गुरुवार, 24 मार्च 2011

बेपरदा हो जाएंगे चांद-सितारों के राज


एरीज भी करेगा दुनिया की सबसे बड़ी 30 मीटर की दूरबीन 'टीएमटी' योजना को पूरा करने में सहयोग
नवीन जोशी नैनीताल। वैज्ञानिकों का मानना है कि तारे भी पैदा होते एवं मरते हैं। उनसे मानव एवं अन्य जीवधारियों का जन्म होता है। वह यह भी मानते हैं कि किसी न किसी ग्रह पर एलियन होते हैं। संभावना है कि 2020 तक बैज्ञानिक इस गुत्थी को सुलझा लेंगे। इसके लिए 1.3 बिलियन डालर लागत वाली 'थर्टी मीटर टेलीस्कोप' प्रशांत महासागर के हवाई द्वीप में एक पर्वत पर 2018 में स्थापित किए जाने की योजना है। यह सौरमंडल और अन्य आकाशगंगाओं का अध्ययन करेगी। अनंत ब्रह्माण्ड के रहस्यों को समझने में मानव अभी प्रारंभिक स्तर पर है। 2001 और 2003 में खगोल विज्ञानियों ने 30 मीटर व्यास की आप्टिकल अल्ट्रावायलेट (0.3 से 0.4 मीटर तरंग दैध्र्य की पराबैगनी किरणों) से लेकर मिड इंफ्रारेड (2.5 मीटर से 10 माइक्रोन तरंग दैध्र्य तक की अवरक्त) किरणों (टीवी के रिमोट में प्रयुक्त की जाने वाली अदृश्य) युक्त दूरबीन का ख्वाब देखा गया था। 'थर्टी मीटर टेलीस्कोप यानि 'टीएमटी' कही जा रही 1.3 बिलियन डालर लागत वाली यह दूरबीन प्रशांत महासागर में हवाई द्वीप में होनोलूलू के करीब ज्वालामुखी से निर्मित 13,803 फिट (4,207 मीटर) ऊंचे पर्वत पर वर्ष 2018 में स्थापित किए जाने की योजना है। यह सौरमंडल और अन्य आकाशगंगाओं का अध्ययन करेगी। इस दूरबीन का निर्माण किसी एक देश के बस की बात नहीं है। इसके निर्माण में भारत, अमेरिका, जापान, कनाडा, आस्ट्रेलिया, चीन एवं यूरोप सहित आठ देश सहयोग करेंगे। भारत की ओर से विगत दिनों तत्कालीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री पृथ्वीराज चह्वाण इस महायोजना में भारत के शामिल होने की औपचारिकता पूरी कर चुके हैं। देश के इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रो फिजिक्स (आईसीयूएए) पुणो व इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रो फिजिक्स (आईआईए) बंगलुरु के साथ ही नैनीताल स्थित एरीज की इस महायोजना में प्रमुख भागीदारी होगी। आगे की रणनीति के लिए अगले माह कनाडा में होने जा रही सहयोगी देशों के वैज्ञानिकों की अति महत्वपूर्ण बैठक में भाग लेने के लिए एरीज के निदेशक प्रो. रामसागर एवं वैज्ञानिक डा. अमितेष ओमर सहित भारतीय वैज्ञानिकों का दल कनाडा रवाना हो गया है। एरीज में वैज्ञानिकों में टीएमटी के प्रति खासा रोमांच है। तारों के अध्ययन में जुटे वैज्ञानिक डा. महेर गोपीनाथन ने उम्मीद जताई कि 2020 तक टीएमटी अनंत ब्रह्माण्ड की अनेक गुत्थियों पर लगातार नजर रखकर इन्हें सुलझाने में मदद करेगी।
अवरक्त किरणों को देखना चुनौती
नैनीताल। बड़ी से बड़ी व्यास की दूरबीन बनाने की कोशिशों का मूल कारण अवरक्त यानि इंफ्रारेड किरणों को न देख पाने की समस्या है। दुनिया में मौजूद दूरबीनें 350 से 750 तरंग दैध्र्य की किरणों तथा ऐसी किरणों उत्सर्जित करने वाले तारों व आकाशगंगाओं को ही देख पाती हैं जबकि इससे अधिक तरंग दैध्र्य की अवरक्त यानी इंफ्रारेड किरणों को देखने के लिए इनके अनुरूप उपकरणों की जरूरत होगी। ऐसी बड़ी दूरबीनें ऐसी प्रकाश व्यवस्था से भी जुड़ी होंगी जो बड़ी तरंग दैध्र्य की अवरक्त किरणों के माध्यम से बिना वायुमंडल और ब्रrांड में विचलित हुए सुदूर अंतरिक्ष के निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचकर वहां का हाल बता पाएंगी। एरीज ने जहां नैनीताल के देवस्थल में अभी 1.3 मीटर की दूरबीन लगाई है, वहीं एशिया की सबसे बड़ी बताई जा रही 3.6 मीटर व्यास की स्टेलर दूरबीन भी लगाने जा रहा है। यही नहीं देश में 10 मीटर व्यास की दूरबीन लगाने की कोशिश की चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं।


एक सी है मानव और तारों के जीवन-मरण की कहानी
नैनीताल। वैदिक मान्यता अनुसार मानव शरीर को पंच महाभूतों धरती, आकाश, अग्नि, हवा व पानी से बना माना जाता है, वहीं वैज्ञानिक इससे भी आगे मानते हैं कि मानव शरीर तारों (उपग्रहों में मौजूद तत्वों) से बना है। एरीज के वैज्ञानिक डा. महेर गोपीनाथन के अनुसार तारों से ही मानव एवं जीवधारियों का निर्माण होता है। हमारे रक्त में मौजूद हीमोग्लोबिन हो या हड्डियों में मौजूद कैल्शियम, सभी तत्व मूलत: तारों में ही बने हैं। यदि प्रकृति ने कोई आंख मिचौली न दिखाई तो टीएमटी से तारों के साथ ही जीवधारियों के जीवन-मरण की गुत्थी को भी और बेहतरी से समझा जा सकेगा।

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