मंगलवार, 28 मई 2013

शून्य से नीचे गया नैनी झील का जलस्तर

Rashtriya Sahara, 28th May 2013
हर रोज 0.15 इंच यानी करीब 40 मिमी की दर से घट रहा है जलस्तर
नवीन जोशी, नैनीताल। सरोवरनगरी में इस वर्ष शीतकाल में और आगे भी लगातार हुई वर्षा के बाद उम्मीद की जा रही थी कि इस वर्ष नैनीझील पिछले वर्ष जैसा भयावह चेहरा नहीं दिखाएगी लेकिन नगरवासियों, पर्यावरण प्रेमियों की उम्मीदों पर सीजन की मार बेहद गहरी पड़ी है। उम्मीदों के विपरीत सीजन के औपचारिक रूप से शुरू होने के 12 दिन के अंदर ही नैनी झील का जल स्तर मापे जाने की व्यवस्था के तहत शून्य के नीचे चला गया है। इससे भी भयावह तथ्य यह है झील का जलस्तर हर रोज घटने की दर 0.15 इंच यानी करीब 40 मिमी तक पहुंच गई है, और यह दर लगातार बढ़ रही है। नैनीझील के जल स्तर और बारिश के गत तीन वर्ष के आंकड़ों की बात करें तो इस वर्ष 26 मई को झील का जल स्तर शून्य के नीचे गया है, जबकि 2011 में तीन मई को और 12 में 30 अप्रैल को ही शून्य के नीचे चला गया था। इस लिहाज से इस वर्ष देरी से झील का जल स्तर गिरा है लेकिन यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि इस वर्ष अब तक 674.64 मिमी बारिश दर्ज हुई है, जबकि 11 में इसकी करीब आधी यानी 362.96 मिमी और 12 में करीब चौथाई यानी 191.77 मिमी ही बारिश हुई थी। यानी इस वर्ष गत वर्ष के मुकाबले चार गुना अधिक बारिश होने के बावजूद 26 दिन बाद ही झील का जल स्तर शून्य के नीचे आ गिरा है। एक और तथ्य उल्लेखनीय है कि इस वर्ष नौ मई तक झील का जल स्तर गिरने की दर 0.05 इंच यानी करीब 13 मिमी प्रतिदिन थी जो इसके बाद सीधे दोगुनी होकर 0.1 इंच और इधर सीजन के औपचारिक रूप से शुरू होने के दिन यानी 16 मई से 0.13 इंच प्रति दिन हो गई है। आगे इसी तरह सीजन की भीड़भाड़ के बरकरार रहने से जल की खपत और गरमी बढ़ने से वाष्पीकरण की दर बढ़ने से झील के सूखने की दर में भी तेजी आनी लाजमी है।

झील को दो वर्षो से 'रिफ्रेश' होने का इंतजार

नैनीताल। नैनीझील का जल स्तर वर्ष 2011 में तीन मई से एक जुलाई के बीच शून्य से नीचे रहा था और बारिश होने पर 29 जुलाई को ही जल स्तर 8.7 फीट पहुंच गया था, जिस कारण झील के गेट खोलने पड़े थे, जबकि बीते वर्ष 2012 में गरमियों में 30 अप्रैल से 17 जुलाई तक जल स्तर शून्य से नीचे (अधिकतम माइनस 2.6 फीट तक) रहा था और आगे खूब बारिश होने के बावजूद झील के गेट नहीं खुल पाए थे। इस कारण झील का गंदा पानी व गंदगी दो वर्षो से बाहर नहीं निकल पाई है और झील ‘रिफ्रेश’ नहीं हो पाई है।

गुरुवार, 23 मई 2013

पार्टियां नहीं, जनता खड़ा करे प्रत्याशी : अन्ना



कहा, संविधान में पार्टियों के चुनाव लड़ने पर थी पाबंदी, इसीलिए गांधी ने कांग्रेस को भंग करने की जताई थी जरूरत
नवीन जोशी, नैनीताल। प्रसिद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे ने दावा किया है कि देश के संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि पार्टियों को चुनाव नहीं लड़ना चाहिए, वरन जनता को स्वयं अपने प्रत्याशी खड़े करने चाहिए। यही असल गणराज्य की शर्त थी, जिस पर देश की सभी पार्टियों ने देश की जनता से धोखा किया है। उन्होंने कहा कि इसीलिए गांधी जी ने देश की आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी को भंग करने की बात कही थी। अन्ना ने कहा कि कहा कि देश में ज्यादातर समस्याएं पार्टियों की राजनीति की वजह से पैदा हुई हैं। बृहस्पतिवार को जनतंत्र यात्रा के तहत नैनीताल पहुंचे अन्ना ने राज्य अतिथि गृह में मीडिया से वार्ता करते हुए कहा कि पार्टियों की राजनीति के कारण ही देश में जाति-पांति व घरानेशाही की प्रवृत्ति हावी है। यह घरानाशाही लोकशाही के लिए बड़ा खतरा है। इसी वजह से देश में सत्ता से पैसा और पैसे से सत्ता प्राप्त करने की प्रतिस्पर्धा चल रही है। पार्टियां अपनी मर्जी के टिकट देती हैं, और करोड़ों रुपये खर्च करके चुनाव प्रचार करती हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि संविधान में पार्टियों को दो हजार रुपये देने की छूट दी गई और इस आड़ में उद्योगपति फर्जी नामों से पार्टियों को करोड़ों रुपये देते हैं। उन्होंने अरविन्द केजरीवाल के पार्टी बनाने के निर्णय की भी आलोचना की।

इस बार लाइन और बड़ी कर देंगे..
नैनीताल। अन्ना हजारे ने कहा कि 10 माह बाद 2011 से भी बड़ा आंदोलन करते हुए वापस रामलीला मैदान में अनशन पर बैठेंगे, क्योंकि इस बार उनकी देश भर में चल रही जनतंत्र यात्रा के माध्यम से जुड़े करोड़ों लोग भी साथ होंगे। अपने बड़े आंदोलन की असफलता से देश में अन्य आंदोलनों की राह कठिन करने के प्रश्न पर उन्होंने टिप्पणी की कि इस बार ऐसी बड़ी रेखा खींचेंगे कि सरकार को उनकी बात माननी ही होगी, वरना जाना होगा। उन्होंने केंद्र सरकार पर लोकपाल के नाम पर देश की जनता के साथ धोखा करने का आरोप लगाया। अन्ना ने कहा कि उत्तराखंड में उन्हें उम्मीद से कहीं अधिक समर्थन मिला है। पंजाब के जलियावाला बाग से हिमाचल, पश्चिमी यूपी, राजस्थान होते हुए दूसरी बार उत्तराखंड पहुंचे हैं, अभी 10 माह और पूरा देश घूमेंगे और 'सत्ता नहीं व्यवस्था परिवर्तन' कराकर ही दम लेंगे। स्वामी विवेकानंद, अपने माता-पिता और महात्मा गांधी को उन्होंने अपना आदर्श बताया। केजरीवाल के संगठन छोड़ने पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने यह शेर कहा, मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर, लोग जुड़ते गए, कारवां बनता गया।

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रविवार, 28 अप्रैल 2013

नगर की सत्ता से खुलता है राजधानी का रास्ता


सरिता आर्या समेत आधा दर्जन पालिकाध्यक्षों को हासिल हो चुकी है विधायकी
नवीन जोशी नैनीताल। प्रदेश में निकाय चुनाव का जो शोर और प्रत्याशियों द्वारा एड़ी- चोटी का जोर दिख रहा है, वह केवल नगरकी सत्ता के लिए ही नहीं, वरन प्रदेश की राजधानी की सत्ता की ओर भी है। क्योंकि इतिहास गवाह है कि नवसृजित राज्य में अनेकों राजनेताओं के लिए नगरों की सत्ता का रास्ता राजधानी देहरादून की मंजिल तक पहुंचा है। नैनीताल की वर्तमान विधायक सरिता आर्या समेत प्रदेश की वर्तमान विधानसभा में आधा दर्जन विधायक पालिकाओं से ही सत्ता का ककहरा सीख कर आगे बढ़े हैं। उत्तराखंड प्रदेश में पालिकाध्यक्ष की कुर्सी से राज्य की विधानसभा में जाने की शुरूआत करने का श्रेय पूर्व उक्रांद विधायक यशपाल बेनाम को जाता है, वह पौड़ी नपा के अध्यक्ष थे, और वहां के कार्यकाल की बदौलत ही आगे विधायक बनने में सफल रहे। वहीं नैनीताल की वर्तमान विधायक सरिता आर्य को ऐसी पहली महिला पालिकाध्यक्ष होने का गौरव हासिल है जो आगे चलकर विधायक बनने में सफल रहीं। उनकी विधायक के रूप में जीत का पूरा श्रेय उनके पालिकाध्यक्ष के कार्यकाल को है जाता है। वर्तमान विधानसभा में पहुंचे अन्य अध्यक्षों की कड़ी में रुड़की के विधायक प्रदीप बतरा के नाम एक साथ पालिकाध्यक्ष व विधायक रहने का रिकॉर्ड दर्ज है। वहीं गंगोत्री के पूर्व पालिकाध्यक्ष विजय पाल सिंह विधायक के बाद संसदीय सचिव बनाए गए हैं, जबकि टिहरी के पालिकाध्यक्ष रहे दिनेश धनै विधायकी के बाद गढ़वाल मंडल विकास निगम के अध्यक्ष का पदभार देख रहे हैं। रुद्रपुर के पालिकाध्यक्ष रहे राजकुमार ठुकराल रुद्रपुर के ही विधायक के रूप में वहां मौजूद हैं। वर्तमान विधानसभा में देहरादून नगर निगम के दो पार्षद-राजकुमार और उमेश शर्मा 'काऊ' भी विधायक के रूप में पहुंचे हैं। 
वहां फेल, यहां पास 
नैनीताल। राजनीति में सब कुछ संभव है। वर्तमान विधानसभा में ऋ षिकेष विधायक प्रेम चंद्र अग्रवाल और प्रतापनगर विधायक विक्रम सिंह नेगी ऐसे उदाहरण हैं, जो क्रमश: डोईवाला नगर पंचायत और प्रतापनगर पालिका से चुनाव लड़े थे, लेकिन हार गए, जबकि विस चुनाव में जीत कर देहरादून पहुंचने में सफल रहे हैं। 

रविवार, 21 अप्रैल 2013

प्रत्याशियों के साथ चुनाव चिह्नों के बीच भी चल रही जंग


"हाथ" को सबका साथ तो "फूल" को झील में खिलने की उम्मीद
नैनीताल (एसएनबी)। यूं हाथ तो सभी के पास होता है, और बिना हाथ के कोई काम नहीं चल सकता, लेकिन यहां "हाथ" सबका साथ मांग रहा है। वहीं ˜कमल का फूल" सामान्यतया कीचड़ या दलदली जगह पर खिलता है, लेकिन यहां उसे नैनी झील में खिलने की उम्मीद है। जी हां, यहां बात आम हाथ या कमल के फूल की नहीं वरन निकाय चुनाव के दौरान हर चुनाव की तरह एक बार खासकर राजनीतिक दलों की जुबान पर चढ़ने वाले चुनाव चिह्नों की ही कर रहे हैं, लेकिन एक अलग नजरिए के साथ। सरोवरनगरी की अति महत्वपूर्ण एवं अपनी स्थापना के साथ ही तत्कालीन नॉर्थ वेस्ट प्रोविंस और अब देश की दूसरी सबसे प्राचीन नगरपालिका कहे जाने वाले नगर में जब अधिकांश राजनीतिक दलों के साथ ही निर्दलीय भी निर्दलीय प्रत्याशी कम जाने- पहचाने हैं। साथ ही खासकर निर्दलीय प्रत्याशियों के समक्ष अपने साथ ही अपने चुनाव चिह्न को चुनाव की तिथि तक मतदाताओं को याद दिलाने की दोहरी समस्या है। ऐसे में उनके समर्थक अपने प्रत्याशियों के बजाए उनके चुनाव चिह्नों से ही जनता को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। मसलन कांग्रेस समर्थक "हाथ" के बिना तो वोट भी न डाले जाने की समस्या बताकर सब कुछ भूलकर "हाथ" पर ही मुहर लगाने की गुहार लगा रहे हैं, तो  भाजपा के प्रचारक नैनी झील में विकास का ˜कमल" खिलवाने के लिए मदद मांग रहे हैं। इसी तरह बाल्टी चुनाव चिह्न वाले निर्दलीय प्रत्याशी याद दिला रहे हैं कि पिछली बार वोटरों ने ˜बाल्टी" भर कर मुकेश जोशी को पालिकाध्यक्ष बनवाया था। लिहाजा इस बार बाल्टी वोटों से भर दें। गुड़िया चुनाव चिह्न के प्रत्याशी समर्थकों को दिल्ली की घटना के बाद बिना किए ही प्रचार मिलने का भरोसा बन रहा है। अन्य निर्दलीय प्रत्याशी अपने स्वयं को जमीन से जुड़ा बताते हुए मिट्टी की बनी ˜ईट" से पालिका में विकास की नींव रखने की बात कर रहे हैं, तो अन्य पालिका में ˜मोमबत्ती" जलाकर रोशनी करने की उम्मीद कर रहे हैं। कप-प्लेट, केतली, बंगला व वायुयान जैसे चुनाव चिह्नों वाले प्रत्याशियों के पास अपने-अपने समझाने के तरीके हैं। निर्दलीय चुनाव लड़ने के बावजूद चुनाव चिह्नों से प्रत्याशियों के संबंध जुड़ जाने के प्रसंग हैं। एक प्रत्याशी पिछले निकाय चुनाव में बंगला चुनाव चिह्न के साथ चुनाव जीते थे, इस बार उनके साथ ही उनकी पत्नी भी दूसरे वार्ड से सभासद प्रत्याशी के लिए चुनाव मैदान में है, और दोनों के चुनाव चिह्न बंगला ही हैं। इसी तरह अन्य भी अनेक प्रत्याशी हैं, जिन्होंने पिछली बार चुनाव जीतने पर पुराने चिन्ह ही हासिल किए हैं, जबकि हारने वालों ने चुनाव चिह्न भी बदल डाले हैं। वहीं विरोधी प्रत्याशियों के चुनाव चिह्नों को लेकर दुष्प्रचार की कमी नहीं है। कोई दूसरे की मोमबत्ती बुझाने अथवा प्रत्याशी के सिर पर ही नारियल या ईट फोड़ने पर उतारू है तो अन्य को विरोधी की बाल्टी में छेद भी खूब नजर आ रहे हैं। बहरहाल, इस तरह सामान्यतया अब तक नीरस चल रहा चुनाव प्रचार थोड़ा-बहुत रोचक जरूर हो गया है। 

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

पालिका से सीढ़ी चढ़ विधायक-सांसद बने बिष्ट, चंद, सरिता...

राजनीति की पाठशाला साबित होती रही है नैनीताल नगर पालिका
नवीन जोशी, नैनीताल। 1841 में अपनी बसासत के चार वर्ष के भीतर ही 1845 में देश की दूसरी नगर पालिका का दर्जा हासिल करने वाली नैनीताल नगर पालिका कई राजनेताओं के लिए राजनीति की पाठशाला के साथ ही राजनीतिक कॅरियर की सीढ़ी भी साबित हुई है। यहां सभासद रहे श्रीचंद ने यूपी में दो मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल में वन एवं राजस्व विभाग के काबीना मंत्री रहने का गौरव हासिल किया। जबकि वर्तमान विधायक सरिता आर्या सहित नगर के प्रथम पालिकाध्यक्ष रायबहादुर जसौत सिं बिष्ट, तीसरे अध्यक्ष बाल कृष्ण सनवाल व चौथे अध्यक्ष किशन सिंह तड़ागी भी आगे चलकर विधायक बने। 
नैनीताल नगर पालिका से राजनीतिक अनुभव का ककहरा सीखकर पालिका के भीतर ही पदोन्नति प्राप्त करने वालों की बात की जाए तो पहला नाम नगर के वर्तमान पालिकाध्यक्ष मुकेश जोशी का आता है, जो पूर्व में सरिता आर्या की अध्यक्षता वाली बोर्ड में सभासद रहे, और आगे पालिकाध्यक्ष बने। अब वर्तमान चुनावों में करीब एक दर्जन पूर्व सभासद व अध्यक्ष पालिका के भीतर ऐसी ही ऊंची उड़ान भरने की कोशिश में हैं, जो उनके पालिका चलाने के अनुभव का मापदंड भी साबित हो रही है। इस कड़ी में पहला नाम भाजपा प्रत्याशी संजय कुमार ‘संजू’ का आता है, जो वर्ष 1977 से 2002 तक नैनीताल पालिका के अध्यक्ष रहे, और दुबारा अध्यक्ष पद प्राप्त करने की कोशिश में चुनाव मैदान में हैं। गौरतलब है कि पूर्व में नगर के प्रथम पालिकाध्यक्ष रायबहादुर जसौत सिंह बिष्ट के नाम ही दो बार (1941 से 1947 और 1947 से 1953 तक) पालिकाध्यक्ष रहने का रिकार्ड दर्ज है। उनके अलावा पूर्व सभासद सुभाष चंद्रा के साथ वर्तमान तीन सभासद दीपक कुमार ‘भोलू’, राकेश कुमार ‘शंभू’ और प्रेम सागर भी अध्यक्ष पद के लिए चुनाव मैदान में हैं। उनके साथ ही पूर्व सभासद डीएन भट्ट तथा चार वर्तमान निर्वाचित सभासद मनोज अधिकारी, मंजू रौतेला, कृपाल बिष्ट व अमिता बेरिया तथा दो मनोनीत सभासद आनंद बिष्ट व मधु बिष्ट भी सभासद पद के लिए मैदान में हैं। यह सभी प्रत्याशी स्वयं को पालिका की सेवाओं के लिए अनुभवी बताकर प्रत्याशियों से चुनाव जिताने की अपील कर रहे हैं।

कौन                       क्या रहे                        क्या बने
जसौत सिंह बिष्ट        प्रथम पालिकाध्यक्ष           सांसद
बाल कृष्ण सनवाल    पालिकाध्यक्ष                   विधायक
किशन सिंह तड़ागी    पालिकाध्यक्ष                   विधायक
सरिता आर्या            पालिकाध्यक्ष                   विधायक
श्रीचंद                    सभासद                          यूपी के वन व न्याय मंत्री
मुकेश जोशी            सभासद                          पालिकाध्यक्ष

इस चुनाव में यह भर रहे हैं उड़ान
कौन                      क्या थे                    दावेदार
संजय कुमार संजू     पूर्व पालिकाध्यक्ष       पालिकाध्यक्ष
सुभाष चंद्रा             सभासद                   पालिकाध्यक्ष
दीपक कुमार ‘भोलू’  सभासद                  पालिकाध्यक्ष
राकेश कुमार ‘शंभू’   सभासद                  पालिकाध्यक्ष
प्रेम सागर               सभासद                  पालिकाध्यक्ष

पूर्व सभासद जो हैं सभासद पद प्रत्याशी
डीएन भट्ट, मनोज अधिकारी, मंजू रौतेला, कृपाल बिष्ट, अमिता बेरिया, आनंद बिष्ट व मधु बिष्ट 

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

शोमैन को अखरा "थमा" सा पहाड़


  • राज्य का ध्यान "डेवलपमेंट" से अधिक "डील्स" पर 
  • सात वर्षो से "पॉज" की स्थिति में खड़ा है उत्तराखंड 
  • कहा- शौक को प्रोफेशन बनाएं युवा

नवीन जोशी नैनीताल। हिंदी फिल्म उद्योग के "शोमैन" सुभाष घई उत्तराखंड की सुंदरता में कसीदे पढ़ते हैं, लेकिन वह प्रदेश की व्यवस्थाओं से बेहद नाखुश हैं। सात वर्षो के बाद प्रदेश में लौटे घई कहते हैं कि उत्तराखंड इस अवधि में "पॉज" की स्थिति में (यानी जहां का तहां) खड़ा है ! वह कहते हैं कि फिल्में किसी भी राज्य की खूबसूरती को दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करने और उसकी आर्थिकी, रोजगार व पर्यटन को बढ़ाने का बड़ा माध्यम हैं। इसलिए अनेक राज्य व अनेक देश फिल्मकारों को रियायतों की पेशकश करते हैं, लेकिन लगता है कि उत्तराखंड का ध्यान "डेवलपमेंट" से अधिक "डील्स" पर है। यहां शूटिंग महंगी पड़ती है। उत्तराखंड की सुंदरता, शांति उन्हें यहां खींच लाती है। 
श्री घई निजी हेलीकॉप्टर से अपनी फिल्म "कांची" के लिए लोकेशन तय करने यहां पहुंचे। इस दौरान नगर के एक होटल में वह मीडियाकर्मियों से वार्ता कर रहे थे। उन्होंने मीडियाकर्मियों से ही प्रश्न किया, "मैं सात वर्ष पूर्व (2005 में फिल्म किसना की शूटिंग के लिए) उत्तराखंड आया था, तब से उत्तराखंड को "प्रमोट करने" के लिए क्या किया गया है?", फिर स्वयं ही उन्होंने उत्तर भी दे डाला। कहा, कुछ नहीं किया, लगता है राज्य सात वर्षो से "पॉज" पर खड़ा है। उन्होंने कहा कि फिल्में "प्रमोशन" का बड़ा माध्यम होती हैं। स्विट्जरलैंड, फिजी, मैक्सिको सहित अनेक देश व मेघालय, नागालैंड सरीखे राज्य फिल्मकारों को अपने यहां शूटिंग करने पर 40 फीसद तक अनुदान के प्रस्ताव देने आते हैं। उत्तराखंड से ऐसी पेशकश नहीं होती। प्रदेश को फिल्मों की शूटिंग को बढ़ावा देने के लिए होटल, यातायात, संचार सुविधाएं बढ़ानी चाहिए। फिल्मों के लिए "विशेष सेल" की स्थापना की जा सकती है। उन्होंने कहा कि कांची फिल्म में वह स्थानीय प्रतिभाओं को मौका देंगे। युवाओं को उन्होंने संदेश दिया, अपने पैशन को प्रोफेशन बनाएं, तभी अपेक्षित प्रगति कर पाएंगे।

मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

भाई के लिए दो भाई हटे चुनाव मैदान से


नवीन जोशी नैनीताल। यों सियासत और जंग में कोई किसी के लिए कुर्बानी नहीं देता, लेकिन कुमाऊं मंडल एवं जनपद मुख्यालय की नगर पालिका नैनीताल में दो भाइयों ने अपने भाइयों की जीत के लिए अपनी दावेदारी वापस लेकर मिसाल पेश की है। नाम वापसी के आखिरी दिन अध्यक्ष पद के एक एवं सभासद पद के दो निर्दलीय प्रत्याशियों चुनावी समर से वापस लौट आए। इसके बाद पालिकाध्यक्ष के प्रतिष्ठित पद पर 13 एवं 13 वार्डों के एक-एक यानी कुल 13 सभासद पदों के लिए 86 प्रत्याशी मैदान में शेष रह गए हैं। 
उल्लेखनीय है कि अध्यक्ष पद पर कांग्रेस से टिकट के प्रमुख दावेदार राजेंद्र व्यास और उनके भाई अरविंद व्यास ने नामांकन कराया था। राजेंद्र कांग्रेस पार्टी से सशक्त प्रत्याशी थे, लेकिन अपनी पार्टी की लंबी सेवाओं और अपने जनाधार को देखते हुए वह चुनाव मैदान में उतर आए। उधर, उन्हीं के छोटे भाई अरविंद व्यास निर्दलीय चुनाव मैदान में कूद पड़े थे। उन्हें उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी का समर्थन प्राप्त था। एक घर में एक साथ रहने और कमजोर आर्थिक स्थिति के साथ दोनों ही भाइयों ने नामांकन के लिए अपनी मां से तीन-तीन हजार रुपये लेकर नामांकन कराया था लेकिन नामांकन वापसी के आखिरी क्षणों में अरविंद ने राजेंद्र को पूरे जोश से चुनाव लड़ाने के लिए अपना नामांकन पत्र वापस ले लिया। इसी तरह भाजपा प्रत्याशी संजय कुमार "संजू" की अध्यक्ष पद पर जीत सुनिश्चित करने की कोशिश में स्नोव्यू से सभासद का चुनाव लड़ रहे अक्षय कुमार ने नाम वापस ले लिया। संजू के चुनाव में हमेशा ही उनका चुनाव प्रबंधन देखने वाले अक्षय कुमार का कहना है कि वह अपने वार्ड में चुनाव लड़ने और जीतने के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थे, उनकी तैयारी लंबे समय से चल रही थी। लेकिन आखिरी क्षणों में संजू को भाजपा से टिकट मिलने पर उन्होंने बड़े भाई को चुनाव जिताने के लिए स्वयं चुनाव न लड़ने का फैसला लिया, ताकि ऊर्जा दो की जगह एक जगह ही लगाई जा सके। इधर वार्ड 12 कृष्णापुर से पंकज आर्य ने भी पर्चा वापस ले लिया। 

रविवार, 14 अप्रैल 2013

कम ही दिखा "आधी दुनिया˜ का जोर


नवीन जोशी, नैनीताल। जनपद में जहां विधानसभा चुनावों के बाद दो मंत्रियों व एक विधायक के साथ ही डीएम, कमिश्नर (अभी हाल में स्थानांतरण से पूर्व), जिला पंचायत अध्यक्ष एवं दो ब्लाक प्रमुखों के साथ ˜आधी दुनिया" कही जाने वाली महिलाओं का पूरा ˜दम" नजर आता रहा है, वहीं जनपद की सबसे महत्वपूर्ण नैनीताल नगर पालिका में महिलाओं का यही दम फूलता सा नजर आ रहा है। यहां महिलाओं हेतु आरक्षित वार्डों  में अपेक्षा से कम ही प्रत्याशी मैदान में हैं, वहीं अध्यक्ष सहित गैर आरक्षित आठ वार्डों में पांच महिलाएं ही प्रत्याशी हैं। वर्ष 2003 के बाद तीन से अधिक बच्चे उत्पन्न होने पर अयोग्यता के नए नियम का 80 फीसद खमियाजा (5 में से 4 पर्चे महिलाओं के ही हुए ख़ारिज) भी महिलाओं को भुगतना पड़ा है। 
नैनीताल में अध्यक्ष पद के लिए 14 और 13 वार्डों के सभासदों के पदों के लिए 88 प्रत्याशी मैदान में हैं  इनमें महिला दावेदारों की संख्या कुल मिलकर केवल 29 ही है। अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित अध्यक्ष पद के लिए 14 प्रत्याशियों ने अपनी दावेदारी पेश की है, इनमें केवल एक शालिनी आर्या बिष्ट महिला वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। वहीं महिलाओं हेतु गैर आरक्षित स्नोभ्यू वार्ड से सर्वाधिक दो- वर्तमान सभासद अमिता बेरिया व रेखा वैद्य, वार्ड सात शेर का डांडा से जीवंती देवी, वार्ड 10 सूखाताल से लीला अधिकारी सहित कुल पांच महिलाएं ही चुनाव लड़ने की हिम्मत जुटा पाई हैं। वहीं जहां नगर के अनारक्षित आवागढ़ वार्ड में 14 एवं सूखाताल वार्ड में 11 प्रत्याशी मैदान में उतरे हैं, लेकिन महिलाओं हेतु आरक्षित वाडरे में प्रत्याशियों का टोटा साफ नजर आता है। वार्ड तीन व वार्ड 11 में छह-छह (वार्ड 3 हरिनगर से कंचन, शीतल आर्या, रेनू आर्या, बबीता पंवार, मनीशा व आरती व वार्ड 11 मल्लीताल बाजार से पुष्पा साह, भारती साह, ललिता दोषाद, मंजू जोशी, गुंजन-मंजू रौतेला व कंचन वर्मा ), वार्ड नौ (नैनीताल क्लब से विद्या जोशी, दया सुयाल, सपना बिष्ट, नीमा अधिकारी व मधु बिष्ट) में पांच प्रत्याशियों को थोड़ा ठीक भी मानें तो अपर माल वार्ड में केवल चार (नीतू बोहरा, आशा आर्या, रमा गैड़ा व रीना मेहरा) और तल्लीताल बाजार जैसे वार्ड में केवल तीन महिला प्रत्याशी (प्रेमा मेहरा, प्रेमा अधिकारी व किरन साह) मतदाताओं को अधिक विकल्प उपलब्ध नहीं करा रही हैं। हालांकि जो महिलाएं राजनीति में आ भी रही हैं, वे भी अपनी कठपुतलियों सी डोर पतियों या अन्य पुरुष संबंधियों के हाथों में ही रखे रहने से गुरेज नहीं करतीं। नैनीताल में ऐसा कुछ कम नजर आता है जो सुखद व उम्मीद जगाने वाला हो सकता है।

शनिवार, 13 अप्रैल 2013

नैनीताल पालिका चुनाव में "तजुर्बे" की भी होगी परीक्षा



अध्यक्ष पद पर एक पूर्व अध्यक्ष व चार सभासद और सभासद पद पर सात पूर्व सभासद मैदान में
नवीन जोशी नैनीताल। निस्संदेह लोकतंत्र में हर किसी को चुनावी समर में उतर कर जनसेवा के लिए स्वयं को जनता की कसौटी पर कसने का अधिकार है, और आज के दौर को युवाओं का दौर कहा जाता है, और युवाओं को ही चुनावों के माध्यम से आगे लाने की वकालत की जाती है लेकिन तजुब्रे को दरकिनार करना कभी भी आसान नहीं होता। देश की दूसरे नंबर की सबसे प्राचीन 1845 में स्थापित नैनीताल नगर पालिका में भी इस बार "अनुभव" की कसौटी पर कसा जाएगा। यहां अध्यक्ष पद के लिए एक पूर्व अध्यक्ष सहित चार पूर्व सभासद एवं सभासदों के 13 पदोंके लिए सात पूर्व एवं वर्तमान सभासद मैदान में हैं। नैनीताल नगर पालिका के चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए नामांकन कराने वाले 14 प्रत्याशियों में पांच प्रत्याशी पूर्व या वर्तमान में पालिका में बतौर जनप्रतिनिधि जुड़े रहकर अनुभव रखते हैं। इनमें भाजपा प्रत्याशी संजय कुमार 'संजू' पूर्व में वर्ष 2003 से 2008 तक पालिका अध्यक्ष रह चुके हैं। वहीं भाजपा के बागी प्रत्याशी प्रेम सागर, कांग्रेस के बागी प्रत्याशी दीपक कुमार ˜भोलू" के साथ ही बसपा प्रत्याशी राकेश कुमार ˜शंभू" 2008 में चुनाव जीतकर वर्तमान में सभासद के रूप में कार्यरत हैं। वहीं कांग्रेस के अन्य बागी निर्दलीय प्रत्याशी सुभाष चंद्रा भी पूर्व में पालिका सभासद रह चुके हैं। 
पालिका सभासदों के पदों की बात की जाए तो स्नोभ्यू से अमिता बेरिया, आवागढ़ से मनोनीत आनंद बिष्ट, नैनीताल क्लब से मनोनीत सभासद मधु बिष्ट, सूखाताल वार्ड से मनोज अधिकारी, मल्लीताल से मंजू उर्फ गुंजन बिष्ट, कृष्णापुर से डीएन भट्ट व शेर का डांडा से कृपाल बिष्ट पूर्व में सभासद पद का दायित्व देख चुके हैं। इनमें डीएन भट्ट पूर्व में पालिका के वरिष्ठ उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं।

चुनावी जलजले से हर पार्टी में उभरी दरार


सत्तारुढ़ कांग्रेस में सर्वाधिक बागी भाजपा व बसपा के बागी भी मैदान में
नवीन जोशी, नैनीताल। अपनी 1845 में हुई स्थापना से देश की दूसरे नम्बर की नगर पालिका नैनीताल में आसन्न निकाय चुनाव ने जलजले के रूप में सभी पार्टियों के घरों में भारी दरार नुमाया कर दी है। हर पार्टी में अनेक बागी उम्मीदवार यदि नाम वापसी तक मनाए न जा सके तो आने वाले दिनों में अध्यक्ष पद के साथ ही वाडरे के सभासद पदों हेतु अधिकृत प्रत्याशियों के लिए बड़ा सिरदर्द साबित हो सकते हैं। कहते हैं कि अक्सर जंग दुश्मनों से अधिक कठिन दोस्तों से होती है। यह जंग खास तौर पर गांवों के ग्राम प्रधानों के चुनाव तो कई बार गांवों में आपसी वैमनस्य को बढ़ाने वाले भी साबित होते हैं। नगरों की छोटी इकाइयों में प्रत्याशियों को अपनों से ही उलझना पड़ता है। नगर पालिका नैनीताल के अध्यक्ष एवं 13 वाडरे में सभासद पदों पर आखिरी दिन तक हुए नामांकनों की स्थिति प्रत्याशियों को दूसरे दलों के साथ ही अपनों से लड़वाती नजर आ रही है। खासकर विपक्षी भाजपा के प्रत्याशियों के लिए इस मामले में अधिक कठिन स्थिति है, क्योंकि इसी पार्टी ने सभी वाडरे में सभासद प्रत्याशियों को अपने सिंबल दिए हैं। वहीं अध्यक्ष पद पर सत्तारूढ़ दल में सत्ता रूपी ‘मधुमक्खी के छत्ते’ से टपकने वाले 'शहद' को लेकर अधिक मारामारी नजर आ रही है। यहां पहले ही पार्टी पर्यवेक्षक के सामने दावेदारी जताने वाले तीनों दावेदार-सुभाष चंद्रा, दीपक कुमार 'भोलू' व राजेंद्र व्यास तो मैदान में कूद ही पड़े हैं। सुभाष के साथ कांग्रेस के 2008 में प्रत्याशी रहे दिनेश चंद्र साह के जाने से भी पार्टी को बुरे संकेत मिले हैं। वहीं अपने दादा खुशी राम के जमाने से कांग्रेसी रहे पूर्व पालिकाध्यक्ष संजय कुमार 'संजू' इस बार कमल का फूल थाम कर भाजपा से प्रत्याशी हैं। वह पिछली बार बसपा से विधान सभा का चुनाव लड़ चुके हैं, एक दिन पूर्व ही वह बकौल उनके 150 बसपा कार्यकर्ताओं के साथ भाजपा में शामिल हुए हैं, लिहाजा वह बसपा के वोट बैंक में भी निश्चित ही सेंध लगाने की उम्मीद कर रहे हैं। कांग्रेस को उनके साथ ही पार्टी से जुड़े दावेदार राजेंद्र व्यास के भाई अरविंद व्यास व शालिनी आर्या के भी नुकसान पहुंचाने की संभावना जताई जा रही है। भाजपा ने दूसरी पार्टी से जुड़े प्रत्याशी को उतारा है तो उनकी घर की टूट भी उजागर हो गई है। वर्तमान सभासद एवं पार्टी से पुश्तैनी रिश्ता रखने वाले प्रेम सागर बागी हो गए हैं, उनका कहना है पार्टी 'दगाबाज' हो गई है तो वह क्यों नहीं हो सकती है। वहीं किसी दौर में पार्टी के सदस्य रहे जगमोहन भी निर्दलीय के रूप में मैदान में कूद पड़े हैं। भाजपा को अनेक वाडरे में भी निर्दलीय कूदे बागियों से तगड़ी दावेदारी मिलने से इंकार नहीं किया जा सकता। उसके कुंदन सिंह नेगी सूखाताल से, आशा आर्या अपर माल से, पूर्व नगर उपाध्यक्ष कुंदन बिष्ट की पत्नी सपना बिष्ट नैनीताल क्लब वार्ड से बागी होकर निर्दलीय चुनाव में कूद पड़े हैं। बसपा से राकेश कुमार 'शंभू' प्रत्याशी हैं तो 2008 में बसपा से प्रत्याशी रहे उन्हीं के हमनाम अधिवक्ता राकेश कुमार ने भी अध्यक्ष पद के लिए दुबारा ताल ठोंक दी है। ऐसे में निकाय चुनावों में बागी सत्ता के ऊंट को किस करवट बैठाते हैं, देखना दिलचस्प होगा।

अध्यक्ष पद के लिए दो भाई आमने-सामने

नैनीताल। सत्ता का 'शहद' जो न करा दे वह कम है। कांग्रेस के बागी राजेंद्र व्यास के साथ ही उनके अनुज अरविंद व्यास ने भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ताल ठोंक दी है। दोनों भाई एक ही घर में रहते हैं। बताया कि दोनों ने ही अपनी माता से जमानत राशि तीन-तीन हजार रुपए लाकर नामांकन कराया।