मंगलवार, 17 जनवरी 2012

कालाढूंगी के चक्रव्यूह में फंस गये भाजपा के "बंशीधर"



चुनाव समीक्षा : कालाढूंगी विस क्षेत्र
भगत के लिए आसान नहीं जीत की राह, घिरे हैं चतुष्कोणीय मुकाबले में

प्रदेश की सर्वाधिक मुश्किल सीटों में है कालाढूंगी, 11 में से छह प्रत्याशी हैं मुकाबले में, 
नवीन जोशीनैनीताल। कालाढूंगी विस सीट को यदि प्रदेश की सर्वाधिक फंसी हुई सीट कहें तो अतिशयोक्ति न होगी। यहां विस चुनाव का बिगुल बजने से कहीं पूर्व दावेदारों का ‘संघषर्’ शुरू हो गया था। खासकर भाजपा- कांग्रेस के दावेदार इस सीट को ‘हॉट केक’ मानकर गटक जाने के ऐसे अतिविास में देखे गये कि मानो उन्हें टिकट मिला और उनका विधायक बनना निश्चित हो। टिकट पाने को सर्वाधिक सिर-फुटव्वल इस सीट पर देखी गई। अब जबकि पार्टियों के प्रत्याशी नामांकन करा चुके हैं, तब यह संघर्ष दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है। 11 में से छह प्रत्याशी मुकाबले में हैं लेकिन आखिर में भाजपा, कांग्रेस, बसपा और निर्दलीय महेश शर्मा के बीच चतुष्कोणीय मुकाबला सिमट सकता है। ऐसे में इस सीट के प्रमुख भाजपा प्रत्याशी काबीना मंत्री बंशीधर भगत के बारे में कहा जा सकता है शेर अपनी मांद में घिर गया है। कालाढूंगी विस सीट के लिए पहली बार चुनाव हो रहा है। हल्द्वानी तथा पर्यटन नगरी नैनीताल-रामनगर के बीच होने के बावजूद विकास यहां कोसों दूर रहा है। उत्तराखंड बनने के बाद भी हालात में सुधार नहीं हुआ। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने कालाढूंगी को प्रदेश का पहला हाईटेक पालिटेक्निक बनाने तथा वर्तमान सरकार ने रोडवेज बस अड्डा, मिनी स्टेडियम व गैस गोदाम बनाने जैसे ख्वाब दिखाए थे लेकिन पूरे नहीं किए। राज्य बनने और उससे पूर्व से यह सीट नैनीताल सीट का हिस्सा रही है। बीते 21 वर्षो से नैनीताल में शामिल इस सीट पर कांग्रेस नहीं जीत पाई है। 1986 में चुनाव जीते किशन सिंह तड़ागी इस सीट से आखिरी कांग्रेसी विधायक रहे। 91 की रामलहर से लगातार तीन चुनाव भाजपा के वर्तमान काबीना मंत्री बंशीधर भगत यहां से जीते। 2002 में डा. नारायण सिंह जंतवाल उक्रांद के टिकट पर भाजपा से यह सीट झटकने में सफल रहे लेकिन गत 2007 के विस चुनाव में भाजपा के खड़क सिंह बोहरा ने पुन: यह सीट हासिल कर भाजपा का एक बार पुन: नैनीताल से परचम फहराया। अब भगत क्षेत्र से चौथी और जंतवाल दूसरी जीत की कोशिश में फिर मैदान में हैं। इस क्षेत्र की खासियत रही है कि यहां की जनता जीतने वाले प्रत्याशी को वोट देती आई है। यानी जो भी विधायक जीतता है, इस क्षेत्र में उसे बढ़त मिली होती हैं। इसी कारण नैनीताल के वर्तमान विधायक खड़क सिंह बोहरा और पूर्व विधायक डा. नारायण सिंह जंतवाल ने यहां से दावेदारी की थी। नई सीट होने, नैनीताल सीट के सुरक्षित घोषित हो जाने तथा हल्द्वानी सीट के शहर क्षेत्र में ही सीमित हो जाने के कारण भाजपा- कांग्रेस सहित उक्रांद में यहां एक से अधिक दावेदार टिकट हासिल करने को ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहे थे। भाजपा से काबीना मंत्री बंशीधर भगत और कांग्रेस से राहुल गांधी के करीबी बताये जा रहे प्रकाश जोशी के मैदान में आने से यह सीट प्रदेश की वीआईपी सीटों में शुमार हो गई है। भगत क्षेत्र में अपने संपकरे, पार्टी के कैडर मतदाताओं तथा पिछले विस चुनाव के अलावा लोस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की जीत के बावजूद भाजपा प्रत्याशी को मिली बढ़त तथा स्वयं की लगातार तीन जीतों के आधार पर यहां जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन पार्टी के अन्य दावेदारों क्षेत्रीय विधायक बोहरा व भाजयुमो के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गजराज बिष्ट की नाराजगी उनकी राह में बाधा बनी हुई है। दोनों दावेदारों ने क्षेत्र से चुनाव प्रचार करने से तौबा कर रखी है, ऐसे में वह भगत को नुकसान कितना पहुंचाएंगे, यह भगत की जीत-हार पर निर्भर करेगा। कांग्रेस से ‘पैराशूट प्रत्याशी’ बताये जा रहे प्रकाश जोशी की ऊर्जा स्वयं को स्थानीय साबित करने में लगी हुई है जबकि समर्थक उन्हें राहुल गांधी का नजदीकी होने का दावा कर क्षेत्र में विकास की गंगा बहा देने का ख्वाब दिखाकर जनता को अपने पक्ष में करने के प्रति आस्त हैं। कांग्रेस के बागी निर्दलीय उम्मीदवार जिला पंचायत अध्यक्ष कमलेश शर्मा के पति महेश शर्मा भगत के ही गृह क्षेत्र सर्वाधिक 65000 की जनसंख्या वाले ‘भाखड़ा वार’ में अच्छा दखल रखते हैं। उन्होंने क्षेत्र में बीते एक-दो वर्षो से अच्छी मेहनत की है, ऐसे में वह कांग्रेस प्रत्याशी के साथ ही भगत को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसी भाखड़ा वार क्षेत्र निवासी जिपं सदस्य भूपेंद्र सिंह उर्फ भाई जी भी निर्दलीय उम्मीदवार हैं। उनकी भी खासकर युवा वर्ग में काफी पैठ बताई जा रही है। इस क्षेत्र में रक्षा मोर्चा के सुरेंद्र निगल्टिया, निर्दलीय कांग्रेस से जुड़े वीर सिंह भी मैदान में हैं। दूसरी ओर 45000 की आबादी वाले ‘भाखड़ा पार’ क्षेत्र जिसमें कालाढूंगी नगर भी शामिल है, बाहरी-भीतरी का मुद्दा अधिक दिखाई दे रहा है। यहां बसपा प्रत्याशी दीवान सिंह बिष्ट सबसे पहले पार्टी प्रत्याशी घोषित होने, अनुसूचित वर्ग के करीब 20 हजार तथा क्षत्रिय समुदाय के सर्वाधिक 51 हजार से अधिक वोट होने व स्वयं अकेले दमदार क्षत्रिय प्रत्याशी होने के आधार के साथ मजबूत दिखते हैं। क्षेत्र में साढ़े तीन हजार मुस्लिम, छह हजार पंजाबी, साढ़े चार हजार वैश्य के अलावा 15 हजार ब्राह्मण भी प्रभावी भूमिका में हैं। कांग्रेस, भाजपा, उक्रांद प्रत्याशी और निर्दलीय महेश शर्मा आदि के भी ब्राrाण होने के कारण वह किसी एक के पक्ष में मतदान करेंगे कहा नहीं जा सकता। निर्दलीय जनार्दन पंत, तृणमूल कांग्रेस के फिदाउर्हमान, सपा के उमेश शर्मा भी मैदान में हैं।
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मंगलवार, 10 जनवरी 2012

30 को शर्तिया होगी बर्फबारी: कोटलिया

ऊंची चोटियों सहित बागेश्वर की घाटियों तक होगी बर्फबारी
नवीन जोशी नैनीताल। मौसम वैज्ञानिक कुमाऊं विवि के भू-विज्ञान विभाग में यूजीसी के प्रोफेसर बीएस कोटलिया का दावा है कि उत्तराखंड में विस चुनाव की तिथि (30 जनवरी) को भारी बर्फबारी होगी। इस दिन न केवल ऊंची चोटियों वरन बागेश्वर जैसी घाटी के स्थान तक बर्फ गिर सकती है। कोटलिया 30 को चुनाव हो पाने के प्रति भी आशंकित हैं। इसके साथ ही उनका दावा है कि जनवरी के मुकाबले फरवरी में अधिक सर्दी व बर्फबारी होने वाली है। उनका दावा है कि इस वर्ष उत्तराखंड में ठंड का 50 वर्षो का रिकार्ड टूट चुका है और ठंड से अभी निजात नहीं मिलेगी। 
प्रदेश के साथ ही देश-विदेश में गुफाओं में पायी जाने वाली शिवलिंग के आकार की चट्टानों के जरिये हजारों वर्ष पूर्व के इतिहास पर अध्ययन करने वाले प्रो. कोटलिया ने ‘राष्ट्रीय सहारा’ से बातचीत में यह दावे किये। इससे पूर्व वह वर्ष 2007 के सर्वाधिक गर्म वर्ष होने, 2011 में 50 वर्ष की सर्दी के रिकार्ड टूटने जैसी मौसम संबंधी भविष्यवाणियां भी कर चुके हैं। प्रदेश में कई हजारों वर्ष पुरानी गुफाओं को खोजने का श्रेय भी उन्हें जाता है। इधर उन्होंने ताजा दावा उत्तराखंड में होने जा रहे विस चुनाव को लेकर किया है। उन्होंने आशंका जताई है कि तय तिथि पर चुनाव नहीं हो पाएंगे। उन्होंने दावा किया कि 30 जनवरी को प्रदेश के नैनीताल, मुक्तेश्वर, कपकोट, गोपेश्वर, जोशीमठ जैसे ऊंचाई वाले सभी क्षेत्रों में बर्फबारी होगी जबकि बागेश्वर जैसी घाटी तक भी बर्फबारी हो सकती है। उन्होंने बताया कि उनके पास मुक्तेश्वर के 130 वर्षो के मौसम संबंधी रिकार्ड उपलब्ध हैं जो इस वर्ष टूट चुके हैं। 
11 वर्ष में सौर चक्र से भी प्रभावित होता है मौसम  
प्रो. कोटलिया के अनुसार धरती पर प्रकाश के साथ ऊष्मा यानी गर्मी के सबसे बड़े श्रोत सूर्य की सक्रियता का चक्र 11 वर्ष का होता है और यह सक्रियता पृथ्वी पर सर्दी-गर्मी को बढ़ाने वाली भी साबित होती है। इस आधार पर भी वर्ष 2003-04 में पड़ी सर्दी की 11 वर्ष बाद 2011-12 की सर्दियों में पुनरावृत्ति होने की वैज्ञानिकों को आशंका है। कोटलिया के अनुसार उनके द्वारा किये गये हजारों वर्ष के मौसम के अध्ययन में 11 वर्षीय मौसमी चक्र की पुष्टि हुई है। 
ला-निना का भी है प्रभाव 
इस वर्ष हो रही भारी बर्फबारी व कड़ाके की ठंड प्रशांत महासागर से उठने वाली ला-निना नाम की सर्द हवाएं भी बताई जा रही हैं। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार प्रशांत से उठने वाली गर्म हवाएं-अल निनो व सर्द हवाएं-ला निना दुनिया भर के मौसम को प्रभावित करती हैं। दो से सात वर्षो में इसका प्रभाव बढ़ता है।
मूलतः यह समाचार इस लिंक को क्लिक कर राष्ट्रीय सहारा के 11 जनवरी 2012 के अंक के प्रथम पृष्ठ पर देखा जा सकता है 

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

नैनीताल में रोचक रहेगा कांग्रेस का ‘तीन देवियों’ पर दांव


नवीन जोशी, नैनीताल। कांग्रेस ने विधानसभा के लिए जनपद की छह में से तीन सीटों पर महिलाओं को टिकट दिया है। नैनीताल सीट पर पूर्व पालिकाध्यक्ष सरिता आर्या, हल्द्वानी सीट पर पूर्व काबीना मंत्री डा. इंदिरा हृदयेश तथा रामनगर से पूर्व विधायक व सांसद सतपाल महाराज की पत्नी अमृता रावत को मैदान में उतारा है। अब देखना यह है कि ये ‘तीन देवियां’ कांग्रेस की नैया किस तरह पार लगाती हैं।  
हालांकि कांग्रेस ने नैनीताल जनपद की छः में से आधी यानी तीन सीटों पर जिस तरह "आधी दुनियां" का प्रतिनिधित्व करने वाली महिलाओं  को टिकट दिया है, उससे उसका महिलाओं पर भरोसा जताना कम ही दिखाई देता हैजिले में केवल हल्द्वानी से डा. हृदयेश को टिकट मिलना तय था, वह पार्टी तथा कार्यकर्ताओं की स्वावाविक पसंद थीं। लेकिन मुख्यालय की नैनीताल सीट पर कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल आर्य की अनिच्छा तथा अपने पुत्र संजीव आर्य को टिकट न दिला पाने के कारण सरिता पूर्व पालिकाध्यक्ष होने के नाते टिकट पाने में सफल रहीं। टिकट वितरण में अहम भूमिका निभाने वाले केंद्रीय मंत्री हरीश रावत की पसंदगी और महिला मोर्चा प्रदेश अध्यक्ष सरोजनी केंतुरा द्वारा नाम प्रस्तावित किये जाने की वजह से उनको यह ईनाम मिला। अमृता रावत को रामनगर में भारी विरोध तथा पैराशूट प्रत्याशी का तमगा होने के बावजूद गढ़वाल सांसद सतपाल महाराज की पत्नी होने के नाते टिकट मिल गया है। ऐसे में यह दिलचस्प होगा कि जनपद में तीन देवियां कांग्रेस की नैया को कैसे पार लगाती हैं।
पालिका व जिला पंचायत के स्तर के हो गए विधान सभा चुनाव 
नैनीताल। नैनीताल में विधानसभा चुनाव नगर पालिका व जिला पंचायत चुनाव की याद दिला सकता है। यहां भाजपा एवं कांग्रेस प्रत्याशी के बीच जिला पंचायत चुनाव की पुरानी प्रतिद्वंद्विता देखने को मिलेगी। कांग्रेस, बसपा एवं सपा प्रत्याशी भी पालिका चुनावों के दिनों की याद दिलाएंगे। भाजपा प्रत्याशी हेम आर्या की पत्नी नीमा आर्या एवं कांग्रेस प्रत्याशी सरिता आर्या वर्ष 2008 के जिपं चुनावों में मेहरागांव सीट से आमने-सामने थे। इसमें नीमा विजयी रहीं। वहीं सरिता आर्या वर्ष 2003 में हुऐ नगर निकाय चुनाव जीतकर नैनीताल पालिका अध्यक्ष बनी, जबकि उनसे पूर्व बसपा प्रत्याशी संजय कुमार ‘संजू’ वर्ष 1998 से नैनीताल पालिका अध्यक्ष रहे। इसी दौरान सपा प्रत्याशी देवानंद सभासद रहे थे।


रविवार, 1 जनवरी 2012

क्या 'दशरथ' से मिला बनवास 21 वर्ष बाद तोड़ पायेगी कांग्रेस

1986 के बाद से एक अदद जीत को तरसता रहा है 'हांथ'
संभवतया यही कारण यशपाल को रोकता हो नैनीताल से चुनाव लड़ने से  पार्टी के बुजुर्ग कार्यकर्ता मानते हैं यशपाल ही तोड़ सकते हैं यह क्रम 
नवीन जोशी, नैनीताल। राजा दशरथ ने राम को  १२ वर्ष के बनवास पर भेजा था, लेकिन यहाँ नैनीताल में एक दशरथ ने कांग्रेस पार्टी को बनवास पर भेजा था, जिस से वह 21  वर्ष बाद भी वापस नहीं लौट पा रही है 1991 की राम लहर में रामलीला में 'दशरथ' का चरित्र निभाने वाले भाजपा के बंशीधर भगत ने कांग्रेस को जिस बनवास पर भेजा था, कांग्रेस के लिए उस से अभी भी वापस लौटना आसान नहीं लगता। शायद यही कारण हो कि अपनी परंपरागत सीट मुक्तेश्वर का काफी हिस्सा होने के बावजूद कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य यहाँ से चुनाव लड़ने के अधिक इच्छुक नहीं दिख रहे, जबकि पार्टी के बुजुर्ग कार्यकर्ताओं का मानना है कि कांग्रेस की बनवास से वापसी इस बार कोई करा सकता है तो वह केवल यशपाल ही हो सकते हैं।
नैनीताल कुमाऊं मंडल की उन गिनी-चुनी सीटों में होगी, जिन्हें कांग्रेस पार्टी की परंपरागत सीट कहने से हर किसी को गुरेज होगा। अतीत से बात शुरू करें तो यूपी के दौर में लंबी-चौड़ी इस सीट पर वर्ष 1977 में राम दत्त जोशी जनता दल के टिकट पर विधायक रहे। अगले 82 के चुनावों में शिव नारायण नेगी ने यह सीट कांग्रेस की झोली में डालकर नफा-नुकसान बराबर करने की कोशिश की। 86 में साफ-स्वच्छ छवि के किशन सिंह तड़ागी ने कांग्रेस के लिये सीट बरकरार रखी, परंतु 91 की रामलर में भाजपा के ‘दशरथ’ बंशीधर गत ने कांग्रेस के शेर सिं नौलिया को पटखनी दी, और आगे अगले तीन चुनावों में वह यहाँ से जीत की हैट्रिक बनाते रहे। राज्य बनने के बाद वह इस सीट को छोड़कर हल्द्वानी चले गये, परिणामस्वरूप अपनी साफ-स्वच्छ छवि के बल पर डा. नारायण सिंह जंतवाल उक्रांद के टिकट पर भाजपा से यह सीट झटकने में सफल रहे, और कोंग्रेस का बनवास जारी रहा। गत 2007 के विस चुनावों में खड़क सिंह बोहरा ने पुनः यह सीट हांसिल कर भाजपा का एक बार पुनः नैनीताल से परचम फरा दिया। इसके साथ ही नैनीताल के लिये हांलिया वर्षों में यह माना जाने लगा है कि बुद्धिजीवियों के शहर के जाने वाले नैनीताल से चुनाव लड़ने के लिये पार्टी तथा प्रत्याशी दोनों की साफ-स्वच्छ छवि अधिक मायने रखती है। इस बात को भाजपा-कांग्रेस, उक्रांद सहित सभी पार्टियों के नेता भी स्वीकार करते हैं।  लेकिन जहाँ तक कांग्रेस के लिये 21 वर्ष के बनवास को तोड़ने का सवाल है, नगर के वरिष्ठतम कांग्रेसी किसन लाल साह ‘कोनी’, मोहन कांडपाल सहित अधिकांश कांग्रेसियों का भी मानना है कि यह मिथक तोड़ने में कांग्रेस केवल एक ही शर्त पर सफल हो सकती है, यदि यशपाल यहाँ से चुनाव लड़ें। अब पार्टी प्रदेश अध्यक्ष यशपाल पर है कि वह स्वयं फ्रंट पर आकर बल्लेबाजी कर अपनी टीम को लीड करते हैं या नहीं।

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

ठण्ड में ग्लोबल वार्मिग: हिमालय पर पड़ा बर्फ का टोटा

20 दिसंबर 2011 को नैनीताल से लिया गया हिमालय का चित्र 
बढ़ती ठंड के बीच नगाधिराज बता रहा मौसम की हकीकत 
मीथेन की मात्रा अधिक होने से बर्फबारी प्रभावित
नवीन जोशी, नैनीताल। साल के अंतिम दिन हैं। समस्त उत्तर भारत कड़ाके की शीत लहर की चपेट में है, लेकिन देश की लाइफलाइन हिमालय में बर्फ का टोटा है। इन सर्दियों में हिमालय की चोटियों पर अभी तक भारी बर्फबारी नहीं हुई है। इन दिनों धवल बर्फ से लकदक रहने वाला हिमालय इस बार स्याह नजर आ रहा है। हिमालय की ऊंची चोटियों पर ही बर्फ नजर आ रही है, जबकि निचले हिस्से की रौनक बेहद फीकी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह ग्लोबल वार्मिग का नतीजा है। हवा में मीथेन गैस की मात्रा अधिक होने से पहाड़ों में बर्फबारी नहीं हो रही है। देश-प्रदेश सहित समूचे दक्षिणी गोलार्ध से आ रही कंपकंपाती ठंड की खबरों के बीच यह खबर हैरान करने वाली है। भारत ही नहीं एशिया के मौसम की असली तस्वीर बयां करने वाला नगाधिराज हिमालय मानो छटपटा रहा है। नैनीताल के निकट हिमालय दर्शन से हिमालय का नजारा ले रहे सैलानियों के साथ ही पुराने गाइड भी हिमालय को देखकर आहत हैं। 
इसी वर्ष 24 फरवरी को नैनीताल से ही लिया गया हिमालय का चित्र 
एरीज के मौसम वैज्ञानिक पीतांबर पंत के अनुसार ग्लोबल वार्मिग पहाड़ों और मैदानों के मौसम को सर्दियों व गर्मियों में दो तरह से प्रभावित कर रहा है। ग्लोबल वार्मिग व प्रदूषण के कारण धरती के वायुमंडल में मौजूद पोल्यूटेंट्स यानी प्रदूषण के कारक धूल, धुआं, ग्रीन हाउस गैसों के सूक्ष्म प्रदूषित कण (एरोसोल) तथा नाइट्रोजन डाईऑक्साइड, कार्बन डाईऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड, जल वाष्प तथा ब्लेक कार्बन के कण धरती के ऊपर ढक्कन जैसा (कैपिंग इफेक्ट) प्रभाव उत्पन्न कर देते हैं। गर्मियों के दिनों में दिन के अधिक घंटे धूप पड़ने के कारण वायुमंडल में मौजूद गर्मी धरती से परावर्तित होकर इस ढक्कन से बाहर नहीं जा पाती, जिस कारण धरती की गर्मी बढ़ जाती है जबकि इसके उलट सर्दियों में यही ढक्कन सूर्य की रोशनी को धरती पर नहीं आने देता। परिणामस्वरूप मैदानों में कोहरा छा जाता है और पहाड़ आम तौर पर धूप से गुलजार रहते हैं। इसका ही परिणाम है कि पहाड़ों पर लगातार सर्दियों के दिनों में बर्फबारी में कमी देखने को मिल रही है। दूसरी ओर एरीज द्वारा ही किए गए एक अध्ययन में पहाड़ों पर मीथेन की मात्रा 2.5 पीपीएम (पार्ट पर मालीक्यूल) तक पाई गई है जबकि वायुमंडल में मीथेन की मात्रा का वि औसत 1.8 से 1.9 पीपीएम है। मौसम वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मीथेन की यह बढ़ी हुई मात्रा पहाड़ों पर गर्मी बढ़ाने का बड़ा कारण हो सकती है। इधर नैनीताल से हिमालय दर्शन से नेपाल की नेम्फा से लेकर प्रदेश के गढ़वाल के केदारनाथ तक की करीब 365 किमी. लंबी हिमालय की पर्वत श्रृंखला का अटूट नजारा बेहद खूबसूरती से नजर आता है लेकिन हिमालय दर्शन से सैलानियों को दूरबीन की मदद से दशकों से हिमालय नजदीक से दिखा रहे लोग हतप्रभ हैं कि बीते वर्षो में हिमालय की छटा लगातार फीकी पड़ रही है। केवल चोटियों पर ही बर्फ नजर आती है और शेष हिस्सा काला पड़ा नजर आता है।
आंकड़े न होने से परेशानी
नैनीताल। यूं तो हिमालय स्थित ग्लेशियरों के पिघलने के दावे भी पूर्व से ही किये जा रहे हैं परंतु सच्चाई है कि यह बातें आंकड़ों के बिना हो रही हैं। प्रदेश के मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक डा. आनंद शर्मा भी यह स्वीकारते हैं। उनके अनुसार वैज्ञानिक इस दिशा में गहन शोध और कम से कम आंकड़े एकत्र कर डाटा बेस तैयार करने की मौसम वैज्ञानिक आवश्यकता जताते रहे हैं। इधर कुमाऊं विवि द्वारा देश-प्रदेश का पहला सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज वचरुअल मोड में इसी वर्ष स्थापना कर चुका है जिससे आगे डाटा बेस तैयार करने की उम्मीद की जा रही है।
इस समाचार को मूलतः राष्ट्रीय सहारा के 21 दिसंबर 2011 के अंक में प्रथम पेज पर अथवा इस लिंक को क्लिक मूलतःदेख सकते हैं। 

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

दुनिया की नजरें फिर महा प्रयोग पर


"Big Bang Theory" के इस महा प्रयोग में शामिल वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्हें हैग्ग्स पार्टिकल्स दिखे हैं, पर इस खबर की अभी भी पुष्टि होनी बाकी है...हैग्ग्स पार्टिकल्स को श्रृष्टि में जीवन के जनक या ईश्वर के कण तक कहा जा रहा है...वैसे इनका नाम हैग्ग्स-बोसोन कण है, जिसमें बोसोन भारतीय वैज्ञानिक एससी बोस के नाम पर है....यदि यह कण न दिखे तो विज्ञान की कई अवधारणाओं की सत्यता खतरे में पड़ जायेगी..... 

रविवार, 11 दिसंबर 2011

नैनीताल जनपद के विधानसभा क्षेत्रों की भौगौलिक स्थिति


Nainital district constituency map for 2012 Uttarakhand election

आगामी विधान सभा चुनाव अब बेहद निकट आ चुके हैं, लेकिन अभी भी खासकर सीमावर्ती क्षेत्रों के मतदाताओं में असमंजस बरकरार है कि वह किस विधान सभा क्षेत्र के लिये अपने मताधिकार का प्रयोग कर लोकतंत्र की मजबूती में योगदान देंगे। चुनाव आयोग की वेबसाइट में भी वर्ष 2006 में हुऐ परिसीमन के बाद के विस क्षेत्रों की भौगोलिक जानकारी उपलब्धनहीं है। 
जिला प्रशासन से मिली जानकारी के अनुसार केवल 61-रामनगर विधान सभा क्षेत्र है, जो ग़ढवाल लोक सभा क्षेत्र का हिस्सा है, और इसमें केवल और पूरी रामनगर तहसील शामिल है। जबकि 56-लालकुआं विधान सभा में लालकुआं तहसील के साथ हल्द्वानी तहसील के काठगोदाम कानूनगो सर्किल व लालकुआं के अर्जुनपुर पटवारी सर्किल शामिल हैं। 57-भीमताल विधान सभा में धारी तहसील तथा नैनीताल तहसील का रामगढ़ कानूनगो सर्किल, भीमताल के चांफी, पांडेगांव, पूर्व छःखाता, रौंसिल व पिनरौ पटवारी सर्किल व भीमताल नगर पालिका, 58- नैनीताल विधान सभा में बेतालघाट व कोश्यां कुटौली तहसील, नैनीताल व भवाली नगर पालिका तथा नैनीताल कैंट क्षेत्र के साथ भीमताल तहसील के भवाली, पश्चिम छः खाता, खुर्पाताल, मंगोली, बगढ़, स्यात, तल्लाकोट, सौढ व अमगढ़ी पटवारी सर्किल तथा वन क्षेत्र शामिल हैं। इसी तरह 59-हल्द्वानी विधान सभा सीट में हल्द्वानी तहसील का तत्कालीन हल्द्वानी-काठगोदाम पालिका एवं बाहरी विकसित क्षेत्र (वर्तमान हल्द्वानी नगर निगम) के वार्ड एक से 25, दमुवाढूँगा बंदोबस्ती, वार्ड 27, कोर्ता-चांदमारी मोहल्ला वार्ड 28, मल्ली बमोरी वार्ड 29, बमोरी तल्ली, शक्ति विहार, भट्ट कालोनी वार्ड 3 और बमोरी तल्ली खान का वार्ड 3 शामिल हैं। जबकि ६०-कालाढूँगी में कालाढूँगी तहसील के साथ नैनीताल तहसील की चोपड़ा पटवारी सर्किल, हल्द्वानी की हल्द्वानी खास, लामाचौड़, फतेहपुर, भगवानपुर, कमलुवागांजा, लोहरियासाल, देवलचौड़  व कुसुमखेड़ा पटवारी सर्किलें, लालकुआ की चांदनी चौक व आनंदपुर पटवारी सर्किलें तथा हल्द्वानी नगर निगम के मुखानी (रूपनगर, बसंत विहार कालोनी व जज फार्म) वार्ड 3, मानपुर उत्तर वार्ड 3, हरीपुर सखा, सुशीला तिवारी अस्पताल, वार्ड 34, तल्ली हल्द्वानी वार्ड 35, गौजाजाली उत्तर वार्ड 36, कुसुम खेड़ा वार्ड 37 व बिठौरिया नंबर 1 वार्ड 38 शामिल हैं। 

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

रिपोर्ट कार्ड नैनीताल विधानसभा क्षेत्र खड़क सिंह बोहरा: वायदों पर अमल क्यों नहीं हुआ बोहरा साहब!


नवीन जोशी, नैनीताल। खड़क सिंह बोहरा 55- नैनीताल विधानसभा सीट से भाजपा विधायक है। नये परिसीमन के बाद इस सीट का नाम 58- नैनीताल हो गया है। साथ ही सीट का भौगोलिक स्वरूप बदल गया है। नई 58- नैनीताल विधानसभा सीट में 145 बूथ शामिल है। इनमें बेतालघाट तहसील के 24 बूथ, कोश्यां कुटौली के 34 तथा नैनीताल के 87 बूथ शामिल है। पिछली 55-नैनीताल विस सीट में नैनीताल तहसील के 94 तथा कालाढूंगी के 17 कुल 111 बूथ थे। नैनीताल सीट सामान्य की जगह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इस कारण श्री बोहरा के लिए इस सीट से चुनाव लड़ने के दरवाजे बंद हो गए है। नये परिसीमन की स्थिति साफ होने पर उन्होंने नैनीताल विधानसभा सीट का हिस्सा रहे कालाढूंगी से संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी है। इस कारण वह नैनीताल क्षेत्र की उपेक्षा करते रहे। ऐसा न केवल उन पर विपक्ष का आरोप है वरन वह स्वयं भी इसे स्वीकार करने से गुरेज नहीं करते। 
गत दिनों एक पोस्टर में वह स्वयं को चुनाव पूर्व ही नैनीताल के बजाय पहली बार अस्तित्व में आ रही कालाढूंगी सीट से विधायक दर्शा चुके है। बोहरा मूलत: कांग्रेसी है। वर्ष 2007 के चुनाव में उन्हें पहली बार भाजपा से टिकट मिला और वह विधानसभा पहुंचने में सफल रहे। तब उन्होंने जनता से खासकर माल रोड पर ग्रांड होटल के पास सेनैनी झील में सीवर की गंदगी न जाने देने, बलिया नाले को नगर का आधार बताकर उसका ट्रीटमेंट करने के वायदे किये थे लेकिन वह पांच साल में इन कामों की शुरुआत भी नहीं करा पाए। वायदों पर क्यों अमल नहीं हुआ? इस सवाल पर बोहरा बेबाक टिप्पणी करते है-उनका कहना है कि नैनीताल के सुरक्षित सीट घोषित हो जाने से उनको दुख हुआ। अपनी ओर से कोशिश की। नैनी झील में सीवर को जाने से रोकने के लिए कुछ कर नहीं सके पर कालाढूंगी व भवाली के साथ नगर के कृष्णापुर-हरिनगर क्षेत्र को सीवर लाइन से जोड़ने की पहल की। बलियानाले में आईआईटी रुड़की की टीम से सव्रेक्षण शुरू करा रहे है। बोहरा दावा करते है-उन्होंने हर गांव तक सड़क व भवाली में विधि विवि स्वीकृत कराया है। वह मानते है कि वन भूमि हस्तांतरण में अड़चन से कई सड़कों का निर्माण शुरू नहीं हो सका है। भीमताल में कुमाऊं विवि के तीसरे परिसर की सीएम से घोषणा कराई है। भाबर (कालाढूंगी) क्षेत्र में पेयजल व सिंचाई की समस्या का समाधान कराया है। उनका दावा है कि विधायक निधि की 100 फीसद धनराशि उन्होंने खर्च कर डाली है। विधायक बनने से पूर्व श्री बोहरा परिचितों से कड़क आवाज के साथ गर्मजोशी से मिला करते थे लेकिन विधायक बनने के बाद वह काफी समय अस्वस्थ रहे और जनता तो दूर परिचितों और पार्टी कार्यकर्ताओं से भी दूर रहे। स्वास्थ्य लाभ के उपरांत भी वह इस दूरी को पाट नहीं पाये। प्रदेश के सभी 70 विधायकों में बोहरा उन विधायकों में है जिन्होंने अपने कार्यकाल के पांचों वष्रो में अपनी विधायक निधि का शत- प्रतिशत हिस्सा खर्च किया है। यह भी सच है कि नैनीताल क्षेत्र में शिलापट उनकी निधि से विकास कार्य होने की गवाही नहीं देते। विरोधियों का आरोप है कि उनका ध्यान अपनी नई सीट कालाढूंगी की ओर अधिक रहा। विधायक बोहरा गत दिनों कालाढूंगी कांड के दोषियों की बात सीएम खंडूड़ी द्वारा न सुने जाने को लेकर तीखे तेवर भी दिखा चुके है। पार्टी के भीतर उनके विरोधियों के अनुसार बोहरा मूलत: कांग्रेसी है और उनके कांग्रेसी तेवर गाहे-बगाहे सामने आ जाते है। उन पर अपने नजदीकियों को विकास कार्यो के ठेके देने का आरोप भी लगते रहे है। प्रदेश की राजनीतिक उठापटक के बावजूद वह किसी गुट विशेष से नहीं जुड़े। एक पूर्व सीएम से उनकी नजदीकी बताई जाती है। इसके बाद भी उनको तटस्थ नेता कहा जाता है वह सभी से दोस्ताना ताल्लुकात रखते है। बोहरा की प्रस्तावित विधानसभा सीट कालाढूंगी में परिसीमन के बाद उनका अधिक समय इसी क्षेत्र में रहा है। पिछले चुनावों में उन्हें इस क्षेत्र से अच्छा जन समर्थन मिला था। वह स्वयं को इस क्षेत्र का निवासी होने का दावा भी करते है। बावजूद कालाढूंगी सीट का बड़ा हिस्सा हल्द्वानी के ग्रामीण क्षेत्रों से होने के कारण बोहरा के लिए यह सीट आसान नहीं कही जा सकती है।

चार दर्जन सवाल उठ पाये पांच साल में
नैनीताल के विधायक खड़क सिंह बोहरा पिछले पांच साल के दौरान विधानसभा में मौजूद तो रहे लेकिन उनके द्वारा क्षेत्र के विभिन्न मुद्दों से संबंधित कुल चार दर्जन सवाल ही उठाये जा सके। इस तरह विधानसभा में उनका प्रदर्शन औसत रहा। हालांकि सदन में उनसे अपेक्षा की जाती थी कि धारदार तरीके से क्षेत्र के मुद्दों को उठायेंगे लेकिन सत्तारूढ़ दल से जुड़े होने के कारण वे अपने मुद्दों को धार नहीं दे पाये।
बोहरा नहीं करा पाये धन का सदुपयोग : जंतवाल
नैनीताल सीट पर पिछले चुनाव में बोहरा के निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे उक्रांद के डा. नारायण सिंह जंतवाल का कहना है कि अफसरशाही पर उचित निगरानी न होने के कारण विधायक बोहरा विकास तथा दैवीय आपदा के कार्यो में मिले धन का सदुपयोग नहीं करा पाये। परिणामस्वरूप विस सीट में पूर्व के बड़े स्वीकृत कार्य भी नहीं हो पाये। पिछली सरकार के दौर में स्वीकृत नगर के रूसी गांव से बने और तल्लीताल में भवाली- हल्द्वानी रोड के बाईपास चालू नहीं हो पाये। नगर के सबसे पुराने सीआरएसटी स्कूल को पूर्व सरकार के दौर में मिले 90 लाख रुपये वापस चले गये। नगर में कोई नया बड़ा कार्य स्वीकृत नहीं हुआ।
विधायक बनने के बाद दुआ-सलाम भी नहीं
नगर के तल्लीताल चिड़ियाघर रोड निवासी रमेश तिवाड़ी के अनुसार विधायक बनने के बाद विधायक ने दुआ-सलाम भी कम कर दी, वहीं नगर के एक बुजुर्ग नागरिक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, विधायक ने उनके द्वारा बताया गया एक जनहित का कार्य तो बिना कोई प्रश्न किये तत्काल किया, लेकिन कुल मिलाकर उनका कार्यकाल निराशाजनक रहा। इतिहास में उनके कार्यकाल को किस कार्य के लिए याद किया जाएगा, ऐसा कोई कार्य याद नहीं आता।