मंगलवार, 22 नवंबर 2011

पोलियोग्रस्त बालक बना ’स्पाइडरमैन‘

कमजोरी को ही ताकत बनाना चाहता है मनीश 
नवीन जोशी, नैनीताल। मशहूर कवि दुश्यंत कुमार ने कहा, ‘कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो’ तथा किसी अनाम कवि ने कहा है ‘परिंदों की उड़ान हौसलों में होती है परों में नहीं’। न जाने कितने लोगों ने इन जोशीले सूत्रों को सुना होगा लेकिन सुनने के साथ ही गुनने की बात की जाए तो निश्चित ही ऐसे नाम खोजने पड़ेंगे लेकिन अल्मोड़ा नगर के मनीश ने न केवल इन सूत्रों को सुना व गुना है वरन अपने जीवन में अपनाया भी है। जन्म के एक वर्ष बाद ही लाइलाज कहे जाने वाले पोलियो से ग्रस्त इस बालक का हौंसला देखिये, आज वह अपने पैरों पर ठीक से खड़ा नहीं हो पाता लेकिन 40 फिट ऊंची खड़ी दीवार पर चढ़कर अपने साथियों के बीच ‘स्पाइडरमैन’ के नाम से जाना जाता है। 
जीआईसी अल्मोड़ा में 12वीं के छात्र 19 वर्षीय मनीश को बारापत्थर में 40 फीट ऊंची दीवार पर जिस कुशलता के साथ चढ़ते देखा, तो उसके हौसले को देख वहां मौजूद नगर पालिकाध्यक्ष मुकेश जोशी, विशेष कार्य अधिकारी-साहसिक पर्यटन जेसी बेरी व नैनीताल पर्वतारोहण क्लब के सचिव राजेश साह सहित प्रशिक्षक भी तालियां बजाए बिना न रह सके। किसी को विश्वास नहीं हुआ कि वह एक वर्ष की उम्र से ही पोलियो ग्रस्त हो चुका था और एक समय था जब वह सीधा बैठ भी नहीं पाता था। मनीश ने रहस्योद्घाटन किया कि वह वर्ष 2008 से साहसिक खेलों और खासकर पर्वतारोहण से जुड़ा है और अपने प्रशिक्षकों को कभी नहीं बताता कि उसे पोलियो है। इसलिये कि कहीं उसे प्रशिक्षण देने से या कैंप में आने से ही न रोक दें। पैर कमजोर हैं तो पैरों की अधिक शक्ति की जरूरत वाले क्षेत्र में ही क्यों कदम बढ़ाए, वह जवाब देता है, एक मिसाल कायम करना चाहता हूं। ऊंची पहाड़ियों, दीवारों पर इसलिये और इस तरह चढ़ता हूं कि दर्द चेहरे पर न उभरने पाये। ऐसा इसलिये कर रहा हूं कि जब पर्वतारोहण में एक मुकाम हासिल कर लूं तो अपने जैसे अन्य विकलांगों को प्रेरणा दे सकूं कि हौसले मजबूत हों तो कैसी भी विकलांगता कोई मायने नहीं रखती। मनीश की घरेलू परेशानियों की कहानी भी ऐसी है कि छोटे-मोटे कायरे के लिए हिम्मत से कदम न उठें। आबकारी विभाग में कार्यरत पिता देवी दत्त जोशी का 10 वर्ष पूर्व निधन हो गया। मां चंपा जोशी किसी तरह पति की जगह सेवा में लगकर चार बच्चों का भरण-पोषण कर रही हैं, जिनमें मनीश तीसरे नंबर का है। मनीश कहता है, साहसिक खेलों में उसकी गहरी रुचि है और वह तय कर चुका है कि इसी क्षेत्र में भविष्य बनाना है। वह अच्छा गायक होने के साथ ही डांस का भी शौक रखता है।

रविवार, 20 नवंबर 2011

नैनीताल जू से "उच्च स्थलीय" नाम छिनने का खतरा !

हिम तेंदुआ"रानी" के बाद  देश के एकमात्र साइबेरियन टाइगर "कुणाल " की मौत के बाद यहाँ नहीं रहा कोई "उच्च स्थलीय" क्षेत्रों का आकर्षण 
नैनीताल जू से "उच्च स्थलीय" नाम छिनने का खतरा !

ऑल इंडिया पुलिस ने जीता फेडरेशन कप


हरियाणा दूसरे व उत्तराखंड तीसरे स्थान पर रहा, चौथी एनसी शर्मा स्मृति फेडरेशन कप महिला बॉक्सिंग प्रतियोगिता समाप्त
नैनीताल (एसएनबी)। चौथी एनसी शर्मा स्मृति फेडरेशन कप महिला बाक्सिंग प्रतियोगिता की ट्राफी ऑल इंडिया पुलिस ने हासिल कर ली। उत्तराखंड के लिये संतोष की बात यह रही कि उसने भी प्रतियोगिता की चैंपियन ऑल इंडिया पुलिस व रनरअप रही हरियाणा के बराबर ही 17 अंक अर्जित किये और प्रतियोगिता में पहली बार तीसरे स्थान पर पहुंची। प्रतियोगिता के फाइनल मुकाबले में आज सुमन ही लाइट वेटर वेट वर्ग में स्वर्णिम मुक्का जड़ पाई। फाइनल में पहुंची अन्य खिलाड़ियों विनीता महर, मोनिका सौन, प्रियंका चौधरी व पूनम विश्नोई को रजत से ही संतोष करना पड़ा। काबीना मंत्री प्रकाश पंत ने पुरस्कार वितरित किये व राज्य सरकार द्वारा खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए किये जा रहे उपायों की जानकारी दी। इससे पूर्व रविवार को हुए फाइनल मुकाबलों में एपी की सोनिया ने उत्तराखंड की विनीता मेहर को, उत्तराखंड की सुमन ने एआईपी की बसंती चानू को 26-6 से, हरियाणा की सुनीता रानी ने उत्तराखंड की प्रियंका को 8- 6, आंध्र की एन उषा ने एआईपी की अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी प्रीति बेनीवाल को 13-13 के स्कोर पर सूक्ष्म अंकों के आधार पर, एआईपी की सुमन ने उत्तराखंड की मोनिका सौन को 7-6, हरियाणा की स्वीटी बूरा ने दिल्ली की सीमा को 11-6, दिल्ली की जागृति ने आसाम की अलारी बोरो को 18-10, एमपी की माया पौडिल ने हरियाणा की निर्मला को 24-15 तथा एआईपी की कविता चहल ने उत्तराखंड की पूनम विश्नोई को आरएससी के जरिये 26-0 से हराया। मणीपुर की ममता को आयोजक सचिव चारु शर्मा की ओर से सर्वश्रेष्ठ विजेता का 10 हजार व दिल्ली की गीता सोलंकी को 7.5 हजार का सर्वश्रेष्ठ लूजर का पुरस्कार मिला। दिल्ली की रेफरी रेखा स्वामी व राजस्थान की जज रजनी सोमलाल को सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के पुरस्कार मिले। एआईपी दो स्वर्ण व चार रजत के साथ प्रथम तथा हरियाणा दो स्वर्ण व तीन रजत के साथ दूसरे व उत्तराखंड एक स्वर्ण, चार रजत व दो कांस्य पदक जीतकर तीसरे स्थान पर रहा। आयोजक महासचिव मुखर्जी निर्वाण सहित कई लोगों को सर्वश्रेष्ठ योगदान के लिये पुरस्कृत किया गया।

उत्तराखंड की प्रियंका, पूनम व सुमन का राष्ट्रीय शिविर के लिए चयन
नैनीताल (एसएनबी)। फेडरेशन कप में भले उत्तराखंड की एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी प्रियंका चौधरी तथा पूर्व से राष्ट्रीय शिविर में शामिल पूनम विश्नोई स्वर्ण से चूक गई हों, लेकिन उनका शिविर में स्थान बरकरार है। साथ ही प्रतियोगिता में उत्तराखंड के लिए एकमात्र स्वर्ण पदक हासिल करने वाली सुमन का भी राष्ट्रीय शिविर में चयन हो गया है। राष्ट्रीय शिविर के लिए प्रतियोगिता में मौजूद एक ऑब्जर्वर ने नाम न छापने की शर्त पर यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि औपचारिक घोषणा राष्ट्रीय एसोसिएशन ही करती है।
     

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

अल्मोड़ा में आयोजित होगी राज्य की छठी विज्ञान कांग्रेस

तीन वैज्ञानिकों का सम्मान तथा 436 प्रतिभागी पेश करेंगे शोध पत्र व पोस्टर
नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश की छठी उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं तकनीकी कांग्रेस 2011 का आयोजन 14 से 16 नवंबर तक एसएसजे कैंपस अल्मोड़ा में किया जा रहा है। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य राज्य के वैज्ञानिकों को एक मंच प्रदान करना है। इसमें शोधार्थियों को अपने शोध को वैज्ञानिक समुदाय व विशेषज्ञों के समक्ष रखने का अवसर मिलेगा। वर्ष 2007 के बाद यह दूसरा मौका होगा जब कुमाऊं विवि इस आयोजन का दायित्व निभाएगा। इस दौरान नौ तकनीकी सत्रों में 16 विषयों पर 50 विषय विशेषज्ञ तथा 436 प्रतिभागी मौखिक एवं पोस्टरों के माध्यम से शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे। इन्हीं में से चार श्रेणियों में प्रतिभागियों को वैज्ञानिक पुरस्कार दिए जाएंगे। साथ ही प्रदेश तथा खासकर अल्मोड़ा से संबंधित तीन वैज्ञानिकों डा. आरसी बुधानी, डा.एमसी जोशी व डा. जीएस रौतेला को सम्मानित किया जाएगा। 
शुक्रवार को कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. वीपीएस अरोड़ा, कुलसचिव डा. कमल के. पांडे तथा आयोजक सचिव प्रो. एचएस धामी ने पत्रकार वार्ता में ‘मीटिगेशन आफ नेशनल क्लाइमिटीज विद स्पेशल रिफ्रें स टू उत्तराखंड’ विषयक विज्ञान कांग्रेस के तहत आयोजित कार्यक्रमों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यूकोस्ट के तत्वावधान तथा डीएसटी, गोविंद बल्लभ पंत पर्यावरण एवं विकास संस्थान कोसी कटारमल, उत्तराखंड सेवा निधि पर्यावरण शिक्षण संस्थान, विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान केंद्र अल्मोड़ा व राष्ट्रीय विज्ञान संस्थान-नासी के सहयोग से भारतीय विज्ञान कांग्रेस की तर्ज पर आयोजित हो रहे इस आयोजन का शुभारंभ 14 को मुख्यमंत्री करेंगे। इस मौके पर बनारस हिंदू विवि के कुलपति प्रो.लाल जी सिंह नासी व्याख्यान देंगे। 15 को अल्मोड़ा के एसएसजे परिसर सहित 13 स्थानों पर तकनीकी सत्र होंगे। 16 नवम्बर को समापन पर विधानसभा अध्यक्ष हरबंस कपूर उपस्थित रहेंगे। मौखिक श्रेणी में 285 व पोस्टर श्रेणी में 151 पेपर प्रस्तुत किए जाएंगे। इस मौके पर वानिकी, गणित, विज्ञान एवं समाज तथा उत्तराखंड में गणित का विकास जैसे विषयों पर बुद्धिशीलता सत्र आयोजित किए जाएंगे। आयोजन में डा. एलएमएस पालनी, पद्मश्री डा. ललित पांडे, डा.जेसी भट्ट, डा. राम सागर, डा. अनंत पंत, न्यूयार्क विवि के प्रो. आरएस कुलकर्णी व प्रो. सीएस अरविंदा आदि वैज्ञानिक प्रतिभाग करेंगे। 
उधर देहरादून में यूकास्ट के महानिदेशक डा. राजेन्द्र डोभाल ने भी आयोजन की जाकारी दी। 

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

अब बाजार में मिलेगी लैब में बनी ’देसी वियाग्रा‘

यारसा गंबू

सेना के जैव ऊर्जा सं स्थान की उपलब्धि, दिल्ली की कंपनी को विपणन की जिम्मेदारी, उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उगने वाली वनस्पति अब प्रयोगशाला में उगेगी
नवीन जोशी, नैनीताल। देसी वियाग्रा कही जाने वाली शक्तिवर्धक औषधि ‘कीड़ा जड़ी’ यानी यारसा गंबू को तलाशने के लिए उच्च हिमालयी क्षेत्रों की खाक नहीं छाननी पड़ेगी। हल्द्वानी स्थित डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ बायो एनर्जी रिसर्च (डीआईबीईआर) यानी जैव ऊर्जा संस्थान ने इस औषधि को प्रयोगशाला में तैयार करने का कारनामा कर डाला है। एक-दो माह में दिल्ली की एक कंपनी इसे खुले बाजार में उपलब्ध कराने जा रही है। इससे जहां आमजन और खासकर खिलाड़ी इस औषधि को आसानी से प्राप्त कर पाएंगे वहीं आगे राज्य की आर्थिकी में बड़ा योगदान दे सकने वाले इस खजाने के बाबत शंकाएं भी शुरू हो सकती हैं। 
गौरतलब है कि यारसा गंबू (वानस्पतिक नाम- कार्डिसेप्स साइनेसिस) एक विशेष प्रकार का आधा जंतु एवं आधी वनस्पति है। यह हैपिलस फैब्रिकस नाम के खास कीड़े की इल्लियों (कैटरपिलर्स) को मारकर उस पर पनपता है। बताया जाता है कि प्रदेश के पिथौरागढ़, बागेर, चमोली और उत्तरकाशी जनपदों में स्थित बर्फ से आधे वर्ष ढकी रहने वाली उच्च हिमालयी चोटियों पर यह आधे वर्ष जमीन के नीचे कीड़े के रूप में तथा बर्फ पिघलने पर बुग्यालों में फंगस जैसी वनस्पति के रूप में बमुश्किल ढूंढा जाता है। राज्य में प्रतिबंधित न होने के बावजूद बेहद महंगा (देश में कीमत आठ से 10 लाख रुपये प्रति किग्रातथा चीन, ताइवान व कोरिया आदि के बाजारों में 16 से 20 लाख  रुपये प्रति किग्रा) होने के कारण इसके दोहन में अनेक लोग प्रतिवर्ष आपसी तथा व्यापारिक संघर्ष तथा मौसम की विपरीत परिस्थितियों के कारण जान से हाथ धो बैठते हैं। कई लोग वन अधिनियम के तहत कानूनी कार्रवाई की जद में आ जाते हैं। राज्य में वर्तमान में 150 कुंतल यारसा गंबू का व्यापार बताया जाता है। इस लिहाज से इस पर राज्य की करीब छह से आठ सौ करोड़ रुपये तक की आर्थिकी निर्भर है। चीन में हुए बीते ओलंपिक खेलों के दौरान कई खिलाड़ियों के इस औषधि को शक्तिवर्धक स्टेरायड के रूप में प्रयोग करना प्रकाश में आया। इसकी खासियत यह है कि यह किसी प्रकार के डोप टेस्ट में भी पकड़ में नहीं आता और प्रतिबंधित भी नहीं है। चीन से लगे देशों में यौन उत्तेजक व शक्तिवर्धक दवाओं के रूप में इसका प्रयोग पूर्व से ही होता रहा है। डीआईबीईआर के निदेशक डा. जकवान अहमद ने बताया कि उनके संस्थान ने प्रयोगशाला में ‘लैब कल्चर’ तकनीक से यारसा गंबू के उत्पादन का तरीका खोज निकाला है तथा इस तकनीक को संस्थान के नाम पेटेंट भी कर डाला है। उन्होंने बताया कि यारसा गंबू में शक्तिवर्धक व यौन उत्तेजना बढ़ाने में काडिसेपिन तत्व सर्वप्रमुख भूमिका निभाता है। प्राकृतिक यारसा गंबू में जहां काडिसेपिन तत्व 2.42 पीपीएम (पार्ट पर मालिक्यूल) होता है वहीं प्रयोगशाला में बने यारसा गंबू में यह तत्व 2.02 पीपीएम है। यानी दोनों की गुणवत्ता में अधिक अंतर नहीं है। उन्होंने यह तकनीक दिल्ली की एक कंपनी को हस्तांतरित कर दी है। उम्मीद है कि कंपनी एक से तीन माह के भीतर ‘फूड सप्लीमेंट’ अथवा औषधि के रूप में इसे बाजार में ले आएगी। 


पहाड़ की बूटियों से बनी सफेद दाग की दवा : 
डीआईबीईआर ने यारसा गंबू के साथ सफेद दाग यानी ल्यूकोडर्मा के इलाज की औषधि भी प्रयोगशाला में तैयार कर ली है। निदेशक जकवान अहमद ने बताया कि हिमालयी क्षेत्रों की एमीमोमस सहित पांच औषधियों के प्रयोग से यह औषधि तैयार कर ली है। इसके अलावा मिर्च से अश्रु गैस बनाने मैं भी सफलता अर्जित कर ली गयी है
मूल रूप से देखने के लिए यहाँ क्लिक करें. 

गुरुवार, 3 नवंबर 2011

'जंक फूड' खाकर 'मुटा' रही हैं नैनी झील की परियां


एक स्थान पर ही आसान भोजन मिल जाने से नहीं दे रहीं झील की  पारिस्थितिकी में योगदान
विशेषज्ञ मछलियों की जिंदगी और भावी पीढिय़ों पर भी जता रहे खतरा
नवीन जोशी, नैनीताल। जी हां, भले देश की आधी आबादी की आज भी रोटी के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा हो, पर देश—दुनिया की मशहूर नैनी झील की परियां कही जाने वाली मछलियां ब्रेड-बिस्कुट जैसा 'जंक फूड'  डकार रही हैं। आसानी से मिल रहे इस लजीज भोजन का स्वाद मछलियों की जीभ पर ऐसा चढ़ा है कि वह अपने परंपरागत जू प्लेंकन, काई, शैवाल, छोटी मछलियों व अपने अंडों जैसे परंपरागत भोजन की तलाश में झील में घूमने के रूप में तनिक भी वर्जिश करने की जहमत उठाना नहीं चाहतीं। ऐसे में वह इतनी मोटी व भारी भरकम हो गई हैं की कल तक अपनी सबसे बड़ी दुश्मन मानी जाने वाली बतखों को भी आंखें दिखाने लगी हैं। लेकिन विशेषज्ञ इस स्थिति को बेहद अस्थाई बताते हुऐ खुद इन मछलियों के जीवन तथा झील के पारिस्थितिकी लके लिये बड़ा खतरा मान रहे हैं। 
नैनी झील देश—दुनिया का एक ख्याति प्राप्त सरोवर है, और किसी भी अन्य जलराशि की तरह इसका भी अपना एक पारिस्थितिकी तंत्र है, किन्तु सरोवरनगरी की इस प्राणदायिनी झील में स्थानीय लोगों व सैलानियों के यहां पलने वाली मछलियों के प्रति दर्शाऐ जाने वाले प्रेम के अतिरेक के कारण झील के पारिस्थितिकी तंत्र के साथ ही इनकी अपनी जिंदगी पर खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। लोग अपने मनोरंजन तथा धार्मिक मान्यताऑ के  चलते स्वयं के लाभ के लिये इन्हें दिन भर खासकर तल्लीताल गांधी मूर्ति के पास से ब्रेड और बिस्कुट खिलाते रहते हैं। तल्लीताल में बकायदा झील किनारे ब्रेड-बंद व परमल आदि की दुश्मन खुल गई है, जहां से रोज हजारों रुपये की सामग्री मछलियों को खिलाई जा रही है, जबकि बगल में ही प्रशासन ने खानापूर्ति करते हुऐ मछलियों को भोजन खिलाना प्रतिबंधित बताता हुआ बोर्ड लगा रखा है। यह लजीज भोजन चूँकि इन्हें बेहद आसानी से मिल जाता है, इसलिये हजारों की संख्या में पूरे झील की मछलियां इस स्थान पर एकत्र हो जाती हैं। इससे जहां वह झील में मौजूद भोजन न खाकर झील के पारिस्थितिकी तंत्र में अपना योगदान नहीं दे रहे हैं, वहीं उनकी भोजन की तलाश में वर्जिश भी नहीं हो रही, इससे वह मोटी होती जा रही हैं। भारत रत्न पं. गोविंद वल्लभ पंत उच्च स्थलीय प्राणि उद्यान के वरिष्ठ जंतु चिकित्सक डा. एलके सनवाल इस स्थिति को बेहद खतरनाक मानते हैं। उनके अनुसार मनुष्य की तरह ही जीव—जंतुऑ में भी  अपने परंपरागत भोजन के बजाय 'जंक फूड' खाने से शरीर को एकमात्र तत्व प्रोटीन मिलता है, जिससे वह मोटे हो जाते हैं। परिणामस्वरूप उन्हें अनेक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है तथा जल्दी मृत्यु हो जाती है। डा. सनवाल को आशंका है कि आगे दो—तीन पीढिय़ों के बाद उनमें मनुष्य की भांति ही 'स्पर्म' बनने कम हो जाएँगे, जिससे वह नयी संतानोत्पत्ति भी नहीं कर पाएँगी, अंडों से बच्चे उत्पन्न नहीं होंगे, अथवा उनके बच्चों में कोई परेशानी आ जाऐगी। वह झील की सफाई का अपना परंपरागत कार्य पूरी तरह बंद कर देंगे। ब्रेड-बंद खिलाने से उनका प्राकृतिक 'हैबीटेट' ही प्रभावित हो गया है। इससे उनके अवैध शिकार को भी प्रोत्साहन मिल रहा है, कई लोग एक स्थान पर इस तरह मिलने वाली इन मछलियों को आसानी से अपना शिकार बना लेते हैं। बरसात के दिनों में हजारों मछलियां यहीं से झील के गेट खुलने के कारण बलियानाले में बहकर जान गंवा बैठती हैं। वह इस समस्या से निदान के लिये झील के तल्लीताल शिरे पर ऊंची लोहे की जाली लगाने की आवश्यकता जताते हैं, ताकि लोग इस तरह उन्हें ब्रेड-बंद न खिला पाएँ। 
हालांकि एक अन्य वर्ग भी है जो नगर में पर्यटन के दृष्टिकोण से मछलियों को सीमित मात्रा में बाहरी भोजन खिलाने का पक्षधर है। कुमाऊं विवि के वनस्पति विज्ञान विभाग के डा. ललित तिवारी कहते हैं कि इससे एक आनंद की अनुभूति होती है। सैलानियों के लिये यह एक आकर्षण है, साथ ही धार्मिक मान्यताऑ के अनुसार मछलियों को भोजन खिलाने से चित्त शांत होता है। बहरहाल, वह भी सीमित मात्रा की ही हिमायत करते हैं। झील विश्वास प्राधिकरण के अधिकारी भी इस स्थिति को गंभीर मान रहे हैं। उनका मानना है कि मछलियों को लगाई जा रही जंक फूड की लत गत वर्षों से दुबारा कृत्रिम आक्सीजन के जरिये जिलाई जा रही नैनी झील के लिये बेहद खतरनाक हो सकता है।

बुधवार, 12 अक्तूबर 2011

’लू' ज चैप‘ ने कहा ’हैप्पी बर्थ डे बिग बी‘


कभी नैनीताल के शेरवुड में पढ़ाई के दौरान फिल्म देखने से रोका, और भागे अमिताभ की मदद की थी दुर्गा दत्त ने 
अपने ब्लॉग में इस घटना का उल्लेख किया अमिताभ बच्चन ने
नवीन जोशी नैनीताल। 70 के दशक में फिल्में देखने के शौकीन बालक अमिताभ को शेरवुड कालेज के एक कर्मचारी ने रंगे हाथों पकड़ लिया था, तब अमिताभ उस शख्स को देखकर साथियों से फुसफुसाये थे, ‘लू’ज चैप’ यानी विद्यालय के प्रधानाचार्य रैवरन लेनिन का चपरासी। आज अमिताभ को उनके 70वें जन्मदिन पर उसी ‘लू’ज चैप’ ने नैनीताल से जन्म दिन की बधाई भिजवाई है, ‘हैप्पी बर्थ डे बिग बी’। यह बधाई यदि अमिताभ तक पहुंचे तो शायद यह अमिताभ के लिए अपने जीवन के सभी जन्म दिवसों की अविस्मरणीय बधाई साबित हो। 
sadee के महानायक अमिताभ के लिए वह दिन हमेशा अविस्मरणीय रहा, जब एक शक्श ने उन्हें न केवल फिल्म देखने से रोका था, वरण अनुशाशन का पाठ भी पढ़ाया था । तभी तो विगत वर्ष 2008 में जब अमिताभ अपना स्कूल शेरवुड छोड़ने के 50 वर्ष पूर्ण होने के मौके पर  नैनीताल आये तो जीवन के नौवें दशक में पहुंचे बूढ़े ‘लू’ज चैप’ को न केवल आसानी से पहचान लिया वरण गले भी लगा लिया। पढ़ाई के दिनों से ही फिल्मों के दीवाने अमिताभ वर्ष 1956 से 1958 तक शेरवुड के रोबिनहुड होस्टल में रहे.
उस दिन रात नौ से 12 का शो देखने के लिए साथियों के साथ बाजार की ओर भागे चले जा रहे थे। तभी डिग्री कालेज के निकट एक शख्स को देखकर वह साथियों से फुसफुसाये, ‘लू’ज चैप’ और मुंह को दुशाले से ढक लिया। सहसा दुर्गा दत्त पांडे नाम का वह शख्स उन पर झपटा और चीखा, ‘गो अप’। अमिताभ मिन्नतें करने लगे, आज जाने दो। उसने कहा, अभी साहब को बताता हूं। अमिताभ डर गये, वह जानते थे, प्रिंसिपल रैवरन लेवलिन जिन्हें बच्चे शैतानी में ‘लू’ कहा करते थे, खुद कालेज के गेट पर पहरेदारी करते हैं। वह जरूर पूछेंगे और पकड़े जाएंगे। दुर्गा दत्त ने तसल्ली दी, साहब से नहीं कहूंगा, जब जाना हो पूछ के जाया करो। अमिताभ साथियों सहित वापस लौट आये। स्कूल गेट पर पहुंचे तो सचमुच प्रिंसिपल लेवलिन गेट पर मौजूद थे। दुर्गा ने उन्हें अम्तुल्स की ओर से भीतर प्रवेश करा दिया। यह बात अमिताभ को करीब तीन दशक बाद विगत वर्ष कालेज लौटने तक भी याद रही। उन्होंने अपने ब्लॉग पर भी एक बार लिखा था, शेरवुड में मिली अनुशासन की सीख ने ही उन्हें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। आज उसी ‘लू’ज चैप’ यानी दुर्गा दत्त को जब अमिताभ के 70वें जन्म दिन की जानकारी दी गयी तो 92 वर्षीय दुर्गा ने सीना यूं फुला लिया, मानो उनके बेटे ने कोई बड़ा मुकाम हासिल कर लिया हो। गर्व से बोले, बिग बी तक मेरी शुभकामनाएं पहुंचा दें। अतीत में खोते हुए उन्होंने बताया, आजादी से पूर्व 1941 से अपने घर ग्राम अड़चाली गरुड़ाबांज (अल्मोड़ा) से आकर शेरवुड में नौ रुपये माहवार पर कार्य करना शुरू किया था। इस दौरान प्रिंसिपल रैवरन बिंस से लेकर न जाने कितने बड़े लोगों से साबका हुआ, लेकिन हरवंशराय बच्चन के उस बच्चे में न जाने क्या था जो कॉलेज के रॉबिनहुड छात्रावास में रहकर नौवीं कक्षा में यहां आया और सीनियर कैंब्रिज यानी 11वीं कक्षा पढ़कर वापस लौट गया, लेकिन एक बेटे की तरह जीवन का हिस्सा और सबसे बड़ी पूंजी बन गया। 

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

खंडूड़ी के सिर सजी नरेंद्र मोदी की ‘ठुकराई’ टोपी


अपनी ससुराल नैनीताल से दिया सर्वधर्म समभाव का संदेश, गए मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा
नैनीताल (एसएनबी)। मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी बृहस्पतिवार को अपनी ससुराल नैनीताल में थे। यहां उन्होंने पाषाण देवी के साथ ही यहां चल रहे दुर्गा महोत्सव और नयना देवी मंदिर में भी शीश नवाया। गुरुद्वारा गुरुसिंह सभा में भी अरदास की और जामा मस्जिद में भी सजदा किया। उन्होंने मस्जिद में प्रवेश करते ही मुस्लिमों की टोपी पहनी, जिसे न पहनने के कारण गत दिनों उनकी ही पार्टी के नरेंद्र मोदी विवादों में आ गये थे। नैनीताल में मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी अरुणा खंडूड़ी का बचपन बीता। उनके पिता यहां मल्लीताल कोतवाली में कोतवाल रहे तथा भाई वन विभाग में वन संरक्षक पद पर रहे। खंडूड़ी दंपति की यहां की पाषाण देवी पर अगाध आस्था है। दोनों गाहे-बगाहे तथा खासकर नवरात्रों में यहां आते रहते हैं। मुख्यमंत्री तो वहां से करीब 35 मिनट बाद लौट आये, लेकिन उनकी पत्नी करीब तीन घंटे मंदिर में रहीं और दुर्गा सप्तशती व दुर्गा कवच का पाठ किया। इसके पश्चात पहले मुख्यमंत्री तथा बाद में उनकी पत्नी ने अलग-अलग नयना देवी मंदिर में दर्शन किये। अधिकारियों की बैठक व कार्यकर्ताओं से मुलाकात के बावजूद मुख्यमंत्री ने अपने दौरे को व्यक्तिगत दौरा बताया। गुरुद्वारा में उन्हें गुरुद्वारा गुरुसिंह सभा पदाधिकारियों ने कृपाण व सरोपा भेंट किया, जबकि मस्जिद में प्रवेश करते ही शहर इमाम व सेक्रेट्री आदि ने उन्हें मुस्लिम धर्म की परंपरागत टोपी पहनाई, जिसे उन्हें सामान्य तरीके से पहना, साथ ही अपनी ओर से मस्जिद एवं मुस्लिम धर्मावलंबियों के लिए हरसंभव मदद की पेशकश भी की। इसी बीच उन्हें बौद्ध समुदाय के लोगों ने सफेद खाता नामक वस्त्र पहनाकर सम्मानित किया, साथ ही दुर्गा महोत्सव आयोजन समिति के लोगों ने गुलाल लगाकर मुख्यमंत्री का अभिषेक किया।

खुशखबरी: पहाड़ चढ़ेगी रेल

पूर्वोत्तर रेलवे के महाप्रबंधक केबीएल मित्तल ने बताया कि रेल बजट में घोषित टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन का अक्टूबर 2010 में सर्वे किया गया था। करीब 254 किमी के इस रूट को तैयार करने का 2800 करोड़ रुपए और रामनगर-चौखुटिया के बीच 86 किमी की रेल लाइन का 1378 करोड़ यानी दोनों योजनाओं पर कुल करीब 42 सौ करोड़ का प्रस्ताव अगस्त 2011 में रेलवे बोर्ड को भेजा जा चुका है। दोनों योजनाओं की टेक्निकल फिजिबिलिटी एवं ट्रेफिक सर्वे रिपोर्ट पर रेलवे बोर्ड व मंत्रालय को निर्णय लेना है। यदि योजनाओं को मंजूरी और बजट आवंटन हो जाता है तो रेलवे इस पर काम शुरू करेगा। कहा कि यात्री आय के लिहाज से यह दोनों योजनाएं मुनाफा देने वाली नहीं हैं, लेकिन उत्तराखंड के सामरिक दृष्टिकोण के साथ रेलवे की सामाजिक प्रतिबद्धता के लिहाज से रेल लाइन पहाड़ तक पहुंचाना भी जरूरी है। बताया कि इसके अलावा काठगोदाम-नैनीताल रेल लाइन का भी बोर्ड ने दोबारा सर्वे का आदेश दिया है। जल्द ही इस रूट का सर्वे कराया जाएगा। बरेली-लालकुआं के बाद लालकुआं-कासगंज रूट का आमान परिवर्तन मार्च 2013 के बाद शुरू किया जाएगा।

बुधवार, 28 सितंबर 2011

रयाल-नयाल के भरोसे जनरल की ’ससुराल‘



एक दर्जन पदों का कार्यभार संभाले हुए हैं दो अधिकारी
जिले में कई पद रिक्त, कुछ पदों पर अधिकारियों में होड़
कोई यहां आना नहीं चाहता, आता है तो जाना नहीं चाहता
नवीन जोशी, नैनीताल। सालभर बारिश, नैनी झील और तरुणाई से सरोवरनगरी में भले हर ओर हरीतिमा नजर आती हो मगर प्रशासनिक हलकों में इसे ‘शुष्क’ ही कहा जाएगा। जनरल खंडूड़ी के शासन में भी उनकी ‘ससुराल’ में दर्जनभर मुख्य विभाग केवल दो अधिकारियों ललित मोहन रयाल और अवनेंद्र सिंह नयाल के हाथों में हैं। राज्य में विगत दिनों बदले निजाम में हुए प्रशासनिक फेरबदल के बाद जिले में न हाकिम है और न मुख्य विकास अधिकारी। सीएम जनरल के ससुराल की अनूठी कहानी यह है कि कोई अधिकारी यहां आना नहीं चाहता, और जो एक बार यहाँ आ जाता है तो वापस जाना नहीं चाहता। 
नैनीताल मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी की ससुराल है। उनकी धर्मपत्नी अरुणा खंडूड़ी का बचपन यहीं बीता है। उनकी नगर की पाषाण देवी पर अगाध आस्था है। श्राद्ध पक्ष में जनरल ने तबादलों की पहली खेप का खुलासा किया तो सर्वाधिक फेरबदल इसी जनपद में हुए। उम्मीद थी कि नए अधिकारी शारदीय नवरात्र पक्ष में पद ग्रहण करेंगे। नवरात्र प्रारंभ हो गए हैं लेकिन अधिकारियों के पहुंचने का सिलसिला शुरू नहीं हो पा रहा है। यहां से एक-एक कर अधिकारी चले तो गए पर नए आए नहीं। दर्जनभर विभाग केवल दो अधिकारियों के कंधों पर हैं। वर्तमान में जनपद के अपर जिलाधिकारी ललित मोहन रयाल के पास निर्वाचन जैसी पदेन जिम्मेदारियों के अतिरिक्त अपर आयुक्त कुमाऊं मंडल, सचिव झील विकास प्राधिकरण के साथ जिलाधिकारी एवं मुख्य विकास आयुक्त का भी अतिरिक्त कार्यभार है। इसी तरह मुख्यालय में अपर निदेशक उत्तराखंड प्रशासन अकादमी के पद पर तैनात अवनेंद्र सिंह नयाल के पास पूर्व से ही श्रम आयुक्त, अपर राजस्व आयुक्त की जिम्मेदारियां थीं। उन्होंने अब कुमाऊं मंडल विकास निगम के प्रबंध निदेशक पद की जिम्मेदारी भी संभाल ली है। इसके पीछे कारण बताया जा रहा है कि नैनीताल में अधिकांश अधिकारी आने से बचते हैं। इसके उलट कुछ विभागों में आने का अधिकारियों में बड़ा चाव है। यानी कुछ पदों का आकर्षण अन्य के मुकाबले हल्का पड़ जाता है। वहां एक अनार-सौ बीमार की स्थिति है। इसी तर्ज पर नैनीताल सीडीओ पद की ही बात करें तो जनपद में रहे पूर्व एडीएम धीराज सिंह गब्र्याल, उत्तराखंड प्रशासन अकादमी में अपर निदेशक रहे राजीव साह, हल्द्वानी में सिटी मजिस्ट्रेट रहे रणवीर सिंह चौहान, अपर आयुक्त और झील विकास प्राधिकरण के सचिव रहे एचसी सेमवाल आदि इस पद के प्रबल दावेदार बताए जा रहे हैं। जिलाधिकारी बन कर आ रहीं निधिमणि त्रिपाठी भी पूर्व में यहां सीडीओ रह चुकी हैं। इधर उनके नवरात्र शुरू होने के बाद भी कार्यभार ग्रहण न करने पर भी कयासों का दौर शुरू हो गया है।
इस आलेख को मूलतः यहाँ क्लिक कर राष्ट्रीय सहारा के प्रथम पेज पर भी देख सकते हैं.