माता नंदा-सुनंदा के चित्र युक्त प्रतीक चिन्ह भेंट करते बची सिंह रावत, बलराज पासी व अन्य स्थानीय नेता। 
नैनीताल के ऐतिहासिक डीएसए फ्लैट्स मैदान में हुई उस जनसभा में मोदी अपने भाषण में पूरी तरह गुजरात केंद्रित हो गऐ थे। उनकी आवाज में यह कहते हुऐ गर्व था कि कभी व्यापारियों का माना जाने वाला गुजरात उनकी विकास परक सरकार आने के बाद से न केवल औद्योगिक क्षेत्र में वरन बकौल उनके एक अमेरिकी शोध अध्ययन रिपोर्ट के आधार पर खारे पानी के समुद्र और रेगिस्तान से घिरा गुजरात कृषि क्षेत्र में वृद्धि के लिए भी देश में प्रथम स्थान पर आ गया है। उन्होंने बताया, गरीबों के हितों के लिए चलाऐ जाने वाले 20 सूत्रीय कार्यक्रमों में गुजरात नंबर एक पर रहा है, साथ ही सूची में प्रथम पांच स्थानों पर भाजपा शासित और प्रथम 10 स्थानों पर एनडीए शासित राज्य ही हैं, तथा एक भी कांग्रेस शासित राज्य नहीं है। इन आंकड़ों के जरिए उन्होंने पूछा कि ऐसे में कैसे ‘कांग्रेस का हाथ गरीबों व आम आदमी के साथ’ हो सकता है। मोदी ने गुजरात की कांग्रेस शासित राज्य आसाम से भी तुलना की। कहा, दोनों राज्य समान प्रकृति के पड़ोसियों बांग्लादेश और पाकिस्तान से सटे हैं। आसाम के मुसलमान परेशान हैं कि वहां भारी संख्या में हो रही बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ से उन्हें काम और पहले जैसी मजदूरी नहीं मिल रही। यूपीए नेता घुसपैठियों को वोट की राजनीति के चलते नागरिकता देने की मांग कर रहे हैं, वहीं पाकिस्तानी गुजरात में घुसने की हिम्मत करना तो दूर उनसे (मोदी से) डरे बैठे हैं। हालांकि मोदी को इस दौरान पूर्व की एनडीए सरकार की कोई उपलब्धि बताने के लिए याद नहीं आई, पर उन्होंने उत्तराखंड की तत्कालीन खंडूड़ी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की तारीफ अवश्य की। कहा, एकमात्र विकास ही देश को बचा सकता है। अपनी फायरब्रांड और कट्टर हिंदूवादी नेता की पहचान वाले मोदी अपनी छवि के अनुरूप एक शब्द भी नहीं बोले, जिससे सुनने वालों में थोड़ी बेचैनी भी देखी गई थी।
इसके अलावा मोदी शब्दों को अलग विस्तार देने व अलग अर्थ निकालने की कला भी नैनीताल में दिखा गए थे। उन्होंने यूपीए को ‘अनलिमिटेड प्राइममिनिस्टर्स एलाऐंस’ यानी असीमित प्रधानमंत्रियों का गठबंधन करार दिया। कहा कि शरद पवार, लालू यादव, पासवान सहित यूपीए के सभी घटक दलों के नेता प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के बजाय स्वयं को भावी प्रधानमंत्री बता रहे हैं, वहीं गांधी परिवार के अलावा कांग्रेस के एक भी वरिष्ठ नेता ने उनका नाम प्रधानमंत्री के रूप में नहीं लिया। उन्होंने गांधी परिवार के लिए ‘एसआरपी’ (सोनिया, राहुल व प्रियंका ) शब्द का प्रयोग करते हुए पूछा, क्या एसआरपी ही देश का अगला प्रधानमंत्री तय करेंगे। 

गुरुवार, 15 मई 2014

एनडी-उज्ज्वला की शादी को शास्त्र सम्मत नहीं मानते विद्वान


कहा, 75 वर्ष की उम्र से शुरू होता है संन्यास आश्रम, इसके बाद विवाह शास्त्र सम्मत नहीं
नैनीताल (एसएनबी)। लखनऊ में पूर्व मुख्यमंत्री व वरिष्ठ कांग्रेस नेता एनडी तिवारी के डा. उज्ज्वला शर्मा से विवाह करने के समाचार पर उनके गृह जनपद में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। सामाजिक रूप से जहां तिवारी के साथ अब तक ‘लिव-इन’ संबंधों में रह रही डा. शर्मा के साथ संबंधों को देर से ही सही स्वीकारने और संबंधों को सामाजिक मान्यता दिलाने की प्रशंसा हो रही है, वहीं 86 वर्ष की उम्र में हैदराबाद कांड होने और अब 89 वर्ष की उम्र में युवा रोहित शेखर को लंबी न्यायिक प्रक्रिया के दौरान पुत्र स्वीकारने के बाद उसकी माता को स्वीकारने को लेकर तरह-तरह की चुटकियां भी ली जा रही हैं। फेसबुक सरीखी सोशल साइटों पर इस मामले में पुत्र रोहित शेखर और कांग्रेस के दूसरे दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह को शादी के मामले में तिवारी द्वारा पछाड़ने जैसे व्यंग्यों के साथ जमकर कटाक्ष किए जा रहे हैं।
कुमाऊं के चंद वंशीय राजपुरोहित पं. दामोदर जोशी ने कहा कि तिवारी की उम्र विवाह की नहीं सन्यास आश्रम की है। इस उम्र में उन्हें इंद्रियों से संबंधित समस्त मानवीय वृत्तियों का न्यास यानी त्याग करना चाहिए था और त्याग व दान आदि श्रेष्ठ कर्मो के साथ अपने जीवन को ईर तथा देश के लिए समर्पित करना चाहिए था। वहीं आचार्य पं. जगदीश लोहनी का लखनऊ को केंद्र मानकर बने अंतर्राष्ट्रीय भाष्कर पंचांग के आधार पर कहना था कि धर्म शास्त्रों के अनुसार 75 की उम्र के बाद मनुष्य का संन्यास आश्रम शुरू हो जाता है। इस उम्र में विवाह शास्त्र सम्मत नहीं माना गया है। उधर, इस शादी को लेकर उत्तराखंड में दिन भर र्चचाओं का दौर शुरू हो गया है। इस शादी को लेकर एनडी समर्थकों व उनकी निजी जिंदगी की आलोचना करने वाले लोगों के बीच में बहस का विषय बना हुआ है कि क्या इस उम्र में शादी करना सही है। समर्थक व विरोधी दोनों ही अपनी- अपनी दलील दे रहे हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि इस अनूठी शादी को लेकर आम लोगों में भी गहरी रुचि पैदा हो गयी है। इसके अलावा सोशल साइटों पर भी एनडी-उज्ज्वला को लेकर बहस छिड़ी है और कई कंमेंट्स लिखे जा रहे हैं। कई चुटकियां तो दोनों के भविष्य को लेकर भी हो रही हैं।

मंगलवार, 6 मई 2014

बिना पार्टियों के चुनाव घोषणा पत्र के ही हो रहे लोक सभा चुनाव !


चुनाव में अब तक जुबानी खर्च ही करते रहे प्रत्याशी, 
प्रचार के आखिरी दिन तक नहीं पहुंचे भाजपा-कांग्रेस सहित किसी भी राष्ट्रीय दल के चुनाव घोषणा पत्र
नवीन जोशी, नैनीताल। चुनावों के लिए पेश किये जाने वाले घोषणा पत्र राजनीतिक दलों के लिए खास होते हैं। जनता अपनी चुनी हुई सरकार से उसके चुनाव पूर्व प्रस्तुत घोषणा पत्र के आधार पर ही जवाब-तलब करती है, मगर संभवत: यह पहली बार होगा कि कुमाऊं मंडल और जिला मुख्यालय में लोकसभा चुनाव की समय सीमा समाप्त होने के दिन तक भाजपा व कांग्रेस सहित किसी दल के घोषणा पत्र नहीं पहुंचे हैं। ऐसे में राजनीतिक दल जनता को अपने घोषणा पत्र नहीं दिखा रहे हैं और हवा-हवाई आरोप- प्रत्यारोपों के आधार पर ही वोट व समर्थन जुटा रहे हैं और संभवत: जनता भी जुबानी वादोंदा वों में ऐसे उलझी है कि वह भी राजनीतिक दलों से चुनाव घोषणा पत्र पढ़ने-संभालने को नहीं मांग रही है। गुजरे दौर में खासकर राजनीतिक दल अपने ही नहीं अन्य पार्टियों के चुनाव घोषणा पत्र अपने चुनाव कार्यालयों में रखते थे, ताकि जनता को दोनों की नीतियों और वादों का अंतर समझाया जा सके। ‘राष्ट्रीय सहारा’ ने सोमवार को लोकसभा चुनाव में प्रचार की समय सीमा समाप्त होने के दिन मुख्यालय में राजनीतिक दलों के चुनाव कार्यालयों का जायजा लिया, मगर किसी दल के चुनाव कार्यालय में पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र उपलब्ध नहीं थे। इस बारे में पूछने पर कहा गया कि इंटरनेट पर घोषणा पत्र उपलब्ध है यह जानते हुए कि देश-प्रदेश में इंटरनेट की उपलब्धता सीमित है। इसके साथ ही घोषणा पत्र किस यूआरएल पते या वेबसाइट पर उपलब्ध हैं इसकी जानकारी भी पार्टी के पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को नहीं है।
लगा प्रचार शुरू ही नहीं हुआ
नैनीताल। इस लोकसभा चुनाव में सही मायनों में पहाड़ पर और खासकर नैनीताल सीट व कुमाऊं मंडल तथा जिले के मुख्यालय में चुनाव प्रचार ठीक से शुरू ही नहीं हुआ था और यह सोमवार को प्रचार की समय सीमा समाप्त होने के साथ खत्म भी हो गया। इस दौरान स्टार प्रचारक कहने भर को यहां केवल भाजपा की ओर से शक्ति कपूर व आप की ओर से भगवंत मान और कांग्रेस के लिए सीएम हरीश रावत ही पहुंचे।

गुरुवार, 1 मई 2014

हिमालयी राज्यों के लिए बने सतत विकास की नीति

संसद में हिमालय को लेकर कभी गंभीरता से नहीं हुई चर्चा, राजनीतिक दल हिमालय पर करें मंथन जलवायु परिवर्तन होने के दुष्प्रभावों पर भी राजनीतिक दल हों गंभीर हिमालय क्षेत्र में जैव विविधता का संरक्षण करने की अत्यंत आवश्यकता
हिमालय को वाटर टावर ऑफ एशिया कहा जाता है। भारत में उत्तराखंड सहित 12 राज्य हिमालयी क्षेत्र में आते हैं। भारत की 60 करोड़ आबादी हिमालय से सीधे या परोक्ष तौर पर प्रभावित होती है, लेकिन हिमालयी क्षेत्रों का दुर्भाग्य है कि देश के 16 फीसद भूभाग में फैले होने के बावजूद यहां देश की केवल चार फीसद जनसंख्या ही वास करती है। शायद इसीलिए हिमालयी क्षेत्र देश और राजनीतिक दलों के एजंेडे में कभी प्रमुखता नहीं रहा है। देश की संसद में 50 यानी करीब 10 फीसद सांसद हिमालयी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन अफसोस कि कभी भी हिमालय के बारे में बात संसद में उस गंभीरता के साथ नहीं रखी गई और न ही वहां अपेक्षित आयामों पर बहस ही हुई। 
वर्ष 2009 में केंद्र सरकार ने ‘जलवायु परिवर्तनों के दुष्प्रभावों से निपटने’ के लिए जो आठ ‘मिशन’ योजनाएं बनाई थीं, उनमें ‘नेशनल मिशन आफ सस्टेनिंग हिमालयन ईको सिस्टम’ यानी हिमालयी क्षेत्रों में सतत पारिस्थितिकीय विकास की राष्ट्रीय योजना भी शामिल है। अल्मोड़ा जनपद के कोसी में स्थित गोविंद बल्लभ पंत हिमालयन पर्यावरण विकास संस्थान कोसी-कटारमल ने इस मिशन के तहत काफी कार्य किया। हिमालयी क्षेत्रों में सतत पारिस्थितिकीय विकास के लिए शासन नाम से गाइडलाइन तैयार की गई। इसमें बताया गया कि किस तरह विकास और पर्यावरण को एक-दूसरे का पूरक बनाया जाए। हिमालयी क्षेत्र की जैव विविधता का संरक्षण कैसे किया जाए, किस मात्रा में हिमालयी क्षेत्र से जड़ी-बूटियों व प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जाए, और कैसे उनका संरक्षण किया जाए। साथ ही कैसे हिमालय की जैव विविधता, उसकी खूबसूरती, खनिजों, जल, जंगल, जमीन और अन्य आयामों को बिना नुकसान पहुंचाए यहां के निवासियों की आजीविका से भी जोड़ा जाए। इन गाइड लाइन में ‘ग्रीन रोड’ यानी ऐसी सड़कें बनाने की बात कही गई है जो प्रकृति व पर्यावरण का संरक्षण करते हुए व उसे बिना छेड़े हुए बनाई जा सकती हैं। साथ ही सामान्यतया कहा जाता है कि विकास और पर्यावरण एक-दूसरे के साथ नहीं चल सकते। यदि आज की तरह का विकास होगा, तो उससे निश्चित ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा, और यदि पर्यावरण का ही संरक्षण किया जाएगा, तो इससे विकास वाधित होगा। लेकिन विकास मनुष्य की आवश्यकता है, इसलिए विकास जरूरी है और हमें ‘पर्यावरण सम्मत’ विकास की बात करनी होगी। विकास के वैकल्पिक उपाय, जैसे सड़कों के स्थान पर रोप-वे, परंपरागत ऊर्जा के साधनों के स्थान पर सौर व वायु ऊर्जा जैसे वैकल्पिक ऊर्जा के साधन, वष्ा जल संग्रहण, सिंचाई के लिए स्प्रिंकुलर विधि आदि का प्रयोग करना होगा। हिमालयी क्षेत्र इतना बृहद है। खासकर पूरे भारत वर्ष को हिमालय प्रभावित करता है, इसलिए हिमालय के बारे में देश को अलग से सोचना पड़ेगा। हिमालय के लिए सतत विकास की अलग नीति बनानी होगी। इस मुद्दे को राजनीतिक एजेंडे में प्रमुखता से शामिल किया जाना चाहिए। (नवीन जोशी से बातचीत पर आधारित)

बुधवार, 23 अप्रैल 2014

पहाड़ में नहीं लोकतंत्र के ’महापर्व‘ जैसा माहौल

पहाड़ के बजाय मैदान में ही जोर लगा रहे प्रत्याशी और समर्थक अब तक किसी पार्टी के स्टार प्रचारक का कार्यक्रम भी तय नहीं
नवीन जोशी नैनीताल। कहने को प्रदेश के पर्वतीय अंचलों में भी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े यानी लोकसभा चुनावों के ‘महापर्व’ का मौका है, मगर इसे चुनाव आयोग की सख्ती का असर कहें कि पहाड़वासियों की मैदानों की ओर लगातार पलायन की वजह से लगातार क्षीण होती राजनीतिक शक्ति का प्रभाव, राजनीतिक दल और उनके प्रत्याशी पर्वतीय क्षेत्रों को चुनावों में भी भाव नहीं दे रहे हैं। कुमाऊं मंडल का जिला एवं मंडल मुख्यालय पर्वतीय क्षेत्रों की कहानी बयां करने के लिए काफी है, जहां पूरे शहर में कहने भर को केवल एक होर्डिग और गिनने भर को कुछ दीवारों पर केवल दो पार्टियों भाजपा व कांग्रेस के चुनाव कार्यालय खुले हैं और उनके ही पोस्टर चिपके हुए हैं। वहीं राज्य और देश के सत्तारूढ़ दल की उपेक्षा का यह आलम है कि उनका मुख्यालय में न ही अब तक चुनाव कार्यालय खुला है और न ही पूरे शहर में कहीं एक भी होर्डिग, बैनर या पोस्टर ही लगे हैं। ऐसे में बैनर-पोस्टर लिखने छापने और चिपकाने वाले चुनावी रोजगार से वंचित हो गए हैं, तो वे लागे महापर्व का अहसास कैसे करें। गौरतलब है कि नए परिसीमन में नैनीताल-ऊधमसिंह नगर संसदीय सीट पर पर्वतीय मतों का प्रतिशत करीब 35 और मैदानी मतों का प्रतिशत 65 है। ऐसे में उम्मीदवार मैदानी क्षेत्रों में ही जोर लगाकर अपनी जीत सुनिश्चित करने की जुगत में हैं। राजनीतिक दलों के स्टार प्रचारकों के भी अभी पर्वतीय क्षेत्रों के लिए कोई कार्यक्रम तय नहीं बताए जा रहे हैं। ऐसे में खासकर नैनीताल में लोकसभा चुनावों से अधिक आसन्न ग्रीष्मकालीन पर्यटन सीजन पर अधिक र्चचाएं हो रही हैं।

इंटरनेट पर लगा चुनावी मेला

नैनीताल। बदलते दौर में जहां लोकतंत्र का महापर्व पूरी तरह धरातल से नदारद है, वहीं इंटरनेट की दुनिया में पूरा मेला लगा हुआ है। शहर में चुनावों पर कोई राजनीतिक विमर्श न होने की वजह से नगर के आमजन टीवी, अखबार या इंटरनेट पर सोशल नेटवर्किग साइटों पर बन रही प्रत्याशियों की बन-बिगड़ रही हवा पर ही आश्रित होकर अपनी राय बना या बदल रहे हैं। इंटरनेट पर जोरों से पार्टियों के पक्ष या विरोध में खूब जोशो-खरोश से र्चचाएं हो रही हैं। यहां राजनीतिक दलों के चुनाव चिह्नों, प्रत्याशियों व राष्ट्रीय नेताओं के बारे में पूरा मेले जैसा माहौल है। ऐसे में लोग यह भी कहते सुने जा रहे हैं कि हर डंडा कमजोर तबकों पर ही पड़ता है। निचले तबके के चुनाव प्रचार में अपना रोजगार जुटाने वाले लोग जरूर बेरोजगार कर दिये गए हैं, लेकिन इंटरनेट से जुड़ी कंपनियों की चुनावी महापर्व पर खूब ‘पौ-बारह’ हो रही है।

बुधवार, 16 अप्रैल 2014

नैनीताल : पुरानी मांगें ही पूरी हो जाएं तो बन जाए बात



पिछले चुनाव में भी था केंद्रीय विश्व विद्यालय का मुद्दा झीलों के संरक्षण की योजना अब भी बचे हैं कई कार्य
नवीन जोशी, नैनीताल। 2009 में हुए पिछले लोक सभा चुनावों के बाद झीलों के नैनीताल संसदीय सीट के नैनी सरोवर सहित अन्य झीलों और नदियों में चाहे जितना पानी बह गया हो, राजनीतिक दलों के चाल, चरित्र और चेहरों के साथ नारे भी बदल गए हों, परंतु पांच वर्ष बाद भी केंद्र सरकार के स्तर के मुद्दे जहां के तहां हैं। पिछले लोक सभा चुनावों में राज्य के एकमात्र कुमाऊं विवि को केंद्रीय विवि का दर्जा दिए जाने और नैनी सरोवर सहित अन्य झीलों के संरक्षण के लिए केंद्र से बड़ी योजना और तराई की प्यास बुझाने के लिए जमरानी बांध बनाए जाने की अपेक्षा की गई थी, लेकिन यह मुद्दे आज भी यथावत हैं। गौरतलब है कि कुमाऊं विवि को केंद्रीय विवि बनाए जाने का मुद्दा पूरे कुमाऊं मंडल से संबंध रखने वाला है। कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले लोस चुनाव के दौरान घोषणा भी की थी, बावजूद इसके कोई सकारात्मक पहल नहीं हुई। वहीं नैनीताल की पहचान नियंतण्र स्तर पर इसकी झीलों को लेकर है। वर्ष 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के नैनीताल राजभवन में प्रवेश के दौरान स्थानीय कार्यकर्ताओं की मांग पर बाजपेई सरकार ने वर्ष 2003 में यहां से गई 98 करोड़ रुपये की डीपीआर में से नैनीताल के लिए 46.79 तथा भीमताल, सातताल, नौकुचियाताल व खुर्पाताल के लिए 16.85 सहित कुल 63.64 करोड़ की झील संरक्षण परियोजना स्वीकृत की थी। यह योजना और इसकी धनराशि 2011 में समाप्त हो चुकी है और प्राधिकरण के समक्ष इस योजना के तहत झील में किए जा रहे एरिएशन के कार्य को जारी रखने के लिए प्रतिवर्ष खर्च हो रहे करीब 40 लाख रुपये जुटाना भी मुश्किल साबित हो रहा है, वहीं नैनी झील में गंदे पानी को बाहर निकालने के सायफनिंग, झील में गिरने वाले 62 में से 23 नालों से कूड़ा झील में न जाने देने के लिए ‘ऑगर’ नाम की मशीन व नालों के मुहाने पर मिनी ट्रीटमेंट प्लांट लगाने, अन्य झीलों में ड्रेनेज व सीवर सिस्टम विकसित करने जैसे कायरे की बेसब्री से दरकार पांच वर्ष पूर्व भी थी और आज भी है। इसके अलावा जमरानी बांध का मसला तो दशकों से जहां का तहां लटका हुआ है। मजेदार बात है कि यह मुद्दे ना तो राजनीतिक दलों की जुबान पर हैं, और शायद जनता भी इन्हें उठाते-उठाते थक-हार चुप हो चुकी है। मतदाताओं का कहना है कि नई उम्मीदें क्या करें, पांच वर्ष पुरानी मांगें ही पूरी हो जाए तो इनायत होगी।
ये योजनाएं भी केंद्र के स्तर पर लंबित
नैनीताल। नैनीताल मुख्यालय की अनेक बड़ी योजनाएं केंद्र सरकार के स्तर पर लंबित हैं। इनमें पर्यटन नगरी की सबसे बड़ी यातायात की समस्या का समाधान निहित है। केंद्र को जेएलएनयूआरएम योजना के तहत सड़कों के चौड़ीकरण व पार्किगों के निर्माण की 32 करोड़ की योजना भेजी गई है। इसके अलावा लोनिवि की 20 करोड़ रुपये की नगर की धमनियां कहे जाने वाले अंग्रेजी दौर में बने 62 नालों के जीर्णोद्धार व उन्हें ढकने की योजना तथा सिंचाई विभाग ने नगर के आधार कहे जाने वाले बलियानाले की जड़ से मजबूती के लिए करीब 25 करोड़ रुपये की योजना भी केंद्र सरकार के स्तर पर लंबित है। नैनीतालवासियों को उम्मीद है कि नैनीताल को जो भी नया सांसद होगा, वह इन योजनाओं को धरातल पर उतारने व केंद्र के स्तर पर स्वीकृत कराने में पहल करे।

मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

नैनीताल में जीतने वाली पार्टी की ही केंद्र में बनती रही है सरकार

बदलाव की हर बयार में नैनीताल ने भी बदली है करवट, कइयों को राजनीति का ककहरा पढ़ाया है इस सीट ने
नवीन जोशी नैनीताल। शिक्षित संसदीय क्षेत्रों में शुमार नैनीताल ने देश में चल रही हर बदलाव की बयार में खुद भी करवट बदली है। देश में अच्छी सरकार चलती रही तो यहां के मतदाताओं ने भी अपने परम्परागत स्वरूप को बरकरार रखते हुए सत्तारूढ़ पार्टी के प्रत्याशी को ही ‘सिर-माथे' पर बिठाया है, लेकिन जहां सत्तारूढ़ पार्टी ने चूक की और नैनीताल को अपनी परम्परागत सीट मानकर गुमान में रही, उसे यहां के मतदाताओं ने जमीन भी दिखा दी। नैनीताल में आमतौर पर जिस पार्टी का प्रत्याशी जीता, उसी पार्टी की देश में सरकार भी बनती रही। इस प्रकार नैनीताल के साथ यह मिथक जुड़ता चला गया है। ऐसे में नैनीताल राजनीतिक दलों के लिए दिल्ली की गद्दी पाने का माध्यम बन सकता है। 
जी हां, नैनीताल लोकसभा सीट का अब तक ऐसा ही अतीत रहा है। वर्ष 1971 तक के चुनाव में मतदाताओं ने कुछ खास नेताओं को गले लगाया। इसके बाद उन्होंने अपना रुख बदल लिया और किसी भी नेता को दुबारा संसद पहुंचने का मौका नहीं दिया। देश की आजादी के बाद भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत के परिवार और बाद में एनडी तिवारी सरीखे नेताओं की यह परंपरागत सीट रही और दोनों को संसद पहुंचने की सीढ़ी चढ़ने का ककहरा नैनीताल ने ही सिखाया। मगर यह भी मानना होगा कि यहां के मतदाताओं की मंशा को कोई नेता नहीं समझ पाया। हालांकि एनडी भी यहां से हारे और केसी पंत भी। इसी तरह कांग्रेस की परंपरागत सीट माने जाने के बावजूद कांग्रेस के नेता भी हर चुनाव में यहां असमंजस के दौर से ही गुजरते हैं, जबकि देश की सत्ता संभाल चुकी भाजपा यहां से सिर्फ दो ही बार ही जीत हासिल की है। जनता पार्टी और जनता दल के नेताओं के लिए भी यहां प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है। देश में चल रही राजनीतिक हवा का असर नैनीताल सीट पर भी पड़ता रहा है। 1951 व 1957 के चुनाव में पंडित गोविंद बल्लभ पंत के दामाद सीडी पांडे और 1962 से 1971 तक के तीन चुनावों में पुत्र केसी पंत यहां से सांसद रहे। मगर 1977 के चुनाव में आपातकाल के दौर में पंत को भारतीय लोकदल के नए चेहरे भारत भूषण ने पराजित कर दिया। तब देश में पहली बार विपक्ष की सरकार बनी। लेकिन विपक्ष का प्रयोग विफल रहने पर 1980 में एनडी तिवारी को उनके पहले संसदीय चुनाव में नैनीताल ने दिल्ली पहुंचा दिया। गौरतलब है कि 1984 में तिवारी सांसदी छोड़ यूपी का सीएम बनने चले तो उनके शागिर्द सतेंद्र चंद्र गुड़िया को भी जनता ने वही सम्मान दिया। 1989 के चुनाव में मंडल आयोग की हवा चली तो जनता दल के नए चेहरे डा. महेंद्र पाल चुनाव जीत गए और जनता दल की ही केंद्र में सरकार बनी। 1991 के चुनाव में यहां के मतदाता देश में चल रही राम लहर की हवा में बहे और बलराज पासी ने भाजपा के टिकट पर जीतकर इतिहास रच दिया। तब केंद्र में भाजपा की सरकार बनी। 1998 में बीच में एचडी देवगौड़ा और आरके गुजराल के नेतृत्व वाली जनता दल की सरकार की विफलता के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा की इला पंत ने एनडी तिवारी को पटखनी दी और दुबारा केंद्र में भाजपा की सरकार बनी। इसके बाद से 2004 व 2009 के चुनावों में कांग्रेस के केसी सिंह बाबा यहां से सांसद हैं और दोनों मौकों पर कांग्रेस की सरकार ही देश में बनी।

एनडी ने दो बार तोड़ा है मिथक

नैनीताल। नैनीताल में जीतने वाली पार्टी की ही केंद्र में सरकार बनती रही है, मगर एनडी तिवारी 1996 और 1999 में वह विरोधी पार्टियों की लहर में भी नैनीताल से चुनाव जीतने में कामयाब रहे। 1996 में एनडी तिवारी ने कांग्रेस से नाराज होकर सतपाल महाराज शीशराम ओला व अन्य के साथ मिलकर कांग्रेस (तिवारी) बनाई और उनकी पार्टी चुनाव जीतने में सफल रही। इस चुनाव के बाद केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनी। 1999 के चुनाव में भी एनडी तिवारी ने फिर अपवाद दोहराया, जब कांग्रेस से तिवारी तीसरी बार चुनाव जीते, लेकिन फिर केंद्र में भाजपा की ही सरकार बनी। वर्ष 2002 में उनके उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनने पर हुए उपचुनाव में जद से कांग्रेस में आए डा. महेंद्र पाल भी उनकी सीट बचाने में सफल रहे।