Land Slide लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Land Slide लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 31 मार्च 2013

डीएम, मंत्री भी नहीं करा पा रहे जांच !


  • अल्मोड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग के 864 लाख रुपयों से हुए सुधार कार्यों के ध्वस्त हो जाने का मामला 
  • डीएम के अपने स्तर से जांच में गुणवत्ता पर उठाये थे सवाल 
  • जिले के प्रभारी मंत्री प्रीतम सिंह भी शासन से कर चुके हैं उच्चस्तरीय जांच की मांग


नैनीताल। जनपद से अल्मोड़ा समेत पहाड़ को जोड़ने वाले महत्वपूर्ण राष्ट्रीय राजमार्ग-87 (विस्तार) में विगत दिनों करीब 864 लाख रुपये से हुए सुधार-मरम्मत कार्य कुछ ही दिनों में ध्वस्त हो गए, लेकिन इसे निर्माण से संबंधित लोगों की ऊंची पहुंच का असर कहें या कि छोटे से प्रदेश में शासन-प्रशासन व सरकार के बीच तालमेल की कमी, निर्माण कार्यों में डीएम स्तर से की गई जांच में बड़ी अनियमितता उजागर हो जाने के बावजूद और डीएम द्वारा दो बार और जिले के प्रभारी मंत्री द्वारा पत्र लिखे जाने के बावजूद शासन मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश नहीं दे रहा। 
सड़क को आज के दौर की ‘लाइफ लाइन’ क्यों कहां जाता है, इस बात का अहसास कोसी नदी के बराबर से गुजर रहे अल्मोड़ा राष्ट्रीय राजमार्ग-विस्तार के अक्टूबर 2010 में आई अतिवृष्टि के दौरान नैनीताल जनपद स्थित बड़े हिस्से के बह जाने और महीनों इस मार्ग से पहाड़ का संपर्क भंग होने और मार्ग पर दर्जनों वाहनों के महीनों फंसे रहने के रूप में देखा जा सकता था। आगे, जनता की कमाई के ही 841.15 लाख रुपये से मार्ग के ज्योलीकोट से क्वारब तक सड़क का व्यापक स्तर पर पुनर्निर्माण, सुधार-मरम्मत आदि के कार्य हुए। यह कार्य मार्च 2012 में पूर्ण हो पाए। इसी दौरान मार्ग के किमी-41 में जौरासी के समीप "क्रॉनिक जोन" विकसित हो जाने से व्यापक भूस्खलन हुआ, जिसे दुरुस्त करने में और चार महीनों के अंदर निर्माण कार्य दरकने लगे और दिखने लगा कि जनता की गाढ़ी कमाई निर्माण कार्यों में नहीं निर्माणकर्ताओं की जेब में समा गई है। शिकायतें आने के बाद डीएम नैनीताल निधिमणि त्रिपाठी ने एसडीएम कोश्यां-कुटौली से मामले की जांच करवाई। एसडीएम की सात जुलाई 12 को आई रिपोर्ट में कहा गया कि एनएच पर नावली के पास निर्मित दीवार व सड़क धंस रही है, और सड़क कभी भी गिर सकती है। लिहाजा डीएम ने पहले जुलाई 12 में और फिर दिसम्बर 12 में प्रमुख सचिव लोनिवि को मामले की उच्च स्तरीय जांच के लिए संस्तुति करते हुए पत्र लिखे। इस बीच 26 दिसम्बर 12 को जिले के प्रभारी मंत्री प्रीतम सिंह की अध्यक्षता में आयोजित हुई जिला योजना की बैठक में यह मामला जनप्रतिनिधियों ने बेहद जोर-शोर से उठा, और मंत्री बावजूद शासन से मामले की जांच होना दूर, किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। सांसद प्रतिनिधि डा. हरीश बिष्ट, कांग्रेस के जिलाध्यक्ष सतीश नैनवाल समेत अनेक जनप्रतिनिधि भी इस मामले को गंभीर बताते हुए मामले की शासन से उच्च स्तरीय जांच व दोषियों को दंडित करने तथा सड़क को दुरुस्त करने की मांग उठा रहे हैं। वहीं प्रभारी मंत्री प्रीतम सिंह का कहना है कि वह स्वयं इस मामले को लेकर सीएम और प्रमुख सचिव लोनिवि से बात करेंगे। 

शनिवार, 7 जुलाई 2012

हल्द्वानी-नैनीताल राष्ट्रीय राजमार्ग पर "एमबीटी" से नयी मुसीबत

  • पहेली बना दो किमी क्षेत्र में दर्जन भर जगहों पर भूस्खलन
  • भू वैज्ञानिक का दावा- एमबीटी हुआ सक्रिय 
  • बल्दियाखान-नैना गांव के बीच खतरनाक हुआ राष्ट्रीय राजमार्ग

नवीन जोशी, नैनीताल। हल्द्वानी-नैनीताल राष्ट्रीय राजमार्ग पर बल्दियाखान और नैना गांव के बीच एक नई आफत उभर आई है। अब तक हर तरह से सुरक्षित माना जाने वाला राजमार्ग का यह हिस्सा बीते तीन दिनों से लगातार जगह- जगह दरक रहा है। मार्ग पर करीब दो किमी के दायरे में ही एक दर्जन स्थानों पर भारी मात्रा में भूस्खलन हो रहा है। इसमें आधा दर्जन स्थान तो ऐसे हैं, जिन पर लगातार भू स्खलन जारी है। इससे मार्ग पर वाहनों का आवागमन बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। राजमार्ग का शेष हिस्सा जहां सुरक्षित है, अभी अधिक बारिश भी नहीं हुई है, ऐसे में इस छोटे से हिस्से में इतने व्यापक पैमाने पर हो रहा भूस्खलन पहेली बना हुआ है। 
गौरतलब है कि नगर एवं आसपास के क्षेत्र में जुलाई माह शुरू होने के बाद ही बारिश का मौसम शुरू हुआ है। इस दौरान करीब 300 मिमी बारिश ही रिकार्ड की गई है। खास बात यह है कि गत वर्षो के सर्वाधिक भूस्खलन प्रभावित भुजियाघाट व अन्य क्षेत्र अभी तरह पूरी तरह सुरक्षित हैं। पांच जुलाई की शाम सामान्य बारिश के बाद ही बल्दियाखान से आगे हनुमान मंदिर से लेकर नैनागांव के बीच एक दर्जन स्थानों पर भूस्खलन होने से सड़क बंद हो गई थी। इसे दुरुस्त करने के लिए दो जेसीबी मशीनों को मौके पर तैनात किया गया। तभी से ये दोनों मशीनें इस क्षेत्र में लगातार मलबा हटाने में जुटी हुई हैं, लेकिन मलबा रुकने का नाम नहीं ले रहा है। कुछ लोग इस भूस्खलन का कारण बादल फटना मान रहे हैं तो कुछ गरमियों में लगी भीषण आग को वजह बता रहे हैं। उधर, कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभाग में तैनात यूजीसी के वैज्ञानिक डा. बीएस कोटलिया का कहना है कि इस क्षेत्र में उत्तर भारत के बड़े भ्रंशों में से एक एमबीटी यानी मेन बाउंड्री थ्रस्ट गुजर रहा है। इसे बलियानाला में बीरभट्टी से नीचे व बल्दियाखान की ओर निहाल नाले में पातीखेत के पास लगातार हो रहे भूधंसाव के रूप में साफ देखा जा सकता है। इसके साथ ही बल्दियाखान के ठीक पहले के गदेरे में मध्य हिमालय का पहाड़ निम्न हिमालय के शिवालिक पहाड़ पर चढ़ा हुआ है। डा. कोटलिया का दावा है कि क्षेत्र में एमबीटी सक्रिय हो गया है। इस बारे में वे वर्षो से चेतावनी देते रहे हैं। उनका कहना है कि आगे भी यहां भूस्खलन जारी रह सकता है।


राष्ट्रीय सहारा  के 8 जुलाई के अंक में प्रथम पेज पर भी देख सकते हैं

गुरुवार, 22 मार्च 2012

भूस्खलन से पहले मिल जाएगी जानकारी

राज्य में भूस्खलन चेतावनी प्रणाली विकसित करने की तैयारी कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभाग व एटीआई की आपदा प्रबंधन विंग करेगी मिलकर कार्य 
नैनीताल (एसएनबी)। प्रदेश में भूस्खलनों से होने वाले नुकसानों को रोकने के लिए ‘भूस्खलन पूर्वानुमान प्रविधि’ (अर्ली वार्निग सिस्टम फार लैंड स्लाइड) विकसित करने का कार्य शुरू हो रहा है। उत्तराखंड प्रशासन अकादमी के आपदा प्रबंधन प्रकोष्ठ एवं कुमाऊं विवि के भू-विज्ञान विभाग इस दिशा में मिल कर कार्य करेंगे। अकादमी में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान नई दिल्ली के सहयोग से शुरू हुई कार्यशाला में इस बात पर सहमति बनी है। 
बृहस्पतिवार को उत्तराखंड प्रशासन अकादमी में भूस्खलनों पर शुरू हुई तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के शुभारंभ मौके पर बतौर मुख्य अतिथि कुमाऊं विवि के कुलपति ने इस बारे में कुविवि की भूमिका की घोषणा की। उन्होंने उम्मीद जताई कि उत्तराखंड जैसे अत्यधिक भूस्खलनों की संभावना वाले राज्य में ऐसी संगोष्ठियां लाभदायक होंगी। संगोष्ठी में जीएसआई कोलकाता के निदेशक जी. मुरलीधरन, उत्तराखंड मौसम विज्ञान के निदेशक आनंद शर्मा, राज्य आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के पूर्व निदेशक कुविवि के भूविज्ञान विभाग के प्रो. आरके पांडे, अपर जिलाधिकारी ललित मोहन रयाल व कुविवि के विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो. सीसी पंत आदि ने भी उपयोगी विचार रखे तथा प्रदेश की भूस्खलन संवेदनशीलता के मद्देनजर प्रभावी उपाय किये जाने पर बल दिया। संचालन जेसी ढौंढियाल ने किया। बताया गया कि संगोष्ठी में अगले दो दिन देश के 15 राज्यों से आये विशेषज्ञ करीब 35 शोध पत्र प्रस्तुत करेंगे तथा आखिरी दिन नगर के आधार बलियानाला व अन्य क्षेत्रों की फील्ड स्टडी भी करेंगे। 

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

दरकती जमीन पर खड़े हो रहे आफतों के महल


आपदा प्रभावित मंगावली क्षेत्र में लगातार हो रहे निर्माणों से भूस्खलन का खतरा बढ़ा

नवीन जोशी, नैनीताल। राज्य में चाहे आपदा प्रबंधन का जितना शोर हो रहा हो और मुआवजे के रूप में ही करोड़ों रुपये खर्च करने पड़े हों, लेकिन इतना साफ़ हो गया है कि न सरकार और न लोगों ने ही आपदा से जरा भी सबक लिया है। इसकी बानगी है दैवीय आपदा से सर्वाधिक प्रभावित हुआ मंगावली क्षेत्र। यहां एक ओर मकान दरक रहे हैं, वहीं वैध- अवैध निर्माण जारी हैं। पहले से हिली धरती के सीने में गड्ढों के रूप में घाव किए जा रहे हैं। प्रतिदिन टनों निर्माण सामग्री वहां उड़ेली जा रही है। 
मंगावली शेर का डांडा पहाडी पर स्थित नगर से अलग-थलग एवं दुर्गम क्षेत्र है। तीखी चढ़ाई वाले बिड़ला मार्ग से इस ओर वाहन मुश्किल से ही चढ़ पाते हैं। इसके बावजूद यहां इन दिनों बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य चल रहे हैं। यह कार्य वैध है अथवा अवैध, तात्कालिक रूप से जिम्मेदार झील विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को भी मालूम नहीं है, लेकिन जिस तरह व्यापक स्तर पर जमीन खोद कर पत्थरों के पहाड़ बनाए जा रहे हैं, उससे तथा अधिकारियों की जानकारी में मामला न होने से साफ हो जाता है कि निर्माण पर सरकारी नियंत्रण नहीं है। पूछने पर झील विकास प्राधिकरण के सचिव एचसी सेमवाल ने कहा कि निर्माणों की जांच कराकर कार्यवाही की जाएगी। 
शेर का डांडा में हुआ था भूस्खलन 
बीती 18-19 सितंबर २०१० को अतिवृष्टि ने नगर के शेर का डांडा पहाड़ी में जबरदस्त हलचल मचाई थी। इसी पहाड़ी के शिखर पर स्थित बिड़ला विद्या मंदिर परिसर में गिरे बड़े बोल्डर से विद्यालय की डिस्पेंसरी व कर्मचारी आवासों को नुकसान हुआ था। इसके नीचे मंगावली में पालिकाकर्मी साजिद अली के मकान सहित कई घरों में दरारें आई थीं, जो अब भी चौड़ी होती जा रही हैं। इससे नीचे सीएमओ कार्यालय के पास स्वास्थ्य विभाग के आवास पर भी बोल्डर गिरा था तथा पहाड़ी की तलहटी में कैंट क्षेत्र में भी भारी भूस्खलन हुआ था, व भवाली मार्ग अब भी इसी कारण ध्वस्त पड़ी है। ऐसे क्षेत्र में निर्माण सवालों के घेरे में हैं।