शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

अल्मोड़ा में आयोजित होगी राज्य की छठी विज्ञान कांग्रेस

तीन वैज्ञानिकों का सम्मान तथा 436 प्रतिभागी पेश करेंगे शोध पत्र व पोस्टर
नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश की छठी उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं तकनीकी कांग्रेस 2011 का आयोजन 14 से 16 नवंबर तक एसएसजे कैंपस अल्मोड़ा में किया जा रहा है। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य राज्य के वैज्ञानिकों को एक मंच प्रदान करना है। इसमें शोधार्थियों को अपने शोध को वैज्ञानिक समुदाय व विशेषज्ञों के समक्ष रखने का अवसर मिलेगा। वर्ष 2007 के बाद यह दूसरा मौका होगा जब कुमाऊं विवि इस आयोजन का दायित्व निभाएगा। इस दौरान नौ तकनीकी सत्रों में 16 विषयों पर 50 विषय विशेषज्ञ तथा 436 प्रतिभागी मौखिक एवं पोस्टरों के माध्यम से शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे। इन्हीं में से चार श्रेणियों में प्रतिभागियों को वैज्ञानिक पुरस्कार दिए जाएंगे। साथ ही प्रदेश तथा खासकर अल्मोड़ा से संबंधित तीन वैज्ञानिकों डा. आरसी बुधानी, डा.एमसी जोशी व डा. जीएस रौतेला को सम्मानित किया जाएगा। 
शुक्रवार को कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. वीपीएस अरोड़ा, कुलसचिव डा. कमल के. पांडे तथा आयोजक सचिव प्रो. एचएस धामी ने पत्रकार वार्ता में ‘मीटिगेशन आफ नेशनल क्लाइमिटीज विद स्पेशल रिफ्रें स टू उत्तराखंड’ विषयक विज्ञान कांग्रेस के तहत आयोजित कार्यक्रमों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यूकोस्ट के तत्वावधान तथा डीएसटी, गोविंद बल्लभ पंत पर्यावरण एवं विकास संस्थान कोसी कटारमल, उत्तराखंड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षण संस्थान, विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान केंद्र अल्मोड़ा व राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान-नासी के सहयोग से भारतीय विज्ञान कांग्रेस की तर्ज पर आयोजित हो रहे इस आयोजन का शुभारंभ 14 को मुख्यमंत्री करेंगे। इस मौके पर बनारस हिंदू विवि के कुलपति प्रो.लाल जी सिंह नासी व्याख्यान देंगे। 15 को अल्मोड़ा के एसएसजे परिसर सहित 13 स्थानों पर तकनीकी सत्र होंगे। 16 नवम्बर को समापन पर विधानसभा अध्यक्ष हरबंस कपूर उपस्थित रहेंगे। मौखिक श्रेणी में 285 व पोस्टर श्रेणी में 151 पेपर प्रस्तुत किए जाएंगे। इस मौके पर वानिकी, गणित, विज्ञान एवं समाज तथा उत्तराखंड में गणित का विकास जैसे विषयों पर बुद्धिशीलता सत्र आयोजित किए जाएंगे। आयोजन में डा. एलएमएस पालनी, पद्मश्री डा. ललित पांडे, डा.जेसी भट्ट, डा. राम सागर, डा. अनंत पंत, न्यूयार्क विवि के प्रो. आरएस कुलकर्णी व प्रो. सीएस अरविंदा आदि वैज्ञानिक प्रतिभाग करेंगे। 
उधर देहरादून में यूकास्ट के महानिदेशक डा. राजेन्द्र डोभाल ने भी आयोजन की जाकारी दी। 

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

अब बाजार में मिलेगी लैब में बनी ’देसी वियाग्रा‘

यारसा गंबू

सेना के जैव ऊर्जा सं स्थान की उपलब्धि, दिल्ली की कंपनी को विपणन की जिम्मेदारी, उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उगने वाली वनस्पति अब प्रयोगशाला में उगेगी
नवीन जोशी, नैनीताल। देसी वियाग्रा कही जाने वाली शक्तिवर्धक औषधि ‘कीड़ा जड़ी’ यानी यारसा गंबू को तलाशने के लिए उच्च हिमालयी क्षेत्रों की खाक नहीं छाननी पड़ेगी। हल्द्वानी स्थित डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ बायो एनर्जी रिसर्च (डीआईबीईआर) यानी जैव ऊर्जा संस्थान ने इस औषधि को प्रयोगशाला में तैयार करने का कारनामा कर डाला है। एक-दो माह में दिल्ली की एक कंपनी इसे खुले बाजार में उपलब्ध कराने जा रही है। इससे जहां आमजन और खासकर खिलाड़ी इस औषधि को आसानी से प्राप्त कर पाएंगे वहीं आगे राज्य की आर्थिकी में बड़ा योगदान दे सकने वाले इस खजाने के बाबत शंकाएं भी शुरू हो सकती हैं। 
गौरतलब है कि यारसा गंबू (वानस्पतिक नाम- कार्डिसेप्स साइनेसिस) एक विशेष प्रकार का आधा जंतु एवं आधी वनस्पति है। यह हैपिलस फैब्रिकस नाम के खास कीड़े की इल्लियों (कैटरपिलर्स) को मारकर उस पर पनपता है। बताया जाता है कि प्रदेश के पिथौरागढ़, बागेर, चमोली और उत्तरकाशी जनपदों में स्थित बर्फ से आधे वर्ष ढकी रहने वाली उच्च हिमालयी चोटियों पर यह आधे वर्ष जमीन के नीचे कीड़े के रूप में तथा बर्फ पिघलने पर बुग्यालों में फंगस जैसी वनस्पति के रूप में बमुश्किल ढूंढा जाता है। राज्य में प्रतिबंधित न होने के बावजूद बेहद महंगा (देश में कीमत आठ से 10 लाख रुपये प्रति किग्रातथा चीन, ताइवान व कोरिया आदि के बाजारों में 16 से 20 लाख  रुपये प्रति किग्रा) होने के कारण इसके दोहन में अनेक लोग प्रतिवर्ष आपसी तथा व्यापारिक संघर्ष तथा मौसम की विपरीत परिस्थितियों के कारण जान से हाथ धो बैठते हैं। कई लोग वन अधिनियम के तहत कानूनी कार्रवाई की जद में आ जाते हैं। राज्य में वर्तमान में 150 कुंतल यारसा गंबू का व्यापार बताया जाता है। इस लिहाज से इस पर राज्य की करीब छह से आठ सौ करोड़ रुपये तक की आर्थिकी निर्भर है। चीन में हुए बीते ओलंपिक खेलों के दौरान कई खिलाड़ियों के इस औषधि को शक्तिवर्धक स्टेरायड के रूप में प्रयोग करना प्रकाश में आया। इसकी खासियत यह है कि यह किसी प्रकार के डोप टेस्ट में भी पकड़ में नहीं आता और प्रतिबंधित भी नहीं है। चीन से लगे देशों में यौन उत्तेजक व शक्तिवर्धक दवाओं के रूप में इसका प्रयोग पूर्व से ही होता रहा है। डीआईबीईआर के निदेशक डा. जकवान अहमद ने बताया कि उनके संस्थान ने प्रयोगशाला में ‘लैब कल्चर’ तकनीक से यारसा गंबू के उत्पादन का तरीका खोज निकाला है तथा इस तकनीक को संस्थान के नाम पेटेंट भी कर डाला है। उन्होंने बताया कि यारसा गंबू में शक्तिवर्धक व यौन उत्तेजना बढ़ाने में काडिसेपिन तत्व सर्वप्रमुख भूमिका निभाता है। प्राकृतिक यारसा गंबू में जहां काडिसेपिन तत्व 2.42 पीपीएम (पार्ट पर मालिक्यूल) होता है वहीं प्रयोगशाला में बने यारसा गंबू में यह तत्व 2.02 पीपीएम है। यानी दोनों की गुणवत्ता में अधिक अंतर नहीं है। उन्होंने यह तकनीक दिल्ली की एक कंपनी को हस्तांतरित कर दी है। उम्मीद है कि कंपनी एक से तीन माह के भीतर ‘फूड सप्लीमेंट’ अथवा औषधि के रूप में इसे बाजार में ले आएगी। 


पहाड़ की बूटियों से बनी सफेद दाग की दवा : 
डीआईबीईआर ने यारसा गंबू के साथ सफेद दाग यानी ल्यूकोडर्मा के इलाज की औषधि भी प्रयोगशाला में तैयार कर ली है। निदेशक जकवान अहमद ने बताया कि हिमालयी क्षेत्रों की एमीमोमस सहित पांच औषधियों के प्रयोग से यह औषधि तैयार कर ली है। इसके अलावा मिर्च से अश्रु गैस बनाने मैं भी सफलता अर्जित कर ली गयी है
मूल रूप से देखने के लिए यहाँ क्लिक करें. 

गुरुवार, 3 नवंबर 2011

'जंक फूड' खाकर 'मुटा' रही हैं नैनी झील की परियां


एक स्थान पर ही आसान भोजन मिल जाने से नहीं दे रहीं झील की  पारिस्थितिकी में योगदान
विशेषज्ञ मछलियों की जिंदगी और भावी पीढिय़ों पर भी जता रहे खतरा
नवीन जोशी, नैनीताल। जी हां, भले देश की आधी आबादी की आज भी रोटी के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा हो, पर देश—दुनिया की मशहूर नैनी झील की परियां कही जाने वाली मछलियां ब्रेड-बिस्कुट जैसा 'जंक फूड'  डकार रही हैं। आसानी से मिल रहे इस लजीज भोजन का स्वाद मछलियों की जीभ पर ऐसा चढ़ा है कि वह अपने परंपरागत जू प्लेंकन, काई, शैवाल, छोटी मछलियों व अपने अंडों जैसे परंपरागत भोजन की तलाश में झील में घूमने के रूप में तनिक भी वर्जिश करने की जहमत उठाना नहीं चाहतीं। ऐसे में वह इतनी मोटी व भारी भरकम हो गई हैं की कल तक अपनी सबसे बड़ी दुश्मन मानी जाने वाली बतखों को भी आंखें दिखाने लगी हैं। लेकिन विशेषज्ञ इस स्थिति को बेहद अस्थाई बताते हुऐ खुद इन मछलियों के जीवन तथा झील के पारिस्थितिकी लके लिये बड़ा खतरा मान रहे हैं। 
नैनी झील देश—दुनिया का एक ख्याति प्राप्त सरोवर है, और किसी भी अन्य जलराशि की तरह इसका भी अपना एक पारिस्थितिकी तंत्र है, किन्तु सरोवरनगरी की इस प्राणदायिनी झील में स्थानीय लोगों व सैलानियों के यहां पलने वाली मछलियों के प्रति दर्शाऐ जाने वाले प्रेम के अतिरेक के कारण झील के पारिस्थितिकी तंत्र के साथ ही इनकी अपनी जिंदगी पर खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। लोग अपने मनोरंजन तथा धार्मिक मान्यताऑ के  चलते स्वयं के लाभ के लिये इन्हें दिन भर खासकर तल्लीताल गांधी मूर्ति के पास से ब्रेड और बिस्कुट खिलाते रहते हैं। तल्लीताल में बकायदा झील किनारे ब्रेड-बंद व परमल आदि की दुश्मन खुल गई है, जहां से रोज हजारों रुपये की सामग्री मछलियों को खिलाई जा रही है, जबकि बगल में ही प्रशासन ने खानापूर्ति करते हुऐ मछलियों को भोजन खिलाना प्रतिबंधित बताता हुआ बोर्ड लगा रखा है। यह लजीज भोजन चूँकि इन्हें बेहद आसानी से मिल जाता है, इसलिये हजारों की संख्या में पूरे झील की मछलियां इस स्थान पर एकत्र हो जाती हैं। इससे जहां वह झील में मौजूद भोजन न खाकर झील के पारिस्थितिकी तंत्र में अपना योगदान नहीं दे रहे हैं, वहीं उनकी भोजन की तलाश में वर्जिश भी नहीं हो रही, इससे वह मोटी होती जा रही हैं। भारत रत्न पं. गोविंद वल्लभ पंत उच्च स्थलीय प्राणि उद्यान के वरिष्ठ जंतु चिकित्सक डा. एलके सनवाल इस स्थिति को बेहद खतरनाक मानते हैं। उनके अनुसार मनुष्य की तरह ही जीव—जंतुऑ में भी  अपने परंपरागत भोजन के बजाय 'जंक फूड' खाने से शरीर को एकमात्र तत्व प्रोटीन मिलता है, जिससे वह मोटे हो जाते हैं। परिणामस्वरूप उन्हें अनेक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है तथा जल्दी मृत्यु हो जाती है। डा. सनवाल को आशंका है कि आगे दो—तीन पीढिय़ों के बाद उनमें मनुष्य की भांति ही 'स्पर्म' बनने कम हो जाएँगे, जिससे वह नयी संतानोत्पत्ति भी नहीं कर पाएँगी, अंडों से बच्चे उत्पन्न नहीं होंगे, अथवा उनके बच्चों में कोई परेशानी आ जाऐगी। वह झील की सफाई का अपना परंपरागत कार्य पूरी तरह बंद कर देंगे। ब्रेड-बंद खिलाने से उनका प्राकृतिक 'हैबीटेट' ही प्रभावित हो गया है। इससे उनके अवैध शिकार को भी प्रोत्साहन मिल रहा है, कई लोग एक स्थान पर इस तरह मिलने वाली इन मछलियों को आसानी से अपना शिकार बना लेते हैं। बरसात के दिनों में हजारों मछलियां यहीं से झील के गेट खुलने के कारण बलियानाले में बहकर जान गंवा बैठती हैं। वह इस समस्या से निदान के लिये झील के तल्लीताल शिरे पर ऊंची लोहे की जाली लगाने की आवश्यकता जताते हैं, ताकि लोग इस तरह उन्हें ब्रेड-बंद न खिला पाएँ। 
हालांकि एक अन्य वर्ग भी है जो नगर में पर्यटन के दृष्टिकोण से मछलियों को सीमित मात्रा में बाहरी भोजन खिलाने का पक्षधर है। कुमाऊं विवि के वनस्पति विज्ञान विभाग के डा. ललित तिवारी कहते हैं कि इससे एक आनंद की अनुभूति होती है। सैलानियों के लिये यह एक आकर्षण है, साथ ही धार्मिक मान्यताऑ के अनुसार मछलियों को भोजन खिलाने से चित्त शांत होता है। बहरहाल, वह भी सीमित मात्रा की ही हिमायत करते हैं। झील विश्वास प्राधिकरण के अधिकारी भी इस स्थिति को गंभीर मान रहे हैं। उनका मानना है कि मछलियों को लगाई जा रही जंक फूड की लत गत वर्षों से दुबारा कृत्रिम आक्सीजन के जरिये जिलाई जा रही नैनी झील के लिये बेहद खतरनाक हो सकता है।

बुधवार, 12 अक्टूबर 2011

’लू' ज चैप‘ ने कहा ’हैप्पी बर्थ डे बिग बी‘


कभी नैनीताल के शेरवुड में पढ़ाई के दौरान फिल्म देखने से रोका, और भागे अमिताभ की मदद की थी दुर्गा दत्त ने 
अपने ब्लॉग में इस घटना का उल्लेख किया अमिताभ बच्चन ने
नवीन जोशी नैनीताल। 70 के दशक में फिल्में देखने के शौकीन बालक अमिताभ को शेरवुड कालेज के एक कर्मचारी ने रंगे हाथों पकड़ लिया था, तब अमिताभ उस शख्स को देखकर साथियों से फुसफुसाये थे, ‘लू’ज चैप’ यानी विद्यालय के प्रधानाचार्य रैवरन लेनिन का चपरासी। आज अमिताभ को उनके 70वें जन्मदिन पर उसी ‘लू’ज चैप’ ने नैनीताल से जन्म दिन की बधाई भिजवाई है, ‘हैप्पी बर्थ डे बिग बी’। यह बधाई यदि अमिताभ तक पहुंचे तो शायद यह अमिताभ के लिए अपने जीवन के सभी जन्म दिवसों की अविस्मरणीय बधाई साबित हो। 
sadee के महानायक अमिताभ के लिए वह दिन हमेशा अविस्मरणीय रहा, जब एक शक्श ने उन्हें न केवल फिल्म देखने से रोका था, वरण अनुशाशन का पाठ भी पढ़ाया था । तभी तो विगत वर्ष 2008 में जब अमिताभ अपना स्कूल शेरवुड छोड़ने के 50 वर्ष पूर्ण होने के मौके पर  नैनीताल आये तो जीवन के नौवें दशक में पहुंचे बूढ़े ‘लू’ज चैप’ को न केवल आसानी से पहचान लिया वरण गले भी लगा लिया। पढ़ाई के दिनों से ही फिल्मों के दीवाने अमिताभ वर्ष 1956 से 1958 तक शेरवुड के रोबिनहुड होस्टल में रहे.
उस दिन रात नौ से 12 का शो देखने के लिए साथियों के साथ बाजार की ओर भागे चले जा रहे थे। तभी डिग्री कालेज के निकट एक शख्स को देखकर वह साथियों से फुसफुसाये, ‘लू’ज चैप’ और मुंह को दुशाले से ढक लिया। सहसा दुर्गा दत्त पांडे नाम का वह शख्स उन पर झपटा और चीखा, ‘गो अप’। अमिताभ मिन्नतें करने लगे, आज जाने दो। उसने कहा, अभी साहब को बताता हूं। अमिताभ डर गये, वह जानते थे, प्रिंसिपल रैवरन लेवलिन जिन्हें बच्चे शैतानी में ‘लू’ कहा करते थे, खुद कालेज के गेट पर पहरेदारी करते हैं। वह जरूर पूछेंगे और पकड़े जाएंगे। दुर्गा दत्त ने तसल्ली दी, साहब से नहीं कहूंगा, जब जाना हो पूछ के जाया करो। अमिताभ साथियों सहित वापस लौट आये। स्कूल गेट पर पहुंचे तो सचमुच प्रिंसिपल लेवलिन गेट पर मौजूद थे। दुर्गा ने उन्हें अम्तुल्स की ओर से भीतर प्रवेश करा दिया। यह बात अमिताभ को करीब तीन दशक बाद विगत वर्ष कालेज लौटने तक भी याद रही। उन्होंने अपने ब्लॉग पर भी एक बार लिखा था, शेरवुड में मिली अनुशासन की सीख ने ही उन्हें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। आज उसी ‘लू’ज चैप’ यानी दुर्गा दत्त को जब अमिताभ के 70वें जन्म दिन की जानकारी दी गयी तो 92 वर्षीय दुर्गा ने सीना यूं फुला लिया, मानो उनके बेटे ने कोई बड़ा मुकाम हासिल कर लिया हो। गर्व से बोले, बिग बी तक मेरी शुभकामनाएं पहुंचा दें। अतीत में खोते हुए उन्होंने बताया, आजादी से पूर्व 1941 से अपने घर ग्राम अड़चाली गरुड़ाबांज (अल्मोड़ा) से आकर शेरवुड में नौ रुपये माहवार पर कार्य करना शुरू किया था। इस दौरान प्रिंसिपल रैवरन बिंस से लेकर न जाने कितने बड़े लोगों से साबका हुआ, लेकिन हरवंशराय बच्चन के उस बच्चे में न जाने क्या था जो कॉलेज के रॉबिनहुड छात्रावास में रहकर नौवीं कक्षा में यहां आया और सीनियर कैंब्रिज यानी 11वीं कक्षा पढ़कर वापस लौट गया, लेकिन एक बेटे की तरह जीवन का हिस्सा और सबसे बड़ी पूंजी बन गया। 

गुरुवार, 6 अक्टूबर 2011

खंडूड़ी के सिर सजी नरेंद्र मोदी की ‘ठुकराई’ टोपी


अपनी ससुराल नैनीताल से दिया सर्वधर्म समभाव का संदेश, गए मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा
नैनीताल (एसएनबी)। मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी बृहस्पतिवार को अपनी ससुराल नैनीताल में थे। यहां उन्होंने पाषाण देवी के साथ ही यहां चल रहे दुर्गा महोत्सव और नयना देवी मंदिर में भी शीश नवाया। गुरुद्वारा गुरुसिंह सभा में भी अरदास की और जामा मस्जिद में भी सजदा किया। उन्होंने मस्जिद में प्रवेश करते ही मुस्लिमों की टोपी पहनी, जिसे न पहनने के कारण गत दिनों उनकी ही पार्टी के नरेंद्र मोदी विवादों में आ गये थे। नैनीताल में मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी अरुणा खंडूड़ी का बचपन बीता। उनके पिता यहां मल्लीताल कोतवाली में कोतवाल रहे तथा भाई वन विभाग में वन संरक्षक पद पर रहे। खंडूड़ी दंपति की यहां की पाषाण देवी पर अगाध आस्था है। दोनों गाहे-बगाहे तथा खासकर नवरात्रों में यहां आते रहते हैं। मुख्यमंत्री तो वहां से करीब 35 मिनट बाद लौट आये, लेकिन उनकी पत्नी करीब तीन घंटे मंदिर में रहीं और दुर्गा सप्तशती व दुर्गा कवच का पाठ किया। इसके पश्चात पहले मुख्यमंत्री तथा बाद में उनकी पत्नी ने अलग-अलग नयना देवी मंदिर में दर्शन किये। अधिकारियों की बैठक व कार्यकर्ताओं से मुलाकात के बावजूद मुख्यमंत्री ने अपने दौरे को व्यक्तिगत दौरा बताया। गुरुद्वारा में उन्हें गुरुद्वारा गुरुसिंह सभा पदाधिकारियों ने कृपाण व सरोपा भेंट किया, जबकि मस्जिद में प्रवेश करते ही शहर इमाम व सेक्रेट्री आदि ने उन्हें मुस्लिम धर्म की परंपरागत टोपी पहनाई, जिसे उन्हें सामान्य तरीके से पहना, साथ ही अपनी ओर से मस्जिद एवं मुस्लिम धर्मावलंबियों के लिए हरसंभव मदद की पेशकश भी की। इसी बीच उन्हें बौद्ध समुदाय के लोगों ने सफेद खाता नामक वस्त्र पहनाकर सम्मानित किया, साथ ही दुर्गा महोत्सव आयोजन समिति के लोगों ने गुलाल लगाकर मुख्यमंत्री का अभिषेक किया।

खुशखबरी: पहाड़ चढ़ेगी रेल

पूर्वोत्तर रेलवे के महाप्रबंधक केबीएल मित्तल ने बताया कि रेल बजट में घोषित टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन का अक्टूबर 2010 में सर्वे किया गया था। करीब 254 किमी के इस रूट को तैयार करने का 2800 करोड़ रुपए और रामनगर-चौखुटिया के बीच 86 किमी की रेल लाइन का 1378 करोड़ यानी दोनों योजनाओं पर कुल करीब 42 सौ करोड़ का प्रस्ताव अगस्त 2011 में रेलवे बोर्ड को भेजा जा चुका है। दोनों योजनाओं की टेक्निकल फिजिबिलिटी एवं ट्रेफिक सर्वे रिपोर्ट पर रेलवे बोर्ड व मंत्रालय को निर्णय लेना है। यदि योजनाओं को मंजूरी और बजट आवंटन हो जाता है तो रेलवे इस पर काम शुरू करेगा। कहा कि यात्री आय के लिहाज से यह दोनों योजनाएं मुनाफा देने वाली नहीं हैं, लेकिन उत्तराखंड के सामरिक दृष्टिकोण के साथ रेलवे की सामाजिक प्रतिबद्धता के लिहाज से रेल लाइन पहाड़ तक पहुंचाना भी जरूरी है। बताया कि इसके अलावा काठगोदाम-नैनीताल रेल लाइन का भी बोर्ड ने दोबारा सर्वे का आदेश दिया है। जल्द ही इस रूट का सर्वे कराया जाएगा। बरेली-लालकुआं के बाद लालकुआं-कासगंज रूट का आमान परिवर्तन मार्च 2013 के बाद शुरू किया जाएगा।

बुधवार, 28 सितंबर 2011

रयाल-नयाल के भरोसे जनरल की ’ससुराल‘



एक दर्जन पदों का कार्यभार संभाले हुए हैं दो अधिकारी
जिले में कई पद रिक्त, कुछ पदों पर अधिकारियों में होड़
कोई यहां आना नहीं चाहता, आता है तो जाना नहीं चाहता
नवीन जोशी, नैनीताल। सालभर बारिश, नैनी झील और तरुणाई से सरोवरनगरी में भले हर ओर हरीतिमा नजर आती हो मगर प्रशासनिक हलकों में इसे ‘शुष्क’ ही कहा जाएगा। जनरल खंडूड़ी के शासन में भी उनकी ‘ससुराल’ में दर्जनभर मुख्य विभाग केवल दो अधिकारियों ललित मोहन रयाल और अवनेंद्र सिंह नयाल के हाथों में हैं। राज्य में विगत दिनों बदले निजाम में हुए प्रशासनिक फेरबदल के बाद जिले में न हाकिम है और न मुख्य विकास अधिकारी। सीएम जनरल के ससुराल की अनूठी कहानी यह है कि कोई अधिकारी यहां आना नहीं चाहता, और जो एक बार यहाँ आ जाता है तो वापस जाना नहीं चाहता। 
नैनीताल मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी की ससुराल है। उनकी धर्मपत्नी अरुणा खंडूड़ी का बचपन यहीं बीता है। उनकी नगर की पाषाण देवी पर अगाध आस्था है। श्राद्ध पक्ष में जनरल ने तबादलों की पहली खेप का खुलासा किया तो सर्वाधिक फेरबदल इसी जनपद में हुए। उम्मीद थी कि नए अधिकारी शारदीय नवरात्र पक्ष में पद ग्रहण करेंगे। नवरात्र प्रारंभ हो गए हैं लेकिन अधिकारियों के पहुंचने का सिलसिला शुरू नहीं हो पा रहा है। यहां से एक-एक कर अधिकारी चले तो गए पर नए आए नहीं। दर्जनभर विभाग केवल दो अधिकारियों के कंधों पर हैं। वर्तमान में जनपद के अपर जिलाधिकारी ललित मोहन रयाल के पास निर्वाचन जैसी पदेन जिम्मेदारियों के अतिरिक्त अपर आयुक्त कुमाऊं मंडल, सचिव झील विकास प्राधिकरण के साथ जिलाधिकारी एवं मुख्य विकास आयुक्त का भी अतिरिक्त कार्यभार है। इसी तरह मुख्यालय में अपर निदेशक उत्तराखंड प्रशासन अकादमी के पद पर तैनात अवनेंद्र सिंह नयाल के पास पूर्व से ही श्रम आयुक्त, अपर राजस्व आयुक्त की जिम्मेदारियां थीं। उन्होंने अब कुमाऊं मंडल विकास निगम के प्रबंध निदेशक पद की जिम्मेदारी भी संभाल ली है। इसके पीछे कारण बताया जा रहा है कि नैनीताल में अधिकांश अधिकारी आने से बचते हैं। इसके उलट कुछ विभागों में आने का अधिकारियों में बड़ा चाव है। यानी कुछ पदों का आकर्षण अन्य के मुकाबले हल्का पड़ जाता है। वहां एक अनार-सौ बीमार की स्थिति है। इसी तर्ज पर नैनीताल सीडीओ पद की ही बात करें तो जनपद में रहे पूर्व एडीएम धीराज सिंह गब्र्याल, उत्तराखंड प्रशासन अकादमी में अपर निदेशक रहे राजीव साह, हल्द्वानी में सिटी मजिस्ट्रेट रहे रणवीर सिंह चौहान, अपर आयुक्त और झील विकास प्राधिकरण के सचिव रहे एचसी सेमवाल आदि इस पद के प्रबल दावेदार बताए जा रहे हैं। जिलाधिकारी बन कर आ रहीं निधिमणि त्रिपाठी भी पूर्व में यहां सीडीओ रह चुकी हैं। इधर उनके नवरात्र शुरू होने के बाद भी कार्यभार ग्रहण न करने पर भी कयासों का दौर शुरू हो गया है।
इस आलेख को मूलतः यहाँ क्लिक कर राष्ट्रीय सहारा के प्रथम पेज पर भी देख सकते हैं.

रविवार, 4 सितंबर 2011

तंग कमरे में डाक्टर, शौचालय में दवाएं


यह है मंडल मुख्यालय के आयुष विंग का हाल मुख्यालय स्थित एक कक्ष में स्थापित आयुष विंग का नजारा।
नवीन जोशी नैनीताल। भवाली में जहां प्रदेश सरकार विपक्ष के तीव्र आक्रोश को झेलकर भी इमामी से प्रदेश का पहला आयुष ग्राम स्थापित करवाने को प्रतिबद्ध नजर आ रही है, वहीं मुख्यालय के बीडी पांडे जिला अस्पताल में महज 10 गुणा 15 वर्ग फीट के एक कमरे में आयुष विंग चलाया जा रहा है। महज चार कुर्सियों की जगह वाले आयुष विंग की कहानी भी अपने आप में अनूठी है। 
प्रदेश भर में चिकित्सकों की कमी के ‘दुखड़े’ के बीच यहां उपलब्ध चारों कुर्सियों में बैठने के लिए चार आयुर्वेदिक चिकित्सक तैनात हैं। जब चारों चिकित्सक उपलब्ध रहते हैं तो मरीजों को बैठने तो दूर, खड़े होने तक को जगह नहीं मिलती। जगह की कमी के कारण बहुमूल्य एवं साफ सुथरी जगह पर रखी जाने वाली दवाइयां शौचालय में रखी गई हैं। यहां तैनात चिकित्सक प्रसाधन के लिए भी इधर-उधर भटकने को मजबूर हैं। इस कक्ष में बमुश्किल एक ही टेबल के गिर्द चार कुर्सियां लगी हुई हैं, जिन पर वरिष्ठ चिकित्साधिकारी डा. अजय पाल सिंह चौधरी, चिकित्साधिकारी डा. शोभा पांडे, डा. प्रीति टोलिया एवं डा. ज्योत्सना कुनियाल (इन दिनों महानिदेशक के आदेशों पर हल्दूचौड़ में संबद्ध) तैनात हैं। यहां दवाइयां बांटने के लिए एक भी फार्मासिस्ट उपलब्ध नहीं है, जिस कारण दवाइयां बांटने का कार्य वार्ड ब्वाय के भरोसे है। कक्ष में दवाइयों की अलमारी रखने के लिए स्थान नहीं है, इसलिए आलमारी शौचालय में रखी गई है। मरीजों की बात करें तो इन चार चिकित्सकों की फौज की सेवाएं लेने यहां हर रोज औसतन 50 रोगी ही आते हैं, यानी हर चिकित्सक को दिन भर में औसतन एक दर्जन मरीज ही देखने होते हैं। बात यहीं खत्म नहीं होती। मुख्यालय में तीन अन्य आयरुवेदिक चिकित्सालय भी हैं। यहां भी चिकित्सक उपलब्ध हैं परंतु फार्मासिस्ट व सहायक स्टाफ नहीं। कहानी साफ है, चिकित्सकों ने सुविधा संपन्न मुख्यालय में तैनाती कराकर यहां भीड़ लगा दी है, लेकिन मरीजों को उनकी सेवाओं का लाभ नहीं मिल रहा। पूछने पर वरिष्ठ चिकित्साधिकारी डा. चौहान ने बताया कि मुख्यालय में आयुष विंग का अलग चिकित्सालय बनाने के लिए तीन वर्ष से 10 लाख रुपये कार्यदायी संस्था उत्तराखंड पेयजल निगम का अवमुक्त भी हो चुके हैं, लेकिन जगह उपलब्ध नहीं कराई गई है। इधर सीएमओ के स्तर से रैमजे अस्पताल के पास की भूमि उपलब्ध कराई गई है, जिस पर निर्माण के लिए नक्शा झील विकास प्राधिकरण को स्वीकृति के लिए भेजा गया है।

शनिवार, 3 सितंबर 2011

लगातार समृद्ध हो रहा नंदा महोत्सव

अपनी पहचान कायम रखने में सफल रहा  108 सालों से हो रहा महोत्सव
नवीन जोशी, नैनीताल। सामान्यतया अतीत को समृद्ध परंपरा के लिए याद करने, वर्तमान को बुरा एवं भविष्य के प्रति चिंतित होने का चलन है लेकिन इस चलन को झुठलाता हुआ सरोवरनगरी का ऐतिहासिक नंदा महोत्सव साल दर साल नई परंपराओं को आत्मसात करता हुआ लगातार समृद्ध होता जा रहा है। पिछली शताब्दी और इधर तेजी से आ रहे सांस्कृतिक शून्यता की ओर जाते दौर में भी यह महोत्सव न केवल अपनी पहचान कायम रखने में सफल रहा है, वरन इसने सर्वधर्म समभाव की मिशाल भी पेश की है। पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी यह देता है और उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं व गढ़वाल अंचलों को भी एकाकार करता है। इधर गत वर्ष अपनी वेबसाइट के जरिये ई-दुनिया में जाने के बाद इस वर्ष मां नंदा महोत्सव सोशल साइटों पर चर्चित हुआ है। सरोवरनगरी में नंदा महोत्सव की शुरुआत नगर के संस्थापकों में शुमार मोती राम शाह ने 1903 में अल्मोड़ा से यहां आकर की थी। शुरुआत में मंदिर समिति द्वारा ही यह आयोजन होता था, 1926 से आयोजन का जिम्मा नगर की सबसे पुरानी धार्मिक सामाजिक संस्था श्रीराम सेवक सभा को दे दिया गया, जो तभी से लगातार दो वि युद्धों के दौरान भी बिना रुके सफलता से और नए आयाम स्थापित करते हुए यह आयोजन कर रही है। कहा जाता है कि 1955-56 तक मूर्तियों का निर्माण चांदी से होता था, बाद में स्थानीय कलाकारों ने मूर्तियों को सजीव रूप देते हुए उसमें लगातार सुधार किया। परिणामस्वरूप नैनीताल की नंदा- सुनंदा की मूर्तियां, महाराष्ट्र के गणपति बप्पा जैसी ही जीवंत व सुंदर बनती हैं। खास बात यह भी कि मूर्तियों के निर्माण में पूरी तरह कदली वृक्ष के तने, पाती, कपड़ा, रुई व प्राकृतिक रंगों का ही प्रयोग किया जाता है। बीते तीन वर्षों से थर्मोकोल का सीमित प्रयोग भी बंद कर दिया गया है, जिसके बाद महोत्सव पूरी तरह ‘ईको फ्रेंडली’ हो गया है। साथ ही कदली वृक्षों के बदले 21 फलदार वृक्ष रोपने की परंपरा वर्ष 1998 से पर्यावरण मित्र वाईएस रावत के सुझाव पर शुरू की गई। वर्ष 2007 से तल्लीताल दर्शन घर पार्क से मां नंदा के साथ नैनी सरोवर की आरती की एक नई परंपरा भी जुड़ी है, जो प्रकृति से मेले के जुड़ाव का एक और आयाम है। मेला आयोजक संस्था ने मेले में परंपरागत होने वाली बलि प्रथा को अपनी ओर से सीमित करने की अनुकरणीय पहल भी की है। वर्ष 2005 से मेले में फोल्डर स्वरूप से स्मारिका छपने लगी, जिसका आकार इस वर्ष 220 पृष्ठों तक फैल चुका है। यहीं से प्रेरणा लेकर कुमाऊं के विभिन्न अंचलों में फैले मां नंदा के इस महापर्व ने देश के साथ विदेश में भी अपनी पहचान स्थापित कर ली है। शायद इसीलिए यहां का महोत्सव जहां प्रदेश के अन्य नगरों के लिए प्रेरणादायी साबित हुआ। बीते वर्ष से मेले की अपनी वेबसाइट के जरिऐ देश दुनिया तक सीधी पहुंच भी बन गई है। इधर फेशबुक, गूगल प्लस व ट्विटर सरीखी सोशल साइटों के जरिये भी मेला स्थानीय लोक कला के विविध आयामों, लोक गीतों, नृत्यों, संगीत की समृद्ध परंपरा का संवाहक बनने के साथ संरक्षण व विकास में भी योगदान दे रहा है।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ हुई शुरूआत
नैनीताल (एसएनबी)। शक्तिस्वरूपा मां नंदा का 108वां महोत्सव सरोवरनगरी नैनीताल में पूरे धार्मिक उत्साह व परंपरागत तरीके से पूजा अर्चना एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ शुरू हो गया। मुख्य अतिथि डीएम शैलेश बगौली ने मां नंदा को शीश नवाते हुए उन्हें प्रदेश के दोनों अंचलों कुमाऊं व गढ़वाल को एक सूत्र में पिरोने वाली माता बताया। मल्लीताल रामलीला मैदान में आयोजित महोत्सव के शुभारंभ कार्यक्रम में डीएम श्री बगौली ने क्षेत्रीय विधायक खड़क सिंह बोहरा, पूर्व विधायक डा. नारायण सिंह जंतवाल, एसएसपी अनंत राम चौहान, केएमवीएन के एमडी चंद्रेश कुमार, आयोजक संस्था श्रीराम सेवक सभा के अध्यक्ष सुधीर जोशी व पालिकाध्यक्ष एवं सभा महासचिव मुकेश जोशी के साथ दीप प्रज्वलित कर 108वें नंदा महोत्सव का दीप प्रज्वलित कर शुभारंभ तथा महोत्सव की रिकार्ड 220 पृष्ठों की वार्षिक स्मारिका का विमोचन किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि मेला बीते कुछ वर्षो से लगातार समृद्ध होता जा रहा है तथा प्रदेश के बड़े महोत्सवों में शुमार हो गया है। उन्होंने महोत्सव के लिए जिला प्रशासन की ओर से हरसंभव सहयोग का आासन भी दिया। विधायक बोहरा ने मां नंदा को राज्य की कुलदेवी के साथ स्थानीय भूदेवी बताते हुए उनसे मां-बेटी का रिश्ता बताया। एसएसपी एआर चौहान ने मां से समृद्धि व शांति बनाये रखने की कामना की। पशु कल्याण बोर्ड की उपाध्यक्ष शांति मेहरा ने महोत्सव का स्वरूप लगातार बेहतर होने तथा पूर्व विधायक डा. जंतवाल ने बदलती तकनीकी के दौर में भी सांस्कृतिक थाती को आगे बढ़ाने की बात कही। इस दौरान परंपरागत तरीके से मूर्ति निर्माण हेतु प्रयुक्त होने वाले कदली वृक्षों के बदले रोपे जाने वाले 21 पौधों की पूजा अर्चना की गई तथा कदली वृक्ष लाने वाले दल को परंपरागत लाल एवं सफेद ध्वज (निशानों) पवित्र कदली वृक्ष लाने वाले दल को प्रदान किये। इस अवसर पर  सरस्वती शिशु मंदिर के बच्चों एवं भारत सरकार के गीत एवं नाटक प्रभाग के कलाकारों के कुमाऊं के परंपरागत रंग्वाली पिछौड़े पहनकर भजन एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। छोलिया नर्तकों तथा गिरीश बोरा रीठागाड़ी ने लोक संस्कृति की झलक प्रस्तुत की। इस मौके पर पूर्व पालिकाध्यक्ष सरिता आर्या, संजय कुमार संजू, हेम आर्या, दया बिष्ट, दिनेश साह, किशन लाल साह कोनी, सभासद दीपक कुमार व मंजू रौतेला, सभा के जगदीश बवाड़ी, डा. अजय बिष्ट, कमलेश ढोंढियाल, अनूप शाही सहित बड़ी संख्या नगरवासी श्रद्धालु इन गौरवमयी पलों के गवाह बने। संचालन गंगा प्रसाद साह ने किया।


नंदा-सुनंदा के जयकारे के साथ शुरू हुआ जागर
बागेश्वर (एसएनबी)। कपकोट के पोथिंग गांव के भगवती मन्दिर में हर साल की तरह इस बार भी भव्य मेला लगा। हजारों श्रद्धालुओं ने मन्दिर में विधि विधान से पूजा अर्चना की और मनौतियां मांगी। परम्परानुसार कई श्रद्धालुओं ने मनौतियों के लिए बकरियों की बलि चढ़ाई और सुख शांति के लिए भगवती माता से प्रार्थना की। ग्रामसभा कपकोट में भी नंदा देवी महोत्सव वैदिक मंत्रोच्चारण के मध्य शुरू हो गया है। कपकोट के विभिन्न हिस्सों के अलावा जिले के अन्य क्षेत्रों से भी हजारों श्रद्धालुओं ने भागीदारी की। इस मौके पर आयोजित भंडारे में शिरकत कर प्रसाद भी ग्रहण किया। विधायक कपकोट शेर सिंह गड़िया, जिपं अध्यक्ष राम सिंह कोरंगा, उपाध्यक्ष विक्रम सिंह शाही के अलावा अन्य संगठनों के नेता, कार्यकर्ताओं ने भी भगवती मन्दिर जाकर पूजा अर्चना कर मनौतियां मांगीं। ग्रामसभा कपकोट में भी नंदा देवी महोत्सव वैदिक मंत्रोच्चारण के मध्य शुरू हो गया है। इसके अलावा कपकोट के ही बदियाकोट भगवती मन्दिर में शनिवार रात्रि जागरण व रविवार को मेला तथा भंडारे का आयोजन होगा। दोफाड़ के नंदादेवी मन्दिर में और पुड़कूनी के भगवती मन्दिर में रविवार से नंदादेवी मेला शुरू होगा। इसके अलावा रविवार को कोटभ्रामरी मन्दिर डंगोली में मेला लगेगा। सनेती के देवी मन्दिर में नौ व 10 सितम्बर को मेला लगेगा। कपकोट के केदारेर बगड़ में 28 सितम्बर से होने वाले दुर्गा पूजा महोत्सव की तैयारियां भी जोरशोर से शुरू हो गई हैं। महोत्सव के लिए देवीकुंड हिमालय से जल लाने के लिए गये 11 लोगों को विधायक कपकोट शेर सिंह गड़िया ने वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच यात्रा के लिए रवाना किया।
महावीर मंगल समूह बिलौना के तत्वावधान में बिलौना में चल रहे गणपति महोत्सव में दूसरे दिन भी श्रद्धालुओं की भीड़भाड़ रही। श्रद्धालुओं ने विधि विधान से पूजा अर्चना कर मनौतियां मांगी। 
अल्मोड़ा/रानीखेत (एसएनबी)। नंदा-सुनंदा के आह्वान जागर व गणेश पूजन के साथ अल्मोड़ा में नंदा देवी महोत्सव शुरू हो गया है। रानीखेत में कदली पेड़ को लाने के साथ मेले का शुभारंभ किया गया। अल्मोड़ा डय़ोरीपोखर में नंदा देवी गणोश पूजन में राज परिवार के युवराज नरेन्द्र चन्द्र सिंह ने भाग लिया। शनिवार को चौधरीखोला में कदली वृक्षों को निमंतण्रदिया जाएगा। महोत्सव के शुरू होते ही विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन भी शुरू हो गया है। नंदा देवी परिसर में हुई ऐपण प्रतियोगिता में दो दर्जन से अधिक युवतियों ने भाग लिया। प्रतियोगिता प्रभा पांडे, मंजू पंत व मनोरमा बिष्ट के देखरेख में हुई। इधर रैमजे इंटर कालेज में उद्योग विभाग के तत्वावधान में हथकरघा प्रदर्शनी लगायी गई है। इसमें लगाए गए स्टालों में विभिन्न उद्यमियों द्वारा अपने उत्पादों की बिक्री प्रदर्शनी लगायी है। 
रानीखेत में कदली वृक्षों के आमंत्रण के साथ मेला शुरू हो गया है। शुक्रवार सुबह राय स्टेट से कदली वृक्ष को भव्य शोभायात्रा के साथ नगर भ्रमण कराकर मन्दिर में लाया गया। यहां शनिवार से मूर्ति निर्माण की प्रक्रिया शुरू होगी। इस अवसर पर कमेटी अध्यक्ष हरीश साह, विधायक करन महरा, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य सलाहकार परिषद अध्यक्ष अजय भट्ट, नरेन्द्र रौतेला समेत दर्जनों लोग मौजूद थे। राजा की भूमिका इस बार सामाजिक कार्यकर्ता मोहन नेगी निभा रहे हैं।

बागेश्वर में नंदा देवी महोत्सव कल 
बागेश्वर। श्री रामलीला कमेटी के तत्वावधान में रविवार से होने वाले नंदादेवी महोत्सव की तैयारियां जोरशोर से चल रही हैं। कमेटी के अध्यक्ष नंदन साह के नेतृत्व में दर्जनों पदाधिकारी, सदस्य और नगरीय युवा कदली वृक्ष लाने मंडलसेरा गांव रवाना हुए और पूर्व प्रधान किशन सिंह मलड़ा के खेत से वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच कदली वृक्ष निकाला गया। इसके बाद देवी की जय-जयकार के बीच कदली वृक्ष लेकर भक्तगणों ने नगर की सभी मुख्य सड़कों का परिक्रमण किया और महोत्सव स्थल रामलीला भवन नुमाईशखेत मैदान में वृक्ष रखा। इसके साथ ही देवी प्रतिमा बनाने का काम भी शुरू हो गया है। कदली वृक्ष लाने वालों में सूरज जोशी, नीरज उपाध्याय, नीरज पांडे, शंकर साह, पंकज पांडे, ललित तिवारी, किशन मलड़ा, रचित साह आदि दर्जनों युवा शामिल थे। महोत्सव की व्यापक तैयारियां चल रही हैं।
नैनीताल के विश्व प्रसिद्द नंदा महोत्सव की कुछ तस्वीरें यहाँ क्लिक करके देखी जा सकती हैं.
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