गुरुवार, 17 मार्च 2011

गांधी दर्शन को पुनर्स्थापित करेगा कुमाऊं विवि

गांधी भवन स्थापित होगा, गांधी अध्ययन केंद्र करेगा अनुसूचित वर्ग के कल्याणार्थ कार्य
नवीन जोशी, नैनीताल। "राष्ट्रपिता गांधी पर बातें तो बहुत होती रही हैं, परंतु उनके विचार कार्य रूप में परिणित नहीं होते" व "हिमालय से ही फिर नयी गंगा निकलनी चाहिए" यह वह दो सवाल थे, जो मुख्यालय में चल रही दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में बार-बार उठे और इनका जवाब कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. वीपीएस अरोड़ा ने "कुमाऊं विवि गांधी जी के दर्शन को पुनर्स्थापित करेगा" की घोषणा से दिया। 
उन्होंने घोषणा की कि कुमाऊं विवि के डीएसबी परिसर में 2011-12 के शैक्षिक सत्र से गांधी दर्शन पर स्नातकोत्तर पाठय़क्रम प्रारंभ होगा। खुलासा किया कि यह पाठय़क्रम किसी भी अन्य पाठय़क्रम से भिन्न होगा। यह किसी विभाग के अधीन नहीं होगा, साथ ही इसमें विद्यार्थियों के लिए कोई बाहरी परीक्षा नहीं होगी। विद्यार्थियों का आकलन पूरी तरह पाठय़क्रम पढ़ाने वाले शिक्षक ही करेंगे। इस पाठय़क्रम के संयोजन की जिम्मेदारी कुलपति ने कुलसचिव कमल किशोर पांडे को सौंपी गई है। उनसे एक माह के भीतर इस के लिए पाठय़क्रम का प्रारूप तैयार करने को कहा गया है। साथ ही पाठय़क्रम के लिए स्वैच्छिक आधार पर शिक्षकों से आगे आने को कहा गया, जिसमें कई शिक्षकों ने स्वयं को इस के लिए प्रस्तुत भी कर दिया। कुलपति ने साफ किया कि इस पाठय़क्रम से जुड़ने वाले शिक्षकों को स्वयं के आचरण में भी गांधी दर्शन को आत्मसात करना होगा। उसे मांस-मदिरा जैसे व्यसन भी छोड़ने होंगे। इसके साथ ही उन्होंने विवि में गांधी भवन की स्थापना करने की घोषणा भी की तथा कार्यशाला में आए गांधीवादी विचारकों श्री बसंत, राधा बहन, एनपी मोदी व डा. एडी मिश्रा आदि से सहयोग की अपेक्षा की। इसके अलावा कुलपति ने विवि के गांधी अध्ययन केंद्र को गांधी जी के प्रिय पिछड़ा वर्ग के उद्धार की भावना के अनुरूप हर माह यानी वर्ष में 12 अनुसूचित बाहुल्य गांवों में परिवारों के कल्याणार्थ धरातल पर कार्य करने व इसकी सफलता की कहानी प्रकाशित करने को कहा। ऐसे लाभान्वित परिवारों के प्रतिनिधियों को हर वर्ष आयोजित होने वाली कार्यशाला में प्रतिभाग कराया जाएगा। साथ ही केंद्र इस वर्ग के लोगों की दक्षता वृद्धि का कार्य भी करेगा। कुलसचिव श्री पांडे ने केंद्र के माध्यम से महात्मा गांधी को अब तक प्राप्त न हो पाए नोबल पुरस्कार के लिए भी प्रयास करने की बात कही है। इससे पूर्व कार्यशाला में आए गांधीवादियों ने कुमाऊं विवि से गांधी दर्शन व विचार पर पाठय़क्रम शुरू किये जाने की मांग उठाई।
गांधी मॉडल न अपनाने का झेल रहे परिणाम : राधा बहन
नैनीताल। गांधी शांति प्रतिष्ठान की अध्यक्ष तथा गांधी जी की शिष्या रही सरला बहन के कौसानी स्थित लक्ष्मी आश्रम की संचालिका व जमना लाल बजाज पुरस्कार विजेता राधा भट्ट (राधा बहन) का मानना है कि गांधी जी यदि जिंदा होते तो आज देश में वर्तमान जैसे भ्रष्टाचार युक्त हालात न होते, साथ ही देश आज से भी अधिक तरक्की कर बुलंदी पर होता। बृहस्पतिवार को मुख्यालय में एक कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय सहारा से बातचीत करते हुए उनका कहना था कि देश की आजादी के बाद की शुरूआती सरकारों ने गांधीजी के एवं देश के हजारों वर्ष से जिये मॉडल की बजाय पहले पूंजीवाद और फिर रूस के समाजवाद के मॉडल को लागू किया लेकिन रूस के विघटन के बाद समाजवाद का मॉडल छोड़क र वापस अमेरिका के पूंजीवाद के मॉडल पर चले गए। इसका परिणाम यह हुआ कि गांधी जी के सपनों का स्वराज तो मिला पर सुराज नहीं। उनका कहना था कि गांधी जी पहले ‘सत्य की खोज’ करते हुए विचारों को स्वयं जीकर आगे बढ़ने की गुंजाइश भी छोड़ते थे।

3 टिप्‍पणियां:

sirfira ने कहा…

भाई मेरे , गांधी दर्शन नहीं आचरण है. मन वचन और कर्म की सत्यता का भी कोई पाठ्यक्रम हो सकता है क्या? उसे पढाएगा कौन? वह जो केवल शब्द है,आचरण नहीं. क्या गांधी दर्शन में परास्नातक से मन वचन और कर्म की सत्यता की आशा की जा सकेगी. हमारे देश की जो नैतिक स्थिति है, उसको देखते हुए भगवान के लिए उस बुड्ढे को तंग मत करो. हम चरित्रहीनों में से कोई उसे मरने के बाद भी सताये, इससे दुखद स्थिति उस बुड्ढे की आत्मा के लिए और क्या हो सकती है.
ताराचन्द्र त्रिपाठी

sirfira ने कहा…

किसी भी पुरस्कार को पाने के लिए अपनी अस्मिता को बेचने के लिए तैयार रहने वाले लोगों को ही गान्धी के लिए नोबेल पुरस्कार की कमी अखरेगी. यदि यह माँग करनी है तो ईसा मसीह और भगवान बुद्ध के लिए भी नोबेल पुरस्कार की माँग क्यों नहीं करते?
ताराचन्द्र त्रिपाठी

डॉ. नवीन जोशी ने कहा…

ताऊ जी, आपकी चिंता वाजिब है. पर शुरुआत होने देते हैं, शायद कुछ अच्छा हो जाए. "FEEL GOOD" का जमाना है, और उम्मीद पर दुनिया कायम है...
वैसे कुलपति ने इस विषय को अन्य से अलग रखने और इसके शिशकों को मांस-मदिरा से दूर रहने जैसी सलाह देकर कुछ हद तक अच्छे संकेत दिए हैं. शायद इस कवायद से गांधी नहीं एक-आध गांधीवादी ही जन्म ले लें.
हाँ, इतने मूल्यवान विचारों के बाद भी स्वयं को "sirfira" कहने जैसे साहस के लिए भी मैं आपको प्रणाम करता हूँ.