शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

नैनीताल जू में फिर दिखेगी हिम तेंदुआ ‘रानी’


देहरादून। करीब एक साल पहले मरी मादा हिम तेंदुआ रानी जल्द ही फिर नैनीताल चिड़ियाघर में दिखाई देगी। प्रदेश के वन विभाग ने पहली बार किसी मृत वन्यजीव की ट्राफी बनवाई है। अब तक वन विभाग मृत जानवरों के शव और खाल को नष्ट कर देता था लेकिन पहली बार किसी वन्य जीव वह भी दुर्लभ हिम तेंदुए की ट्ऱॉफी बनवाई गई है। नैनीताल के चिड़ियाघर की मादा हिम तेंदुआ रानी की पिछले साल अप्रैल को मौत हो गई थी जिसके बाद वन विभाग ने बांबे वेटनरी कॉलेज के जाने माने टैक्सीडर्मिस्ट डा. संतोष गायकवाड़ से उसकी ट्रॉफी बनवाने का फैसला लिया और उसके शव को नैनीताल से मुंबई ले जाया गया था। डा. गायकवाड़ ने अब रानी की जीवंत ट्राफी बना ली है। इस माह के अंत तक रानी दोबारा नैनीताल चिड़ियाघर में नमूदार होगी। 
वन विभाग की इस महत्वाकांक्षी परियोजना की देखरेख कर रहे तराई केंद्रीय वनप्रभाग हल्द्वानी के डीएफओ डा. पराग मधुकर धकाते का कहना है कि नैनीताल चिड़ियाघर में आने वालों का मादा हिम तेंदुए रानी से भावनात्मक लगाव रहा है इसीलिए उसकी मौत के बाद उसकी ट्राफी बनवाने का फैसला लिया गया। उनका कहना है कि विभाग ट्राफी को ठीक उसी जगह रखने की सोच रहा है, जहां पर रानी तब रहती थी जब वह जिंदा थी। डा. धकाते आजकल महाराष्ट्र के संजय गांधी नेशनल पार्क के वाइल्ड लाइफ टैक्सीडर्मी सेंटर के दौरे पर हैं। उनका कहना है कि रानी की ट्रॉफी ठीक उसी की जैसी दिखती है। चार फीट ऊंची और छह फीट लंबी इस ट्राफी का वजन करीब 80 किलोग्राम है। डा. गायकवाड़ ने रानी की ट्रॉफी इस तरह तैयार की है, जैसे वह चट्टान पर खड़ी हो और उसके आगे वाले पैर के पंजे ऊंची चट्टान पर टिके हों। इस ट्राफी की खास बात यह है कि उसके तेज पंजों को हूबहू रखा गया है। धकाते के मुताबिक ट्रॉफी को पहले विमान से दिल्ली और वहां से उसे नैनीताल के गोविंद बल्लभ पंत हाई एल्टीटय़ूड चिड़ियाघर लाया जाएगा। डा. संतोष गायकवाड़ बांबे वेटनरी कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। वह अब तक शेर और हाथी समेत विभिन्न जानवरों की 50 ट्रॉफी बना चुके हैं। हिम तेंदुआ रानी की ट्रॉफी बनाना कोई आसान काम नहीं था। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि उसे बिल्कुल असली दिखना था। समस्या यह भी थी कि लंबे समय तक संरक्षण के बावजूद हिम तेंदुए के शरीर से बहुत से बाल झड़ चुके थे, त्वचा भी सिकुड़ने लगी थी। इसलिए उसकी खाल को बहुत सी रासायनिक प्रक्रियाओं से गुजारना पड़ा ताकि जीवंत लगे। यह भी उपाय किया गया कि भविष्य में उसके बाल और न झड़ें। डा. गायकवाड़ ने जुलाई में ट्राफी बनानी शुरू की थी। दिसम्बर में उन्होंने ट्रॉफी बनाने का काम पूरा कर लिया। क्या है टैक्सीडर्मी : टैक्सीडर्मी मरे हुए जानवरों के खाल समेत संरक्षण का विज्ञान है। टैक्सीडर्मी में पहले मृत जानवर की खाल को सावधानी से उतारा जाता है फिर विभिन्न रसायनों के जरिए उसे इस तरह सुखाया जाता है कि खाल के बाल न झड़ें और उसका मूल स्वरूप बरकरार रहे। किसी जमाने में जानवरों की खाल में भूसा भरकर राज-रजवाड़े, रईस लोग और ब्रिटिश शिकारी अपने महलों-हवेलियों में सजाया करते थे।
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