रविवार, 30 जनवरी 2011

करमापा लामा के पक्ष में आया तिब्बती समुदाय


स्थानीय तिब्बती शरणार्थियों को है पूरा यकीन, कहा-जांच में सामने आ जाएगी हकीकत
नैनीताल (एसएनबी)। बौद्ध धर्म गुरु 17वें करमापा उग्येन त्रिनले दोज्रे को चीन का एजेंट कहे जाने संबंधी मीडिया में आ रही खबरों से स्थानीय तिब्बती शरणार्थी आश्चर्य चकित हैं। उनका कहना है कि करमापा चीन के एजेंट कदापि नहीं हो सकते हैं। उनके पास से बरामद धन भेंट से प्राप्त है। हिसाब-किताब में जरूर गलती हो सकती है। मामले की पूरी जांच होनी चाहिए। करमापा संबंधी खबरों पर प्रतिक्रिया पूछे जाने पर स्थानीय तिब्बती शरणार्थी फाउंडेशन के अध्यक्ष पेमा गेकिल शिथर का यही कहना है। उनका कहना था कि करमापा उग्येन त्रिनले दोज्रे को सबसे बड़े धर्म गुरु दलाई लामा से मान्यता प्राप्त है। वह दलाई लामा व चीन द्वारा कैद किए गए पंचेन लामा के बाद तीसरे सबसे बड़े लामा हैं। वह स्वयं तिब्बत से बड़ी तिब्बती व चीनी धनराशि लेकर आए थे। उनके तिब्बत सहित देश-विदेश में मौजूद भक्त अपने देशों की बड़ी मात्रा में मुद्रा उन्हें भेंट करते हैं। गत दिनों ही बिहार में बड़ा धार्मिक आयोजन हुआ था, जिसमें उन्हें बहुत बड़ी मात्रा में भेंट प्राप्त हुई थी। लामा साधु होने के कारण उन्हें धन से मोह नहीं है। लिहाजा हिसाब-किताब में जरूर गलतियां हो सकती हैं। तिब्बती युवा कांग्रेस के पूर्व सचिव येशी थुप्तेन का कहना है कि दोज्रे के बारे में चाहे जैसी खबरें आएं, उन पर संदेह करने का प्रश्न ही नहीं उठता। उनके बारे में देश-दुनिया के किसी भी बौद्ध धर्मावलंबी की राय इससे जुदा नहीं हो सकती है। अलबत्ता उन्होंने आशंका जताई कि उन्हें चीन का एजेंट कहा जाना चीन की चाल भी हो सकती है।
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