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बुधवार, 25 जुलाई 2012

जिंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर..

पत्नी के हाथों की मेहंदी के सूखने से पहले ही देश पर कुर्बान हो गया मेजर राजेश  
नवीन जोशी, नैनीताल। करगिल शहीद दिवस जब भी आता है, वीरों की भूमि उत्तराखंड का नैनीताल शहर भी गर्व की अनुभूति के साथ अपने एक बेटे, भाई की यादों में खोये बिना नहीं रह पाता। नगर का यह होनहार बेटा देश के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार महावीर चक्र विजेता मेजर राजेश अधिकारी था, जो मां के बुढ़ापे का सहारा बनने व नाती-पोतों को गोद में खिलाने के सपनों और शादी के नौ माह के भीतर ही पत्नी के हाथों की हजार उम्मीदों की गीली मेंहदी को सूखने से पहले ही एक झटके में तोड़कर चला गया। 
मेजर राजेश अधिकारी ने जिस तरह देश के लिये अपने प्राणों का सर्वोच्च उत्सर्ग किया, उसकी अन्यत्र मिसाल मिलनी कठिन है। 29 वर्षीय राजेश 18 ग्रेनेडियर्स रेजीमेंट में तैनात थे। वह मात्र 10 सैनिकों की टुकड़ी का नेतृत्व करते हुए 15 हजार फीट की ऊंचाई पर तोलोलिंग चोटी पर पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा स्थापित की गई पोस्ट को दुश्मन के कब्जे से मुक्त कराने के इरादे से आगे बढ़े थे। इस दौरान सैनिकों से कई फीट आगे रहते हुऐ चल रहे थे, और इस कारण घायल हो गये। इसके बावजूद वह अपने घावों की परवाह किये बगैर आगे बढ़ते रहे। वह 30 मई 1999 का दिन था, जब मेजर राजेश प्वाइंट 4590 चोटी पर कब्जा करने में सफल रहे, इसी दौरान उनके सीने में दुश्मन की एक गोली आकर लगी, और उन्होंने बंकर के पास ही देश के लिये असाधारण शौर्य और पराक्रम के साथ सर्वोच्च बलिदान दे दिया। युद्ध और गोलीबारी की स्थितियां इतनी बिकट थीं कि उनका पार्थिव शरीर करीब एक सप्ताह बाद युद्ध भूमि से लेकर नैनीताल भेजा जा सका। राजेश ने नगर के सेंट जोसफ कालेज से हाईस्कूल, जीआईसी (जिसके नाम में अब उनका नाम भी जोड़ दिया गया है) से इंटर तथा डीएसबी परिसर से बीएससी की पढ़ाई की थी। पूर्व परिचित किरन से उनका विवाह हुआ था। परिजनों के अनुसार यह ‘लव कम अरेंज्ड’ विवाह था। लेकिन शादी के नौ माह के भीतर ही वह देश के लिये शहीद हो गये। उनकी शहादत के बाद परिजनों ने उनकी पत्नी को उसके मायके जाने के लिये स्वतंत्र कर दिया। वर्तमान में सैनिक कल्याण विभाग के अनुसार किरन ने पुर्नविवाह कर लिया। उनकी माता मालती अधिकारी अपने पुत्र की शहादत को जीवंत रखने के लिये लगातार संघर्ष करती रहीं, जिसके बावजूद उन्हें व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक दोनों स्तरों पर कुछ खास हासिल नहीं हो पाया है। वर्तमान में वह अपनी बेटी के पास किच्छा में रह रही हैं।




13 वर्षो के बाद भी घूम रहा मूर्ति का प्रस्ताव

रानीबाग में गार्गी (गौला) नदी के तट पर शहीद मेजर राजेश अधिकारी के पार्थिव शरीर को आखिरी प्रणाम करते कृतज्ञ राष्ट्रवासी.  
नैनीताल। इसे शासन-प्रशासन की लचर कार्य शैली और नगर का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि देश के सर्वोच्च बलिदान देने वाले शहीद की उसके नगर में एक अदद मूर्ति भी नहीं लग पाई है। मेजर राजेश की माता मालती अधिकारी के अथक प्रयासों के बाद बमुश्किल शासन से उनकी मूर्ति लगाने की अनुमति विगत वर्ष मिल पायी। तभी पालिका बोर्ड ने तल्लीताल दर्शन घर पार्क में उनकी मूर्ति लगाने पर अपनी अनापत्ति दे दी। इसके बाद मूर्ति तैयार करने का प्रस्ताव बनाने की फाइलें चलीं, जो कि आज भी न जाने कहां घूम रहीं हैं। पालिकाध्यक्ष मुकेश जोशी ने बताया कि संभवतया संस्कृति विभाग में मूर्ति तैयार करने का प्रस्ताव लंबित है। राजेश के भाई एसएस अधिकारी ने कहा कि बिना पहुंच के आजकल कोई कार्य नहीं होता है।

बुधवार, 18 जुलाई 2012

यहां ‘आने-जाने’ की बातें ही क्यों करते रहे काका



  • कटी पतंग और जाना फिल्मों की शूटिंग को आये थे राजेश खन्ना नैनीताल
  • रहने दो छोड़ो भी जाने दो यार... व जिस गली में तेरा घर ना हो बालमा, उस गली से हमें तो गुजरना नहीं गीतों में की थी अदाकारी
नवीन जोशी, नैनीताल। रुपहले हिंदी सिनेमा के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना यानी 'काका'  का नैनीताल से गहरा संबंध रहा था। वह दो बार फिल्मों की शूटिंग के लिये आये तो कई बार उन्होंने यहां की निजी यात्राऐं भी की थीं। लेकिन यह संयोग ही रहा कि आज दुनिया से रुखसत कर चुके काका जब भी नैनीताल आये ‘आने-जाने’ की ही बातें करते रहे। यहाँ फिल्माए गये उनके अधिकाँश गीतों और फिल्म 'जाना' के नाम में ‘आने-जाने’ जैसे उदासी भरे शब्द थे, जबकि जीवन के साथ ही अपनी कालजयी फिल्म 'आनंद' के जरिये वह जीवन की कठोर विभीषिकाओं को भी सामान्य तरीके से जीने का सन्देश देते रहे।
यह संयोग ही रहा कि कला की नगरी कहे जाने वाले नैनीताल में राजेश खन्ना अपने करियर के चढ़ाव और उतार दोनों दौर में आये। उनका यहाँ पहला आगमन 1960 के दशक के आखिरी वर्षों में हुआ था। यह वह समय था, जब तक वह स्टारडम हासिल कर चुके थे। शक्ति शामंत उस जमाने के नामचीन निर्देशक थे, जिन्होंने उस दौर की हसीन अभिनेत्री आशा पारेख को पहली बार एक विधवा के रूप में कटी पतंग फिल्म के जरिये उतारने का खतरा मोल लिया था। हीरोइन विधवा के रूप में कमोबेश पूरी फिल्म में सफेद साड़ी पहने थी, तो पूरी फिल्म को आकर्षक बनाने की जिम्मेदारी राजेश खन्ना पर ही थी। उन्होंने इस जिम्मेदारी को बखूबी संभाला भी। फिल्म की अधिकांश शूटिंग मुम्बई के नटराज स्टूडियो के अलावा नैनीताल व रानीखेत में हुई थी। नैनीताल की नैनी झील में राजेश और आशा के बीच बरसात के मौसम में ही ‘जिस गली में तेरा घर ना हो बालमा, उस गली से हमें तो गुजरना नहीं’ गीत फिल्माया गया था। यह गीत आज भी उस दौर के नैनीताल की खूबसूरती का आईना है। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान काका के स्टारडम का आलम यह था कि निर्देशक के लिए नैनी झील में शूटिंग करना  नहीं रहा ऐसे मैं शक्ति सामंत को नैनीताल की सभी नावें शूटिंग के दौरान के लिए किराए पर लेनी पडी इसी तरह दूसरा चर्चित गीत ‘रहने दो छोड़ो भी जाने दो यार, हम ना करेंगे प्यार’ नगर के बोट हाउस क्लब के बार में फिल्माया गया था।  नगर के वरिष्ठ पत्रकार एवं कलाकार उमेश तिवाड़ी ‘विश्वास’ बताते हैं कि इस गीत में बोट हाउस क्लब के बार की खूबसूरती उभर कर आई थी। उस दौर में यह गीत बार, डिस्को आदि में खूब बजता था। यहाँ इस फिल्म का 'ये शाम मस्तानी, मदहोश किये जाय। मुझे डोर कोई खींचे, तेरी और किये जाए' गीत भी फिल्माया गया। इस फिल्म में अदाकारी के लिये काका को सर्वश्रेष्ठ अदाकार के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था, जबकि आशा पारेख को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था। उस दौर में श्री विश्वास के दादाजी पं. धनी राम तिवाड़ी का निकटवर्ती गरमपानी में रेस्टोरेंट था। यहां रानीखेत जाते हुऐ काका रुके थे, और ‘दार्जिलिंग चाय’ की चुश्कियों का आनंद लिया था। हालिया दौर में अपनी दूसरी फिल्मी पारी के दौरान काका वर्ष 2005 में शाहरुख मिर्जा की फिल्म 'जाना-लेट्स फाल इन लव ' की शूटिंग के लिये नैनीताल आये थे। यह उनके करियर का बुरा दौर था। इस फिल्म में 35 वर्षों के बाद काका ने अपने दौर की मशहूर अभिनेत्री जीनत अमान के साथ बीते दौर के कई गीतों की पैरोडी पर भी अभिनय किया था] यह फिल्म  के झगड़े के कारण रिलीज भी नहीं हो पायी थी। इस फिल्म की यूनिट नगर के फेयर ट्रेल्स होटल में ठहरी थी, जबकि बैंड स्टेंड, बोट हाउस क्लब, माल रोड आदि स्थानों पर इसकी शूटिंग हुई थी। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान इस संवाददाता से भी काका ने बात की थी, तथा नैनीताल की खूबसूरती की दिल खोल कर सराहना की थी। आज काका इस दुनिया से जा चुके हैं, तो नगर के कला प्रेमियों के मन में यह सवाल बार-बार उठ रहा है, काका आप यहां हमेशा ‘आने-जाने’ की बातें ही क्यों करते रहे ?

रविवार, 10 जून 2012

एडमिरल जोशी ने आगे बढ़ाई नैनीताल की परम्परा




सरकारी स्कूलों का मान भी बढ़ाया वाइस एडमिरल डीके जोशी ने 
इससे पहले शेरवुड कालेज से ही निकलते रहे हैं सैन्य अधिकारी
नवीन जोशी नैनीताल। देश के भावी नौसेना प्रमुख डीके जोशी ने देश के पहले सेनाध्यक्ष फील्ड मार्शल एसएचएफजे मानेकशा, प्रथम परमवीर चक्र विजेता सोमनाथ शर्मा, पूर्व सेनाध्यक्ष डीएन शर्मा, ले. जनरल एसएन शर्मा, सैय्यद अता हसन और विक्रमजीत सिंह रावत की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए नैनीताल का नाम रोशन किया है। ये सभी सैन्य अधिकारी नैनीताल से किसी न किसी रूप में ताल्लुक रखते हैं। वाइस एडमिरल जोशी की सफलता ने इस बात को भी पुख्ता कर दिया है कि व्यक्ति में पढ़ने और अपने लक्ष्य को पाने की ललक व लक्ष्य के प्रति स्पष्ट सोच हो तो फिर शिक्षा का माध्यम कोई मायने नहीं रखता। 
जोशी 12वीं कक्षा में नैनीताल के राजकीय इंटर कालेज के छात्र रहे हैं। उनका शिक्षानगरी कहे जाने वाले नैनीताल से गहरा संबंध भी रहा है। श्री जोशी की प्राथमिक शिक्षा पीलीभीत व लखनऊ में हुई और इंटरमीडिएट उन्होंने नैनीताल के जीआईसी से पास किया, जो वर्तमान में यहां के इंटरमीडिएट में ही छात्र रहे मेजर राजेश अधिकारी के नाम पर जाना जाता है। राजेश ने हाईस्कूल तक की शिक्षा सेंट जोसफ स्कूल से ली थी, महावीर पुरस्कार प्राप्त मेजर राजेश करगिल युद्ध में शहीद हुए थे। इधर वाइस एडमिरल देवेंद्र कुमार जोशी का नाम विद्यालय से जुड़ने पर विद्यालय से जुड़े सभी लोग गदगद हैं। जोशी ने एक छात्र के रूप में 1969 में जीआईसी में प्रवेश लिया था, तब जीआईसी की हाईस्कूल तक की कक्षाएं ही वर्तमान गोरखा लाइन स्थित परिसर में जबकि इंटर की कक्षाएं वर्तमान डीएसबी परिसर (तत्कालीन डिग्री कालेज) में चलती थीं। डिग्री कालेज के प्रधानाचार्य ही जीआईसी की इंटर कक्षाओं का संचालन भी देखते थे। 
रामनगर कोसी नदी में परिजनों के साथ पिकनिक मनाते एडमिरल जोशी 
देवेंद्र के पिता हीरा बल्लभ जोशी उस दौर में कुमाऊं के मुख्य वन संरक्षक के पद पर थे। उन्होंने देवेंद्र को इंटर में जीआईसी में ही भर्ती कराया। देवेंद्र हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम आते थे और शुरू से मेधावी थे। बेहद सरल स्वभाव के वाइस एडमिरल जोशी अक्सर नैनीताल आते रहते हैं। उनके साले हरीश चंद्र पांडे यहां हाईकोर्ट में अधिवक्ता हैं। दूरभाष पर वार्ता में एडमिरल जोशी ने बताया कि वह अपने साले श्री पांडे के घर ही सादगी से रहे। 
नैनीताल जीआईसी की विकास यात्रा 
इस दौरान वह डीएसबी परिसर के वर्तमान वनस्पति विज्ञान विभाग के बगल के उस कमरे को देखने भी गए, जहां उन्होंने जीआईसी के रूप में इंटर की शिक्षा ग्रहण की थी। बातचीत में उन्होंने कहा कि जीआईसी से उन्हें शिक्षा के साथ ही सादगी का गुण भी प्राप्त हुआ।