पर्यटन स्थल के रूप में मशहूर सरोवरनगरी से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हाथीखाल क्षेत्र में अंग्रेजों द्वारा वर्ष 1900 में बसाए गए बाना गांव के पास कुदरत की एक और नियामत का पता चला है। एक घुमक्कड़ की नजरों में आई अद्भुत गुफा को देख वैज्ञानिक भी दंग हैं। चार मीटर लम्बी और दो मीटर चौड़ी गुफा में ढे़ड दर्जन से अधिक शिव लिंग हैं। हैरत वाली बात यह है कि आम तौर पर प्राकृतिक रूप से मिलने वाले शिवलिंग लाइम स्टोन पर बने होते हैं लेकिन इस गुफा में सैंड स्टोन पर बने हुए हैं।
नैनीताल का निकटवर्ती बाना गांव अचानक ही चर्चाओं में आ गया है। वजह अदुभुत गुफा का मिलना। इस स्थान को बल्दियाखान से करीब तीन और हल्द्वानी के फतेहपुर से करीब एक घंटे पैदल चलकर पहुंचा जा सकता है. एक स्थानीय घुमक्कड़ दीपक बिष्ट की नजर सबसे पहले साल और बांज के घने जंगलों से घिरी इस गुफा पर पड़ी। उसने वैज्ञानिकों को इसकी जानकारी दी। यूजीसी के वैज्ञानिक व हजारों वर्षों के दीर्घकालीन मौसम पर शोधरत डा.बीएस कोटलिया ने गुफा का मुआयना कर पाया कि गुफा 3,500 से 4,000 वर्ष पुरानी हो सकती है। उनका कहना है कि गुफाओं में प्राकृतिक रूप से शिव लिंग चूने के पत्थर पर बनते हैं मगर इस गुफा का भीतरी आवरण बालू की चट्टानों से निर्मित है, बालू एवं चूने की चट्टानों का यह मिश्रण भू-विज्ञान की दृष्टि से बेहद आश्चर्यजनक संयोग है। ऐसा हो सकता है कि गुफा के भीतर जिस पानी से शिव लिंग बने हैं वह पानी केल्सियम कार्बोनेट युक्त हो। डा.कोटलिया ऐसी गुफाओं की ऐसी शिव लिंग नुमा आकृतियों से ही दीर्घकालीन मौसम पर शोध करते हैं. बताया जाता है कि एक वर्ष में एक चालला बनता है लिहाजा छल्लों की संख्या गुफा की आयु बता देती है । शिव लिंग बनने के लिए पानी जिम्मेदार होता है। पानी के अधिक या कम होने की दशा में शिव लिंग की बनावट पर भी प्रभाव पड़ता है। इन तमाम अध्ययनों के बाद जलवायु में हुए परिवर्तन के विषय में जाना जा सकता है। गुफा में करीब एक दर्जन शिवलिंग हैं, तथा देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी उभरी हैं। गुफा के आसपास काफी मात्रा में गंधक भी मौजूद है, जिससे क्षेत्र से भू गर्भीय भ्रंश गुजरने की पुष्टि भी होती है।