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बुधवार, 25 जून 2014

बेड पर लेटकर ही चुनाव लड़ेंगे मुख्यमंत्री हरीश रावत

-विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिह कुंजवाल ने अनौपचारिक बातचीत में दिए संकेत
नवीन जोशी, नैनीताल। अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान यानी एम्स दिल्ली में भर्ती प्रदेश के मुख्यमंत्री हरीश रावत राज्य की खाली हुई धारचूला सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। खास बात यह होगी कि वह अपने अपने चुनाव क्षेत्र में चुनाव प्रचार के लिए जाना दूर, नामांकन के लिए भी क्षेत्र में नहीं आएंगे। उनके नामांकन की औपचारिकता निर्वाचन अधिकारी एम्स दिल्ली जाकर ही पूरी कराएंगे। मुख्यमंत्री के बेहद करीबी माने जाने वाले प्रदेश के विधान सभा अध्यक्ष गोविंद सिह कुंजवाल ने नैनीताल में अनौपचारिक बातचीत में इस बात के साफ संकेत दिए।
मुख्यमंत्री के अस्पताल के बेड से ही चुनाव लड़ने से पार्टी को प्रत्याशी के पक्ष में सहानुभूति के तौर पर अलग से मनोवैज्ञानिक लाभ मिल सकता है। ऐसे में शेष दो सीटें  भी सत्तारूढ़ कांग्रेस को मिल पाएंगी।
गौरतलब है कि एक दिन पूर्व ही मुख्यमंत्री हरीश रावत ने वरिष्ठ काबीना मंत्री डा. इंदिरा हृदयेश को शैडो मुख्यमंत्री के रूप में जिम्मेदारी सोंप कर यह संकेत दे दिए हैं कि अभी उनका काफी वक्त एम्स दिल्ली में ही बीतना तय है। मालूम हो कि विगत दिनों दिल्ली में हैलीकॉप्टर की लैंडिंग के दौरान मुख्यमंत्री गले में झटका खाने की वजह से एम्स में भर्ती हैं। अब विस अध्यक्ष कुंजवाल ने जिस तरह के संकेत दिए हैं, उससे साफ है कि मुख्यमंत्री राज्य में विधानसभा की खाली हुई तीन सीटों के उप चुनावों के लिए नई रणनीति बना चुके हैं। अल्मोड़ा के लिए उन्हें रेखा आर्या के रूप में भाजपा से तोहफे की तरह मजबूत प्रत्याशी मिल चुका है, जबकि धारचूला से चूंकि कांग्रेस के विधायक हरीश धामी ने रणनीति के तहत ही मुख्यमंत्री के लिए सीट खाली की है, इसलिए धारचूला को कांग्रेस आसान मानकर चल रही है। ऐसे में कांग्रेस और मुख्यमंत्री की कोशिश मुख्यमंत्री को चुनाव ल़ाकर पाटने और बीते लोक सभा चुनाव में मिली पांच-शून्य की करारी हार का बदला चुकाने की भी है।
वहीं कुंजवाल ने केंद्र सरकार के महंगाई बढाने संबंधी कदमों पर बचाव करते हुए कहा कि अभी केंद्र सरकार को काफी कम समय हुआ है, इसलिए वह भी उम्मीद कर रहे हैं कि आगे अच्छे दिन आएंगे।

मंगलवार, 6 मई 2014

बिना पार्टियों के चुनाव घोषणा पत्र के ही हो रहे लोक सभा चुनाव !


चुनाव में अब तक जुबानी खर्च ही करते रहे प्रत्याशी, 
प्रचार के आखिरी दिन तक नहीं पहुंचे भाजपा-कांग्रेस सहित किसी भी राष्ट्रीय दल के चुनाव घोषणा पत्र
नवीन जोशी, नैनीताल। चुनावों के लिए पेश किये जाने वाले घोषणा पत्र राजनीतिक दलों के लिए खास होते हैं। जनता अपनी चुनी हुई सरकार से उसके चुनाव पूर्व प्रस्तुत घोषणा पत्र के आधार पर ही जवाब-तलब करती है, मगर संभवत: यह पहली बार होगा कि कुमाऊं मंडल और जिला मुख्यालय में लोकसभा चुनाव की समय सीमा समाप्त होने के दिन तक भाजपा व कांग्रेस सहित किसी दल के घोषणा पत्र नहीं पहुंचे हैं। ऐसे में राजनीतिक दल जनता को अपने घोषणा पत्र नहीं दिखा रहे हैं और हवा-हवाई आरोप- प्रत्यारोपों के आधार पर ही वोट व समर्थन जुटा रहे हैं और संभवत: जनता भी जुबानी वादोंदा वों में ऐसे उलझी है कि वह भी राजनीतिक दलों से चुनाव घोषणा पत्र पढ़ने-संभालने को नहीं मांग रही है। गुजरे दौर में खासकर राजनीतिक दल अपने ही नहीं अन्य पार्टियों के चुनाव घोषणा पत्र अपने चुनाव कार्यालयों में रखते थे, ताकि जनता को दोनों की नीतियों और वादों का अंतर समझाया जा सके। ‘राष्ट्रीय सहारा’ ने सोमवार को लोकसभा चुनाव में प्रचार की समय सीमा समाप्त होने के दिन मुख्यालय में राजनीतिक दलों के चुनाव कार्यालयों का जायजा लिया, मगर किसी दल के चुनाव कार्यालय में पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र उपलब्ध नहीं थे। इस बारे में पूछने पर कहा गया कि इंटरनेट पर घोषणा पत्र उपलब्ध है यह जानते हुए कि देश-प्रदेश में इंटरनेट की उपलब्धता सीमित है। इसके साथ ही घोषणा पत्र किस यूआरएल पते या वेबसाइट पर उपलब्ध हैं इसकी जानकारी भी पार्टी के पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को नहीं है।
लगा प्रचार शुरू ही नहीं हुआ
नैनीताल। इस लोकसभा चुनाव में सही मायनों में पहाड़ पर और खासकर नैनीताल सीट व कुमाऊं मंडल तथा जिले के मुख्यालय में चुनाव प्रचार ठीक से शुरू ही नहीं हुआ था और यह सोमवार को प्रचार की समय सीमा समाप्त होने के साथ खत्म भी हो गया। इस दौरान स्टार प्रचारक कहने भर को यहां केवल भाजपा की ओर से शक्ति कपूर व आप की ओर से भगवंत मान और कांग्रेस के लिए सीएम हरीश रावत ही पहुंचे।

गुरुवार, 1 मई 2014

हिमालयी राज्यों के लिए बने सतत विकास की नीति

संसद में हिमालय को लेकर कभी गंभीरता से नहीं हुई चर्चा, राजनीतिक दल हिमालय पर करें मंथन जलवायु परिवर्तन होने के दुष्प्रभावों पर भी राजनीतिक दल हों गंभीर हिमालय क्षेत्र में जैव विविधता का संरक्षण करने की अत्यंत आवश्यकता
हिमालय को वाटर टावर ऑफ एशिया कहा जाता है। भारत में उत्तराखंड सहित 12 राज्य हिमालयी क्षेत्र में आते हैं। भारत की 60 करोड़ आबादी हिमालय से सीधे या परोक्ष तौर पर प्रभावित होती है, लेकिन हिमालयी क्षेत्रों का दुर्भाग्य है कि देश के 16 फीसद भूभाग में फैले होने के बावजूद यहां देश की केवल चार फीसद जनसंख्या ही वास करती है। शायद इसीलिए हिमालयी क्षेत्र देश और राजनीतिक दलों के एजंेडे में कभी प्रमुखता नहीं रहा है। देश की संसद में 50 यानी करीब 10 फीसद सांसद हिमालयी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन अफसोस कि कभी भी हिमालय के बारे में बात संसद में उस गंभीरता के साथ नहीं रखी गई और न ही वहां अपेक्षित आयामों पर बहस ही हुई। 
वर्ष 2009 में केंद्र सरकार ने ‘जलवायु परिवर्तनों के दुष्प्रभावों से निपटने’ के लिए जो आठ ‘मिशन’ योजनाएं बनाई थीं, उनमें ‘नेशनल मिशन आफ सस्टेनिंग हिमालयन ईको सिस्टम’ यानी हिमालयी क्षेत्रों में सतत पारिस्थितिकीय विकास की राष्ट्रीय योजना भी शामिल है। अल्मोड़ा जनपद के कोसी में स्थित गोविंद बल्लभ पंत हिमालयन पर्यावरण विकास संस्थान कोसी-कटारमल ने इस मिशन के तहत काफी कार्य किया। हिमालयी क्षेत्रों में सतत पारिस्थितिकीय विकास के लिए शासन नाम से गाइडलाइन तैयार की गई। इसमें बताया गया कि किस तरह विकास और पर्यावरण को एक-दूसरे का पूरक बनाया जाए। हिमालयी क्षेत्र की जैव विविधता का संरक्षण कैसे किया जाए, किस मात्रा में हिमालयी क्षेत्र से जड़ी-बूटियों व प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जाए, और कैसे उनका संरक्षण किया जाए। साथ ही कैसे हिमालय की जैव विविधता, उसकी खूबसूरती, खनिजों, जल, जंगल, जमीन और अन्य आयामों को बिना नुकसान पहुंचाए यहां के निवासियों की आजीविका से भी जोड़ा जाए। इन गाइड लाइन में ‘ग्रीन रोड’ यानी ऐसी सड़कें बनाने की बात कही गई है जो प्रकृति व पर्यावरण का संरक्षण करते हुए व उसे बिना छेड़े हुए बनाई जा सकती हैं। साथ ही सामान्यतया कहा जाता है कि विकास और पर्यावरण एक-दूसरे के साथ नहीं चल सकते। यदि आज की तरह का विकास होगा, तो उससे निश्चित ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा, और यदि पर्यावरण का ही संरक्षण किया जाएगा, तो इससे विकास वाधित होगा। लेकिन विकास मनुष्य की आवश्यकता है, इसलिए विकास जरूरी है और हमें ‘पर्यावरण सम्मत’ विकास की बात करनी होगी। विकास के वैकल्पिक उपाय, जैसे सड़कों के स्थान पर रोप-वे, परंपरागत ऊर्जा के साधनों के स्थान पर सौर व वायु ऊर्जा जैसे वैकल्पिक ऊर्जा के साधन, वष्ा जल संग्रहण, सिंचाई के लिए स्प्रिंकुलर विधि आदि का प्रयोग करना होगा। हिमालयी क्षेत्र इतना बृहद है। खासकर पूरे भारत वर्ष को हिमालय प्रभावित करता है, इसलिए हिमालय के बारे में देश को अलग से सोचना पड़ेगा। हिमालय के लिए सतत विकास की अलग नीति बनानी होगी। इस मुद्दे को राजनीतिक एजेंडे में प्रमुखता से शामिल किया जाना चाहिए। (नवीन जोशी से बातचीत पर आधारित)

रविवार, 9 मार्च 2014

नैनीताल में बुलेट टैक्सी के ’नरेश‘


नवीन जोशी, नैनीताल। आपने बस, रेल, टैम्पो, टैक्सी और हवाई जहाज से सफर किया होगा। पर्यटक स्थलों पर कदाचित ‘रोपवे’ का आनंद भी उठाया हो। इसके बाद भी आपने ‘बुलेट टैक्सी’ के बारे में शायद ही देखा-सुना हो। सरोवरनगरी में सामान्य सी दिखने वाली बुलेट मोटरसाइकिल पर सवार व्यक्ति सवारियां ढोते देख सैलानी अंचभित हो जाते हैं मगर स्थानीय लोगों के लिए यह नजारा आम हैं। वे एक से दूसरे स्थान जाने के लिए नरेश की बुलेट टैक्सी का बखूबी इस्तेमाल करते हैं।
अंग्रेजी शासन में नैनीताल में डांडियों का प्रचलन था। दो-चार लोग डोलीनुमा डांडियों को कंधे पर उठाकर ले जाते थे। समय बदला तो डांडियों की जगह साइकिल रिक्शा ने ले ली। मुश्किल यह थी कि साइकिल रिक्शा केवल नगर की समतल सड़क पर चल पाते थे। कार-टैक्सियां जरूर लोगों को शहर में घुमा सकती हैं मगर इनका किराया बहुत है। स्थानीय युवक नरेश बिष्ट ने इसका हल ढूंढा। उसने 2007 में बेरोजगारों के लिए मिलने वाली ऋ ण योजना से 76 हजार रुपये का लोन लिया और बुलेट मोटरसाइकिल खरीदी। मोटरसाइकिल के लिए टैक्सी का लाइसेंस लिया और मोटरसाइकिल को बुलेट टैक्सी के रूप में तब्दील कर उससे लोगों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने लगा। शुरुआती दिक्कतों के बाद नरेश ने साढ़े तीन साल में मोटरसाइकिल का लोन चुकता कर दिया। आज बुलेट टैक्सी उसके परिवार की आजीविका है। नरेश तल्लीताल से मल्लीताल तक मामूली किराये पर मिनटों में लोगों को गंतव्य तक पहुंचा देता है। उसके पास नियमित 40-50 सवारियां हैं। सैलानी भी नरेश की बुलेट टैक्सी का प्रयोग करते हैं। शहर में नरेश की अच्छी पहचान बन गई है। उसे सवारियों की तलाश नहीं करनी पड़ती वरन लोग उसे फोन करके बुलाने लगे हैं। लोगों को मालूम हैं कि वह कब और कहां मिलेगा। अक्सर उसका रूट तय होता है। एक सवारी लेकर वह रिक्शा स्टैंड से जिला कलक्ट्रेट रवाना होता है। वहां उसे हाईकोर्ट जाने के लिए सवारी तैयार मिलती है। उसे लेकर हाईकोर्ट पहुंचता है। वहां मल्लीताल, तल्लीताल व बिड़ला जाने के लिए सवारियां इंतजार में होती हैं। इस प्रकार वह ऑफ सीजन में 300-400 व सीजन में 700-800 रुपये कमा लेता है। शहर में जहां सभी मोटरसाइकिलें पेट्रोल पीती हैं, वहीं रमेश की मोटरसाइकिल रुपये उगलती है। इस तरह नरेश युवाओं के लिए प्रेरणा स्रेत बन गया है। उसकी देखा-देखी कई अन्य युवा भी बुलेट टैक्सी लेने के इच्छुक दिखाई दे रहे हैं। नरेश का कहना है कि मेहनत करने में शर्म नहीं होनी चाहिए। यही सफलता का राज है।

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

संजना के हत्यारे 'फूफा' को फांसी की सजा


घटना को अंजाम देकर साले की पत्नी के कमरे में गया था दीपक
जिला अदालत ने जघन्य मामला माना बलात्कार के जुर्म में मिली उम्रकैद
नैनीताल (एसएनबी)। बहुचर्चित संजना हत्याकांड में जिला एवं सत्र न्यायाधीश मीना तिवारी की अदालत ने 28 फरवरी 2014 को वर्ष 2012 में संजय नगर बिंदूखत्ता में आठ वर्षीया संजना की दुष्कर्म के बाद हत्या के मामले में उसी के रिश्ते के फूफा दीपक आर्या को मौत की सजा सुनाई थी। अदालत ने इस हत्या को जघन्य माना। अदालत ने दीपक को दुष्कर्म का दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इसके अलावा दीपक को अपहरण और अन्य धाराओं के तहत भी सजाएं व आर्थिक दंड सुनाया गया है।
शुक्रवार को जिला एवं सत्र न्यायाधीश मीना तिवारी की अदालत में गत 21 फरवरी को अदालत से दोषी पाये गये मृतक संजना के फूफा दीपक आर्या की सजा पर सुनवाई शुरू हुई। अदालत में मृतक संजना के पिता नवीन कुमार व मामा संतोष भी मौजूदथे। जिला शासकीय अधिवक्ता सुशील शर्मा ने सहायक शासकीय अधिवक्ता नरेंद्र सिंह नेगी के साथ दोषी को अधिकतम मृत्युदंड की सजा दिए जाने की मांग की। बचाव पक्ष ने सजा में रहम करने की गुहार की, पर अदालत ने इस जघन्य हत्याकांड के लिए दीपक को अधिकतम मृत्यदंड की सजा दी। अदालत ने कहा कि दीपक को तब तक फांसी पर लटकाया जाए जब तक उसकी मृत्यु न हो जाए। अदालत ने फैसला सुनाते हुए दीपक को भादंसं की धारा 457 के तहत पांच वर्ष का कठोर कारावास व तीन हजार रुपये जुर्माना व जुर्माना न भुगतने पर एक वर्ष की अतिरिक्त सजा, अपहरण करने के मामले में सात वर्ष की जेल व पांच हजार जुर्माना व जुर्माना न भुगतने पर एक वर्ष की अतिरिक्त सजा, दुष्कर्म के दोष में में धारा 376 के तहत अधिकतम आजीवन कारावास व 10 हजार का जुर्माना तथा जुर्माना न भुगतने पर एक वर्ष की अतिरिक्त सजा सुनाई।
मृतका संजना
संजना हत्याकांड में दीपक को मौत की सजा दिलाने में उस गवाही की भी बड़ी भूमिका रही, जिसमें बताया गया कि वह बच्ची के साथ बलात्कार करने और उसकी हत्या करने के बाद जब घर लौटा तो अपने घर में अपनी पत्नी की बजाय साले की पत्नी के कमरे में चला गया था और ‘नानू-नानू’ पुकार रहा था, जो कि मृतका संजना का घर का नाम था। रात्रि में संजना की खोजबीन के दौरान भी जब उसे बुलाया गया तो वह नहीं आया। अलबत्ता सुबह पांच बजे वह खोजबीन में शामिल हुआ और वही मृतका के निर्वस्त्र शव को घटनास्थल से उठाकर घर लाया था। अदालत में वह आखिर तक स्वयं को बेवजह फंसाने की बात कहता रहा। जांच के दौरान भी वह हमेशा मृतका के परिजनों और पुलिस तथा जांच एजेंसियों को गुमराह करता रहा। 10 जून की रात्रि संजना को उसकी दादी भागीरथी देवी के पास से सोते हुए उठा ले जाने के दौरान अपनी बजाय दादी की चप्पलें पहनकर ले गया था और चप्पलें घटनास्थल पर ही छोड़ आया था, ताकि जांच एजेंसियां भ्रमित हो जाएं। पांच नवम्बर 2012 को पुलिस जब दीपक के बयान ले रही थी, तब उसने पुलिस को अपने पिता का नाम धन राम के बजाय प्रताप राम बताकर भ्रमित करने की एक और कोशिश की थी। इसी कारण उस पर पुलिस का शक गहरा गया। आखिर बमुश्किल जांच के आखिरी दौर में तीन जनवरी 2013 को घटना के छह माह बाद दीपक का डीएनए सैंपल लिया जा सका, जोकि पॉजिटिव पाया गया।

नैनीताल में अब तक आठ को सजा-ए-मौत

नवीन जोशी, नैनीताल। संजना हत्याकांड में दोषी दीपक कुमार को मृत्युदंड की सजा सुनाए जाने के साथ ही जिले में अब तक मौत की सजा पाने वालों की संख्या आठ हो गई है। ये सजाएं चार अलग-अलग मामलों में सुनाई गई। इनमें तीन मामले बच्चियों के साथ दुराचार के बाद उनकी हत्या करने के हैं, जबकि एक मामला चार लोगों की हत्या का है। इससे पूर्व तत्कालीन अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश जीके शर्मा की अदालत ने 1998 में बाजपुर में पांच वर्षीय बालिका के साथ बलात्कार के बाद हत्या करने के मामले में सात जनवरी 2004 को बाजपुर निवासी आफताब अहमद अंसारी व मुमताज नाम के व्यक्तियों को तथा इसी तरह के एक अन्य मामले में जीके शर्मा की अदालत ने ही 2003 में मल्लीताल कोतवाली क्षेत्र में छह वर्षीय नेपाली बच्ची सुषमा के साथ प्राकृतिक व अप्राकृतिक तरीके से बलात्कार व हत्या करने के आरोप में 28 जून 2004 को अलीगढ़ निवासी बाबू पुत्र अलीम अंसारी, बिलासपुर यूपी निवासी आमिर पुत्र हामिद और खटीमा निवासी अर्जुन पुत्र बाला को फांसी की सजा सुनाई थी। यह इत्तेफाक ही है कि इन दोनों मामलों में वर्तमान जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी सुशील कुमार शर्मा ने ही अभियोजन पक्ष की ओर से पैरवी की थी। इसके अलावा राज्य बनने से पूर्व 11 दिसंबर 1999 को हल्द्वानी में चार लोगों जुनैद, असलम, खलील व इशरत की हत्या के छह में से दो आरोपितों राजेश व नवीन को तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश पीसी पंत (वर्तमान में मेघालय उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश) की अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी।

डीएनए जांच से खुला मामला

जिला शासकीस अधिवक्ता सुशील कुमार शर्मा ने बताया कि मामले में कुल 21 गवाह लिए गए, लेकिन इनमें से कोई भी चश्मदीद गवाह नहीं था। मामला पूरी तरह पुलिस की सक्रियता व अच्छे कार्य के फलस्वरूप डीएनए जांच से खुला। मामले में मृतका के पिता नवीन कुमार सहित गांव के 57 लोगों को डीएनए परीक्षण कराकर शर्मिदगी झेलनी पड़ी थी। राज्य की विधानसभा में भी यह मामला गूंजा था और सीबीआई की सीएफएस प्रयोगशाला दिल्ली में डीएनए जांच के बाद बमुश्किल सफलता मिली। इस हत्याकांड की तफ्तीश करने वाले लालकुआं कोतवाली के तत्कालीन कोतवाल विपिन चंद्र पंत ने बताया कि मामले में अनेक प्रयासों के बावजूद असफल रहने पर आखिर उन्होंने अपनी अटूट आस्था के केंद्र कुमाऊं में न्याय के देवता के रूप में प्रसिद्ध ग्वल देवता की जागर (देवता का आवाहन) और बभूती भी लगाई।

फैसले से पिता संतुष्ट

जिला अदालत से दोषी को मृत्युदंड की सजा मिलने के बाद मृतका के पिता नवीन कुमार ने कहा वह अदालत के फैसले से संतुष्ट हैं। अब अपने ईष्टदेव ग्वेल, कल बिष्ट व गंगनाथ के साथ ही तिवारी नगर स्थित माता दुर्गा के मंदिर में शीष झुकाने जाएंगे। किच्छा में मजार पर भी मन्नत मांगी थी, वहां भी चादर चढ़ाने जाएंगे।

शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

संजना हत्याकांड की तफ्तीश में न्याय देव ग्वल ने भी की पुलिस की मदद !

दीपक आर्या
संजना
नैनीताल (एसएनबी)। लालकुआं के बहुचर्चित संजना हत्याकांड में मृतका का फूफा दीपक आर्या जिला अदालत में दोषी सिद्ध हो गया है। दीपक ने संजना को अपहरण कर उसके साथ दुष्कर्म किया और फिर उसकी गला घोंट कर हत्या कर दी। अदालत ने इस हत्याकांड को जघन्यतम माना। दोषी 26 फरवरी को सजा सुनाई जाएगी। परिजनों ने दोषी को फांसी की सजा देने की मांग की है।  हत्याकांड की तफ्तीश में पुलिस को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। लालकुआ कोतवाली के तत्कालीन कोतवाल विपिन चंद्र पंत ने मामले में अनेक स्तरों से क़ी जांच की। पहले एक बड़े क्षेत्र से जांच शुरू करते हुए जांच मृतका के पिता और नजदीकी परिजनों तक पहुंची। इस दौरान ऐसे हालात भी बने कि पूरा जोर लगाने और मृतका के पिता व सारे गांव पर शक व जांच करने के बावजूद सफलता ना मिलने पर विवेचक श्री पंत ने अपनी अटूट आस्था के केंद्र अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट के पास उदयपुर कैड़ारब गांव में स्थित कुमाऊं में न्याय के देवता के रूप में प्रसिद्ध ग्वल देवता की जागर (देवता का आवान) और बभूती भी लगाई। इस बात को पंत ने अदालत के समक्ष भी स्वीकारा कि जागर के बाद ही अभियुक्त पर जांच केंद्रित हो पाई। उल्लेखनीय है कि कुमाऊं मंे मान्यता है कि जिसे कहीं न्याय नहीं मिलता, आखिर ग्वल देव के दरबार में सच्चा न्याय मिलता है।
लालकुआं के तिवारीनगर नंबर एक में नाबालिग संजना 10 जुलाई 2012 की रात अपनी दादी भागीरथी देवी के साथ सोई हुई थी, तभी वह लापता हो गई थी। दूसरे दिन उसका शव निर्वस्त्र अवस्था में मिला था। पुलिस तब इस केस का कोई सुराग नहीं तलाश सकी थी। इस हत्याकांड को लेकर लोग सड़कों पर उतर आए थे। पुलिस ने इस मामले में कई महीनों तक जांच की और 57 लोगों का डीएनए टेस्ट कराया। डीएनए नमूना मिलने के आधार पर सात फरवरी 2013 को दीपक आर्या पुत्र धनराम आर्या मूल निवासी बनबसा चम्पावत को गिरफ्तार किया गया। मामले में मृतका के पिता सहित 57 ग्रामवासियों के डीएनए नमूने लिये गए थे। इस मामले में सीबीआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी डा. महापात्रा सहित 21 लोगों के बयान लिए गये। आरोपित ने डीएनए संबंधी वैज्ञानिक प्रमाण की सत्यता को संदिग्ध बताने के साथ वैज्ञानिक की डिग्री व शैक्षिक योग्यता पर भी आरोप लगाए थे। इस पर उन्हें स्वयं की डिग्री व योग्यता को अदालत में साबित करना पड़ा। शुक्रवार को जिला एवं सत्र न्यायालय में मामले की अंतिम सुनवाई के दौरान जिला शासकीय अधिवक्ता सुशील कुमार शर्मा व सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता नरेंद्र सिंह नेगी ने मामले को गंभीर प्रकृति का जघन्यतम अपराध बताया। जिला एवं सत्र न्यायाधीश मीना तिवारी की अदालत ने आरोपित दीपक आर्या को साक्ष्यों व गवाही के बाद नाबालिग से घर में घुसकर अपहरण कर ले जाने, बलात्कार कर हत्या करने एवं साक्ष्य छुपाने का दोषी घोषित कर दिया। जिला शासकीय अधिवक्ता सुशील कुमार शर्मा ने कहा कि दोषी ने अपनी बेटी समान व रिश्तेदार की बच्ची को विास को चोट पहुंचाकर अपनी हवस को पूरा करने के लिए घर से उठाया और उसकी निर्ममता से गला घोंटकर हत्या की। लिहाजा कोर्ट से फांसी की सजा की मांग करेंगे।

पिता सहित इलाके के 57 लोगों को डीएनए परीक्षण कराकर झेलनी पड़ी थी शर्मिदगी

फैसला आने के बाद अदालत पहुंचे एसएसपी सदानंद दाते का हाथ जोड़कर आभार जताते मृतका के परिजन  
नवीन जोशी, नैनीताल। लालकुआं का संजना हत्याकांड एक ब्लाइंड केस था। इस मामले में पुलिस को कोई सिरा नहीं मिल रहा था कि दुष्कर्मी और हत्यारे तक कैसे पहुंचा जाए। पुलिस महीनों तक केस की तह तक पहुंचने के लिए मशक्कत करती रही। आठ वर्ष की मासूम संजना की हत्या का मामला विधानसभा में भी गूंजा। इसके बाद पुलिस ने जांच का सिरा डीएनए परीक्षण की ओर मोड़ दिया। पुलिस ने मृतका के पिता समेत 57 लोगों का डीएनए परीक्षण किया। परीक्षण कराने वालों को समाज में शर्मिदगी भी झेलनी पड़ी, लेकिन एक मासूम के साथ जघन्यतम कुकृत्य करने वाला आखिरकार पुलिस की पकड़ में आ गया। मासूम बच्ची के फूफा ने रिश्तों के विास व मानवीयता को तार-तार कर यह जघन्यतम अपराध किया था। संजना हत्याकांड प्रदेश का कई मामलों में अनूठा और पहला मामला है, जो विधानसभा में भी गूंजा और सीबीआई की सीएफएस प्रयोगशाला दिल्ली में डीएनए जांच के बाद बमुश्किल सफलता मिली। घटना के करीब आठ माह बाद डीएनए सैंपल के मिलने के बाद पड़ोसी व रिश्ते के फूफा को मासूम बच्ची से बलात्कार के बाद हत्या करने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया। न्यायालय में 21 लोगों की गवाही हुई, और आखिर एक वर्ष आठ माह व 11 दिनों के बाद अपनी बच्ची को खोने वाले परिवार को न्याय मिलने की उम्मीद बंधी है। बिंदूखत्ता के प्राथमिक विद्यालय संजय नगर में चौथी कक्षा में पढ़ने वाली आठ वर्षीय मासूम संजना उर्फ नानू की बलात्कार के बाद गला घोंटकर की गई हत्या के मामले में जांच के दौरान दोषी पाया गया दीपक आर्या आखिर तक अदालत में पुलिस द्वारा लगाए गए सोई हुई बालिका संजना को शराब के नशे में घर से उठाकर ले जाने, उसके जागने पर पहचाने जाने के डर से गला दबाकर मार डालने और फिर मृत देह से दुराचार करने के आरोपों को नकारता और हमेशा स्वयं को बेवजह फंसाने की बात कहता रहा। जांच के दौरान भी वह हमेशा मृतका के परिजनों और पुलिस तथा जांच एजेंसियों को गुमराह करता रहा। 10 जून की रात्रि संजना को उसकी दादी भागीरथी देवी के पास से सोते हुए उठा ले जाने के दौरान अपनी बजाय दादी की चप्पलें पहनकर ले गया था, और चप्पलें घटनास्थल पर ही छोड़ आया था, ताकि जांच एजेंसियां भ्रमित हो जाएं। बाद में मध्य रात्रि करीब एक बजे जैसे ही संजना के गायब होने की खबर परिजनों को लगी, वह भी मध्य रात्रि से ही उसे ढूंढ़ने में जुटा रहा। आखिर अगली सुबह पांच बजे उसने ही सबसे पहले संजना का शव खेत में पड़ा देखा, और वह ही मृतका के निर्वस्त्र शव को कंधे पर डालकर घर लाया था। घटना के बाद जब डॉग स्क्वॉड मनी ने अपनी जांच के बाद सूंघते हुए उसकी ओर इशारा किया था, तो उसने यह कहकर बात बना दी थी कि वह मृतका के शव को लेकर आया, शायद इसलिए कुत्ता उस पर शक कर रहा है। पांच नवम्बर 2012 को पुलिस जब दीपक के बयान ले रही थी, तब उसने पुलिस को अपने पिता का नाम धनराम के बजाय प्रताप राम बताकर भ्रमित करने की एक और कोशिश की थी। इसी कारण उस पर पुलिस का शक भी गहराया। आखिर बमुश्किल जांच के आखिरी दौर में तीन जनवरी 2013 को घटना के छह माह बाद दीपक का डीएनए सैंपल लिया जा सका, जोकि पॉजीटिव पाया गया। सीबीआई की विधि विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) दिल्ली के वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी डा. बीके महापात्रा की भी अदालत में गवाही हुई, जिसमें उन्होंने मामले में आरोपित की करतूत अदालत के समक्ष रख दी।

किया विश्वास का भी कत्ल
नैनीताल। संजना हत्याकांड में दोषी पाए गए दीपक आर्या का संजना के घर अक्सर आना जाना था। वह मूलतः बनबसा टनकपुर का रहने वाला था, लेकिन संजना के घर के पास ही अपनी ससुराल में पत्नी सीमा व दो बच्चों के साथ रहता था। सीमा संजना के पिता संेचुरी पेपर मिल लालकुआ में ड्राइवर के रूप में कार्यरत नवीन की रिश्ते की बहन थी, और बचपन से नवीन के द्वारा ही पाली गई थी।
खून के बदले खून, मौत के बदले मौतः भागीरथी
नैनीताल। अपने साथ सोई पोती को खोने वाली दादी भागीरथी देवी शुक्रवार को अदालत से दीपक आर्या को दोषी सिद्ध होने के बाद एसएसपी डा. सदानंद दाते के समक्ष बोली, उन्हें खून के बदले खून, और मौत के बदले मौत का इंसाफ चाहिए। इस मामले में उन्हें गांव में भारी जिल्लत झेलनी पड़ी। बच्ची के साथ ऐसी घटना होने के बाद गांव के अनेक लोगों ने उनके साथ रिश्ते बंद कर दिए। 
संजना चौकी में बड़ेगी पुलिस फोर्स
नैनीताल। गौरतलब है कि संजना त्याकांड के बार बिंदूखत्ता के तिवारी नगर में संजना के नाम से ही पुलिस चौकी की स्थापना कर दी गई है। शुक्रवार को अदालत परिसर में स्वयं मामले की जानकारी लेने पहुंचे जिले के एसएसपी डा. सदानंद दाते ने पीड़ित परिवार के सदस्यों से मुलाकात की, और उन्हें ढांढस बंधाया। उन्होंने परिजनों की स्वयं के असुरक्षित होने की शिकायत पर लालकुआ थाना प्रभारी विपिन चंद्र पंत को संजना चौकी में फोर्स ब़ाने के निर्देश दिए। कहा कि लाइन से इस हेतु दो अतिरिक्त कांस्टेबल दिए जाएंगे। इस दौरान उन्होंने अदालत परिसर में जिला शासकीय अधिवक्ता सुशील कुमार शर्मा से भी मुलाकात की, तथा उनका मेहनत व सहयोग के लिए आभार जताया।
यही केस ले गया, यही वापस भी लायाः पंत
नैनीताल। न्यायालय से दीपक आर्या के दोषी करार ोने के बाद मामले के खुलासे में सर्वप्रमुख भूमिका निभाने वाले तत्कालीन एवं वर्तमान में एक बार फिर लालकुआं कोतवाली के कोतवाल बने इंस्पेक्टर विपिन चंद्र पंत ने का कि यही मामला उन्हें बाहर ले गया था, और यही मामला वापस उन्हें वापस लालकुआ लाया है। गौरतलब है कि पंत इस मामले के बाद लालकुआ से चमोली भेज दिए गए थे। वहां से देहरादून और मसूरी होते  हुए वह वापस लालकुआ आ गए हैं। क्षेत्रीय लोग भी नकी लालकुआ में तैनाती की मांग करते रहे।

बुधवार, 12 फ़रवरी 2014

जिम कार्बेट के घर नैनीताल में फिर दिखाई दिया ‘रॉयल बंगाल टाइगर’

नवीन जोशी, नैनीताल। देश में बाघों की संख्या लगातार घटने से चिंतित पर्यावरण प्रेमियों और प्रकृति के स्वर्ग कही जाने वाली सरोवर नगरी प्रेमियों के लिए अच्छी खबर है। बाघों का राजा ‘रॉयल बंगाल टाइगर' अंतर्राष्ट्रीय शिकारी जिम कार्बेट के शहर नैनीताल की खूबसूरती पर एक बार फिर फिदा हो गया लगता है। बीती 10-11 फरवरी की रात्रि नगर की करीब 2591 मीटर ( 8500 फिट) ऊंची कैमल्स बैक चोटी पर इसे देखा गया। आधिकारिक तौर पर कैमरों से इसकी तस्वीर भी रिकार्ड की गई है। इसे जिम कार्बेट के दौर के लम्बे अंतराल के बाद भी नैनीताल में समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र बरक़रार रहने के लिहाज से भी बड़ी उपलब्धि माना जा सकता है। 
प्रदेश में गत 10 फरवरी से एक सप्ताह तक यानी 17 फरवरी तक के लिए बाघों की गणना के लिए अभियान चला रहा है। इस अभियान के तहत नैनीताल के निकटवर्ती वन क्षेत्रों में अनेक स्थानों पर रात्रि में भी देखने की क्षमता वाले कैमरे लगाए गए हैं। इन्हीं में से एक कैमरा नैना रेंज में समुद्री सतह से 2591 मीटर की ऊंचाई वाली चोटी कैमल्स हंप या कैमल्स बैक पर भी लगाया गया था। इस कैमरे से अभियान की पहली ही यानी 10 व 11 फरवरी की रात्रि एक बजकर 47 मिनट पर करीब सात-आठ वर्ष की उम्र के बंगाल टाइगर प्रजाति के कैमरे के चित्र लिये गए हैं। डीएफओ डा. तेजस्विनी पाटिल ने इस बात की पुष्टि करते हुए बताया कि कैमरे में देखा गया बाघ नर हो सकता है। जिस कैमरे पर यह रिकार्ड किया गया है, उसे कुमाऊं विवि के वानिकी विभाग के द्वितीय वर्ष के दो छात्रों मो. अकरम व लवप्रीत सिंह लाहौरी तथा एक स्थानीय युवक अमित वाल्मीकि द्वारा लगाया गया था। 
उल्लेखनीय है कि बाघ पारिस्थितिकी तंत्र की आहार श्रृंखला में सांपों में किंग कोबरा, पक्षियों में चील-गिद्ध आदि की तरह सबसे ऊपर होते हैं। किसी स्थान पर इनकी उपस्थिति होने का सीधा सा अर्थ होता है कि उस पारिस्थितिकी तंत्र की श्रृंखला के निचली श्रेणी तक के सभी अन्य जीव भी भरपूर मात्रा में उस स्थान पर उपलब्ध हैं। यह अपनी भोजन श्रृंखला के निचली श्रेणी के वन्य जीवों को खाते हुए पारिस्थितिकीय संतुलन बनाते हैं।

2010 में भूटान में 4100 मीटर ऊंचाई पर देखे जाने का है रिकार्ड

देश में सर्वाधिक ऊंचाई पर बाघ को देखे जाने के रिकार्ड उपलब्ध नहीं हैं, और अब पहली बार इसे नैनीताल में 2951 मीटर की ऊंचाई पर देखा गया है। बहरहाल बीबीसी के अनुसार बाघ को सर्वाधिक ऊंचाई पर देखे जाने का विश्व रिकार्ड सितम्बर 2010 में बना था, जब इसे भूटान में 4100 मीटर की ऊंचाई पर रिकार्ड किया गया था। गौरतलब है कि नैनीताल में पूर्व में कैंट के पास बाघ को देखे जाने की बात कही जाती थी, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो पाई थी।

मंगलवार, 14 जनवरी 2014

'शत्रु संपत्ति' मेट्रोपोल के हिस्से पर रातों-रात किये कब्जे

  • पांच लोगों के विरुद्ध प्रशासन ने दर्ज कराई एफआईआर 
  • जिला प्रशासन के नियंत्रण में होती हैं सभी शत्रु संपत्तियां

नैनीताल (एसएनबी)। नगर स्थित राजा महमूदाबाद अमीर मोहम्मद खान की प्रशासन के कब्जे वाली अरबों रुपये की शत्रु संपत्ति मेट्रोपोल होटल परिसर में बड़े पैमाने पर रातों-रात कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया। लोगों ने चीना बाबा मंदिर से नीचे की ओर बड़े नाले के किनारे करीब 50 मीटर लंबाई में अतिक्रमण कर टिनशेडों का निर्माण भी कर डाला। रातभर क्षेत्र में निर्माण होने से खूब हो-हल्ला रहा। अलबत्ता शत्रु संपत्ति के कस्टोडियन जिला प्रशासन को इसकी भनक भी नहीं लगी। दिन में सूचना मिलने पर प्रशासन ने निर्माण ढहाकर सामग्री जब्त कर ली है। साथ ही पांच लोगों के विरुद्ध मल्लीताल कोतवाली में एफआईआर दर्ज करा दी गई है। मंगलवार सुबह भाजपा नेता मनोज जोशी ने डीएम अरविंद सिंह ह्यांकी सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारियों को मेट्रोपोल परिसर में रात्रि में बड़े पैमाने पर कब्जे होने व टिनशेड लगाए जाने की सूचना दी। इस पर एसडीएम शिवचरण द्विवेदी ने राजस्व पुलिस, पुलिस व नगर पालिका की गैंग की मदद से क्षेत्र में कब्जा कर किये गए निर्माण को ध्वस्त करवा दिया और निर्माण सामग्री जब्त करवा दी। मामले में तहसीलदार बहादुर सिंह लटवाल की ओर से मल्लीताल कोतवाली में कब्जा कर रहे फारूख पुत्र मो. हनीफ, नजाकत पुत्र मो. हशमत, असलम पुत्र अमजद, जमील पुत्र अब्दुल गफ्फूर व यूसुफ पुत्र अहमद के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करा दी गई है। कब्जे हटाने की कार्रवाई में कार्रवाई में सीओ हरीश कुमार, नायब तहसीलदार नीलू चावला, कोतवाल हरक सिंह फिरमाल, तल्लीताल थाना प्रभारी उत्तम सिंह आदि लोग शामिल रहे।

अपने दौर का सबसे बड़ा होटल था मेट्रोपोल

नैनीताल। नगर के अपने दौर के सबसे बड़े 41 कमरे के मेट्रोपोल होटल का निर्माण मि. रेंडल नाम के अंग्रेज ने किया था। बाद में यह राजा महमूदाबाद की संपत्ति हो गई। देश की आजादी के बाद यह संपत्ति राजा के इकलौते चश्मो-चिराग राजा अमीर मोहम्मद खान के हिस्से आयी, लेकिन इस पर अनेक लोगों का कब्जा रहा। इनमें से एक प्रमुख श्री लूथरा 1995 तक इसे होटल के रूप में चलाते रहे। वर्ष 2005 में न्यायिक प्रक्रिया के बाद इसे प्रशासन द्वारा शत्रु संपत्ति घोषित कर तथा कब्जे छुड़वाकर राजा के हवाले कर दिया गया, लेकिन बाद में दो अगस्त 2010 को न्यायालय के आदेशों पर इसे वापस जिला प्रशासन ने बतौर कस्टोडियन कब्जे में ले लिया था।

लाखों की आय के बावजूद सुरक्षा के कोई प्रबंध नहीं

नैनीताल। अरबों रुपये की प्रशासन के कब्जे वाली शत्रु संपत्ति मेट्रोपोल होटल में गत 26 नवम्बर की रात्रि भीषण अग्निकांड हो गया था, जिसमें होटल के बॉइलर रूम व बैडमिंटन कोर्ट तथा 14 कमरों वाला हिस्सा कमोबेश खाक हो गया था। तब भी होटल में कोई सुरक्षा प्रबंध नहीं थे और इसके बाद भी प्रशासन ने इसकी सुरक्षा के कोई प्रबंध नहीं किये हैं। गौरतलब है कि इस संपत्ति के मैदान को प्रशासन ग्रीष्मकाल में पार्किग के रूप में प्रयोग करता है, जिससे लाखों रुपये की आय भी प्राप्त होती है। राजा महमूदाबाद के प्रतिनिधि अब्दुल सत्तार ने बताया कि पूर्व में प्रशासन की ओर से यहां पुलिस कर्मी गार्ड के रूप में तैनात रहता था, लेकिन पिछले विस चुनाव के दौरान फोर्स की कमी होने पर गार्ड हटा तो उसके बाद तैनात ही नहीं किया गया।

सोमवार, 23 दिसंबर 2013

आजादी के वर्ष का एहसास कराएगा नये साल का कैलेंडर


हूबहू 1947 से मिलता है 2014 का कैलेंडर

नवीन जोशी, नैनीताल। समय चक्र ने हमें एक बार फिर से अतीत के उस दौर में पहुंचा दिया, जब पूरे देश को बस इंतजार था 15 अगस्त का। सब कुछ वही है, तारीख-दिन में कोई अंतर ही नहीं। जी हां, गौर से देखिएगा। नये साल में जो कैलेंडर हमारे सामने आ रहा है वह हूबहू वही है जो आजादी दिलाने वाले वर्ष 1947 में था। आपके पास वर्ष 1947 का वह ऐतिहासिक कलेंडर मौजूद है तो आपको अगले वर्ष के लिए नया कलेंडर लेने की जरूरत नहीं है, और यदि उस ऐतिहासिक वर्ष के तारीखों में दिन खोजने हैं तो 2014 के कैलेंडर में सब कुछ मिल जाएगा। हालांकि यह सामान्य सी बात है, और अनिश्चित अंतराल पर अनेक वर्षो के कैलेंडर समान होते रहते हैं। लेकिन जब बात 1947 के कैलेंडर की हो तो अनेक जिज्ञासा बढ़ना स्वाभाविक है। पुराने लोग इस कलेंडर को आज भी सुरक्षित रखे हुए हैं। खासकर उन्हें बृहस्पतिवार 14 अगस्त की मध्यरात्रि व 15 अगस्त के शुक्रवार का दिन कभी नहीं भूलता, जब देश पहली बार आजादी की सांसें ले रहा था। अनेक लोगों को याद है कि 1947 का वर्ष एक जनवरी को बुधवार से शुरू हुआ था और लीप वर्ष न होने की वजह से फरवरी में 28 दिन थे और वर्ष का समापन 31 जनवरी को बृहस्पतिवार को हुआ था। यह इत्तेफाक है कि आज भी देश बदलावों के दौर से गुजर रहा है, और 2014 में लोस चुनाव भी होने हैं, और कैलेंडर 1947 से पूरी तरह मिलता है।
2014 में लगातार चार-पांच दिन की छुट्टियां भी मिलेंगी

नैनीताल। छुट्टियों के मामले में नया साल 2014 सरकारी कर्मचारियों के लिए गुजरते साल से कुछ बेहतर रहेगा। उन्हें न केवल इस साल से ज्यादा छुट्टियां मिलेंगी बल्कि नए वर्ष में कई बार लगातार चार-पांच दिन के अवकाश के मौके भी मिलेंगे। हालांकि अभी राज्य सरकार ने अगले वर्ष के लिए छुट्टियों का कलेंडर जारी नहीं किया है, फिर भी अन्य प्रचलित कलेंडरों के आधार पर कहा जा सकता है कि इस वर्ष 52 रविवार, माह के दूसरे शनिवार के 12 व विभिन्न तीज त्योहारों के 22 व तीन निर्बधित छुट्टियों को मिलाकर कुल 89 अवकाश पड़ने की संभावना है। हालांकि पांच सार्वजनिक अवकाश शनिवार व रविवार को तथा नौ छुट्टियां अवकाश वाले दिनों में पड़ रही हैं। इस वर्ष दो अक्टूबर गांधी जयंती से तीन को विजयदशमी, चार व पांच अक्टूबर शनिवार- रविवार छह अक्टूबर को बकरीद का अवकाश रहने से लगातार पांच दिन की छुट्टियां लेने का मजा भी लिया जा सकेगा। इसी तरह 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के बाद 16-17 को शनिवार-रविवार तथा 18 अगस्त को जन्माष्टमी के अवकाश के साथ लगातार चार दिन की छुट्टी भी मिलेगी। ऐसे ही गुरुवार 23 से दीपावली के अवकाश के बाद गोवर्धन पूजा और फिर शनिवार- रविवार का अवकाश भी मिल जाएगा।
इन वर्षो के कैलेंडर भी 1947 जैसे
नैनीताल। एक जैसे कलेंडर वाले वर्षो के बारे में और अधिक अध्ययन करें तो पता लगता है कि ऐसा अनिश्चित अंतराल पर होता है। वर्ष का लीप इयर यानी फरवरी का 28 या 29 दिन के होने की वजह से यह अनिश्चितता रहती है। 1947 जैसे ही समान कलेंडरों की बात की जाए तो बीती शताब्दी में आजादी के बाद 1958, 1969, 1975, 1986 व 1997 में तथा वर्तमान 21वीं शताब्दी में वर्ष 2003 के कलेंडर भी समान रहे। वहीं आगे 2025, 2031, 2042, 2053, 2059, 2070, 2081और 2087 के कलेंडर भी 1947 जैसे ही रहने वाले हैं।


मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

आज दो बार एक साथ आयेंगे 08:09:10 11:12:13

अंक विज्ञान के अनुसार खास है आज का दिन
नवीन जोशी नैनीताल। यदि आप न्यूमरोलॉजी यानी अंक विज्ञान और दिन की तारीखों में अंकों के खास समन्वयों की रोचकता को पसंद करते हैं तो बुधवार का दिन और दिसम्बर का महीना बहुत खास है। बुधवार को सुबह और शाम के समय दो बार ऐसी स्थिति बनेगी, जब समय व दिन बताने वाली डिजिटल घड़ियां और आपके कम्प्यूटर और लैपटॉप पर ‘08:09:10 11.12.13’ अंकित देखेंगे। यह होगा जब बुधवार को वर्ष 2013 के 12वें यानी दिसम्बर माह की 11वीं तिथि होगी और समय सुबह व शाम आठ बजकर नौ मिनट और 10 सेकेंड होंगे। ऐसी स्थिति 100 वर्षो में एक बार यानी कमोबेश हर किसी के जीवन में एक बार ही आएगी। पूर्व में यह स्थिति 1913 के 11 दिसंबर को आई होगी और आगे 2123 में आएगी। 

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‘मनी बैग’ देगा दिसम्बर !

इसके अलावा दिसम्बर में चीनी फेंग शुई मान्यताओं के अनुसार ‘मनी बैग’ की एक खास स्थिति भी बन रही है। इसके बारे में मान्यता है कि जो भी व्यक्ति अपनी डायरी और सोशल नेटवर्किंग साइट्स की प्रोफाइल पर इसे अंकित करते हैं, उन्हें चार दिन के भीतर धन की प्राप्ति होती है। हालांकि इस बात की सत्यता के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं, बावजूद चीनी लोगों में इसकी होड़ रहती है। इस वर्ष दिसम्बर माह में भी यह खास स्थिति पांच रविवार, पांच सोमवार व पांच मंगलवारों के होने से आई है। इसके बारे में कहा जाता है कि ऐसा 823 वर्षो में एक बार होता है। यानी ऐसा दिसम्बर माह जिसमें पांच रवि, सोम व मंगलवार आएंगे, वह 823 वर्ष पूर्व वर्ष 1190 में और आगे वर्ष 2836 में आएगा। गौरतलब है कि 31 दिन के सभी महीनों में तीन वारों के पांच सप्ताह होते हैं। इस वर्ष जनवरी में पांच मंगल, बुध व बृहस्पति, मार्च में पांच शुक्र, शनि व रविवार, मई में पांच बुध, गुरु व शुक्र, जुलाई में पांच सोम, मंगल व बुध, अगस्त में पांच गुरु, शुक्र व शनि और अक्टूबर में पांच मंगल, बुध व गुरुवार आए, मगर किसी एक माह विशेष में समान वारों के पांच सप्ताह होने की स्थिति हमेशा 823 वर्षो में ही आती है। 

सोमवार, 18 नवंबर 2013

स्थापना दिवस पर नैनीताल को कुदरत से मिला ‘विंटर लाइन’ का अनूठा तोहफा

नवीन जोशी, नैनीताल। इधर सरोवरनगरी वासी सोमवार को अपनी प्रिय नगरी का 172वां स्थापना दिवस मना रहे थे। उधर कुदरत ‘प्रकृति का स्वर्ग’ कही जाने वाली नगरी को चुपके से ऐसा तोहफा दे गई, जिसे प्रकृति प्रेमी ‘विंटर लाइन’ कहते हैं। कुदरत की इस अनूठी नेमत ‘विंटर लाइन’ के बारे में कहा जाता है कि यह दुनिया में केवल स्विटजरलैंड की बॉन वैली और मसूरी के लाल टिब्बा से ही नजर आती है। नैनीताल से भी यह वर्षो से नजर आती है लेकिन अब तक इसे नगर व प्रदेश के पर्यटन कैलेंडर और पर्यटन व्यवसायियों से मान्यता नहीं मिल पाई है। प्रकृति प्रेमियों के अनुसार ‘विंटर लाइन’ की स्थिति सर्दियों में मैदानों में कोहरा छाने और ऊपर से सूर्य की रोशनी पड़ने के परिणामस्वरूप शाम ढलते सैकड़ों किमी लंबी सुर्ख लाल व गुलाबी रंग की रेखा के रूप में नजर आती है। नैनीताल में इसका सबसे शानदार नजारा हनुमानगढ़ी क्षेत्र से लिया जा सकता है लेकिन नगर के चिड़ियाघर क्षेत्र से भी इसे देखा जा सकता है। सुबह सूर्योदय से पूर्व भी इसे हल्के स्वरूप में देखा जा सकता है। उल्लेखनीय है कि हनुमानगढ़ी से सूर्यास्त के भी अनूठे नजारे देखने को मिलते हैं। प्रकृति प्रेमी बताते हैं कि इस दौरान डूबते हुए सूर्य में कभी घड़ा तो कभी सुराही जैसे अनेक आकार प्रतिबिंबित होते हैं। पूर्व में इन्हें देखने के लिये यहां बकायदा व्यू प्वाइंट स्थापित थे, जो बीते वर्षो में हटा दिये गये हैं।

नेपाली फिल्म ‘विरासत’ में भी दिखती है नैनीताल की विंटर लाइन

नैनीताल। देश-प्रदेश के पर्यटन विभाग और पर्यटन व्यवसायी भले विंटरलाइन की खूबसूरती का नगर के पर्यटन उद्योग को बढ़ाने में उपयोग न कर रहे हों लेकिन गत वर्ष नगर में इन्हीं दिनों फिल्माई गई नेपाली फिल्मों के निर्देशक गोविंद गौतम की नायक समर थापा व नायिका सोनिया खड़का अभिनीत फिल्म विरासत में नैनीताल की विंटरलाइन को फिल्माया गया है। इस फिल्म के एक गीत में नायकनाियका के बीच हनुमानगढ़ी के पास विंटर लाइन को दिखाते हुए प्रणय दृश्य फिल्माए गए हैं।

शनिवार, 9 नवंबर 2013

‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ में कत्ती टपकी, काँयी चटैक छन और काँयीं फचैक: डॉ. प्रभा


'नवेंदु'क ‘उघड़ी आखोंक स्वींण’ कवितानै्कि पुन्तुरि नै पुर गढ़व छ, जमैं भाव और विचारना्क मोत्यूंल गछींण कतुकै किस्मैकि रंग-बिरंग मा्व भरी छन। यौ कविता संग्रह में समसामयिक विषयन पर कटाक्षै नै प्रतीक और बिम्ब लै छन। कत्ती-कत्ती दर्शन लै देखीं जाँ। उनरि ‘लौ’, ‘पत्त नै’, ‘रींड़’, ‘असल दगड़ू’ कविता यैक भल उदाहरण छन। जाँ एक तरप नवेंदु ज्यूल ‘दुंङ’, ‘तिनाड़’ जा्स प्राकृतिक उपादानूँ कैं कविताक विषय बणै राखौ, वायीं दुहरि उज्याणि ‘हू आर यू’, ‘कुन्ब’, ‘किलै’, ‘तरक्की’, ‘हरै गो पिरमू’, ‘भ्यार द्यो ला्ग रौ हो’, ‘मैंस अर जनावर, ‘अगर’, ‘परदेस जै बेर’ जसि कवितान में मैंसना्क मनोविज्ञान लै उघाड राखौ। एतुकै नै, एक पढ़ी-लेखी दिमागदार मैंसा्क चा्रि, उ लै समानताक लिजी महिला सशक्तिकरण के जरूरी मा्ननीं। तबै त उँ ‘तु पलटिये जरूर’ कैबेर, च्येलि-स्यैंणिया्ँक मन बै गुण्ड, लोफरनौ्क डर निकाउनै्कि बात कूँनीं और उनुकैं अघिल बढ़नौ्क बा्ट बतैबेर उनुधौं आ्पण तराण पछ्याणन हूँ कूँनीं- ‘‘तु जे लै पैरि/ला्गली बा्ट/घर बै/घर बै इ/ला्गि जा्ल गुण्ड/त्या्र पछिल....बस त्या्र पलटण तलक/और मैकैं फर विश्वास छु/तब त्वे में देख्येलि/उनुकैं झाँसिकि रा्णि/का्इ माता।’’
यमैं क्वे शक न्हैती कि प्रकृति होओ या हमरि जिन्दगि, रिश्त-ना्त होओ या खा्ण-पिण, संतुलन सब जा्ग जरूरी हूँ। जब-जब घर भितेर या भ्यार संतुलन बिगडूँ तब-तब हमौ्र पर्यावरण खराब हूँ, घर-परवार और समाजै्कि व्यवस्था लै गजबजी जैं। ‘जड़ उपा्ड़’ में उ कूँनीं-

‘‘जब बिगड़ि जाँ/मणीं म्यस/पाँणि लै/डाव बणिं/टोणि द्यूं/डा्वन कैं/खपो्रि/लगै द्यूँ/छा्ल घाम/घाम सुकै द्यू/पात पतेल कि/हुत्तै बोट कैं।’’
यौ साचि छ कि संसार कैं देखणौ्क सबनौ्क आ्पण-आ्पण ढंङ हूँ, पर ज्यूँन रूँणा्क लिजी उमींदैकि सबुन कैं जरूरत हैं। अगर मैंस कैं ‘उमींद’ नि होओ, त उ आपणि भितेर लिई साँस कैं भ्यार निकाउँण में लै डरन। उ भलीभाँ जा्णूँ कि अन्यारा्क बाद रोज उज्याव हूँ और जुन्या्लि राता्क बाद अमूँस जरूर ऐं, तबै त उकैं आ्स ला्ग रै अमूँसा्क बाद ज्यूँनिकि-
‘रङिल पिछौड़ में/आँचवा मुणि छो्पि/रङिल करि दये्लि/फिरि आङ ला्गि/अङवाल भरि/उज्या्यि करि दये्लि-ज्यूँनि।’’
जब लै कैकै मनम पीड़ हैं, त वीक आँखन बै आँसु च्वी जानीं और जब कभैं उ जसिक-तसिक आ्पण आँसुन कैं पि लै ल्यूँ, तब लै उ मनैमन डाड़ हालनै रूं। जसिक द्यौक पाणि धारती कैं नवै-ध्वेबेर वीक धाूल-मा्ट सब साप करि द्यूँ और उ हरिपट्ट देखींण फैजै, अगास में ला्गी बादव जब बरसि जानी त उ लै हल्क हैबेर इत्थै-उत्थै उड़ि जा्नीं। उसिकै जब मना्क अगास में उदेखा्क बादव ला्ग जानीं, तब आँख बै आँसु बरसिबेर वीक मन कै कल्ल पाड़नीं। पर, नवेंदु ज्युँक बिचार एहै अलग छन, तबै त उँ ‘डाड़ मारणैल’ कविता में कूँनी-
‘कि हुं/डाड मारणैल/जि छु हुणीं/उ त ह्वलै/के कम जै कि ह्वल, और लै सकर है सकूँ/फिर डाड़ किलै/फिर आँस का्स/फिर लै/जि ऊँणई आँ्स त/समा्इबेर धारि ल्हिओ/कबखतै-कत्ती/हँसि आ्लि अत्ती/काम आ्ल।’’
‘आँखर’ उनरि एक प्रयोगात्मक कविता छ। यौ छ, कम आँखरन में ज्यादे कूँणी। नान्तिनन कै भल लागणी, नान्छना्कि नर लगूणा और ‘घुघूती, बासूतिकि......फा्म दिलूणी जसि-
‘‘भै जा भि मै/के खै ले/यौ दै खा/ए-द्वि ‘पु’ लै खा/ ‘छाँ’ पि/‘घ्यू’ लै खा/धौकै खा।’’
‘आदिम’ कै पढ़िबेर उर्दू गजल कै पढ़नि जसि मिठी-मिठि लागै-
‘‘उँच महल में आदिम, कतुक ना्न जस ला्गू/कतुक लै लम्ब हो भलै, बा्न जस लागूँ।’’
‘काँ है रै दौड़’ में उनूंल आजा्क समाजैकि भभरियोयिक जो का्थ लेख राखी उकैं पढ़बेर लागूँ मैंस कैं भगवानै्ल एतुक दिमाग दि रा्खौ, पै लै उ संसारा्क भूड़पना ओझी किलै रौ, जो सिद्द-साद्द बाट छन उनूमें किलै नि हिटन? जब सबूकै संसार गाड़ाक वार बै पारै जाण छ, तब मैसूंल यौ भजाभाज किलै लगै रा्खी? अगर मैस दुहा्रनै्कि टाङ खैचण है भल आपुकै समावण में ला्ग जाओ, त वीक मनौ्क आधू असन्तोष त उसिकै दूर है जा्ल-
‘‘सब भाजणई-पड़ि रै भजाभाज/निकइ रौ गाज/करण में छन सिंटोई-सिंगार/अगी रौ भितेर भ्यार।’’
उसिक त टो्लि-बोलि मारणीं मैंस कैकैं भल नि ला्गन, पै साहित्य में सिद्दी बात है भलि उ बात ला्गैं जो घुमै-फिरैबेर कई जैं। सिद्दी बात उतुक असर नि करनि, जतुक बो्लिकि मार करैं। सैद येकै वील साहित्यकारन कैं व्यंग्यात्मक शैली में लेखण अत्ती भल ला्गूँ। यौ मामुल में ‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ में कत्ती टपकी, काँयी चटैक छन और काँयीं फचैक। ‘ब्रह्मा ज्यूकि चिन्त’, ‘तु कूंछी’, ‘को छा हम’, ‘अच्याना्क मैंस’, ‘झन पिए शराब’, ‘न मर गुण्ड’, ‘फरक’, ‘खबरदार’, ‘पनर अगस्ता्क दिन’ जसि कविता, का्नना्क बीच में खिली फूलनै्कि जसि औरी भलि देखींनी-
‘‘आज छि छुट्टी/करौ मैंल ऐराम/सेइ रयूँ दिनमान भरि/लगा टीबी/क्वे पिक्चर नि उणै्छी/बजा रेडू/कैं फिल्मी गीत न उणाछी/सब ठौर उणाछी भाषण/द्यखण पणीं-सुणन पणीं/सुण्यौ, भारत माताकि जैक ना्र/करीब सात म्हैंण पछां/पैल फ्या्र/छब्बीस जनवरिक पछां।’’
ज्यून रूँणा्क लिजी जतुक जरूरी हूँ आङ में खून, उतुकै जरूरी छ पा्णि लै। दुणियाँक लिजी जतुक जरूरी छ दिन उतुकै रात लै, पराण्कि लिजी जतुक जरूरी हूँ ऐराम, उहै नै कम नै ज्यादे, जरूरी हूँ काम लै। मैंसै्कि ज्यूँनि में पिरेम भावैकि उई जा्ग छ, जो रेगिस्तान में पा्णिकि और ह्यू में घामै्कि। इज-बा्ब, भै-बै्णि, दगडू-सुवा सबूक परेम आ्पण-आ्पण जा्ग उतुकै जरूरी छ, जतुक साग में लूँण और खीर में चिनि। जब मैंस ज्वान हुण ला्गूँ, वीक नान्छना्क स्वींण लै बुरूँसा्क फूलूँक चा्रि खितखिताट करण फै जा्नीं। नान्छना आ्मैकि रा्ज-रा्णिक का्थै्कि रा्जै्कि च्येलि, ‘किरन परि’ बणि वीक मनम कुतका्इ लगूँण ला्गैं और उ करण ला्गूँ ‘स्वींणौ्क क्वीड़’
जापानिक ‘हाइकू’ हिन्दी में'इ नै, अब कुमाउँनी में लै खूब देखींण-सुणींण फै ग्यीं। अगर म्ये्रि जानकारि सई छ, त कुमाउँनी में हाइकू लेखणै्कि शुरूआत सबुहै पैली ज्ञान पंत ज्यूल अस्सीक दशक में करि हा्ल छी, पछा उनरि किताब ‘कणिक’ नामैल छापिणीं। हाइकू लेखणौ्क प्रयोग नवेंदु ज्यूल लै करि रा्खौ-
‘‘बंण बै बाग/शहर बै मैस्यिोलि/हरै ग्ये आज।’’
आखिर में, मैं नवेंदु कैं उनरि रचनात्मक समाजसेवा क लिजी बधाई दिनूँ। ‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ उना्र देखी स्यूँणा कैं पुर करैलि, यौ संग्रह में नवीन जोशि ज्यूल आ्पणि कवितान कैं एकबट्या रा्खौ। मकैं पुर विश्वास छ, उघड़ी आखूँक स्वींण पढ़नियाँकैं नवेंदुकि ज्यूनि, जुन्या्लि रात जसि अङाव हा्लड़ी ला्गलि।
 डॉ. प्रभा पंत,  
एसो. प्रोफेसर, हिन्दी, एम.बी.रा.स्ना.महाविद्यालय,  हल्द्वानी
(कविता संग्रह ‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ की भूमिका से उद्धृत)                                                               

गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

जनभाषा की कसौटी पर खरी उतरती है ‘नवेंदु’ की कविता


दोस्तो, मेरे पहले कुमाउनी कविता संग्रह ‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ पर आप सुधी पाठकों की बेहद उत्साहजनक प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। अनेक साहित्य प्रेमियों ने पुस्तक की प्रतियां चाही हैं। निजी व्यस्तताओं की वजह से सभी को समय पर प्रतियां भेजना संभव नहीं हो पा रहा है, आशा है अन्यथा नहीं लेंगे। वैसे पुस्तक नैनीताल के मल्लीताल-कंसल बुक डिपो, माल रोड के नारायन्स बुक शॉप और तल्लीताल में सांई बुक डिपो पर उपलब्ध करा दी गई हैं। यहां से भी पुस्तक प्राप्त की जा सकती है। 
: नवीन जोशी ‘नवेंदु’

दामोदर जोशी ‘देवांशु’

पुस्तक पर कुमाउनी के वरिष्ठ साहित्यकार, संपादक दामोदर जोशी ‘देवांशु’ की ओर से शुभकांक्षा के दो शब्द 

‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ नवीन जोशी ‘नवेंदु’ द्वारा आचंलिक भाषा कुमाउनी में लिखा गया काव्य संकलन है। यह कवि का प्रथम कुमाउनी कविता संग्रह है। जो उसके एक स्वप्न की परिणति है। इससे पूर्व कवि की रचनाएँ छिटफट रूप में पत्र-पत्रिकाओं सहित डॉडा कॉठा स्वर ;काव्य संग्रह, ऑखर तथा दुदबोलि आदि में प्रकाशित होकर कुमाउनी साहित्य की थाती बन चुकी हैं।
कवि ‘नवेंदु’ ने स्वयं संघर्षमय अतीत देखा है। जीवन की जटिलताओं-विषमताओं और विद्रूपताओं से वे स्वयं दो-चार होकर आगे बढ़े हैं। भाषा प्रेम बचपन से रहा। आंचलिक भाषा को अपने उद्गम में ही उपेक्षित होते हुए देखा। जब पहाड़ी बोलने वालों को लोग ‘गंवार’ तक कह देने में नहीं चूकते थे। ऐसी विपरीत परिस्थिति में भी कवि ने माता-पिता और समाज रूपी पाठशाला से कुमाउनी भाषा रूपी अमृत को अपने मन के कलश में भर लिया और उसे ही जन कल्याणार्थ व भाषा विकासार्थ लेखनी द्वारा अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया।
उघड़ी आंखोंक स्वींण’ से तात्पर्य आंखों देखा यथार्थ है। कवि वास्तविकता के धारातल पर विश्वास करता है अतः उसकी कविता में कल्पना की उड़ान नहीं है। फूहड़ हास्य, अतिशयोक्तिपूर्ण अथवा अतिरंजित वर्णनों द्वारा वह वाहवाही नहीं लूटना चाहता। श्रृंगारिक दृश्यों के चित्रण से भी उसको ज्यादा लगाव नहीं है। शब्दों का ढकोसला उसे प्रिय नहीं। अतः उसकी कविता का प्रत्येक शब्द विस्तार लेने की क्षमता रखता है। वह आदर्श का नहीं यथार्थ का पक्षपाती है, और शाश्वत मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध है। सत-असत की विवेचना किये बिना वह भावना के ज्वार में बहने वाला नहीं है। उसकी भाषा जनभाषा की कसौटी पर खरी उतरती है और जन-जन की समस्याओं को प्रतिबिम्बित करती है। स्पष्ट है उसमें जनभाषा की सहजता, स्वाभाविकता, अल्हड़पन और अनगढ़ता विद्यमान है। 
कवि मानव के द्वारा खुली आंखों से देखे गये स्वप्न को साकार होना देखना चाहता है। इसके लिए वह दृढ़ संकल्प शक्ति, कठोर परिश्रम और अध्यवसाय को ब्रह्मास्त्र के रूप में प्रयोग करने की युक्ति बताता है। कवि की कविता में आमजन की व्यथा मुखरित होती है जो कवि को जनकवि होने के अभिधान के निकट ला खड़ा करती है। उसकी कविता बायवी न होकर जाग्रत और उतिष्ठित जीवन का सन्देश देती है।
कवि का मानना है कि आज आदमी कहीं खो गया है। इतनी भीड़ में भी वह पहचाना नहीं जा रहा। यहाँ वह नहीं उसकी छाया चल रही है। हिन्दू चल रहा है, मुसलमान चल रहा है, सिक्ख और ईसाई आदि रूपों में उसकी पहचान है। कबीर और गांधाी कहीं दृश्यमान नहीं हो रहे हैं। नवेंदु का संग्रह मनुष्य को मनुष्य बनने का सन्देश देता है। वस्तुतः कविता संग्रह चरम शिखर पर पहुँच गये भ्रष्टाचार, कदाचार प्रदूषण, क्षेत्रवाद और आतंकवाद आदि के विरुद्ध शंखनाद है। कवि आशान्वित है कि यह भेदभाव और जड़ता का कोहरा जल्दी हट छंट जायेगा। सद्बुद्धि का सबेरा जल्दी प्रकट होकर मानव के मोह व स्वार्थ के संसार को अपनी किरणों की तलवार से छिन्न-भिन्न कर देगा। भारत का गौरव फनः लौट आयेगा। भाषा के साथ विलुप्त हो रही अपनी संस्कृति भी फनः फूलने-फलने लगेगी।
नवीन जोशी ‘नवेंदु’ अपनी माटी से जुड़े युवा व उत्साही साहित्यकार हैं। उनकी रचनाओं में मानवीय संवेदनाओं का असली स्वर छिपा है। समाज की पहचान छिपी है और छिपी है गरीब, बेरोजगार, भ्रमित, श्रमित वर्ग की पीड़ा की प्रतिध्वनि। साहित्य के नव हस्ताक्षरों के लिए उनका रचना संसार एक दृष्टान्त है। उनकी प्रतिभा सतत् विकसित होती रहे और उनका भविष्य उज्ज्वल हो। इसी शुभकामना के साथ !

                      -दामोदर जोशी ‘देवांशु’ सम्पादक-गद्यांजलि 
(पूर्व प्रधानाचार्य)

रविवार, 27 अक्तूबर 2013

कुमाउनी का पहला PDF फॉर्मेट में भी उपलब्ध कविता संग्रह "उघड़ी आंखोंक स्वींण"


दोस्तो, मेरे पहले कुमाउनी  कविता संग्रह "उघड़ी आंखोंक स्वींण" का विमोचन गत 24 अक्टूबर को  नैनीताल क्लब के शैले हॉल में 'नैनीताल शरदोत्सव-2013' के तहत उत्तराखंडी कवि सम्मेलन के दौरान किया गया. 
पुस्तक नैनीताल के मल्लीताल स्थित कंसल बुक डिपो एवं माल रोड स्थित नारायंस में उपलब्ध करा दी गयी है। पुस्तक के बारे में कुमाउनी के मूर्धन्य कवि, लेखक, साहित्यकार व संपादक मथुरा दत्त मठपाल जी का आलेख साभार प्रस्तुत है। 

नवेंदु की कविता: एक नोट

कुमाउनी के युवा कवि नवीन जोशी ‘नवेंदु’ और उनकी कविता से मेरा पिछले अनेक वर्षों से परिचय रहा है। उनकी कविताओं की विषय-वस्तु का स्पान बहुत विस्तृत है, जिसमें दैनिक जीवन की साधारण वस्तुओं से लेकर गहनतम मानवीय अनुभूतियां सम्मिलित हैं। वे बिना लाग-लपेट के अपनी बात कहने में समर्थ हैं।  अनेक स्थानों पर भावों की ऊंची उड़ान भरने पर भी उनकी कविता अपनी सहजता-सरलता का त्याग नहीं करती। वे सरलतम शब्दों में मन के गहनतम भावों को प्रकट करने में समर्थ हैं। उनकी यही सामर्थ्य उन्हें अपनी उम्र से कहीं अधिक तक पेंठ करने वाले एक सशक्त रचनाकार का रूप देती है। वे कोरी लफ्फाजी नहीं करते। वरन, उन्हें जो कुछ कहना होता है, उसे वे ठोक-बजाकर, और अनेक स्थलों पर ताल ठोंक कर भी सरलतम शब्दों में पाठकों के आगे प्रस्तुत कर देते हैं।


मानवों के बीच के आपसी रिश्ते ठंडे पड़ चुके हैं, और हर इन्सान जैसे इन्हीं ठण्डे रिश्तों को अपनी नियति के रूप में स्वीकार कर दुबका हुआ है। अपने बाहर वह एक सुरक्षा खोल सा ओढ़ कर दुबका हुआ है, और इसी में वह अपनी सुरक्षा समझ रहा है।म्येसी गईं मैंस/ बारमासी / अरड़ी रिश्त-नातना्क अरड़ में/ इकलै बिराउक चार/ चुला्क गल्यूटन में लै - अरड़
मानव केवल स्वप्न बुन रहा है। करने का सामर्थ्य होते हुए भी वह एक विचित्र  प्रकार की तामसिक वृत्ति से घिरा है।

आफी बांदी खुद खोलंण, दुसरों कें चांणईं/ बिन के पकाइयै, लगड़-पुरि चांणई । - सब्बै अगाश हुं जांणईं समय बहुत बलवान है। समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है। लड़ाई भी। शत्रु पक्ष बदल जाता है, लड़ाई का कारण, उसकी तकनीक, उसका उद्देश्य सब कुछ बदल जाता है-



लड़ैं- बेई तलक छी बिदेशियों दगै / आज छु पड़ोसियों दगै / भो हुं ह्वेलि घर भितेरियों दगै। कवि के पास एक उत्कृष्ट जिजीविषा है, जिसके दर्शन हमें उसकी अनेक कविताओं में होते हैं। उसका मानना है कि घोर संकट के क्षणों में भी हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए- पर एक चीज/ जो कदिनै लै/ न निमड़णि चैनि/ जो रूंण चैं/ हमेशा जिंदि/ उ छू-उमींद/ किलै की-/ जतू सांचि छू/ रात हुंण/ उतुकै सांचि छू/ रात ब्यांण लै। - उमींद                                                     ‘सिणुक’ शीर्षक कविता में कवि एक सिणुक (तिनके) के भी अति शक्तिशाली हो सकने के तथ्य को रेखांकित करता है-  जो् कान/ सच्चाइ न सुणन/ फोड़ि सकूं/ जो आं्ख/ बरोबर न देखन/ खोचि सकूं/ जो दाड़/ भलि बात न बुलान/ उं दाड़न ल्वयै सकूं।                                                           मानवीय सामर्थ्य के बौनेपन का अहसास कराने वाली कविता ‘ज्यूंनि’, जिसमें गजल की रवानी है-मुझे बहुत अच्छी लगी-कूंणा्क तैं ज्यूनि, ज्यूं हर आदिम।/ सांचि कौ कूंछा-ज्यूनि बोकण जस लागूं/ उ ठेठर जो डाड़ मारि बेर सबूं कैं हंसूं / म्या्र आंखा्क पांणि में वी आदिम जस लागूं।
समाज का एक बड़ा वर्ग सर्वहारा वर्ग का है। वह एक तिनके की तरह कमजोर-निरीह-अल्पसंतोषी, आत्मसंतोषी है-


तिनाड़न कैं कि चैं ?/ के खास धर्ति नैं/ के खास अगास नैं/ के मिलौ/ नि मिलौ/ उं रूनीं ज्यून/ किलै, कसी ?/ बांणि पड़ि ग्येईं ज्यून रूंणा्क -तिना्ड़
‘भैम’ कविता में कवि का संदेश बहुत स्पष्ट है। दशहरे में फूंका जाने वाला रावण तो मात्र एक बहम है। फूंक सकते हो तो-
मेरि मानछा/ न बणाओ/ न भड़़्याओ मरी रावण/ जब ठुल-ठुल रावण छन जिन्द दुनी में/ करि सकछा/ उनन कें धरो चौबटी में/ उनूं कैं भड़्याओ/ खाल्लि/ भैम  भड़्यै बेर कि फैद ?
मनुष्य को मुंह तो खोलना ही होगा। आपाधापी और अनिश्चितता की आज की परिस्थितियों में यह और भी अध्कि आवश्यक हो चला है। ‘कओ’ कविता में कवि आह्वाहन करता है-
कओ,/ जोर-जोरैल कओ/ जि लै कूंण छू/ पुर मनचितैल कओ/ तुमि चुप न रओ/ निडर-निझरक है बेर/ अपण-पर्या भुलि बेर/ पुर जोरैल/ हकाहाक करो। 
आशा का स्वर- 
ह्वल उज्या्व, अर ए दिन जरूड़ै ह्वल/ मिं जानूं-तैसि न सकीणी क्वे रातै न्हें -हमा्र गौं में
‘उघड़ी आंखोंक स्वींण’ कविता, जिस पर इस काव्य संकलन को नाम दिया गया है, आशावाद की एक श्रेष्ठ कविता है, इसकी एक अन्तिका देखैं-
छजूणईं ईजा्क थान कैं/ बाबुक पूर्व जनमा्क दान कैं/ झाड़णईं झाड़/ छांटणईं गर्द/ समावणईं पुरुखनैकि था्ति/ चढ़ूणईं फूल-पाति/ दिणईं आपणि बइ/ हरण हुं दुसरोंकि टीस-पीड़/ राता्क धुप्प अन्या्र में/ मिं लै देखणयूं-उघड़ी आंखोंक स्वींण।
जीवन क्या है ? विषम परिस्थितियों में भी जी जाना ही तो-
चिफा्व सिमार बा्ट में लै, दौड़ छु ज्यूनि - ज्यूनि
फिरि लै-/ जि ऊंणईं आं्स त/ समा्इ बेर धरि ल्हिओ/ कभतै कत्ती/ हंसि आली अत्ती/ काम आल - डाड़ मारणैल
कवि ने छन्द-मुक्त कविता, गीत, गजल, क्षणिकायें, हाइकू आदि विविध रचना -शैलियों पर सार्थक रूप से अपनी लेखनी चलाई है। अनेक स्थलों पर बिम्बों और प्रतीकों का सहारा लिया है। अनेक अलंकार कवि की रचना में स्वतः आ गए हैं। कवि के पास एक समृद्ध कुमाउनी भाषा है। निम्न शब्द प्रचलन से हटते जा रहे हैं- 
गल्यूट, घ्यामड़, उदंकार, असक, एकमही, अद्बिथर, कट्ठर, कुमर, भुड़, पांजव जैसे ठेठ ग्रामीण कुमाउनी शब्दों का व्यापक और सही स्थान पर प्रयोग हुआ है। अनेक स्थलों पर मुहावरों, लोकोक्तियों का सटीक प्रयोग हुआ है, यथा-किरमोई बर्यात, गुईं जिबा्ड़, ब्याखुलिक स्योव, चोर मार, मरी पितर भात खवै, सतझड़ि करण, आंखन जाव लागण आदि। 
नवेंदु जी को अपनी तरुणावस्था तक अपने बाल्यकाल में नैनी-चौगर्खा (जागेश्वर) क्षेत्र के ग्रामीण परिवेश में रहने का अवसर मिला है। किसी भी भाषा को सीखने के लिए यही सर्वोत्तम आयु होती है। आगे चल कर कपकोट के बाहर भी उनको कुमाउनी परिवेश मिला। उनकी समृद्ध कुमाउनी का यही रहस्य है, जोआज की युवा पीढ़ी में कम ही दिखाई दे रहा है। पिफर घर के भीतर उन्हें अपने रचनाकार पिता का सानिध्य मिलता रहा, जिससे रचनाशीलता के लिए ललक और सामर्थ्य का निरन्तर विकास होता चला गया। उनके पिता श्री दामोदर जोशी ‘देवांशु’ हिंदी और कुमाउनी के एक सशक्त रचनाकार/ कवि हैं। स्वयं के लेखन और प्रकाशन के अतिरिक्त उन्होंन कुमाउनी रचनाधर्मियों के एकांकी, निबंध, कहानी आदि संग्रहों का समय-समय पर सम्पादन/प्रकाशन और कुमाउनी भाषा को आगे बढ़ाने में भारी सहायता की है। मेरी तो यही कामना है है कि नवेंदु जी साहित्य के क्षेत्र में अपने यशस्वी पिता से कहीं आगे निकलें, क्योंकि ‘पुत्रात शिष्यात् पराजयमम्’-यानी पुत्र और शिष्य से तो पराजय की ही कामना करनी चाहिए। अलमतिविस्तरेण। 


 -मथुरा दत्त मठपाल
महाशिवरात्रि पर्व,   सम्पादक-दुदबोलि (कुमाउनी वार्षिक पत्रिका)
10 मार्च 2013 ई.    पम्पापुर, रामनगर, नैनीताल जनपद।


प्रस्तुत कविता संग्रह में प्रदेश की लोक संस्कृति, सामाजिक सरोकारों, जीवन दर्शन, राजनीतिक प्रदूषण के साथ ही प्राकृतिक बिंबों को प्रदर्शित करती एवं वर्तमान हालातों की विषमताओं व विद्रूपताओं के बावजूद सकारात्मक सोच से आगे बढ़ने का संदेश देने वाली 114 कुमाउनीं कविताएं संग्रहीत हैं। इनमें तुकांत, लयबद्ध, गीत, गजल एवं आधुनिक जापानी हाइकू शैली की कविताएं भी शामिल हैं। दैनिक जीवन के बहुत छोटे तिनाड़ (तिनके), ढुड. (पत्थर), चिनांड़ (चिन्ह), सिंड़ुक (सींक), म्यर कुड़ (मेरा घर), अरड़ (ठंडा), रींड़ (ऋण) बुड़ बोट (बूढ़ा पेड़), बा्टक कुड़ (रास्ते का घर) व गाड़िकि रोड जैसे बिंबों के साथ ही राजअनीति, पहाड़ाक हाड़, इतिहास, पछ्याण (पहचान), बखत (समय), ज्यूनि अर मौत (जिंदगी और मौत), पनर अगस्ता्क दिन तथा घुम्तून हुं (पर्यटकों से अपील), बाग ऐगो, इंटरभ्यू में, गाड़ ऐ रै, हमा्र गौं में, परदेश जै बेर व मिं रूढ़िवादी भल (मैं रूंढ़िवादी ही ठीक) जैसी कविताएं मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों विषयों पर कटाक्ष करने के साथ ही इनसे उठने वाले सवाल उठाने के साथ उनके जवाब भी देती नजर आती है। साथ ही गहरे अंधेरे के बाद अवश्यमेव उजाला होने का विश्वास भी जगाती है।

पृष्ठ संख्या: 160, कुल कवितायेँ: 114, मूल्य पुस्तक: रुपए 250, मूल्य : PDF फॉर्मेट रुपये 150। 

पुस्तक P.D.F. फोर्मेट में रूपए 150 में (S.B.I. नैनीताल के खाता संख्या 30972689284 में जमाकर) ई-मेल से भी मंगाई जा सकती है।

प्रकाशक: जगदम्बा कम्प्यूटर्स एंड ग्राफ़िक्स, हल्द्वानी (नैनीताल), उत्तराखंड। 

दोस्तो,
मेरी  चुनिन्दा कुमाउनी कवितायें मेरे ब्लॉग 'ऊंचे पहाड़ों से.… जीवन के स्वर' के लिंक को क्लिक कर के देख सकते हैं। . 

बधाइयों, शुभकामनाओं एवं आशीर्वाद के लिए सभी मित्रों / अग्रजों का धन्यवाद, आभार, सुविधा के लिए पुस्तक नैनीताल के मल्लीताल स्थित कंसल बुक डिपो एवं माल रोड स्थित नारायंस में उपलब्ध करा दी गयी है। 


संपर्क करें: 

saharanavinjoshi@gmail.com

Mobile: 9412037779, 9675155117.

गुरुवार, 4 जुलाई 2013

ताक पर नदी किनारे की मनाही, झील के मुहाने पर प्रशासन खुद ही करा रहा निर्माण !


नवीन जोशी नैनीताल। प्रदेश में आई भीषण प्राकृतिक आपदा से सचेत होते हुए जहां प्रदेश सरकार नदियों के किनारे निर्माण प्रतिबंधित कर रही है। वहीं भूगर्भीय दृष्टिकोण से कमजोर सरोवरनगरी में बेहद संवेदनशील नैनीझील के मुहाने पर स्वयं प्रशासन ही विशालकाय व भारी-भरकम "न्यू ब्रिज कम बाईपास" का निर्माण किया जा रहा है। इस निर्माण का मूल उद्देश्य नगर के प्रवेश द्वार डांठ पर स्थित रोडवेज स्टेशन को यहां स्थानांतरित कर वाहनों का बोझ कम करना था, लेकिन इधर बताया जा रहा है कि रोडवेज ने न्यू ब्रिज में अत्यधिक निर्माण जगह की कमी को देखते हुए वहां बस अड्डा स्थानांतरित करने का विचार बदल दिया है और पुराने बस अड्डे को जीर्णोद्धार कर चकाचक कर दिया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि यह निर्माण किया ही क्यों जा रहा है। 

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2005-06 में सर्वप्रथम हल्द्वानी व भवाली रोड के बीच डांठ से पहले "न्यू ब्रिज" बनाने की योजना बनी थी। उद्देश्य था-डांठ से वाहनों का दबाव कम करना। योजना के पहले चरण में नैनीझील के अतिरिक्त पानी को बाहर बलियानाले में प्रवाहित करने के लिए 1.81 करोड़ रुपये की लागत से दो बैरलों, बिल्डिंग स्ट्रक्चर तथा लैंड फिल का कार्य 2007 में पूरा होना था। विवादों में रहा यह कार्य 2009 में पूरा हो पाया। 2010-11 में दूसरे चरण में 90.12 लाख रुपये से फिनिशिंग, ब्यूटिफिकेशन व स्लैब डालने के कार्य नौ माह के अंदर होने थे। पहले ठेकेदार करीब 30 लाख रुपये के कार्य कर चला गया, और फिर न्यायालयों तक पहुंचे लंबे विवाद के बाद इधर एक अप्रैल 13 से नये ठेकेदार को 58.47 लाख में छह माह में कार्य पूरा करने को मिला है। इन दिनों कार्य के तहत विशाल स्लैब डालने का कार्य चल रहा है, जिसे देखते हुए एवं केदारघाटी में आई भीषण तबाही को देखते हुए यह सवाल जोरों से उठ रहा है कि नैनीझील के मुहाने पर इतना विशालकाय निर्माण बड़ी आपदा को निमंत्रित करना तो नहीं है। कुमाऊं विवि के पूर्व प्राध्यापक एवं पर्यावरणविद् डा. अजय रावत का कहना है कि निर्माण से पूर्व ईआईए (इन्वायरमेंट इम्पेक्ट एसेसमेंट) यानी पर्यावरणीय परीक्षण और जनता से ईआईएस (इन्वायरंमेंट इम्पेक्ट स्टेटमेंट) यानी जनता के विचार भी नहीं लिए गए। उन्होंने प्रदेश में सभी जलराशियों के 30 फीट की दूरी में पहले से निर्माण प्रतिबंधित होने की बात भी कही। इस बारे में झील विकास प्राधिकरण के सचिव विनोद गिरि गोस्वामी ने कहा कि नदी किनारे नए निर्माणों पर रोक लगने जा रही है, जबकि यह राज्य एवं केंद्र सरकार से पूर्व में स्वीकृत निर्माण है। उन्होंने यहां कियोस्क (दुकानें) बनाने के कारण रोडवेज स्टेशन और वाहनों के लिए जगह की कमी की बात स्वीकारी, अलबत्ता कहा कि स्थान हो जाएगा। पूर्व में रोडवेज के अधिकारी यहां स्टेशन स्थानांतरित करने की हामी भर चुके हैं, और अभी तक मना करने की औपचारिक जानकारी नहीं है। प्रदेश में नदियों के किनारे निर्माण प्रतिबंधित करने की हुई है घोषणा नैनी झील का अतिरिक्त पानी यहीं से निकलता है बाहर यूजीसी के वैज्ञानिक डा. बीएस कोटलिया का कहना है कि इस निर्माण की शुरूआत में पूर्व में मौजूद ढांचे को तोड़ने के लिए धमाके भी किए गए थे, जिसके फलस्वरूप दरार उत्पन्न हो गई थीं, और झील से अधिक पानी का रिसाव होने लगा था। इसके निदान को बांध की तरह "नेटिंग" करने की सलाह दी गई थी, लेकिन वह कार्य भी नहीं किए गए। 

वर्ष 1898 में हुए भूस्खलन में हुई थीं 28 मौतें

नैनीताल। बलियानाला क्षेत्र नैनीताल नगर का आधार है, और बेहद कमजोर भौगोलिक व भूगर्भीय संरचना वाला है। मेन बाउंड्री के निकट स्थित इस नाले में हमेशा से भू-धंसाव होता रहता है। प्रख्यात पर्यावरणविद् डा. अजय रावत बताते हैं कि 17 अगस्त 1898 को यहां टूटा पहाड़ के पास भूकंप के साथ बेहद बड़ा भूस्खलन हुआ था। जिसकी वजह से ब्रेवरी (बीरभट्टी) में बियर की भट्टी में कार्यरत एक अंग्रेज समेत 28 लोग मारे गए थे। वर्तमान में भी यह क्षेत्र धंस रहा है। हरिनगर क्षेत्र को खाली कराने का प्रस्ताव है। ऐसे में डा. रावत झील के मुहाने पर इतने बड़े निर्माण को नगर के लिए बेहद खतरनाक मानते हैं।

रविवार, 28 अप्रैल 2013

नगर की सत्ता से खुलता है राजधानी का रास्ता


सरिता आर्या समेत आधा दर्जन पालिकाध्यक्षों को हासिल हो चुकी है विधायकी
नवीन जोशी नैनीताल। प्रदेश में निकाय चुनाव का जो शोर और प्रत्याशियों द्वारा एड़ी- चोटी का जोर दिख रहा है, वह केवल नगरकी सत्ता के लिए ही नहीं, वरन प्रदेश की राजधानी की सत्ता की ओर भी है। क्योंकि इतिहास गवाह है कि नवसृजित राज्य में अनेकों राजनेताओं के लिए नगरों की सत्ता का रास्ता राजधानी देहरादून की मंजिल तक पहुंचा है। नैनीताल की वर्तमान विधायक सरिता आर्या समेत प्रदेश की वर्तमान विधानसभा में आधा दर्जन विधायक पालिकाओं से ही सत्ता का ककहरा सीख कर आगे बढ़े हैं। उत्तराखंड प्रदेश में पालिकाध्यक्ष की कुर्सी से राज्य की विधानसभा में जाने की शुरूआत करने का श्रेय पूर्व उक्रांद विधायक यशपाल बेनाम को जाता है, वह पौड़ी नपा के अध्यक्ष थे, और वहां के कार्यकाल की बदौलत ही आगे विधायक बनने में सफल रहे। वहीं नैनीताल की वर्तमान विधायक सरिता आर्य को ऐसी पहली महिला पालिकाध्यक्ष होने का गौरव हासिल है जो आगे चलकर विधायक बनने में सफल रहीं। उनकी विधायक के रूप में जीत का पूरा श्रेय उनके पालिकाध्यक्ष के कार्यकाल को है जाता है। वर्तमान विधानसभा में पहुंचे अन्य अध्यक्षों की कड़ी में रुड़की के विधायक प्रदीप बतरा के नाम एक साथ पालिकाध्यक्ष व विधायक रहने का रिकॉर्ड दर्ज है। वहीं गंगोत्री के पूर्व पालिकाध्यक्ष विजय पाल सिंह विधायक के बाद संसदीय सचिव बनाए गए हैं, जबकि टिहरी के पालिकाध्यक्ष रहे दिनेश धनै विधायकी के बाद गढ़वाल मंडल विकास निगम के अध्यक्ष का पदभार देख रहे हैं। रुद्रपुर के पालिकाध्यक्ष रहे राजकुमार ठुकराल रुद्रपुर के ही विधायक के रूप में वहां मौजूद हैं। वर्तमान विधानसभा में देहरादून नगर निगम के दो पार्षद-राजकुमार और उमेश शर्मा 'काऊ' भी विधायक के रूप में पहुंचे हैं। 
वहां फेल, यहां पास 
नैनीताल। राजनीति में सब कुछ संभव है। वर्तमान विधानसभा में ऋ षिकेष विधायक प्रेम चंद्र अग्रवाल और प्रतापनगर विधायक विक्रम सिंह नेगी ऐसे उदाहरण हैं, जो क्रमश: डोईवाला नगर पंचायत और प्रतापनगर पालिका से चुनाव लड़े थे, लेकिन हार गए, जबकि विस चुनाव में जीत कर देहरादून पहुंचने में सफल रहे हैं। 

रविवार, 21 अप्रैल 2013

प्रत्याशियों के साथ चुनाव चिह्नों के बीच भी चल रही जंग


"हाथ" को सबका साथ तो "फूल" को झील में खिलने की उम्मीद
नैनीताल (एसएनबी)। यूं हाथ तो सभी के पास होता है, और बिना हाथ के कोई काम नहीं चल सकता, लेकिन यहां "हाथ" सबका साथ मांग रहा है। वहीं ˜कमल का फूल" सामान्यतया कीचड़ या दलदली जगह पर खिलता है, लेकिन यहां उसे नैनी झील में खिलने की उम्मीद है। जी हां, यहां बात आम हाथ या कमल के फूल की नहीं वरन निकाय चुनाव के दौरान हर चुनाव की तरह एक बार खासकर राजनीतिक दलों की जुबान पर चढ़ने वाले चुनाव चिह्नों की ही कर रहे हैं, लेकिन एक अलग नजरिए के साथ। सरोवरनगरी की अति महत्वपूर्ण एवं अपनी स्थापना के साथ ही तत्कालीन नॉर्थ वेस्ट प्रोविंस और अब देश की दूसरी सबसे प्राचीन नगरपालिका कहे जाने वाले नगर में जब अधिकांश राजनीतिक दलों के साथ ही निर्दलीय भी निर्दलीय प्रत्याशी कम जाने- पहचाने हैं। साथ ही खासकर निर्दलीय प्रत्याशियों के समक्ष अपने साथ ही अपने चुनाव चिह्न को चुनाव की तिथि तक मतदाताओं को याद दिलाने की दोहरी समस्या है। ऐसे में उनके समर्थक अपने प्रत्याशियों के बजाए उनके चुनाव चिह्नों से ही जनता को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। मसलन कांग्रेस समर्थक "हाथ" के बिना तो वोट भी न डाले जाने की समस्या बताकर सब कुछ भूलकर "हाथ" पर ही मुहर लगाने की गुहार लगा रहे हैं, तो  भाजपा के प्रचारक नैनी झील में विकास का ˜कमल" खिलवाने के लिए मदद मांग रहे हैं। इसी तरह बाल्टी चुनाव चिह्न वाले निर्दलीय प्रत्याशी याद दिला रहे हैं कि पिछली बार वोटरों ने ˜बाल्टी" भर कर मुकेश जोशी को पालिकाध्यक्ष बनवाया था। लिहाजा इस बार बाल्टी वोटों से भर दें। गुड़िया चुनाव चिह्न के प्रत्याशी समर्थकों को दिल्ली की घटना के बाद बिना किए ही प्रचार मिलने का भरोसा बन रहा है। अन्य निर्दलीय प्रत्याशी अपने स्वयं को जमीन से जुड़ा बताते हुए मिट्टी की बनी ˜ईट" से पालिका में विकास की नींव रखने की बात कर रहे हैं, तो अन्य पालिका में ˜मोमबत्ती" जलाकर रोशनी करने की उम्मीद कर रहे हैं। कप-प्लेट, केतली, बंगला व वायुयान जैसे चुनाव चिह्नों वाले प्रत्याशियों के पास अपने-अपने समझाने के तरीके हैं। निर्दलीय चुनाव लड़ने के बावजूद चुनाव चिह्नों से प्रत्याशियों के संबंध जुड़ जाने के प्रसंग हैं। एक प्रत्याशी पिछले निकाय चुनाव में बंगला चुनाव चिह्न के साथ चुनाव जीते थे, इस बार उनके साथ ही उनकी पत्नी भी दूसरे वार्ड से सभासद प्रत्याशी के लिए चुनाव मैदान में है, और दोनों के चुनाव चिह्न बंगला ही हैं। इसी तरह अन्य भी अनेक प्रत्याशी हैं, जिन्होंने पिछली बार चुनाव जीतने पर पुराने चिन्ह ही हासिल किए हैं, जबकि हारने वालों ने चुनाव चिह्न भी बदल डाले हैं। वहीं विरोधी प्रत्याशियों के चुनाव चिह्नों को लेकर दुष्प्रचार की कमी नहीं है। कोई दूसरे की मोमबत्ती बुझाने अथवा प्रत्याशी के सिर पर ही नारियल या ईट फोड़ने पर उतारू है तो अन्य को विरोधी की बाल्टी में छेद भी खूब नजर आ रहे हैं। बहरहाल, इस तरह सामान्यतया अब तक नीरस चल रहा चुनाव प्रचार थोड़ा-बहुत रोचक जरूर हो गया है। 

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

शोमैन को अखरा "थमा" सा पहाड़


  • राज्य का ध्यान "डेवलपमेंट" से अधिक "डील्स" पर 
  • सात वर्षो से "पॉज" की स्थिति में खड़ा है उत्तराखंड 
  • कहा- शौक को प्रोफेशन बनाएं युवा

नवीन जोशी नैनीताल। हिंदी फिल्म उद्योग के "शोमैन" सुभाष घई उत्तराखंड की सुंदरता में कसीदे पढ़ते हैं, लेकिन वह प्रदेश की व्यवस्थाओं से बेहद नाखुश हैं। सात वर्षो के बाद प्रदेश में लौटे घई कहते हैं कि उत्तराखंड इस अवधि में "पॉज" की स्थिति में (यानी जहां का तहां) खड़ा है ! वह कहते हैं कि फिल्में किसी भी राज्य की खूबसूरती को दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करने और उसकी आर्थिकी, रोजगार व पर्यटन को बढ़ाने का बड़ा माध्यम हैं। इसलिए अनेक राज्य व अनेक देश फिल्मकारों को रियायतों की पेशकश करते हैं, लेकिन लगता है कि उत्तराखंड का ध्यान "डेवलपमेंट" से अधिक "डील्स" पर है। यहां शूटिंग महंगी पड़ती है। उत्तराखंड की सुंदरता, शांति उन्हें यहां खींच लाती है। 
श्री घई निजी हेलीकॉप्टर से अपनी फिल्म "कांची" के लिए लोकेशन तय करने यहां पहुंचे। इस दौरान नगर के एक होटल में वह मीडियाकर्मियों से वार्ता कर रहे थे। उन्होंने मीडियाकर्मियों से ही प्रश्न किया, "मैं सात वर्ष पूर्व (2005 में फिल्म किसना की शूटिंग के लिए) उत्तराखंड आया था, तब से उत्तराखंड को "प्रमोट करने" के लिए क्या किया गया है?", फिर स्वयं ही उन्होंने उत्तर भी दे डाला। कहा, कुछ नहीं किया, लगता है राज्य सात वर्षो से "पॉज" पर खड़ा है। उन्होंने कहा कि फिल्में "प्रमोशन" का बड़ा माध्यम होती हैं। स्विट्जरलैंड, फिजी, मैक्सिको सहित अनेक देश व मेघालय, नागालैंड सरीखे राज्य फिल्मकारों को अपने यहां शूटिंग करने पर 40 फीसद तक अनुदान के प्रस्ताव देने आते हैं। उत्तराखंड से ऐसी पेशकश नहीं होती। प्रदेश को फिल्मों की शूटिंग को बढ़ावा देने के लिए होटल, यातायात, संचार सुविधाएं बढ़ानी चाहिए। फिल्मों के लिए "विशेष सेल" की स्थापना की जा सकती है। उन्होंने कहा कि कांची फिल्म में वह स्थानीय प्रतिभाओं को मौका देंगे। युवाओं को उन्होंने संदेश दिया, अपने पैशन को प्रोफेशन बनाएं, तभी अपेक्षित प्रगति कर पाएंगे।

मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

भाई के लिए दो भाई हटे चुनाव मैदान से


नवीन जोशी नैनीताल। यों सियासत और जंग में कोई किसी के लिए कुर्बानी नहीं देता, लेकिन कुमाऊं मंडल एवं जनपद मुख्यालय की नगर पालिका नैनीताल में दो भाइयों ने अपने भाइयों की जीत के लिए अपनी दावेदारी वापस लेकर मिसाल पेश की है। नाम वापसी के आखिरी दिन अध्यक्ष पद के एक एवं सभासद पद के दो निर्दलीय प्रत्याशियों चुनावी समर से वापस लौट आए। इसके बाद पालिकाध्यक्ष के प्रतिष्ठित पद पर 13 एवं 13 वार्डों के एक-एक यानी कुल 13 सभासद पदों के लिए 86 प्रत्याशी मैदान में शेष रह गए हैं। 
उल्लेखनीय है कि अध्यक्ष पद पर कांग्रेस से टिकट के प्रमुख दावेदार राजेंद्र व्यास और उनके भाई अरविंद व्यास ने नामांकन कराया था। राजेंद्र कांग्रेस पार्टी से सशक्त प्रत्याशी थे, लेकिन अपनी पार्टी की लंबी सेवाओं और अपने जनाधार को देखते हुए वह चुनाव मैदान में उतर आए। उधर, उन्हीं के छोटे भाई अरविंद व्यास निर्दलीय चुनाव मैदान में कूद पड़े थे। उन्हें उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी का समर्थन प्राप्त था। एक घर में एक साथ रहने और कमजोर आर्थिक स्थिति के साथ दोनों ही भाइयों ने नामांकन के लिए अपनी मां से तीन-तीन हजार रुपये लेकर नामांकन कराया था लेकिन नामांकन वापसी के आखिरी क्षणों में अरविंद ने राजेंद्र को पूरे जोश से चुनाव लड़ाने के लिए अपना नामांकन पत्र वापस ले लिया। इसी तरह भाजपा प्रत्याशी संजय कुमार "संजू" की अध्यक्ष पद पर जीत सुनिश्चित करने की कोशिश में स्नोव्यू से सभासद का चुनाव लड़ रहे अक्षय कुमार ने नाम वापस ले लिया। संजू के चुनाव में हमेशा ही उनका चुनाव प्रबंधन देखने वाले अक्षय कुमार का कहना है कि वह अपने वार्ड में चुनाव लड़ने और जीतने के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थे, उनकी तैयारी लंबे समय से चल रही थी। लेकिन आखिरी क्षणों में संजू को भाजपा से टिकट मिलने पर उन्होंने बड़े भाई को चुनाव जिताने के लिए स्वयं चुनाव न लड़ने का फैसला लिया, ताकि ऊर्जा दो की जगह एक जगह ही लगाई जा सके। इधर वार्ड 12 कृष्णापुर से पंकज आर्य ने भी पर्चा वापस ले लिया। 

रविवार, 14 अप्रैल 2013

कम ही दिखा "आधी दुनिया˜ का जोर


नवीन जोशी, नैनीताल। जनपद में जहां विधानसभा चुनावों के बाद दो मंत्रियों व एक विधायक के साथ ही डीएम, कमिश्नर (अभी हाल में स्थानांतरण से पूर्व), जिला पंचायत अध्यक्ष एवं दो ब्लाक प्रमुखों के साथ ˜आधी दुनिया" कही जाने वाली महिलाओं का पूरा ˜दम" नजर आता रहा है, वहीं जनपद की सबसे महत्वपूर्ण नैनीताल नगर पालिका में महिलाओं का यही दम फूलता सा नजर आ रहा है। यहां महिलाओं हेतु आरक्षित वार्डों  में अपेक्षा से कम ही प्रत्याशी मैदान में हैं, वहीं अध्यक्ष सहित गैर आरक्षित आठ वार्डों में पांच महिलाएं ही प्रत्याशी हैं। वर्ष 2003 के बाद तीन से अधिक बच्चे उत्पन्न होने पर अयोग्यता के नए नियम का 80 फीसद खमियाजा (5 में से 4 पर्चे महिलाओं के ही हुए ख़ारिज) भी महिलाओं को भुगतना पड़ा है। 
नैनीताल में अध्यक्ष पद के लिए 14 और 13 वार्डों के सभासदों के पदों के लिए 88 प्रत्याशी मैदान में हैं  इनमें महिला दावेदारों की संख्या कुल मिलकर केवल 29 ही है। अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित अध्यक्ष पद के लिए 14 प्रत्याशियों ने अपनी दावेदारी पेश की है, इनमें केवल एक शालिनी आर्या बिष्ट महिला वर्ग का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। वहीं महिलाओं हेतु गैर आरक्षित स्नोभ्यू वार्ड से सर्वाधिक दो- वर्तमान सभासद अमिता बेरिया व रेखा वैद्य, वार्ड सात शेर का डांडा से जीवंती देवी, वार्ड 10 सूखाताल से लीला अधिकारी सहित कुल पांच महिलाएं ही चुनाव लड़ने की हिम्मत जुटा पाई हैं। वहीं जहां नगर के अनारक्षित आवागढ़ वार्ड में 14 एवं सूखाताल वार्ड में 11 प्रत्याशी मैदान में उतरे हैं, लेकिन महिलाओं हेतु आरक्षित वाडरे में प्रत्याशियों का टोटा साफ नजर आता है। वार्ड तीन व वार्ड 11 में छह-छह (वार्ड 3 हरिनगर से कंचन, शीतल आर्या, रेनू आर्या, बबीता पंवार, मनीशा व आरती व वार्ड 11 मल्लीताल बाजार से पुष्पा साह, भारती साह, ललिता दोषाद, मंजू जोशी, गुंजन-मंजू रौतेला व कंचन वर्मा ), वार्ड नौ (नैनीताल क्लब से विद्या जोशी, दया सुयाल, सपना बिष्ट, नीमा अधिकारी व मधु बिष्ट) में पांच प्रत्याशियों को थोड़ा ठीक भी मानें तो अपर माल वार्ड में केवल चार (नीतू बोहरा, आशा आर्या, रमा गैड़ा व रीना मेहरा) और तल्लीताल बाजार जैसे वार्ड में केवल तीन महिला प्रत्याशी (प्रेमा मेहरा, प्रेमा अधिकारी व किरन साह) मतदाताओं को अधिक विकल्प उपलब्ध नहीं करा रही हैं। हालांकि जो महिलाएं राजनीति में आ भी रही हैं, वे भी अपनी कठपुतलियों सी डोर पतियों या अन्य पुरुष संबंधियों के हाथों में ही रखे रहने से गुरेज नहीं करतीं। नैनीताल में ऐसा कुछ कम नजर आता है जो सुखद व उम्मीद जगाने वाला हो सकता है।