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शनिवार, 11 अक्तूबर 2014

अल्मोड़ा में बनेगा नया विवि, हल्द्वानी-पिथौरागढ़ नये कैंपस

कुमाऊं विवि की कार्य परिषद में बनी सहमति अंतिम फैसला राज्य सरकार पर निर्भर 12 नए कालेज, 20 सांध्यकालीन कॉलेज, पांच निजी कॉलेजों एवं 17 नए पाठय़क्रमों को भी मिली मंजूरी
नैनीताल (एसएनबी)। निकट भविष्य में कुमाऊं विवि का अल्मोड़ा परिसर एक अलग स्वतंत्र-टीर्चस एजुकेशन यूनिवर्सिटी और हल्द्वानी व पिथौरागढ़ दो नए परिसर बन सकते हैं। कुमाऊं विवि की कार्य परिषद ने इन पर अपनी सहमति दे दी है। इनमें से हल्द्वानी परिसर कुमाऊं विवि का एवं पिथौरागढ़ परिसर अल्मोड़ा विवि का होगा। इसके साथ ही कार्य परिषद ने प्रो. रजनीश पांडे को कुमाऊं विवि का स्थायी तौर पर परीक्षा नियंत्रक पद पर नियुक्ति देने, कुमाऊं में 12 नए कॉलेज, 20 सांध्यकालीन कॉलेज, पांच निजी कॉलेजों एवं कॉलेजों में 17 नए पाठय़क्रमों को भी मंजूरी दे दी है। शनिवार को कुमाऊं विवि कार्य परिषद की बैठक विवि प्रशासनिक भवन में कुलपति प्रो. होशियार सिंह धामी की अध्यक्षता एवं उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं केंद्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य सीरियक जोसफ एवं अन्य सदस्यों की उपस्थिति में आयोजित हुई। इस बैठक में प्रयोगशाला सहायकों के वेतन ग्रेड संबंधित लंबित मामले को भी स्वीकृति दे दी गई, साथ ही पॉल कॉलेज आफ टेक्नोलॉजी व पाल कॉलेज और नर्सिग, सूरजमल कॉलेज, देवस्थली विद्यापीठ, चाणक्य लॉ कॉलेज व नैंसी कान्वेंट की कुमाऊं विवि से संबद्धता का नवीनीकरण स्वीकृत कर दिया गया। साथ ही कॉलेजों में 17 नए पाठय़क्रमों, सरकार द्वारा खोले गए 12 नए कॉलेजों एवं 20 सांध्यकालीन कॉलेजों को भी स्वीकृति दे दी गई। वहीं सर्वप्रमुख अल्मोड़ा परिसर को नए विवि के रूप में स्वीकृति देते हुए कुलपति प्रो. धामी ने प्रस्ताव रखा कि इसे वर्मा आयोग की इच्छा के अनुरूप शिक्षकों के लिए शिक्षण की सुविधा युक्त विवि के रूप में स्थापित किया जाए। इस बैठक में कुविवि के रजिस्ट्रार दिनेश चंद्रा, डॉ. महेंद्र पाल, अचिंत्यवीर सिंह, प्रकाश पांडे, डॉ. एसडी शर्मा, डॉ. एलएस बिष्ट, जेसी बधानी, डॉ. पीके जोशी, डॉ. अमित जोशी और डॉ. बीडी दानी आदि सदस्य मौजूद रहे। 
गरमाएगी कुमाऊं की राजनीति! 
कुमाऊं विवि की कार्य परिषद ने हालांकि अल्मोड़ा परिसर को नया विवि एवं हल्द्वानी व पिथौरागढ़ कालेजों को नये परिसरों के रूप में स्थापित करने को अपनी स्वीकृति दे दी है, मगर फैसला राज्य सरकार को ही करना है, लिहाजा आगे इस मामले में कुमाऊं की राजनीति के गर्माने से इनकार नहीं किया जा सकता। गौरतलब है कि गत दिवस हरमिटेज परिसर में हुए कुमाऊं विवि के कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि पहुंची उच्च शिक्षा मंत्री ने इसी मामले में इशारा किया था कि ऐसे मामलों में कोई फैसला राजनीतिक तौर पर नहीं वरन अकादमिक आधार पर ही लिया जाएगा।

गुरुवार, 19 जून 2014

उत्तराखंड में बनेगा ‘हिमालयी क्षेत्रों पर अध्ययन का अंतरराष्ट्रीय संस्थान’

-हिमालयी प्रौद्योगिकी केंद्रीय विश्वविद्यालय जैसा भी हो सकता है स्वरूप
-दिल्ली में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा ली गई बैठक में बनी सहमति
नवीन जोशी, नैनीताल। उत्तराखंड में ‘हिमालयी क्षेत्रों पर अध्ययन का अंतर्राष्ट्रीय संस्थान’ (इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन स्टडीज) की स्थापना की जाएगी। इसका स्वरूप हिमालयी प्रौद्योगिकी केंद्रीय विश्वविद्यालय जैसा भी हो सकता है। राज्य में दिल्ली में बीती मंगलवार यानी 17 जून 2014 को केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी की अध्यक्षता में हुई उच्च स्तरीय बैठक में इस पर सहमति दे दी गई है, तथा प्रदेश के उच्च शिक्षा सचिव डा. उमाकांत पवार को इस बाबत विस्तृत प्रस्ताव तैयार करने को कह दिया गया है। अब उत्तराखंड सरकार को तय करना है कि यह संस्थान अथवा केंद्रीय विश्वविद्यालय राज्य में कहां स्थापित होगा। अलबत्ता, उम्मीद की जा रही है कि यह राज्य के कुमाऊं मंडल में स्थापित किया जा सकता है।
केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी की अध्यक्षता में  हुई बैठक में उपस्थित रहे कुमाऊं 
विवि के कुलपति प्रो. होशियार सिंह धामी ने दिल्ली से दूरभाष पर बताया कि उत्तराखंड में ‘इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन स्टडीज’ पर सहमति बनना राज्य के लिए खुशखबरी है। इस अंतर्राष्ट्रीय स्तर के संस्थान में न केवल हिमालयी क्षेत्रों की नाजुक प्रकृति, आपदा आने की लगातार संभावनाओं, सतत विकास की ठोस प्रविधि विकसित करने, जैव विविधता एवं प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण एवं विकास के बीच जरूरी साम्य तय करने के मानकों के साथ ही हिमालयी क्षेत्र की संस्कृति, विरासत एवं यहां की विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी कुमाउनी व गढ़वाली के साथ ही जौनसारी, भोटिया, थारू, बोक्सा व रांग्पो सहित प्रदेश की सभी लोक भाषाओं के संरक्षण के कार्य भी किए जाएंगे। 

पंत के नाम से ही हो सकता है प्रस्तावित टैगोर पीठ 

नैनीताल। उल्लेखनीय है कि कुमाऊं विवि ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की 12वीं योजना के तहत अल्मोड़ा में प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत पर अध्ययन एवं शोध के लिए रवींद्र नाथ टैगोर के नाम पर पीठ स्थापित किए जाने का प्रस्ताव तैयार किया था। कुलपति प्रो. एचएस धामी ने बताया कि पहले नोबल पुरस्कार विजता सात्यिकारों के नाम पर ही पीठ स्थापित किए जाने का प्राविधान था। अब केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने क्षेत्र के प्रेरणादायी सात्यिकारों के नाम पर भी ऐसे पीठ स्थापित किए जाने की हामी भर दी है, जिसके बाद पीठ का नाम पंत के नाम पर ही हो सकता है। प्रो. धामी ने बताया कि इसके अलावा उत्तराखंड सहित सभी राज्यों में गुजरात की तर्ज पर ‘नो युवर कॉलेज’ कार्यक्रम भी शुरू किया जा सकता है, इसके तहत छात्र-छात्राओं को उनके परिसरों की जानकारी दी जाएगी।

सोमवार, 11 मार्च 2013

हिमालय पर ब्लैक कार्बन का खतरा !


पहाड़ों पर अधिक होता है मौसम परिवर्तन का असर : प्रो. सिंह
नवीन जोशी नैनीताल। दुनिया के "वाटर टावर" कहे जाने वाले और दुनिया की जलवायु को प्रभावित करने वाले हिमालय पर कार्बन डाई आक्साइड, मीथेन, ग्रीन हाउस गैसों तथा प्रदूषण के कारण ग्लोबल वार्मिग व जलवायु परिवर्तनों के खतरे तो हैं ही, वैज्ञानिक ब्लैक कार्बन को भी हिमालय के लिए एक खतरा बता रहे हैं। खास बात यह भी है कि इसका असर गरमियों के मुकाबले सर्दियों में, दिन के मुकाबले रात्रि में और मैदान के बजाय पहाड़ पर अधिक होता है। बीरबल साहनी पुरस्कार प्राप्त प्रसिद्ध पादप वैज्ञानिक, गढ़वाल विवि के पूर्व कुलपति, उत्तराखंड योजना आयोग के सदस्य एवं भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आईएनएसए) के लिए हिमालय पर जलवायु परिवर्तन का अध्ययन कर रहे प्रो. एसपी सिंह ने यह खुलासा किया है। सिंह का कहना है कि दुनिया में डेढ़ बिलियन लोग ईधन में ब्लैक कार्बन’का प्रयोग करते हैं। हिमालय पर इसका सर्वाधिक असर वनस्पतियों की प्रजातियों के अपनी से अधिक ऊंचाई की ओर माइग्रेट होने के साथ ही ग्लेशियरों के पिघलने और मानव की जीवन शैली से लेकर आजीविका तक पर गंभीर प्रभाव के रूप में दिख रहा है। धरती के गर्भ से खुदाई कर निकलने वाले डीजल जैसे पेट्रोलियम पदार्थो, कोयला व लकड़ी आदि को जलाने से ब्लैक कार्बन उत्पन्न होता है। प्रो. सिंह के अनुसार यह ब्लैक कार्बन’जलने के बाद ऊपर की ओर उठता है, और ग्रीन हाउस गैसों की भांति ही धरती की गर्मी बढ़ा देता है। बढ़ी हुई गर्मी अपने प्राकृतिक गुण के कारण मैदानों की बजाय ऊंचाई वाले स्थानों यानी पहाड़ों पर अधिक प्रभाव दिखाते हैं। प्रो. सिंह खुलासा करते हैं कि इस प्रकार मौसम परिवर्तन का असर दिल्ली या देहरादून से अधिक नैनीताल में सर्दियों में रात्रि का तापमान कई बार समान होने के रूप में दिखाई दे रहा है। इसके असर से ही ग्लेशियर पिघल रहे हैं और पौधों की प्रजातियां ऊपर की ओर माइग्रेट हो रही हैं। ऐसे में सामान्य सी बात है कि पहाड़ की चोटी की प्रजातियां और ऊपर न जाने के कारण विलुप्त हो रही हैं। मानव जीवन पर भी इसका असर फसलों के उत्पादन के साथ आजीविका और जीवनशैली पर पड़ रहा है। उन्होंने खुलासा किया कि हिमाचल प्रदेश में 1995 से 2005 के बीच सेब उत्पादन में कम ऊंचाई वाले कुल्लू व शिमला क्षेत्रों का हिस्सा कम हुआ है, जबकि ऊंचाई वाले लाहौल- स्फीति का क्षेत्र बढ़ा है।

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

कुमाऊं विवि के भौतिकी विभाग को "सेंटर फॉर एक्सीलेंस"



यूजीसी से मिलेंगे 1.37 करोड़ रुपये सेंटर फार एडवांस्ड स्टडीज बनेगा
नवीन जोशी, नैनीताल। कुमाऊं विवि के डीएसबी परिसर का भौतिकी विभाग पुन: अपने गौरव की ओर लौटता नजर आ रहा है। विभाग को विवि अनुदान आयोग यानी यूजीसी ने ˜सेंटर फॉर एक्सीलेंस" बनाने की घोषणा कर दी है। इसके तहत विभाग को अगले पांच वर्षो में 1.31 करोड़ रुपये मिलेंगे, जिससे विभाग को सीएएस यानी सेंटर फॉर एडवांस स्टडीज यानी डीएसए के रूप में विकसित किया जाएगा। इस धनराशि से विभाग में स्नातकोत्तर व शोध के स्तर को बढ़ावा देने के लिए अत्याधुनिक उपकरण खरीदे जाएंगे, साथ ही विभाग से संबंधित बड़ी संगोष्ठियां व लेक्चर भी आयोजित किए जाएंगे। उल्लेखनीय है कि कुमाऊं विवि के भौतिकी विज्ञान विभाग के प्रो. डीडी पंत को कुमाऊं विवि के प्रथम कुलपति होने का सौभाग्य मिला था। प्रो. पंत की गिनती देश के बड़े वैज्ञानिकों में होती थी। इस लिहाज से विवि के भौतिकी विभाग का गौरवमयी इतिहास रहा है। इधर, बीते माह 21-22 जनवरी को यूजीसी की बैठक में भौतिकी विभागाध्यक्ष डा. संजय पंत द्वारा किए गए विभाग के प्रस्तुतीकरण के फलस्वरूप यह उपलब्धि हासिल हुई है। प्रो. पंत ने उम्मीद जताई कि इस उपलब्धि के बाद विभाग में पढ़ाई व शोध का स्तर बढ़ेगा। बताया कि विभाग को डीआरएस व डीएसए के बाद मिली यह तीसरी अवस्था है। वहीं कुलपति प्रो. राकेश भट्नागर ने विभाग की इस उपलब्धि पर खुशी जताते हुए कहा कि इससे विभाग में काफी सारे अत्याधुनिक उपकरण प्राप्त होंगे। फलस्वरूप विद्यार्थी बेहतर सुविधाओं के साथ शोध कार्य कर पाएंगे, साथ ही उनके कार्य को देश-दुनिया में महत्व मिलेगा। उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व विवि के भूगर्भ विज्ञान विभाग को ही यूजीसी से "सेंटर फार एक्सीलेंस" का पुरस्कार मिल पाया है।

प्रो. पंत ने अपने उपकरणों से की थी स्थापना
नैनीताल। कम ही लोग जानते होंगे कि डीएसबी परिसर की भौतिकी प्रयोगशाला देश की ऐसी पहली प्रयोगशाला है, जो प्रो. डीडी पंत ने अपने बनाए उपकरणों से 1954 से 1956 के बीच स्थापित की थी। आज भी यह प्रयोगशाला देश की श्रेष्ठ प्रयोगशालाओं में गिनी जाती है, और खासकर प्रकाश-भौतिकी (स्पेक्ट्रोस्कोपी) की प्रयोगशालाओं के मामले में उत्तर भारत की सर्वश्रेष्ठ प्रयोगशाला बताई जाती है।