शुक्रवार, 20 मई 2011

सदियों पहले से कुमाऊंनी में लिखी जा रहीं पुस्तकें

नैनीताल (एसएनबी)। कुमाऊंनी को बोली या भाषा मानने पर चल रही बहस के बीच नैनीताल में एक ऐसी पांडुलिपि प्राप्त हुई है, जो कुमाऊंनी में लिखी गई है। यह पुस्तक जन्म कुंडली निर्माण की पद्धति को बेहद सहज और सरल पद्धति से सिखाती है। देश भर में वर्ष 2003 से चल रहे राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के तहत प्रदेश में कार्य कर रहे उत्तराखंड संस्कृत अकादमी सव्रेक्षकों के हाथ अनूठे हस्तलिखित दस्तावेज हाथ लगे हैं। 
उल्लेखनीय है कि कुमाऊंनी को भाषा के इतर बोली मानने के तर्क दिए जाते हैं। तर्क है कि इसमें प्राचीन लिखित साहित्य मौजूद नहीं है। इस मान्यता को कुमाऊं विवि के मुख्यालय स्थित हिमालयन संग्रहालय में मौजूद कुमाऊंनी में जन्म कुंडली निर्माण पद्धति पर लिखित पुस्तक आईना दिखाने वाली है। राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के सर्वेक्षकों को 300 वर्ष पुराना अनूठा संस्कृत व फारसी का ज्योतिष गणना यंत्र के साथ ही जागेश्वर महात्म्य, रामगंगा महात्मय, दशकर्म पद्धति, षोडश संस्कार पुस्तक, धार्मिक कर्मकांड तंत्र-मंत्र से जुड़ी पांडुलिपियां प्राप्त हुई हैं। इन पांडुलिपियों का रानीबाग की हिमसा संस्था के क्यूरेटरों द्वारा संरक्षण किया जा रहा है। इस मौके पर सव्रेक्षकों डा. कैलाश कांडपाल व शैक्षिक समन्वयक कैलाश पंत ने आमजन से अपील की कि वह घरों में मौजूद प्राचीन पांडुलिपियों को मिशन के तहत पंजीकृत कराए।

सुमेरू से होती थी ज्योतिष गणना


कुमाऊं विवि को मिला संस्कृत और फारसी का अनूठा ज्योतिष गणना यंत्र
सूर्य व चंद्र दोनों सिद्धांतों पर आधारित है यह दस्तावेज
हिमालयन संग्रहालय में मौजूद अनूठा विशाल ज्योतिष यंत्र
नवीन जोशी नैनीताल। कुमाऊं विवि के हिमालयन संग्रहालय को एक विशाल आकार का हस्तलिखित ज्योतिष गणना यंत्र मिला है। यह संस्कृत और फारसी में लिखा गया है, इसमें सूर्य व चंद्र ज्योतिष सिद्धांतों से सौरमंडल और ब्रह्माण्ड की गणना की गई है। यह पुराने समय में कुमाऊं अंचल के ज्ञान के भंडार का दस्तावेज है। 
विवि के इतिहास विभाग के हिमालयन संग्रहालय को नगर के बिड़ला विद्या मंदिर में शिक्षक रहे इतिहासकार नित्यानंद मिश्रा के जरिए यह ज्योतिष गणना यंत्र हासिल हुआ। यह पहाड़ के ‘बड़वा’ पेड़ से हस्तनिर्मित कागज पर छह फीट एक इंच लंबा व चार फीट चौड़े विशाल आकार में है। इसमें सुमेरु पर्वत को पृथ्वी का केंद्र मानते हुऐ पृथ्वी की सतह से 12 योजन यानी 96 किमी तक के आसमान और सौरमंडल के साथ ब्रह्माण्ड में मौजूद नक्षत्रों के व्यास और उनकी कक्षाओं की विस्तृत जानकारी है। पंचांग में सुमेरु के चारों ओर कपिल, शंख, वैरूप्य, चारुश्य, हेम, ऋषभ, नाग, कालंजर, नारद, कुरंग, बैंकक, त्रिकट, त्रिशूल, पतंग, निषध व शित आदि पर्वतों तथा क्षार, क्षीर, दधि, घृत, इक्षुरस, मदिर व स्वाद नाम के सात समुद्रों का जिक्र है। समुद्रों के बीच में क्रमश: शाक, साल्मती, कुश, क्रोंच, गोमेद व पुष्कर द्वीप भी प्रदर्शित हैं। यंत्र के अनुसार चांद का व्यास 1, 03,090 योजन व नक्षत्रों का व्यास 8,29,92,224 योजन है। इसमें सूर्य सहित सभी ग्रहों व नक्षत्रों का व्यास व उनकी परिभ्रमण कक्षाएं भी अंकित हैं। यह पंचांग ज्योतिष के विपरीत सिद्धांतों सूर्य व चंद्र सिद्धांतों के समन्वय पर बना है। इसमें संस्कृत के साथ फारसी का प्रयोग किया गया है। राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन से जुड़े डा. कैलाश कांडपाल इसे करीब 300 वर्ष पुराना मुगलकालीन दस्तावेज मान रहे हैं। यंत्र को हिमालय संग्रहालय में रखा गया है। इसके अनुरक्षण का कार्य रानीबाग की संस्था हिमसा के माध्यम से किया जा रहा है।
इसे यहाँ राष्ट्रीय सहारा के प्रथम पृष्ठ पर भी देख सकते हैं। 

गुरुवार, 19 मई 2011

महंगाई नैनीताल की मोमबत्तियां बुझाने पर उतारू

पेट्रोल के मुकाबले दोगुनी वृद्धि हो रही कच्ची मोम के दामों में
नैनीताल की पहचान हैं मोमबत्तियां, तीन वर्षों में डेढ़ गुने हो गये दाम, 30 फीसद घटी बिक्री
नवीन जोशी, नैनीताल। आगरा का पेठा, हापुण के पापड़, बरेली का सुरमा व अल्मोड़ा की बाल मिठाई की तरह ही नैनीताल की मोमबत्तियां भी देश—दुनिया में अपनी पहचान रखती हैं। केंद्र की यूपीए सरकार के दूसरे बीते तीन वर्षों के कार्यकाल में पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में जो रिकार्ड वृद्धि हुई है, नैनीताल का मोमबत्ती उद्योग इसकी सर्वाधिक व सीधी मार झेल रहा है। इस दौरान कच्चे मोम के दामों में पेट्रोल के मुकाबले दोगुनी वृद्धि हुई है। इसके प्रभाव में मोम के दाम डेढ़ गुने तक हो गये हैं, लिहाजा बिक्री 30 फीसद तक घट गई है। हालात ऐसे ही रहने पर आने वाले वर्ष इस उद्योग को पूरी तरह खत्म कर सकते हैं।
नैनीताल में किसी दुकान पर रसीले फलों को देखकर आपके मुंह में पानी आ जाए, और पड़ताल करने पर पता चले कि वह फल नहीं सजावटी मोमबत्तियां हैं तो आश्चर्य न करें। दरअसल, नैनीताल की मोमबत्तियां होती ही इतनी सुंदर हैं कि आप नैनीताल आएं  और मोमबत्तियां लिये बिना लौट जाएं , ऐसा संभव नहीं है। लेकिन बीते तीन दशकों में पहले इस उद्योग में चीन का बर्चस्व शुरु हुआ, और अब यह देश में बढ़ी पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृद्धि की लगातार व जबर्दस्त मार झेलते हुऐ दम तोडऩे की राह पर है। गौरतलब है कि मोमबत्तियां पैराफीन वैक्स की बनी होती हैं, जो एक पेट्रोलियम उत्पाद है। उद्योग से जुड़े लोग बताते हैं कि तीन वर्ष पूर्व कच्चा मोम 9 से 10 रुपये किग्रा के भाव मिलता था, जो अब 14 से 15 के भाव हो गया है, यानी इस दौरान पेट्रोल के दामों में जो 23 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी हुई, उसके प्रभाव में मोम करीब दोगुनी महंगी हो गई। नगर में सजावटी मोमबत्तियों का कारोबार करीब पांच करोड़ रुपये का है, और करीब चार हजार लोग इस कारोबार से जुड़े हुए हैं, जिनमें 6 फीसद महिलाएं  हैं। वर्तमान हालातों की बात करें तो 7 के दशक में अनिल ब्रांड की मोमबत्तियों से इस उद्योग की शुरुआत करने वाली सीए एंड कंपनी सहित दर्जनों इकाइयां बंद हो चुकी हैं। अब केवल एक दर्जन ही उत्पादक बचे हैं। नगर की फोर सीजन केंडल शोप के स्वामी इस्लाम सिद्दीकी की मानें तो बढ़ती महंगाई के प्रतिफल में सजावटी मोमबत्तियों की बिक्री करीब 30 फीसद कम हो गई है। वह इसके लिये साफ तौर पर केंद्र की यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल की नीतियों को जिम्मेदार बताते हैं। उनका कहना है कि सरकार को दम तोड़ रहे नगर व प्रदेश की पहचान से जुड़े इस उद्योग को बचाने के प्रयास करने चाहिए।
ग्लोबलवार्मिंग के कारण भी घट रही बिक्री
नैनीताल। सुनने में यह बात अटपटी लग सकती है, परंतु मोमबत्ती उद्योग से जुड़े लोग बढ़ती गर्मी को भी मोमबत्तियों की घटती बिक्री से जोड़कर देख रहे हैं। कैंडिल विक्रेता इस्लाम सिद्दीकी के अनुसार यह मोमबत्तियां अधिकतम 48 डिग्री सेल्सियस का तापमान सह सकती हैं, किंतु मैदानों में पारे के 5 डिग्री तक पहुंचने पर गलने की संभावना से भी लोग मोमबत्तियां कम खरीद रहे हैं।

बुधवार, 18 मई 2011

अब नहीं रहेगी पहाड़ में चारे की समस्या


नवीन जोशी
नैनीताल। मैदानों के साथ पहाड़ भी गर्मी में झुलस रहे हैं, और पशुपालक परेशान हैं कि कैसे बरसात होने तक जानवरों का पेट पालें। ऐसे में यह खबर खासकर पहाड़ के पशुपालकों के लिए बड़ी राहत देने वाली हो सकती है। इन गर्मियों में तो नहीं, किंतु जल्द ही प्रदेश का पशुपालन महकमा कुमाऊं मंडल के पर्वतीय अंचलों में 115 हेक्टेयर भूमि पर 23 चरागाह विकसित करने जा रहा है। विभाग को इसके लिए 113.85 लाख रुपये भी शासन से प्राप्त हो गये हैं। बाद में सभी पहाड़ी ब्लाकों में दो-दो यानी 68 चरागाह बनाने की योजना भी तैयार की जा रही है। कुमाऊं मंडल के उप निदेशक पशुपालन डा. भरत चंद्र ने बताया कि मुख्यमंत्री की प्राथमिकता वाली 14 योजनाओं में ग्रास लैंड डेवलपमेंट एंड ग्रास रिजर्व योजना भी शामिल हैं। इसके तहत मंडल के मैदानी जनपद ऊधमसिंह नगर को छोड़कर (क्योंकि इस जिले में वन पंचायतें ही नहीं हैं) अन्य पांच जिलों के आठ विकास खंडों में 23 वन पंचायतें चिह्नित की गई हैं। यहां चरागाह विकसित करने के लिए धनराशि मिल गई है। श्री भरत चंद्र ने बताया कि योजना के तहत इन चिह्नित वन पंचायतों की 115 हेक्टेयर भूमि पर ऊंचाई के अनुसार पहाड़ के परंपरागत भीमल, तिमिल जैसे चारा वृक्ष व घास के पौधे रोपे जाएंगे। बाद में इन पर्वतीय जिलों के सभी 34 विकास खंडों के दो-दो यानी कुल 68 गांवों में भी ऐसे ही चरागाह विकसित करने का प्रस्ताव है।
जानवर खाएंगे रेडीमेड चारा केक
नैनीताल। उप निदेशक पशुपालन डा. भरत चंद्र ने बताया कि कुमाऊं के 41 (ऊधमसिंह नगर जनपद भी शामिल) में से 32 विकास खंडों में चारा बैंक विकसित कर लिए गये हैं। शीघ्र ही अन्य 18 ब्लॉकों में भी स्थापित किये जा रहे हैं। इन चारा बैंकों में जानवरों के लिए भूसा व शीरा के अलग-अलग अनुपात वाले 12 व 14 किग्राके ठोस चारा केक उपलब्ध करा दिये गये हैं। इन केक को पानी मिलाकर जानवर बड़े चाव से खा रहे हैं।
नहीं रिझा सकी बिग डेयरी योजना
नैनीताल। पशुपालन विभाग ने पुरानी योजना को परिवर्तित कर जो डेयरी उद्यमिता विकास योजना (बिग डेयरीयोजना) शुरू की है, उसे नैनीताल के पशुपालकों ने तो खूब पसंद किया है, पर यह पहाड़ के पशुपालकों को रिझाने में असफल रही है। दो से 10 दुधारू पशुओं की खरीद के लिए नाबार्ड से 25 फीसद अनुदान पर एक से पांच लाख के ऋ ण वाली इस योजना में 211 के लक्ष्य के सापेक्ष 648 आवेदन आये। इन आवेदनों में पर्वतीय पशुपालकों के आवेदन कम ही थे और जो थे भी वह दो या तीन जानवरों तक सीमित थे। बीती 31 मार्च तक ही लक्ष्य से अधिक 296 आवेदकों को 3.27 करोड़ रुपये के ऋ ण स्वीकृत हो गये।

रविवार, 15 मई 2011

नैनीताल जू में 'घर बसाएगा' नरभक्षी बंगाल टाइगर


गत वर्ष कार्बेट के बिजरानी जोन से पकड़ा गया था नरभक्षी नर व सांवल्दे से लाई गई थी बीमार मादा

इस तरह 'बाघ बचाओ मुहिम' भी  चढ़ेगी परवान
नवीन जोशी, नैनीताल। नैनीताल का पंडित गोविंद वल्लभ पंत उच्च स्थलीय प्राणि उद्यान यानी नैनीताल चिडिय़ाघर देश भर में चल रही 'बाघ बचाओ' मुहिम का हिस्सा बनने जा रहा है। चिडिय़ाघर प्रबंधन यहां एक 'बंगाल टाइगर' नस्ल के नरभक्षी बाघ का 'घर' बसाने जा रहा है। कोशिश है कि उसे यहां एक मादा हम नस्ल मादा बाघ के साथ प्रेमालाप का मौका देकर 'वाइल्ड ब्रीडिंग' के लिये प्रेरित किया जाए।
गौरतलब है कि गत वर्ष चार अप्रैल को जनपद स्थित देश के जाने—माने कार्बेट नेशनल पार्क के बिजरानी जोन में एक नर बंगाल टाइगर आतंक का पर्याय बन गया था। उसने चार फरवरी 09 को सर्पदुली रेंज के ढिकुली गांव में भगवती देवी को हमला बोलकर मार दिया था, जिसके बाद बमुश्किल उसे एक पखवाड़े बाद घायल अवस्था में पकड़कर नैनीताल चिडिय़ाघर लाया गया था। उसका सौभाग्य ही कहिए कि चिडिय़ाघर कर्मियों की सुश्रुसा व देखभाल से न केवल वह स्वस्थ हो गया वरन इसी दौरान कार्बेट पार्क के सांवल्दे क्षेत्र से एक मादा बंगाल टाइगर वन विभाग के अधिकारियों को घायल अवस्था में मिल गई। एक ही नस्ल के इस युगल को देखकर नैनीताल चिडिय़ाघर प्रबंधन के मन में उनका घर बसाने का विचार आ गया, जिसे अब जल्द मूर्त रूप दिये जाने की कोशिश की जा रही है। चिडिय़ाघर के निदेशक बीजूलाल टीआर ने बताया कि एक पखवाड़े के भीतर दोनों को साथ में आम जनता हेतु प्रदर्शित किया जाएगा। साथ में यह कोशिश भी होगी कि वह जंगल की परिस्थितियों में ही 'वाइल्ड ब्रीडिंग' के लिये प्रेरित हों। साथ रहते हुए सहवास करें, व नैनीताल चिडिय़ाघर उनके  प्रजनन से शावक उत्पन्न कर 'बाघ बचाओ' मुहिम का हिस्सा बन गौरवांवित हो सके।

'उम्मीद' से है तिब्बती मादा भेडिय़ा !
नैनीताल। नैनीताल चिडिय़ाघर में पहली बार तिब्बती भेडिय़ों के बाड़ों में नन्ही किलकारी गूंजने की उम्मीद की जा रही है। चिडिय़ाघर के अधिकारियों के अनुसार इन दिनों एक मादा भेडिय़ा गुफा में घुस गई है, व शारीरिक रूप से लगता है कि गर्भवती है। चिडिय़ाघर के निदेशक बीजू लाल टीआर ने उम्मीद जताई कि पहली बार यहां तिब्बती भेडिया का स्वस्थ शिशु पैदा हो सकता है। ऐसा हुआ तो यह चिडिय़ाघर के लिये बड़ी उपलब्धि होगी, क्योंकि यहां रखे भेडिय़े अधिक ऊंचाई के तिब्बती क्षेत्रों के हैं।

रोमियो—जूलियट: बेरोना से सरोवर नगरी में

थियेटर की नगरी में जारी है छोटे संसाधनों से बड़े नाटकों का प्रदर्शन
नवीन जोशी, नैनीताल। इटली के नगर बेरोना में प्रेम की किंवदंती बन चुके रोमियो और जूलियट का प्यार पला था, वही रोमियो और जूलियट इन दिनों दुनिया के महानतम नाटककार विलियम शैक्सपीयर के नाटक से निकलकर सरोवर नगरी के शैले हॉल सभागार में मौजूद हैं। यहां इन दो पात्रों की बेहद भावुक व दु:खांत काल्पनिक प्रेमगाथा का प्रदर्शन हो रहा है। 
कहते हैं कि शेक्सपीयर एक डार्क लेडी नाम की महिला के प्रेम से वंचित थे, इसी लिये उन्हें अतृप्त कवि और नाटककार भी कहा जाता है। शायद इसी लिये वह 159४ में रोमियो—जूलियट के अतृप्त प्यार पर अपनी साहित्यिक शुरुआत में ही इतना सुंदर नाटक लिख पाए, जो अपने काल्पनिक पात्रों को कहानी के जरिये दुनिया के अन्य जीवंत प्रेमियों लैला—मजनू व शीरी—फरियाद से कहीं अधिक प्रसिद्धि दिला गये। शेक्सपीयर ने रोमियो—जूलियट में प्रेम को जिस ढंग से उतारा है, उसमें प्यार का पहला इजहार जुबां से नहीं आंखों से होता है। जुबां का रिश्ता बुद्धि और तर्क के साथ जुडता है और प्यार में बुद्धि और तर्क के लिए कोई स्थान नहीं होता है। आंखों की भाषा मस्तिष्क, बुद्धि और तर्क से अलग होकर सीधे हृदय को छूती है, घायल करती है, और इतना घायल करती है कि दो हृदय विरह की आग में झुलसते रहते हैं। अंत में वर्जनाओं के कारण दोनों एक साथ मौत की माला गले में पहन लेते हैं। इस कशिश, भावनाओं के उद्वेग, भावों के विचारवान परिवर्तन को समझना बड़े कलाकारों के लिये भी आसान नहीं होता। आज से लगभग सात सौ वर्ष पूर्व लिखी गई यह कहानी शैले हॉल के रंगमंच पर उतारने का साहस करना भी कठिन होता है, किंतु नगर के 'मंच एक्सपरिमेंटल रेपेटरी' ने युवा निर्देशक अजय पवार के निर्देशन में यह साहस दिखाया है। जूलियट के रूप में गंगोत्री बिष्ट, कप्यूलेट अनिल घिल्डियाल के साथ ही बैन्वोलियो संजय कुमार, सैंपसन नीरज डालाकोटी, पैरिस रोहित वर्मा व टाइबौलट अनवर रजा आदि कलाकारों ने बेहद प्रभावित किया। हाँ, कई पात्र बीते कुछ समय से लगातार्र शैक्सपीयर के पात्रो को जीते हुए 'टाइप्ड' होते भी प्रतीत हो रहे हैं अन्य पात्रों मोहिनी रावत, धर्मवीर सिंह परमार व मो.जावेद हुसैन ने भी अच्छा अभिनय किया। निर्देशक अजय कुमार मुख्य चरित्र रोमियो के बजाय निर्देशन में अधिक प्रभावी दिखे। नगर में ऑडिटोरियम की कमी एक बार पुन: खली। प्रकाश व्यवस्था कई बार खासकर जूलियट के बेहोसी के दृश्यों में आने और उठकर जाने के दौरान कमजोर दिखी। बावजूद, अच्छी बात यह रही कि संसाधनों के बिना भी कभी थियेटर की नगरी कही जाने वाली सरोवरनगरी में युवा कलाकार व कला से जुड़े लोग नाटक को जिंदा किये हुए हैं, व पर्यटन नगरी में लगातार स्तरीय नाटक प्रदर्शित कर सिनेमाघरों की कमी को भी छुपाने में सफल हो रहे हैं।

शुक्रवार, 13 मई 2011

ओसामा के पतन के बाद भारत को चीन-पाक से खतरा बढ़ा : ले.ज. भंडारी


राज्य की सीमाओं पर सुरक्षा को लेकर संवेदनशील रहे सरकार
भारत को अमेरिका, चीन, पाक और रूस से जारी रखनी चाहिए वार्ता
नवीन जोशी, नैनीताल। परम विशिष्ट व अति विशिष्ट सेवा मेडल प्राप्त सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल डा. एमसी भंडारी ने आशंका जताई कि ओसामा की मौत के बाद भारत पर दोतरफा खतरा है। पाकिस्तान से आतंकियों की आमद के साथ चीन भी भारत की ओर बढ़ सकता है। डा. भंडारी ने कहा कि भारत पांच-छह वर्षो में दुनिया की आर्थिक सुपर पावर बन सकता है। इसलिए उसे इस अवधि में कूटनीति का परिचय देते हुए अमेरिका, चीन, पाकिस्तान व रूस सहित सभी देशों से बातचीत जारी रखनी चाहिए। 
कुमाऊं विवि के अकादमिक स्टाफ कालेज में कार्यक्रम में आए डा. भंडारी ने 'राष्ट्रीय सहारा' से कहा कि ओसामा बिन लादेन के बाद पाक अधिकृत कश्मीर में चल रहे 32 शिविरों से प्रशिक्षित आतंकी दो-तीन माह में भारत की तरफ कूच कर सकते हैं। कश्मीर में शांति पाकिस्तान की 'जेहाद फैक्टरी' में बैठे लोगों को रास नहीं आएगी। ओसामा ने भी कश्मीर में जेहाद की इच्छा जताई थी। उधर चूंकि पाकिस्तान बिखर रहा है, इसलिए तालिबानी- पाकिस्तानी भी यहां घुसपैठ कर सकते हैं। पाक पहले ही गिलगिट व स्काई क्षेत्रों में अनधिकृत कब्जा कर चुका है, दूसरी ओर चीन के 10 से 15 हजार सैनिक 'पीओके' में पहुंच चुके हैं, पाकिस्तान ने उन्हें सियाचिन के ऊपर का करीब 5,180 वर्ग किमी भू भाग दे दिया है, ऐसे में चीन तिब्बत के बाद भारत के अक्साई चिन व नादर्न एरिया तक हड़पने का मंसूबा पाले हुए है। उन्होंने कहा कि चीन ने यहां उत्तराखंड के चमोली जिले के बाड़ाहोती में 543 वर्ग किमी व पिथौरागढ़ के कालापानी में 52 वर्ग किमी क्षेत्र को अपने नक्शे में दिखाना प्रारंभ कर दिया है। ऐसे में उत्तराखंड में अत्यधिक सतर्कता बरतने व सीमावर्ती क्षेत्रों से पलायन रोकने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में चीन के घुसने की संभावना वाले 11 दर्रे हैं, जिनके पास तक चीन पहुंच गया है, और भारतीय क्षेत्र जनसंख्या विहीन होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में सीमाओं की सुरक्षा मुख्यमंत्री देखें और वह सीधे प्रधानमंत्री से जुड़ें। साथ ही उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के बावजूद 10 फीसद की विकास दर वाला भारत अगले पांच-छह वर्षो में सुपर पावर बन सकता है, इसलिए उसे इस अवधि में सभी देशों से कूटनीतिक मित्रता करनी चाहिए और अपने यहां सीमाओं की सुरक्षा दीवार मजबूत करनी चाहिए, ताकि बिखरते पाकिस्तान के बाद जब अमेरिका, चीन मजबूत होते भारत की ओर आंख उठाएं, वह मुंहतोड़ जवाब देने को तैयार हो जाए। उन्होंने भारत में सेना का बजट जीडीपी का 2.1 फीसद (64 हजार लाख रुपये) को बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया।

गुरुवार, 12 मई 2011

'टीएमटी' के निर्माण में भारत व एरीज की भागेदारी तय


दुनिया की अतिमहत्वाकांक्षी दूरबीन होगी 'थर्टी मीटर टेलीस्कोप'
नैनीताल (एसएनबी)। दुनिया की सबसे बड़ी 30 मीटर व्यास की आप्टिकल दूरबीन के निर्माण में दुनिया के पांच देशों के साथ भारत भी भागेदारी देगा। खास बात यह है कि नैनीताल का आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान यानी एरीज इसमें योगदान देगा। एरीज के वैज्ञानिकों के दिशा-निर्देशों पर भारतीय उद्योगों से इस अति महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए विभिन्न उपकरण बनाए जाएंगे। गत 18-19 अप्रैल को अमेरिका की वल्टेक आब्जरवेटरी की पसेदीना नगर में आयोजित संगोष्ठी में इस महायोजना की जिम्मेदारियां इसके भागीदारों, अमेरिका, जापान, कनाडा, चीन व भारत में बांटी गई। वहां से लौटे एरीज के निदेशक प्रो. रामसागर ने बताया कि इस 1.3 बिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट में भारत करीब 800 करोड़ रुपये का योगदान देगा, जिसमें से 600 करोड़ रुपये के उपकरण अवयव भारत से भेजे जाएंगे। एरीज भारतीय उद्योगों में बनने वाले लैंस सहित अन्य यांत्रिक अवयवों की गुणवत्ता आदि की निगरानी करेगा। भारत में सर्वाधिक 50 फीसद कार्य भारतीय तारा भौतिकी संस्थान बेंगलुरु के हिस्से आए हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले दो वर्षो में पहले चरण के यह कार्य कर लिये जाऐंगे। उल्लेखनीय है कि यह दूरबीन प्रशांत महासागर स्थित हवाई द्वीप में होनोलूलू के करीब ज्वालामुखी से निर्मित 13,803 फीट (4,207 मीटर) ऊंचे पर्वत पर वर्ष 2018 में स्थापित होने जा रही है। इस दूरबीन में अल्ट्रावायलेट (0.3 से 0.4 मीटर तरंगदैध्र्य की पराबैगनी किरणों) से लेकर मिड इंफ्रारेड (2.5 मीटर से 10 माइक्रोन तरंगदैध्र्य तक की अवरक्त) किरणों (टीवी के रिमोट में प्रयुक्त की जाने वाली अदृश्य) युक्त किरणों का प्रयोग किया जाएगा। यह हमारे सौरमंडल व नजदीकी आकाशगंगाओं के साथ ही पड़ोसी आकाशगंगाओं में तारों व ग्रहों के विस्तृत अध्ययन में सक्षम होगी।
अगले साल तक स्थापित होगी 3.6 मीटर व्यास की दूरबीन
नैनीताल। एरीज नैनीताल जनपद के देवस्थल में वर्ष 2012 के आखिर तक एशिया की सबसे बड़ी बताई जा रही 3.6 मीटर व्यास की नई तकनीकी युक्त 'पतले लैंस' (व्यास व मोटाई में 10 के अनुपात वाले) स्टेलर दूरबीन भी लगाने जा रहा है। एरीज के निदेशक प्रो. राम सागर ने बताया कि इस दूरबीन का लेंस रूस में बन रहा है, अगले तीन-चार माह में यह बेल्जियम चला जाऐगा, जहां दूरबीन के अन्य अवयवों का निर्माण भी तेजी से चल रहा है। बताया कि इस वर्ष के आखिर तक लेंस एवं सभी अवयवों के निर्माण का पहला चरण 'फैक्टरी टेस्ट' के साथ पूर्ण हो जाएगा।
एरीज और यूकोस्ट मिल कर करेंगे कार्य
नैनीताल। एरीज के निदेशक प्रो. राम सागर व उत्तराखंड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद-यूकोस्ट के हाल में महानिदेशक बने डा. राजेंद्र डोभाल ने मिलकर कार्य करने का इरादा जताया। बुधवार को एरीज में पत्रकारों से वार्ता करते हुऐ डा. डोभाल ने कहा कि एरीज में मौजूद संसाधनों का उपयोग कर बच्चों एवं आम जनमानस को खगोल विज्ञान व खगोल भौतिकी से रोचक तरीके से रूबरू कराया जाऐगा। बच्चों के साथ ही शोधार्थियों के लिऐ भी प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जाऐंगे।


मंगलवार, 10 मई 2011

आदि कैलाश यात्रा के लिए भी मानसरोवर जैसा क्रेज


किराया बढ़ने के बावजूद पहले चार दलों के लिए सीटें फुल
30 मई को रवाना होगा पहला जत्था
नवीन जोशी, नैनीताल। शिव के धाम कैलाश मानसरोवर की यात्रा से इतर शिव के छोटे धाम कहे जाने वाले आदि कैलाश यात्रा के लिए भी श्रद्धालुओं में जबरदस्त क्रेज दिखाई दे रहा है। यात्रा का किराया करीब पांच हजार रुपये प्रति यात्री बढ़ने के बावजूद श्रद्धालुओं के जोश में कोई कमी नहीं आई है। पहले चार दल पैक हो गये हैं, और अन्य 12 दलों के लिए भी 50 फीसद से अधिक बुकिंग हो चुकी हैं। कुमाऊं मंडल विकास निगम द्वारा कैलाश मानसरोवर यात्रा की तर्ज पर ही वर्ष 1986-87 से आदि कैलाश यात्रा शुरू की गई थी। रहस्य-रोमांच और भोले बाबा की भक्ति में डूबने के लिहाज से आदि कैलाश यात्रा मानसरोवर यात्रा के समान ही महत्व रखती है। कैलाश शिव का धाम है तो आदि कैलाश भी शिव का छोटा घर ही है। इसलिए इसे छोटा कैलाश यात्रा भी कहते हैं। यहां शिव के शब्द प्रतीक 'ऊंकार' को प्राकृत रूप में देखना अद्भुत अनुभव है। आदि कैलाश यात्रा के लिए मानसरोवर की तहत विदेश मंत्रालय से अनुमति नहीं लेनी पड़ती, वीजा की जरूरत नहीं पड़ती व चीन में होने वाली दिक्कतों का सामना भी नहीं करना पड़ता। साथ ही खर्च भी कम आता है। नाभीढांग तक मानसरोवर व आदि कैलाश दोनों यात्राओं का मार्ग एक ही रहता है। नाभीढांग से ऊं पर्वत के दर्शन करते हुए यात्री गुंजी, कुट्टी व जौलिंगकांग होते हुए आदि कैलाश पहुंचते हैं। इधर बीते पांच वर्षो से निगम आदि कैलाश यात्रा की भी ऑनलाइन बुकिंग करता है। इस यात्रा के लिए हर बैच में औसतन 40 यात्री शामिल किये जाते हैं, जिनका चयन निगम द्वारा ही किया जाता है। इस यात्रा में कुमाऊं के विश्व प्रसिद्ध जागेश्वर, पाताल भुवनेश्वर व बैजनाथ जैसे आस्था केंद्रों के दर्शन भी हो पाते हैं। इस वर्ष यह यात्रा करीब चार हजार रुपये प्रति यात्री महंगी होने जा रही है। अब तक इस यात्रा का किराया 17,600 रुपये था, जो इस वर्ष से 21 हजार रुपये प्रति यात्री होगा, साथ ही 2.58 फीसद सुविधा शुल्क भी अलग से वहन करना होगा। निगम के प्रबंध निदेशक चंद्रेश कुमार ने बताया कि इसके बावजूद पहले चार बैच पैक हो गये हैं और अन्य 12 बैचों के लिए भी 50 फीसद से अधिक बुकिंग हो चुकी है। यात्रा 29 मई से शुरू होगी। पहला दल 29 को दिल्ली से चलकर 30 की सुबह काठगोदाम और दिन के भोजन तक जागेश्वर पहुंच जाएगा।
मानसरोवर ट्रेक पर दिक्कत जल्द दूर कर लेने का भरोसा
नैनीताल। उल्लेखनीय है कि आदि कैलाश के ठीक बाद एक जून से कैलाश मानसरोवर यात्रा प्रारंभ हो रही है। इस रूट पर 1 दिन पूर्व कुटी में भारी बारिश के कारण निगम के कैंप को क्षति पहुंची थी, जबकि तीन दिन पूर्व आई बारिश ने गर्बाधार के पास ट्रेक को क्षतिग्रस्त कर दिया था। केएमवीएन के प्रबंध निदेशक चंद्रेश कुमार ने भरोसा जताया कि कुटी के कैंप को 2 मई और गर्बाधार के खतरनाक हो चुके ट्रेक को 25 मई तक दुरुस्त करने को कहा गया है। बताया कि सोमवार शाम तक दिल्ली से मानसरोवर यात्रियों को लाने वाली 'टू-बाई-टू' एसी बसों और काठगोदाम से आगे जाने वाली लग्जरी बसों की निविदा प्रक्रिया शाम तक पूरी की जा रही है। तैयारियों को अंतिम स्वरूप दिया जा रहा है।