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मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

"स्टीपी" पर डोला डोल्मा का मन

नैनीताल में प्रवासी पक्षियों के साथ ही देश-विदेश से आए पक्षी प्रेमियों का भी लगा जमावड़ा
नवीन जोशी नैनीताल। जी हां, इश्क हो तो एसा। कजाकिस्तान से प्रवासी पक्षी 'स्टीपी' यानी स्टीपी ईगल अपने शीतकालीन प्रवास पर "पक्षियों के तीर्थ" कहे जाने वाले नैनीताल क्या आया, मानों उसकी प्रेमिका की तरह ही मंगोलिया से पक्षी प्रेमी छायाकार डोल्मा अपने जैसे ही पक्षी प्रेमियों के करीब डेढ़ दर्जन सदस्यों के दल का साथ लेकर यहां धमक आईं। 
डोल्मा बीते तीन दिनों से भरतपुर (राजस्थान) के पक्षी विशेषज्ञ बच्चू सिंह के साथ शहर में है और यहां कूड़ा खड्ड के पास अपने दल-बल के साथ सैकड़ों की संख्या में स्टीपी ईगल की खूबसूरती को अपने कैमरे में कैद करती जा रही है। मानव प्रेमियों के साथ ही पक्षियों और उनके प्रेमियों के मिलन स्थल बने नैनीताल में ऐसे और भी नजारे इन दिनों आम बने हुए हैं। गौरतलब है कि मनुष्य जिस तरह अपने जीवन में एक बार जरूर अपने धार्मिक तीथरे की यात्रा करना अपने जीवन का उद्देश्य मानता है, कुछ इसी तरह कहा जाता है कि दुनिया भर के प्रवासी प्रकृति के पक्षी भी जीवन में एक बार नैनीताल जरूर जाना चाहते हैं। इस आधार पर भरतपुर पक्षी विहार के सुप्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ बच्चू सिंह नैनीताल को पक्षियों के तीर्थ की संज्ञा देने में संकोच नहीं करते। वह बताते हैं कि देश भर में पाई जाने वाली 1100 पक्षी प्रजातियों में से 600 तो यहां प्राकृतिक रूप से हमेशा मिलती हैं, जबकि देश में प्रवास पर आने वाली 400 में से 200 से अधिक विदेशी पक्षी प्रजातियां भी यहां आती हैं। इनमें ग्रे हैरोन, शोवलर, पिनटेल, पोर्चड, मलार्ड, गागेनी टेल, रूफस सिबिया, बारटेल ट्री क्रीपर, चेसनेट टेल मिल्ला, 20 प्रकार की बतखें, तीन प्रकार के सारस, स्टीपी ईगल, अबाबील आदि भी प्रमुख हैं। बच्चू नैनीताल की इसी खासियत के कारण हर वर्ष खासकर मंगोलिया, कोरिया जैसे दक्षिण एशियाई देशों के पक्षी प्रेमी छायाकारों के दल को नैनीताल लेकर आते हैं। इस बार वह मंगोलिया के दल को यहां के सप्ताह भर के टूर पर लेकर आये हैं। तीन दिनों से उनका करीब डेढ़ दर्जन सदस्यों का दल नगर के हल्द्वानी रोड स्थित कूड़ा खड्ड-हनुमानगढ़ी क्षेत्र में जमा हुआ है। बच्चू कहते हैं कि नैनीताल का सबसे बुरा- शहरभर का कूड़ा डालने वाला स्थान कजाकिस्तान के स्टीपी ईगल की सबसे पसंदीदा जगह है। रानीखेत और अल्मोड़ा भी स्टीपी को काफी पसंद हैं। इस दौरान यहां आये दल को अनेक प्रकार की जमीन पर फुदकने वाली चिड़िया-वाइट थ्राटेड लाफिंग थ्रस, स्ट्राइटेड लाफिंग स्ट्रीट थ्रस, चेस नेट वैली रॉक थ्रस, ब्लेक ईगल, टोनी ईगल, फेल्कुनेट, कॉमन कैसटल व पैराग्रीन फैल्कन सरीखी अनेक पक्षी प्रजातियों के चित्र लेने का लाभ भी मिला है। डोल्मा के साथ निमा, दावा, मिगमार, ल्हाग्बा, बाड्मा, सांग्जई यहां आकर बहुत खुश हैं।
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शनिवार, 17 नवंबर 2012

नैनी सरोवर में लगे 'सुरखाब के पर'



नैनीताल मैं सैलानियों के लिए सीजन 'ऑफ' तो प्रवासी पक्षियों के लिए हुआ 'ऑन'
नैनी झील में आए सुर्खाब पक्षी, साथ ही बार हेडेड गीज का भी हुआ आगमन
नवीन जोशी नैनीताल। जी हां, नैनी सरोवर में सुर्खाब के पर लग गए हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि नैनीझील में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला सुर्खाब पक्षी पहुंचा है, और नैनीझील के आसपास उड़ते और तैरते हुए खूब आनंदित हो रहा है। उसके आने से निश्चित ही नैनीझील और कमोबेस प्रवासी पक्षियों को निहारने वाले पक्षी प्रेमी खूब इतरा रहे हैं। नैनीताल में इन दिनों जहां मनुष्य सैलानियों का पर्यटन की भाषा में 'ऑफ सीजन' शुरू होने जा रहा है, वहीं मानो सैलानी पक्षियों का सीजन 'ऑन' होने जा रहा है। इन दिनों यहां नैनी सरोवर में चीन, तिब्बत आदि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला सुर्खाब पक्षी तथा बार हेडेड गीज आदि अनेक प्रवासी पक्षी की प्रजातियां पहुंची हैं। पक्षी विशेषज्ञ एवं अंतरराष्ट्रीय छायाकार अनूप साह के अनुसार इन दिनों उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी होने के कारण वहां की झीलें बर्फ से जम जाती हैं। ऐसे में उन सरोवरों में रहने वाले पक्षी नैनीताल जैसे अपेक्षाकृत गरम स्थानों की ओर आ जाते हैं। यह पक्षी यहां पूरे सर्दियों के मौसम में पहाड़ों और यहां भी सर्दी बढ़ने पर रामनगर के काब्रेट पार्क व नानक सागर, बौर जलाशय आदि में रहते हैं, और मार्च-अप्रैल तक यहां से वापस अपने देश लौट आते हैं। उन्होंने बताया कि नैनीझील में कई प्रकार की बतखें भी पहुंची हैं, जबकि नगर के हल्द्वानी रोड स्थित कूड़ा खड्ड में अफगानिस्तान की ओर से स्टेपी ईगल पक्षी भी बड़ी संख्या में पहुंचे हैं।


सुर्खाब के बारे में कुछ ख़ास बातें....
सुर्खाब मुर्गाबी प्रजाति से है। ये मूलत: लद्दाख, नेपाल एवं तिब्बत से आते है. ये सर्दी में भारत के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार में भी प्रवास करते हैं। इनकी ब्रीडिंग अवधि अप्रैल से जून माह तक होती है। इनका रंग सुनहरा होता है और अंदर की ओर से इसके पंख हरे व चमकदार होते हैं। ये प्राय: जोड़ा बनाकर रहते है। इन्हें ब्राह्नी डक, रेड शैलडक और चकवा-चकवी भी कहा जाता है, यह प्रायः जोड़े के साथ रहते हैं। ऐसी मान्यता है कि सुर्खाव जीवन में केवल एक बार ही जोड़ा बनाते है। अगर दोनों में से किसी एक की मृत्यु हो जाए तो दूसरा अकेला ही जीवन व्यतीत करेगा। ब्रीडिंग के समय नर सुर्खाब की गर्दन में एक काला बैंड नजर आता है। ये चट्टानों में और ऊंची मिट्टी के टीलों में अपने घौंसले बनाते है तथा पानी से काफी ऊंचाई पर बनाते है। पानी में पाए जाने वाले भोजन के अलावा खेतों में चने, गेंहू, जो की फसलों से भोजन चुनते हैं। ये अधिकांश समय पानी में तैरते हैं इन दौरान ये कीड़े-मकौडे खाकर अपना पेट भरते है ये छोटी मछलियों का भी शिकर करते हैं।  भारत में इनका प्रवास अक्टूबर माह से मार्च तक माना जाता है। 
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